एडिटोरियल (22 Jun, 2020)



चीन से आयात पर प्रतिबंध: चुनौतियाँ और संभावनाएँ

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में चीन से आयात पर प्रतिबंध व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

ऐसे समय में जब विश्व व्यवस्था को वैश्विक महामारी से निपटने के लिये आपसी सहयोग, समन्वय एवं सहभागिता की आवश्यकता है, विश्व व्यवस्था के दो बड़े राष्ट्र भारत व चीन सीमा विवाद के कारण आपस में उलझे हुए हैं। हालिया विवाद का केंद्र अक्साई चिन में स्थित गालवन घाटी (Galwan Valley) है, जिसको लेकर दोनो देशों की सेनाओं में 15 जून 2020 को हिंसक झड़प हो गई, इस झड़प में दोनों देशों के कई सैनिक शहीद हो गए। इस घटना के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है और वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) पर युद्ध जैसे हालात बन गए हैं।

इस प्रकार की जटिल परिस्थिति में भारत में घरेलू स्तर पर चीन के आर्थिक बहिष्कार का मुद्दा भी चर्चा के केंद्र में है। जन समुदाय का एक बड़ा भाग चीन से आयात होने वाले उत्पादों पर तत्काल प्रतिबंध की माँग कर रहा है। प्रारंभिक स्तर पर भारत सरकार ने भी संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी में प्रयोग किये जाने वाले उपकरणों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है, हालाँकि सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह प्रतिबंध सुरक्षा मानकों पर खरा न उतरने के कारण लगाए गए हैं। ऐसे में यह प्रश्न उठाना लाज़िमी है कि क्या भारत में चीन के उत्पादों पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा देना चाहिये? ऐसा करना कहाँ तक व्यवहार्य है? प्रतिबंध लगाने से कहीं ऐसा न हो कि विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation-WTO) के नियमों और समझौतों का उल्लंघन हो जाए।

इस आलेख में भारत-चीन संबंधों की पृष्ठभूमि, दोनों देशों के मध्य व्यापार की स्थिति, आयात पर प्रतिबंध की व्यवहार्यता, मोस्ट फेवर्ड नेशन (Most Favoured Nation-MFN) का मुद्दा और विश्व व्यापार संगठन के दिशा-निर्देशों पर विश्लेषण करने का प्रयास किया जाएगा।            

भारत-चीन संबंधों की पृष्ठभूमि

  • हज़ारों वर्षों तक तिब्बत ने एक ऐसे क्षेत्र के रूप में काम किया जिसने भारत और चीन को भौगोलिक रूप से अलग और शांत रखा, परंतु जब वर्ष 1950 में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर वहाँ कब्ज़ा कर लिया तब भारत और चीन आपस में सीमा साझा करने लगे और पड़ोसी देश बन गए।  
  • 20वीं सदी के मध्य तक भारत और चीन के बीच संबंध न्यूनतम थे एवं कुछ व्यापारियों, तीर्थयात्रियों और विद्वानों के आवागमन तक ही सीमित थे। 
  • वर्ष 1954 में नेहरू और झोउ एनलाई (Zhou Enlai) ने ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे के साथ पंचशील सिद्धांत पर हस्ताक्षर किये, ताकि क्षेत्र में शांति स्थापित करने के लिये कार्ययोजना तैयार की जा सके।
  • वर्ष 1959 में तिब्बती लोगों के आध्यात्मिक और लौकिक प्रमुख दलाई लामा तथा उनके साथ अन्य कई तिब्बती शरणार्थी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में बस गए। इसके पश्चात् चीन ने भारत पर तिब्बत और पूरे हिमालयी क्षेत्र में विस्तारवाद और साम्राज्यवाद के प्रसार का आरोप लगा दिया। 
  • वर्ष 1962 में सीमा संघर्ष से द्विपक्षीय संबंधों को गंभीर झटका लगा तथा उसके बाद वर्ष 1976 मे भारत-चीन राजनयिक संबंधों को फिर से बहाल किया गया।      
  • वर्ष 1988 में भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने द्विपक्षीय संबंधों के सामान्यीकरण की प्रक्रिया शुरू करते हुए चीन का दौरा किया। दोनों पक्ष सीमा विवाद के प्रश्न पर पारस्परिक स्वीकार्य समाधान निकालने तथा अन्य क्षेत्रों में सक्रिय रूप से द्विपक्षीय संबंधों को विकसित करने के लिये सहमत हुए। वर्ष 1992 में, भारतीय राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन भारत गणराज्य की स्वतंत्रता के बाद चीन का दौरा करने वाले प्रथम भारतीय राष्ट्रपति थे। 
  • वर्ष 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री वाजपेयी ने चीन का दौरा किया। दोनों पक्षों ने भारत-चीन संबंधों में सिद्धांतों और व्यापक सहयोग पर घोषणा (The Declaration on the Principles and Comprehensive Cooperation in China-India Relations) पर हस्ताक्षर किये।  
  • वर्ष 2011 को 'चीन-भारत विनिमय वर्ष' तथा वर्ष 2012 को 'चीन-भारत मैत्री एवं सहयोग वर्ष' के रूप में मनाया गया।
  • वर्ष 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री ने चीन का दौरा किया इसके बाद चीन ने भारतीय आधिकारिक तीर्थयात्रियों के लिये नाथू ला दर्रा खोलने का फैसला किया। भारत ने चीन में भारत पर्यटन वर्ष मनाया।  
  • वर्ष 2018 में चीन के राष्ट्रपति तथा भारतीय प्रधानमंत्री के बीच वुहान में भारत-चीन अनौपचारिक शिखर सम्मेलनका आयोजन किया गया। उनके बीच गहन विचार-विमर्श हुआ और वैश्विक और द्विपक्षीय रणनीतिक मुद्दों के साथ-साथ घरेलू एवं विदेशी नीतियों के लिये उनके संबंधित दृष्टिकोणों पर व्यापक सहमति बनी। 
  • वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री तथा चीन के राष्ट्रपति बीच चेन्नई में दूसरा अनौपचारिक शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया। इस बैठक में, 'प्रथम अनौपचारिक सम्मेलन' में बनी आम सहमति को और अधिक दृढ़ किया गया।
  • वर्ष 2020 में भारत और चीन के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 70 वीं वर्षगांठ है तथा भारत-चीन सांस्कृतिक तथा पीपल-टू-पीपल संपर्क का वर्ष भी है।

