भारतीय राजनीति
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता
यह एडिटोरियल 10/10/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The silence around the state’s seizure of India’s press” लेख पर आधारित है। इसमें चर्चा की गई है कि भारत किस प्रकार एक संक्रामक आपातकाल के साथ-साथ डिजिटल तानाशाही के एक चिह्नित चरण से गुज़र रहा है। इस संदर्भ में उच्च न्यायपालिका द्वारा कथित रूप से किसी निर्णायक कार्रवाई की अनिच्छा के विषय पर भी विचार किया गया है।
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एक स्वतंत्र प्रेस लोकतंत्र की रक्षा करने और एक पारदर्शी एवं जवाबदेह सरकार को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालाँकि, ऑनलाइन पोर्टल न्यूज़क्लिक (NewsClick) से संबद्ध पत्रकारों के विरुद्ध हाल की कार्रवाइयों (जहाँ छापे, जब्ती और गिरफ्तारी जैसी कार्रवाइयाँ की गईं) ने भारत में डिजिटल डेटा की सुरक्षा और प्रेस की स्वतंत्रता के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
डिजिटल क्रांति के बीच भारत को डिजिटल तानाशाही या स्वेच्छाचारिता (digital authoritarianism) के खतरे का सामना करना पड़ रहा है। इस महत्त्वपूर्ण मोड़ पर, भारत को देश में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये राजनीतिक कार्रवाई और न्यायिक दृढ़ संकल्प दोनों की आवश्यकता है।
‘प्रेस की स्वतंत्रता’ का अभिप्राय:
प्रेस की स्वतंत्रता (Press Freedom) एक मौलिक सिद्धांत है जो पत्रकारों और मीडिया संगठनों को सेंसरशिप या सरकारी हस्तक्षेप के बिना कार्य करने की अनुमति देता है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of expression) का मुख्य घटक है और एक लोकतांत्रिक समाज के लिये आवश्यक है।
प्रेस की स्वतंत्रता में निम्नलिखित प्रमुख पहलू शामिल हैं:
- सेंसरशिप से स्वतंत्रता: पत्रकारों और मीडिया आउटलेट्स को सरकार द्वारा अधिरोपित किसी सेंसरशिप के बिना समाचार और सूचना प्रकाशन या प्रसारण में सक्षम होना चाहिये।
- सूचना तक पहुँच: एक स्वतंत्र प्रेस की सार्वजनिक हित से जुड़े मामलों की जाँच करने और रिपोर्ट करने के लिये सूचना एवं स्रोतों तक पहुँच होनी चाहिये।
- संपादकीय स्वतंत्रता: संपादकीय स्वतंत्रता यह सुनिश्चित करती है कि समाचार रिपोर्टिंग तथ्यों पर आधारित हो और बाह्य हितों से प्रभावित न हो।
- स्रोतों की सुरक्षा: पत्रकारों को अपने स्रोतों (sources) की सुरक्षा करने में सक्षम होना चाहिये ताकि किसी मामले को उजागर करने वालों (whistleblowers) और मुखबिरों (informants) को जोखिम या प्रतिशोध के भय के बिना सूचना के साथ आगे आने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
- बहुलवाद और विविधता: एक स्वतंत्र प्रेस को विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोण और मतों को शामिल करना चाहिये, जिससे समाज में खुली बहस और चर्चा की अनुमति मिल सके।
- जवाबदेही: मीडिया को सत्ता में बैठे लोगों के कार्यों एवं निर्णयों की जाँच और रिपोर्टिंग करने के माध्यम से उन्हें जवाबदेह बनाना चाहिये।
संवैधानिक पृष्ठभूमि:
- संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लेख नहीं किया गया है। हालाँकि, प्रेस या मीडिया की स्वतंत्रता भारत के संविधान द्वारा अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रदत्त वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य के अधिकार में निहित है। यह स्वतंत्र पत्रकारिता को प्रोत्साहित करता है और लोगों को सरकार के कार्यों के पक्ष या विपक्ष में अपनी राय देने का अवसर देकर लोकतंत्र को बढ़ावा देता है।
- मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (Universal Declaration of Human Rights) के अनुच्छेद 19 में कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है; इस अधिकार में बिना किसी हस्तक्षेप के मत प्रकट करने तथा किसी भी मीडिया के माध्यम से और सीमाओं की परवाह किये बिना सूचना एवं विचार की मांग करने, प्राप्त करने और प्रदान करने की स्वतंत्रता शामिल है।
- हालाँकि, राष्ट्र और इसकी अखंडता की रक्षा के लिये अनुच्छेद 19(2) में कुछ प्रतिबंध भी लागू किये गए हैं।
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति :
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भारत के लिये स्वतंत्र प्रेस का क्या महत्त्व है?
