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एडिटोरियल

  • 24 Mar, 2023
  • 13 min read
शासन व्यवस्था

मानव विकास में असमानताएँ

यह एडिटोरियल 21/03/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The wide disparities in human development” लेख पर आधारित है। इसमें मानव विकास में बढ़ती असमानताओं के मुद्दों और इसे दूर करने के तरीकों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

मानव विकास (Human development) केवल आर्थिक विकास की तलाश और अर्थव्यवस्था में समृद्धि को अधिकतम करने पर केंद्रित नहीं है। इसके बजाय, यह मानवता के विचार के आसपास केंद्रित है, जिसमें स्वतंत्रता का विस्तार करना, क्षमताओं में सुधार करना, समान अवसरों को बढ़ावा देना और एक समृद्ध, स्वस्थ एवं सुदीर्घ जीवन को सुनिश्चित करना शामिल है।

  • भारत वैश्विक स्तर पर सबसे तेज़ी से विकास करती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। हालाँकि इस विकास के परिणामस्वरूप इसके मानव विकास सूचकांक (Human Development Index- HDI) में समान रूप से वृद्धि नहीं हुई है। वर्ष 2021-22 की मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार, भारत 191 देशों की सूची में बांग्लादेश और श्रीलंका से भी नीचे 132वें स्थान पर है।
  • भारत के विशाल आकार और बड़ी आबादी को देखते हुए, मानव विकास में उप-राष्ट्रीय या राज्य-वार असमानताओं को दूर करना महत्त्वपूर्ण है, जो फिर भारत को अपने जनसांख्यिकीय लाभांश को साकार कर सकने में मदद करेगा।

HDI क्या है?

  • HDI संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme- UNDP) द्वारा दुनिया भर के विभिन्न क्षेत्रों में मानव विकास के स्तर का मूल्यांकन और तुलना करने के लिये सृजित एक समग्र सांख्यिकीय मापक है।
  • इसे वर्ष 1990 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) जैसे पारंपरिक आर्थिक मापकों—जो मानव विकास के व्यापक पहलुओं पर विचार नहीं करते है, के एक विकल्प के रूप में पेश किया गया था।
  • HDI तीन पहलुओं में किसी देश की औसत उपलब्धि का आकलन करता है: सुदीर्घ एवं स्वस्थ जीवन, ज्ञान और जीवन का एक सभ्य स्तर।
  • उप-राष्ट्रीय HDI दर्शाता है कि जहाँ कुछ राज्यों ने व्यापक प्रगति की है, वहीं अन्य अभी भी संघर्ष कर रहे हैं।
    • सूचकांक में दिल्ली शीर्ष स्थान पर है, जबकि बिहार सबसे नीचे है।
    • यद्यपि यह उल्लेखनीय है कि पिछली HDI रिपोर्ट के विपरीत बिहार अब निम्न मानव विकास वाला राज्य नहीं रह गया है।

मानव विकास की प्राप्ति में भारत के समक्ष विद्यमान प्रमुख बाधाएँ

  • आर्थिक विकास का असमान वितरण:
    • मानव विकास की प्राप्ति में बाधा का एक प्रमुख कारण यह है कि आर्थिक विकास का वितरण असमान रूप से हुआ है।
      • भारतीय आबादी के शीर्ष 10% के पास 77% से अधिक संपत्ति है।
      • इसके परिणामस्वरूप बुनियादी सुविधाओं, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा तक पहुँच में उल्लेखनीय असमानताएँ उत्पन्न हुई हैं।
  • सेवाओं की निम्न गुणवत्ता:
    • जबकि भारत ने गरीबी को कम करने और स्वास्थ्य देखभाल एवं शिक्षा तक पहुँच बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, ऐसी सेवाओं की गुणवत्ता चिंता का विषय बनी हुई है।
      • उदाहरण के लिये, जबकि देश ने प्राथमिक शिक्षा में लगभग सार्वभौमिक नामांकन की स्थिति प्राप्त कर ली है, शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर निम्न बना हुआ है।
  • प्रभावी शैक्षिक अवसंरचना का अभाव:
    • भारत अपने नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में भी चुनौतियों का सामना कर रहा है। कई स्कूलों में पर्याप्त कक्षाओं, स्वच्छ जल और प्रशिक्षित शिक्षकों जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
  • उचित पोषण की कमी:
    • भारत में कुपोषण और अल्पपोषण विशेष रूप से बच्चों में व्याप्त प्रमुख समस्याएँ हैं। इसका उनके स्वास्थ्य, संज्ञानात्मक विकास और समग्र सेहत पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।
      • वर्ष 2020 तक की स्थिति के अनुसार भारत की 70% से अधिक आबादी स्वस्थ आहार पा सकने में अक्षम है, इस तथ्य के बावजूद कि अन्य देशों की तुलना में भारत में भोजन की लागत अपेक्षाकृत कम है।
      • 15-49 आयु वर्ग की महिलाओं में एनीमिया की व्यापकता वर्ष 2015-16 में 53% (NFHS- 4) से बढ़कर वर्ष 2019-21 में 57% (NFHS-5) हो गया है।
  • सामाजिक सुरक्षा का अभाव:
    • भारत अपने नागरिकों, विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये भी संघर्षरत है। कर्मचारियों की एक बड़ी संख्या स्वास्थ्य देखभाल, सेवानिवृत्ति पेंशन और नौकरी की सुरक्षा जैसे बुनियादी लाभों तक पहुँच नहीं रखती।
  • लैंगिक असमानता:
    • हाल के वर्षों की प्रगति के बावजूद, लैंगिक असमानता भारत में मानव विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा बनी हुई है। महिलाओं और बालिकाओं को शिक्षा, रोज़गार एवं स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच जैसे क्षेत्रों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है और वे प्रायः हिंसा एवं दुर्व्यवहार का शिकार होती हैं।
      • स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्षों (Expected Years of Schooling- EYS) के लिये पुरुष-महिला अनुपात वर्ष 1990 में 1.43 से घटकर वर्ष 2021 में 0.989 हो गया, जबकि स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों (Mean Years of Schooling- MYS) के लिये यह 1.26 से घटकर 1.06 हो गया।
      • विश्व आर्थिक मंच (WEF) की ‘ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022’ के अनुसार, महिलाएँ AI कार्यबल में केवल 22% हिस्सेदारी रखती हैं।

