भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में बेरोज़गारी संकट
यह एडिटोरियल 09/07/2024 ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Welfarism is not the solution for India’s job problem, skill creation is” लेख पर आधारित है। इसमें दीर्घकालिक रोज़गार सृजन नीतियों को लागू कर भारत के बेरोज़गारी संकट को दूर करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है, जहाँ मांग को बढ़ावा देने और सतत् रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण, मज़दूरी सब्सिडी एवं बुनियादी आय अनुपूरकों पर बल दिया गया है।
प्रीलिम्स के लिये:भारत के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी, आर्थिक मंदी, कौशल भारत, गिग अर्थव्यवस्था, उद्योग 4.0, कौशल भारत मिशन, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, प्रशिक्षु प्रोत्साहन योजना, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना, ई-श्रम पोर्टल। मेन्स के लिये:भारत की बेरोज़गारी वृद्धि के कारण, रोज़गार सृजन के लिये प्रमुख सरकारी पहल। |
भारत का शहरी परिदृश्य महत्वाकांक्षा का कैनवास है। आधुनिक महानगर आर्थिक गतिविधियों की बहुतायत रखते हैं, जो युवा स्नातकों की एक सतत् धारा को अपना भाग्य आजमाने के लिये अपनी ओर आकर्षित करते हैं। अनगिनत युवा भारतीयों के लिये शहरों की चकाचौंध अवसरों के प्रकाश-स्तंभ का प्रतिनिधित्व करती है। वे वर्षों की शिक्षा और महत्त्वाकांक्षा से प्रेरित होकर बेहतर जीवन के स्वप्न लिये शहर आते हैं। लेकिन शहरी बेरोज़गारी की कठोर वास्तविकता के कारण ये स्वप्न तेज़ी से स्थगित होते जा रहे हैं।
भारत, विशेष रूप से अपनी युवा आबादी के लिये, बेहतर गुणवत्तापूर्ण रोज़गार सृजन की चुनौती का सामना कर रहा है। यह समस्या दशकों से बनी हुई है, क्योंकि आर्थिक विकास रोज़गार सृजन के साथ संगति रखने में विफल रहा है। भारत को भविष्य के लिये अनुकूल कार्यबल तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जो उभरती हुई भारतीय अर्थव्यवस्था की मांगों को पूरा करने में सक्षम हो। इस चुनौती का सामना कर भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसके शहर सभी के लिये विकास और अवसर के इंजन बने रहें।
भारत का आर्थिक विकास पर्याप्त रोज़गार सृजन क्यों नहीं कर पा रहा है?
- उच्च कौशल, निम्न-रोज़गार क्षेत्रों का विरोधाभास: भारत की आर्थिक वृद्धि मुख्य रूप से सेवा और पूंजी-गहन विनिर्माण क्षेत्रों द्वारा संचालित होती रही है, जो आमतौर पर अपने आर्थिक उत्पादन के सापेक्ष कम रोज़गार सृजित करती रही है।
- उदाहरण के लिये, IT क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, लेकिन इसमें केवल 4.5 मिलियन लोगों को ही प्रत्यक्ष रूप से रोज़गार प्राप्त होता है।
- यह प्रवृत्ति हाल ही में उन्नत विनिर्माण (जैसे कि सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स) को दिए जा रहे प्रोत्साहन से और अधिक स्पष्ट होती है।
- ये उद्योग आर्थिक संकेतकों को बढ़ावा देते हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर रोज़गार के अवसर पैदा करने में, विशेष रूप से कम कुशल कार्यबल के लिये, प्रायः विफल रहते हैं।
- समयपूर्व विऔद्योगीकरण और इसका प्रभाव: भारत समयपूर्व विऔद्योगीकरण (Premature Deindustrializatio)n का अनुभव कर रहा है, जहाँ सकल घरेलू उत्पाद (GDP) और रोज़गार दोनों में विनिर्माण की हिस्सेदारी विकसित देशों की तुलना में प्रति व्यक्ति आय के अत्यंत निचले स्तर पर घटने लगी है।
