विज़न इंडिया@2047: राष्ट्र के भविष्य को बदलना
यह एडिटोरियल 02/11/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Virtues of planning: On the Vision India@2047 plan” लेख पर आधारित है। इसमें वर्ष 2047 तक भारत को विकसित करने के सरकार की योजना की रूपरेखा के बारे में चर्चा की गई है, जिसका अनावरण वर्ष 2024 की शुरुआत में प्रधानमंत्री द्वारा किये जाने की उम्मीद है।
प्रिलिम्स के लिये:विज़न इंडिया@2047, नीति आयोग, पीपीपी (क्रय शक्ति समता), नॉमिनल जीडीपी, जनसांख्यिकीय लाभांश, मध्य आय जाल, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), श्रम शक्ति भागीदारी दर (LFPR), उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना, राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचा पाइपलाइन मेन्स के लिये:विज़न इंडिया@2047, कारक जो भारत की आर्थिक वृद्धि में योगदान दे सकते हैं, भारत की 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियाँ, विज़न और आगे की राह |
उम्मीद की जा रही है कि वर्ष 2024 की शुरुआत में प्रधानमंत्री द्वारा देश की स्वतंत्रता के 100 साल पूरे होने तक देश को 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के साथ एक विकसित राष्ट्र में बदलने के एक रोड मैप का अनावरण किया जाएगा।
विज़न इंडिया@2047 (Vision India@2047) योजना, जैसा कि इसे आधिकारिक तौर पर नाम दिया गया है, पर पिछले दो वर्षों से कार्य चल रहा है, जिसमें विभिन मंत्रालयों के अधिकारी इस बात पर विचार-मंथन कर रहे हैं कि देश को विकास के वर्तमान स्तर से उस स्तर तक कैसे ले जाया जाए जिसकी महत्त्वाकांक्षा है।
नीति आयोग (NITI Aayog), इस विज़न दस्तावेज़ को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में, जल्द ही अपने मुख्य विचारों एवं लक्ष्यों को विभिन्न क्षेत्रों के दिग्गजों के समक्ष प्रस्तुत करेगा जिसमें विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा, ऐप्पल प्रमुख टिम कुक के साथ-साथ विभिन्न भारतीय उद्योगपति और विचारक शामिल हैं, जो फिर इन विचारों एवं लक्ष्यों को परिष्कृत करने और इसमें मौजूद किसी भी अंतराल को दूर करने पर अपनी राय देंगे। आगामी लोकसभा चुनाव के पहले प्रस्तुत की गई इस योजना को संभावित मतदाताओं के लिये सरकार के नीतिगत वादे के रूप में देखा जा सकता है।
विज़न इंडिया@2047 क्या है?
- परियोजना:
- विज़न इंडिया@2047 अगले 25 वर्षों में भारत के विकास का एक खाका या ब्लूप्रिंट तैयार करने के लिये भारत के शीर्ष नीति थिंक टैंक नीति आयोग द्वारा शुरू की गई एक परियोजना है।
- परियोजना का लक्ष्य भारत को नवाचार एवं प्रौद्योगिकी में वैश्विक अग्रणी देश बनाना है जो मानव विकास एवं सामाजिक कल्याण के मामले में भी एक मॉडल देश होगा और पर्यावरणीय संवहनीयता का प्रबल पक्षसमर्थक होगा।
- उद्देश्य:
- 18-20 हज़ार अमेरिकी डॉलर की प्रति व्यक्ति आय और मज़बूत सार्वजनिक वित्त एवं एक सुदृढ़ वित्तीय क्षेत्र के साथ 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था प्राप्त करना।
- ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में विश्वस्तरीय आधारभूत संरचना और सुविधाओं का निर्माण करना।
- नागरिकों के जीवन में सरकार के अनावश्यक हस्तक्षेप को समाप्त करना और डिजिटल अर्थव्यवस्था एवं शासन को बढ़ावा देना।
- विलय या पुनर्गठन द्वारा और स्वदेशी उद्योग एवं नवाचार को बढ़ावा देने के माध्यम से हर क्षेत्र में 3-4 वैश्विक चैंपियन विकसित करना।
- रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना तथा विश्व में भारत की भूमिका की वृद्धि करना।
- नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि और कार्बन उत्सर्जन को कम करके हरित विकास एवं जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देना।
- युवाओं को कौशल एवं शिक्षा के साथ सशक्त बनाना और रोज़गार के अधिक अवसर पैदा करना।
- देश में शीर्ष स्तर की 10 प्रयोगशालाओं के निर्माण के लिये विदेशी अनुसंधान एवं विकास संगठनों के साथ साझेदारी करना और कम से कम 10 भारतीय संस्थानों को वैश्विक स्तर पर शीर्ष 100 की सूची में लाना।
भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाएँ
- वर्तमान स्थिति:
- आकलन किया गया है कि भारत वर्तमान में नॉमिनल टर्म्स (Nominal terms) में विश्व की पाँचवीं, जबकि क्रय शक्ति समता (Purchasing Power Parity- PPP) के संदर्भ में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
- वर्ष 2022 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का आकार ब्रिटेन और फ्राँस की जीडीपी से बड़ा हो चुका था।
- भविष्य की संभावनाएँ:
- विभिन्न आकलनों के अनुसार वर्ष 2030 तक भारत की जीडीपी जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ देगी।
- रेटिंग एजेंसी ‘S&P’ का अनुमान है कि भारत की नॉमिनल जीडीपी वर्ष 2022 में 3.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2030 तक 7.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाएगी।
- आर्थिक विस्तार की इस तीव्र गति के परिणामस्वरूप भारतीय सकल घरेलू उत्पाद का आकार बढ़ेगा और भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
- आयोग के पूर्वानुमान के प्रारंभिक परिणामों में भविष्यवाणी की गई है कि:
- वर्ष 2047 में भारत के निर्यात का मूल्य 8.67 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होगा जबकि इसके आयात का मूल्य 12.12 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होगा।
- भारत की औसत जीवन प्रत्याशा 67.2 (वर्ष 2021 में) से बढ़कर 71.8 हो जाएगी और इसकी साक्षरता दर 77.8% (वर्ष 2021 में) से बढ़कर 89.8% हो जाएगी।
- विभिन्न आकलनों के अनुसार वर्ष 2030 तक भारत की जीडीपी जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ देगी।
वे कौन-से कारक हैं जो भारत की आर्थिक वृद्धि में योगदान कर सकते हैं?
- जनसांख्यिकीय लाभांश: भारत में एक बड़ी और युवा आबादी मौजूद है जो विभिन्न क्षेत्रों के लिये कुशल और उत्पादक कार्यबल प्रदान कर सकती है।
- रिपोर्टों के अनुसार, भारत की आबादी 1.4 बिलियन से अधिक है, जिसमें 40% से अधिक लोग 25 वर्ष से कम आयु के हैं। यह आर्थिक विकास के लिये एक बड़ा जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend) प्रदान करता है।
- मध्यम वर्ग का विकास: भारत के मध्यम वर्ग का आकार वर्ष 2023 में लगभग 50 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2050 तक 500 मिलियन से अधिक होने का अनुमान है, जिससे एक विशाल घरेलू बाज़ार का निर्माण होगा और वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग पैदा होगी।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था का तेज़ उभार: भारत ई-कॉमर्स, फिनटेक, एडटेक, हेल्थटेक और एग्रीटेक जैसे क्षेत्रों में विशेष रूप से डिजिटल परिवर्तन और नवाचार को अपना रहा है।
- इन क्षेत्रों में नए रोज़गार अवसे सृजित करने, दक्षता में सुधार करने और सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने की क्षमता है।
- संवहनीयता-केंद्रित अर्थव्यवस्था: भारत अपने कार्बन पदचिह्न को कम करने और अपनी पर्यावरणीय गुणवत्ता को बढ़ाने के लक्ष्य के साथ नवीकरणीय ऊर्जा, हरित अवसंरचना और जलवायु प्रत्यास्थता में निवेश कर रहा है। ये पहलें वृद्धि और विकास के नए अवसर भी पैदा कर सकती हैं।
भारत के 30 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था विज़न के समक्ष मौजूद प्रमुख चुनौतियाँ
- मध्यम आय जाल (Middle Income Trap): ऐसी आशंकाएँ हैं कि विकसित अर्थव्यवस्था की राह पर आगे बढ़ते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था मध्यम आय जाल में फँस सकती है। प्रति व्यक्ति आय के 5,000-6,000 अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने के बाद यह अधिक तेज़ी से आगे नहीं बढ़ेगी।
- विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार, मध्यम आय जाल “एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है जहाँ एक मध्यम आय देश बढ़ती लागत और घटती प्रतिस्पर्द्धात्मकता के कारण उच्च आय अर्थव्यवस्था में संक्रमण करने में विफल होने लगता है।”
- वृद्ध होती जनसंख्या: भारत की वर्तमान जनसंख्या लगभग 1.4 बिलियन है जो वर्ष 2048 में 1.64 बिलियन के शीर्ष स्तर तक पहुँच सकता है और फिर गिरावट के साथ वर्ष 2100 में इसके 1.45 बिलियन होने का अनुमान है।
- इसका अर्थ यह है कि भारत को एक वृद्ध होती जनसंख्या से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, जैसे बढ़ती स्वास्थ्य देखभाल लागत, पेंशन देनदारियाँ और श्रम की कमी।
- उच्च जीडीपी विकास दर को बनाए रखना: हालाँकि भारतीय अर्थव्यवस्था 8% की बेहद आशाजनक दर से बढ़ रही है, लेकिन इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये यह विकास दर पर्याप्त नहीं भी हो सकती है। भारत को अत्यंत उच्च और सतत विकास दर से वृद्धि करने की ज़रूरत है।
- इसके अलावा, विभिन्न अनुमान बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था अगले 10 वर्षों तक 7% की दर से बढ़ेगी।
- नीति आयोग द्वारा उपलब्ध कराये गए आरंभिक आँकड़ों से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था को वर्ष 2030-2040 के बीच 9.2%, 2040-2047 के बीच 8.8% और समग्र रूप से वर्ष 2030 से 2047 के बीच 9% की वार्षिक औसत आर्थिक वृद्धि दर्ज करने की आवश्यकता होगी।
- रुपया-डॉलर पहेली: डॉलर के संदर्भ में भारत की जीडीपी रुपया-डॉलर विनिमय दर पर भी निर्भर करती है, जो मुद्रास्फीति, व्यापार संतुलन, पूंजी प्रवाह और मौद्रिक नीति जैसे विभिन्न कारकों से प्रभावित होती है।
- भू-राजनीति और क्षेत्रीय एकीकरण: चीन, पाकिस्तान एवं अन्य पड़ोसी देशों के साथ बढ़ते तनाव और अमेरिका, रूस एवं अन्य प्रमुख शक्तियों के साथ बदलते संबंधों के साथ भारत एक जटिल एवं गतिशील भू-राजनीतिक माहौल का सामना कर रहा है।
- गतिहीन कृषि और विनिर्माण क्षेत्र: कृषि क्षेत्र की उत्पादकता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करना आवश्यक है, जो आधे से अधिक कार्यबल को रोज़गार प्रदान करती है लेकिन जीडीपी में महज 17% हिस्सेदारी रखती है। इसके साथ ही, गतिहीन विनिर्माण क्षेत्र के पुनरुद्धार की ज़रूरत है जिसने दशकों से 15% जीडीपी हिस्सेदारी बनाए रखी है, जबकि बढ़ती आबादी के लिये रोज़गार के अवसर भी सृजित करता रहा है।
- निम्न श्रम बल भागीदारी: नवीनतम आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) वार्षिक रिपोर्ट 2022-2023 के अनुसार, श्रम शक्ति भागीदारी दर (LFPR) वर्ष 2022-2023 में 40.4% थी, जो वैश्विक औसत 61.4% से कम है। इसके अलावा, भारत की LFPR में पिछले कुछ वर्षों से गिरावट आ रही है, विशेष रूप से महिलाओं के संदर्भ में।
आगे की राह
- वृहत, तेज़ विनिवेश का लक्ष्य रखना: भारत में एक बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र ऐसा है जो प्रायः अक्षमताओं, भ्रष्टाचार और घाटे से ग्रस्त रहता है। इनमें से कुछ उद्यमों का विनिवेश या निजीकरण कर भारत धन जुटा सकता है, उत्पादकता में सुधार कर सकता है और विदेशी निवेश आकर्षित कर सकता है।
