भारतीय अर्थव्यवस्था
खाद्य मुद्रास्फीति: प्रवृत्ति, कारक एवं नियंत्रण उपाय
यह एडिटोरियल 16/05/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Little respite: On food price gain’’ लेख पर आधारित है। इसमें खुदरा मुद्रास्फीति के आँकड़ों पर विचार किया गया है जो समग्र मुद्रास्फीति में कुछ गिरावट को प्रकट करता है, लेकिन यह खाद्य मूल्यों में चिंताजनक वृद्धि को छुपाता भी है जो पिछले चार माह के सर्वोच्च स्तर 8.7% पर पहुँच गया है।
प्रिलिम्स के लिये:खुदरा मुद्रास्फीति, RBI, CFPI, खाद्य मुद्रास्फीति, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI), CPI-संयुक्त (CPI-C), WPI, लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति, ड्रिप सिंचाई, न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP), हेडलाइन मुद्रास्फीति, रूस-यूक्रेन युद्ध। मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये खाद्य मुद्रास्फीति का महत्त्व तथा संबंधित चुनौतियाँ। |
भारत में अप्रैल माह की खुदरा मुद्रास्फीति (retail inflation) आरंभिक रूप से आशाजनक नज़र आई, जहाँ हेडलाइन मुद्रास्फीति दर—जो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के माध्यम से रिपोर्ट की जाती है, में मामूली रूप से कमी आई और यह घटकर 4.83% हो गई (11 माह में न्यूनतम स्तर)। हालाँकि यह मामूली गिरावट खाद्य मूल्यों में चिंताजनक वृद्धि को छिपा नहीं पाई।
समग्र मुद्रास्फीति और खाद्य मूल्यों में हाल की प्रवृत्ति
- खाद्य मूल्य (Food prices):
- ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिये खाद्य मूल्य में 8.75% की वृद्धि हुई, जो शहरी उपभोक्ताओं की तुलना में 19 आधार अंक अधिक थी।
- खाद्य की सबसे प्रमुख श्रेणी अनाज के मामले में यह वृद्धि 8.63% दर्ज की गई।
- उपभोक्ता कार्य विभाग के आँकड़ों से पता चला है कि चावल और गेहूँ के औसत मूल्यों में पिछले वर्ष की तुलना में (year-on-year) उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- सब्जियों की मुद्रास्फीति लगातार छठे माह दोहरे अंक में दर्ज की गई, जो बढ़ते तापमान के कारण 27.8% तक पहुँच गई।
- दालों में भी दोहरे अंक की मुद्रास्फीति देखी गई, जो पिछले ग्यारह माह से जारी रही है।
- ग्रामीण उपभोक्ता:
- ग्रामीण CPI 5.43% रही, जो 4.11% के शहरी दर से व्यापक रूप से अधिक है।
- यह असमानता सामान्य मानसून और उच्च तापमान जैसे कारकों के प्रभाव को दर्शाती है, जो विशेष रूप से ग्रामीण परिवारों के लिये चुनौतीपूर्ण है।
भारत में समग्र मुद्रास्फीति में गिरावट के बावजूद खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार कारक
- तापमान और मौसम संबंधी चुनौतियाँ: प्रतिकूल मौसमी दशाओं, जैसे कमज़ोर मानसून एवं ग्रीष्म लहर के पूर्वानुमान से फसल की पैदावार प्रभावित हुई, विशेष रूप से अनाज, दालों एवं गन्ने के मामले में (क्योंकि इन्हें उगाने के लिये पर्याप्त मात्रा में जल की आवश्यकता होती है), जिससे घरेलू स्तर पर आपूर्ति की कमी और उच्च मूल्यों की स्थिति बनी।
- उदाहरण के लिये, अनाज और दालों की मुद्रास्फीति अप्रैल 2024 में दोहरे अंकों में दर्ज की गई।
- ईंधन मूल्य: कृषि के एक अन्य प्रमुख इनपुट ईंधन के मूल्य में हाल के वर्षों में व्यापक वृद्धि देखी गई है।
- उदाहरण के लिये, ईंधन मुद्रास्फीति में 1% की वृद्धि से खाद्य मुद्रास्फीति में 0.13% की वृद्धि होती है और अगले 12 माहों में इसका प्रभाव धीरे-धीरे कम होता जाता है।
- आपूर्ति शृंखला में व्यवधान: परिवहन संबंधी दबाव, श्रम की कमी और लॉजिस्टिक्स संबंधी चुनौतियों जैसे कारकों के कारण आपूर्ति शृंखला में व्यवधान से खाद्य उत्पादों की उपलब्धता में कमी आ सकती है, जिससे उनके मूल्यों में वृद्धि हो सकती है।
