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एडिटोरियल

  • 05 Jul, 2023
  • 14 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत एवं चीन की आर्थिक संवृद्धि की तुलना

यह एडिटोरियल 03/07/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘No Leapfrogging in sight’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत की अर्थव्यस्था की तुलना वर्ष 2007 में चीन की अर्थव्यवस्था से की गई है और दोनों के बीच बढ़ते अंतरों पर विचार किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), दोहरे (ट्विन) बैलेंस शीट समस्या, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अनुपात

मेन्स के लिये:

भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाओं के मध्य अंतर, भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये उठाए जा सकने वाले कदम

भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति वर्ष 2007 में चीन की आर्थिक स्थिति के समान है। मूडी (Moody) के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था हाल ही में 3.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गई है और वर्ष 2023 में इसके 3.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है, जो अतीत में चीन के तुलनीय आर्थिक आकार के समान है। प्रति व्यक्ति आय (per capita income) के मामले में, वर्ष 2007 में चीन की प्रति व्यक्ति आय 2,694 अमेरिकी डॉलर थी, जबकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का अनुमान है कि भारत की प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2022 में 2,379 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2023 में 2,601 अमेरिकी डॉलर हो जाएगी।

हालाँकि भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति और वर्ष 2007 में चीन की आर्थिक स्थिति के बीच कुछ समानताएँ दिखाई देती हैं, लेकिन उनके बीच के अंतर अधिक उल्लेखनीय हैं और ये भारत के विकास पथ के लिये महत्त्वपूर्ण परिणाम रखते हैं। ये अंतर भारत की अर्थव्यवस्था के भविष्य के विकास के लिये एक प्रभाव रखते हैं।

भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाओं में प्रमुख अंतर

  • निवेश अनुपात में अंतराल: सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अनुपात में चीन का निवेश लगातार उच्च रहा है, जो वर्ष 2003 से 2011 तक औसतन लगभग 40% रहा, जबकि अपने उच्च विकास चरण के दौरान भारत का निवेश अनुपात लगभग 33% रहा, जो चीन की तुलना में कम है।
    • इससे प्रकट होता है कि चीन अपने आर्थिक संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा निवेश के लिये आवंटित करता रहा है, जिसने इसकी तीव्र आर्थिक वृद्धि में योगदान दिया है।
    • वर्ष 2012 से 2021 के बीच चीन और भारत के बीच अंतराल और भी अधिक बढ़ गया, जहाँ चीन का निवेश अनुपात औसतन लगभग 43% रहा, जबकि भारत का निवेश अनुपात कुछ गिरकर लगभग 29% रह गया।
  • भारत में दोहरे बैलेंस शीट की समस्या: भारत के निवेश परिदृश्य को एक उल्लेखनीय मंदी का सामना करना पड़ा, जो मुख्य रूप से दोहरे या ट्विन बैलेंस शीट (Twin Balance Sheet) समस्या के कारण उत्पन्न हुआ।
  • निर्यात और आयात की संरचना में असमानता: वित्तीय वर्ष 2022-23 में, भारत का वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात 770 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया, जबकि आयात लगभग 890 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था। इसकी तुलना में वर्ष 2007 में जब चीन की अर्थव्यवस्था समान आकार की थी, चीन का निर्यात 1.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया था, जो मुख्य रूप से सेवाओं के बजाय वस्तुओं के निर्यात से प्रेरित था।
    • इसके अतिरिक्त, चीन का आयात 950 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ उच्च स्तर के एकीकरण का संकेत देता है।
  • टैरिफ दरों में अंतर: चीन ने स्वयं को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के लिये एक ‘सेंट्रल हब’ के रूप में सफलतापूर्वक स्थापित किया है। इसमें चीन द्वारा टैरिफ दरों में लगातार कमी लाने का भी योगदान रहा है। वर्ष 2003 से 2007 तक चीन की औसत टैरिफ दर 10.69% से घटकर 8.93% हो गई और आगे इसमें और कमी के साथ वर्ष 2020 में यह 5.32% हो गई। टैरिफ में इस कमी ने वैश्विक व्यापार में चीन के एकीकरण को सुविधाजनक बनाया है और विदेशी निवेश को आकर्षित किया है।
    • इसके विपरीत, भारत का टैरिफ दर वर्ष 2003 में 25.63% से घटकर वर्ष 2007 में 8.88% हो गया, जो व्यापार उदारीकरण में प्रगति को इंगित करता है। हालाँकि उसके बाद से भारत की टैरिफ दर में वृद्धि हो रही है, जिससे निवेश आकर्षित करने और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में पूरी तरह से एकीकृत होने की इसकी क्षमता बाधित हो सकती है।
  • श्रम बल भागीदारी: चीन ने पिछले कई वर्षों से लगातार उच्च श्रम बल भागीदारी दर बनाए रखी है। वर्ष 2007 में चीन की श्रम बल भागीदारी दर लगभग 73% थी (अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुमान के अनुसार, 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये)। हालाँकि इस दर में धीरे-धीरे गिरावट आई है और वर्तमान में यह लगभग 67% है।
    • दूसरी ओर, भारत की श्रम बल भागीदारी दर वर्ष 2022 में लगभग 50% थी, जो चीन की तुलना में कार्यबल में सक्रिय रूप से भाग लेने वाली जनसंख्या के कम अनुपात का संकेत देती है।
  • रोज़गार सृजन में कमी: जबकि भारत में निर्माण और व्यापार एवं परिवहन जैसी सेवाओं में बड़ी संख्या में रोज़गार सृजित हुए हैं, प्रति श्रमिक उत्पादन के मामले में औपचारिक विनिर्माण कहीं अधिक उत्पादक है
    • आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, औपचारिक विनिर्माण परिवहन की तुलना में दोगुना, व्यापार की तुलना में 2.5 गुना अधिक और निर्माण की तुलना में 3.75 गुना अधिक उत्पादक है।
    • हालाँकि, औपचारिक विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार के सीमित अवसरों का सृजन एक चुनौती है, जो भारत की आर्थिक विकास क्षमता को बाधित करती है।
  • महिलाओं की भागीदारी: चीन और भारत के बीच श्रम बल भागीदारी में अंतर मुख्य रूप से महिलाओं की भागीदारी के संदर्भ में है। चीन में वर्ष 2007 में महिला श्रम बल भागीदारी दर 66% थी, जो वर्ष 2022 में घटकर 61% हो गई। भारत में वर्ष 2007 में महिला भागीदारी दर 30% के निम्न स्तर पर थी जो वर्ष 2022 में और घटकर 24% हो गई।
  • इसका अर्थ यह है कि चीन की तुलना में भारत में महिलाओं का निम्न प्रतिशत श्रम बल में सक्रिय रूप से संलग्न है।

भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति और वर्ष 2007 में चीन की आर्थिक स्थिति के बीच क्या समानताएँ हैं?

  • श्रम बल का क्षेत्रीय वितरण: वर्ष 2007 में चीन का 41% श्रम बल कृषि में, 27% उद्योग में (निर्माण सहित) और 32% सेवाओं में संलग्न था। इसकी तुलना में वर्ष 2021 में भारत में कृषि में 44%, उद्योग में 25% और सेवाओं में 31% श्रम बल संलग्न था। यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि प्रत्येक क्षेत्र में संलग्न लोगों की वास्तविक संख्या दोनों देशों के बीच भिन्न-भिन्न है।
    • यह तुलना उन क्षेत्रों के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है जिनमें बड़ी संख्या में लोग कार्यरत हैं।
  • कृषि में श्रम बल में गिरावट: चीन में वर्ष 2003 से 2019 के बीच यह गिरावट प्रति वर्ष लगभग 1.5 प्रतिशत अंक थी, जबकि भारत में यह लगभग 1 प्रतिशत अंक दर्ज की गई। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो भारत में कृषि क्षेत्र छोड़ने वाले लोगों के लिये भविष्य की रोज़गार संभावनाओं को लेकर एक चिंता उत्पन्न होती है।
    • भारत और चीन में कृषि क्षेत्र से संक्रमण का यह अंतर श्रम बाज़ार की गतिशीलता के प्रबंधन और उनकी आबादी के लिये उत्पादक रोज़गार सुनिश्चित करने में दोनों देश के सामने मौजूद अपनी-अपनी चुनौतियों और अवसरों को प्रकट करता है

