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एडिटोरियल

  • 11 Mar, 2024
  • 17 min read
शासन व्यवस्था

बिना सर्वाइकल कैंसर वाले भविष्य हेतु प्रयास

यह एडिटोरियल 08/03/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “A bold step towards a cervical cancer-free future” लेख पर आधारित है। इसमें देश में सर्वाइकल कैंसर के उन्मूलन पर लक्षित HPV टीकाकरण कार्यक्रम की आवश्यकता एवं बाधाओं पर विचार किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वाइकल कैंसर, HPV स्ट्रेन, ह्यूमन पैपिलोमावायरस (HPV), सतत् विकास लक्ष्य (SDGs), कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम, राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस, राष्ट्रीय कैंसर ग्रिड, CERVAVAC

मेन्स के लिये:

भारत में सर्वाइकल कैंसर से निपटने की आवश्यकताएँ तथा संबंधित बाधाएँ।

भारत में सर्वाइकल कैंसर (Cervical Cancer) एक बड़ा स्वास्थ्य खतरा बना हुआ है जो निवारक उपायों की आवश्यकता को उजागर करता है। भारत सरकार सर्वाइकल कैंसर के खतरे के शमन के उद्देश्य से 9-14 वर्ष की बालिकाओं के लिये ह्यूमन पैपिलोमावायरस (HPV) के विरुद्ध त्रि-चरणीय टीकाकरण अभियान शुरू करने की मंशा रखती है।

हालाँकि, इस रोकथाम योग्य बीमारी से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये जोखिम कारकों, टीकाकरण विकल्पों, स्क्रीनिंग प्रोटोकॉल और प्री-कैंसर स्थितियों के प्रबंधन को समझना महत्त्वपूर्ण है।

सर्वाइकल कैंसर:

  • परिचय:
    • सर्वाइकल कैंसर महिलाओं के गर्भाशय ग्रीवा (cervix) में विकसित होता है। यह वैश्विक स्तर पर महिलाओं में होने वाला चौथा सबसे आम प्रकार का कैंसर है।
    • सर्वाइकल कैंसर के लगभग सभी मामले (99%) उच्च जोखिमपूर्ण ह्यूमन पैपिलोमावायरस (HPV) के संक्रमण से जुड़े हैं, जो यौन संपर्क के माध्यम से संचारित होने वाला एक बेहद आम विषाणु या वायरस है।
  • स्ट्रेन के प्रकार:
    • कुछ उच्च जोखिमपूर्ण HPV स्ट्रेन या उपभेदों के लगातार संक्रमण से लगभग 85% सर्वाइकल कैंसर उत्पन्न होते हैं।
    • कम से कम 14 HPV प्रकारों की पहचान ‘ऑन्कोजेनिक’ (oncogenic) या कैंसरकारी के रूप में की गई है।
      • इनमें से HPV प्रकार 16 एवं 18, जिन्हें सबसे अधिक ‘ऑन्कोजेनिक’ माना जाता है, वैश्विक स्तर पर सभी सर्वाइकल कैंसर के लगभग 70% मामलों के लिये ज़िम्मेदार पाये गए हैं।

सर्वाइकल कैंसर से संघर्ष भारत के लिये क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • उच्च प्रसार और मृत्यु दर: सर्वाइकल कैंसर भारत में महिलाओं में पाया जाने वाला दूसरा सबसे आम कैंसर है, जिसके प्रति वर्ष लगभग 1.27 लाख मामले सामने आते हैं और इससे हर वर्ष लगभग 80,000 महिलाओं की मौत हो जाती है।
  • सहरुग्णताएँ (Comorbidities) और जोखिम कारक: HPV संक्रमण, जो मुख्य रूप से यौन संपर्क के माध्यम से फैलता है, भारत में सर्वाइकल कैंसर का एक प्रमुख कारण है।
    • HIV/AIDS जैसी सहरुग्णताओं का उच्च प्रसार और अल्पायु विवाह, कई साथियों से यौन संबंध तथा गर्भनिरोधक के उपयोग की कमी जैसे जोखिम कारक सर्वाइकल कैंसर के उन्मूलन के प्रयासों को और जटिल बनाते हैं।
  • वंचित समुदायों पर असंगत प्रभाव: स्वास्थ्य सुविधाओं तक सीमित पहुँच, अपर्याप्त जागरूकता और सामाजिक-आर्थिक कारकों के कारण सर्वाइकल कैंसर वंचित एवं हाशिये पर स्थित समुदायों की महिलाओं को असंगत रूप से प्रभावित करता है।
  • आर्थिक बोझ: सर्वाइकल कैंसर उल्लेखनीय आर्थिक बोझ भी उत्पन्न करता है जहाँ निदान, उपचार एवं देखभाल से जुड़ी लागत स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों पर दबाव डालती है और प्रभावित व्यक्तियों एवं उनके परिवारों के लिये वित्तीय कठिनाइयों को बढ़ाती है।
  • महिलाओं के कल्याण पर प्रभाव: सर्वाइकल कैंसर मुख्य रूप से महिलाओं को उनके ‘प्राइम’ वर्षों (prime years) के दौरान प्रभावित करता है, जिससे फिर वे असामयिक मृत्यु की शिकार होती हैं, जो परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिरता और बच्चों के कल्याण (well-being) को प्रभावित करता है।
  • मानवाधिकार संबंधी मुद्दा: महिलाओं के स्वास्थ्य एवं कल्याण के अधिकार की पूर्ति के लिये HPV टीकाकरण एवं सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग सहित वहनीय एवं गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच आवश्यक है।
  • दीर्घकालिक लाभ: सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम एवं नियंत्रण प्रयासों में निवेश करने से सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं सतत् विकास के लिये दीर्घकालिक लाभ प्राप्त होते हैं; यह जीवन प्रत्याशा में सुधार, बेहतर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य परिणामों और सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति की दिशा में प्रगति में योगदान देता है।

