पुलिस सुधार: आवश्यकता और प्रयास
प्रीलिम्स के लियेराष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल, उत्पीड़न के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, पुलिस सुधार से संबंधित विभिन्न आयोग और समितियाँ मेन्स के लियेपुलिस सुधार की आवश्यकता, इस संबंध में विभिन्न समितियों की सिफारिशें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (Commonwealth Human Rights Initiative- CHRI) की कार्यकारी समिति (भारत) द्वारा जारी आधिकारिक बयान के अनुसार, बीते सप्ताह पुलिस द्वारा तमिलनाडु के दो व्यापारियों की कथित हत्या और यातना भारत की विघटित आपराधिक न्याय प्रणाली की ओर इशारा करती है और देश में पुलिस सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
प्रमुख बिंदु
- राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (CHRI) की कार्यकारी समिति के अनुसार, तमिलनाडु के तूतीकोरिन ज़िले में पिता-पुत्र की पुलिस हिरासत में हुई कथित हत्या देश में कानूनी दायित्त्वों की पूर्ति के लिये एक मज़बूत कानून की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।
- ध्यातव्य है कि दोनों लोगों को तमिलनाडु पुलिस ने कथित तौर पर COVID-19 लॉकडाउन के दौरान अपनी दुकानों को अनुमति की अवधि से अधिक समय के लिये खोलने हेतु गिरफ्तार किया था।
- CHRI के आधिकारिक बयान के अनुसार, ‘भारत उन कुछ विशेष देशों में शामिल है, जिन्होंने अभी तक उत्पीड़न के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UN Convention Against Torture-UNCAT) की पुष्टि नहीं की है।’
- उल्लेखनीय है कि भारत ने वर्ष 1997 में इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किये थे, किंतु अभी तक भारत ने इस कन्वेंशन की पुष्टि नहीं की है।
पुलिस व्यवस्था
- संविधान के तहत, पुलिस राज्य द्वारा अभिशासित विषय है, इसलिये भारत के प्रत्येक राज्य के पास अपना एक पुलिस बल है। राज्यों की सहायता के लिये केंद्र को भी पुलिस बलों के रखरखाव की अनुमति दी गई है ताकि कानून और व्यवस्था की स्थिति सुनिश्चित की जा सके।
- इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पुलिस बल, राज्य द्वारा अधिकार प्रदत्त व्यक्तियों का एक निकाय है, जो राज्य द्वारा निर्मित कानूनों को लागू करने, संपत्ति की रक्षा और नागरिक अव्यवस्था को सीमित रखने का कार्य करता है।
पुलिस सुधार की आवश्यकता
- भारत के अधिकांश राज्यों ने अपने पुलिस संबंधी कानून ब्रिटिश काल के 1861 के अधिनियम के आधार पर बनाए हैं, जिसके कारण ये सभी कानून भारत की मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप नहीं है।
- देश में अधिकांश राज्यों में पुलिस की छवि तानाशाहीपूर्ण, जनता के साथ मित्रवत न होना और अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने की रही है। ऐसे में पुलिस सुधार के माध्यम से आम जनता के बीच पुलिस की छवि में सुधार करना काफी महत्त्वपूर्ण है, ताकि आम जनता स्वयं को पुलिस के साथ जोड़ सके।
- विदित है कि मौजूदा दौर में गुणवत्तापूर्ण जाँच के लिये नवीन तकनीकी क्षमताओं की आवश्यकता होती है, किंतु भारतीय पुलिस व्यवस्था में आवश्यक तकनीक के अभाव में सही ढंग से जाँच संभव नहीं हो पाती है और कभी-कभी इसका असर उचित न्याय मिलने की प्रक्रिया पर भी पड़ता है।
- भारत में पुलिस-जनसंख्या अनुपात काफी कम है, जिसके कारण लोग असुरक्षित महसूस करते हैं और पुलिस को मानव संसाधन की कमी से जूझना पड़ता है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय पुलिस व्यवस्था में प्रभावी जवाबदेही तंत्र का भी अभाव है।
पुलिस सुधार हेतु गठित समितियाँ
- धर्मवीर आयोग अथवा राष्ट्रीय पुलिस आयोग
- पुलिस सुधारों को लेकर वर्ष 1977 में धर्मवीर की अध्यक्षता में गठित आयोग को राष्ट्रीय पुलिस आयोग कहा जाता है। चार वर्षों में इस आयोग ने केंद्र सरकार को आठ रिपोर्टें सौंपी थीं, लेकिन इसकी सिफारिशों पर अमल नहीं किया गया।
- इस आयोग की सिफारिशों में प्रत्येक राज्य में एक प्रदेश सुरक्षा आयोग का गठन, पुलिस प्रमुख का कार्यकाल तय करना और एक नया पुलिस अधिनियम बनाया जाना आदि शामिल था।
- पद्मनाभैया समिति
- वर्ष 2000 में पुलिस सुधारों पर पद्मनाभैया समिति का गठन किया गया था, इस समिति का मुख्य कार्य पुलिस बल की भर्ती प्रक्रियाओं, प्रशिक्षण, कर्तव्यों और ज़िम्मेदारियों, पुलिस अधिकारियों के व्यवहार और पुलिस जाँच आदि विषयों का अध्ययन करना था।