- मध्यम वर्ग को बढ़ावा देना: भारत का मध्यम वर्ग उपभोग और विकास का एक प्रमुख चालक है, लेकिन उस पर उच्च करों और कम बचत का भी बोझ है। कर दरों में कटौती कर या व्यक्तिगत आयकर को समाप्त कर और इसे उपभोग कर के साथ प्रतिस्थापित कर, भारत अपने मध्यम वर्ग की प्रयोज्य आय एवं व्यय करने की शक्ति को बढ़ा सकता है। यह कर प्रणाली को सरल बनाने और कर चोरी को कम करने में भी योगदान कर सकता है।
- श्रम बल की भागीदारी बढ़ाना: भारत को अपने श्रम बल के लिये शिक्षा और कौशल विकास की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार लाने के लिये और अधिक निवेश करने की आवश्यकता है।
- नई शिक्षा नीति और कौशल भारत मिशन जैसी पहलें इस दिशा में बढ़ाये गए सही कदम हैं।
- अवसंरचना पाइपलाइन में तेज़ी लाना: भारत को कनेक्टिविटी, दक्षता और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिये सड़क, रेलवे, बंदरगाह, हवाई अड्डे, बिजली, पानी और स्वच्छता जैसी अपनी अवसंरचना में भारी निवेश करने की ज़रूरत है।
- भारत ने 100 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन की घोषणा की है, लेकिन उसे इसके निष्पादन और वित्तपोषण में तेज़ी लाने की ज़रूरत है।
- विनिर्माण क्षेत्र में प्रगति का लाभ उठाना: भारत के पास वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में उभरने का एक बड़ा अवसर मौजूद है, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा, फार्मास्यूटिकल्स और रक्षा जैसे क्षेत्रों में। भारत ने अपने विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने और रोज़गार सृजित करने के लिये प्रोडक्शन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना जैसी कई पहलें शुरू की हैं।
- भारत को अधिक घरेलू और विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये कारोबार सुगमता, श्रम कानूनों एवं कौशल विकास में और सुधार करने की आवश्यकता है।
- निजी निवेश को बढ़ावा देना: भारत को अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने और घरेलू कंपनियों को अर्थव्यवस्था में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। सरकार अवसंरचना परियोजनाओं और विनिर्माण के लिये सहायता की पेशकश कर निजी निवेश को प्रोत्साहित कर सकती है।
- संरचनात्मक सुधार लागू करना: भारत को उत्पादकता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये लक्षित सुधार करने की आवश्यकता है। मैकिन्से (McKinsey) ने वित्तीय क्षेत्र सुधार, शहरी नियोजन और ई-कॉमर्स सहित लक्षित सुधार के छह क्षेत्रों की पहचान की है जो उत्पादकता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।
- पूंजी संचय बढ़ाना: 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है। सरकार अवसंरचना परियोजनाओं के लिये पर्याप्त समर्थन देकर और विनिर्माण को प्रोत्साहित कर निवेश को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
अभ्यास प्रश्न: भारत अपनी स्वतंत्रता के 100वें वर्ष तक 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखता है। इस विज़न से जुड़े प्रमुख उद्देश्यों एवं चुनौतियों की चर्चा कीजिये और उन नीतिगत उपायों का प्रस्ताव कीजिये जो भारत को अपनी आर्थिक आकांक्षाओं को प्राप्त करने में व्याप्त बाधाओं को दूर करने में मदद कर सकें।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)मेन्स:संभावित सकल घरेलू उत्पाद को परिभाषित करते हुए इसके निर्धारकों की व्याख्या कीजिये। वे कौन-से कारक हैं जो भारत को अपनी संभावित GDP को साकार करने से रोक रहे हैं? (2020) |