कृषि
भारत की मिलेट क्रांति
यह एडिटोरियल 31/01/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Tasks for India’s millet revolution” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में मोटे अनाजों के उपभोग के मार्ग की बाधाओं के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज या पोषक अनाज वर्ष (International Year of Millets) घोषित किया है। मोटे अनाज या ‘मिलेट्स’ (Millets) में विशेष पोषक गुण (प्रोटीन, आहार फाइबर, सूक्ष्म पोषक तत्वों और एंटीऑक्सिडेंट से समृद्ध) पाए जाते हैं और ये विशेष कृष्य या शस्य विशेषताएँ (जैसे सूखा प्रतिरोधी और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिये उपयुक्त होना) रखते हैं।
- भारत में दो वर्गों के मोटे अनाज उगाए जाते हैं। प्रमुख मोटे अनाज (Major millets) में ज्वार (sorghum), बाजरा (pearl millet) और रागी (finger millet) शामिल हैं, जबकि गौण मोटे अनाज (Minor millets) में कंगनी (foxtail), कुटकी (little millet), कोदो (kodo), वरिगा/पुनर्वा (proso) और साँवा (barnyard millet) शामिल हैं।
- भारत की ‘मिलेट क्रांति’ (Millet Revolution) मोटे अनाजों के स्वास्थ्य संबंधी और पर्यावरणीय लाभों के बारे में बढ़ती जागरूकता के साथ-साथ पारंपरिक कृषि अभ्यासों को पुनर्जीवित करने तथा छोटे पैमाने के किसानों को समर्थन देने के प्रयासों से प्रेरित है। इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार और सतत कृषि को बढ़ावा देने की देश की दोहरी चुनौतियों के समाधान के रूप में देखा जा रहा है।
मोटे अनाज को महत्त्वपूर्ण ‘पोषक अनाज’ क्यों माना जाता है?
- जलवायु-प्रत्यास्थी प्रधान खाद्य फसलें:
- मोटे अनाज सूखा प्रतिरोधी (drought-resistant) होते हैं, कम जल की आवश्यकता रखते हैं और कम पोषक मृदा दशाओं में भी उगाए जा सकते हैं। यह उन्हें अप्रत्याशित मौसम पैटर्न और जल की कमी वाले क्षेत्रों के लिये एक उपयुक्त खाद्य फसल बनाता है।
- पोषक तत्वों से भरपूर:
- मोटे अनाज फाइबर, प्रोटीन, विटामिन और खनिजों के अच्छे स्रोत होते हैं।
- ग्लूटेन-फ्री:
- मोटे अनाज प्राकृतिक रूप से ग्लूटेन-फ्री या लस मुक्त होते हैं, जो उन्हें सीलियेक रोग या लस असहिष्णुता (Gluten Intolerance) वाले लोगों के लिये उपयुक्त खाद्य अनाज बनाते हैं।
- अनुकूलन योग्य:
- मोटे अनाज को विभिन्न प्रकार की मृदा और जलवायु दशाओं में उगाया जा सकता है, जिससे वे किसानों के लिये एक बहुमुखी फसल विकल्प का निर्माण करते हैं।
- संवहनीय:
- मोटे अनाज प्रायः पारंपरिक कृषि विधियों का उपयोग कर उगाये जाते हैं, जो आधुनिक, औद्योगिक कृषि पद्धतियों की तुलना में अधिक संवहनीय तथा पर्यावरण के दृष्टिकोण से अनुकूल हैं।
मोटे अनाज या मिलेट्स
- परिचय:
- ‘मिलेट्स’ छोटे बीज वाली विभिन्न फसलों के लिये संयुक्त रूप से प्रयुक्त शब्द है जिन्हें समशीतोष्ण, उपोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के शुष्क भूभागों में सीमांत भूमि पर अनाज फसलों के रूप में उगाया जाता है।
- भारत में उपलब्ध कुछ सामान्य मोटे अनाजों में रागी, ज्वार, समा, बाजरा और वरिगा शामिल हैं।
- इन अनाजों के प्राचीनतम साक्ष्य सिंधु सभ्यता से प्राप्त हुए हैं और माना जाता है कि ये खाद्य के लिये उगाये गए प्रथम फसलों में से एक थे।
