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एडिटोरियल

  • 06 Sep, 2024
  • 28 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की इथेनॉल क्रांति: ऊर्जा और कृषि

यह एडिटोरियल 04/09/2024 को “Ethanol push turns India into corn importer, shaking up global market” लेख पर आधारित है। इसमें भारत द्वारा मक्का आधारित इथेनॉल उत्पादन को प्रोत्साहन देने के कारण देश के एक प्रमुख मक्का निर्यातक से शुद्ध आयातक बनने की ओर अग्रसर होने की चर्चा की गई है, जिससे मक्का की घरेलू कमी और विभिन्न क्षेत्रों पर प्रभाव के साथ ही वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में भी बदलाव आ रहा है।

प्रिलिम्स के लिये:

इथेनॉल, इथेनॉल सम्मिश्रण, भारत का तेल आयात, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, गोबर-धन योजना, तीसरी पीढ़ी (3G) इथेनॉल, फ्लेक्स-फ्यूल वाहन। 

मेन्स के लिये:

भारत के लिये इथेनॉल उत्पादन का महत्त्व, इथेनॉल उत्पादन से संबंधित प्रमुख मुद्दे।

भारत द्वारा गैसोलीन में इथेनॉल सम्मिश्रण या ‘ब्लेंडिंग’ के महत्त्वाकांक्षी प्रयास ने इसके कृषि परिदृश्य और वैश्विक व्यापार स्थिति में अप्रत्याशित बदलाव को प्रेरित किया है। कभी एशिया का शीर्ष मक्का निर्यातक रहा भारत अब कई दशकों के बाद पहली बार शुद्ध आयातक बन गया है। सरकार द्वारा मक्का आधारित इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने का निर्णय इसका प्रमुख कारण है। कार्बन उत्सर्जन को कम करने और घरेलू उपभोग के लिये पर्याप्त मात्रा में चीनी आपूर्ति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लाए गए इस नीतिगत बदलाव ने मक्का की गंभीर कमी पैदा कर दी है, जिससे देश को वर्ष 2024 में रिकॉर्ड 1 मिलियन टन मक्का आयात करने के लिये  (मुख्यतः म्याँमार और यूक्रेन से) बाध्य होना पड़ा।

इस बदलाव के प्रभाव कई क्षेत्रों में देखे जा रहे हैं। जबकि यह कदम भारत के जलवायु लक्ष्यों का समर्थन करता है और इथेनॉल के लिये गन्ने पर निर्भरता को कम करने पर लक्षित है, इसने अनजाने में ही स्थानीय पोल्ट्री उत्पादकों और स्टार्च निर्माताओं की परेशानी बढ़ा दी है जो अब बढ़ते चारा या फीड लागत से जूझ रहे हैं। भारत में मक्का की कीमतें वैश्विक बेंचमार्क से कहीं अधिक बढ़ गई हैं, जिससे उद्योग संघों द्वारा न केवल शुल्क मुक्त मक्का आयात की बल्कि आनुवंशिक रूप से संशोधित मक्का पर लगे प्रतिबंध पर भी पुनर्विचार की मांग की गई है। जिस तरह भारत मक्का का स्थायी शुद्ध आयातक बनने की ओर अग्रसर है, यह बदलाव न केवल घरेलू कृषि प्राथमिकताओं को नया रूप दे रहा है, बल्कि वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को भी प्रभावित कर रहा है। इसके साथ ही पारंपरिक निर्यात बाज़ार अब अपनी मक्का की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दक्षिण अमेरिका और संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर रुख कर रहे हैं।

इथेनॉल (Ethanol) क्या है?

