एडिटोरियल (17 Nov, 2023)



ऑवर द टॉप (OTT) विनियमन हेतु: प्रसारण सेवा विनियमन विधेयक 2023 का मसौदा

यह एडिटोरियल 16/11/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Regulating OTT: Draft Broadcasting Regulation Bill may be an attempt to control digital infrastructure” लेख पर आधारित है। इसमें प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक, 2023 के प्रवेश के बारे में चर्चा की गई है और विचार किया गया है कि विधेयक का ध्यान वास्तव में सार्वजनिक सेवा पर है या सरकार नियंत्रण एवं विनियमन बढ़ाना चाहती है।

प्रिलिम्स के लिये:

प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक, 2023, केबल टेलीविज़न नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995, ओटीटी प्लेटफॉर्म, डिजिटल मीडिया विनियमन

मेन्स के लिये:

प्रसारण सेवा विनियमन विधेयक 2023 के मसौदे की मुख्य विशेषताएँ, विधेयक के पक्ष में तर्क, विधेयक के विपक्ष तर्क, भारत में प्रभावी प्रसारण विनियमन के हेतु आगे की राह

वर्ष 1995 का केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, जो तीन दशकों से रैखिक प्रसारण को नियंत्रित करता रहा है, प्रौद्योगिकीय प्रगति और DTH, IPTV एवं OTT जैसे नए प्लेटफॉर्मों के उद्भव के कारण चुनौतियों का सामना कर रहा है।

इस परिदृश्य में, भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने डिजिटल प्रसारण क्षेत्र में नियामक ढाँचे को सुव्यवस्थित करने के लिये एक व्यापक कानून की आवश्यकता को चिह्नित करते हुए प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक 2023 (Broadcasting Services (Regulation) Bill, 2023) प्रस्तावित किया है।

यह विधेयक—जो उभरते मीडिया उद्योग के लिये एक दूरदर्शी एवं अनुकूलनीय ढाँचा प्रतीत होता है, भारत में प्रसारण विनियमन के भविष्य के लिये दिशा तय कर रहा है।

प्रसारण सेवा (विनियमन) मसौदा विधेयक 2023 की मुख्य विशेषताएँ

  • समेकन और आधुनिकीकरण :
    • यह एकल विधायी ढाँचे के अंतर्गत विभिन्न प्रसारण सेवाओं के लिये नियामक प्रावधानों को समेकित एवं अद्यतन करने की दीर्घ अपेक्षित आवश्यकता को संबोधित करता है।
    • यह ओवर-द-टॉप (OTT) कंटेंट और डिजिटल समाचार एवं समसामयिक मामलों के प्रसारण को शामिल करने के लिये अपने नियामक दायरे का विस्तार करता है, जो वर्तमान में आईटी अधिनियम, 2000 और उसके तहत बनाये गए नियमों के माध्यम से विनियमित होते हैं।
  • समसामयिक परिभाषाएँ और भविष्योन्मुख प्रावधान:
    • उभरती प्रौद्योगिकियों और सेवाओं के साथ तालमेल बनाए रखने के लिये, यह विधेयक समकालीन प्रसारण शर्तों के लिये व्यापक परिभाषाएँ पेश करता है और उभरती प्रसारण प्रौद्योगिकियों के लिये प्रावधानों को शामिल करता है।
  • स्व-नियमन व्यवस्था को सुदृढ़ करना:
    • यह कंटेंट मूल्यांकन समितियों (Content Evaluation Committees) के प्रवेश के साथ स्व-नियमन (Self-Regulation) को बढ़ाता है और मौजूदा अंतर-विभागीय समिति को अधिक सहभागी एवं व्यापक प्रसारण सलाहकार परिषद (Broadcast Advisory Council) के रूप में विकसित करता है।
  • विभेदित कार्यक्रम कोड और विज्ञापन कोड:
    • यह विभिन्न सेवाओं में कार्यक्रम एवं  विज्ञापन कोड (Programme and Advertisement Codes) के लिये एक विभेदित दृष्टिकोण की अनुमति देता है और प्रसारकों (broadcasters) द्वारा स्व-वर्गीकरण एवं प्रतिबंधित सामग्री के लिये सुदृढ़ पहुँच नियंत्रण उपायों की आवश्यकता रखता है।
  • दिव्यांगजनों के लिये अभिगम्यता:
    • यह विधेयक व्यापक अभिगम्यता दिशानिर्देशों (comprehensive accessibility guidelines) के मुद्दे के लिये सक्षमकारी प्रावधान प्रदान कर दिव्यांगजनों की विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करता है।
  • वैधानिक दंड और जुर्माना:
    • मसौदा विधेयक ऑपरेटरों और प्रसारकों के लिये सलाह, चेतावनी, निंदा या मौद्रिक दंड जैसे वैधानिक दंड पेश करता है।
    • कारावास और/या जुर्माने का प्रावधान बनाये रखा गया है, लेकिन केवल अत्यंत गंभीर अपराधों/उल्लंघनों के लिये, ताकि विनियमन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण सुनिश्चित हो सके।
  • न्यायसंगत दंड:
    • निष्पक्षता और समानता सुनिश्चित करने के लिये मौद्रिक दंड और जुर्माना निकाय की वित्तीय क्षमता से संबद्ध रखे गए हैं, जहाँ उनके निवेश और टर्नओवर को ध्यान में रखा जाता है।
  • इंफ्रास्ट्रक्चर शेयरिंग, प्लेटफॉर्म सेवाएँ और ‘राइट ऑफ वे’:
    • विधेयक में प्रसारण नेटवर्क ऑपरेटरों के बीच अवसंरचना को साझा करने और प्लेटफॉर्म सेवाओं के वहन के प्रावधान भी शामिल हैं।
    • इसके अलावा, यह स्थानांतरण (relocation) और परिवर्तनों (alterations) को अधिक कुशलता से संबोधित करने के लिये ‘राइट ऑफ वे’ (Right of Way) खंड को सुव्यवस्थित करता है और एक संरचित विवाद समाधान तंत्र स्थापित करता है।

