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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-चीन कूटनीतिक संबंधों को 70 वर्ष

  • 02 Apr 2020
  • 14 min read

प्रीलिम्स के लिये:

भारत-चीन व्यापार 

मेन्स के लिये:

भारत-चीन संबंध

चर्चा में क्यों?

1 अप्रैल, 2020 को भारत-चीन राजनयिक संबंधों की स्थापना को 70 वर्ष हो गए हैं। 

मुख्य बिंदु:

  • पिछले 70 वर्षों में चीन-भारत संबंधों में कुछ मामूली टकरावों के बावज़ूद लगातार प्रगाढ़ता देखी गई है तथा दोनों देश एक असाधारण विकास पथ से होकर गुज़रे हैं। 
  • 1950 के दशक में, दोनों देशों के नेताओं द्वारा राजनयिक संबंध स्थापित करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया तथा संयुक्त रूप से ‘शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांतों’ (Five Principles of Peaceful Coexistence) की वकालत की।
  • दोनों देश शांति तथा मैत्रीपूर्ण परामर्श के माध्यम से सीमा विवाद के प्रश्न को हल करने तथा द्विपक्षीय संबंधों को विकसित करने के पक्षधर हैं।

भारत-चीन संबंधों की पृष्ठभूमि:

  • 1 अप्रैल, 1950 को भारत-चीन के मध्य राजनयिक संबंध स्थापित किये गए। भारत चीन के जनवादी गणराज्य (People's Republic of China- PRC) के साथ संबंध स्थापित करने वाला पहला गैर-समाजवादी देश था। उस समय “हिंदी-चीनी भाई-भाई” एक तकिया कलाम (Catchphrase) बन गया।
  • वर्ष 1954 में, चीनी प्रधानमंत्री ने भारत का दौरा किया। भारत- चीन ने संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर किये तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांतों की संयुक्त रूप से वकालत की। उसी वर्ष, भारतीय प्रधान मंत्री ने चीन का दौरा किया। नेहरू, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के बाद, चीन का दौरा करने वाले प्रथम  गैर-समाजवादी देश की सरकार के प्रमुख थे।
  • वर्ष 1955 में, प्रीमियर झोउ एनलाई (Premier Zhou Enlai) तथा प्रधान मंत्री नेहरू सहित 29 देशों ने एशियाई-अफ्रीकी सम्मेलन बांडुंग, इंडोनेशिया में भाग लिया तथा संयुक्त रूप से एकजुटता, मित्रता और सहयोग के भावना की वकालत की। 
  • वर्ष 1962 में सीमा संघर्ष से द्विपक्षीय संबंधों को गंभीर झटका लगा तथा उसके बाद वर्ष 1976 मे भारत-चीन राजनयिक संबंधों को फिर से बहाल किया। इसके बाद के समय में द्विपक्षीय संबंधों में धीरे-धीरे सुधार देखने को मिला।
  • वर्ष 1988 में भारतीय प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने द्विपक्षीय संबंधों के सामान्यीकरण की प्रक्रिया शुरू करते हुए चीन का दौरा किया। दोनों पक्ष सीमा विवाद के प्रश्न के पारस्परिक स्वीकार्य समाधान निकालने तथा अन्य क्षेत्रों में सक्रिय रूप से द्विपक्षीय संबंधों को विकसित करने के लिये सहमत हुए। वर्ष 1992 में, भारतीय राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन भारत गणराज्य की स्वतंत्रता के बाद से चीन का दौरा करने वाले प्रथम भारतीय राष्ट्रपति थे।
  • वर्ष 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री वाजपेयी ने चीन का दौरा किया। दोनों पक्षों ने भारत-चीन संबंधों में सिद्धांतों और व्यापक सहयोग पर घोषणा (The Declaration on the Principles and Comprehensive Cooperation in China-India Relations) पर हस्ताक्षर किये। 
  • वर्ष 2008 में भारतीय प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने चीन का दौरा किया। दोनों सरकारों द्वारा '21 वीं सदी के लिये एक साझा विज़न' पर सहमति व्यक्त की।
  • वर्ष 2011 को 'चीन-भारत विनिमय वर्ष' तथा वर्ष 2012 को 'चीन-भारत मैत्री एवं  सहयोग का वर्ष' के रूप में मनाया गया। दोनों पक्षों ने पीपल-टू-पीपल संपर्क तथा सांस्कृतिक विनिमय गतिविधियों की एक श्रृंखला आयोजित की तथा 'भारत-चीन सांस्कृतिक संपर्क विश्वकोश' के संयुक्त संकलन के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
  • वर्ष 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री ने चीन का दौरा किया इसके बाद चीन ने भारतीय आधिकारिक तीर्थयात्रियों के लिये नाथू ला दर्रा खोलने का फैसला किया। भारत ने चीन में भारत पर्यटन वर्ष मनाया।
  • वर्ष 2018 में चीन के राष्ट्रपति तथा भारतीय प्रधानमंत्री के बीच वुहान में ‘भारत-चीन अनौपचारिक शिखर सम्मेलन’ का आयोजन किया गया। उनके बीच गहन विचार-विमर्श हुआ और वैश्विक और द्विपक्षीय रणनीतिक मुद्दों के साथ-साथ घरेलू और विदेशी नीतियों के लिये उनके संबंधित दृष्टिकोणों पर व्यापक सहमति बनी। अनौपचारिक बैठक ने दो नेताओं के बीच आदान-प्रदान का एक नया मॉडल स्थापित किया और द्विपक्षीय संबंधों के इतिहास में एक मील का पत्थर बन गया। 
  • वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री तथा चीन के राष्ट्रपति बीच चेन्नई में ‘दूसरा अनौपचारिक शिखर सम्मेलन’ आयोजित किया गया। इस बैठक में, 'प्रथम अनौपचारिक सम्मेलन' में बनी आम सहमति को और अधिक दृढ़ किया गया।
  • वर्ष 2020 में भारत और चीन के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 70 वीं वर्षगांठ है तथा भारत-चीन सांस्कृतिक तथा पीपल-टू-पीपल संपर्क का वर्ष भी है।