व्यापारिक स्थिति 

  • फरवरी, 2020 में जारी आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, चीन के साथ भारत का व्यापार वित्तीय वर्ष 2017-18 में 89.71 बिलियन डॉलर से घटकर वित्तीय वर्ष 2018-19 में 87.07 बिलियन डॉलर हो गया
  • चीन से भारत का आयात वित्तीय वर्ष 2018-19 में 70.32 बिलियन डॉलर था, जबकि भारत का चीन को निर्यात वित्तीय वर्ष 2018-19 में 16.75 बिलियन डॉलर था। इस प्रकार, वित्तीय वर्ष 2018-19 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 53.57 बिलियन डॉलर था

चीन से आयातित उत्पाद    

Import-from-china

  • भारत, चीन से मोबाइल फोन, दूरसंचार के अन्य उपकरण, बिजली का सामान, प्लास्टिक के खिलौने और चिकित्सीय उपकरण सहित चिकित्सीय दवाइयाँ आयात करता है जो उसके कुल आयात का 14 प्रतिशत है।
  • इसके अतिरिक्त, कार और मोटरसाइकिल के कलपुर्जे, दुग्ध उत्पाद, उर्वरक, कंप्यूटर से संबंधित उपकरण तथा ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ें उत्पादों का आयात भारत के द्वारा किया जाता है
  • मुद्रण स्याही, पेंट, वार्निश और तंबाकू उत्पादों का भी आयात किया जाता है। 

भारत द्वारा निर्यात किये जाने वाले उत्पाद 

  • भारत, चीन को कृषि उत्पाद, सूती वस्त्र, हस्तशिल्प उत्पाद, कच्चा लेड, लौह अयस्क, स्टील, कॉपर, टेलीकॉम सामाग्री, तथा अन्य पूंजीगत वस्तुएँ इत्यादि निर्यात करता है। 
  • भारत हीरा-जवाहरात (Diamond) के कुल व्यापार का 36 प्रतिशत चीन को निर्यात करता है। 

आयात पर प्रतिबंध की व्यवहार्यता

  • वित्तीय वर्ष 2018-19 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 53.57 बिलियन डॉलर था। ऐसे में भारत वस्तु एवं सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये चीन की कंपनियों पर निर्भर है।
  • भारत के बाज़ार में चीन निर्मित स्मार्टफोन की हिस्सेदारी लगभग 51 प्रतिशत है, जबकि भारत द्वारा निर्मित स्मार्टफोन की हिस्सेदारी लगभग 21 प्रतिशत है। 
  • वित्तीय वर्ष 2018-19 में भारत में इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद के कुल निर्यात का 60 प्रतिशत चीन से किया गया था। 
  • चीन, भारत के लिये ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी देशों के बड़े ब्रांड का मैन्युफेक्चरिंग हब बन चुका है। अधिकांश विख्यात कंपनियों के उपकरण चीन में ही निर्मित होते हैं। 
  • चीन के उत्पादों का मूल्य कम होने के कारण भारत के बहुत सारे उत्पादक वर्तमान में केवल और केवल ट्रेडर्स बनकर रह गए हैं। दरअसल समस्या यह है कि जितने मूल्य में भारत में उत्पाद बनता है, उससे कम दाम में वह 'मेक इन चाइना' के ठप्पे के साथ बाज़ार में आ जाता है। 

