एडिटोरियल (11 Mar, 2025)



हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण

यह एडिटोरियल 08/03/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “​Himalayan tragedy: On avalanches in the Himalayan States” पर आधारित है। यह लेख भारत के हिमालयी क्षेत्र की भेद्यता को दर्शाता है, जो अपने सामरिक और संसाधन महत्त्व के बावजूद पर्यावरणीय रूप से नाजुक बना हुआ है।

प्रिलिम्स के लिये:

हिमस्खलन, भारत का हिमालयी क्षेत्र, अटल सुरंग, ज़ोजी ला सुरंग, तिब्बती बौद्ध धर्म, भारत के पूर्वोत्तर राज्य, हिंदू कुश हिमालय, भारतीय मॉनसून, सिक्किम ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड, जोशीमठ भूमि अवतलन, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन, हिम तेंदुआ 

मेन्स के लिये:

भारत के हिमालयी क्षेत्र का महत्त्व, भारतीय हिमालयी क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दे

उत्तराखंड में हाल ही में हुआ हिमस्खलन भारत के हिमालयी क्षेत्र के समक्ष मौजूद व्यापक भेद्यता का केवल एक उदाहरण है। ये विराट पर्वत, रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण और संसाधन-समृद्ध होने के बावजूद, पर्यावरणीय रूप से कमज़ोर स्थिति में हैं तथा हिमस्खलन, भूस्खलन, अचानक बाढ़ और भूकंपीय गतिविधि के लिये प्रवण हैं। भारत को अपने हिमालयी सीमांत की विशिष्ट चुनौतियों के लिये व्यापक आपदा प्रबंधन प्रणाली और पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील विकास दृष्टिकोण विकसित करने में कड़े प्रयासों की आवश्यकता है। 

The Indian Himalayan Region

भारत के हिमालयी क्षेत्र का क्या महत्त्व है? 