- लोकतंत्र और जवाबदेही: पत्रकार सरकारी कार्यों, नीतियों और निर्णयों की जाँच एवं रिपोर्टिंग करते हैं; इस प्रकार अधिकारियों को उनके कार्यों के लिये जवाबदेह ठहराते हैं।
- सूचना का प्रसार: यह नागरिकों को वर्तमान घटनाक्रमों, सरकारी गतिविधियों और सामाजिक मुद्दों के बारे में सूचित बने रहने में मदद करता है, जिससे वे सूचित निर्णय लेने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भागीदारी कर सकने में सक्षम होते हैं।
- सत्ता पर अंकुश: एक स्वतंत्र प्रेस सरकार और अन्य शक्तिशाली संस्थाओं द्वारा सत्ता के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने का कार्य करता है। यह भ्रष्टाचार, मानवाधिकारों के हनन और अन्य गलत कृत्यों को उजागर करने में मदद करता है, जिससे सत्ता में बैठे लोगों के लिये दंडमुक्ति (impunity) के साथ कार्य करना कठिन हो जाता है।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: एक स्वतंत्र प्रेस सरकारी कार्यकरण और निर्णयन प्रक्रियाओं में पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। यह उन गुप्त एजेंडों, हितों के टकराव और अन्य कारकों को उजागर करने में मदद करता है जो सरकारी कार्यकरणों को प्रभावित कर सकते हैं।
- विविध विचारों को अवसर: भारत अनेक भाषाओं, संस्कृतियों और दृष्टिकोणों वाला एक विविध देश है। एक स्वतंत्र प्रेस विविध आवाज़ों एवं दृष्टिकोणों के लिये मंच प्रदान करता है, जिससे सुनिश्चित होता है कि विभिन्न समुदायों की चिंताओं को सुना जा रहा है।
- मूल अधिकारों का संरक्षण: एक स्वतंत्र प्रेस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और जानने के अधिकार सहित मूल अधिकारों का संरक्षक होता है। यह व्यक्तियों और समूहों के अधिकारों का पक्षसमर्थन कर इन अधिकारों की रक्षा करने में मदद करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्थिति: वैश्विक मंच पर भारत की प्रतिष्ठा प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता से प्रभावित होती है। प्रेस की स्वतंत्रता को कायम रखना लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ती है।
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये कौन-से संस्थान ज़िम्मेदार हैं?
