एडिटोरियल (27 Jul, 2024)



भारत का कौशल विकास परिदृश्य

यह एडिटोरियल 23/07/2024 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित “How skilling initiatives will drive economy, bridge gender gap” लेख पर आधारित है। इसमें वर्ष 2047 तक ‘विकसित भारत’ बनने के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भारत की बेरोज़गारी-रोज़गार के अंतराल को दूर करने की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। इसके लिये शिक्षा, रोज़गार और कौशल पहलों में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है जिस पर केंद्रीय बजट 2024-25 में भी बल दिया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

स्किल इंडिया मिशन, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, संकल्प योजना, तेजस स्किलिंग प्रोजेक्ट, इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2024, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2022-23, गिग इकॉनमी, इंडिया AI मिशन, अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था, 3D प्रिंटिंग। 

मेन्स के लिये:

उभरते क्षेत्र जहाँ भारत कौशल प्रयासों को प्राथमिकता दे सकता है, भारत के कौशल प्रयासों से संबंधित प्रमुख मुद्दे।

भारत अपनी आर्थिक यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जहाँ विकास की अपार संभावनाएँ मौजूद हैं, लेकिन उसे बेरोज़गारी-रोज़गार के बीच के अंतराल को दूर करने में एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में वर्ष 2047 तक ‘विकसित भारत बनने का भारत का स्वप्न तेज़ी से विकसित हो रहे रोज़गार बाज़ार की मांगों को पूरा करने के लिये अपने युवाओं को प्रभावी ढंग से कौशल प्रदान करने पर टिका है। हाल ही में पेश किये गए केंद्रीय बजट 2024-25 ने इस प्राथमिकता को उजागर किया है, जहाँ शिक्षा, रोज़गार और कौशल पहलों के लिये पर्याप्त धन आवंटित किया गया है। हालाँकि, आगे अभी गंभीर चुनौती मौजूद है, जहाँ 15-59 आयु वर्ग के लगभग 73% कामगारों के पास कोई औपचारिक या अनौपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण नहीं है।

भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये एक बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है। इसमें संस्थागत समर्थन को सुदृढ़ करना, उद्योग-अकादमिक जगत के संबंधों को मज़बूत करना और ‘इम्पैक्ट बॉण्ड’ जैसे अभिनव वित्तपोषण समाधानों का लाभ उठाना शामिल है। जब भारत इस महत्त्वपूर्ण चरण से गुज़र रहा है, उसके कौशल विकास प्रयासों की सफलता देश के भविष्य को आकार देने और इसकी आर्थिक क्षमता को साकार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

कौशल विकास प्रयासों के लिये भारत को किन उभरते क्षेत्रों को प्राथमिकता देनी चाहिये?