  • परिचय: इथेनॉल एक रंगहीन, ज्वलनशील द्रवीय कार्बनिक यौगिक है जिसका रासायनिक सूत्र C₂H₅OH है।
    • यह प्राथमिक रूप से एक अल्कोहल है जो खमीर द्वारा शर्करा के किण्वन से प्राकृतिक रूप से निर्मित होता है तथा इसका औद्योगिक उत्पादन भी किया जाता है।
    • इथेनॉल एक वाष्पशील, रंगहीन और ज्वलनशील तरल है जिसमें अल्कोहल जैसी गंध होती है।
  • इथेनॉल का उत्पादन
    • किण्वन (Fermentation): खमीर या यीस्ट अनाज, फल या अन्य स्रोतों से प्राप्त शर्करा (sugar) को किण्वन कि प्रक्रिया के माध्यम से इथेनॉल और कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित करता है।
    • आसवन (Distillation): किण्वित मिश्रण को गर्म किया जाता है और इथेनॉल वाष्प को अन्य घटकों से अलग किया जाता है।
      • इथेनॉल वाष्प को संघनित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप इथेनॉल की उच्च सांद्रता प्राप्त होती है।
    • निर्जलीकरण (Dehydration): निर्जल इथेनॉल (1% से कम जल की मात्रा वाला इथेनॉल) का उत्पादन करने के लिये प्रायः निर्जलीकरण प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है।
  • प्रमुख इथेनॉल सम्मिश्रण
    • E10: इसमें 10% इथेनॉल और 90% गैसोलीन होता है।
    • E20: इसमें 20% इथेनॉल और 80% गैसोलीन होता है।
    • फ्लेक्स-फ्यूल वाहन (Flex Fuel Vehicles): ऐसे वाहन जो E85 सहित विभिन्न इथेनॉल-गैसोलीन मिश्रणों से परिचालन के लिये डिज़ाइन किये गए हैं। 

भारत के लिये इथेनॉल उत्पादन का क्या महत्व है?