- भारतीय प्रेस परिषद (Press Council of India- PCI): भारतीय प्रेस परिषद प्रेस परिषद अधिनियम, 1978 के तहत स्थापित एक सांविधिक निकाय है। यह प्रेस की स्वतंत्रता और पत्रकारिता के नैतिक मानकों की रक्षा करने तथा उसे बढ़ावा देने के लिये एक प्रहरी के रूप में कार्य करती है।
- सूचना और प्रसारण मंत्रालय: सूचना और प्रसारण मंत्रालय एक सरकारी निकाय है जो भारत में मीडिया क्षेत्र से संबंधित नीतियों एवं दिशानिर्देश के निर्माण के लिये ज़िम्मेदार है।
- न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (NBDA): NBDA एक स्व-नियामक निकाय है जो भारत में निजी टेलीविजन न्यूज़ और समसामयिक मामलों के प्रसारकों का प्रतिनिधित्व करता है। यह टेलीविजन समाचार चैनलों के लिये आचार संहिता एवं मानकों का निर्माण और उनका प्रवर्तन करता है।
- एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया: यह भारत के प्रमुख समाचार पत्रों और समाचार पत्रिकाओं के संपादकों का एक स्वैच्छिक संघ है। यह प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने और पत्रकारों के अधिकारों एवं ज़िम्मेदारियों से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- विधिक प्रणाली: भारत की विधिक प्रणाली (न्यायपालिका सहित) प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। न्यायालयों के पास प्रेस की स्वतंत्रता के उल्लंघन को संबोधित करने, पत्रकारों की सुरक्षा करने और मीडिया से संबंधित कानूनों की व्याख्या करने का अधिकार है।
- वर्ष 1950 में रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि प्रेस की स्वतंत्रता सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए आधारभूत है।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठन: रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (Reporters Without Borders) और कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (Committee to Protect Journalists) जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की निगरानी करते हैं और वैश्विक मंच पर उल्लंघनों के बारे में जागरूकता बढ़ाते हैं।
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ
- विधिक और नियामक बाधाएँ: भारत में ऐसे कानून मौजूद हैं जिनका उपयोग प्रेस की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के लिये किया जा सकता है, जैसे मानहानि कानून, राजद्रोह कानून और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित विभिन्न कानून। इन कानूनों का इस्तेमाल कई बार पत्रकारों और मीडिया संगठनों को डराने-धमकाने के लिये किया सरकारी हस्तक्षेप:जाता है।
- मीडिया आउटलेट्स की संपादकीय स्वतंत्रता में सरकारी हस्तक्षेप के उदाहरण सामने आते रहे हैं। सरकारें मीडिया संगठनों को पुरस्कृत या दंडित करने के लिये विज्ञापन बजट का उपयोग एक साधन के रूप में कर सकती हैं, जो फिर उनकी रिपोर्टिंग को प्रभावित कर सकता है।
- धमकी और हिंसा: भारत में भ्रष्टाचार, संगठित अपराध या सांप्रदायिक तनाव जैसे संवेदनशील मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने में पत्रकारों को धमकी और हिंसा का सामना करना पड़ता है। कुछ पत्रकारों पर कार्य के दौरान हमला किये जाने या उनकी हत्या कर दिए जाने जैसे मामले भी सामने आते रहे हैं।
- सेल्फ-सेंसरशिप: विभिन्न स्रोतों से प्रतिशोध या दबाव के भय के कारण, पत्रकार और मीडिया आउटलेट सेल्फ-सेंसरशिप में संलग्न होने, कुछ विषयों पर रिपोर्टिंग से परहेज करने या रिपोर्टिंग के लिये सतर्क रुख अपनाने के लिये मजबूर हो सकते हैं।
- स्वामित्व और नियंत्रण: भारत में मीडिया का स्वामित्व प्रायः कुछ शक्तिशाली संस्थाओं के हाथों में केंद्रित रहा है, जो संपादकीय निर्णयों को प्रभावित कर सकता है और मीडिया परिदृश्य में आवाज़ों की विविधता को सीमित कर सकता है।
- मानहानि के मुकदमे: भारत में पत्रकारों और मीडिया संगठनों को प्रायः मानहानि के मुकदमों से निशाना बनाया जाता है, जो समय लेने वाला और आर्थिक रूप से बोझपूर्ण सिद्ध हो सकता है।
भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रेस सुनिश्चित करने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?
