जैविक खाद्य उत्पादों की लेबलिंग अब अनिवार्य
चर्चा में क्यों?
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) द्वारा जारी एक अधिसूचना के अनुसार, जुलाई 2018 से समुचित लेबलिंग के बिना जैविक खाद्य उत्पादों को बेचना गैर-कानूनी होगा।
प्रमुख बिंदु
- 2 जनवरी को भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण द्वारा जारी नोटिफिकेशन के अनुसार, जैविक खाद्य उत्पादों की बिक्री करने वाली कंपनियों को अपने उत्पादों को प्रमाणित करवाना अनिवार्य होगा।
- प्रमाणन के लिये निम्नलिखित दो प्राधिकरणों को नामित किया गया है-
1. जैविक उत्पादन हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम ( National Programme for Organic Production-NPOP)।
2. भारत के लिये सहभागिता गारंटी प्रणाली (Participatory Guarantee System for India- PGS-I)। - इसके अतिरिक्त अपने उत्पाद को 'कार्बनिक उत्पाद' दर्शाने वाली कंपनियाँ स्वैच्छिक रूप से FSSAI से ‘जैविक भारत’ (JAIVIK BHARAT) का लोगो भी प्राप्त कर सकती हैं, जिसे हाल ही में FSSAI द्वारा जारी किया गया है।
- इस व्यवस्था से किसी खाद्य उत्पाद की जैविक स्थिति पर पूर्ण और सटीक जानकारी मिल पाएगी।
जैविक प्रमाणीकरण (Organic Certification)
- जैविक उत्पाद के जैविक होने की मान्यता तभी है, जब वह उत्पाद जैविक खेती नियत राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरता हो।
- इसके अंतर्गत मान्यता प्राप्त जैविक प्रमाणीकरण संस्थाओं द्वारा जैविक उत्पादन की विभिन्न अवस्थाओं जैसे-उत्पादन, प्रसंस्करण, भंडारण आदि का राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय जैविक मानकों के आधार पर निरीक्षण करने के उपरांत किसान को “प्रमाणित जैविक खेत/उत्पाद” का प्रमाण-पत्र दिया जाता है।
- जैविक उत्पाद उगाने वाला किसान “प्रमाणित जैविक उत्पादक किसान” कहलाता है।
जैविक उत्पाद प्रमाणन से उत्पादकों और उपभोक्ताओं को होने वाले लाभ
- अपने उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त करने में आसानी।
- तेज़ी से बढ़ते हुए स्थानीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँच।
- स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा।
- अतिरिक्त धन और तकनीकी सहायता तक पहुँच।
- उत्पाद की मार्केटिंग में आसानी।
- उपभोक्ता को असली जैविक उत्पाद की पहचान करने में आसानी।
क्या है जैविक खेती?
- जैविक खेती (ऑर्गेनिक फार्मिंग) कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाए रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करती है। सन् 1990 के बाद से विश्व में जैविक उत्पादों का बाज़ार वर्तमान में काफी बढ़ गया है।
जैविक खेती निम्नलिखित रूप से लाभकारी है
- पानी की गुणवत्ता में सुधार।
- ऊर्जा की बचत में सहायक।
- जैव विविधता को प्रोत्साहन।
- मृदा-स्वास्थ्य में सुधार।
क्या है जैविक उत्पादन हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPOP)?
- भारत वर्ष में राष्ट्रीय स्तर पर जैविक खेती के केन्द्रित व सुव्यवस्थित विकास हेतु भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय द्वारा सन 2001 में अपने उपक्रम कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के माध्यम से जैविक प्रमाणीकरण की प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिये NPOP की शुरुआत की गई।
- इस प्रमाणीकरण व्यवस्था के तहत NPOP द्वारा सफल प्रसंस्करण इकाइयों, भंडारों और खेतों को ‘इंडिया ऑर्गेनिक’ का लोगो प्रदान कराया जाता है।
- एपीडा द्वारा जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण विश्व के सभी देशों में मान्य है।
क्या है PGS-I?
- “भारत की सहभागिता प्रतिभूति प्रणाली” (पीजीएस-इंडिया) एक विकेंद्रीकृत जैविक कृषि प्रमाणन प्रणाली है।
- इसे घरेलू जैविक बाजार के विकास को बढ़ावा देने तथा जैविक प्रमाणीकरण की आसान पहुँच के लिये छोटे एवं सीमांत किसानों को समर्थ बनाने के लिये प्रारम्भ किया गया है।
- इसे कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि एवं सहकारिता विभाग द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है।
- यह प्रमाणीकरण प्रणाली उत्पादकों / किसानों, व्यापारियों सहित हितधारकों की सक्रिय भागीदारिता के साथ स्थानीय रूप से संबद्ध है।
- इस समूह प्रमाणीकरण प्रणाली को परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) का समर्थन प्राप्त है। एक प्रकार से यह जैविक उत्पाद की स्वदेशी मांग को सहायता पहुँचाती है और किसान को दस्तावेज़ प्रबंधन और प्रमाणीकरण प्रक्रिया से जुड़ी अन्य आवश्यकताओं से संबंधित प्रशिक्षण देती है।
क्या है एपीडा?
- कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority-APEDA) की स्थापना दिसंबर 1985 में संसद द्वारा पारित कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा की गई।
- यह प्राधिकरण, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।
- देश के कृषि उपज के निर्यात के लिये बुनियादी संरचना उपलब्ध कराने के अतिरिक्त इसके प्रमुख कार्यों में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना, किसानों को बेहतर फसल और उनके उचित मूल्य की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये मार्गदर्शन देना, वित्तीय सहायता प्रदान करना, कृषि उपज का सर्वेक्षण तथा संभावना का अध्ययन करना तथा अनुसूचित उत्पादों के निर्यात से संबद्ध उद्योगों का विकास करना भी शामिल हैं।
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण
(Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI)
- केंद्र सरकार ने खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) का गठन किया।
- FSSAI के कार्यान्वयन के लिये स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय प्रशासनिक मंत्रालय है।
- FSSAI मानव उपभोग के लिये पौष्टिक भोजन के उत्पादन, भंडारण, वितरण, बिक्री और आयात की सुरक्षित उपलब्धता को सुनिश्चित करने का काम करता है।
- इसके अलावा यह देश के सभी राज्यों, ज़िलों एवं ग्राम पंचायत स्तर पर खाद्य पदार्थों के उत्पादन और बिक्री के तय मानकों को बनाए रखने में सहयोग करता है।
- यह समय-समय पर खुदरा एवं थोक खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की जाँच भी करता है।