सौर ऊर्जा और भारत का शुद्ध-शून्य लक्ष्य
यह एडिटोरियल 07/11/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Solar energy can help India achieve net zero’’ लेख पर आधारित है। इसमें चर्चा की गई है कि सौर ऊर्जा शुद्ध-शून्य लक्ष्य की प्राप्ति में किस प्रकार भारत की मदद कर सकती है।
संदर्भ:
विश्व एक ‘सौर क्रांति’ (Solar Revolution) की कगार पर है। सौर ऊर्जा न केवल विश्व का सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध और स्वच्छ ऊर्जा स्रोत है, इसकी व्यापक स्वीकृति के साथ यह अंतर्राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई के क्रियान्वयन के लिये सामान्य ऊर्जा अनिवार्यता भी बन गई है।
कई देश सौर ऊर्जा को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। इस दिशा में अपने अग्रणी प्रयासों के साथ भारत वह वृहतता और वहनीयता प्रदान करता है जो वैश्विक जलवायु कार्रवाई के लिये आवश्यक है। सौर ऊर्जा न केवल विकासशील देशों में ऊर्जा पहुँच और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, बल्कि विकसित देशों में भी ऊर्जा संक्रमण को सुगम बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान कर रही है।
अन्य ऊर्जा प्रौद्योगिकियों पर प्रौद्योगिकीय श्रेष्ठता के बावजूद सौर ऊर्जा को एक प्रमुख चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि वैश्विक फोटोवोल्टिक (PV) विनिर्माण आपूर्ति शृंखला कुछ ही देशों में संकेंद्रित है, जिसके परिणामस्वरूप हाल में कीमतों में वृद्धि की स्थिति बनी क्योंकि मौजूदा सीमित आपूर्ति शृंखलाएँ इसकी पूर्ति में अक्षम थीं।
सौर ऊर्जा भारत में विकास को कैसे सुगम बना सकती है?
- रोज़गार सृजन: सौर क्षेत्र में नए रोज़गार अवसर सृजित करने की अपार संभावनाएँ मौजूद हैं। सौर विनिर्माण प्रतिष्ठान का 1 गीगावाट लगभग 4000 प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोज़गार अवसर उत्पन्न करता है।
- इसके अलावा सौर परिनियोजन, संचालन और रखरखाव इस क्षेत्र में अतिरिक्त आवर्ती रोज़गार का सृजन कर सकते हैं।
- पर्यावरण विकास: भारत की ऊर्जा मांग वृहत रूप से ऊर्जा के गैर-नवीकरणीय स्रोतों द्वारा पूरी की जाती हैं।
- इन जीवाश्म संसाधनों की कमी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता पर बल देती है। सौर ऊर्जा की प्रचुरता भारत की स्वच्छ ऊर्जा मांगों को पूरा कर सकती है।
- ऊर्जा सुरक्षा: एक विकासशील अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत को औद्योगिक विकास और कृषि के लिये पर्याप्त मात्रा में बिजली की आवश्यकता है।
- बिजली उत्पादन में आत्मनिर्भरता एवं न्यूनतम लागत की स्थिति प्राप्त करने और नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने में सौर ऊर्जा एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- सामाजिक विकास: पावर कट और बिजली की अनुपलब्धता की समस्या, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, अनुपयुक्त मानव विकास की ओर ले जाती है।
- सौर ऊर्जा का उपयोग भारत के सबसे दूरस्थ क्षेत्रों में भी सामाजिक विकास को सक्षम बना सकता है।
भारत में सौर ऊर्जा से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ
- आयात पर अत्यधिक निर्भरता: भारत अभी भी सोलर मॉड्यूल के लिये चीन जैसे अन्य देशों पर व्यापक रूप से निर्भर है।
- सौर मूल्य शृंखला में बैकवर्ड एकीकरण का अभाव है क्योंकि भारत के पास सोलर वेफर्स और पॉलीसिलिकॉन के निर्माण की क्षमता मौजूद नहीं है ।
- वर्ष 2021-22 में भारत ने अकेले चीन से ही लगभग 76.62 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के सौर सेल एवं मॉड्यूल आयात किये, जो उस वर्ष भारत के कुल आयात का 78.6% था।
- भूमि की कमी: भूमि-आधारित सौर परियोजनाओं को स्थापित करने के लिये एक विशाल भूक्षेत्र की आवश्यकता होती है। भारत में प्रति व्यक्ति भूमि की उपलब्धता बहुत कम है और भूमि एक दुर्लभ संसाधन है।
- सबस्टेशनों के पास सौर सेल स्थापित करने से भूमि के एक छोटे से क्षेत्र के लिये अन्य भूमि-आधारित आवश्यकताओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा की स्थिति बन सकती है।
- लागत और T&D (Transmission and Distribution) में हानि: सौर ऊर्जा को लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता और अन्य ऊर्जा उत्पादन प्रौद्योगिकियों से प्रतिस्पर्द्धा जैसी स्थितियों का भी सामना करना पड़ रहा है।
- T&D हानि की लागत लगभग 40% है, जो सौर ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से ऊर्जा उत्पादन को अत्यधिक अव्यवहार्य बना देता है।