भारत-चीन सहयोग

  • राजनैतिक तथा राजनयिक संबंध:
    • भारत तथा चीन के शीर्ष नेताओं द्वारा दो अनौपचारिक शिखर सम्मेलन आयोजित किये गए तथा वैश्विक एवं क्षेत्रीय महत्त्व के मुद्दों पर गहन विचारों का आदान-प्रदान किया।
    • दोनों देशों के बीच उच्च-स्तरीय यात्राओं का लगातार आदान-प्रदान, अंतर-संसदीय मैत्री समूह स्थापना, सीमा प्रश्न पर विशेष प्रतिनिधियों की बैठक आदि का आयोजन समय-समय पर किया जाता रहा है।
    • भारत तथा चीन के बीच द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक चिंताओं के विभिन्न विषयों पर विचारों के आदान-प्रदान के लिये लगभग 50 संवाद तंत्र हैं।
  • अर्थव्यवस्था एवं व्यापार:
    • दोनों देश स्थायी एवं उच्च-गुणवत्ता युक्त आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, वैश्विक बहुपक्षीय व्यापार तंत्र की सुरक्षा करने, वैश्विक शासन प्रणाली के सुधार को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं  वित्तीय जोखिमों से सुरक्षा करने की दिशा में कार्य कर रहें हैं।
    • 21 वीं सदी के प्रारंभ से अब तक भारत और चीन के बीच होने वाला व्यापार 3 बिलियन डॉलर से बढ़कर लगभग 100 बिलियन डॉलर (32 गुना) हो गया है। वर्ष 2019 में भारत तथा चीन के बीच होने वाला व्यापार की मात्रा 92.68 बिलियन डॉलर थी।
    • भारत में औद्योगिक पार्कों, ई- कॉमर्स तथा अन्य क्षेत्रों में 1,000 से अधिक चीनी कंपनियों ने अपना निवेश किया है। कंपनियाँ भी चीन के बाज़ार में सक्रिय रूप से विस्तार कर रही हैं। चीन में निवेश करने वाली दो-तिहाई से अधिक भारतीय कंपनियाँ लगातार मुनाफा कमा रही हैं।
    • 2.7 बिलियन से अधिक लोगों के संयुक्त बाज़ार तथा दुनिया के 20% के सकल घरेलू उत्पाद के साथ, भारत तथा चीन के लिये आर्थिक एवं व्यापारिक सहयोग में व्यापक संभावनाएँ  हैं। भारत में चीनी कंपनियों का संचयी निवेश 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी: 
    • भारतीय कंपनियों ने चीन में तीन सूचना प्रौद्योगिकी कॉरिडोर स्थापित किये हैं, जो सूचना प्रौद्योगिकी तथा उच्च प्रौद्योगिकी में भारत-चीन सहयोग को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
  • रक्षा क्षेत्र:
    • भारत तथा चीन के बीच हैंड-इन-हैंड (Hand-in-Hand) संयुक्त आतंकवाद-रोधी अभ्यास के अब तक 8 दौर आयोजित किये जा चुके हैं।
  • पीपुल-टू-पीपुल एक्सचेंज:
    • दोनों देशों ने कला, प्रकाशन, मीडिया, फिल्म और टेलीविज़न, संग्रहालय, खेल, युवा, पर्यटन, स्थानीयता, पारंपरिक चिकित्सा, योग, शिक्षा और थिंक टैंक के क्षेत्र में आदान-प्रदान तथा सहयोग पर बहुत अधिक प्रगति की है।
    • दोनों देशों ने सिस्टर नगरों (Sister Cities) तथा प्रांतों के 14 जोड़े स्थापित किये हैं।  फ़ुज़ियान प्रांत और तमिलनाडु को सिस्टर प्रांतों के रूप में जबकि चिनझोऊ (Quanzhou) एवं चेन्नई नगर की सिस्टर नगरों  के रूप में विकसित किया जाएगा।
    • भाषा सीखना भारत में एक लोकप्रिय प्रवृत्ति बनती जा रही है अत: दोनों देशों के भाषा संस्थानों के मध्य लगातार सहयोग बढ़ रहा है।