भारत के पास विकल्प 

  • भारत को अपने उत्पादन क्षेत्र का आकार बढ़ाना होगा। चीन के उत्पाद गुणवत्ता और टिकाऊपन के क्षेत्र में कमजोर होते हैं, इस क्षेत्र में अच्छा काम करके भारत अपना स्थान बना सकता है।
  • भारत को विनिर्माण क्षेत्र के विकास हेतु असाधारण उपाय करने की आवश्यकता है, इसमें सरलतापूर्वक भूमि की उपलब्धता व सस्ता श्रम प्रमुख है।
  • भारत के पास एक विकल्प यह भी है कि वह चीन को दिया सबसे पसंदीदा राष्ट्र (Most-Favoured Nation) का दर्जा वापस ले सकता है। 

MFN (Most-Favoured Nation) क्या है?

  • विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation-WTO) के टैरिफ एंड ट्रेड पर जनरल समझौते (General Agreement on Tariffs and Trade-GATT) के तहत MFN का दर्जा दिया गया था। भारत और चीन दोनों ही WTO के हस्ताक्षरकर्त्ता देश हैं तथा विश्व व्यापार संगठन के सदस्य हैं, जिसका अर्थ है कि उन्हें माल पर सीमा शुल्क लगाने के मामले में एक-दूसरे एवं WTO के अन्य सदस्य देशों के साथ व्यापारिक साझेदार के रूप में व्यवहार करना आवश्यक है।

प्रभाव 

  • MFN का दर्जा वापस लेने का मतलब है कि भारत अब चीन से आने वाले सामान पर सीमा शुल्क बढ़ा सकता है। इससे भारत में चीन द्वारा किया गया निर्यात प्रभावित होगा।
  • यहाँ पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि, भारत अपने कुल निर्यात का लगभग 8 प्रतिशत चीन को निर्यात करता है जबकि चीन अपने कुल निर्यात का केवल 2 प्रतिशत भारत को निर्यात करता है इस प्रकार यदि भारत, चीन के उत्पादों को प्रतिबंधित करता है तो चीन भी ऐसा ही करेगा जिससे ज्यादा नुकसान चीन का ना होकर भारत का ही होगा
  • चीन के इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को प्रतिबंधित करना भी भारत के हित में नही होगा क्योंकि भारत में अधिकतर इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद चीन से ही आती है जिनका मूल्य कम होता है। 
  • यदि भारत ने इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर रोक लगा भी दी तो इतनी जल्दी इन उत्पादों का उत्पादन भारत में शुरू नही हो सकता क्योंकि इसमें अधिक समय और अधिक निवेश की ज़रुरत होती है
  • चीन के उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने से वह भारत की क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन कर सकता है और उत्तर-पूर्व भारत में सुरक्षा समस्याएँ खड़ी कर सकता है

आगे की राह 

  • भारत को अपने विनिर्माण क्षेत्र के विकास की दिशा में तीव्र गति से बढ़ना होगा। ऐसे में ‘मेक इन इंडिया 2.0’ का लक्ष्य भारत को विनिर्माण हब के रूप में स्थापित करना है।
  • भारत जिन उत्पादों के उत्पादन में सक्षम है केवल उन्ही उत्पादों के संबंध में ‘एंटी डंपिंग ड्यूटी’ लगा सकता है यह एक प्रकार का शुल्क है जिससे चीनी वस्तुओं की कीमतें बढ़ जायेगीं और भारतीय उत्पादक उनका मुकाबला कर सकेंगे
  • चीन के उत्पादों पर प्रतिबंध संबंधी अवधारणा ‘नागरिक केंद्रित’ होनी चाहियेभारतीयों को ‘Think Globally and Act Locally’ विचारधारा को अपनाना ही होगा तभी हमारे देश की अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी  

प्रश्न- भारत व चीन के मध्य व्यापार की वर्तमान स्थिति का उल्लेख करते हुए चीन के उत्पादों पर प्रतिबंध की व्यवहार्यता व उसके प्रभाव का आकलन कीजिये