- सौर अपशिष्ट प्रबंधन नीति का अभाव: महत्त्वाकांक्षी सौर स्थापना लक्ष्यों के बावजूद, भारत के पास अपने सौर अपशिष्ट के प्रबंधन के लिये कोई नीति नहीं है। सौर अपशिष्ट में त्यागे गए सौर पैनल जैसे अपशिष्ट शामिल हैं। अगले दस वर्षों में इसके 4 से 5 गुना बढ़ जाने का अनुमान है।
- स्वीकार्यता संबंधी चिंता: इस तथ्य के बावजूद कि भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन तकनीकों में सुधार किया गया है, इसका अभी तक व्यावसायीकरण नहीं किया गया है।
- स्थलाकृतिक रूप से और जलवायु की दृष्टि से सूर्य की किरणें पूरे वर्ष किसी स्थान विशेष पर समान रूप से उपलब्ध नहीं होती हैं और लोगों (विशेषकर किसानों) को अभी तक इसके लाभों एवं उपयोगों के बारे में शिक्षित नहीं किया गया है।
- निम्न लागत-लाभ अनुपात: स्थापित सौर क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद, देश के बिजली उत्पादन में सौर ऊर्जा का योगदान उसी गति से नहीं बढ़ा है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2019-20 में सौर ऊर्जा ने भारत के कुल 1390 बिलियन यूनिट (BU) बिजली उत्पादन में मात्र6% (50 BU) का योगदान किया।
भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने हेतु संबंधित सरकारी योजनाएँ:
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA)
- राष्ट्रीय सौर मिशन (National Solar Mission)
- किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान ( PM-KUSUM)
- वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (OSOWOG)
आगे की राह
- सौर आत्मनिर्भरता (Solar Self Reliance): भारत को आत्मानिर्भर भारत के विज़न का समर्थन करते हुए एक सुदृढ़ घरेलू सौर ऊर्जा बाज़ार विकसित करने की ज़रूरत है।
- सौर पीवी निर्माण परियोजनाओं के विकास का समर्थन करने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि अपस्ट्रीम अभिकर्त्ताओं का प्रत्यक्ष समर्थन किया जाए। उदाहरण के लिये, उन्हें डिज़ाइन एवं उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (Design and Production Linked Incentives) के माध्यम से सहयोग दिया जा सकता है।
- बायो सोलर सेल (Bio Solar Cells): भारत सूक्ष्मजीवी प्रकाश संश्लेषक एवं श्वसन प्रक्रियाओं से बिजली पैदा कर बायो सोलर सेल के अन्वेषण की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
- ग्लोबल सोलर मैन्युफैक्चरिंग हब: अपनी भौगोलिक स्थिति और संसाधनों की प्रचुरता के कारण भारत ग्लोबल सोलर मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में उभर सकता है।
- सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत के प्रयास अन्य विकासशील देशों के लिये महत्त्वपूर्ण सबक प्रदान करते रहेंगे जो स्वच्छ ऊर्जा की ओर आगे बढ़ने की इच्छा रखते हैं।
- भारतीय नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) 110 सदस्यों और हस्ताक्षरकर्त्ता देशों के साथ इस बदलाव को लाने के लिये प्रयासरत है।
- भविष्य में प्रौद्योगिकी साझाकरण और वित्त भी ISA के महत्त्वपूर्ण पहलू बन सकते हैं, जिससे सौर ऊर्जा क्षेत्र में विभिन्न देशों के बीच सार्थक सहयोग का अवसर प्राप्त होगा।
- सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत के प्रयास अन्य विकासशील देशों के लिये महत्त्वपूर्ण सबक प्रदान करते रहेंगे जो स्वच्छ ऊर्जा की ओर आगे बढ़ने की इच्छा रखते हैं।
- शुद्ध शून्य लक्ष्य को उत्प्रेरण: सोलर मिनी ग्रिड और सामुदायिक रूफटॉप सोलर इंस्टालेशन भारत में सौर रूपांतरण को सक्षम कर सकते हैं। स्थानीयकृत सौर ऊर्जा उस शुद्ध-शून्य भारत की आधारशिला बन सकती है जिसे हम 2070 में प्राप्त करने का लक्ष्य रखते हैं।
- T&D हानि को कम करना: भारत T&D हानि को कम करने हेतु अभिनव समाधान खोजने के लिये अनुसंधान केंद्रों की स्थापना और वित्तपोषण के माध्यम से अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों को प्रोत्साहित कर सकता है। यह सौर ऊर्जा क्षेत्र के खिलाड़ियों को कुछ राहत प्रदान करेगा।
- इसके साथ ही, T&D हानि को कम करने के लिये सबस्टेशनों एवं T&D लाइनों के उन्नयन हेतु भारत विश्व के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग स्थापित कर सकता है।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘स्थापित सौर क्षमता में महत्त्वपूर्ण वृद्धि के बावजूद, देश के बिजली उत्पादन में सौर ऊर्जा का योगदान उसी गति से नहीं बढ़ा है। चर्चा कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्सप्र. भारत में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएंँ हैं, हालांँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएंँ हैं। चर्चा कीजिये। (2020) |