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  • 09 Nov, 2024
  • 27 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का औद्योगिक भविष्य: क्लस्टरों की शक्ति

यह संपादकीय 08/11/2024 को द हिंदू में प्रकाशित “Industrial cities, parks key to Viksit Bharat” पर आधारित है। यह लेख 28,602 करोड़ रुपए के निवेश से समर्थित औद्योगिक शहरों और गलियारों के विकास को प्रस्तुत करता है, जो भारत की वर्ष 2047 तक 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की महत्त्वाकांक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे जैसी परियोजनाएँ शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ने के साथ-साथ नवाचार तथा विकास को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखती हैं।

प्रिलिम्स के लिये:

विकसित भारत@2047, औद्योगिक गलियारे, MSME, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन, पीएम गति शक्ति, आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23, यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र, भारत का अनुसंधान एवं विकास व्यय, उद्योग 4.0  

मेन्स के लिये:

भारत की विकास यात्रा को आगे बढ़ाने में औद्योगिक समूहों की भूमिका, भारत के औद्योगिक क्षेत्र के विकास को सीमित करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ। 

भारत ने वर्ष 2047 में विकसित भारत के तहत 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की कल्पना की है, औद्योगिक शहर और गलियारे इस महत्त्वाकांक्षी यात्रा की रीढ़ बनकर उभर रहे हैं। राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम के तहत 12 नए औद्योगिक शहरों को हाल ही में मंज़ूरी दी गई है, जिसमें 28,602 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है, जो वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे जैसी परियोजनाओं के उदाहरण के रूप में ये औद्योगिक गलियारे शहरी और ग्रामीण केंद्रों को जोड़कर नवाचार केंद्रों को बढ़ावा देकर एक गुणक प्रभाव उत्पन्न करने के लिये तैयार हैं। 

भारत की विकास यात्रा को आगे बढ़ाने में औद्योगिक क्लस्टरों की क्या भूमिका है? 

  • आर्थिक पैमाना और एकीकरण: विनिर्माण क्लस्टर साझा बुनियादी ढाँचे और संसाधनों के माध्यम से पैमाने की शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाएँ बनाते हैं, जिससे विभिन्न आकारों के व्यवसायों के लिये परिचालन लागत में महत्त्वपूर्ण कमी होती है।
    • NICDP के अंतर्गत हाल ही में 12 नए औद्योगिक शहरों को मंज़ूरी देना इस मॉडल के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • इन क्लस्टरों से 1 मिलियन प्रत्यक्ष और 3 मिलियन अप्रत्यक्ष रोज़गार सृजित होने का अनुमान है। 
  • आपूर्ति शृंखला अनुकूलन और लागत दक्षता: गुजरात के अहमदाबाद-वडोदरा कॉरिडोर का फार्मास्युटिकल क्लस्टर यह प्रदर्शित करता है कि क्लस्टरिंग, साझा बुनियादी ढाँचे और निकटवर्ती आपूर्तिकर्त्ता नेटवर्क के ज़रिए रसद लागत को कम करने में सहायक होती है। इस मॉडल से व्यापारों को संचालन लागत में महत्त्वपूर्ण कमी आती है तथा विभिन्न आकारों के व्यवसायों के लिये यह एक प्रभावी रणनीति बनता है।
    • इस क्लस्टर का भारत के फार्मा निर्यात में 28% योगदान है तथा इसमें 130 अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन प्रामाणित औषधि विनिर्माण सुविधाएँ हैं। 
    • आपूर्तिकर्त्ताओं, निर्माताओं और वितरकों के बीच निकटता से एकीकरण से महत्त्वपूर्ण लागत लाभ तथा परिचालन क्षमताएँ उत्पन्न होती हैं। 
  • MSME विकास उत्प्रेरक: औद्योगिक क्लस्टर MSME के लिये महत्त्वपूर्ण विकास इंजन के रूप में कार्य करते हैं, क्योंकि ये उन्हें स्थापित आपूर्ति शृंखलाओं, आधुनिक बुनियादी ढाँचे और बाज़ार संपर्कों तक पहुँच प्रदान करते हैं।
    • पारिस्थितिकी तंत्र दृष्टिकोण छोटे व्यवसायों को बड़ी कंपनियों के साथ निकटता से काम करने का अवसर प्रदान करता है, जैसा कि वेदांता द्वारा हाल ही में एल्युमीनियम, जस्ता और चाँदी प्रसंस्करण के लिये दो औद्योगिक पार्क स्थापित करने की घोषणा से स्पष्ट होता है। यह कदम छोटे व्यवसायों को प्रमुख उद्योगों से सीधे लाभ उठाने में सक्षम बनाता है, जिससे समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
  • निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता: औद्योगिक क्लस्टर विशिष्ट विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करके भारत की निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाते हैं, जिससे देश वैश्विक बाज़ारों में बेहतर प्रतिस्पर्द्धा कर सकता है। यह साझेदारी, साझा बुनियादी ढाँचे, आपूर्ति शृंखलाओं और संसाधनों के माध्यम से उत्पादकता को बढ़ावा देती है, जिससे भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा क्षमता को सशक्त किया जाता है।
    • उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) और पीएम गति शक्ति के माध्यम से एकीकृत बुनियादी ढाँचे जैसी पहलों द्वारा समर्थित क्षेत्र-विशिष्ट क्लस्टरों का केंद्रित विकास भारत की निर्यात क्षमताओं में बदलाव ला रहा है। 
    • सूरत हीरा उद्योग विश्व के 85-90% कच्चे हीरों का प्रसंस्करण करता है और यह अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी तथा कुशल श्रमिकों के लिये प्रसिद्ध है, जो इसे वैश्विक हीरा व्यापार में एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बनाता है।
  • क्षेत्रीय विकास उत्प्रेरक: औद्योगिक गलियारे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ते हुए नए आर्थिक अवसर उत्पन्न कर रहे हैं तथा इसके माध्यम से संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिल रहा है।
    • इसका उदाहरण यह है कि किस प्रकार चेन्नई-बंगलूरू औद्योगिक गलियारे ने अपने मार्ग पर स्थित छोटे शहरों में विकास को बढ़ावा दिया है तथा नए विकास केंद्रों का निर्माण किया है। 
    • हालिया आँकड़ों से पता चलता है कि औद्योगिक गलियारों के आस-पास के क्षेत्रों में गैर-गलियारा क्षेत्रों की तुलना में उच्च GDP विकास दर देखी गई है।
  • FDI आकर्षण केंद्र: औद्योगिक क्लस्टर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिये शक्तिशाली आकर्षण के रूप में उभरे हैं, जो उपयोग के लिये तैयार बुनियादी ढाँचे और स्पष्ट नीति ढाँचे की पेशकश करते हैं। 
    • संभाजीनगर में टोयोटा के हालिया निवेश और विभिन्न क्षेत्रों जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स तथा फार्मास्यूटिकल्स में वैश्विक निर्माताओं की बढ़ती रुचि इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि औद्योगिक गलियारे एवं निवेश नए आर्थिक अवसरों तथा क्षेत्रीय विकास को कैसे बढ़ावा देते हैं।

भारत में प्रमुख औद्योगिक क्लस्टर कौन-से हैं? 