  • नवीकरणीय ऊर्जा और हरित प्रौद्योगिकियाँ: नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र भारत के सतत विकास एजेंडे में सबसे आगे है, जो वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट क्षमता के महत्वाकांक्षी लक्ष्य से प्रेरित है।
    • इसमें 3.5 मिलियन से अधिक रोज़गार अवसर सृजित करने की क्षमता है, जिसके लिये सौर, पवन और ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों में कुशल कार्यबल की आवश्यकता होगी।
  • AI और मशीन लर्निंग: भारत का AI बाज़ार, जिसके वर्ष 2025 तक 7.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, उद्योगों को नया स्वरूप दे रहा है और कार्य के नए प्रतिमान गढ़ रहा है।
    • इस डिजिटल रूपांतरण के लिये डेटा एनालिटिक्स, एल्गोरिथम डेवलपमेंट और मशीन लर्निंग में निपुण कार्यबल की आवश्यकता है।
    • इंडिया AI मिशन’ (IndiaAI Mission) एक सराहनीय शुरुआत है, लेकिन AI की गतिशील प्रकृति निरंतर ‘अपस्किलिंग’ एवं ‘रीस्किलिंग’ की मांग रखती है।
  • इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और स्मार्ट सिटीज़: IoT और स्मार्ट सिटीज़ पहल का अभिसरण भारत को अधिक ‘कनेक्टेड’ एवं कुशल भविष्य की ओर ले जा रहा है।
    • IoT बाज़ार के 9.28 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने और 100 स्मार्ट सीटीज़ की योजना के साथ, IoT प्रोग्रामिंग, डेटा सुरक्षा और एकीकृत शहरी नियोजन में कौशल की मांग तेज़ी से बढ़ रही है।
    • स्मार्ट सिटीज़ मिशन ने इस वृद्धि को गति प्रदान की है, लेकिन बहुविषयक कौशल विकास कार्यक्रमों की प्रबल आवश्यकता महसूस की जा रही है।
  • इलेक्ट्रिक वाहन और सतत गतिशीलता: भारत का वर्ष 2030 तक 30% इलेक्ट्रिक वाहनों का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य ऑटोमोटिव क्षेत्र में क्रांति लाएगा, जिससे संभावित रूप से 10 मिलियन प्रत्यक्ष रोज़गार अवसर उत्पन्न होंगे।
    • इस संक्रमण के लिये बैटरी प्रौद्योगिकी, चार्जिंग अवसंरचना और स्वायत्त प्रणालियों में विशेषज्ञ कार्यबल की आवश्यकता है।
  • जैव प्रौद्योगिकी और औषधि विज्ञान: भारत का जैव प्रौद्योगिकी उद्योग—जिसके वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, एक बड़ी सफलता के मुहाने पर खड़ा है।
    • कोविड-19 महामारी ने जीनोमिक्स, बायो-इंफॉर्मेटिक्स और वैक्सीन विकास में कुशल कार्यबल की प्रबल आवश्यकता को रेखांकित किया है।
    • यद्यपि जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने उद्योग भागीदारों के साथ सहयोगात्मक कार्यक्रम शुरू किये हैं, फिर भी इस क्षेत्र को अधिक सुदृढ़ कौशल विकास पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता है।
  • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और उपग्रह संचार: भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था, जो वर्ष 2025 तक 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकती है, निजी खिलाड़ियों के लिये इस क्षेत्र को खोलने के साथ एक नए युग में प्रवेश कर रही है।
    • इस विस्तार से उपग्रह डिजाइन, अंतरिक्ष मलबे के प्रबंधन और पुन: प्रयोज्य अंतरिक्ष परिसंपत्तियों में कौशल की मांग पैदा होगी।
  • साइबर सुरक्षा: जहाँ भारत को वर्ष 2022 की पहली तिमाही में ही 18 मिलियन से अधिक साइबर हमलों का सामना करना पड़ा, साइबर सुरक्षा के महत्त्व की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
    • इस परिदृश्य में भारत को एथिकल हैकिंग, नेटवर्क सुरक्षा और साइबर फोरेंसिक में कुशल पेशेवरों की तत्काल आवश्यकता है।
  • 3D प्रिंटिंग और एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग: भारत के 3D प्रिंटिंग बाज़ार के वर्ष 2023 से 2030 तक 20.3% की उच्च CAGR से बढ़ने का अनुमान है।
    • यह विभिन्न उद्योगों में विनिर्माण प्रक्रियाओं में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता  है। यह उभरता हुआ क्षेत्र कंप्यूटर-एडेड डिज़ाइन (CAD) मॉडलिंग, सामग्री विज्ञान और एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग के लिये गुणवत्ता नियंत्रण में विशेषज्ञता की मांग रखता है।
  • क्वांटम कंप्यूटिंग: क्वांटम प्रौद्योगिकियों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता (जिसकी पुष्टि ‘क्वांटम प्रौद्योगिकी और अनुप्रयोग पर राष्ट्रीय मिशन’ के लिये 8,000 करोड़ रुपए के आवंटन से होती है) इस अत्याधुनिक क्षेत्र में गंभीरता से आगे बढ़ने का संकेत देती है।
    • यह क्षेत्र क्वांटम एल्गोरिदम, क्रिप्टोग्राफी और एरर करेक्शन में अत्यधिक विशिष्ट कौशल की मांग रखता है।

कौशल विकास से संबंधित सरकार की प्रमुख पहलें:

भारत के कौशल प्रशिक्षण संबंधी प्रयास बेहतर रोज़गार परिणामों में क्यों नहीं परिवर्तित हो रहे?