विधेयक के पक्ष में कौन-से तर्क हैं?

  • अद्यतन विधिक ढाँचा:
    • यह विधेयक केबल टेलीविजन नेटवर्क विनियमन अधिनियम 1995 से एक परिवर्तन को इंगित करता है।
      • इसे सूचना और प्रसारण मंत्री द्वारा एक ‘महत्त्वपूर्ण विधान’ के रूप में वर्णित किया गया है क्योंकि इसका उद्देश्य नियामक ढाँचे को आधुनिक बनाना और OTT, डिजिटल मीडिया, DTH, IPTV और उभरती प्रौद्योगिकियों की गतिशील दुनिया को अपनाना है।
    • यह दिव्यांगजन समुदाय के लिये व्यापक अभिगम्यता दिशानिर्देश भी प्रदान करता है।
  • प्रसारकों को सशक्त बनाना:
    • यह स्व-विनियमन तंत्र के साथ प्रसारकों को सशक्त बनाने के प्रावधानों का प्रवेश कराता है।
    • यह नियामक निरीक्षण और उद्योग स्वायत्तता के बीच संतुलन बनाने का लक्ष्य रखता है।
  • कोड के प्रति विभेदित दृष्टिकोण:
    • मसौदा विधेयक विभिन्न सेवाओं में कार्यक्रम और विज्ञापन कोड के लिये ‘एक विभेदित दृष्टिकोण’ (a differentiated approach) की भी अनुमति देता है।
    • विभेदित दृष्टिकोण की अनुमति देकर, विनियमों को रैखिक और ऑन-डिमांड कंटेंट की प्रकृति के अनुरूप बनाया जा सकता है, जिससे कंटेंट निर्माताओं के लिये अधिक लचीलापन एवं प्रासंगिकता प्रदान की जा सकती है।
  • निष्पक्षता के उपाय:
    • इस विधेयक के तहत, निष्पक्षता के लिये मौद्रिक दंड को निकाय के निवेश और कारोबार(टर्न ओवर) से संबद्ध किया गया है। निकाय की वित्तीय स्थिति के आधार पर दंड आनुपातिक रूप से निर्धारित किया जाता है।
    • सीमित वित्तीय क्षमता वाले छोटे निकायों की तुलना में अधिक निवेश और टर्नओवर वाले बड़े निगमों को अधिक जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है।
  • हितधारक भागीदारी:
    • विधेयक सार्वजनिक परामर्श के माध्यम से हितधारकों की भागीदारी को इंगित करता है। उद्योग एकीकृत कानून के लिये सरकार की पहल का स्वागत कर रहा है और उम्मीद कर रहा है कि इससे अनुपालन एवं प्रवर्तन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित किया जा सकेगा।

विधेयक के विपक्ष में कौन-से तर्क हैं?

