लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 02 Jul, 2022
  • 14 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

संप्रभु हरित बॉण्ड

यह एडिटोरियल 28/06/2022 को ‘द बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित “Going green with sovereign bonds” लेख पर आधारित है। इसमें ‘सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड’ और जलवायु परिवर्तन से निपटने में इसके महत्त्व के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

पिछले वर्ष नवंबर में आयोजित COP26 में भारत के प्रधानमंत्री ने वर्ष 2070 तक ‘शुद्ध शून्य’ (Net Zero) अर्थव्यवस्था प्राप्त कर लेने के भारत के विज़न और प्रतिबद्धता को प्रकट किया था। यह रणनीतिक दिशा भारत को हरित संक्रमण (Green Transition) में विकासशील विश्व का नेतृत्व करने का अवसर प्रदान करती है।

  • त्वरित नीति समर्थन के साथ भारत ने ऐसे मूल्य बिंदुओं पर सौर ऊर्जा बाज़ार के निर्माण का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है जिसे विकासशील देश वहन कर सकते हैं। ‘संप्रभु हरित बॉण्ड’ (Sovereign Green Bonds- SGB) जारी करना एक ऐसा ही सामयिक विचार है।
  • भारत सरकार ने इस वर्ष पहली बार संप्रभु हरित बॉण्ड जारी करने का प्रस्ताव रखा है। इस संबंध में वित्त मंत्री ने हरित अवसंरचना के लिये संसाधन जुटाने हेतु वर्ष 2022-23 के बजट में ‘सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड जारी करने की सरकार की मंशा की घोषणा की है।
  • इससे प्राप्त धन को सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं में लगाया जाएगा जो अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को कम करने में मदद करती हैं।

‘हरित बॉण्ड’ से क्या तात्पर्य है?

  • हरित बॉण्ड या ग्रीन बॉण्ड कंपनियों, देशों और बहुपक्षीय संगठनों द्वारा विशेष रूप से उन परियोजनाओं को निधि प्रदान करने के लिये जारी किये जाते हैं जिनमें सकारात्मक पर्यावरणीय या जलवायु लाभ निहित होते हैं और जो निवेशकों को निश्चित आय भुगतान प्रदान करते हैं।
    • इन परियोजनाओं में अक्षय ऊर्जा, स्वच्छ परिवहन और हरित भवन जैसी परियोजनाएँ शामिल हो सकती हैं।
  • इन बॉण्डों की आय/प्राप्ति (Proceeds) को हरित परियोजनाओं के लिये निर्धारित किया जाता है। ये मानक बॉण्डों से अलग हैं जिसकी प्राप्ति जारीकर्त्ता के विवेक पर विभिन्न उद्देश्यों के लिये उपयोग की जा सकती है।
  • लंदन स्थित ‘क्लाइमेट बॉण्ड्स इनिशिएटिव’ के अनुसार, वर्ष 2020 के अंत तक विश्व की 24 राष्ट्रीय सरकारों ने कुल मिलाकर 111 बिलियन डॉलर के सॉवरेन ग्रीन, सोशल एंड सस्टेनेबिलिटी (Green, Social and Sustainability- GSS) बॉण्ड जारी किये थे।

ग्रीन बॉण्ड को प्राप्त संप्रभु/सॉवरेन गारंटी के क्या लाभ हैं?

  • सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड जारी करना सरकारों और नियामकों को जलवायु कार्रवाई और सतत विकास संबंधी मंशा का एक प्रबल संकेत भेजता है।
  • यह घरेलू बाज़ार के विकास को उत्प्रेरित करेगा और संस्थागत निवेशकों को प्रोत्साहन प्रदान करेगा।
  • अंतर्राष्ट्रीयऊर्जा एजेंसी ( International Energy Agency-IEA) ने वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक (WEO) रिपोर्ट, 2021 में अनुमान लगाया है कि शुद्ध-शून्य की प्राप्ति के लिये अतिरिक्त 4 ट्रिलियन डॉलर के व्यय में से 70% विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिये आवश्यक होगा। इस दृष्टिकोण से सॉवरेन जारी किया जाना पूंजी के इन बड़े प्रवाहों को गति देने में सहायता कर सकता है।
  • बॉण्ड पर ग्रीन प्रीमियम 10-20 आधार अंकों का ‘यील्ड डिस्काउंट’ प्रदान करता है जो उन्हें आकर्षक बनाता है।
  • एक सॉवरेन ग्रीन बेंचमार्क के विकास से अंततः अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों से हरित बॉण्ड जुटाने के एक जीवंत पारितंत्र का निर्माण हो सकता है।

‘ग्रीन बॉण्ड प्रिंसिपल्स’ (GBP) क्या है?