  • संरचनात्मक आर्थिक बाधाएँ: भारत की अर्थव्यवस्था एक बड़े अनौपचारिक क्षेत्र (लगभग 85-90%) और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) की प्रधानता से चिह्नित होती है।
    • कई MSMEs के पास औपचारिक कौशल प्रशिक्षण में निवेश करने के लिये संसाधनों या प्रोत्साहनों की कमी होती है। इसका परिणाम है कि  युवा कार्यबल का केवल 4.4% ही औपचारिक रूप से कुशल है (आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार)। MSMEs प्रायः कार्य करते हुए सीखने (on-the-job learning) को प्राथमिकता देते हैं।
    • अधिकांश रोज़गार की अनौपचारिक प्रकृति का अर्थ यह भी है कि औपचारिक प्रमाणपत्र प्रायः वेतन प्रीमियम या नौकरी की सुरक्षा के रूप में व्यक्त नहीं होते, जिससे कौशल विकास कार्यक्रमों का कथित महत्त्व कम हो जाता है।
  • जनसांख्यिकीय और भौगोलिक असमानताएँ: इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2024 से उजागर हुआ है कि विभिन्न राज्यों में रोज़गार योग्यता (employability) में व्यापक भिन्नता है।
    • शहरी केंद्र उच्च तकनीकी कौशल की मांग रखते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक बुनियादी और पारंपरिक कौशल की आवश्यकता होती है।
    • मौजूदा कौशल प्रशिक्षण मॉडल्स में इस असमानता को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया गया है। इसके अलावा, आंतरिक प्रवासन पैटर्न कौशल मानचित्रण और वितरण को जटिल बनाते हैं, क्योंकि एक क्षेत्र में अर्जित कौशल दूसरे क्षेत्र में प्रासंगिक नहीं भी हो सकते हैं।
  • प्रौद्योगिकीय व्यवधान और कौशल अप्रचलन: प्रौद्योगिकीय परिवर्तन की तीव्र गति, विशेष रूप से AI, मशीन लर्निंग और स्वचालन जैसे क्षेत्रों में, विभिन्न पारंपरिक कौशलों को शिक्षा प्रणाली के अनुकूल होने से पहले ही अप्रचलित बना रही है।
    • विश्व आर्थिक मंच (WEF) की वर्ष 2020 की ‘फ्यूचर ऑफ जॉब्स रिपोर्ट’ के अनुसार, बढ़ते प्रौद्योगिकी अंगीकरण के कारण वर्ष 2025 तक सभी कर्मचारियों में से आधे को पुनः प्रशिक्षित करने की आवश्यकता होगी।
    • इससे कौशल विकास में लगातार एक ‘कैच-अप गेम’ की स्थिति उत्पन्न होती है। चुनौती केवल नए कौशल सिखाने की नहीं है, बल्कि निरंतर सीखने और अनुकूलनशीलता की मानसिकता पैदा करने की है, जिसे वर्तमान कार्यक्रम संबोधित करने में प्रायः विफल रहते हैं।
  • उच्च शिक्षा प्रणाली के साथ असंगति: उच्च शिक्षा प्रणाली और व्यावसायिक प्रशिक्षण के बीच एक गंभीर असंगति पाई जाती है।
    • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2022-23 के अनुसार, 15-29 आयु वर्ग के केवल 4.4% युवाओं को औपचारिक व्यावसायिक/तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त हुआ।
    • शैक्षणिक डिग्रियों और व्यावसायिक योग्यताओं के बीच एकीकरण का अभाव एक विरोधाभास पैदा करता है, जो कौशल-आधारित शिक्षा का अवमूल्यन करता है।
  • उभरती हुई गिग अर्थव्यवस्था पर अपर्याप्त ध्यान: गिग अर्थव्यवस्था और प्लेटफॉर्म-आधारित कार्य (जो 90 मिलियन नौकरियों की क्षमता रखता है) का उदय रोज़गार की प्रकृति को बदल रहा है, जहाँ स्व-प्रबंधन, डिजिटल साक्षरता और उद्यमशीलता सहित विभिन्न प्रकार के कौशल की आवश्यकता होती है।
    • वर्तमान कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम अभी भी काफी हद तक पारंपरिक रोज़गार मॉडल की ओर उन्मुख हैं और इस नए प्रतिमान के लिये कामगारों को पर्याप्त रूप से तैयार करने में विफल हैं।
  • मूल्यांकन मॉडल की सीमाएँ: कौशल विकास के लिये वर्तमान वित्तपोषण मॉडल प्रायः दीर्घकालिक परिणामों (सतत्, रोज़गार, करियर में प्रगति) की तुलना में अल्पकालिक आउटपुट (प्रशिक्षित लोगों की संख्या) को प्राथमिकता देते हैं।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 से पता चला है कि PMKVY 2.0 के तहत 1.1 करोड़ लोगों को प्रशिक्षित किया गया, लेकिन इनमें से केवल 21.4 लाख को ही नौकरी मिली।
    • इससे विकृत प्रोत्साहन पैदा होते हैं जो प्रशिक्षण की गुणवत्ता और प्रासंगिकता से समझौता करते हैं।
  • पूर्व शिक्षण की मान्यता (RPL) से संबंद्ध चुनौतियाँ: यद्यपि RPL को अनौपचारिक कौशल को मान्यता देने के लिये शुरू किया गया है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं।
    • मूल्यांकन प्रक्रियाएँ प्रायः इतनी परिष्कृत नहीं होतीं कि अनौपचारिक माध्यमों से अर्जित कौशलों को सटीक रूप से देख सकें और प्रमाणित कर सकें, जिसके परिणामस्वरूप मौजूदा कौशलों का कम मूल्यांकन हो पाता है।

