अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ताइवान पर अमेरिका-चीन में संघर्ष
यह एडिटोरियल 03/08/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Why US-China tensions may lead to strategic instability” लेख पर आधारित है। इसमें अमेरिकी स्पीकर नैन्सी पेलोसी द्वारा हाल में ताइवान की यात्रा और संबंधित अमेरिका-चीन मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
अमेरिकी स्पीकर नैन्सी पेलोसी की हाल की ताइवान यात्रा को चीन ने पसंद नहीं किया है। इसने दो शक्तिशाली देशों- चीन और अमेरिका के बीच तीव्र तनाव पैदा कर दिया है क्योंकि चीन ताइवान को अपने एक पृथकतावादी प्रांत (Breakaway Province) के रूप में देखता है।
- ताइवान, जो स्वयं को एक संप्रभु राष्ट्र मानता है, पर लंबे समय से चीन द्वारा इसपर दावा किया जाता रहा है। लेकिन ताइवान अमेरिका को अपने सबसे बड़े सहयोगी के रूप में देखता है, जबकि वाशिंगटन ने एक विधान पारित कर रखा है जिसके अनुसार, ताइवान के आत्मरक्षा प्रयासों में अमेरिका उसकी सहायता करेगा।
ताइवान पर अमेरिका-चीन टकराव
- ताइवान (आधिकारिक रूप से ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’) पूर्वी एशिया में अवस्थित एक देश है। यह उत्तर-पश्चिमी प्रशांत महासागर में पूर्वी और दक्षिण चीन सागर के मिलन-बिंदु पर जापान और फिलीपींस के बीच सबसे बड़ा स्थल भाग है।
- ताइवान सेमीकंडक्टर उत्पादन के लिये उल्लेखनीय है और सेमीकंडक्टर की वैश्विक आपूर्ति शृंखला वृहत रूप से ताइवान पर निर्भर है।
- वर्ष 2021 में कुल वैश्विक सेमीकंडक्टर राजस्व में ताइवान के अनुबंध विनिर्माताओं की हिस्सेदारी 60% से अधिक थी।
- वर्तमान में केवल 13 देश (और वेटिकन) ही ताइवान को एक संप्रभु देश के रूप में मान्यता देते हैं।
- ताइवान सेमीकंडक्टर उत्पादन के लिये उल्लेखनीय है और सेमीकंडक्टर की वैश्विक आपूर्ति शृंखला वृहत रूप से ताइवान पर निर्भर है।
- चीन के लिये प्रासंगिकता: चीन और ताइवान की अर्थव्यवस्थाएँ अटूट रूप से जुड़ी हुई हैं। वर्ष 2017 से 2022 के बीच 515 बिलियन डॉलर के निर्यात मूल्य के साथ चीन ताइवान का सबसे बड़ा निर्यात भागीदार है। चीन की तुलना में लगभग आधे निर्यात मूल्य के साथ अमेरिका इसका दूसरा सबसे बड़ा भागीदार है।
- ताइवान अन्य द्वीपों की तुलना में चीनी मुख्यभूमि के अधिक निकट है और वर्ष 1949 की चीनी क्रांति के दौरान राष्ट्रवादियों को वहाँ खदेड़े जाने के बाद से ही बीजिंग ताइवान पर दावा करता रहा है।
- कुछ विश्लेषक यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को चीन-ताइवान संघर्ष के संभावित उत्प्रेरक के रूप में देख रहे हैं।
- अमेरिका के लिये प्रासंगिकता: ताइवान में द्वीपों की एक शृंखला मौजूद है जिनमें से कई अमेरिका के सहयोगी हैं। अमेरिका चीन की विस्तारवादी योजनाओं का मुक़ाबला करने के लिये इन क्षेत्रों के उपयोग करने की योजना रखता है।
- अमेरिका का ताइवान के साथ आधिकारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, लेकिन यह ताइवान संबंध अधिनियम (Taiwan Relations Act), 1979 के तहत ताइवान को स्वयं की रक्षा के लिये साधन प्रदान करने के लिये बाध्य है।
- यह ताइवान का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है और ‘रणनीतिक अस्पष्टता’ (strategic ambiguity) की एक नीति का पालन करता है।
प्रथम द्वीप शृंखला
- प्रथम द्वीप शृंखला (First Island Chain) में कुरील द्वीप, जापानी द्वीपसमूह, रयूकू द्वीप, ताइवान, उत्तर-पश्चिम फिलीपींस शामिल हैं और ये बोर्नियो में समाप्त होते हैं।
- यह शृंखला रक्षा की पहली पंक्ति भी है और पूर्वी चीन सागर एवं फिलीपीन सागर और दक्षिण चीन सागर एवं सुलु सागर के बीच समुद्री सीमाओं के रूप में कार्य करती है।
- इस शृंखला में बाशी चैनल और मियाको जलडमरूमध्य स्थित हैं जो चीन के लिये महत्त्वपूर्ण चोकपॉइंट (Chokepoints) हैं।
- चीन की समुद्री रणनीति, या ‘द्वीप शृंखला रणनीति’ (Island Chain Strategy) 1940 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा चीन और सोवियत संघ की समुद्री महत्त्वाकांक्षाओं पर नियंत्रण के लिये तैयार की गई एक भौगोलिक सुरक्षा अवधारणा है।