  • सामरिक और भू-राजनीतिक महत्त्व: हिमालय एक प्राकृतिक रक्षा अवरोध का निर्माण करता है, जो भारत की सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है, विशेषकर चीन के साथ बढ़ते सीमा तनाव के दौरान। 
    • वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की बढ़ती घुसपैठ के मद्देनजर भारत ने लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में सैन्य बुनियादी अवसंरचना को बढ़ाया है।
    • पूर्वी लद्दाख में हाल ही में भारत-चीन गतिरोध के कारण सीमा सड़क संगठन (BRO) परियोजनाओं का विस्तार हुआ, जिसमें रणनीतिक अटल सुरंग और ज़ोजी ला सुरंग भी शामिल हैं।
      • वर्ष 2022 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने विगत 5 वर्षों में चीन की सीमा से लगे क्षेत्रों में 2,088 किलोमीटर सड़कें बनाई हैं।
  • भारत का जल मीनार (जल विज्ञान संबंधी महत्त्व): हिमालय गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी प्रमुख नदियों का स्रोत है, जो कृषि, पेयजल एवं जल विद्युत योजनों को समर्थन प्रदान करता है। 
    • हिंदू कुश हिमालय को एशिया का जल मीनार कहा जाता है क्योंकि यह गंगा, सिंधु सहित 10 प्रमुख नदियों का स्रोत है तथा दोनों ध्रुवों के अतिरिक्त विश्व का सर्वाधिक बर्फ एवं हिम भंडार यहीं पर है।
    • हिमालयी नदियों से प्रतिवर्ष लगभग 1,20,00,000 मिलियन क्यूबिक मीटर जल प्रवाहित होता है और मैदानी इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों को पोषण प्रदान करता है।
  • पारिस्थितिकी और जैव-विविधता केंद्र: हिमालय 36 जैव-विविधता वाले हॉटस्पॉट में से एक है, जहाँ लगभग 3,160 दुर्लभ, स्थानिक और संवेदनशील पादप-किस्में हैं, जिनमें विशेष औषधीय गुण मौजूद हैं।
    • यह हिम तेंदुआ, लाल पांडा और औषधीय पौधों जैसी दुर्लभ प्रजातियों का निवास स्थल है।
    • इसमें उष्णकटिबंधीय से लेकर अल्पाइन पारिस्थितिक क्षेत्र तक, जिनमें सबसे ऊपरी क्षेत्र में बर्फ और चट्टानें भी शामिल हैं, इस क्षेत्र की जैव-विविधता को समृद्ध करते हैं। 
  • सांस्कृतिक और धार्मिक महत्त्व: हिमालय पर्वत एक प्रमुख भौगोलिक विशेषता है जिसे तिब्बती बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म सहित विभिन्न आध्यात्मिक परंपराओं में सम्मान दिया जाता है।
    • केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ और हेमकुंड साहिब जैसे पवित्र स्थलों के साथ ये भारत की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक परंपराओं में गहराई से जुड़े हुए हैं।
    • यह क्षेत्र प्रतिवर्ष लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है, लेकिन अनियमित पर्यटन और अकुशल अपशिष्ट प्रबंधन इसके पारिस्थितिक संतुलन के लिये खतरा है। 
  • आर्थिक और आजीविका महत्त्व: हिमालय पर्यटन, कृषि और वन-आधारित उद्योगों के माध्यम से लाखों लोगों की आजीविका का समर्थन करता है। 
    • जैविक कृषि, इको-टूरिज़्म और नवीकरणीय ऊर्जा सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा दे रहे हैं।
    • उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, असम और मेघालय जैसे राज्यों में पर्यटन क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में 10% से अधिक का योगदान दे रहा है।
    • सिक्किम का जैविक कृषि मॉडल (हालाँकि, हाल ही में इसे समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है), जिसने इसे भारत का पहला जैविक राज्य बना दिया, संधारणीय कृषि का एक सफल उदाहरण है।
    • डार्क स्काई रिज़र्व पूर्वी लद्दाख के हानले गाँव में चांगथांग वन्यजीव अभयारण्य के एक हिस्से के रूप में स्थित है। इससे भारत में खगोल-पर्यटन को बढ़ावा मिल रहा है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता (जलविद्युत और सौर ऊर्जा केंद्र): हिमालय की नदियाँ अपार जलविद्युत क्षमता प्रदान करती हैं, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा और हरित परिवर्तन के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
    • भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में, उनकी पर्वतीय स्थलाकृति और बारहमासी जलधाराओं के कारण, पूरे भारत में सबसे अधिक जलविद्युत क्षमता है।
      • लोहित बेसिन में अरुणाचल प्रदेश 13,000 मेगावाट जलविद्युत परियोजना समझौते (वर्ष 2023) का उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देना है।
  • मॉनसून और जलवायु विनियमन के लिये महत्त्वपूर्ण: हिमालय ठंडी मध्य एशियाई हवाओं के लिये अवरोधक के रूप में कार्य करके तथा नमीयुक्त मॉनसूनी हवाओं को रोककर भारतीय मॉनसून को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • हिमालय के बिना, यह क्षेत्र एक शीत मरुभूमि होता। हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र में कोई भी व्यवधान, जैसे कि ग्लेशियरों का पिघलना या निर्वनीकरण, मॉनसून के पैटर्न को प्रभावित करता है, जिससे अप्रत्याशित मौसम एवं सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है।
    • हालाँकि मॉनसून को अपेक्षाकृत कम वायु प्रदूषण वाला सबसे स्वच्छ मौसम माना जाता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण के कारण पूरे देश में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की वर्षा में 10%-15% की कमी आने की संभावना है।

भारतीय हिमालयी क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • जलवायु-प्रेरित आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति: बढ़ते तापमान, ग्लेशियर के पिघलने और अनियमित मौसम पैटर्न के कारण हिमालय में हिमस्खलन, भूस्खलन एवं आकस्मिक फ्लैश फ्लड जैसी आपदाओं में वृद्धि देखी जा रही है।
    • इसमें पर्वतीय वर्षा की बढ़ती आवृत्ति के कारण बादल फटने की घटनाओं में वृद्धि भी शामिल है।
    • तेज़ी से हो रहे शहरीकरण एवं निर्वनीकरण ने इस क्षेत्र की भेद्यता को और बढ़ा दिया है, जिससे स्थानीय समुदाय अत्यधिक असुरक्षित हो गए हैं। 
    • वर्ष 2004 से 2017 के दौरान विश्व भर में कुल 3,285 भूस्खलन वर्षा के कारण हुए। 
      • अकेले भारतीय हिमालयी क्षेत्र में इस अवधि के दौरान 580 भूस्खलन हुए, जिनमें से 477 वर्षा के कारण हुए, जो वैश्विक भूस्खलन का 14.52% है।
    • वर्ष 2025 का उत्तराखंड हिम-स्खलन और वर्ष 2023 का सिक्किम ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) क्षेत्र में बढ़ते आपदा खतरों को उजागर करते हैं।
  • असंवहनीय अवसंरचना विकास: राजमार्ग, सुरंग और जलविद्युत संयंत्र जैसी विशाल अवसंरचना परियोजनाएँ पर्याप्त पर्यावरणीय आकलन के बिना विकसित की जा रही हैं। 
    • ढलानों को काटना, निर्वनीकरण तथा सड़कों के लिये विस्फोट से पर्वतों की स्थिरता कमज़ोर होती है, जिससे भूस्खलन एवं भूमि अवतलन होता है। 
      • यद्यपि रणनीतिक संपर्क आवश्यक है, लेकिन विकास में पारिस्थितिकी संवेदनशीलता और बुनियादी अवसंरचना की आवश्यकताओं के बीच संतुलन होना चाहिये।
    • चल रहे महाद्वीपीय संघट्टन (सिंधु-त्सांगपो स्यूचर ज़ोन) के कारण बढ़ी हुई भूकंपीय गतिविधि अस्थिर बुनियादी अवसंरचना के विकास के साथ मिलकर जोशीमठ भूमि अवतलन संकट (वर्ष 2023) जैसे मुद्दों को जन्म देती है, जो चार धाम परियोजना के तहत अत्यधिक सुरंग निर्माण एवं सड़क निर्माण से जुड़ा है।
  • तेज़ी से पिघलते ग्लेशियर और जल सुरक्षा खतरे: भारत की प्रमुख नदियों के प्रवाह को बनाए रखने के लिये हिमालय के महत्त्वपूर्ण ग्लेशियर, ग्लोबल वार्मिंग के कारण खतरनाक दर से पिघल रहे हैं।
    • इससे लाखों लोगों के लिये दीर्घकालिक जल उपलब्धता पर खतरा उत्पन्न हो गया है, सूखे का खतरा बढ़ गया है, जल विद्युत उत्पादन में कमी आई है तथा जल संसाधनों को लेकर संघर्ष बढ़ गया है। 
    • वर्ष 2023 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया के हिंदू कुश हिमालय में ग्लेशियर उल्लेखनीय दर से पिघल रहे हैं और यदि वैश्विक तापमान वृद्धि वर्तमान दर से जारी रही तो सदी के अंत तक इनका आयतन 75% तक कम हो सकता है।
  • जैव-विविधता का ह्रास और वन्यजीव आवास का विनाश: निर्वनीकरण, मानव अतिक्रमण और जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय में जैव-विविधता की हानि हुई है, जो हिम तेंदुए व लाल पांडा जैसी अनोखी प्रजातियों का निवास स्थान है। 
    • वन स्थिति रिपोर्ट, 2021 में पाया गया कि वर्ष 2019 की तुलना में देश के पर्वतीय ज़िलों के वन क्षेत्र में 902 वर्ग किलोमीटर की गिरावट दर्ज की गई।
    • कृषि, पर्यटन और जलविद्युत परियोजनाओं के विस्तार से पारिस्थितिकी तंत्र बाधित होता है, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष एवं प्रजातियाँ विलुप्त हो जाती हैं।
    • मानव-जनित जलवायु तापमान वृद्धि और वनों की बढ़ती कटाई ने भी गैर-स्थानीय प्रजातियों के संक्रमण को बढ़ावा दिया है। 
      • उदाहरण के लिये, क्रॉफ्टन खरपतवार देशी हिमालयी देवदार के पेड़ों (पाइनस रोक्सबर्गी) के लिये वास्तविक खतरा उत्पन्न करता है।
  • सीमा तनाव और सुरक्षा चुनौतियाँ: हिमालयी क्षेत्र चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के सीमा तनाव की अग्रिम पंक्ति है, जिससे यह सामरिक रूप से कमज़ोर हो गया है।
    • निरंतर झड़पें, अतिक्रमण और सैन्यीकरण में वृद्धि हुई है, जिसके कारण भारी बुनियादी अवसंरचना का विकास हुआ है तथा भेद्य पारिस्थितिकी तंत्र बाधित हुआ है। 
    • तवांग में भारत-चीन संघर्ष (वर्ष 2022) के कारण सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़क और एयरबेस निर्माण में तेज़ी आई।
      • इसके कारण, सत्र 2025-26 के लिये भारत का रक्षा बजट 6.8 लाख करोड़ रुपए (79 बिलियन डॉलर) निर्धारित किया गया है, जो विकास के बजाय सुरक्षा के लिये संसाधनों के महत्त्वपूर्ण मोड़ को दर्शाता है। 
  • अनियमित और असंवहनीय पर्यटन: हिमालय क्षेत्र में पर्यटन में तेज़ी से वृद्धि हुई है, जिसके कारण भीड़भाड़, अपशिष्ट प्रबंधन में कमी और पारिस्थितिकी तंत्र में गिरावट आई है। 
    • अनियोजित होटल निर्माण, सड़क विस्तार और प्रदूषण ने सुभेद्य क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिससे भूमि अवतलन में वृद्धि एवं जैव-विविधता का नुकसान हुआ है। 
    • हिमालयन क्लीन-अप (वर्ष 2022) अपशिष्ट ऑडिट से पता चला कि 92.7% अपशिष्ट प्लास्टिक में 72% गैर-पुनर्नवीनीकरण योग्य प्लास्टिक था।

