अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत की पड़ोस नीति पर पुनर्विचार की आवश्यकता
यह एडिटोरियल 03/04/2025 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “Why PM’s neighbourhood engagements are significant” पर आधारित है। इस लेख में म्याँमार से लेकर श्रीलंका तक कई पड़ोसी संकटों के दौरान ‘ऑपरेशन ब्रह्मा’ जैसी पहलों के साथ अग्रणी स्तंभ के रूप में भारत की उभरती भूमिका का उल्लेख किया गया है।
प्रिलिम्स के लिये:भारत का पड़ोसी क्षेत्र, म्याँमार का भूकंप, बांग्लादेश की राजनीतिक उथल-पुथल, ऑपरेशन ब्रह्मा, चीन-भारत युद्ध- 1962, भारत-पाकिस्तान युद्ध-1971, ‘लुक ईस्ट’ नीति, बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) मोटर वाहन समझौता, भारत-म्याँमार-थाईलैंड (IMT-TH) राजमार्ग मेन्स के लिये:भारत की पड़ोस नीति का विकास, पड़ोस में अस्थिरता का भारत पर प्रभाव |
भारत के पड़ोसी क्षेत्र कई संकटों का सामना कर रहे हैं, जिनमें प्रमुख रूप से म्याँमार का भूकंप व गृह युद्ध, बांग्लादेश की राजनीतिक उथल-पुथल, नेपाल की लोकतांत्रिक चुनौतियाँ और श्रीलंका की नाजुक रिकवरी शामिल हैं। थाईलैंड में BIMSTEC नेताओं की बैठक के दौरान, भारत ने म्याँमार में ‘ऑपरेशन ब्रह्मा’ के माध्यम से नेतृत्व का प्रदर्शन किया है, जो आपात स्थितियों के दौरान पड़ोसियों की सहायता करने की भारत की बढ़ती क्षमता को दर्शाता है। अपनी भौगोलिक केंद्रीयता और आर्थिक संसाधनों के साथ, भारत क्षेत्रीय सहयोग के आधार के रूप में कार्य कर रहा है।
समय के साथ भारत की पड़ोस नीति किस प्रकार विकसित हुई?
- प्रारंभिक वर्ष (वर्ष 1947-1960): एकीकरण और स्थिरता पर ध्यान
- स्वतंत्रता-पश्चात आदर्शवाद: स्वतंत्रता के तत्काल बाद, भारत की विदेश नीति मुख्यतः क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने पर केंद्रित थी।
- भारत की प्राथमिकताएँ रियासतों को एकीकृत करने, भारतीय गणराज्य की वैधता स्थापित करने और इसकी सीमाओं को सुरक्षित करने पर केंद्रित थीं।
- पड़ोसी संबंध: इस अवधि में, भारत ने क्षेत्र में नेतृत्व की भूमिका निभाई तथा मुख्य रूप से पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित किया।
- वह चीन, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और अफगानिस्तान जैसे अपने निकटतम पड़ोसियों को अपनी सुरक्षा एवं स्थिरता के लिये अभिन्न मानता है।
- हालाँकि, पड़ोसी संबंधों के प्रबंधन के लिये स्पष्ट रणनीतिक दृष्टिकोण का अभाव पाकिस्तान के साथ कश्मीर मुद्दे तथा तिब्बत पर चीन के दावे जैसी घटनाओं के दौरान स्पष्ट हो गया।
- स्वतंत्रता-पश्चात आदर्शवाद: स्वतंत्रता के तत्काल बाद, भारत की विदेश नीति मुख्यतः क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने पर केंद्रित थी।
- शीत युद्ध काल और गुटनिरपेक्षता (वर्ष 1960-1980)
- शीत युद्ध का प्रभाव: शीत युद्ध के दौरान, भारत की पड़ोस नीति उसके गुटनिरपेक्ष रुख से काफी प्रभावित थी।
- भारत पश्चिमी और पूर्वी दोनों ब्लॉकों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखना चाहता है तथा अपने निकटवर्ती पड़ोस को प्रभावित करने वाली विदेशी शक्तियों से सावधान भी रहता है।