भारत के कौशल प्रयासों के पुनरुद्धार के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • मांग-संचालित कौशल मानचित्रण और पूर्वानुमान: एक सुदृढ़, रियल-टाइम श्रम बाज़ार सूचना प्रणाली लागू की जाए जो कौशल मांगों का पूर्वानुमान लगाने के लिये बिग डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करे। इस प्रणाली की निम्नलिखित भूमिकाएँ होंगी:
    • विस्तृत, क्षेत्र-विशिष्ट डेटा एकत्र करने के लिये उद्योग संघों के साथ सहयोग करना।
    • जॉब पोस्टिंग, उद्योग रिपोर्ट और आर्थिक संकेतकों का विश्लेषण करने के लिये AI एल्गोरिदम का उपयोग करना।
    • राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर तिमाही कौशल मांग पूर्वानुमान तैयार करना।
    • सिंगापुर की स्किल्सफ्यूचर (SkillsFuture) पहल राष्ट्रीय कौशल रणनीति को निर्देशित करने के लिये ऐसी ही एक प्रणाली का उपयोग करती है और यह भारत के लिये एक आदर्श मॉडल हो सकती है।
  • मॉड्यूलर और स्टैकेबल कौशल प्रमाणन (Modular and Stackable Skill Certifications): मॉड्यूलर, स्टैकेबल प्रमाणन की एक प्रणाली शुरू की जाए जो शिक्षार्थियों को क्रमिक रूप से कौशल विकास की अनुमति दे:
    • जटिल कौशल समूहों को छोटे, प्रमाणन-योग्य मॉड्यूलों में विभाजित किया जाए।
    • शिक्षार्थियों को समय के साथ क्रेडिट जमा करने की अनुमति दी जाए, जिससे उच्च योग्यता प्राप्त हो। सुनिश्चित किया जाए कि प्रत्येक मॉड्यूल का तात्कालिक बाज़ार मूल्य हो।
    • यह दृष्टिकोण कौशल अर्जन को अधिक लचीला और सुलभ बनाकर भागीदारी को बढ़ा सकता है।
  • मुख्यधारा की स्कूली शिक्षा में व्यावसायिक शिक्षा का एकीकरण: माध्यमिक स्तर से ही स्कूली पाठ्यक्रम में व्यावसायिक पाठ्यक्रम (vocational courses) को शामिल किया जाए:
    • आठवीं कक्षा से व्यावसायिक विषयों को वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल किया जाए।
    • व्यावसायिक और शैक्षणिक धाराओं के बीच क्रेडिट स्थानांतरण प्रणाली विकसित की जाए।
    • सुनिश्चित किया जाए कि वोकेशनल शिक्षकों के पास उद्योग अनुभव और शैक्षणिक प्रशिक्षण दोनों हों।
    • जर्मनी की दोहरी शिक्षा प्रणाली, जो प्रशिक्षुता को व्यावसायिक स्कूली शिक्षा के साथ जोड़ती है, एक मॉडल के रूप में कार्य कर सकती है।
  • उद्योग-आधारित उत्कृष्टता कौशल केंद्र: अग्रणी कंपनियों के साथ साझेदारी में क्षेत्र-विशिष्ट उत्कृष्टता कौशल केंद्र (Skill Centers of Excellence) स्थापित किये जाएँ:
    • इन केंद्रों को सरकारी सहायता से उद्योग संघों द्वारा संचालित किया जाना चाहिये।
    • उन्हें उभरते क्षेत्रों में हाई-एंड एवं फ्यूचर-रेडी कौशल पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
  • गिग अर्थव्यवस्था पूर्व-तैयारी या तत्परता पहल (Gig Economy Preparedness Initiative): गिग अर्थव्यवस्था के लिये कामगारों को तैयार करने हेतु एक समर्पित कार्यक्रम शुरू किया जाए:
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म, स्व-प्रबंधन और वित्तीय साक्षरता पर पाठ्यक्रम विकसित किया जाए।
    • गिग वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा को औपचारिक बनाने और बढ़ावा देने के लिये गिग वर्क रजिस्ट्री का निर्माण किया जाए।