आगे की राह

  • आय असमानता और लैंगिक असमानता को संबोधित करना:
    • आय असमानता और लैंगिक असमानता को संबोधित करने के लिये एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें नीतिगत परिवर्तन और सांस्कृतिक बदलाव दोनों शामिल हैं। यहाँ कुछ संभावित उपाय सुझाए गए हैं:
      • समान वेतन, शिक्षा एवं कौशल विकास, वहनीय बाल देखभाल, महिलाओं के लिये सशक्तिकरण कार्यक्रम आदि सहायक हो सकते हैं।
      • सरकार इन योजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर सकती है: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन, एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS), महिला ई-हाट आदि योजनाओं के प्रोत्साहन पर सरकार ध्यान दे सकती है।
  • शिक्षा में निवेश करना:
    • शिक्षा मानव विकास का एक मूलभूत पहलू है। सरकारें स्कूलों के निर्माण, शिक्षकों की भर्ती, छात्रवृत्ति प्रदान करने और वंचित समुदायों के लिये शिक्षा तक पहुँच में सुधार आदि के रूप में शिक्षा में निवेश कर सकती हैं।
  • स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करना:
  • गरीबी को संबोधित करना:
    • गरीबी मानव विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा है। सरकारें बेरोज़गारी लाभ, खाद्य सहायता और आवास सब्सिडी जैसे सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों को लागू करके गरीबी को दूर कर सकती हैं।
  • लैंगिक समानता को बढ़ावा देना:
    • मानव विकास के लिये लैंगिक समानता आवश्यक है। सरकारें ऐसी नीतियों को लागू कर लैंगिक समानता को बढ़ावा दे सकती हैं जो महिलाओं एवं बालिकाओं के लिये समान अवसर सुनिश्चित करें, जैसे कि रोज़गार एवं शिक्षा में लैंगिक भेदभाव के विरुद्ध कानून का निर्माण करना।
  • मानवाधिकारों की रक्षा करना:
    • मानवाधिकार मानव विकास के लिये मूलभूत हैं। सरकारें यह सुनिश्चित कर मानवाधिकारों की रक्षा कर सकती हैं कि नागरिकों के लिये स्वतंत्र भाषण, धर्म की स्वतंत्रता और भेदभाव से स्वतंत्रता के अधिकार उपलब्ध हों।
  • अवसंरचना का निर्माण:
    • आर्थिक विकास और मानव विकास के लिये सड़क, पुल एवं बिजली जैसी अवसंरचनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। सरकारें ऐसी अवसंरचना परियोजनाओं में निवेश कर सकती हैं जो स्वच्छ जल एवं बिजली जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुँच में सुधार करें और रोज़गार के अवसर उत्पन्न करें।
  • नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देना:
    • नवाचार और उद्यमिता आर्थिक विकास को गति दे सकती हैं तथा मानव विकास में सुधार कर सकती हैं। सरकारें ऐसी नीतियाँ बना सकती हैं जो नवाचार और उद्यमिता का समर्थन करें, जैसे छोटे व्यवसायों के लिये कर प्रोत्साहन और वैज्ञानिकों एवं आविष्कारकों के लिये अनुसंधान अनुदान प्रदान करना।

अभ्यास प्रश्न: मानव विकास प्राप्त करने की दिशा में भारत की प्रगति की राह में प्रमुख बाधाएँ कौन-सी हैं और इन बाधाओं को कैसे दूर किया जा सकता है?

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रारंभिक परीक्षा

प्र. यूएनडीपी के समर्थन से ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव द्वारा विकसित बहु-आयामी गरीबी सूचकांक निम्नलिखित में से किसे कवर करता है? (वर्ष 2012)

  1. घरेलू स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, संपत्ति और सेवाओं का अभाव
  2. राष्ट्रीय स्तर पर क्रय शक्ति समानता
  3. राष्ट्रीय स्तर पर बजट घाटा और सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर की सीमा

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(A) केवल 1
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 1 और 3
(D) 1, 2 और 3

उत्तर: (A)

व्याख्या:

  • बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) एक गरीब व्यक्ति को शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर के संबंध में एक साथ सामना करने वाले अभावों को दर्शाता है, जैसा कि निम्न तालिका में दर्शाया गया है। अतः कथन 1 सही है।

  • अतः विकल्प (A) सहीं है।

मुख्य परीक्षा

प्र. लगातार उच्च विकास के बावजूद मानव विकास सूचकांक में भारत अभी भी सबसे कम अंकों के साथ है। उन मुद्दों की पहचान करें जो संतुलित और समावेशी विकास को सुनिश्चित करते हैं। (वर्ष 2016)


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