  • नियंत्रण एवं विनियमन की आशंकाएँ:
    • विधेयक इस संबंध में चिंता को जन्म देता है कि इसका ध्यान वास्तव में सार्वजनिक सेवा पर है या सरकार नियंत्रण एवं विनियमन बढ़ाने की मंशा रखती है।
    • ऐसी आशंकाएँ हैं कि यह विधेयक डिजिटल अवसंरचना और नागरिकों के देखने के विकल्पों (viewing choices) पर सरकारी नियंत्रण को बढ़ा सकता है।
  • मसौदे में मौजूद अस्पष्ट प्रावधान:
    • मसौदे में एक विशिष्ट प्रावधान (बिंदु 36), व्यापक एवं अस्पष्ट भाषा पर बल देता है जो अधिकारियों को कंटेंट को प्रतिबंधित करने की शक्ति प्रदान करता है।
    • यह सरकार के निर्देशन में कार्य करने वाले ‘अधिकृत अधिकारियों’ के प्रभाव के संबंध में सवाल उठाता है।
  • अल्पसंख्यक समुदायों पर संभावित प्रभाव:
    • विधेयक को लेकर यह चिंता जताई गई है कि यह भारतीय अल्पसंख्यक समुदायों के उन्मूलन या चयनात्मक प्रतिनिधित्व को जन्म दे सकता है।
    • मसौदे में अस्पष्ट भाषा का उपयोग भारत की सार्वभौमिक बहुसंख्यक पहचान को बढ़ावा देने के लिये किया जा सकता है।
  • केबल विनियमन से संबंधित मुद्दे:
    • केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 का उद्देश्य शुरू में अवैध केबल ऑपरेटरों पर अंकुश लगाना था, लेकिन ऑपरेटरों, राजनेताओं, उद्यमियों और प्रसारकों की सांठगांठ के कारण इसमें पारदर्शिता की कमी थी।
    • नया विधेयक भारतीय मीडिया उद्योग के भीतर हितों के टकराव और अपारदर्शी अभ्यासों सहित मौजूदा अधिनियम के कार्यान्वयन में व्याप्त खामियों एवं समस्याओं को संबोधित करने में विफल रहा है।
  • सरकार के भरोसे की कमी:
    • विधेयक को मीडिया विनियमन के साथ सत्तारूढ़ सरकार के हालिया इतिहास की रोशनी में भी देखा जा रहा है, जो अधूरे वादों और संदिग्ध परिणामों के एक पैटर्न को उजागर करता है।
    • विधेयक को राष्ट्रीय कल्याण के लिये पेश किये गए विवादास्पद आईटी नियम, 2021 के साथ जोड़कर भी देखा जा रहा है।
  • ओलिगोपोलिस्टिक मीडिया स्वामित्व की प्रवृत्तियाँ:
    • ‘सांस्कृतिक आक्रमण’ और ‘राष्ट्र-विरोधी’ प्रोग्रामिंग पर बहस के बीच, सरकारी अधिकारियों और मीडिया घरानों की सांठगांठ कुलीन या ओलिगोपोलिस्टिक मीडिया स्वामित्व (oligopolistic media ownership) को बढ़ावा दे सकती है।