  • ऑटोमोटिव:
    • चेन्नई, तमिलनाडु: "भारत का डेट्रायट" के नाम से प्रसिद्ध, यहाँ फोर्ड, हुंडई और बीएमडब्ल्यू जैसी प्रमुख कंपनियाँ स्थित हैं।
    • पुणे, महाराष्ट्र: टाटा मोटर्स, मर्सिडीज-बेंज और बजाज ऑटो के साथ यात्री तथा वाणिज्यिक वाहनों पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • गुरुग्राम-मानेसर, हरियाणा: मारुति सुज़ुकी और हीरो मोटोकॉर्प का घर।
    • साणंद, गुजरात: टाटा मोटर्स और पहले फोर्ड के लिये उल्लेखनीय।
  • वस्त्र:
    • तिरुप्पुर, तमिलनाडु: "भारत की निटवेअर राजधानी", निर्यात के लिये सूती वस्त्रों में विशेषज्ञता।
    • लुधियाना, पंजाब: ऊनी परिधान और बुने हुए कपड़ों के लिये जाना जाता है।
    • सूरत, गुजरात: सिंथेटिक कपड़ा केंद्र और प्रमुख पॉलिएस्टर उत्पादक।
    • भिवंडी, महाराष्ट्र: सिंथेटिक और सूती कपड़ों के लिये पावरलूम उद्योग।
  • फार्मास्यूटिकल्स और बायोटेक:
    • हैदराबाद, तेलंगाना ("जीनोम वैली"): डॉ. रेड्डीज प्रयोगशालाओं के साथ फार्मास्युटिकल और बायोटेक अनुसंधान केंद्र।
    • अहमदाबाद, गुजरात: यहाँ थोक दवा निर्माण के लिये ज़ाइडस कैडिला और टोरेंट फार्मा का कार्यालय है।
    • मुंबई, महाराष्ट्र: ल्यूपिन, सन फार्मास्यूटिकल्स और अन्य फॉर्म्यूलेशन डेवलपर्स का घर।
  • रसायन एवं पेट्रोरसायन:
    • वडोदरा और जामनगर, गुजरात: प्रमुख केंद्र, जामनगर में रिलायंस की तेल रिफाइनरी है।
    • मुंबई, महाराष्ट्र: रासायनिक और पेट्रोकेमिकल उद्योगों के लिये प्रमुख बंदरगाह शहर।
    • अंकलेश्वर और वापी, गुजरात: रसायन एवं रंग उत्पादन के लिये प्रमुख क्षेत्र।
  • रत्न एवं आभूषण:
    • सूरत, गुजरात: हीरे की कटाई और पॉलिशिंग में विश्व में अग्रणी।
    • मुंबई, महाराष्ट्र: सोने के आभूषण निर्माण और हीरे के व्यापार का प्रमुख केंद्र।
    • जयपुर, राजस्थान: बहुमूल्य पत्थरों की कटाई और पॉलिशिंग सहित रंगीन रत्नों के लिये प्रसिद्ध।