भारत में सर्वाइकल कैंसर के उन्मूलन की राह में प्रमुख बाधाएँ:

  • सीमित जागरूकता: लोगों में, विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में, सर्वाइकल कैंसर, इसके जोखिम कारकों और HPV टीकाकरण एवं नियमित जाँच जैसे निवारक उपायों के बारे में जागरूकता की कमी है।
  • अपर्याप्त स्क्रीनिंग कार्यक्रम: भारत में व्यापक एवं सुलभ सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग कार्यक्रमों की कमी है, जिसके कारण निदान में देरी होती है और अक्षम उपचार परिणाम प्राप्त होते हैं।
  • औपचारिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच का अभाव: अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, सर्वाइकल कैंसर की शीघ्र पहचान, निदान एवं उपचार में बाधा उत्पन्न करता है।
    • आंध्र प्रदेश में एक अध्ययन से उजागर हुआ कि 68% रोगियों ने पहले पारंपरिक चिकित्सकों की मदद ली और केवल 3% का ही HPV टीकाकरण हुआ था।
  • कुशल कर्मियों की कमी: सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम, जाँच एवं उपचार में प्रशिक्षित स्त्रीरोग विशेषज्ञों (gynecologists) और कैंसर विशेषज्ञों (oncologists) सहित कुशल स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की कमी है।
  • कलंक और सांस्कृतिक बाधाएँ: महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों (सर्वाइकल कैंसर सहित) से जुड़ी सामाजिक-सांस्कृतिक वर्जनाएँ महिलाओं को समय पर चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने या स्क्रीनिंग कार्यक्रमों में भाग लेने से अवरुद्ध करती हैं।
  • टीके को लेकर झिझक: HPV टीकाकरण के बारे में भ्रामक सूचना एवं गलत धारणाएँ माता-पिता और देखभालकर्ताओं के बीच टीके को लेकर झिझक पैदा करती हैं, जिससे टीकाकरण कवरेज दर प्रभावित होती है।
  • वहनीयता और अभिगम्यता: HPV टीकों, स्क्रीनिंग परीक्षणों और उपचार विकल्पों की लागत कई व्यक्तियों, विशेष रूप से निम्न-आय पृष्ठभूमि वाले लोगों के लिये निषेधात्मक सिद्ध हो सकती है।
  • भौगोलिक असमानताएँ: भारत के विभिन्न क्षेत्रों में सर्वाइकल कैंसर की घटनाओं और मृत्यु दर में व्यापक भिन्नता देखी जाती है, जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में प्रायः उच्च रोग बोझ और स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों की कमी अनुभव की जाती है।
  • सीमित सरकारी वित्तपोषण: सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम एवं नियंत्रण कार्यक्रमों के लिये अपर्याप्त वित्तपोषण व्यापक रणनीतियों एवं हस्तक्षेपों को लागू करने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न करता है।
  • सीमित अनुसंधान और नवाचार: भारतीय संदर्भ के अनुरूप वहनीय एवं प्रभावी स्क्रीनिंग उपकरण, नैदानिक तकनीक और उपचार उपायों को विकसित करने के लिये अधिक अनुसंधान और नवाचार की आवश्यकता है।

कैंसर के उपचार से संबंधित प्रमुख सरकारी पहलें:

भारत सर्वाइकल कैंसर के खतरे से किस प्रकार मुक़ाबला कर सकता है?

