भारतीय अर्थव्यवस्था
कोविड के दौर में FDI
यह एडिटोरियल 22/05/2022 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित “How to Sustain the Post-Covid Surge in FDI Inflows” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में FDIs की वृद्धि के महत्त्व और इस वृद्धि को बनाए रखने के उपायों के संबंध में चर्चा की गई है।
संदर्भ
वैश्विक अर्थव्यवस्था में कोविड-19 महामारी से प्रेरित व्यापक मंदी और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रवाह में 30-40% की अपेक्षित गिरावट की विश्व निवेश रिपोर्ट के अनुमानों के बावजूद प्रत्यास्थी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में FDI प्रवाह की अनुकूल स्थिति देखी गई जो वस्तुतः वैश्विक औसत से अधिक रही है।
- इसके अतिरिक्त, दक्षिण एशिया में भी इस अवधि के दौरान FDI में एक मज़बूत उछाल देखा गया जहाँ भारत में 27% की वृद्धि दर्ज हुई। उपयुक्त और त्वरित नीतिगत पहलें और अधिक विदेशी निवेशों को सुगम बनाएँगी और परिणामतः वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में भारत की क्षमता में वृद्धि होगी।
विदेशी प्रत्यक्ष निवेश
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) किसी एक देश के फर्म या व्यक्ति द्वारा दूसरे देश में स्थित व्यावसायिक हितों में किया गया निवेश है। FDI किसी निवेशक को एक विदेशी देश में प्रत्यक्ष व्यावसायिक हित खरीद की सुविधा प्रदान करता है।
- निवेशक कई तरह से FDI कर सकते हैं। दूसरे देश में एक सहायक कंपनी की स्थापना करना, किसी मौजूदा विदेशी कंपनी का अधिग्रहण या विलय अथवा किसी विदेशी कंपनी के साथ संयुक्त उद्यम साझेदारी इसके कुछ सामान्य तरीके हैं।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भारत में आर्थिक विकास का एक महत्त्वपूर्ण चालक होने के साथ ही देश के आर्थिक विकास के लिये एक प्रमुख गैर-ऋण वित्तीय संसाधन भी रहा है।
- भारत सरकार ने हाल के वर्षों में रक्षा क्षेत्र, सार्वजनिक क्षेत्र की तेल रिफाइनरियों, दूरसंचार, बिजली एक्सचेंज और स्टॉक एक्सचेंज आदि में FDI मानदंडों में ढील देने जैसे कई कदम उठाए हैं।
भारत में FDI अंतर्वाह का विकास दर परिदृश्य
- वैश्विक स्तर पर और विभिन्न क्षेत्रों/देशों में FDI प्रवाह के हाल के रुझानों के एक विश्लेषण से पता चलता है कि भारत ने आम तौर पर उच्च FDI प्रवाह को आकर्षित किया है और पूंजी खाता उदारीकरण प्रक्रिया के एक भाग के रूप में अपने FDI नीति को क्रमिक रूप से उदार बनाकर अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के लिये शीर्ष आकर्षक स्थलों में से एक बना हुआ है।
- वर्ष 2017-18 में पहली बार FDI अंतर्वाह ने 60 बिलियन डॉलर को पार कर लिया और उद्योग संवर्द्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) ने वर्ष 2019-20 में 14% FDI विकास का आकलन किया जो पिछले चार वर्षों में सर्वाधिक था।
- वित्त वर्ष 2020-21 में कुल FDI प्रवाह7 बिलियन डॉलर का रहा जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 10% अधिक था, जबकि वित्त वर्ष 2021-22 में FDI 83.57 बिलियन डॉलर के ‘उच्चतम’ स्तर तक पहुँच गया।
- सिल्वर लेक, गूगल, फेसबुक, फॉक्सकॉन, पीआईएफ (सऊदी अरब), जनरल अटलांटिक (सिंगापुर), हिताची, वॉलमार्ट और कैटरटन जैसे कॉर्पोरेट दिग्गजों से भारतीय अर्थव्यवस्था में अरबों डॉलर के निवेश की उम्मीद है।
किन कारकों ने उच्च FDI अंतर्वाह को सुगम बनाया?
- ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियानों के साथ ही वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में भारत की मज़बूत स्थिति ने पिछले कुछ वर्षों में FDI प्रवाह को गति प्रदान की है।
- कोविड-19 महामारी की पहली लहर ने लगभग 1,000 कंपनियों को अपना बेस चीन से बाहर स्थानांतरित करने के लिये प्रेरित किया, जिनमें से लगभग 300 कंपनियाँ चिकित्सकीय एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, मोबाइल और वस्त्र क्षेत्रों की थीं।
- 600 से अधिक कर्मचारियों वाली लावा इंटरनेशनल जैसी कंपनी ने अपना बेस चीन से भारत में स्थानांतरित करने की मंशा प्रकट की है।
- अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्रों के लिये भारत विश्व में सबसे उदारीकृत FDI कानूनों का प्रवर्तन करता है, जो स्वचालित मार्ग से 100% तक विदेशी निवेश की अनुमति देता है।
- भारत ने अपनी FDI नीति में नकारात्मक सूची दृष्टिकोण को अपनाया है, जहाँ केवल उन क्षेत्रों एवं गतिविधियों को सूचीबद्ध किया गया है जो विदेशी निवेश के लिये विनियमन के अधीन हैं। दस्तावेज में जिन क्षेत्रों का उल्लेख नहीं किया गया है, वे सभी स्वचालित मार्ग से 100% FDI प्राप्त करने के लिये खुले हैं।
- निवेशकों के लिये उदार एवं आकर्षक नीति व्यवस्था, एक अच्छा कारोबारी माहौल और सरल नियामक ढाँचे के कारण उच्च FDI प्रवाह संभव हुआ है।
इन FDI अंतर्वाहों का क्या प्रभाव होगा?