- विश्व के 131 देशों में इनकी खेती की जाती है और ये एशिया एवं अफ्रीका में लगभग 60 करोड़ लोगों के लिये पारंपरिक आहार का अंग हैं।
- भारत विश्व में मोटे अनाजों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
- यह वैश्विक उत्पादन में 20% और एशिया के उत्पादन में 80% की हिस्सेदारी रखता है।
- वैश्विक वितरण:
- भारत, नाइजीरिया और चीन दुनिया में मोटे अनाज के सबसे बड़े उत्पादक देश हैं, जो वैश्विक उत्पादन में संयुक्त रूप से 55% से अधिक की हिस्सेदारी रखते हैं।
- कई वर्षों तक भारत मोटे अनाजों का सर्वप्रमुख उत्पादक बना रहा था, लेकिन हाल के वर्षों में अफ्रीका में मोटे अनाजों के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।
मोटे अनाजों की खेती और उपभोग में वृद्धि के मार्ग की बाधाएँ
- मोटे अनाजों के लिये उपलब्ध भूमि-क्षेत्र में गिरावट:
- पूर्व में 35 मिलियन हेक्टेयर भूमि-क्षेत्र में मोटे अनाजों की खेती की जाती थी, लेकिन अब इसे केवल 15 मिलियन हेक्टेयर भूमि में ही उगाया जा रहा है।
- भूमि उपयोग में बदलाव के कारणों में कम पैदावार और मोटे अनाजों के प्रसंस्करण से संलग्न समय-साध्य एवं श्रमसाध्य कार्य (जो प्रायः महिलाओं द्वारा किये जाते हैं) जैसे कारक शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त, इनका बहुत कम विपणन किया गया था और इनके एक छोटे भाग को ही मूल्य-वर्धित उत्पादों में संसाधित किया गया था।
- वर्ष 2019-20 में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), एकीकृत बाल विकास योजना (ICDS) और स्कूली भोजन के माध्यम से मोटे अनाजों का कुल उठाव लगभग 54 मिलियन टन रहा था।
- यदि चावल एवं गेहूँ के 20% को मोटे अनाजों से प्रतिस्थापित करना हो तो देश को 10.8 मिलियन टन मोटे अनाजों की आवश्यकता होगी।
- मोटे अनाजों की निम्न उत्पादकता:
- पिछले एक दशक में ज्वार के उत्पादन में गिरावट आई है, जबकि बाजरा उत्पादन गतिहीन बना रहा है। रागी सहित कई अन्य मोटे अनाजों के उत्पादन में भी गतिहीनता या गिरावट देखी गई है।
- जागरूकता की कमी:
- भारत में मोटे अनाजों के स्वास्थ्य लाभों के बारे में पर्याप्त जागरूकता का अभाव है, जिससे इसकी निम्न मांग की स्थिति बनी हुई है।
- उच्च लागत:
- मोटे अनाजों के मूल्य प्रायः पारंपरिक अनाजों की तुलना में अधिक होते हैं, जिससे वे निम्न आय वाले उपभोक्ताओं के लिये कम सुलभ होते हैं।
- सीमित मात्रा में उपलब्धता:
- मोटे अनाज पारंपरिक एवं आधुनिक (ई-कॉमर्स) खुदरा बाज़ारों में व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हैं, जिससे उपभोक्ताओं के लिये इनकी खरीद कठिन हो जाती है।
- स्वाद संबंधी अरुचि:
- कुछ लोग मोटे अनाजों के स्वाद को फीका या अप्रिय पाते हैं और इसलिये इनके उपभोग में अरुचि रखते हैं।
- खेती संबंधी चुनौतियाँ:
- मोटे अनाजों की खेती प्रायः कम पैदावार और कम लाभप्रदता से संबद्ध है, जो किसानों को इनकी खेती से हतोत्साहित कर सकती है।
- चावल और गेहूँ से प्रतिस्पर्द्धा:
- चावल और गेहूँ भारत में प्रधान खाद्य अनाज हैं जो व्यापक रूप से उपलब्ध भी हैं। इससे मोटे अनाजों के लिये बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन हो जाता है।
- सरकारी सहायता का अभाव:
- भारत में मोटे अनाजों की खेती और उपभोग को बढ़ावा देने के लिये पर्याप्त सहायता का अभाव रहा है, जिससे उनका विकास सीमित रह गया है।
सरकार की संबंधित पहलें
- राष्ट्रीय मिलेट्स मिशन (NMM): मोटे अनाजों के उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2007 में NMM लॉन्च किया गया।
- मूल्य समर्थन योजना (PSS): यह मोटे अनाजों की खेती के लिये किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- मूल्य-वर्धित उत्पादों का विकास: यह मोटे अनाजों की मांग और उपभोग को बढ़ाने के लिये मूल्य-वर्धित मिलेट-आधारित उत्पादों के उत्पादन को प्रोत्साहित करता है।
- PDS में मोटे अनाजों को बढ़ावा: सरकार ने मोटे अनाजों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल किया है ताकि इसे आम लोगों के लिये सुलभ और सस्ता बनाया जा सके।
- जैविक खेती को बढ़ावा: सरकार जैविक मोटे अनाजों के उत्पादन और उपभोग को बढ़ाने के लिये मोटे अनाजों की जैविक खेती (Organic Farming) को बढ़ावा दे रही है।
आगे की राह
- पर्याप्त सार्वजनिक समर्थन:
- पहाड़ी क्षेत्रों और शुष्क मैदानी इलाकों के छोटे किसान (जो ग्रामीण भारत के निर्धनतम परिवारों में शामिल हैं) मोटे अनाजों की खेती के लिये तभी प्रेरित होंगे जब उन्हें इससे अच्छा लाभ प्राप्त होगा।
- पर्याप्त सार्वजनिक समर्थन मोटे अनाजों की खेती को लाभदायक बना सकता है, PDS के लिये इनकी आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है और अंततः आबादी के एक बड़े हिस्से को पोषण संबंधी लाभ प्रदान कर सकता है।
- जागरूकता और शिक्षा:
- मोटे अनाजों और उनके स्वास्थ्य लाभों के बारे में जागरूकता की कमी को शिक्षा एवं प्रचार-प्रसार के माध्यम से दूर किया जा सकता है।
- उपलब्धता और सुलभता:
- बाज़ारों में बाजरा की उपलब्धता में सुधार और उन्हें उपभोक्ताओं के लिये अधिक सुलभ बनाने से उनके उपभोग को बढ़ावा मिल सकता है।
- वहनीयता:
- मोटे अनाज प्रायः अन्य प्रधान अनाजों की तुलना में अधिक महँगे होते हैं, जिससे वे निम्न आय वाले उपभोक्ताओं के लिये कम सुलभ होते हैं। सरकारी सब्सिडी या बाज़ार के हस्तक्षेप के माध्यम से वहनीयता के मुद्दे को संबोधित कर उपभोग में वृद्धि की जा सकती है।
- धारणा में परिवर्तन लाना:
- मोटे अनाजों को गरीबों का अनाज मानने की धारणा को विपणन और प्रचार के माध्यम से बदलने की ज़रूरत है।
- प्रसंस्करण और मूल्य-वर्धित उत्पाद:
- प्रसंस्करण तकनीकों में सुधार और मूल्य-वर्धित मिलेट-आधारित उत्पादों की उपलब्धता में वृद्धि उन्हें उपभोक्ताओं के लिये अधिक आकर्षक बना सकती है।
- सहयोग का निर्माण:
- किसानों, प्रसंस्करणकर्ताओं और विपणन-कर्ताओं के बीच सहयोग के निर्माण से मोटे अनाज की आपूर्ति एवं मांग को बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
अभ्यास प्रश्न: मोटे अनाजों की खेती और उपभोग के पुनरुद्धार के भारत के प्रयासों के मार्ग में विद्यमान चुनौतियों की चर्चा कीजिये।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)Q. गहन बाजरा संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल' के संदर्भ में निम्नलिखित कथन में से कौन-सा/से सही है/हैं? (वर्ष 2016)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर का चयन कीजिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। |