- कानूनी सुरक्षा को सुदृढ़ करना:
- मानहानि और राजद्रोह कानून जैसे कुछ कानूनों में सुधार किया जाना चाहिये जिनका दुरुपयोग प्रेस की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के लिये किया जा सकता है।
- प्रेस की स्वतंत्रता के उल्लंघन से जुड़े मामलों में त्वरित और निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- स्वतंत्र नियामक ढाँचा:
- स्वतंत्र मीडिया नियामक निकायों की स्थापना की जाए जिनके सदस्य समाज के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हों, जहाँ यह सुनिश्चित किया जाए कि वे सरकारी नियंत्रण और राजनीतिक प्रभाव से मुक्त हैं।
- पत्रकारों और सूचनादाताओं की रक्षा करना:
- ऐसे कानून अधिनियमित और प्रवर्तित किये जाएँ जो पत्रकारों को ऑनलाइन एवं ऑफलाइन दोनों माध्यमों में उत्पीड़न, हिंसा और धमकियों से बचाएँ।
- सार्वजनिक हित में मीडिया को जानकारी प्रदान करने वाले सूचनादाताओं/मुखबिरों की सुरक्षा के लिये तंत्र स्थापित किया जाए।
- पारदर्शिता को बढ़ावा देना:
- पारदर्शिता को बढ़ावा देने और पत्रकारों को सरकारी सूचना तक अभिगम्यता में सक्षम बनाने के लिये सूचना की स्वतंत्रता या सूचना की अभिगम्यता संबंधी सुदृढ़ कानून बनाए जाएँ।
- मीडिया एकाग्रता और हितों के टकराव को रोकने के लिये मीडिया स्वामित्व में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया जाए।
- सार्वजनिक प्रसारण की स्वतंत्रता:
- सार्वजनिक प्रसारण संस्थानों की सरकारी नियंत्रण और प्रभाव से स्वतंत्रता सुनिश्चित की जाए।
- सार्वजनिक प्रसारणकर्ताओं की निगरानी के लिये योग्य एवं निष्पक्ष बोर्ड की नियुक्ति करें और सुनिश्चित करें कि उनका वित्तपोषण सुरक्षित एवं निष्पक्ष हो।
- पत्रकारिता संबंधी नैतिकता को बढ़ावा देना:
- मीडिया संगठनों को एक नैतिकता संहिता का पालन करने के लिये प्रोत्साहित किया जाए जो सटीकता, निष्पक्षता एवं संतुलित रिपोर्टिंग पर बल देती हो।
- उच्च नैतिक मानकों को बनाए रखने के लिये पत्रकारों के पेशेवर विकास एवं प्रशिक्षण को बढ़ावा दिया जाए।
- लोकतांत्रिक समाज में स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रेस के महत्त्व के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाई जाए।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
- प्रेस की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने एवं सर्वोत्तम अभ्यासों की साझेदारी करने के लिये यूनेस्को और अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता समूहों जैसे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग बढ़ाया जाए।
- पत्रकारों की सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र कार्य योजना (UN Plan of Action on the Safety of Journalists) का उद्देश्य पत्रकारों और मीडियाकर्मियों के लिये एक स्वतंत्र एवं सुरक्षित माहौल का निर्माण करना है।
निष्कर्ष
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता के मुद्दे को संबोधित करने के लिये विभिन्न हितधारकों की ओर से ठोस प्रयास की आवश्यकता होगी, जहाँ एक लोकतांत्रिक समाज में स्वतंत्र प्रेस के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिये साझा प्रतिबद्धता प्रकट की जाए। यह एक जटिल चुनौती है जिस पर निरंतर ध्यान देने और कार्रवाई करने की आवश्यकता है ताकि देश में एक जीवंत एवं स्वतंत्र मीडिया वातावरण सुनिश्चित किया जा सके।
अभ्यास प्रश्न: भारत में प्रेस की स्वतंत्रता से संबद्ध प्रमुख चुनौतियों की चर्चा कीजिये। देश में एक निष्पक्ष एवं स्वतंत्र प्रेस की सुरक्षा और संवर्द्धन के लिये उपाय सुझाइये।
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