हिमालयी क्षेत्र के सतत् विकास और समुत्थानशीलन के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

  • पारिस्थितिकी-संवेदनशील और जलवायु-अनुकूल बुनियादी अवसंरचना: बुनियादी अवसंरचना के विकास में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) का सख्त पालन किया जाना चाहिये और जैव-इंजीनियरिंग व जलवायु-अनुकूल सड़क डिज़ाइन जैसे प्रकृति-आधारित समाधानों को अपनाना चाहिये।
    • वायु और ध्वनि प्रदूषण को न्यूनतम करने के लिये उच्च तुंगता वाले शहरों में शून्य उत्सर्जन वाले सार्वजनिक परिवहन तथा इलेक्ट्रिक वाहन गलियारों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • आपदा-प्रतिरोधी भवन संहिताओं को एकीकृत करने से संवेदनशील क्षेत्रों की बस्तियों की सुरक्षा बढ़ेगी। 
      • बड़े पैमाने की परियोजनाओं को मंजूरी देने से पहले वैज्ञानिक वहन क्षमता विश्लेषण किया जाना चाहिये।
  • संवहनीय पर्यटन और अपशिष्ट प्रबंधन नीतियाँ: पर्यटन को वहन क्षमता सीमाओं, पारिस्थितिकी पर्यटन मॉडल और जिम्मेदार आगंतुक व्यवहार कार्यढाँचे के माध्यम से विनियमित किया जाना चाहिये।
    • पारिस्थितिक रूप से सुभेद्य क्षेत्रों में परमिट-आधारित प्रवेश प्रणाली से भीड़भाड़ को नियंत्रित किया जा सकता है, साथ ही उच्च-मूल्य, कम-प्रभाव वाले पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है। 
    • तीर्थयात्रा और ट्रैकिंग क्षेत्रों में जैवनिम्नीकरणीय अपशिष्ट प्रसंस्करण एवं प्लास्टिक पर प्रतिबंध सहित विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिये। 
    • होटलों और होम-स्टे के लिये हरित प्रमाणन संवहनीय पर्यटन प्रथाओं को प्रोत्साहित कर सकते हैं। 
      • पारिस्थितिक शोषण के बिना आर्थिक लाभ सुनिश्चित करने के लिये स्थानीय समुदायों को समुदाय-प्रबंधित पर्यटन मॉडल के माध्यम से सशक्त बनाया जाना चाहिये।
  • एकीकृत जल प्रबंधन और ग्लेशियर एवं आर्द्रभूमि संरक्षण: स्थानीय पारिस्थितिकी को बाधित किये बिना सीमापार नदी संरक्षण को समन्वित करने और जलविद्युत उपयोग को अनुकूलित करने के लिये एक हिमालयी नदी बेसिन प्रबंधन प्राधिकरण की स्थापना की जानी चाहिये।
    • जल संबंधी समस्याओं और मौसमी जल की कमी से निपटने के लिये कृत्रिम ग्लेशियर पुनर्भरण तकनीक जैसे: बर्फ स्तूप को अपनाया जाना चाहिये तथा हिमालयी क्षेत्र में अधिक रामसर स्थलों को नामित किया जाना चाहिये।
    • ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) को रोकने के लिये ग्लेशियल झील निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणाली (EWS) को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
    • नदी तटबंध परियोजनाओं में अत्यधिक कंक्रीटीकरण के स्थान पर बायो-इंजीनियरिंग सॉल्यूशन का उपयोग किया जाना चाहिये।
  • वनरोपण और जैव-विविधता संरक्षण रणनीतियाँ: भारत को हिमालयी क्षेत्र में मूल पादप प्रजातियों के वनरोपण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जिससे मृदा स्थिरता और कार्बन अवशोषण में वृद्धि हो। 
    • आवास विनाश को रोकने के लिये वन्यजीव गलियारों के आसपास पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्रों (ESZ) को सख्ती से लागू किया जाना चाहिये।
    • भागीदारीपूर्ण वनरोपण के लिये समुदाय-नेतृत्व वाले संरक्षण मॉडल, जैसे वन पंचायत और इको-टास्क फोर्स का विस्तार किया जाना चाहिये।
    • वनों पर दबाव कम करने के लिये कृषि वानिकी और औषधीय-पादप कृषि को सतत् आजीविका के विकल्प के रूप में बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण और पूर्व चेतावनी प्रणाली: हिमालयी आपदा समुत्थानशीलन कार्यढाँचे में उपग्रह आधारित सुदूर संवेदन के माध्यम से भू-स्खलन, भूकंप और हिमस्खलन की वास्तविक काल निगरानी को एकीकृत किया जाना चाहिये।
    • स्थानीय शासन को आपदा-रोधी अवसंरचना योजनाओं और जलवायु अनुकूलन रणनीतियों से सशक्त बनाया जाना चाहिये। 
    • समुदाय-आधारित आपदा तैयारी कार्यक्रमों के विस्तार से दूरदराज़ के गाँवों में आपदा-मोचन दक्षता में सुधार होगा। 
    • समन्वित मोचन कार्य के लिये आपदा प्रबंधन पर नेपाल, भूटान और चीन के साथ सीमा पार सहयोग को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
  • सतत् आजीविका संवर्द्धन और जलवायु अनुकूल कृषि: जैविक कृषि, पर्माकल्चर और उच्च तुंगता वाले जलवायु अनुकूल फसलों को बढ़ावा देने से खाद्य सुरक्षा बढ़ सकती है तथा मृदा का अपरदन कम हो सकता है। 
    • स्थानीय अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के लिये पर्यावरण अनुकूल हस्तशिल्प, हर्बल उत्पाद और एडवेंचर टूरिज़्म को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा समाधान, जैसे कि सूक्ष्म-जलविद्युत और सोलर ग्रिड, दूरदराज़ के गाँवों तक स्थायी ऊर्जा सुलभता सुनिश्चित कर सकते हैं। 
    • हरित नौकरियों (जैसे संवहनीय पर्यटन, वन संरक्षण और पारिस्थितिकी-निर्माण) में कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष: 