  • ज्यूरिख स्थित ‘इंटरनेशनल कैपिटल मार्केट एसोसिएशन’ ने स्वैच्छिक दिशानिर्देशों और मानदंडों का एक सेट प्रदान किया है जिसे ग्रीन बॉण्ड प्रिंसिपल्स (GBP) के रूप में जाना जाता है।
    • ये सिद्धांत आय/प्राप्ति के उपयोग, परियोजना मूल्यांकन एवं चयन, आय/प्राप्ति का प्रबंधन और रिपोर्टिंग को कवर करते हैं।
    • वे जलवायु परिवर्तन शमन एवं अनुकूलन, प्राकृतिक संसाधनों एवं जैव-विविधता के संरक्षण और प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण संबंधी परियोजनाओं में आय के उपयोग का प्रावधान करते हैं।
    • तीन प्रमुख उपयोगकर्ता खंड हैं: ऊर्जा, भवन और परिवहन।

ग्रीन बॉण्ड की स्थिति

  • वैश्विक स्थिति:
    • पर्यावरण, सामाजिक और शासन (Environmental, Social and Governance- ESG) फंड या ईएसजी फंड लगभग 40 ट्रिलियन डॉलर का है, जिसमें यूरोप लगभग आधी हिस्सेदारी रखता है।
    • अनुमान है कि वर्ष 2025 तक प्रबंधन के तहत कुल वैश्विक परिसंपत्ति का लगभग एक-तिहाई भाग ESG परिसंपत्ति का होगा।
    • ईएसजी डेट फंड (ESG debt funds) की हिस्सेदारी लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर है, जिसमें से 80% से अधिक ‘पर्यावरणीय’ या ग्रीन बॉण्ड हैं, और शेष सामाजिक एवं संवहनीयता बॉण्ड (Social and Sustainability Bonds) हैं।
  • राष्ट्रीय स्थिति:
    • जलवायु कार्रवाई के लिये वैश्विक पूंजी जुटाने के क्षेत्र में कार्यरत एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन ‘क्लाइमेट बॉण्ड्स इनिशिएटिव’ के अनुसार, भारतीय संस्थानों ने 18 बिलियन डॉलर से अधिक के ग्रीन बॉण्ड जारी किये हैं।

शुद्ध शून्य उत्सर्जन की प्राप्ति के लिये हम और क्या कर रहे हैं?

  • भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य:
    • भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य समय के साथ अधिकाधिक महत्त्वाकांक्षी होते गए हैं, जहाँ पेरिस में वर्ष 2022 तक 175 GW, संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में वर्ष 2030 तक 450 GW और अब COP26 में वर्ष 2030 तक 500 GW तक की क्षमता प्राप्त करने की घोषणा की गई है।
    • भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से 50% स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता के लक्ष्य की भी घोषणा की है, जो 40% के मौजूदा लक्ष्य (जो पहले ही लगभग हासिल कर लिया गया है) का विस्तार करता है।
    • भारत ने ग्रे और ग्रीन हाइड्रोजन के लिये हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन की भी घोषणा की है।
    • ऊर्जा दक्षता के मामले में प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (Perform, Achieve and Trade- PAT) की बाज़ार-आधारित योजना ने अपने पहले और दूसरे चक्र के दौरान 92 मिलियन टन CO2 समतुल्य उत्सर्जन को टालने में सफलता पाई है।
  • परिवहन क्षेत्र में सुधार:
    • भारत फेम योजना (Faster Adoption and Manufacturing of (Hybrid &) Electric Vehicles Scheme) के साथ अपने ई-मोबिलिटी संक्रमण को गति प्रदान कर रहा है।
    • भारत ने 1 अप्रैल, 2020 तक भारत स्टेज- IV (BS-IV) से भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंडों की ओर आगे बढ़ने का महत्त्वाकांक्षी कदम उठाया। मूल रूप से इस लक्ष्य को वर्ष 2024 में अपनाना निर्धारित किया गया था।
    • पुराने और अनुपयुक्त वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने के लिये एक स्वैच्छिक वाहन स्क्रैपिंग नीति मौजूदा योजनाओं को पूरकता प्रदान करती है।
    • भारतीय रेलवे भी आगे कदम बढ़ा रही है और वर्ष 2023 तक सभी ब्रॉड-गेज मार्गों के पूर्ण विद्युतीकरण का लक्ष्य रखती है।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों को भारत का समर्थन:
    • भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल है जो वैश्विक ‘EV30@30’ अभियान का समर्थन करते हैं। यह अभियान वर्ष 2030 तक कुल वाहन बिक्री में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी कम से कम 30% करने का लक्ष्य रखता है।
    • ग्लासगो में आयोजित COP26 में जलवायु परिवर्तन के लिये भारत द्वारा पाँच तत्वों (जिसे प्रधानमंत्री ने ‘पंचामृत’ कहा) की पैरवी इसी दिशा में प्रतिबद्धता को प्रकट करती है।
    • भारत ने ईवी पारितंत्र के विकास और प्रोत्साहन हेतु कई उपाय किये हैं:
      • पुनर्संरचित फेम- II योजना
      • आपूर्तिकर्ता पक्ष हेतु एडवांस केमिस्ट्री सेल (ACC) के लिये उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना
      • इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माताओं हेतु ऑटो एवं ऑटोमोटिव घटकों के लिये हाल ही में शुरू की गई PLI योजना।
  • सरकारी योजनाओं की भूमिका:
    • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना ने 88 मिलियन परिवारों को कोयला-आधारित रसोई ईंधन से LPG कनेक्शन में स्थानांतरित करने में मदद की है।
    • उजाला योजना के तहत 367 मिलियन से अधिक LED बल्ब वितरित किये गए हैं, जिससे प्रति वर्ष 38.6 मिलियन टन CO2 की कमी हुई है।
    • इन दो योजनाओं और इसी तरह की अन्य पहलों ने भारत को वर्ष 2005 से 2016 के बीच अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 24% कमी लाने में मदद की है।
  • निम्न-कार्बन संक्रमण में उद्योगों की भूमिका:
    • ग्राहकों और निवेशकों की बढ़ती जागरूकता के साथ ही नियामक और प्रकटीकरण आवश्यकताओं की वृद्धि के साथ भारत के सार्वजनिक और निजी क्षेत्र पहले से ही जलवायु लक्ष्य की पूर्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये, भारतीय सीमेंट उद्योग ने अग्रणी उपाय किये हैं और वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक क्षेत्रवार निम्न कार्बन में से एक की अभूतपूर्व उपलब्धि प्राप्त की है।
    • भारत की जलवायु नीति का इसके निजी क्षेत्र की कार्रवाइयों और प्रतिबद्धताओं के साथ वृहत सामंजस्य स्थापित हुआ है।

आगे की राह

  • मसाला बॉण्ड:
    • मसाला बॉण्ड (MB) रुपए मूल्यवर्ग के बॉण्ड हैं; इनके माध्यम से भारतीय रुपए में विदेशी बाज़ारों से धन जुटाया जाएगा।
      • विदेशी बाज़ारों में जारी MB जारीकर्ता की मुद्रा जोखिम समस्या का समाधान करेगा और पूंजी के एक बड़े पूल को आकर्षित करेगा।
      • यह देश में विदेशी निवेश को प्रबल करने में मदद करता है क्योंकि यह भारतीय मुद्रा में विदेशी निवेशकों के विश्वास को सुविधाजनक बनाता है।
  • सरकार को हरित और सतत निवेश के अवसरों में सुधार के लिये विभिन्न नीतिगत, नियामक और विकासात्मक कदम उठाने चाहिये।
  • सरकार के पास सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड पर एक नीति होनी चाहिये जो मुद्रा एवं बाज़ारों के चयन, गारंटी एवं ऋण संवर्द्धन, आय/प्राप्ति के उपयोग पर प्राथमिकताओं आदि के संबंध में सभी विचारों को समाहित करती हो।
  • हरित वित्त की पहुँच के व्यापक विस्तार के लिये छोटी फर्मों और असंगठित क्षेत्र में पात्र उपयोगकर्ता बन सकने की क्षमता विकसित करने की आवश्यकता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये आदर्शतः पेरिस समझौते के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय हितधारकों के सहयोग से एक कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: ग्रीन बॉण्ड भारत की जलवायु प्रत्यास्थता की कुंजी रखते हैं। टिप्पणी कीजिये।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2