अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-ताइवान संबंध और चीन
- 21 Oct 2020
- 13 min read
प्रिलिम्स के लियेताइवान की भौगोलिक स्थिति, इंडिया-ताइपे एसोसिएशन, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा मेन्स के लियेभारत-ताइवान संबंध और चीन की भूमिका, चीन-ताइवान विवाद और इसकी पृष्ठभूमि |
चर्चा में क्यों?
ऐसी खबरों के बीच कि भारत, ताइवान के साथ एक व्यापारिक समझौते पर विचार-विमर्श शुरू करना चाह रहा है, चीन ने भारत से ताइवान संबंधी मुद्दों पर विवेकपूर्ण ढंग से विचार करने को कहा है, क्योंकि ताइवान चीन का एक अभिन्न अंग है।
प्रमुख बिंदु
- चीन के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान ऐसे समय में आया है, जब भारत और ताइवान व्यापार समझौते को आगे बढ़ाने पर विचार-विमर्श कर रहे हैं।
- उल्लेखनीय है कि भारत और ताइवान ने पहले से ही वर्ष 2018 में एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
- यद्यपि भारत और ताइवान के बीच औपचारिक संबंध नहीं हैं, किंतु बीते कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों का काफी विस्तार हुआ है और ताइवान की कंपनियाँ भारत के सबसे बड़े निवेशकों में से एक हैं।
भारत-ताइवान संबंध
- राजनीतिक संबंध
- 1990 के दशक में जब भारत ने ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ की शुरुआत की तो भारत और ताइवान के संबंधों में भी बढ़ोतरी देखने को मिली, साथ ही धीरे-धीरे वीज़ा प्रतिबंधों में भी छूट दी जाने लगी।
- वर्ष 1995 में दोनों देशों ने एक-दूसरे की राजधानियों में प्रतिनिधि कार्यालय स्थापित किये, जैसे- ताइपे इकोनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर इन इंडिया (TECC) और भारत-ताइपे एसोसिएशन (ITA) आदि।
- उल्लेखनीय है कि हाल ही में ताइवान ने कोरोना वायरस रोगियों के इलाज में लगे चिकित्साकर्मियों की सुरक्षा के लिये भारत को 1 मिलियन फेस मास्क प्रदान किये थे।
- व्यापार
- बीते दो दशकों में भारत-ताइवान संबंधों में काफी बढ़ोतरी देखी गई है, जहाँ एक ओर वर्ष 2000 में भारत और ताइवान के बीच कुल 1 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था, वहीं वर्ष 2019 में यह बढ़कर 7.5 बिलियन डॉलर पर पहुँच गया है।
- अपनी कंपनियों के माध्यम से वर्ष 2018 में ताइवान ने भारत में तकरीबन 360 मिलियन डॉलर का निवेश किया था। साथ ही ताइवान ने भारत के साथ अपने निवेश और व्यापार को बढ़ाने के लिये प्रतिबद्धता भी व्यक्त की है।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी
- भारत-ताइवान के बीच विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में द्विपक्षीय संबंधों की शुरुआत सर्वप्रथम वर्ष 2018 में हुई थी, जब ताइपे इकोनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर इन इंडिया (TECC) और भारत-ताइपे एसोसिएशन (ITA) ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये थे।
- साथ ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संयुक्त बैठकें तथा अकादमिक सेमिनार वार्षिक तौर पर आयोजित किये जाते हैं।
- शिक्षा
- ताइवान सरकार द्वारा जारी आधिकारिक आँकड़े बताते हैं कि वर्तमान में ताइवान में तकरीबन 100,000 विदेशी छात्र पढ़ाई कर रहे हैं, इसमें तकरीबन 2,398 छात्र भारत से हैं। वर्तमान में भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में कुल 7 ताइवान शिक्षा केंद्र (TEC) स्थापित किये गए हैं, जिनमें ताइवान के 13 शिक्षक मंदारिन भाषा पढ़ाते हैं।
- अब तक लगभग 5000 भारतीय छात्रों ने भारतीय विश्वविद्यालयों में स्थापित ताइवान शिक्षा केंद्रों (TECs) में मंदारिन भाषा की शिक्षा प्राप्त की है।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान
- बीते कुछ वर्षों में भारत-ताइवान के सांस्कृतिक संबंधों में भी काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है। भारत के प्रमुख फिल्म समारोहों में प्रतिवर्ष ताइवान की फिल्मों का प्रदर्शन किया जाता है और साथ ही ताइवान के प्रसिद्ध कला समूहों को भारत में प्रदर्शन के लिये आमंत्रित किया जाता रहा है।
चीन-ताइवान विवाद
- चीन और ताइवान के बीच सबसे बड़ा विवाद आधिकारिक पहचान को लेकर है, जहाँ एक ओर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के लिये आधिकारिक मान्यता चाहती है, वहीं ताइवान के लोग ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के लिये आधिकारिक मान्यता चाहते हैं।
- उल्लेखनीय है कि विश्व के अधिकांश देश ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (PRC) को तो मान्यता देते हैं लेकिन ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (RC) को मान्यता देने वाले देशों की संख्या काफी कम है।
- इसके अलावा चीन का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो ताइवान को चीन के अभिन्न अंग के रूप में देखता है, इस वर्ग को ‘एक चीन नीति’ (One-China Policy) का समर्थक माना जाता है।
- इस समूह के अनुसार, ताइवान चीन का अभिन्न अंग है और जो लोग ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करना चाहते हैं उन्हें ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के साथ अपने कूटनीतिक संबंध समाप्त करने होंगे।