- इसके अलावा, सब्जियों के मूल्यों में लगातार छठे माह दोहरे अंक की मुद्रास्फीति जारी रही है, जो 27.8% तक पहुँच गई है क्योंकि कुशल भंडारण सुविधा के अभाव में जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं की बर्बादी हुई।
- वैश्विक प्रभाव: जबकि वैश्विक खाद्य मूल्यों में कमी आई, भारत में खाद्य मूल्य उच्च स्तर पर बने रहे, क्योंकि घरेलू बाज़ारों में अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों का सीमित प्रसारण हुआ, रूस-यूक्रेन युद्ध ने इसमें बाधा उत्पन्न की और भारत खाद्य तेलों (उपभोग के 60%) एवं दालों के लिये आयात पर अत्यधिक निर्भर करता है, जबकि अनाज, चीनी, डेयरी, फल एवं सब्जियों जैसी अधिकांश अन्य कृषि वस्तुओं के लिये यह एक निर्यातक देश है।
मुद्रास्फीति (Inflation):
- परिचय:
- मुद्रास्फीति से तात्पर्य वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों में समग्र वृद्धि और लोगों की क्रय शक्ति में कमी से है।
- इसका अर्थ यह है कि जब मुद्रास्फीति बढ़ती है (आय में समतुल्य वृद्धि के बिना) तो पहले की तुलना में लोग कम चीज़ें खरीद पाते हैं या उन्हीं चीजों के लिये उन्हें अब अधिक मूल्य चुकाने पड़ते हैं।
- ‘बढ़ती’ मुद्रास्फीति दर का तात्पर्य है कि दर (जिस पर मूल्य वृद्धि हो रही है) स्वयं भी बढ़ रही है।
- उदाहरण के लिये, यदि मुद्रास्फीति की दर मार्च में 1%, अप्रैल में 2%, मई में 4% तथा जून में 7% थी तो यह मूल्य वृद्धि की दर में निरंतर वृद्धि को दर्शाता है।
- मुद्रास्फीति के प्रमुख कारण
- मांगजनित मुद्रास्फीति (Demand-Pull Inflation):
- यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग आपूर्ति से अधिक हो जाती है। जब अर्थव्यवस्था में समग्र मांग अधिक होती है तो उपभोक्ता उपलब्ध वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये अधिक भुगतान करने को भी तैयार रहते हैं, जिससे मूल्यों में सामान्य वृद्धि होती है।
- लागतजनित मुद्रास्फीति (Cost-Push Inflation):
- लागतजनित मुद्रास्फीति वस्तुओं एवं सेवाओं की उत्पादन लागत में वृद्धि से प्रेरित होती है। आय में वृद्धि, कच्चे माल की उच्च लागत या आपूर्ति शृंखला में व्यवधान जैसे कारकों से यह स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- वेतन-मूल्य मुद्रास्फीति (Wage-Price Inflation):
- मुद्रास्फीति के इस रूप को प्रायः वेतन/मज़दूरी और मूल्यों के बीच एक ‘फीडबैक लूप’ के रूप में वर्णित किया जाता है। जब श्रमिक उच्च मज़दूरी की मांग करते हैं तो व्यवसाय बढ़ी हुई श्रम लागत की भरपाई के लिये मूल्य बढ़ा सकते हैं, जिसकी प्रतिक्रिया में श्रमिक और उच्च मज़दूरी की मांग करते हैं तथा यह चक्र चलता रहता है।
- मांगजनित मुद्रास्फीति (Demand-Pull Inflation):
भारत में खाद्य मुद्रास्फीति के मापन के लिये विभिन्न सूचकांक
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI):
- CPI मुद्रास्फीति—जिसे खुदरा मुद्रास्फीति (retail inflation) के रूप में भी जाना जाता है, वह दर है जिस पर उपभोक्ताओं द्वारा व्यक्तिगत उपयोग के लिये खरीदी जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य समय के साथ बढ़ते जाते हैं।
- यह वस्तुओं एवं सेवाओं के ऐसे समूह की लागत में परिवर्तन की माप करता है जिन्हें आम तौर पर परिवारों द्वारा खरीदा जाता है। इसमें खाद्य, कपड़े, आवास, परिवहन और चिकित्सा देखभाल शामिल हैं तथा ये चार प्रकार के होते हैं:
- औद्योगिक श्रमिकों (Industrial Workers- IW) के लिये CPI
- कृषि श्रमिक (Agricultural Labourer- AL) के लिये CPI
- ग्रामीण श्रमिक (Rural Labourer- RL) के लिये CPI
- शहरी नॉन-मैनुअल कर्मचारियों (Urban Non-Manual Employees- UNME) के लिये CPI
- उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (Consumer Food Price Inflation- CFPI):