- भारत-चीन तनाव: चीन-भारत युद्ध- 1962 और उसके बाद चीन के साथ क्षेत्रीय विवाद ऐसे निर्णायक क्षण थे, जिन्होंने भारत को अपनी सीमाओं व पड़ोस के प्रति अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने के लिये बाध्य किया।
- चीन के साथ अनसुलझे मुद्दे, विशेषकर तिब्बत और अक्साई चिन, भारत की सुरक्षा नीति का केंद्रीय विषय बन गए।
- पाकिस्तान और बांग्लादेश मुक्ति युद्ध: भारत-पाकिस्तान युद्ध-1971, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ, भारत की क्षेत्रीय कूटनीति में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था।
- रणनीतिक दुविधा: श्रीलंका, मालदीव और नेपाल में अस्थिरता के प्रति भारत की प्रतिक्रिया दुविधा से भरी थी।
- यद्यपि भारत ने 1980 के दशक के अंत में श्रीलंका में सैन्य हस्तक्षेप किया था, फिर भी उसकी नीति गुटनिरपेक्षता तथा अपने पड़ोसियों के साथ सतर्क व्यवहार पर आधारित थी।
- शीत युद्ध का प्रभाव: शीत युद्ध के दौरान, भारत की पड़ोस नीति उसके गुटनिरपेक्ष रुख से काफी प्रभावित थी।
- शीत युद्धोत्तर एवं उदारीकरण युग (1990 का दशक)
- आर्थिक उदारीकरण के साथ फोकस में बदलाव: 1990 के दशक में भारत के अपने पड़ोस के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव आया, जो आर्थिक उदारीकरण और शीत युद्ध की समाप्ति से प्रभावित था।
- भारत ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्वयं को एकीकृत करने के साथ-साथ अपने पड़ोसियों के आर्थिक विकास पर भी ध्यान केंद्रित किया।
- ‘लुक ईस्ट’ नीति: 1990 के दशक के प्रारंभ में, भारत ने अपनी ‘लुक ईस्ट’ नीति शुरू की, जिसका प्रारंभ में ध्यान दक्षिण पूर्व एशिया के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को बढ़ाने पर था, लेकिन धीरे-धीरे इसे अपने निकटतम पड़ोस तक विस्तारित कर दिया गया।
- भारत ने व्यापार, सुरक्षा और क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ाने के लिये अपने पूर्वी एवं उत्तरी पड़ोसियों पर ध्यान केंद्रित किया।
- पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव: 1990 का दशक पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव से भी चिह्नित था, विशेष रूप से 1998 में परमाणु परीक्षणों के बाद।
- पाकिस्तान के प्रति भारत का दृष्टिकोण अधिक सतर्क हो गया तथा उसने अपनी सीमाओं की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया।
- आर्थिक उदारीकरण के साथ फोकस में बदलाव: 1990 के दशक में भारत के अपने पड़ोस के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव आया, जो आर्थिक उदारीकरण और शीत युद्ध की समाप्ति से प्रभावित था।
- पड़ोस प्रथम नीति (2000 के दशक से वर्तमान तक)
- पड़ोसी प्रथम की स्थापना (वर्ष 2008): भारत की ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति औपचारिक रूप से वर्ष 2008 में सामने आई, जिसने अपने निकटतम पड़ोसियों के साथ संबंधों को मज़बूत करने के महत्त्व को रेखांकित किया।
- इस नीति में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों के साथ अधिक आर्थिक, कूटनीतिक व रणनीतिक सहयोग पर ज़ोर दिया गया।