- यह प्रवृत्ति, जो आंशिक रूप से वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा एवं स्वचालन (automation) से प्रेरित है, विनिर्माण क्षेत्र की कृषि से अधिशेष श्रम को अवशोषित करने की क्षमता को सीमित करती है, जो परंपरागत रूप से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में रोज़गार सृजन का एक प्रमुख मार्ग रहा है।
- वैश्विक आर्थिक रुझानों का प्रभाव: भारत का रोज़गार बाज़ार वैश्विक आर्थिक रुझानों से तेज़ी से प्रभावित हो रहा है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में संरक्षणवादी नीतियों ने भारत के निर्यात-उन्मुख उद्योगों को प्रभावित किया है, जिससे इन क्षेत्रों में रोज़गार सृजन प्रभावित हुआ है।
- इसके अलावा, वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधान और आर्थिक मंदी (जहाँ वर्ष 2023 में 4.25 लाख से अधिक टेक कर्मियों की नौकरी चली गई ) ने कुछ उद्योगों की भेद्यताओं और उनकी रोज़गार क्षमता को उजागर किया है।
- कौशल असंगतता: प्रौद्योगिकीय परिवर्तन की तीव्र गति ने नौकरी बाज़ार की मांग के अनुरूप कौशल और कार्यबल के पास मौजूद कौशल के बीच एक महत्त्वपूर्ण अंतराल पैदा कर दिया है।
- कौशल विकास और उद्यमशीलता पर राष्ट्रीय नीति (National Policy on Skill Development and Entrepreneurship) की वर्ष 2015 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि भारत में कुल कार्यबल का केवल 4.7% ही औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त कर पाया है, जो कि रोज़गार के लिये पर्याप्त तैयार कौशल की गंभीर कमी को दर्शाता है।
- ‘स्किल इंडिया’ जैसी हालिया पहल, महत्त्वाकांक्षी होते हुए भी, लक्ष्य पूरा करने और सफल रोज़गार नियोजन सुनिश्चित करने में संघर्ष कर रही है।
- यह असंगति या तालमेल का अभाव न केवल बेरोज़गारी को जन्म देता है, बल्कि अल्प रोज़गार (underemployment) की समस्या भी उत्पन्न करता है, जहाँ लोग अपनी योग्यता या क्षमता से नीचे के पदों पर कार्य करते हैं।
- अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व: भारत का 90% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जो निम्न उत्पादकता, सीमित रोज़गार सुरक्षा और न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा जैसी विशेषताओं से चिह्नित होता है।
- अनौपचारिक कार्य की यह व्यापकता न केवल रोज़गार गुणवत्ता और श्रमिक कल्याण को प्रभावित करती है, बल्कि समग्र आर्थिक उत्पादकता और संवहनीय, उच्च गुणवत्तापूर्ण रोज़गार सृजन की क्षमता को भी बाधित करती है।
- ‘गिग इकॉनमी’ और प्लेटफॉर्म-आधारित कार्य ने रोज़गार के नए अवसर तो पैदा किये हैं, लेकिन रोज़गार बाज़ार में अनिश्चितता भी उत्पन्न की है।
- ये प्लेटफॉर्म लचीले या सुगम कार्य दशाओं की पेशकश करते हैं लेकिन इनमें प्रायः रोज़गार सुरक्षा, लाभ और करियर विकास की संभावनाओं का अभाव होता है।
- जनसांख्यिकीय लाभांश संबंधी चुनौती: भारत में प्रतिवर्ष लगभग 12 मिलियन लोग कार्यबल में शामिल होते हैं, जिससे रोज़गार सृजन पर भारी दबाव पड़ता है।
- इन नए प्रवेशकों को समायोजित करने तथा मौजूदा बेरोज़गारी को दूर करने के लिये अर्थव्यवस्था को प्रति वर्ष 10-12 मिलियन रोज़गार अवसर सृजित करने की आवश्यकता है।
- हालाँकि रोज़गार सृजन लगातार इस लक्ष्य से पीछे रहा है।
- जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग कर सकने में विफलता के कारण इसके जनसांख्यिकीय बोझ में बदल जाने का खतरा है, जिससे सामाजिक अशांति और आर्थिक अस्थिरता पैदा हो सकती है।