भारत के औद्योगिक क्षेत्र के विकास को सीमित करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • बुनियादी ढाँचे की अड़चनें: भारत की लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 14-18% ( आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 ) है, जबकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह 8-10% है, जो औद्योगिक प्रतिस्पर्द्धा को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है।
    • पिछले कई वर्षों से बिजली वितरण कंपनियाँ (डिस्कॉम), जोकि ज़्यादातर सरकारी स्वामित्व वाली हैं, भारी वित्तीय घाटे का सामना कर रही हैं। 
      • वर्ष 2017-18 और वर्ष 2022-23 के बीच घाटा 3 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया।
  • भूमि अधिग्रहण चुनौतियाँ: जटिल भूमि कानून और लंबी कानूनी प्रक्रियाओं के कारण परियोजनाओं में देरी होती है, जिससे अधिग्रहण कठिन हो जाता है।
    • भूमि अधिग्रहण के मुद्दों के कारण बंगलूरू पेरिफेरल रिंग रोड परियोजना वर्षों से विलंबित है।
    • सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार, 1,800 से अधिक बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की लागत में वृद्धि और देरी हुई है।
    • भूमि की बढ़ती कीमतों के कारण स्वामित्व संबंधी विवादों में भी वृद्धि हो रही है, जिससे पहले से ही रुकी हुई परियोजनाएँ और लंबी खिंच रही हैं।
    • इसके अतिरिक्त, भूमि राज्य सरकारों के अधीन होती है और राज्यों के बीच मूल्य निर्धारण तथा माप मानकों में विसंगतियाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे प्रक्रिया अधिक जटिल हो जाती है।
  • कठोर श्रम कानून और कौशल अंतराल: भारत में औद्योगिक क्षेत्र को हाल ही में श्रम संहिताओं के धीमे कार्यान्वयन के कारण श्रम सुधारों के साथ चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यह मुद्दा हाल ही में हुई हड़तालों से उजागर हुआ है, जैसे कि बंगलूरू में सैमसंग की फैक्ट्री में हुई हड़ताल।
    • यदि भारत में कौशल अंतर इसी तरह जारी रहा, तो अधिकांश उद्योग 75-80% कौशल अंतर की समस्या से ग्रस्त हो जाएंगे।
    • भारत में बेरोज़गारी दर जून 2024 में तेज़ी से बढ़कर 9.2% हो जाएगी। औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार कार्यबल का 10% बना हुआ है, जो संरचनात्मक कठोरता को दर्शाता है।
  • ऋण तक सीमित पहुँच: भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन औपचारिक ऋण तक पहुँच में एक महत्त्वपूर्ण अंतर मौजूद है, खासकर जब अन्य विकसित देशों की तुलना में।
    • बिज़फंड की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में केवल 16% MSME को ही औपचारिक ऋण प्राप्त होता है, जिससे 80% से अधिक कंपनियाँ अल्प वित्तपोषित हैं या अनौपचारिक स्रोतों से वित्तपोषित हैं।
    • मार्च 2024 तक, उद्योग को प्रदान किये गए बैंक ऋण में उसकी हिस्सेदारी घटकर 23.1% रह गई है।
  • प्रौद्योगिकी अपनाने में बाधाएँ: MSME में पैमाने और कौशल की कमी भारतीय विनिर्माण उद्योगों को निवेश करने, आधुनिकीकरण करने तथा उद्योग 4.0 को अपनाने से रोकती है।
    • डिजिटल अवसंरचना की कमी को पूरा करने के लिये प्रतिस्पर्द्धी आधुनिकीकरण हेतु  वर्ष 2025 तक 23 बिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी।
    • भारत 174 देशों में से 72वें स्थान पर है तथा एआई तैयारी सूचकांक रेटिंग 0.49 है।
    • आयात पर निर्भरता के कारण भारतीय उद्योगों को प्रौद्योगिकी अपनाने में अधिक लागत का सामना करना पड़ता है।
  • पर्यावरण अनुपालन चुनौतियाँ: औद्योगिक इकाइयों को पर्यावरण नियमों के कारण परिचालन व्यय की उच्च अनुपालन लागत का सामना करना पड़ता है। 
    • इसके अतिरिक्त, वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले 18% उद्योगों को ऑनलाइन निरंतर उत्सर्जन निगरानी प्रणाली (CEMS) स्थापित करने की आवश्यकता थी, लेकिन उन्होंने मानदंडों का पालन नहीं किया है। 
      • इसका आंशिक कारण यह है कि पर्यावरणीय अनुमोदन और अन्य मंज़ूरियाँ प्राप्त करने में नौकरशाही संबंधी देरी के कारण डेवलपर का समग्र परियोजना व्यय 10-12% तक बढ़ जाता है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा और व्यापार बाधाएँ: विश्व व्यापार संगठन के हालिया आँकड़ों से पता चलता है कि 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 1.8% है। 
    • प्रमुख निर्यात बाज़ारों में गैर-टैरिफ बाधाएँ बड़ी संख्या में भारतीय औद्योगिक निर्यात को प्रभावित करती हैं। 
      • इसके अतिरिक्त, यूरोपीय संघ की कार्बन सीमा समायोजन प्रणाली जैसी पर्यावरणीय व्यापार बाधाएँ, जैसे- इस्पात क्षेत्र, भारतीय उद्योगों पर असर डाल सकती हैं, विशेषकर निर्यात में। इससे भारतीय उत्पादों पर उच्च शुल्क लग सकते हैं, जिससे यूरोपीय संघ में भारतीय निर्यात में गिरावट हो सकती है।
  • अनुसंधान एवं नवाचार अंतर: भारत का अनुसंधान एवं विकास व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 0.7% है, जो चीन के 2.4% और अमेरिका के 3.1% से काफी कम है। 
    • पिछले दो वर्षों में भारत की पेटेंट दाखिल करने की प्रक्रिया में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। हालाँकि पेटेंट दाखिल करने में भारत की वैश्विक हिस्सेदारी अभी भी 2% से थोड़ी अधिक है, जो लक्षित पहलों की निरंतर आवश्यकता को दर्शाता है। 

औद्योगिक क्लस्टरों के विकास तीव्रता लाने के लिये भारत कौन-सी रणनीतियाँ अपना सकता है?