- क्षेत्रीय संपर्क और सहयोग: एक महत्त्वपूर्ण बदलाव यह हुआ कि बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) मोटर वाहन समझौते और पूर्वोत्तर में बुनियादी अवसंरचना की कनेक्टिविटी बढ़ाने जैसी पहलों के माध्यम से क्षेत्रीय संपर्क पर ज़ोर दिया गया।
- पड़ोसी प्रथम की स्थापना (वर्ष 2008): भारत की ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति औपचारिक रूप से वर्ष 2008 में सामने आई, जिसने अपने निकटतम पड़ोसियों के साथ संबंधों को मज़बूत करने के महत्त्व को रेखांकित किया।
- हालिया रुझान और समायोजन (वर्ष 2020 से वर्तमान)
- पड़ोसी राजनीति में उथल-पुथल: हाल के वर्षों में भारत के पड़ोस में महत्त्वपूर्ण बदलाव देखे गए हैं, जिनमें नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों में राजनीतिक उथल-पुथल शामिल है।
- वर्ष 2024 में बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल, मालदीव में भारत विरोधी भावना का उदय (हालाँकि अब नियंत्रण में है) और म्याँमार में आंतरिक कलह ने भारत को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिये विवश कर दिया है।
- चीन का बढ़ता प्रभाव: भारत को अपने पड़ोस में, विशेष रूप से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत परियोजनाओं के माध्यम से, चीन के बढ़ते आर्थिक और सैन्य प्रभाव का सामना करना पड़ रहा है।
- इसने भारत को ‘डायमंड ऑफ द नेकलेस’ जैसी पहल के माध्यम से अपनी रणनीतिक उपस्थिति बढ़ाने के लिये प्रेरित किया है।
- क्षेत्रीय सहयोग पर अधिक ध्यान: BIMSTEC, बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल तथा दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं में भारत की भूमिका को प्रमुखता मिली है।
- पड़ोसी राजनीति में उथल-पुथल: हाल के वर्षों में भारत के पड़ोस में महत्त्वपूर्ण बदलाव देखे गए हैं, जिनमें नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों में राजनीतिक उथल-पुथल शामिल है।
भारत के लिये पड़ोस में अस्थिरता के क्या निहितार्थ हैं?
- सुरक्षा खतरे और सैन्य तनाव: भारत के पड़ोस में अस्थिरता सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाती है, विशेष रूप से अनसुलझे क्षेत्रीय विवादों और बढ़ते छद्म युद्ध के कारण।
- उदाहरण के लिये, पाकिस्तान से उत्पन्न आतंकवाद से प्रेरित जम्मू और कश्मीर में लंबे समय से चल रहा संघर्ष भारत की सुरक्षा के लिये एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
- इसके अतिरिक्त, हिंद महासागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति और पाकिस्तान को समर्थन भारत के सुरक्षा परिदृश्य को जटिल बना रहा है।
- वर्ष 2024 में, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने पश्चिमी और उत्तरी दोनों सीमाओं पर बढ़ते खतरों पर प्रकाश डाला तथा यह रेखांकित किया कि पड़ोसी देशों में अस्थिरता सीधे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करती है।
- आर्थिक व्यवधान और व्यापार बाधाएँ: क्षेत्र में अस्थिरता भारत के अपने पड़ोसियों के साथ आर्थिक संबंधों (विशेष रूप से व्यापार और संपर्क में) को बहुत हद तक बाधित करती है।