- CFPI व्यापक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का एक घटक है, जहाँ भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) इस उद्देश्य के लिये ‘CPI-संयुक्त (CPI-C) का उपयोग करता है ।
- CFPI घरों में आम तौर पर उपभोग की जाने वाली खाद्य वस्तुओं की विशेष श्रेणी (जिसमें अनाज, सब्जियाँ, फल, डेयरी उत्पाद, मांस एवं अन्य आवश्यक खाद्य पदार्थ शामिल हैं) के मूल्य में उतार-चढ़ाव की निगरानी करता है।
- थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI):
- यह थोक व्यापारियों द्वारा अन्य व्यापारियों को थोक में बिक्री एवं कारोबार की जाती वस्तुओं के मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों पर नज़र रखता है और यह विशेष रूप से वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करता है तथा सेवाएँ इसका अंग नहीं हैं।
- WPI का उपयोग उद्योगों, विनिर्माण क्षेत्र और निर्माण क्षेत्र में आपूर्ति एवं मांग की गतिशीलता की निगरानी के लिये किया जाता है।
- वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार द्वारा मासिक आधार पर जारी किया जाने वाला यह सूचकांक थोक मूल्य सूचकांक में पिछले माह की तुलना में होने वाली वृद्धि के आधार पर अर्थव्यवस्था में थोक मुद्रास्फीति के स्तर की माप करता है और इसमें विभिन्न घटक शामिल होते हैं।
- WPI में 22.62% हिस्सेदारी रखने वाली प्राथमिक वस्तुओं को खाद्य वस्तुओं और गैर-खाद्य वस्तुओं में विभाजित किया जाता है।
- खाद्य पदार्थों में अनाज, धान, गेहूँ, दालें, सब्जियाँ, फल, दूध, अंडे, मांस और मछली जैसी वस्तुएँ शामिल हैं।
- गैर-खाद्य पदार्थों में तिलहन, खनिज तत्व और कच्चा पेट्रोलियम शामिल हैं।
खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये सरकार द्वारा की गई पहलें
- सब्सिडीयुक्त वस्तुएँ: सरकार अपने नेटवर्क के माध्यम से प्याज एवं टमाटर जैसी सब्सिडीयुक्त सब्जियों का वितरण बढ़ा रही है और मूल्यों को स्थिर करने के लिये गेहूँ एवं चीनी का स्टॉक जारी कर रही है।
- आयात शुल्क में कमी लाना: घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिये सरकार किसानों के बीच दालों की खेती को प्रोत्साहित कर रही है और स्थानीय उपलब्धता को बढ़ावा देने के लिये कुछ दालों पर आयात शुल्क को कम कर रही है।
- निर्यात प्रतिबंध: मई 2022 से गेहूँ के निर्यात पर और सितंबर 2022 से टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध आरोपित करने का उद्देश्य पर्याप्त घरेलू आपूर्ति एवं निम्न मूल्य बनाए रखना है।
- भंडारण पर प्रतिबंध: विनियमों द्वारा व्यापारियों, मिल मालिकों, थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं के लिये गेहूँ के स्टॉक की सीमा 3,000 टन तक तथा छोटे खुदरा विक्रेताओं एवं दुकानों के लिये यह सीमा 10 टन तक सीमित रखी गई है ताकि अत्यधिक भंडारण को रोका जा सके।
- ‘ऑपरेशन ग्रीन्स’ (Operation Greens): इस पहल का उद्देश्य देश भर में टमाटर, प्याज एवं आलू (Tomato, Onion, and Potato- TOP) की आपूर्ति को स्थिर करना है ताकि मूल्य में उतार-चढ़ाव को न्यूनतम किया जा सके।
- न्यूनतम मूल्य: खरीफ प्याज की आवक में देरी के कारण प्याज की बढ़ती कीमतों के बीच घरेलू स्तर पर प्याज की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये सरकार ने 29 अक्टूबर से 31 दिसंबर, 2023 तक प्याज के निर्यात पर 800 डॉलर प्रति टन (67 रुपए प्रति किलोग्राम) का न्यूनतम निर्यात मूल्य (Minimum Export Price- MEP) आरोपित किया।
भारत में खाद्य मुद्रास्फीति से निपटने के लिये आवश्यक रणनीतियाँ
- बेहतर आपूर्ति शृंखला प्रबंधन:
- लॉजिस्टिक्स, भंडारण सुविधाओं और वितरण नेटवर्क को सुदृढ़ करने से बर्बादी को कम किया जा सकता है तथा खाद्यान्न की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है, जिससे मूल्य में उतार-चढ़ाव को कम किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये, शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं के परिवहन के लिये प्रशीतित ट्रकों का उपयोग यह सुनिश्चित करता है कि वे सर्वोत्तम स्थिति में बाज़ार तक पहुँचें, जहाँ उनके खराब होने की संभावना कम होती है और ताजा उपज की उपलब्धता बढ़ती है।
- लॉजिस्टिक्स, भंडारण सुविधाओं और वितरण नेटवर्क को सुदृढ़ करने से बर्बादी को कम किया जा सकता है तथा खाद्यान्न की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है, जिससे मूल्य में उतार-चढ़ाव को कम किया जा सकता है।
- कृषि उत्पादकता में वृद्धि करना:
- कृषि अवसंरचना, प्रौद्योगिकी एवं अनुसंधान में निवेश से फसल की पैदावार बढ़ सकती है, उत्पादन लागत कम हो सकती है और मूल्य स्थिर हो सकते हैं।
- उदाहरण के लिये, ड्रिप सिंचाई तकनीक के कार्यान्वयन से जल की कमी वाले क्षेत्रों में उल्लेखनीय जल बचत और फसल उत्पादकता में वृद्धि देखी गई है।
- मूल्य निगरानी और विनियमन:
- खाद्य पदार्थों के मूल्यों की नियमित निगरानी के लिये तंत्र लागू करने और उचित मूल्य निर्धारण अभ्यासों को क्रियान्वित करने से उपभोक्ताओं को शोषण से बचाया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये, आवश्यक खाद्य वस्तुओं के लिये अधिकतम खुदरा मूल्य निर्धारित करने से खुदरा विक्रेताओं को कमी या उच्च मांग के समय उपभोक्ताओं से अधिक पैसे वसूलने से रोका जा सकता है।
- खाद्य पदार्थों के मूल्यों की नियमित निगरानी के लिये तंत्र लागू करने और उचित मूल्य निर्धारण अभ्यासों को क्रियान्वित करने से उपभोक्ताओं को शोषण से बचाया जा सकता है।
- कृषि का विविधीकरण:
- किसानों को विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती के लिये प्रोत्साहित करने से देश की विशिष्ट वस्तुओं पर निर्भरता कम हो सकती है।
- चावल एवं गेहूँ जैसी पारंपरिक फसलों के साथ-साथ दालों की खेती को बढ़ावा देने जैसी पहल से मृदा की उर्वरता बढ़ सकती है , कीटों का प्रकोप कम हो सकता है और किसानों को वैकल्पिक आय स्रोत उपलब्ध हो सकते हैं।
- जलवायु प्रत्यास्थता:
- वर्षा जल संचयन और फसल चक्र जैसी जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाने से खाद्य उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है।
- उदाहरण के लिये, सूखा प्रतिरोधी फसल किस्मों की खेती को बढ़ावा देने से जल की कमी या चरम मौसमी घटनाओं के दौरान फसल की विफलता से बचाव हो सकता है।
- वर्षा जल संचयन और फसल चक्र जैसी जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाने से खाद्य उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग करना:
- एंबीटैग (AmbiTag) जैसे उपाय परिवहन के दौरान खाद्य पदार्थों की बर्बादी को रोकने में लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं।
- यह एक बार चार्ज किये जाने पर 90 दिनों तक किसी भी समय क्षेत्र में -40 डिग्री से +80 डिग्री तक के आसपास के तापमान को लगातार रिकॉर्ड करता रहता है।
- यदि तापमान एक पूर्व-निर्धारित सीमा से कम या अधिक हो जाता है तो यह अलर्ट जारी करता है।
- एंबीटैग (AmbiTag) जैसे उपाय परिवहन के दौरान खाद्य पदार्थों की बर्बादी को रोकने में लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं।
अभ्यास प्रश्न: भारत की बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति के पीछे प्राथमिक कारक कौन-से हैं और समग्र मुद्रास्फीति एवं खाद्य मुद्रास्फीति के बीच के अंतराल को कम करने के लिये कौन-सी रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. एक मत यह भी है कि राज्य अधिनियमों के तहत गठित कृषि उत्पाद बाज़ार समितियों (APMCs) ने न केवल कृषि के विकास में बाधा डाली है, बल्कि यह भारत में खाद्य मुद्रस्फीति का कारण भी रही हैं। समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2014) |