- इस नीति के समर्थक मानते हैं कि ताइवान चीन का ही हिस्सा है और कुछ समय के लिये चीन से अलग हो गया है तथा जल्द ही इसे कूटनीतिक अथवा सैन्य माध्यम से चीन में शामिल कर लिया जाएगा।
भारत के लिये ताइवान का महत्त्व
- ध्यातव्य है कि भारत संयुक्त राष्ट्र के उन 179 सदस्य देशों में से एक है जिसने ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किया है। हालाँकि ताइवान के महत्त्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि भारत समेत विश्व के तकरीबन 80 देश ऐसे हैं, जिन्होंने ताइवान के साथ अनौपचारिक और आर्थिक संबंध स्थापित किये हुए हैं।
- अमेरिका द्वारा चीन को रणनीतिक रूप से पछाड़ने का भरपूर प्रयास किया जा रहा है और इन्हीं प्रयासों के तहत अमेरिका ताइवान के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने के प्रयास कर रहा है। इस प्रकार संभव है कि भविष्य में ताइवान, पूर्वी एशिया में चीन का मुकाबला करने हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
- यदि ऐसा होता है तो यह भारत की ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका के लिये महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
- अमेरिका-चीन के बीच चल रहा व्यापार युद्ध, ताइवान को चीन में स्थापित अपनी विनिर्माण इकाइयों को दक्षिण-पूर्व एशिया तथा भारत आदि में स्थानांतरित करने पर विचार के लिये मजबूर कर रहा है।
- हालाँकि चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध की शुरुआत से पूर्व ही ताइवान ने वर्ष 2016 में ‘न्यू साउथबाउंड पॉलिसी’ (New Southbound Policy) की घोषणा की थी।
- इस पॉलिसी का उद्देश्य 10 आसियान (ASEAN) देशों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और भारत के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करना है।
- विश्व भर में ताइवान को एक ‘टेक पावरहाउस’ के रूप में जाना जाता है, हालाँकि घटती जन्म दर और प्रवासन में वृद्धि के कारण ताइवान में कुशल श्रमिकों का अभाव रहा है तथा ताइवान समय-समय पर कुशल श्रमिकों को आकर्षित करने का प्रयास भी करता रहा है।
- ऐसे में ताइवान में कुशल श्रमिकों की मांग भारत के लिहाज़ से काफी महत्त्वपूर्ण हो सकती है। आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में ताइवान में मात्र 2000 भारतीय कार्य कर रहे हैं, यदि इस संख्या को बढ़ाने का प्रयास किया जाए तो यह भारत के युवाओं खासतौर पर तकनीकी क्षेत्र में कार्यरत युवाओं के लिये काफी महत्त्वपूर्ण अवसर हो सकता है।
भारत-चीन-ताइवान
- चीन हमेशा से ही ताइवान के साथ किसी अन्य देश के संबंधों का विरोध करता आया है। उसका मानना है कि चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले सभी देशों को ‘एक चीन नीति’ का सख्ती से पालन करना होगा।
- हालाँकि इसके बावजूद इंडो-पैसिफिक एवं पूर्वी एशिया में चीन की बढ़ती आक्रामकता ने भारत तथा ताइवान के संबंधों को और मज़बूत करने का कार्य किया है, क्योंकि इसमें दोनों ही देशों के रणनीतिक हित शामिल हैं।
- इसके माध्यम से जहाँ ताइवान एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान को और मज़बूत करने का प्रयास कर सकता है, तो वहीं भारत इसके द्वारा दक्षिण चीन सागर में नेविगेशन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने तथा इस क्षेत्र में अपनी तेल एवं गैस की खोज गतिविधियों को और आगे बढ़ाने का प्रयास कर सकता है।
- ताइवान स्वयं को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के एक महत्त्वपूर्ण सदस्य के तौर पर देखता है और क्षेत्रीय शांति, स्थिरता तथा समृद्धि में योगदान करने के लिये अपनी प्रतिबद्धता को स्वीकार करता है, जो कि इस क्षेत्र के लिये भारत के दृष्टिकोण के साथ मेल खाता है।
ताइवान के बारे में
- ताइवान पूर्वी एशिया का एक द्वीप है, जिसे चीन और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी एक विद्रोही क्षेत्र के रूप में देखती है।
- तकरीबन 36,197 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस द्वीप की आबादी 23.59 बिलियन के आस-पास है। ताइवान की राजधानी ताइपे है जो कि ताइवान के उत्तरी भाग में स्थित है।
- जहाँ एक ओर चीन में एक-दलीय शासन व्यवस्था है, वहीं ताइवान में बहु-दलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था है।
- मंदारिन (Mandarin) ताइवान में राजकार्यों की भाषा है।
आगे की राह
- भारत को ताइवान के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित करने में चीन की ‘एक चीन नीति’ को एक बाधा के रूप में देखना बंद करना होगा, क्योंकि चीन भी इसी प्रकार की नीति का अनुसरण करते हुए अपनी महत्त्वाकांक्षी परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के माध्यम से पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) में अपनी भागीदारी बढ़ा रहा है।
- इसलिये भारत को भी एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए ताइवान के साथ अपने संबंधों में यथासंभव बढ़ोतरी के प्रयास करने चाहिये।