- अगस्त 2024 में बांग्लादेश में अचानक हुए सत्ता परिवर्तन से द्विपक्षीय व्यापार और बुनियादी अवसंरचना परियोजनाएँ बुरी तरह प्रभावित हुईं, जो पहले भारत-बांग्लादेश संबंधों के ‘स्वर्णिम अध्याय’ के तहत बढ़ रही थीं।
- अप्रैल और अक्तूबर 2023 के दौरान बांग्लादेश को भारत का निर्यात 13.3% तक गिर गया, जिसमें बेनापोल-पेट्रापोल जैसे प्रमुख स्थलीय बंदरगाहों पर व्यवधान शामिल है, जो द्विपक्षीय व्यापार का लगभग 30% संभालते हैं।
- अगस्त 2024 में बांग्लादेश में अचानक हुए सत्ता परिवर्तन से द्विपक्षीय व्यापार और बुनियादी अवसंरचना परियोजनाएँ बुरी तरह प्रभावित हुईं, जो पहले भारत-बांग्लादेश संबंधों के ‘स्वर्णिम अध्याय’ के तहत बढ़ रही थीं।
- क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव: म्याँमार और बांग्लादेश में अस्थिरता से भारत की क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है, जो ‘एक्ट ईस्ट नीति’ के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- भारत की कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (KMMTTP), जिसका उद्देश्य पूर्वोत्तर को बंगाल की खाड़ी तक सीधा मार्ग प्रदान करना है, को म्याँमार में सुरक्षा मुद्दों, विशेष रूप से सीमावर्ती क्षेत्रों पर अराकान सेना के नियंत्रण के कारण लगातार विलंब का सामना करना पड़ रहा है।
- भारत के निवेश के बावजूद, पलेत्वा-ज़ोरिनपुई राजमार्ग जैसी प्रमुख परियोजनाएँ अधूरी रह गई हैं, जिससे परियोजना की परिचालन दक्षता में और देरी हो रही है।
- इसके अतिरिक्त, जारी अशांति ने भारत-म्याँमार-थाईलैंड (IMT-TH) राजमार्ग जैसी महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय पहल को बाधित कर दिया है, जिसका केवल 70% काम ही पूरा हुआ है, जिससे क्षेत्रीय संपर्क एवं व्यापार एकीकरण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
- कूटनीतिक असफलताएँ और भू-राजनीतिक अलगाव: पड़ोस में अस्थिरता, विशेषकर शासन परिवर्तन और आंतरिक राजनीतिक उथल-पुथल, भारत के कूटनीतिक संबंधों को जटिल बनाती है।
- मालदीव में ‘इंडिया आउट’ कैम्पेन ने सफलतापूर्वक एक ऐसी सरकार को सत्ता में ला दिया है जो भारत के प्रभाव को कम करना चाहती है और भारत को क्षेत्रीय कूटनीति के प्रति अपने दृष्टिकोण को पुनः संतुलित करने के लिये मज़बूर कर रही है।
- ये परिवर्तन, क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव के साथ मिलकर भारत की क्षेत्रीय नेतृत्व की महत्त्वाकांक्षाओं को कमज़ोर करते हैं तथा इसकी कूटनीतिक स्थिति को कमज़ोर करते हैं।
- मानवीय एवं शरणार्थी संकट प्रबंधन: म्याँमार और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में अस्थिरता के कारण प्रायः भारत के लिये महत्त्वपूर्ण मानवीय चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- रोहिंग्या शरणार्थी संकट के कारण संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है तथा इससे सीमा पार प्रवास का दबाव बढ़ गया है।
- भारत के पूर्वोत्तर राज्यों, विशेषकर मिज़ोरम और मणिपुर में शरणार्थियों के आगमन और सीमा पर विद्रोही गतिविधियों के कारण तनाव बढ़ रहा है।
- इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कार्यढाँचे में भारत की सीमित भूमिका इसके सीमावर्ती राज्यों पर दबाव बढ़ाती है, क्योंकि वे शरणार्थियों की आमद के सामाजिक-आर्थिक बोझ से जूझ रहे हैं।
- संसाधन साझाकरण समझौतों में रुकावट: पड़ोसी अस्थिरता ने सीमापार संसाधनों के प्रबंधन में भारत के लिये चुनौतियों को बढ़ा दिया है।
- उदाहरण के लिये, सिंधु जल संधि अपने ऐतिहासिक समाधान के बावजूद, पाकिस्तान के साथ राजनीतिक तनाव के कारण तनावपूर्ण बनी हुई है, विशेष रूप से साझा नदी संसाधनों के प्रबंधन के संबंध में।
- तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर विश्व का सबसे बड़ा बाँध बनाने की चीन की योजना ने भारत और बांग्लादेश में जल प्रवाह, कृषि व क्षेत्रीय स्थिरता पर संभावित प्रभावों के बारे में चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं।
- चीन के साथ बढ़ती सामरिक प्रतिस्पर्द्धा: पड़ोस में अस्थिरता और चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण भारत के लिये महत्त्वपूर्ण सामरिक प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न हो रही है।
- पाकिस्तान (ग्वादर बंदरगाह), श्रीलंका (हंबनटोटा बंदरगाह) और बांग्लादेश (मोंगला और चटगाँव) में चीनी निवेश, साथ ही हिंद महासागर में इसकी बढ़ती सैन्य उपस्थिति, भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा गणना को जटिल बनाती है।
- यह प्रतिस्पर्द्धा भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाती है, विशेष रूप से तब जब चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) दक्षिण एशिया में तेज़ी से विकसित हो रही है।
- यह बढ़ती सामरिक प्रतिद्वंद्विता को रेखांकित करता है तथा भारत को अपनी क्षेत्रीय सुरक्षा एवं कूटनीतिक नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिये बाध्य करता है।
- पाकिस्तान (ग्वादर बंदरगाह), श्रीलंका (हंबनटोटा बंदरगाह) और बांग्लादेश (मोंगला और चटगाँव) में चीनी निवेश, साथ ही हिंद महासागर में इसकी बढ़ती सैन्य उपस्थिति, भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा गणना को जटिल बनाती है।
- दक्षिण एशियाई क्षेत्रवाद और सहयोग के लिये खतरा: भारत के पड़ोस में अस्थिरता और बढ़ते तनाव, SAARC और BIMSTEC जैसे क्षेत्रीय सहयोग कार्यढाँचे के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं, जहाँ भारत एक प्रमुख अभिकर्त्ता रहा है।
- विशेष रूप से SAARC भारत व पाकिस्तान के बीच तनाव के कारण प्रभावहीन हो गया है, जबकि BIMSTEC की क्षमता म्याँमार के आंतरिक कलह और बांग्लादेश में बदलते राजनीतिक परिदृश्य के कारण सीमित हो गई है।
- इन क्षेत्रीय मंचों पर भारत के नेतृत्व को सदस्य देशों के बीच एकजुट कार्रवाई की कमी के कारण चुनौती का सामना करना पड़ा है, जो राजनीतिक अस्थिरता के कारण और भी बढ़ गई है। \
- ये अवरुद्ध पहल दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय एकीकरण और आर्थिक सहयोग को सुदृढ़ करने के भारत के प्रयासों को कमज़ोर करती हैं।
भारत अपने पड़ोस में सक्रिय भागीदारी बढ़ाने के लिये क्या उपाय अपना सकता है?
