नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 03 Jan, 2023
  • 10 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

भूजल सुरक्षा: एक सुरक्षित भविष्य की ओर

यह एडिटोरियल 29/12/2022 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Protecting groundwater through safe sanitation” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में भूजल स्तर में आ रही कमी और संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत में भूजल स्तर में गिरावट एक प्रमुख चिंता का विषय है क्योंकि यह पेयजल का प्राथमिक स्रोत है। भारत में भूजल की कमी के कुछ प्रमुख कारणों में सिंचाई के लिये भूजल का अत्यधिक दोहन, शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं।

  • भारत के केंद्रीय भूजल बोर्ड (Central Ground Water Board- CGWB) के अनुसार, भारत में उपयोग किये जाने वाले कुल जल का लगभग 70% भूजल स्रोतों से प्राप्त होता है। CGWB का यह भी अनुमान है कि देश के कुल भूजल निष्कर्षण का लगभग 25% असंवहनीय है, यानी पुनर्भरण की तुलना में निष्कर्षण दर अधिक है।
  • समग्र रूप से, भारत में भूजल की कमी एक गंभीर समस्या है जिसे बेहतर सिंचाई तकनीकों जैसे संवहनीय जल प्रबंधन अभ्यासों और संरक्षण प्रयासों के माध्यम से संबोधित करने की आवश्यकता है।

भारत में भूजल की कमी के प्रमुख कारण क्या हैं?

  • सिंचाई के लिये भूजल का अत्यधिक दोहन: भारत में कुल जल उपयोग में सिंचाई की हिस्सेदारी लगभग 80% है और इसमें से अधिकांश जल भूजल से प्राप्त होता है।
    • खाद्य की बढ़ती मांग के साथ सिंचाई हेतु भूजल का अधिकाधिक निष्कर्षण किया जा रहा है, जिससे इसके स्तर में कमी आ रही है।
  • जलवायु परिवर्तन: बढ़ते तापमान और वर्षण के बदलते पैटर्न भूजल जलभृतों (Groundwater Aquifers) की पुनर्भरण दरों को बदल सकते हैं, जिससे भूजल स्तर में और कमी आ सकती है।
    • सूखा, फ्लैश फ्लड और बाधित मानसूनी घटनाएँ जलवायु परिवर्तन की घटनाओं के हालिया उदाहरण हैं जो भारत के भूजल संसाधनों पर दबाव बढ़ा रहे हैं।
  • खराब जल प्रबंधन: जल का अकुशल उपयोग, रिसते पाइप और वर्षा जल संचयन के लिये अपर्याप्त अवसंरचना—ये सभी भूजल की कमी में योगदान कर सकते हैं।
  • प्राकृतिक पुनर्भरण में कमी: वनों की कटाई जैसे कारकों से भूजल जलभृतों का प्राकृतिक पुनर्भरण कम हो सकता है, क्योंकि इससे मृदा अपरदन बढ़ सकता है और मृदा में रिसते, जलभृतों का पुनर्भरण करते जल की मात्रा में कमी आ सकती है।

घटते भूजल स्तर से संबद्ध समस्याएँ

  • जल की कमी: भूजल स्तर में गिरावट के साथ घरेलू, कृषि और औद्योगिक उपयोग के लिये पर्याप्त जल की उपलब्धता में कमी आ सकती है। यह जल की कमी के साथ ही जल संसाधनों के लिये संघर्ष की स्थिति को जन्म दे सकता है।
  • भूमि अवतलन: भूजल निष्कर्षण से मृदा दब जाती है, जिससे भूमि अवतलन (भूमि का धँसना) हो जाता है। इससे सड़कों और इमारतों जैसे बुनियादी ढांचे को नुकसान हो सकता है और बाढ़ का खतरा भी बढ़ सकता है।
  • पर्यावरणीय क्षरण: भूजल की कमी का पर्यावरण पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। उदाहरण के लिये, जब भूजल का स्तर गिरता है तो यह तटीय क्षेत्रों में खारे जल के भूमि में प्रवेश या निस्यंदन का कारण बन सकता है, जिससे मीठे जल संसाधन दूषित हो सकते हैं।
  • आर्थिक प्रभाव: भूजल की कमी के आर्थिक प्रभाव भी उत्पन्न हो सकते हैं, क्योंकि इससे कृषि उत्पादन में कमी आ सकती है और जल उपचार एवं पम्पिंग की लागत बढ़ सकती है।
  • कमी संबंधी डेटा का अभाव: भारत सरकार जल-तनाव वाले राज्यों में अत्यधिक अतिदोहित ब्लॉकों को ‘अधिसूचित’ कर भूजल दोहन को नियंत्रित करती है।
    • हालाँकि, वर्तमान में केवल लगभग 14% अतिदोहित ब्लॉकों को ही अधिसूचित किया गया है।