- ‘मिसिंग मिडिल’ (Missing Middle) और MSME का अवमंदन: भारत के औद्योगिक परिदृश्य में बहुत छोटी फर्मों (50 से कम श्रमिकों वाली) और कुछ बहुत बड़ी कंपनियों का प्रभुत्व है, जबकि मध्यम आकार की कंपनियों का अभाव है।
- यह ‘मिसिंग मिडिल’ परिघटना रोज़गार सृजन में बाधा डालती है, क्योंकि मध्यम आकार की कंपनियों में आमतौर पर रोज़गार सृजन और विस्तार की सबसे अधिक क्षमता होती है।
- लघु एवं मध्यम उद्यमों में पर्याप्त वृद्धि का अभाव औपचारिक क्षेत्र में समग्र रोज़गार सृजन को बाधित करता है।
- इसके अलावा, MSME क्षेत्र, जो पहले विमुद्रीकरण (demonetization) से प्रभावित हुआ तथा बाद में कोविड-19 महामारी से और अधिक प्रभावित हुआ, अपने रिकवरी के प्रयासों में संघर्षरत है, जिससे रोज़गार वृद्धि बाधित हो रही है।
- स्वचालन और AI का प्रभाव: उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ, विशेष रूप से स्वचालन (automation) और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार परिदृश्य को नया आकार दे रही हैं।
- मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट (McKinsey Global Institute) का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत का 9% कार्यबल स्वचालन के कारण विस्थापित हो सकता है।
- यद्यपि ये प्रौद्योगिकियाँ नए रोज़गार अवसर सृजित करती हैं, लेकिन इनमें प्रायः उच्च कौशल स्तर की आवश्यकता होती है, जिससे कम कुशल श्रमिकों के बीच बेरोज़गारी की स्थिति और भी बदतर हो सकती है।
- अकादमिक जगत और इंडस्ट्री 4.0 के बीच असंगति: भारत की पारंपरिक शिक्षा प्रणाली प्रायः छात्रों को आधुनिक रोज़गार बाज़ार में आवश्यक आलोचनात्मक सोच और व्यावहारिक कौशल से संपन्न कर सकने में विफल रही है।
- ‘इंडिया स्किल्स रिपोर्ट’ में पाया गया कि वर्ष 2019 में केवल 47% भारतीय स्नातक ही रोज़गार योग्यता रखते थे, जो शैक्षणिक योग्यता और रोज़गार योग्यता के बीच एक बड़े अंतर को उजागर करता है।
- यह असंगति न केवल स्नातकों के बीच बेरोज़गारी का कारण बनती है, बल्कि श्रम बाज़ार में अकुशलता भी पैदा करती है, जहाँ रोज़गार की मांग रखने वाले लोगों की बड़ी संख्या के बावजूद कंपनियों को उपयुक्त उम्मीदवार खोजने में संघर्ष करना पड़ता है।
- विकास और रोज़गार सृजन में क्षेत्रीय असमानताएँ: भारत में आर्थिक विकास और रोज़गार के अवसर कुछ शहरी केंद्रों में संकेंद्रित हैं, जिसके कारण महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय असंतुलन पैदा हो रहा है।
- यह संकेंद्रण प्रवासन संबंधी दबाव पैदा करता है, जिसके कारण श्रमिक रोज़गार की तलाश में कम विकसित क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं।
रोज़गार अंतराल को दूर करने के लिये सरकार की प्रमुख पहलें:
- कौशल विकास और प्रशिक्षण कार्यक्रम:
- स्किल इंडिया मिशन: वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया यह प्रमुख कार्यक्रम प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) और राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) जैसे विभिन्न पहलों के माध्यम से लाखों युवाओं को उद्योग-प्रासंगिक कौशल में प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखता है।
- प्रशिक्षुता पहल: प्रशिक्षु प्रोत्साहन योजना (Apprentice Protsahan Yojana- APY) जैसे विभिन्न प्रयास कंपनियों को प्रशिक्षुओं को नियुक्त करने के लिये प्रोत्साहित करते हैं, जहाँ युवाओं को नौकरी के साथ प्रशिक्षण (on-the-job training) और अनुभव प्रदान किया जाता है।
- इस योजना के अंतर्गत प्रशिक्षुओं को दिए जाने वाले निर्धारित वृत्ति (stipend) का 50% भारत सरकार द्वारा वहन किया जाता है।
- रोज़गार सृजन को प्रोत्साहित करना:
- आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना (ABRY): कोविड महामारी के दौरान शुरू की गई यह योजना उन नियोक्ताओं को वेतन सब्सिडी प्रदान करती है जो नए रोज़गार सृजित करते हैं और मौजूदा रोज़गारों को बनाए रखते हैं।
- उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ: ये योजनाएँ घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और रोज़गार सृजन के लिये विशिष्ट क्षेत्रों (जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल) की कंपनियों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती हैं।
- उद्यमशीलता और स्व-रोज़गार को बढ़ावा देना:
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY): यह योजना छोटे व्यवसायों को शुरू करने या विस्तार देने के लिये इच्छुक उद्यमियों को सूक्ष्म ऋण प्रदान करती है।
- ‘स्टैंड-अप इंडिया’: इस पहल का उद्देश्य बैंक ऋण की सुविधा प्रदान कर महिलाओं और अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के बीच उद्यमशीलता को बढ़ावा देना है।
- अनौपचारिक क्षेत्र को संबोधित करना:
- ई-श्रम पोर्टल (e-SHRAM Portal): इस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का उद्देश्य अनौपचारिक श्रमिकों को पंजीकृत करना, सामाजिक सुरक्षा लाभों तक उनकी पहुँच में सुधार करना और उनके रोज़गार को औपचारिक बनाना है।
- राज्य-विशिष्ट पहल:
- इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना- राजस्थान
भारत में रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?
- स्थानीयकृत कौशल पारितंत्र (Localized Skill Ecosystems): स्थानीय उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप सूक्ष्म स्तरीय कौशल विकास केंद्रों का सृजन किया जाए।
- ये केंद्र प्रत्येक क्षेत्र में उद्योगों की विशिष्ट आवश्यकताओं के आधार पर अनुरूप प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करेंगे, जिससे स्थानीय नियोक्ताओं को कुशल श्रमिकों की प्रत्यक्ष आपूर्ति सुनिश्चित होगी।
- हरित रोज़गार संक्रमण निधि (Green Jobs Transition Fund): कार्बन-प्रधान उद्योगों से हरित रोज़गार की ओर संक्रमण करने वाले श्रमिकों को समर्थन देने के लिये एक समर्पित निधि की स्थापना की जाए।
- यह निधि पुनः प्रशिक्षण, स्थानांतरण सहायता और अस्थायी आय सहायता प्रदान करेगी, जिससे बेरोज़गारी को न्यूनतम करते हुए एक संवहनीय अर्थव्यवस्था की ओर सुगम संक्रमण संभव हो सकेगा।
- ‘गिग वर्कर कोऑपरेटिव्स’ (Gig Worker Cooperatives): गिग इकॉनमी में श्रमिकों के स्वामित्व वाली सहकारी समितियों या कोऑपरेटिव्स के गठन को बढ़ावा दिया जाए। ये कोऑपरेटिव्स गिग वर्कर्स को बेहतर सौदेबाज़ी शक्ति, साझा संसाधन और सुरक्षा जाल प्रदान करेंगे, जबकि गिग वर्क के लचीलेपन को भी बनाए रखेंगे।
- AI जॉब ऑग्मेंटेशन कार्यक्रम (AI Job Augmentation Program): AI-सहायता प्राप्त कार्य भूमिकाओं में श्रमिकों को प्रशिक्षित करने के लिये एक राष्ट्रीय कार्यक्रम लागू किया जाए। यह पहल AI को ‘जॉब डिस्ट्रॉयर’ के रूप में देखने के बजाय नई रोज़गार श्रेणियों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करेगी जो AI क्षमताओं के साथ मानव कौशल को जोड़ती है, जिससे समग्र उत्पादकता और रोज़गार में वृद्धि होती है।
- सर्कुलर इकॉनमी जॉब क्लस्टर्स (Circular Economy Job Clusters): चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों पर केंद्रित विशेषीकृत औद्योगिक संकुलों का विकास किया जाए। ये संकुल रीसाइक्लिंग, अपसाइक्लिंग और संवहनीय उत्पाद डिज़ाइन में रोज़गार अवसर सृजित करेंगे, जहाँ पर्यावरण संबंधी चिंताओं को संबोधित करते हुए रोज़गार के एक नए क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा।