- क्षेत्रीय संपर्क और बुनियादी अवसंरचना के विकास को सुदृढ़ करना: भारत को परिवहन और ऊर्जा बुनियादी अवसंरचना के विकास के माध्यम से सीमा पार संपर्क को बढ़ाने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- इसमें भारत और उसके पड़ोसियों के बीच सड़क, रेल और बंदरगाह संपर्कों का विस्तार करना शामिल है, विशेष रूप से BBIN मोटर वाहन समझौते और कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट परियोजना जैसी पहलों के माध्यम से।
- ऐसी परियोजनाओं का समय पर क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिये विदेश और गृह मंत्रालयों को शामिल करते हुए ‘व्होल-ऑफ-गवर्नमेंट’ अर्थात् संपूर्ण सरकार का दृष्टिकोण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- इससे न केवल व्यापार और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि लोगों के बीच संपर्क भी बढ़ेगा, जिससे क्षेत्रीय अभिकर्त्ता के रूप में भारत की भूमिका मज़बूत होगी।
- रणनीतिक कूटनीतिक जुड़ाव और संघर्ष समाधान तंत्र: भारत को एक अधिक सुदृढ़ और सुसंगत कूटनीतिक आउटरीच तंत्र बनाने की आवश्यकता है जो उसके पड़ोसी देशों में कुटनीतिक शासन से परे हो।
- इसमें BIMSTEC और SAARC जैसे मंचों के माध्यम से बहुपक्षीय कूटनीति को बढ़ाना शामिल है, साथ ही विवादास्पद मुद्दों को सुलझाने के लिये द्विपक्षीय वार्ता पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- खुले संचार माध्यमों को सुगम बनाकर भारत तनाव को कम कर सकता है तथा आतंकवाद, प्रवासन और क्षेत्रीय सुरक्षा जैसे सीमा पार मुद्दों का सक्रियतापूर्वक समाधान कर सकता है।
- भारत को सहयोगात्मक संघर्ष-समाधान कार्यढाँचे को बढ़ावा देकर क्षेत्रीय शांति पहल को भी गति देनी चाहिये, जो स्थिरता एवं विश्वास-निर्माण को बढ़ावा दे।
- व्यापक सुरक्षा और रक्षा सहयोग कार्यढाँचा: भारत को अपने पड़ोसियों के साथ मज़बूत सुरक्षा साझेदारी बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, खुफिया जानकारी साझा करने (हित सुरक्षित होने पर विचार करते हुए), आतंकवाद विरोधी सहयोग और समुद्री सुरक्षा पर ज़ोर देना चाहिये।
- क्षेत्र में साझा सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिये नेपाल, मालदीव और म्याँमार जैसे देशों के साथ किये जा रहे संयुक्त सैन्य अभ्यासों का विस्तार किया जाना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, भारत हिंद महासागर की सुरक्षा के लिये साझा संसाधनों और समन्वित प्रयासों के माध्यम से समुद्री क्षेत्र जागरूकता को बढ़ा सकता है।
- सहयोगात्मक रक्षा समझौतों के आधार पर क्षेत्रीय सुरक्षा कार्यढाँचे को सुदृढ़ करने से भारत को इस क्षेत्र में एक प्रमुख सुरक्षा प्रदाता के रूप में अपनी स्थिति मज़बूत करने में मदद मिलेगी।
- आर्थिक और व्यापार कूटनीति को पुनर्जीवित करना: दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते आर्थिक प्रभाव का मुकाबला करने के लिये, भारत को अधिक प्रभावी आर्थिक कूटनीति पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जिसमें पड़ोसी देशों को व्यापार प्रोत्साहन, निवेश के अवसर और आसान ऋण की पेशकश शामिल हो।
- भारत-मेकांग सहयोग जैसे मंचों के माध्यम से व्यापार साझेदार के रूप में भारत की भूमिका को सुदृढ़ करने से क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
- भारत को डिजिटल और वित्तीय संपर्क (UPI) बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उसके पड़ोसियों की भारत की तकनीकी एवं आर्थिक क्षमता तक अभिगम प्राप्त हो, जिससे बाह्य शक्तियों पर उनकी निर्भरता कम हो जाएगी।
- सांस्कृतिक समन्वय और लोगों के बीच संबंधों को बढ़ावा: भारत को अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को गहरा करने के लिये अपनी सांस्कृतिक कूटनीति का विस्तार करना चाहिये तथा सद्भावना निर्माण के लिये अपने सभ्यतागत संबंधों का लाभ उठाना चाहिये।