भारत के हिमालयी क्षेत्र की दीर्घकालिक संधारणीयता सुनिश्चित करने के लिये, पारिस्थितिकी संरक्षण, आपदा समुत्थानशीलन और जलवायु-अनुकूल विकास को एकीकृत करने वाला एक बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है। हिमालयी अध्ययन पर राष्ट्रीय मिशन (NMHS) को सुदृढ़ करना अनुसंधान-आधारित समाधानों को बढ़ावा देने, धारणीय पर्यटन को बढ़ावा देने एवं स्थानीय शासन को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) पारिस्थितिक रूप से सुभेद्य है, फिर भी विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में बुनियादी अवसंरचना के विकास को पर्यावरणीय संधारणीयता के साथ किस प्रकार संतुलित किया जा सकता है? एक रणनीतिक रोडमैप सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2022)

शिखर

पर्वत

1. नामचा बरवा

गढ़वाल हिमालय

2. नंदा देवी

कुमाऊँ हिमालय

3. नोकरेक

सिक्किम हिमालय

उपर्युक्त युग्मों में कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?

(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)


प्रश्न 2. यदि आप हिमालय से होकर यात्रा करते हैं, तो आपको वहाँ निम्नलिखित में से किस पादप/किन पादपों को प्राकृतिक रूप में उगते हुए दिखने की संभावना है? (2014)

  1. बांज
  2. बुरुंश
  3. चंदन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न 3. जब आप हिमालय की यात्रा करेंगे, तो आप निम्नलिखित को देखेंगे: (2012)

  1. गहरे खड्ड
  2. U धुमाव वाले नदी-मार्ग
  3. समानांतर पर्वत श्रेणियाँ
  4. भूस्खलन के लिये उत्तरदायी तीव्र ढाल प्रवणता

उपर्युक्त में से कौन-से हिमालय के तरुण वलित पर्वत (नवीन मोड़दार पर्वत) के साक्ष्य कहे जा सकते हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 3 और 4 
(d) 1, 2, 3 ओर 4

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न 1. हिमालयी क्षेत्र तथा पश्चिमी घाटों में भूस्खलन के विभिन्न कारणों का अंतर स्पष्ट कीजिये। (2021)

प्रश्न 2. हिमालय के हिमनदों के पिघलने का भारत के जल-संसाधनों पर किस प्रकार दूरगामी प्रभाव होगा? (2020)

प्रश्न 3. “हिमालय भूस्खलनों के प्रति अत्यधिक प्रवण है।” कारणों की विवेचना कीजिये तथा अल्पीकरण के उपयुक्त उपाय सुझाइये। (2016)