  • एकीकृत अवसंरचना विकास: लक्षित वित्तपोषण के साथ प्रत्येक प्रमुख औद्योगिक क्लस्टर के लिये समर्पित अवसंरचना SPV (विशेष प्रयोजन वाहन) बनाएँ।
    • 24x7 बिजली, जल आपूर्ति और अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों सहित प्लग-एंड-प्ले बुनियादी ढाँचे की सुविधाओं का समयबद्ध विकास लागू करना चाहिये।
    • बंदरगाहों, हवाई अड्डों और माल ढुलाई गलियारों से सीधे संपर्क वाले क्लस्टरों में गति शक्ति के अंतर्गत अधिक मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क विकसित करना चाहिये।
    • क्लस्टर सदस्यों द्वारा साझा परीक्षण प्रयोगशालाओं, डिज़ाइन केंद्रों और अनुसंधान एवं विकास सुविधाओं के लिये सामान्य सुविधा केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र: प्रमुख तकनीकी संस्थानों (IIT/NIT) और उद्योग जगत के अग्रणी संस्थानों के साथ साझेदारी में क्लस्टर-विशिष्ट उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने चाहिये।
    • 3डी प्रिंटिंग और रोबोटिक्स जैसी उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकियों से सुसज्जित साझा प्रोटोटाइपिंग तथा परीक्षण सुविधाएँ बनाई जानी चाहिये।
    • डिज़ाइन, सिमुलेशन और आभासी विनिर्माण क्षमताओं के लिये क्लाउड-आधारित सामान्य प्लेटफॉर्म को लागू करना चाहिये। 
    • क्लस्टरों के भीतर MSME के लिये उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों तक रियायती पहुँच प्रदान करना। 
    • पुणे के ऑटो क्लस्टर विकास एवं अनुसंधान संस्थान की हाल की सफलता इस दृष्टिकोण की प्रभावशीलता को प्रदर्शित करती है।
  • वित्तीय सहायता ढाँचा: सरकार, उद्योग और वित्तीय संस्थानों की भागीदारी से समर्पित क्लस्टर विकास निधि बनाएँ।
    • क्लस्टर MSME के लिये विशेष रूप से डिज़ाइन की गई ऋण गारंटी योजनाओं को लागू करना चाहिये।
    • प्रमुख कंपनियों की ताकत का लाभ उठाते हुए आपूर्ति शृंखला वित्तपोषण कार्यक्रम विकसित करना चाहिये।
    • क्लस्टरों के भीतर इनवॉइस डिस्काउंटिंग और पीयर-टू-पीयर ऋण देने के लिये फिनटेक प्लेटफॉर्म स्थापित करना चाहिये।
  • पर्यावरणीय स्थिरता पहल: आधुनिक प्रौद्योगिकियों के साथ साझा अपशिष्ट उपचार संयंत्र और अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाएँ विकसित करना चाहिये।
    • सौर पार्कों और अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्रों सहित क्लस्टर-व्यापी नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को क्रियान्वित करना चाहिये।
    • संसाधन अनुकूलन और अपशिष्ट न्यूनीकरण के लिये क्लस्टरों के भीतर वृत्ताकार अर्थव्यवस्था नेटवर्क बनाएँ।
    • पर्यावरण के प्रति जागरूक इकाइयों के लिये प्रोत्साहन के साथ हरित रेटिंग प्रणाली स्थापित करनी चाहिये। 
  • बाज़ार संपर्क कार्यक्रम: क्लस्टर सदस्यों को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों से जोड़ने के लिये  डिजिटल बी2बी प्लेटफॉर्म स्थापित करना चाहिये।
    • दस्तावेज़ीकरण और अनुपालन सहायता  प्रदान करने वाले निर्यात सुविधा केंद्र विकसित करना।
    • अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप गुणवत्ता प्रमाणन कार्यक्रम लागू करना चाहिये। सूरत डायमंड बोर्स इसका सफल उदाहरण है।
  • डिजिटल अवसंरचना विकास: औद्योगिक क्लस्टरों में 5G नेटवर्क और IoT अवसंरचना को लागू करना चाहिये। 
    • कुशल प्रबंधन और रखरखाव के लिये क्लस्टर बुनियादी ढाँचे को डिजिटल रूप से सुसंगत बनाएँ
    • आपूर्ति शृंखला पारदर्शिता और पता लगाने योग्यता के लिये ब्लॉकचेन-आधारित प्लेटफॉर्म विकसित करना चाहिये।
  • सामाजिक अवसंरचना समर्थन: क्लस्टरों के निकट आवास, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा सुविधाओं के साथ एकीकृत टाउनशिप विकसित करना चाहिये। 
    • क्लस्टरों को आवासीय क्षेत्रों से जोड़ने के लिये सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क बनाएँ। क्लस्टर क्षेत्रों में मनोरंजक सुविधाएँ और सामाजिक स्थान स्थापित करने चाहिये। 
    • डेकेयर सेंटर और महिलाओं के अनुकूल कार्यस्थल सुविधाएँ लागू करनी चाहिये। इसका सफल उदाहरण श्री सिटी इंडस्ट्रियल क्लस्टर है, जहाँ सामाजिक बुनियादी ढाँचे के विकास से श्रमिकों की संख्या में सुधार हुआ।
      • इसके अतिरिक्त, श्री सिटी प्रबंधन ने न केवल औद्योगिक क्षेत्र का विकास किया, बल्कि उद्योग की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पड़ोसी गाँवों से जनशक्ति को प्रशिक्षित भी किया। 
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग कार्यक्रम: ज्ञान के आदान-प्रदान के लिये सफल अंतर्राष्ट्रीय समूहों के साथ सुदृढ़ व्यवस्था स्थापित करना। 
    • क्लस्टरों के भीतर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार खुफिया प्रकोष्ठों का विकास करना चाहिये। क्लस्टर सदस्यों के बीच वैश्विक सर्वोत्तम अभ्यास साझाकरण कार्यक्रम लागू करना चाहिये। 