- सूक्ष्म विनिर्माण नेटवर्क (Micro-Manufacturing Networks): डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से जुड़ी विकेंद्रीकृत, लघु-स्तरीय विनिर्माण इकाइयों के निर्माण को प्रोत्साहित किया जाए।
- इस नेटवर्क का नेतृत्व MSMEs द्वारा क्रेडिट गारंटी योजनाओं के माध्यम से किया जा सकता है, जिससे वितरित उत्पादन संभव होगा, जहाँ बड़े कारख़ानों की आवश्यकता कम होगी तथा छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार का सृजन होगा।
- नैनो-एंट्रेप्रेन्योर इनक्यूबेशन ज़ोन (Nano-Entrepreneur Incubation Zones): टियर-2 और टियर-3 शहरों में अति-लघु व्यवसायों के पोषण पर केंद्रित विशेष क्षेत्र स्थापित किये जाएँ।
- ये क्षेत्र उन उद्यमियों को साझा संसाधन, मार्गदर्शन और बाज़ार संपर्क प्रदान करेंगे जो 10-15 कर्मचारियों के साथ उद्यम शुरू करते हुए 1-2 वर्षों के भीतर 40-50 कर्मचारियों तक पहुँचने का लक्ष्य रखेंगे।
- परिशुद्ध कृषि रोज़गार पहल (Precision Agriculture Employment Initiative): युवाओं को हाई-टेक, परिशुद्ध कृषि तकनीकों में प्रशिक्षित करने और रोज़गार देने के लिये एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम शुरू किया जाए।
- इसमें फसल निगरानी के लिये ड्रोन का उपयोग, उपज अनुकूलन के लिये डेटा विश्लेषण और IoT-आधारित कृषि प्रबंधन शामिल होंगे, जिससे तकनीक-प्रेमी कृषि पेशेवरों की एक नई श्रेणी का निर्माण होगा।
- DESH विधेयक को पारित करने में तेज़ी लाना: विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम (Special Economic Zones Act) को प्रतिस्थापित करने वाले उद्यम और सेवा केंद्रों का विकास (Development of Enterprise and Service Hubs- DESH) विधेयक को शीघ्र पारित किया जाए, जो निवेश आकर्षित करने और रोज़गार सृजित करने के लिये एक लचीला ढाँचा तैयार कर सकता है।
- यह गुजरात के ‘गिफ्ट सिटी’ जैसे अन्य शहरों के माध्यम से क्षेत्रीय शक्तियों के आधार पर विशेषीकृत हब विकास की सुविधा प्रदान करेगा, साथ ही विदेशों में आर्थिक रूप से समान शहरों के साथ साझेदारी को सक्षम बनाएगा।
- इसके साथ ही, भारत ‘सिस्टर सिटीज़’ की अवधारणा को एकीकृत कर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग को बढ़ावा दे सकता है और कौशल विकास, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं बाज़ार पहुँच को सुविधाजनक बना सकता है।
अभ्यास प्रश्न: आर्थिक विकास के साथ तालमेल बनाए रखने में भारत के रोज़गार बाज़ार के समक्ष विद्यमान चुनौतियों की चर्चा कीजिये। इन मुद्दों को संबोधित करने के लिये कौन-सी दीर्घकालिक नीतियाँ लागू की जा सकती हैं?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. प्रधानमंत्री MUDRA योजना का लक्ष्य क्या है? (2016) (a) लघु उद्यमियों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाना उत्तर: (a) प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का सामान्यतः अर्थ है कि: (2013) (a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. भारत में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोजगारी की गणना के लिए अपनाई गई पद्धति का परीक्षण कीजिए और सुधार के सुझाव दीजिए। (2023) प्रश्न. हाल के समय में भारत में आर्थिक संवृद्धि की प्रकृति का वर्णन अक्सर नौकरीहीन संवृद्धि के तौर पर किया जाता है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिये।(2015) |