- स्थूल आर्थिक चरों पर FDI प्रवाह में हाल के उछाल के प्रभाव को देखते हुए भारत के सकल घरेलू उत्पाद में68% की अनुमानित वृद्धि होगी।
- धातु, निर्माण, मशीनरी व उपकरण, मोटर वाहन के पुर्जे, कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑप्टिकल उत्पादों जैसे क्षेत्रों के औद्योगिक उत्पादन में अन्य क्षेत्रों की तुलना में भारी वृद्धि की उम्मीद है।
- पैमाने में FDI-प्रेरित वृद्धि, गुणवत्ता मानक एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ-साथ रोज़गार के अवसरों में वृद्धि से निर्यात में भी वृद्धि की उम्मीद है।
भारत इस विकास को कैसे बरकरार रख सकता है?
- वैश्विक निवेशकों के लिये अनुकूल माहौल के निर्माण में सरकारी नीतियाँ और निर्णय महत्त्वपूर्ण हैं। महामारी से प्रेरित व्यवधानों ने भारत को अपने वैश्विक उपस्थिति का विस्तार करने का अवसर दिया है।
- सरकार सभी स्तरों पर नीतिगत पहलों और सुधारों की एक शृंखला के माध्यम से FDI वातावरण को सुदृढ़ करने का प्रयास कर रही है।
- इस क्रम में निर्यात में और वृद्धि हेतु एक मज़बूत व्यापार नीति, समावेशी विकास को बढ़ावा देना और भारतीय उद्योग को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करना महत्त्वपूर्ण होगा।
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) की तुलना में FDI में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा देने की अधिक क्षमता है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि भारत गंभीर, दीर्घकालिक निवेशकों के लिये एक आकर्षक, सुरक्षित, अनुमानित गंतव्य बना रहे।
- यदि हम निरंतर विदेशी निवेश की इच्छा रखते हैं तो एक समान अवसर प्रदान किया जाना भी आवश्यक है। स्थानीय खिलाड़ियों के प्रति गुप्त वफादारी की प्रवृत्ति से बचना चाहिये।
फोकस के मुख्य क्षेत्र कौन-से होने चाहिये?
- कुछ राज्यों में केंद्रित: FDI कुछ भारतीय राज्यों में केंद्रित रहा है। भारत में 60-70% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आंध्र प्रदेश, दिल्ली, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे तेज़ी से विकास कर रहे राज्यों को प्राप्त होते हैं। इन राज्यों में भी आपस में व्यापक विषमता है।
- यही वे राज्य भी हैं जो FDI अनुमोदनों को वास्तविक अंतर्वाह में परिवर्तित करने में सबसे अधिक सफल रहे हैं।
- अन्य राज्यों को FDI प्रवाह के दायरे में लाना प्रमुख फोकस क्षेत्रों में से एक होना चाहिये।
- राज्यों की भूमिका: भारत की संघीय संरचना राज्यों को कुछ क्षेत्रों के लिये विशिष्ट प्रोत्साहनों की पेशकश के साथ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये अपनी स्वयं की निवेश नीतियों की अभिकल्पना का अधिकार देती है।
- उदाहरण के लिये, कर्नाटक FDI आकर्षित करने के मामले में बेहद आक्रामक रहा है और उसने निवेश सब्सिडी, निर्यात-उन्मुख इकाइयों के लिये छूट, और आईटी, जैव प्रौद्योगिकी एवं व्यापार प्रक्रिया आउटसोर्सिंग जैसे विशिष्ट उद्योगों के लिये रिफंड एवं वित्तीय प्रोत्साहन जैसी नीतियों की एक विस्तृत शृंखला की रूपरेखा तैयार की है।
- अन्य राज्यों द्वारा भी कर्नाटक के उदाहरण का अनुकरण किया जा सकता है।
- अन्य महत्त्वपूर्ण कारकों पर समान रूप से ध्यान केंद्रित करना: भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रभावित करने वाले अन्य महत्त्वपूर्ण कारकों में कॉर्पोरेट कर, व्यापार खुलापन और अन्य व्यावसायिक जलवायु मुद्दों सहित व्यापक आर्थिक नीतियाँ शामिल हैं।
- अपनी FDI व्यवस्था के उदारीकरण में भारत की प्रगति उल्लेखनीय FDI प्रवाह आकर्षित करने के लिये एक आवश्यक तो है लेकिन यही पर्याप्त शर्त नहीं है।
- FDI के लिये भारत की अपार क्षमता पर वर्तमान अंतरराष्ट्रीय ध्यान के साथ यह उपयुक्त समय है कि भारत संरचनात्मक सुधारों की दिशा में तीव्र प्रगति पर बल दे ताकि FDI अंतर्वाह में व्यापक वृद्धि हो।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘वित्त वर्ष 2021-22 में भारत में FDI अंतर्वाह 83.57 बिलियन डॉलर के उच्चतम स्तर तक पहुँच गया।’’ FDI अंतर्वाह में इस उछाल को बनाए रखने के लिये भारत द्वारा किये जा सकने वाले उपायों की चर्चा कीजिये।