    • प्रासंगिक कौशल मॉड्यूलों की सह-अभिकल्पना (co-design) के लिये प्लेटफॉर्म कंपनियों के साथ साझेदारी स्थापित की जाए।
  • प्रशिक्षुता मॉडल में सुधार: प्रशिक्षुता प्रणाली में सुधार कर इसे नियोक्ताओं और प्रशिक्षुओं दोनों के लिये अधिक आकर्षक बनाया जाए:
    • प्रशिक्षुता की संख्या और गुणवत्ता के आधार पर कंपनियों को कर प्रोत्साहन प्रदान किया जाए।
  • हरित कौशल एकीकरण कार्यक्रम: सभी प्रासंगिक कौशल विकास कार्यक्रमों में हरित कौशल को एकीकृत किया जाए:
    • प्रत्येक क्षेत्र-विशिष्ट पाठ्यक्रम के लिये ‘हरित कौशल’ ऐड-ऑन मॉड्यूल विकसित किया जाए।
    • उभरते हरित रोज़गारों अवसरों (जैसे सौर पैनल तकनीशियन, अपशिष्ट प्रबंधन विशेषज्ञ) के लिये विशेष पाठ्यक्रम बनाए जाएँ।
    • पाठ्यक्रम विकास और इंटर्नशिप के लिये पर्यावरण संगठनों के साथ साझेदारी स्थापित करें।
  • कौशल संवर्द्धन के माध्यम से ग्रामीण उद्यमिता (Rural Entrepreneurship through Skill Enhancement- RESE): सामान्य सेवा केंद्रों (CSCs) को डिजिटल सेवा कौशल केंद्रों में परिणत किया जाए।
    • ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं के लिये प्रासंगिक पारंपरिक और आधुनिक दोनों प्रकार के कौशलों में प्रशिक्षण प्रदान किया जाए।
    • मार्गदर्शन, सूक्ष्म वित्तपोषण और बाज़ार संपर्क सहायता प्रदान की जाए।
  • प्रशिक्षक प्रशिक्षण उत्कृष्टता कार्यक्रम: उच्च गुणवत्तापूर्ण कौशल प्रशिक्षकों को विकसित करने के लिये एक व्यापक कार्यक्रम स्थापित किया जाए:
    • सभी प्रशिक्षकों के लिये अनिवार्य उद्योग इंटर्नशिप।
    • प्रशिक्षकों को उद्योग के रुझानों के साथ अद्यतन रखने के लिये नियमित पुनश्चर्या पाठ्यक्रम।
    • प्रशिक्षकों के लिये छात्र परिणामों से जुड़े प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन।
  • कौशल विकास को मनरेगा (MGNREGA) के साथ एकीकृत करना: कौशल विकास घटकों को शामिल करते हुए मनरेगा को बेहतर बनाया जाए
    • 100 दिन की गारंटीशुदा रोज़गार योजना के तहत कौशल प्रशिक्षण की पेशकश की जाए।
    • ग्रामीण विकास और स्थानीय उद्योगों से संबंधित कौशल पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
    • इस कार्यक्रम के माध्यम से नए कौशल हासिल करने के लिये अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान किया जाए।

अभ्यास प्रश्न: विचार कीजिये कि भारत के कौशल विकास प्रयास बेहतर रोज़गार परिणामों में परिणत क्यों नहीं हो रहे हैं और इस अंतराल को दूर करने के उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. यह श्रम और रोज़गार मंत्रालय की प्रमुख योजना है। 
  2. यह अन्य बातों के अलावा सॉफ्ट स्किल्स, उद्यमिता, वित्तीय और डिजिटल साक्षरता में प्रशिक्षण भी प्रदान करेगा। 
  3. इसका उद्देश्य देश के अनियमित कार्यबल की दक्षताओं को राष्ट्रीय कौशल योग्यता ढाँचे के अनुरूप बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. "भारत में जनांकिकीय लाभांश तब तक सैद्धांतिक ही बना रहेगा जब तक कि हमारी जनशक्ति अधिक शिक्षित, जागरूक, कुशल और सृजनशील नहीं हो जाती।" सरकार ने हमारी जनसंख्या को अधिक उत्पादनशील और रोज़गार-योग्य बनने की क्षमता में वृद्धि के लिये कौन-से उपाय किये हैं? (2016)