अंतर्निहित विवादित मुद्दे:

  • कुछ बुनियादी मुद्दों पर दोनों देशों के संबंधों के मध्य बढ़ा अंतराल देखने को मिलता है: 
    सीमा/क्षेत्रीय विवाद, जैसे- पोंगोंग त्सो मोरीरी झील का विवाद , 2019, डोकलाम गतिरोध, 2017, अरुणाचल प्रदेश में आसफिला क्षेत्र पर विवाद। 
  • परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (Nuclear Suppliers Group- NSG) में भारत का प्रवेश, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता आदि पर चीन का प्रतिकूल रुख। 
  • बेल्ट एंड रोड पहल (Belt and Road Initiative) संबंधी विवाद, जैसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (China Pakistan Economic Corridor- CPEC) विवाद।
  • सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे पर चीन द्वारा पाकिस्तान का बचाव एवं समर्थन।
  • चीन ने हिंद- प्रशांत महसागरीय क्षेत्र में भारत (QUAD का सदस्य) की भूमिका पर भी असंतोष जाहिर किया है।

विवाद समाधान रणनीति:

  • हम अतीत से कुछ प्रेरणा और अनुभव सीख सकते हैं तथा निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं-
    • पहला, नेताओं के रणनीतिक मार्गदर्शन का पालन करें। 
    • दूसरा, मैत्रीपूर्ण सहयोग की सामान्य प्रवृत्ति को समझें। 
    • तीसरा, पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग की गति का विस्तार करें। 
    • चौथा, अंतर्राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय मामलों पर समन्वय को बढ़ाना चाहिये।
    • पाँचवाँ, आपसी मतभेदों का उचित प्रबंधन करना होगा।

आगे की राह:

  • विकासशील देशों में केवल चीन तथा भारत ऐसे देश है जिनकी जनसंख्या एक अरब से अधिक है तथा ये दोनों देश राष्ट्रीय कायाकल्प (National Rejuvenation) के ऐतिहासिक मिशन के साथ ही  विकासशील देशों के सामूहिक उत्थान प्रक्रिया को गति देने में महत्त्वपूर्ण प्रेरक की भूमिका निभा सकते हैं।
  • वर्तमान समय में 70 वर्ष पुराने राजनयिक संबंध स्थापित के पीछे की मूल आकांक्षा को फिर से जागृत करने तथा अच्छे पड़ोसी व दोस्ती, एकता और सहयोग की भावना को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

  • भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम' तथा चीनी दर्शन 'सार्वभौमिक शांति' तथा 'सार्वभौमिक प्रेम' की अवधारणा एक दूसरे की पूरक हैं। ये प्राचीन प्राच्य ज्ञान आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। 
  • ‘ड्रैगन-एलीफेंट टैंगो’ (Dragon-Elephant Tango) अगले 70 वर्षों में बेहतर भविष्य तथा मानव जाति के साझा भविष्य के निर्माण में एक नया अध्याय लिखने की दिशा में आगे बढ़ रहें हैं। 

स्रोत: द हिंदू

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