  • ऊर्जा सुरक्षा और आयात में कमी: इथेनॉल उत्पादन के लिये भारत का प्रयास तेल आयात पर अपनी भारी निर्भरता को कम करने की दिशा में लिया गया एक रणनीतिक कदम है।
    • भारत का लक्ष्य पेट्रोल के साथ इथेनॉल के सम्मिश्रण के माध्यम से अपने तेल आयात बिल में कटौती करना है, जो वर्ष 2023-24 में 96.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर चालू वित्त वर्ष में 101-104 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है।
    • सरकार द्वारा वर्ष 2025-26 तक 20% इथेनॉल सम्मिश्रण का लक्ष्य संभावित रूप से देश के लिये प्रतिवर्ष 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की विदेशी मुद्रा की बचत कर सकता है।
      • यह बदलाव न केवल ऊर्जा सुरक्षा में सुधार करेगा, बल्कि अस्थिर वैश्विक तेल कीमतों के विरुद्ध सुरक्षा भी प्रदान करेगा, जिससे भारत की आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा।
  • कृषि विविधीकरण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: इथेनॉल उत्पादन भारत के कृषि क्षेत्र में विविधता लाने और ग्रामीण आय को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।
    • गन्ने के साथ-साथ मक्का आधारित इथेनॉल को बढ़ावा देने के लिये हाल ही में नीतिगत बदलाव ने किसानों के लिये एक नया बाज़ार तैयार किया है।
    • वर्ष 2024 में 1.35 बिलियन लीटर इथेनॉल का उत्पादन करने के लिये लगभग 3.5 मिलियन टन मक्का का उपयोग किया जाएगा जो कि वर्ष 2023 से चार गुना अधिक है।
    • यह विविधीकरण न केवल किसानों के लिये वैकल्पिक आय स्रोत उपलब्ध कराता है, बल्कि फसल अधिशेष का प्रबंधन करने, कृषि उत्पादों की कीमतों को स्थिर करने तथा कृषि आय में सुधार करने में भी मदद करता है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव और जलवायु परिवर्तन शमन: इथेनॉल सम्मिश्रण ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की भारत की रणनीति का एक प्रमुख घटक है।
    • E20 (पेट्रोल में 20% इथेनॉल सम्मिश्रण) पर किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि E0 की तुलना में E20 के उपयोग से दो पहिया वाहनों में कार्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जन में लगभग 50% और चार पहिया वाहनों में लगभग 30% की गिरावट दर्ज की गई।
  • प्रौद्योगिकीय नवाचार और औद्योगिक विकास: इथेनॉल उत्पादन अभियान भारत के जैव ईंधन क्षेत्र में प्रौद्योगिकीय नवाचार को बढ़ावा दे रहा है।
    • कंपनियाँ उन्नत जैव ईंधन प्रौद्योगिकियों में निवेश कर रही हैं, जिनमें कृषि अवशेषों से द्वितीय पीढ़ी (2G) के इथेनॉल का उत्पादन करना भी शामिल है।
    • पानीपत में 100 किलोलीटर प्रतिदिन की क्षमता वाला देश का पहला 2G इथेनॉल संयंत्र स्थापित किया गया है।
    • यह प्रयास न केवल एक नए औद्योगिक क्षेत्र का सृजन करता है, बल्कि जैव प्रौद्योगिकी और रासायनिक इंजीनियरिंग में अनुसंधान एवं विकास (R&D) को भी बढ़ावा देता है, जिससे भारत संवहनीय ईंधन प्रौद्योगिकियों में अग्रणी देश बन सकता है।
  • भू-राजनीतिक लाभ और वैश्विक स्थिति: भारत के इथेनॉल कार्यक्रम के महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक निहितार्थ हैं।
    • भारत अपना तेल आयात कम कर वैश्विक तेल राजनीति के प्रति अपनी भेद्यता या संवेदनशीलता को संभावित रूप से कम कर सकता है। इसके अतिरिक्त, विश्व के सबसे बड़े इथेनॉल उत्पादकों में से एक के रूप में भारत स्वयं को वैश्विक जैव ईंधन बाज़ार में एक अग्रणी देश के रूप में स्थापित कर रहा है।
    • इसके साथ ही, इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (ethanol blending program) द्वारा वर्ष 2022-23 में 24,300 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा बचत दर्ज की गई।
    • यह न केवल भारत की व्यापारिक स्थिति को बेहतर बनाता है बल्कि सतत विकास में वैश्विक नेतृत्व की इसकी आकांक्षाओं के अनुरूप भी है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन और चक्रीय अर्थव्यवस्था: इथेनॉल उत्पादन भारत की अपशिष्ट प्रबंधन रणनीति और चक्रीय अर्थव्यवस्था पहलों का एक महत्वपूर्ण घटक बनता जा रहा है।
    • इथेनॉल उत्पादन के लिये कृषि अवशेषों और खाद्य अपशिष्ट का उपयोग, पराली जलाने की गंभीर समस्या (विशेष रूप से उत्तरी भारत में) का समाधान प्रदान करता है।
    • सरकार की गोबर-धन योजना (GOBAR-DHAN scheme), जिसका उद्देश्य जैव-निम्नीकरणीय अपशिष्ट को बायोगैस एवं इथेनॉल में परिवर्तित करना है, इसी दृष्टिकोण का एक उदाहरण है।

इथेनॉल उत्पादन से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं ?

  • मक्का की ‘पहेली’: भारत द्वारा मक्का आधारित इथेनॉल उत्पादन की ओर कदम बढ़ाने से मक्का व्यापार की गतिशीलता में नाटकीय परिवर्तन आया है।
    • कभी एशिया का शीर्ष मक्का निर्यातक रहा भारत अब वर्ष 2024 में रिकॉर्ड 1 मिलियन टन मक्का आयात के लिये तैयार है।
    • इस व्युत्क्रमण के कारण घरेलू मक्का की कीमतें वैश्विक बेंचमार्क से ऊपर पहुँच गई हैं, जिससे पोल्ट्री और स्टार्च उद्योग पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2024 में भारत का मक्का निर्यात अपने सामान्य 2-4 मिलियन टन के स्तर से घटकर 450,000 टन रह जाने की उम्मीद है।
    • यह बदलाव न केवल घरेलू उद्योगों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों के साथ स्थापित व्यापार संबंधों को भी बाधित कर रहा है, जहाँ उन्हें वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता की तलाश के लिये बाध्य होना पड़ रहा है।
  • ‘खाद्य बनाम ईंधन’ की बहस: मक्का और गन्ना जैसी खाद्य फसलों को इथेनॉल उत्पादन के लिये उपयोग में लाए जाने से ‘खाद्य बनाम ईंधन’ (Food vs. Fuel) की बहस फिर से शुरू हो गई है।
    • अब चूँकि इथेनॉल डिस्टिलरीज़ या संयंत्र भी मक्का की आपूर्ति के लिये प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं, मक्का के पारंपरिक उपयोगकर्ताओं के लिये इसकी उपलब्धता 5 मिलियन टन तक कम हो सकती है।
    • यह प्रतिस्पर्द्धा खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ा रही है और खाद्य सुरक्षा के लिये खतरा पैदा कर रही है।
    • उदाहरण के लिये, ब्रॉयलर मुर्गियों की फार्म-गेट कीमत लगभग 75 रुपए तक बढ़ गई है, जबकि उत्पादन लागत बढ़कर 90 रुपए तक पहुँच गई है, जिससे पोल्ट्री किसान को घाटे का सामना करना पड़ रहा है।
    • यह परिदृश्य आज भी कुपोषण से जूझते देश में खाद्य की जगह ईंधन को प्राथमिकता देने के दृष्टिकोण पर गंभीर प्रश्न उठाता है।
  • जल संकट: इथेनॉल उत्पादन, विशेष रूप से गन्ने जैसी अधिक जल-गहन फसलों से, भारत में जल संकट को बढ़ावा दे रहा है।
    • भारत की कृषि भूमि के केवल 3% भाग को दायरे में लेने वाली गन्ना की खेती कुछ राज्यों में सिंचाई जल के लगभग 70% भाग का उपभोग करती है।
      • इथेनॉल उत्पादन में वृद्धि पर बल से पहले से ही जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों में जल संसाधनों पर और अधिक दबाव पड़ सकता है।
    • उदाहरण के लिये, प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य महाराष्ट्र को हाल के वर्षों में गंभीर सूखे का सामना करना पड़ा, जहाँ वर्ष 2018 में 20,000 से अधिक गाँवों को पानी के टैंकरों की आवश्यकता पड़ी। इथेनॉल के लिये गन्ने की खेती का निरंतर विस्तार इस स्थिति को और गंभीर कर सकता है।
  • हरित ईंधन होने पर संदेह: यद्यपि इथेनॉल को स्वच्छ ईंधन के रूप में प्रचारित किया जाता है, लेकिन इसकी उत्पादन प्रक्रिया पर्यावरण संबंधी चिंताएँ उत्पन्न करती है।
    • गन्ना और मक्का की खेती में उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मृदा क्षरण और जल प्रदूषण होता है।
      • इसके अलावा, फसलों को इथेनॉल में परिवर्तित करने की प्रक्रिया ऊर्जा-गहन है, जिससे संभावित रूप से उन उत्सर्जन लाभों में कमी आ सकती है जिसकी उम्मीद की गई थी। 
    • इंस्टिट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंसियल एनालिसिस (IEEFA) के एक अध्ययन से पता चलता है कि भूमि उपयोग परिवर्तन और उत्पादन उत्सर्जन के दृष्टिकोण से देखा जाए तो मक्का इथेनॉल का जीवन चक्र उत्सर्जन गैसोलीन की तुलना में 24% अधिक हो सकता है।
  • आर्थिक प्रभाव: इथेनॉल के उपयोग में वृद्धि से विभिन्न उद्योगों में महत्वपूर्ण व्यवधान उत्पन्न हो रहे हैं।
    • पोल्ट्री क्षेत्र, जो चारे या फीड के लिये मुख्यतः मक्का पर निर्भर है, भारी लागतों के कारण संकट का सामना कर रहा है।
    • ऑल इंडिया पोल्ट्री ब्रीडर्स एसोसिएशन ने परिदृश्य में सुधार के लिये 50 लाख टन शुल्क-मुक्त मक्का के आयात की मांग की है।
    • इसी प्रकार, मक्का के एक अन्य प्रमुख उपभोक्ता के रूप में स्टार्च उद्योग आपूर्ति की कमी और मूल्य वृद्धि की समस्या से जूझ रहा है।
      • इस आर्थिक पुनर्संरचना के कारण रोज़गार हानि और संभावित खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति की स्थिति बन रही है जिससे व्यापक अर्थव्यवस्था पर असर पड़ रहा है।
  • ‘पॉलिसी पैचवर्क’ (Policy Patchwork): इथेनॉल उत्पादन के लिये तीव्र प्रयास के कारण नीतियों में ‘पैचवर्क’ की स्थिति बन गई है, जो कभी-कभी अन्य कृषि और पर्यावरणीय लक्ष्यों के साथ टकराव पैदा करती है।
    • उदाहरण के लिये, सूखे की स्थिति के बाद ईंधन के लिये गन्ने के उपयोग पर अचानक आरोपित प्रतिबंध से भ्रम की स्थिति बनी और आपूर्ति शृंखला में व्यवधान उत्पन्न हुआ।
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) मक्का पर प्रतिबंध से आयात के विकल्प गंभीर रूप से सीमित हो गए हैं, जिससे आपूर्ति की कमी और बढ़ गई है।
    • ये नीतिगत असंगतियाँ एक अनिश्चित विनियामक वातावरण का निर्माण करती हैं, जिससे इस क्षेत्र में दीर्घकालिक निवेश और सतत विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • अवसंरचना की अपर्याप्तता: भारत के महत्त्वाकांक्षी इथेनॉल सम्मिश्रण लक्ष्यों की गति ने आवश्यक अवसंरचना के विकास की गति को पीछे छोड़ दिया है।
    • देश में बढ़ते इथेनॉल उत्पादन एवं वितरण को संभालने के लिये पर्याप्त सम्मिश्रण सुविधाओं, भंडारण क्षमताओं और परिवहन नेटवर्क का अभाव है।
    • अवसंरचना में यह अंतराल अकुशलता, बढ़ी हुई लागत और संभावित आपूर्ति व्यवधानों को जन्म दे सकता है, जिससे वर्ष 2025-26 तक 20% सम्मिश्रण लक्ष्य को पूरा करने की व्यवहार्यता चुनौतीपूर्ण बन सकती है।