- इसमें शैक्षिक आदान-प्रदान, पर्यटन और लोगों के बीच आपसी पहल को बढ़ावा देना शामिल है, जिससे आपसी समझ एवं सहयोग को बढ़ावा मिले।
- मीडिया सहयोग, सांस्कृतिक उत्सवों और शैक्षिक आदान-प्रदान जैसे सॉफ्ट पावर टूल्स को प्राथमिकता देकर भारत नकारात्मक धारणाओं को संतुलित कर सकता है तथा अपने पड़ोसियों के साथ दीर्घकालिक, स्थायी जुड़ाव सुनिश्चित कर सकता है।
- पारस्परिक सांस्कृतिक प्रशंसा को बढ़ावा देने के लिये एक सक्रिय दृष्टिकोण स्थायी द्विपक्षीय संबंधों की नींव रखेगा।
- क्षेत्रीय जलवायु और पर्यावरण सहयोग: दक्षिण एशिया में बाढ़, जल प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन जैसी साझा पर्यावरणीय चुनौतियों को देखते हुए, भारत को सहयोगात्मक क्षेत्रीय पर्यावरणीय प्रयासों का नेतृत्व करना चाहिये।
- इसमें आपदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन शमन और सतत् विकास के लिये एक क्षेत्रीय कार्यढाँचा स्थापित करना शामिल है।
- हरित प्रौद्योगिकियों के क्रियान्वयन तथा अपने पड़ोसियों के साथ जलवायु-अनुकूल अवसंरचना समाधानों को साझा करने में भारत का नेतृत्व, साझा पर्यावरणीय मुद्दों के समाधान में गहन सहयोग को बढ़ावा देगा।
- बहुआयामी संकट प्रबंधन तंत्र का अंगीकरण: भारत को प्रमुख पड़ोसी देशों में त्वरित मोचन दल और संकट प्रबंधन केंद्र स्थापित करके अपनी संकट प्रबंधन क्षमताओं को बढ़ाना चाहिये।
- इससे यह सुनिश्चित होगा कि भारत प्राकृतिक आपदाओं, राजनीतिक उथल-पुथल और सुरक्षा खतरों जैसी क्षेत्रीय चुनौतियों पर त्वरित प्रतिक्रिया दे सकेगा।
- भारत को सामूहिक सुरक्षा चुनौतियों का बेहतर प्रबंधन करने के लिये SAARC, BIMSTEC और ASEAN के साथ मिलकर क्षेत्रीय संकट प्रबंधन कार्यढाँचा बनाने की दिशा में भी काम करना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत का पड़ोस अवसरों और अशांति दोनों का एक गतिशील रंगमंच बना हुआ है। SAGAR (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) के दृष्टिकोण से निर्देशित, भारत के नेबरहुड-फर्स्ट दृष्टिकोण को अब नेबरहुड-स्मार्ट नीति में विकसित होना चाहिये। भारत का अधिकांश पड़ोस रिमलैंड सिद्धांत द्वारा परिभाषित रणनीतिक दायरे में आता है, जो यह मानता है कि ‘जो रिमलैंड को नियंत्रित करता है, वह यूरेशिया पर शासन करता है, जो यूरेशिया पर शासन करता है, वह विश्व की नियति को नियंत्रित करता है।” यह भारत के लिये महत्त्वपूर्ण भागीदारी को रेखांकित करता है, जो न केवल क्षेत्रीय समुत्थानशक्ति बढ़ाने में, बल्कि तेज़ी से विकसित होते बहुध्रुवीय विश्व में स्वयं को विश्व मित्र के रूप में स्थापित करने में भी निहित है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. "एक सुरक्षित और स्थिर पड़ोस भारत के लिये एक विकल्प नहीं बल्कि एक रणनीतिक आवश्यकता है।" इस संदर्भ में, भारत की पड़ोस नीति के विकास की समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये और बढ़ती भू-राजनीतिक चुनौतियों के बीच इसकी प्रभावकारिता को बढ़ाने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. एलिफेंट पास, जिसे कभी-कभी समाचारों में देखा जाता है, निम्नलिखित में से किस देश के मामलों के संदर्भ में उल्लेखित होता है? (2009) (a) बांग्लादेश उत्तर: (d) प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. "चीन अपने आर्थिक संबंधों एवं सकारात्मक व्यापार अधिशेष को, एशिया में संभाव्य सैनिक शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिये, उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।" इस कथन के प्रकाश में, उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2017) |