  • HPV टीकाकरण:
    • लगातार उच्च जोखिमपूर्ण HPV संक्रमण, निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थितियों और धूम्रपान जैसे अन्य कारकों के साथ सर्वाइकल कैंसर का प्रमुख कारण है।
      • HPV टीकाकरण, जाँच और समय पर उपचार के माध्यम से इस रोग को रोका जा सकता है तथा इसका उपचार किया जा सकता है।
  • ‘अर्ली डिटेक्शन’ और उपचार का अवसर:
    • सर्वाइकल कैंसर में 10-15 वर्ष का ‘प्री-इनवेसिव’ चरण होता है, जो शीघ्र पता लगा सकने (early detection) और बाह्य रोगी उपचार (outpatient treatment) के लिये एक अवसर प्रदान करता है।
      • प्रारंभिक चरण के प्रबंधन से रोगमुक्ति दर (cure rate) 93% से अधिक हो जाती है, जो समय पर हस्तक्षेप के महत्त्व को उजागर करता है।
  • स्वदेशी टीका विकास:
    • भारत द्वारा स्वदेशी क्वाड्रिवेलेंट वैक्सीन सर्वावैक (CERVAVAC) का विकास एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है जो आम आबादी के लिये टीके की अभिगम्यता एवं वहनीयता बढ़ाएगी।
    • सर्वावैक भारत का पहला स्वदेशी रूप से विकसित क्वाड्रिवेलेंट ह्यूमन पैपिलोमावायरस (qHPV) टीका है, जिसके बारे में कहा गया है कि यह वायरस के चार प्रकारों- टाइप 6, टाइप 11, टाइप 16 और टाइप 18 के विरुद्ध प्रभावी है।
    • 2,000 रुपए प्रति खुराक की कीमत के साथ यह टीका HPV संक्रमण और सर्वाइकल कैंसर के विरुद्ध संघर्ष के लिये आशाजनक है।
  • HPV टीकाकरण की वैश्विक सफलता से प्रेरणा ग्रहण करना:
    • वैश्विक स्तर पर 100 से अधिक देशों ने सफल HPV टीकाकरण कार्यक्रम लागू किया है, जिससे सर्वाइकल कैंसर के मामलों में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
    • स्कॉटलैंड और ऑस्ट्रेलिया के अध्ययन HPV टीकों के व्यावहारिक प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं, जिनसे सर्वाइकल कैंसर की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई है।
    • रवांडा का सफल HPV टीकाकरण अभियान सर्वाइकल कैंसर से निपटने के लिये टीकाकरण को प्राथमिकता देने के महत्त्व को रेखांकित करता है।
    • WHO का ‘90-70-90’ का लक्ष्य: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने ‘90-70-90’ का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है, जहाँ 90% बालिकाओं का 15 वर्ष की आयु तक पूर्ण HPV टीकाकरण, 70% महिलाओं का 35-45 की आयु तक सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग टेस्ट और  सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित 90% महिलाओं का वर्ष 2030 तक उपचार का लक्ष्य रखा गया है।
  • तकनीकी प्रगति की भूमिका:
    • एकल-खुराक HPV टीकाकरण, HPV परीक्षण के लिये स्व-नमूनाकरण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) प्रौद्योगिकियों जैसे नवाचार सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम को बेहतर बनाते हैं।
      • HPV टीकों के बढ़ते उपयोग के साथ ये प्रगतियाँ संसाधन-सीमित परिदृश्यों के लिये बेहद आशाजनक हैं।
  • जनसंख्या-स्तर जागरूकता और रणनीतियाँ:
    • सर्वाइकल कैंसर से निपटने के लिये जागरूकता बढ़ाने, HPV टीकों को बढ़ावा देने, संकोच पर काबू पाने, आयु-उपयुक्त जाँच को लागू करने और प्री-कैंसर उपचार प्रक्रियाओं को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
    • स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा पाठ्यक्रम में HPV संबंधी सूचनाओं को शामिल करना बालिकाओं के बीच टीके के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देने में भूमिका निभा सकता है।

निष्कर्ष:

सर्वाइकल कैंसर के बढ़ते मामले और मृत्यु के चिंताजनक आँकड़े निवारक उपायों की तत्काल आवश्यकता को उजागर करते हैं। स्क्रीनिंग और HPV टीकाकरण के माध्यम से शीघ्र या समय-पूर्व पता लगाना (Early detection) एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है, जहाँ प्रारंभिक चरणों में रोग के प्रबंधन से उच्च रोगमुक्ति दर प्राप्त होती है। सर्वाइकल कैंसर के सफल उन्मूलन के लिये सटीक निदान, सुदृढ़ कैंसर रजिस्ट्रियाँ, कम वित्तीय बोझ और मज़बूत स्वास्थ्य प्रणालियों हेतु नियमित एवं सुसंगत प्रयासों की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में सर्वाइकल कैंसर से संघर्ष की तात्कालिक आवश्यकता की पड़ताल कीजिये; इससे संबद्ध चुनौतियों पर विचार कीजिये और उन्हें संबोधित करने के उपाय प्रस्तावित कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया मिशन इंद्रधनुष' किससे संबंधित है? (2016)

(a) बच्चों और गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण
(b) देश भर में स्मार्ट शहरों का निर्माण
(c) बाहरी अंतरिक्ष में पृथ्वी सदृश ग्रहों के संदर्भ में भारत की खोज
(d) नई शिक्षा नीति

उत्तर: A


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