ताइवान मुद्दे पर भारत का रुख
- भारत-ताइवान संबंध: भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ विदेश नीति के एक अंग के रूप में भारत ने ताइवान के साथ व्यापार और निवेश के साथ-साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरणीय मुद्दों और लोगों के पारस्परिक संपर्क के क्षेत्र में गहन सहयोग विकसित करने का प्रयास किया है।
- उदाहरण के लिये, नई दिल्ली में अवस्थित भारत-ताइपे एसोसिएशन (ITA) और ताइपे इकोनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर (TECC)।
- भारत और ताइवान के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं लेकिन वर्ष 1995 के बाद से दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की राजधानियों में प्रतिनिधि कार्यालय बनाए रखा है जो वास्तविक दूतावासों के रूप में कार्य करते हैं।
- भारत का रुख:
- वर्ष 1949 से भारत ‘एक चीन’ (‘One China’) की नीति को स्वीकार करता रहा है जो ताइवान और तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता देती है।
- हालाँकि, भारत एक कूटनीतिक तर्क के लिये इस नीति का उपयोग करता रहा है, अर्थात यदि भारत ‘एक चीन’ की नीति में विश्वास करता है तो चीन को भी ‘एक भारत’ की नीति पर अमल करना चाहिये।
- हालाँकि भारत ने वर्ष 2010 से संयुक्त वक्तव्यों और आधिकारिक दस्तावेजों में ‘एक चीन’ नीति के पालन का उल्लेख करना बंद कर दिया है, लेकिन चीन के साथ संबंधों के ढाँचे के कारण ताइवान के साथ उसकी संलग्नता अभी भी सीमित रही है।
‘एक चीन’ सिद्धांत और ‘एक चीन’ नीति
- क्रॉस-ताइवान स्ट्रेट की समस्याओं को समझने के लिये ‘एक चीन’ सिद्धांत और ‘एक चीन’ नीति के बीच का अंतर समझना महत्त्वपूर्ण है।
- पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) ‘एक चीन’ के सिद्धांत का पालन करता है, जो ताइवान को चीन के एक अविभाज्य अंग के रूप में देखता है, जिसकी एकमात्र वैध सरकार बीजिंग में स्थापित है।
- अमेरिका इस सिद्धांत की स्थिति को स्वीकार करता है लेकिन आवश्यक रूप से इसकी वैधता की पुष्टि नहीं करता।
- इसके बजाय अमेरिका ‘एक चीन’ की नीति का पालन करता है, जिसका अर्थ है कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना एकमात्र चीन था और है, और यह एक अलग संप्रभु इकाई के रूप में रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC, ताइवान) को मान्यता नहीं देता।
- लेकिन इसके साथ ही, अमेरिका ने ताइवान पर चीनी संप्रभुता को मान्यता देने की PRC की मांगों को भी स्वीकार नहीं किया।
आगे की राह
- चीन की अर्थव्यवस्था रूस की अर्थव्यवस्था की तुलना में वैश्विक अर्थव्यवस्था से कहीं अधिक गहनता से जुड़ी हुई है। इस स्थिति में चीन यदि ताइवान पर आक्रमक कार्रवाई की इच्छा रखता है तो उसे बेहद सतर्कता से इस कोण पर विचार करना होगा, विशेष रूप से जबकि यूक्रेन संकट अभी भी जारी है।
- अंततः ताइवान का मुद्दा केवल एक सफल लोकतंत्र के विनाश की अनुमति देने के नैतिक प्रश्न से संबद्ध नहीं है अथवा यह अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता से जुड़ा प्रश्न भर नहीं है। ताइवान पर चीन का आक्रमण किसी भी स्थिति में एशिया के समीकरण को बदल देने की क्षमता रखता है।
- इसके अलावा, भारत ‘एक चीन’ की नीति पर पुनर्विचार कर सकता है और ताइवान के साथ संबंधों को मुख्यभूमि चीन के साथ अपने संबंधों से अलग खाँचे में रख सकता है, जिस प्रकार चीन ‘एक भारत’ की नीति पर अमल नहीं करते हुए पाक अधिकृत कश्मीर (जिसे भारत अपना अंग मानता है) में चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के रूप में अपनी महत्त्वाकांक्षी परियोजना को आगे बढ़ा रहा है।
अभ्यास प्रश्न: ताइवान के साथ संबंधों को मुख्यभूमि चीन से पृथक करना भारत की ‘एक चीन’ की नीति को व्युत्क्रमित करने का एक तरीका हो सकता है। उपयुक्त तर्कों के साथ टिप्पणी कीजिये।
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