भारत में प्रभावी प्रसारण विनियमन के लिये आगे की राह

  • व्यापक विधान:
    • एक व्यापक और आधुनिक विधायी ढाँचा विकसित करें जिसमें पारंपरिक टेलीविजन, OTT प्लेटफॉर्म, डिजिटल मीडिया और उभरती प्रौद्योगिकियों सहित प्रसारण के सभी पहलू शामिल हों।
    • कंटेंट की विविधता को बढ़ावा देने के लिये प्रसारकों और कंटेंट निर्माताओं के बीच प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करें। अभिव्यक्तियों और दृष्टिकोणों की बहुलता सुनिश्चित करने के लिये मीडिया स्वामित्व की एकाग्रता से बचें।
  • हितधारक परामर्श:
    • उद्योग विशेषज्ञों, कंटेंट निर्माताओं, प्रसारकों और आम लोगों की अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिये हितधारक परामर्श को प्राथमिकता दें। सुविज्ञ विनियमन के निर्माण के लिये विविध दृष्टिकोण सुनिश्चित करें।
  • प्रौद्योगिकी के प्रति अनुकूलनशीलता:
    • ऐसे विनियमन डिज़ाइन करें जो प्रौद्योगिकीय प्रगति के अनुकूल हों। मीडिया परिदृश्य की तेज़ी से विकसित हो रही प्रकृति पर विचार करें और सुनिश्चित करें कि विनियमन समय के साथ प्रासंगिक एवं प्रभावी बने रहें।
  • कंटेंट वर्गीकरण और रेटिंग:
    • दर्शकों के लिये स्पष्ट दिशानिर्देश प्रदान करने के लिये एक सुदृढ़ कंटेंट वर्गीकरण एवं रेटिंग प्रणाली लागू करें। यह सुनिश्चित करेगा कि दर्शक सूचित विकल्प चुन सकें और यह उपयुक्तता के आधार पर कंटेंट को विनियमित करने में मदद करेगा।
  • स्वतंत्र नियामक निकाय:
    • अनुपालन को लागू करने और निगरानी करने के अधिकार के साथ एक स्वतंत्र नियामक निकाय की स्थापना करें। नियामक निर्णयों में पारदर्शिता, निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित करें।
  • प्लेटफॉर्मों के लिये विभेदित दृष्टिकोण:
    • पारंपरिक टीवी, OTT और डिजिटल मीडिया सहित प्रसारण प्लेटफॉर्मों की विविधता को चिह्नित करें। प्रत्येक प्लेटफ़ॉर्म की विशिष्ट विशेषताओं और चुनौतियों को चिह्नित करते हुए विनियमन में एक विभेदित दृष्टिकोण अपनाएँ।
  • नियमित समीक्षा और अद्यतन:
    • विनियमों की नियमित समीक्षा और अद्यतन के लिये एक तंत्र स्थापित करें। यह नियामक ढाँचे को तकनीकी परिवर्तनों, सामाजिक बदलावों और उभरती चुनौतियों से अवगत रहने की अनुमति देगा।
  • स्पष्ट प्रवर्तन तंत्र:
    • नियामक उल्लंघनों के लिये स्पष्ट प्रवर्तन तंत्र को परिभाषित करें। नियामक ढाँचे की अखंडता को बनाए रखने के लिये शिकायत, जाँच और प्रतिबंधों से निपटने के लिये एक निष्पक्ष एवं कुशल प्रक्रिया स्थापित करें।
  • मीडिया साक्षरता को बढ़ावा देना:
    • जनता को ज़िम्मेदार मीडिया उपभोग के बारे में शिक्षित करने के लिये मीडिया साक्षरता कार्यक्रमों में निवेश करें। सूचित दर्शक वर्ग एक स्वस्थ मीडिया वातावरण में योगदान देता है और अत्यधिक नियामक उपायों की आवश्यकता को कम करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम अभ्यास:
    • प्रसारण विनियमन में अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम अभ्यासों का अध्ययन करें और उन्हें शामिल करें। भारत के अद्वितीय सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ का ध्यान रखते हुए प्रभावी रणनीतियाँ अपनाने के लिये अन्य देशों के अनुभवों से सीखें।

निष्कर्ष

प्रसारण विनियमन केवल अनुपालन के बारे में नहीं है बल्कि एक ऐसा वातावरण बनाने के बारे में भी है जो विकास, नवाचार और संचार सेवाओं तक न्यायसंगत पहुँच को प्रोत्साहित करे। नियामक पर्यवेक्षण और उद्योग स्वायत्तता के बीच इष्टतम संतुलन की तलाश कर, भारत तेज़ी से आगे बढ़ रहे दूरसंचार क्षेत्र में दीर्घकालिक सफलता के लिये रणनीतिक रूप से स्वयं को स्थापित कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक 2023 को स्वरुप प्रदान करने से संबद्ध प्राथमिक चिंताएँ कौन-सी हैं? देश में दूरसंचार क्षेत्र के लिये सुदृढ़ विनियमन स्थापित करने और उन्हें बनाए रखने पर लक्षित नीतिगत रणनीतियों के सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसके लिये साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना कानूनी रूप से अनिवार्य है? (2017)

  1. सेवा प्रदाताओं
  2.  डेटा केंद्र
  3.  कॉर्पोरेट निकाय

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. अंकीयकृत (डिजिटाइज़्ड) दुनिया में बढ़ते हुए साईबर अपराधों के कारण डाटा सुरक्षा का महत्त्व बहुत बढ़ गया है। जस्टिस बी.एन. श्रीकृष्णा समिति की रिपोर्ट में डाटा की सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर सोच-विचार किया गया है। आपके विचार में साइबर स्पेस में निजी डाटा की सुरक्षा से संबंधित इस रिपोर्ट की खूबियाँ और खामियाँ क्या-क्या हैं? (2018)