फ्राँस : भारत का वास्तविक सहयोगी
यह एडिटोरियल 19/07/2023 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित “India, France and what keeps their ties ticking” लेख पर आधारित है। इसमें फ्राँस के साथ भारत के राजनयिक संबंधों की सुसंगतता और इसे और भी सुदृढ़ कर सकने की गुंजाइश के बारे में चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:भारत-फ्राँस रणनीतिक साझेदारी, राफेल सौदा, नाटो, AUKUS मेन्स के लिये:भारत-फ्राँस संबंध |
भारत-फ्राँस रणनीतिक साझेदारी के 25 वर्ष पूरे होने का उत्सव मनाना प्रधानमंत्री की दो दिवसीय फ्राँस यात्रा के शीर्ष एजेंडे में शामिल था और यात्रा का अंत विभिन्न समझौतों और रक्षा सौदों के संपन्न होने के साथ हुआ।
इस अवसर पर दोनों देशों ने सुरक्षा, पर्यावरण, नवीकरणीय ऊर्जा आदि विषयों को कवर करने वाला ‘इंडो-पैसिफिक रोडमैप’ जारी किया और इसके साथ ही व्यापक संबंध के लिये ‘होराइज़न 2047’ एजेंडे की घोषणा की गई जो गहन सैन्य-औद्योगिक संबंध, डिजिटल प्रौद्योगिकियों में सहयोग, निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण, शहरी संक्रमण, व्यापार एवं निवेश और लोगों के परस्पर संपर्क जैसे विषयों को अपने दायरे में लेता है।
जबकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के P5 देशों में से प्रत्येक के साथ ही भारत एक अद्वितीय संबंध रखता है, जो बात भारत-फ्राँस संबंधों को विशिष्ट बनाती है, वह है सही-गलत के निर्णय के बिना भू-राजनीति (geopolitics sans value judgements)। यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रधानमंत्री ने जितने भी देशों का दौरा किया है, विशेष रूप से पश्चिमी विश्व में, उनमें फ्राँस ही संभवतः वह देश है जिसके साथ भारत सबसे अधिक आपसी हित या समझौते का आधार रखता है।
फ्राँस के साथ भारत के राजनयिक संबंध
- संबंध के स्तंभ:
- भारत और फ्राँस लंबे समय से सांस्कृतिक, व्यापारिक और आर्थिक संबंध साझा करते रहे हैं। वर्ष 1998 में हस्ताक्षरित ‘भारत-फ्राँस रणनीतिक साझेदारी’ (India-France strategic partnership) ने समय के साथ महत्त्वपूर्ण प्रगति हासिल की है और वर्तमान में गहन निकट बहुआयामी संबंध में विकसित हो गया है जो सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों तक विस्तृत है।
- दोनों देशों ने अपने संबंध में तीन स्तंभों पर सुदृढ़ता बनाए रखी है:
- एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना
- रणनीतिक स्वायत्तता और गुटनिरपेक्षता में दृढ़ विश्वास
- स्वयं की संधि और गठबंधन के दायरे में दूसरे को शामिल करने के मामले में संयम
- इस तरह और कई अन्य तरीकों से दोनों देशों का संबंध भारत का दुनिया भर में बनाई गई अन्य प्रमुख साझेदारियों से अलग स्वरूप रखता है।
- भारत के मामलों पर फ्राँस की प्रतिक्रिया:
- भारत-फ्राँस संबंध एक-दूसरे की रणनीतिक स्वायत्तता के सम्मान पर निर्मित हैं। फ्राँस भारत के आंतरिक मामलों या उसकी विदेश नीति विकल्पों पर टिप्पणी करने से इनकार करने में तटस्थ बना रहा है।
- जबकि फ्राँस ने यूक्रेन में रूस के युद्ध पर पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया में अग्रणी भूमिका निभाई है, उसने अन्य पश्चिमी देशों की तरह भारत पर अपना रुख बदलने के लिये कोई सार्वजनिक दबाव नहीं बनाया।