निष्कर्ष: 

भारत के औद्योगिक क्लस्टर आर्थिक विकास और नवाचार को गति देने के लिये तैयार हैं। बुनियादी ढाँचे की बाधाओं को दूर करके, वित्त तक पहुँच में सुधार करके, प्रौद्योगिकी अपनाने को बढ़ावा देकर और स्थिरता को प्राथमिकता देकर, भारत विश्व स्तरीय औद्योगिक केंद्र बना सकता है तथा SDG 9 (उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढाँचा) एवं SDG 8 (सभ्य कार्य और आर्थिक विकास) की दिशा में प्रगति कर सकता है। ये क्लस्टर न केवल रोज़गार उत्पन्न करेंगे और निर्यात को बढ़ावा देंगे बल्कि देश के 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य में भी योगदान देंगे।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न: भारत के आर्थिक विकास में औद्योगिक समूहों की भूमिका पर चर्चा कीजिये। उनके विकास में कौन-सी चुनौतियाँ बाधा डालती हैं और सरकार उनकी उत्पादकता, प्रतिस्पर्द्धात्मकता और स्थिरता को बढ़ाने के लिये क्या उपाय कर सकती है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'आठ मूल उद्योगों के सूचकांक (इंडेक्स ऑफ एट कोर इंडस्ट्रीज़)' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (2015)

(a) कोयला उत्पादन
(b) विद्युत् उत्पादन
(c) उर्वरक उत्पादन
(d) इस्पात उत्पादन

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न 1. "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइये। औद्योगिक-नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017)

प्रश्न 2. सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अंतरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अंतरित हो गया है देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014)


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