आगे की राह 

  • निवेश गतिविधि बढ़ाना: अनुकूल कारोबारी माहौल बनाकर, नियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाकर और उद्योगों के लिये प्रोत्साहन प्रदान करके घरेलू एवं विदेशी दोनों निवेशों को प्रोत्साहित करना।
  • निर्यात को बढ़ावा देना: उन क्षेत्रों की पहचान करके निर्यात को बढ़ावा देना जहाँ भारत को तुलनात्मक लाभ प्राप्त हैं, अवसंरचना एवं लॉजिस्टिक्स में सुधार करना और निर्यातकों को सहायता प्रदान करना।
  • महिला श्रम बल भागीदारी में वृद्धि करना: लैंगिक समानता उपायों, शिक्षा तक पहुँच और कौशल विकास आदि के माध्यम से कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिये कदम उठाना।
  • औपचारिक विनिर्माण में रोज़गार के अवसर पैदा करना: निम्न-कुशल और अर्द्ध-कुशल श्रमिकों के लिये औपचारिक विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार के अधिक अवसर पैदा करने पर ध्यान केंद्रित करना। इसे उन नीतियों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है जो विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि एवं उत्पादकता, उन्नत प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण और कौशल विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा दें।
  • अनुकूल निवेश माहौल बनाए रखना: कारोबार सुगमता में लगातार सुधार करना, नौकरशाही बाधाओं को कम करना, पारदर्शिता बढ़ाना और निवेश आकर्षित करने एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये शासन को सुदृढ़ करना।
  • शिक्षा और कौशल विकास पर बल देना: उभरते रोज़गार बाज़ार के लिये कार्यबल को आवश्यक कौशल से लैस करने और नवाचार एवं उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिये शिक्षा एवं कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश करना।
  • अवसंरचना को सुदृढ़ करना: आर्थिक गतिविधियों का समर्थन करने और व्यापार एवं वाणिज्य को सुविधाजनक बनाने के लिये परिवहन, लॉजिस्टिक्स, बिजली और डिजिटल कनेक्टिविटी सहित अवसंरचना विकास को प्राथमिकता देना।
  • क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: बाज़ार पहुँच का विस्तार करने, वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में भाग लेने और वृद्धि एवं विकास के अवसरों का लाभ उठाने के लिये क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में सक्रिय रूप से संलग्न होना।

निष्कर्ष

भारत वैश्विक व्यवसायों के लिये बेहद आकर्षक अवसर प्रस्तुत करता है। अपने विशाल बाज़ार, प्रचुर श्रम शक्ति और स्थिर सरकार के साथ यह विनिर्माण एवं निवेश के लिये एक आदर्श गंतव्य की स्थिति रखता है। हालाँकि अपनी क्षमता का पूरी तरह से दोहन करने के लिये भारत को वैश्विक मंच पर अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये सक्रिय उपाय करने होंगे। रणनीतिक सुधारों को लागू कर और एक अनुकूल कारोबारी माहौल का निर्माण कर भारत दुनिया भर के व्यवसायों के लिये एक बेहद आकर्षक केंद्र के रूप में अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था को अब तक जिन तमाम बाधाओं का सामना करना पड़ा है, उसके बावजूद भारत चीन की अर्थव्यवस्था की बराबरी कैसे कर सकता है?


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