- यहाँ तक कि जब भारत ने UNSC और UNGA में इस संबंध में लाए गए संकल्प पर मतदान में भागीदारी नहीं की, तब भी फ्राँस ने निराशा का एक शब्द भी व्यक्त नहीं किया, जबकि UNSC में लाया गया एक संकल्प (संघर्ष क्षेत्र के अंदर निर्बाध मानवीय सहायता सुनिश्चित करने के संबंध में) फ्राँस द्वारा ही मैक्सिको के साथ प्रस्तुत किया गया था।
- उल्लेखनीय है कि जब भारत ने पोखरण-II परमाणु परीक्षण किया था तब भी UNSC में फ्राँसीसी राजनयिक भारत पर प्रतिबंध लगाने के अमेरिकी नेतृत्व वाले पहल में शामिल नहीं हुए थे।
- यहाँ तक कि फ्राँस तारापुर रिएक्टरों को यूरेनियम की आपूर्ति से भी पीछे नहीं हटा।
- मूल में रक्षा साझेदारी:
- भारत-फ्राँस संबंधों के मूल में रक्षा साझेदारी है; अन्य पश्चिमी देशों की तुलना में फ्राँस कहीं अधिक इच्छुक और उदार भागीदार के रूप में सामने आया है।
- राफेल सौदे से लेकर इस विमान के समुद्री संस्करण के 26 विमानों के नवीनतम अधिग्रहण तक, फ्राँस भारत को अपनी कुछ बेहतरीन रक्षा प्रणालियाँ सौंपने का इच्छुक बना रहा है।
- इस बीच, फ्राँस द्वारा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से पहले ही भारत को छह स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों के निर्माण में मदद मिल चुकी है, जबकि नौसेना के लिये पनडुब्बियों की घटती संख्या को बढ़ाने के लिये तीन और पनडुब्बियाँ खरीदी जा रही हैं।
- नाटो प्लस पर रुख में समानता:
- फ्राँस ने सार्वजनिक रूप से घोषणा कर रखी है कि वह नाटो प्लस (NATO+) भागीदारी योजनाओं को अस्वीकार करता है, जिसके तहत ट्रांस-अटलांटिक एलायंस का जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया और यहाँ तक कि भारत के साथ प्रत्यक्ष संबंध बन जाएगा।
- भारत ने भी इस योजना को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि नाटो ‘‘ऐसा टेम्पलेट या खाका नहीं है जो भारत पर लागू होता है”।
- रणनीतिक साझेदारी:
- फ्राँस ‘क्वाड-प्लस’ गठबंधन के प्रति भी गैर-आशंकित बना रहा है, जिसका विचार सर्वप्रथम 2020 में प्रकट किया गया था (लेकिन AUKUS समझौते पर अमेरिका-फ्राँस के बीच मतभेद की स्थिति में जिसे टाल दिया गया था)।
- फ्राँस ही एकमात्र देश है जिसके साथ भारतीय नौसेना ने अब तक कोई संयुक्त गश्त की है और भविष्य की योजनाओं के तहत द्विपक्षीय आधार पर दोनों नौसेनाओं द्वारा पोर्ट कॉल एवं सैन्य-सर्वेक्षण के लिये रीयूनियन, न्यू कैलेडोनिया एवं फ्रेंच पोलिनेशिया जैसे फ्राँसीसी क्षेत्र और यहाँ तक कि भारत के अंडमान द्वीप समूह में संयुक्त अभ्यास किये जा सकते हैं।
- हिंद-प्रशांत पर हाल ही में जारी ‘इंडिया-फ्राँस इंडो-पैसिफिक रोडमैप’ भी स्पष्ट करता है कि कोई भी पक्ष दूसरे को अपने अन्य किसी क्षेत्रीय सैन्य गठबंधन में खींचने का प्रयास नहीं कर रहा है।
चुनौतियाँ
- फ्राँस और भारत के बीच राजनयिक संबंध सकारात्मक होने के बावजूद दोनों देश एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) का अभाव रखते हैं, जो व्यापार क्षमता के पूर्णरूपेण साकार हो सकने को सीमित करता है। भारत-EU ब्रॉड-बेस्ड ट्रेड एंड इंवेस्टमेंट एग्रीमेंट (BITA) पर सुस्त प्रति इस समस्या को और बढ़ाती है।
- हालाँकि दोनों देश एक मज़बूत रक्षा साझेदारी रखते हैं, लेकिन उनका रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग अलग-अलग प्राथमिकताओं एवं दृष्टिकोणों से प्रभावित हो सकता है। भारत का क्षेत्रीय फोकस और इसकी ‘गुटनिरपेक्ष’ नीति कभी-कभी फ्राँस के वैश्विक हितों से टकराहट भी उत्पन्न कर सकती है।
- फ्राँस ने भारत द्वारा बौद्धिक संपदा अधिकारों की अपर्याप्त सुरक्षा पर भी चिंता जताई है, जिससे भारत के भीतर कार्य करने वाले फ्राँसीसी व्यवसायों पर असर पड़ रहा है।
आगे की राह
- एक-दूसरे को सशक्त बनाने के लिये सदृश महत्त्वाकांक्षाओं का लाभ उठाना:
- एक जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य में रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के साझा दृढ़ संकल्प ने दोनों शक्तियों को कुछ हद तक विश्वास और व्यावहारिक साझेदारी विकसित करने में मदद की है।
- फ्राँस इतनी शक्ति रखता है कि वह भारत को राजनयिक, सैन्य, अंतरिक्ष और परमाणु क्षेत्रों में कुछ न कुछ प्रदान कर सकता है।
- रूसी आक्रामकता या अफ्रीका में आतंकवाद जैसे खतरों के संदर्भ में जब व्यापार और रक्षा सहयोग की बात आती है तो भारत फ्राँस के लिये पर्याप्त महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को आकार देने या यहाँ तक कि ऐसे अन्य देशों को संतुलित करने में एक-दूसरे का समर्थन कर सकते हैं, जिन पर उनमें से एक अत्यधिक निर्भर हो।
- हिंद-प्रशांत में बेहतर सहयोग:
- ‘इंडो-पैसिफिक’ की अवधारणा ने पहले से फल-फूल रहे फ्राँस-भारत संबंधों के लिये एक उपयोगी ढाँचा प्रदान किया है। हिंद महासागर में अपने विदेशी क्षेत्रों और सैन्य ठिकानों के कारण फ्राँस हिंद महासागर की स्थिरता में क्वाड भागीदारों से कहीं अधिक प्रत्यक्ष रुचि रखता है।
- दोनों देशों के बीच इंडो-पैसिफिक फोरम रणनीतिक हितों और द्विपक्षीय सहयोग को सुनिश्चित करने में बेहतर सहायता प्रदान करने में सक्षम सिद्ध हो सकता है।
- फ्राँस के साथ सहयोग के संभावित क्षेत्र:
- निजी और विदेशी निवेश में वृद्धि के साथ घरेलू हथियार उत्पादन का विस्तार करने की भारत की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं में फ्राँस एक महत्त्वपूर्ण भूमिका रखता है।
- दोनों देशों के बीच चर्चा में कनेक्टिविटी, जलवायु परिवर्तन, साइबर-सुरक्षा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहित सहयोग के विभिन्न उभरते क्षेत्रों को शामिल किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
फ्राँस और भारत विश्व की दो प्रमुख शक्तियाँ हैं (एक यूरोप में, दूसरा एशिया में) जो विश्व के बारे में एक जैसी अवधारणा रखते हैं। वस्तुतः दोनों देश एक स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करते हैं और रणनीतिक स्वायत्तता का पालन करते हैं, जिससे उन्हें उम्मीद है कि वे एक बहुध्रुवीय विश्व को आकार देने में सक्षम होंगे। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इन दोनों शक्तियों को एहसास है कि यदि वे मिलकर कार्य करेंगे तो ऐसा होने की अधिक बेहतर संभावना है।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘फ्राँस, जिसने स्वतंत्र विदेश नीति को महत्त्व दिया है, एक अनिश्चित युग के लिये नए गठबंधन के निर्माण में भारत का स्वाभाविक भागीदार है।’’ टिप्पणी कीजिये।