भूजल संरक्षण से संबंधित प्रमुख सरकारी पहलें

आगे की राह

  • जल संरक्षण: शहरी क्षेत्रों में (जहाँ भूजल स्तर सतह से पाँच-छह मीटर नीचे है) ‘ग्रीन कॉरिडोर’ का निर्माण कर, बाढ़ जल के संग्रहण के लिये संभावित रिचार्ज ज़ोन हेतु चैनलों का मानचित्रण कर और कृत्रिम भूजल पुनर्भरण संरचनाओं का निर्माण कर भूजल की कमी को कम कर सकना संभव है।
    • स्वच्छ वर्षा जल से भूजल पुनर्भरण के लिये निष्क्रिय बोरवेलों का उपयोग करना भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
  • भूजल निकासी का विनियमन: भूजल के निष्कर्षण को नियंत्रित करने के लिये विनियमों को लागू करने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि इसका अत्यधिक दोहन नहीं हो रहा है।
    • सभी उद्योगों के लिये ‘जल प्रभाव आकलन’ (Water Impact Assessment) की आवश्यकता को अनिवार्य किया जाना चाहिये; साथ ही, एक ‘ब्लू सर्टिफिकेशन’ (Blue Certification) शुरू किया जाना चाहिये जो उद्योगों द्वारा जल के पुनर्भरण एवं पुनःउपयोग के आधार पर उनकी रेटिंग करे।
  • पानी के वैकल्पिक स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देना: जल के वैकल्पिक स्रोतों, जैसे उपचारित अपशिष्ट जल, के उपयोग को प्रोत्साहित करने से भूजल की मांग को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • ‘ग्रे वाटर’ और ‘ब्लैक वाटर’ के लिये दोहरी सीवेज प्रणाली विकसित करने के साथ-साथ कृषि और बागवानी में पुनर्चक्रित जल के पुन:उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • जल संबंधी शिक्षा और जागरूकता: जल संरक्षण के महत्त्व और भूजल की कमी को रोकने की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने से व्यक्तियों एवं समुदायों को संवहनीय जल उपयोग अभ्यासों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करने में मदद मिल सकती है।

अभ्यास प्रश्न: "भारत में भूजल की कमी के प्रमुख कारण कौन-से हैं और इस पर अंकुश के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं? सोदाहरण चर्चा कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

 Q.1 निम्नलिखित में से कौन सा प्राचीन शहर बांधों की एक शृंखला बनाकर और उससे जुड़े जलाशयों में पानी को प्रवाहित करके जल संचयन और प्रबंधन की विस्तृत प्रणाली के लिये जाना जाता है?  (वर्ष 2021)

 (A) धोलावीरा
 (B) कालीबंगन
 (C) राखीगढ़ी
 (D) रोपड़

 उत्तर: (A)


Q.2 'वाटर क्रेडिट' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2021)

  1. इसके तहत माइक्रोफाइनेंस टूल को जल और स्वच्छता क्षेत्र में काम करने के लिये उपयोग किया जाता है।
  2. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक के तत्त्वाधान में शुरू की गई एक वैश्विक पहल है।
  3. इसका उद्देश्य गरीब लोगों को सब्सिडी पर निर्भर हुए बिना उनकी पानी की ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

 (A) केवल 1 और 2
 (B) केवल 2 और 3
 (C) केवल 1 और 3
 (D) 1, 2 और 3

 उत्तर: (C)


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow