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एडिटोरियल

  • 07 Nov, 2022
  • 11 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

वैश्विक ऊर्जा इक्विटी

संदर्भ

पिछले वर्ष ग्लासगो में आयोजित जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) के क्रम में कई विकसित देशों ने वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन (Net-Zero Emissions) का लक्ष्य प्राप्त करने की अपनी मंशा की घोषणा की थी। यद्यपि ये घोषणाएँ ‘1.5 डिग्री सेल्सियस को बनाए रखने’ की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं थीं।

  • वैश्विक कार्बन बजट का 4/5 हिस्सा पहले ही उपयोग किया जा चुका है। विकसित देश वैश्विक CO2 उत्सर्जन के आधे से अधिक भाग के लिये ज़िम्मेदार हैं। लेकिन वैश्विक ऊर्जा निर्धनता (global energy poverty) विकासशील देशों में संकेंद्रित है।
  • इसके अतिरिक्त, 20 सबसे गरीब देशों की तुलना में 20 सबसे अमीर देशों का औसत प्रति व्यक्ति ऊर्जा उपयोग 85 गुना अधिक है।
  • इस पृष्ठभूमि में, COP27 ऊर्जा तक पहुँच से संबंधित चिंताओं को चिह्नित करने और उनका समाधान करने तथा ऊर्जा असमानता पर अंकुश रखने के दृष्टिकोण से एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।

ऊर्जा निर्धनता क्या है?

  • विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum- WEF) के अनुसार ऊर्जा निर्धनता (Energy Poverty) सतत्/संवहनीय आधुनिक ऊर्जा सेवाओं तक पहुँच की कमी की स्थिति है।
    • यह उन सभी परिस्थितियों में पाया जा सकता है जहाँ विकास का समर्थन कर सकने के लिये पर्याप्त, सस्ती, विश्वसनीय, गुणवत्तापूर्ण, सुरक्षित और पर्यावरण की दृष्टि से उपयुक्त ऊर्जा सेवाओं की कमी है।
  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency- IEA) का अनुमान है कि दुनिया भर में लगभग 2 बिलियन लोग ऊर्जा निर्धनता का सामना कर रहे हैं।

ऊर्जा असमानता का वैश्विक व्यवस्था से संबंधित:

  • ऊर्जा असमानता (Energy Inequality) वैश्विक दक्षिण (Global South) पर असंगत रूप से अधिक बोझ रखती है।
  • वैश्विक दक्षिण के ऊर्जा आयातक देशों के गरीब और कमज़ोर समुदाय इससे सबसे अधिक पीड़ित हैं।
    • एशिया और अफ्रीका के लगभग 90 मिलियन लोग, जिन्हें हाल ही में बिजली की सुविधा प्राप्त हुई, अपने ऊर्जा बिलों का भुगतान कर सकने में असमर्थ हैं।
    • वैश्विक असमानता की वास्तविकता कोविड-19 महामारी के दौरान स्पष्ट रूप से उजागर हुई। उत्तर-कोविड अवधि में अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के कई देश गंभीर कृषि एवं औद्योगिक मंदी का सामना कर रहे हैं।
  • एक ऐसे समय जब ऊर्जा निर्धनता और ऊर्जा सुरक्षा का विषय एक बार फिर वैश्विक उत्तर (Global North) की चर्चाओं में प्रवेश कर रहा है, यह उपयुक्त समय है कि दुनिया के कुछ सबसे गरीब क्षेत्रों को वैश्विक उत्तर द्वारा जीवाश्म ईंधन के उपयोग एवं उनके आयात पर दी जाती सलाह में निहित पाखंड को संबोधित किया जाए।

वैश्विक उत्तर का ऊर्जा पाखंड

  • डीकार्बोनाइज़ेशन के लिये प्रतिबद्धता: मानवजनित ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को स्वीकार करने और जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) में जलवायु परिवर्तन शमन हेतु प्रतिबद्धता जताने के 30 वर्षों बाद की वस्तुस्थिति यह है कि वैश्विक उत्तर में डीकार्बोनाइजेशन का स्तर अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है।
    • अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में ही प्राथमिक ऊर्जा का 81% जीवाश्म ईंधन से प्राप्त किया जाता है।
    • इसके अतिरिक्त, वर्ष 2022 में अमेरिका और यूरोपीय संघ देशों में कोयले की खपत में भी क्रमशः 3% और 7% की वृद्धि होने का अनुमान किया गया है।
  • यूरोप के आरोप: वर्तमान वैश्विक व्यवस्था के एक भाग के रूप में, यूरोप ने भारत पर रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस से तेल प्राप्त करने के नाम पर युद्ध का वित्तपोषण (‘funding war’) का आरोप लगाया है।
    • यूरोप की ऊर्जा खपत: यूरोप में जीवाश्म ईंधन ऊर्जा खपत में 76% (कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस का योगदान क्रमशः 11%, 31% और 34%) की हिस्सेदारी रखता है।
    • यूरोप के आरोप की प्रतिक्रिया में भारत सरकार ने निम्नलिखित तरीके से जवाब दिया:
      • यदि यूरोपीय देश ऊर्जा सौदों को इस तरह से प्रबंधित करते हैं जो उनकी अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के अनुरूप होता है तो यह स्वतंत्रता या विकल्प अन्य देशों के लिये भी मौजूद हो।
      • भारत वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों में तीव्र अस्थिरता के बीच अपने नागरिकों के लिये सबसे अच्छा सौदा पाने हेतु कार्यरत है और ‘‘इसका कोई राजनीतिक अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिये।’’ 

भारत की ऊर्जा सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ

  • आयात पर अत्यधिक निर्भरता: आयातित तेल पर अपनी बढ़ती निर्भरता के साथ भारत की ऊर्जा सुरक्षा गंभीर दबाव की शिकार है और वर्तमान में अवरुद्ध वैश्विक आपूर्ति शृंखला इस समस्या को और गंभीर बना रही है।
  • विलंबित घरेलू उत्पादन: कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस भारत में ऊर्जा के सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। अपर्याप्त घरेलू आपूर्ति का एक प्रमुख कारण नियामक और पर्यावरण मंज़ूरी से संबंधित देरी है (जिससे कोयले का खनन सबसे अधिक प्रभावित होता है)।
  • वहनीयता संबंधी चिंता: तेल के लिये उच्च सब्सिडी के दावों के बावजूद भारत पेट्रोल की वहनीयता के मामले में निम्न रैंकिंग रखता है।
    • पेट्रोलियम उत्पादों के उच्च मूल्य प्रत्यक्ष रूप से उच्च खुदरा मुद्रास्फीति में योगदान करते हैं।
      • डीजल मूल्य भारत में माल ढुलाई लागत में 60-70% हिस्सेदारी रखते हैं। माल ढुलाई की उच्च लागत हर क्षेत्र में उत्पादों के मूल्य वृद्धि में योगदान करती है।

आगे की राह

  • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर ध्यान केंद्रित करना: नवीकरणीय स्रोतों से उत्पन्न ऊर्जा स्वच्छ, हरित और अधिक संवहनीय है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ निम्न-कार्बन विकास रणनीतियों में योगदान देने के अलावा भारतीय कार्यबल के लिये रोज़गार के अवसर पैदा कर सकती हैं।
  • ऊर्जा जागरूकता: हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने वाले ऊर्जा अभियान आयोजित करना और न्यूनतम संभव स्तर पर कुशल ऊर्जा खपत के बारे में जागरूकता बढ़ाना बेहद आवश्यक है।
  • लक्ष्यों को कार्यान्वयन योग्य कार्रवाई में बदलना: शून्य भूख, शून्य कुपोषण, शून्य गरीबी और सार्वभौमिक कल्याण जैसे सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये ऊर्जा सुरक्षा अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगी।
    • ऊर्जा संवहनीयता को उपयुक्त प्रकार से कार्यान्वित करने के लिये ऊर्जा संसाधनों के प्रभावी उपयोग हेतु प्रौद्योगिकी विकल्पों पर विचार किया जाना चाहिये।
    • इसके साथ ही, नीतियों के सही मायने में क्रियान्वयन की निगरानी के लिये स्थानीय स्तर पर एक निगरानी तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • वैश्विक ऊर्जा समानता की ओर: COP27 में सभी चर्चाओं के केंद्र में ऊर्जा पहुँच में असमानता के प्रश्न को गंभीरता से उठाया जाना चाहिये। COP27 का थीम/स्ट्रैपलाइन- ‘कार्यान्वयन के लिये एक साथ’ (Together for Implementation) विभिन्न देशों की संबंधित क्षमताओं के अनुरूप बोझ साझा करने और अलग-अलग लेकिन महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों के साथ मिलकर कार्य करने का सुझाव देती है।
    • इसके साथ ही, ऊर्जा समता की दिशा में आगे बढ़ने के लिये न्यायसंगत ऊर्जा संक्रमण, ऊर्जा पहुँच और ऊर्जा न्याय पर समर्पित एक वैश्विक अंतर सरकारी संगठन की स्थापना की जानी चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: अवरुद्ध वैश्विक आपूर्ति शृंखला के आलोक में वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा में व्याप्त प्रमुख अंतरालों की चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

  1. प्रश्न: भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा/से कथन सही है/हैं? (2015)
  2. यह एक सार्वजानिक लिमिटेड सरकारी कंपनी है।
  3. यह एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(A) केवल 1
(B) केवल 2
(C) 1 और 2 दोनों
(D) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (C)


मेन्स:

प्रश्न. "सतत् विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने के लिये सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुंँच अनिवार्य है।" इस संबंध में भारत में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018)


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