इथेनॉल उत्पादन को अधिक संवहनीय और आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

  • फीडस्टॉक का विविधिकरण: भारत को खाद्य फसलों पर दबाव को कम करने के लिये इथेनॉल उत्पादन हेतु वैकल्पिक फीडस्टॉक के उपयोग को तत्परता से बढ़ावा देना चाहिए।
    • इसमें कृषि अवशेषों से द्वितीय पीढ़ी (2G) इथेनॉल उत्पादन और शैवाल से तृतीय पीढ़ी (3G) इथेनॉल उत्पादन को बढ़ाना शामिल है।
    • सरकार 2G और 3G इथेनॉल उत्पादन के लिये लक्ष्य निर्धारित कर सकती है तथा इन प्रौद्योगिकियों में निजी क्षेत्र के निवेश हेतु प्रोत्साहन प्रदान कर सकती है।
  • अधिकतम उपज न्यूनतम प्रभाव: परिशुद्ध कृषि तकनीकों को लागू करने से इथेनॉल फीडस्टॉक खेती की संवहनीयता में व्यापक सुधार हो सकता है।
    • इसमें जल उपयोग, उर्वरक अनुप्रयोग एवं कीट नियंत्रण को इष्टतम करने के लिये IoT सेंसर, ड्रोन और AI-संचालित एनालिटिक्स का उपयोग करना शामिल है।
    • उदाहरण के लिये, महाराष्ट्र सरकार द्वारा गन्ने की खेती में परिशुद्ध खेती हेतु ड्रोन का उपयोग करने की परियोजना से 25% तक जल की बचत हुई है।
  • ऐसी पहलों को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने से इथेनॉल उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभाव में नाटकीय रूप से कमी आ सकती है, साथ ही पैदावार में भी सुधार हो सकता है।
    • जल-कुशल नीतियाँ (Water-Smart Policies): इथेनॉल उत्पादन में सख्त जल प्रबंधन नीतियों को लागू करना अत्यंत आवश्यक है।
    • इसमें इथेनॉल डिस्टिलरीज़ में जल पुनर्चक्रण को अनिवार्य बनाना, गन्ने की खेती में ड्रिप सिंचाई को बढ़ावा देना और इथेनॉल उत्पादन के लिये जल-कुशल फसलों को प्रोत्साहित करना शामिल हो सकता है।
    • ड्रिप सिंचाई प्रणाली स्थापित करने में सहायक सिद्ध हुई मध्यप्रदेश की ‘कपिलधारा' योजना की सफलता को अन्य राज्यों में भी दोहराया जा सकता है।
  • फ्लेक्स-फ्यूल वाहनों को बढ़ावा: फ्लेक्स-फ्यूल वाहनों (FFVs) के अंगीकरण में तेज़ी लाकर इथेनॉल की स्थिर, दीर्घकालिक मांग पैदा की जा सकती है।
    • सरकार यह अनिवार्य करने पर विचार कर सकती है कि लक्ष्य वर्ष के बाद बिक्री किये जाने वाले सभी नए वाहन फ्लेक्स-फ्यूल अनुकूल हों।
    • ब्राज़ील का सफल FFV कार्यक्रम, जहाँ बिक्री की गईं 80% से अधिक नई कारें फ्लेक्स-फ्यूल हैं, एक मॉडल के रूप में कार्य कर सकता है।
  • इस बदलाव से न केवल इथेनॉल की मांग में स्थिरता सुनिश्चित होगी, बल्कि उपभोक्ताओं को ईंधन के विकल्प में लचीलापन भी प्राप्त होगा, जिससे इथेनॉल की कीमतें स्थिर हो सकती हैं।
    • क्षेत्रीय स्तर पर इथेनॉल उत्पादन: इथेनॉल उत्पादन के लिये क्षेत्रीय दृष्टिकोण को लागू करने से संसाधनों का उपयोग इष्टतम हो सकता है और परिवहन लागत भी कम की जा सकती है।
    • इसमें फीडस्टॉक्स के लिये आदर्श पारिस्थितिक क्षेत्र की पहचान करना और स्थानीयकृत उत्पादन एवं उपभोग को प्रोत्साहित करना शामिल है।
    • उदाहरण के लिये, महाराष्ट्र और कर्नाटक के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में ज्वार आधारित इथेनॉल को बढ़ावा देना, जबकि पंजाब और हरियाणा में चावल अवशेष आधारित इथेनॉल पर ध्यान केंद्रित करना।
  • एकीकृत बायो-रिफाइनरी परिसर: एकीकृत बायो-रिफाइनरी परिसरों (biorefinery complexes) के विकास से इथेनॉल उत्पादन की आर्थिक एवं पर्यावरणीय व्यवहार्यता में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
    • ये परिसर इथेनॉल उत्पादन को अन्य मूल्यवर्द्धित प्रक्रियाओं, जैसे बायोगैस उत्पादन, बायोप्लास्टिक्स विनिर्माण और औद्योगिक उपयोग के लिये CO2 संग्रह के साथ संयुक्त कर सकेंगे।
    • महाराष्ट्र में गोदावरी बायोरिफाइनरीज़ इस मॉडल का उदाहरण है, जो विशिष्ट रसायनों और बिजली के साथ-साथ इथेनॉल का उत्पादन करती है।
  • स्मार्ट ब्लेंडिंग अवसंरचना: उच्चतर सम्मिश्रण लक्ष्यों को कुशलतापूर्वक प्राप्त करने के लिये स्मार्ट ब्लेंडिंग अवसंरचना (Smart Blending Infrastructure) में निवेश करना महत्वपूर्ण है।
    • इसमें ईंधन डिपो पर स्वचालित सम्मिश्रण प्रणालियों की तैनाती और उत्पादन से लेकर खुदरा बिक्री तक इथेनॉल की ब्लॉकचेन-आधारित ट्रैकिंग को लागू करना शामिल है।
  • फीडस्टॉक्स के लिये फसल बीमा: इथेनॉल फीडस्टॉक्स के लिये विशेष फसल बीमा योजनाएँ शुरू करने से किसानों को इन फसलों की ओर आगे बढ़ने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है।
    • इसमें गन्ना, ज्वार और अन्य इथेनॉल फीडस्टॉक्स के लिये तैयार किये गए मौसम-सूचकांक आधारित बीमा उत्पाद शामिल हो सकते हैं ।
    • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की सफलता का उपयोग विशेष रूप से इथेनॉल फसलों के लिये एक उप-योजना की अभिकल्पना के लिये किया जा सकता है।
  • डिस्टिलरीज़ में चक्रीय अर्थव्यवस्था: इथेनॉल आसवनशालाओं या डिस्टिलरीज़ में चक्रीय अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण को बढ़ावा देने से उनकी संवहनीयता में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
    • इसमें डिस्टिलरी अपशिष्ट को बायोगैस उत्पादन के लिये निर्दिष्ट करना, उत्पन्न गाढ़े मिश्रण (slurry) को जैविक उर्वरक के रूप में प्रयोग करना तथा औद्योगिक उपयोग के लिये CO2 को संग्रहित करना शामिल है।
    • डालमिया भारत शुगर एंड इंडस्ट्रीज का ज़ीरो लिक्विड डिस्चार्ज प्लांट इसके लिये एक उत्कृष्ट मॉडल है, जो अपने सभी अपशिष्टों को मूल्यवान उत्पादों में रूपांतरित करता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत की इथेनॉल उत्पादन नीति के इसके कृषि क्षेत्र, घरेलू अर्थव्यवस्था और वैश्विक व्यापार पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन कीजिये। इस नीतिगत बदलाव से संबद्ध चुनौतियों एवं लाभों का विश्लेषण कीजिये और इथेनॉल उत्पादन की संवहनीयता एवं दक्षता बढ़ाने के लिये रणनीतियाँ प्रस्तावित कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत की जैव ईंधन की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किनका उपयोग कच्चे माल के रूप में हो सकता है? (2020) 

  1. कसावा  
  2. क्षतिग्रस्त गेहूँ के दाने  
  3. मूँगफली के बीज  
  4. कुलथी (Horse Gram)  
  5. सड़ा आलू 
  6. चुकंदर 

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 5 और 6
(b) केवल 1, 3, 4 और 6
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (a)


प्रश्न: चार ऊर्जा फसलों के नाम नीचे दिये गए हैं। उनमें से किसकी खेती इथेनॉल के लिये की जा सकती है? (वर्ष 2010)

 (A) जटरोफा
 (B) मक्का
 (C) पोंगामिया
 (D) सूरजमुखी

 उत्तर: (B)


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