- अन्य समितियाँ
- देश में आपातकाल के दौरान हुई ज़्यादतियों की जाँच के लिये गठित शाह आयोग ने भी ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति से बचने के लिये पुलिस को राजनैतिक प्रभाव से मुक्त करने की बात कही थी।
- इसके अलावा राज्य स्तर पर गठित कई पुलिस आयोगों ने भी पुलिस को बाहरी दबावों से बचाने की सिफारिशें की थीं।
प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार
- वर्ष 1996 में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी जिनमें पुलिस पर यह आरोप लगाया गया था कि पुलिसकर्मी राजनैतिक रूप से पक्षपातपूर्ण तरीके से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हैं।
- वर्ष 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में केंद्र एवं राज्यों को पुलिस के कामकाज के लिये दिशा-निर्देश तय करने, पुलिस के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने, नियुक्ति और हस्तांतरण का निर्णय लेने तथा पुलिस के दुर्व्यवहार की शिकायतें दर्ज करने के लिये प्राधिकरणों के गठन का आदेश दिया था।
- न्यायालय ने मुख्य पुलिस अधिकारियों को मनमाने हस्तांतरण और नियुक्ति से बचाने के लिये उनकी सेवा की न्यूनतम अवधि तय करने को भी अनिवार्य किया था।
- हालाँकि देश के अधिकांश राज्यों ने अभी तक इन दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया है।
आगे की राह
- भारत सरकार को सर्वोच्च प्राथमिकता के तौर पर संसद के समक्ष पुलिस हिरासत में होने वाली यातना से संबंधित एक मसौदा कानून तैयार करने का प्रयास करने चाहिये, साथ ही सरकार को UNCAT के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा करनी चाहिये।
- वर्तमान में भारतीय पुलिस व्यवस्था को एक नई दिशा, नई सोच और नए आयाम की आवश्यकता है। समय की मांग है कि पुलिस नागरिक स्वतंत्रता और मानव अधिकारों के प्रति जागरूक हो और समाज के सताए हुए तथा वंचित वर्ग के लोगों के प्रति संवेदनशील बने।
स्रोत: द हिंदू
कार्बन उत्सर्जन से चेन्नई में भारी वर्षा की आशंका
प्रीलिम्स के लियेकार्बन उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन मेन्स के लियेजलवायु परिवर्तन का मानवीय जीवन पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) चेन्नई के शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि से चेन्नई में बहुत अधिक होने की आशंका है।
प्रमुख बिंदु
- शोधकर्त्ताओं के अनुसार, कार्बन उत्सर्जन में हो रही वृद्धि चेन्नई क्षेत्र के लिये बहुत अधिक वर्षा के लिये अनुकूल संभावना को जन्म दे रही है।
- अध्ययन के परिणामों से ज्ञात होता है कि वर्तमान स्तरों की तुलना में भविष्य में चेन्नई के लिये अनुमानित वर्षा में 17.37 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।
- उल्लेखनीय है कि चेन्नई भारत के उन नगरों में से एक है, जहाँ प्रति व्यक्ति ग्रीनहाउस गैस (Per Capita Greenhouse Gas) उत्सर्जन उच्चतर श्रेणी में आता है।
प्रभाव
- शोध के मुताबिक बढ़ी हुई तीव्रता और वर्षा की ऐसी घटनाओं के भौगोलिक विस्तार से भारी बाढ़ आ सकती है।
- इसके परिणामस्वरूप खतरा पैदा हो सकता है और स्थानीय समुदायों को नुकसान होने की आशंका पैदा हो सकती है।
- उल्लेखनीय है कि दक्षिण भारत के राज्यों में भारी वर्षा होने की घटनाएँ बढ़ रही हैं, जिससे वहाँ भयानक बाढ़ आने लगी हैं।
कार्बन उत्सर्जन और उसका प्रभाव
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन या तो प्राकृतिक या मानवजनित होता है, प्राकृतिक उत्सर्जन मुख्य रूप से प्राकृतिक जंगल, पौधों, जलीय सूक्ष्मजीव और ज्वालामुखी आदि के कारण होता है, जबकि कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का मानवजनित उत्सर्जन हीटिंग, वाहनों, स्वेच्छा से लगाई गई आग, जीवाश्म ईंधन के बिजली उत्पादन स्टेशन आदि के कारण होता है।
- कार्बन उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन में काफी महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, जिसके मनुष्यों और पर्यावरण पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
- गौरतलब है कि कार्बन डाइऑक्साइड लगभग 50 से 200 वर्षों तक वायुमंडल में बनी रहती है, इस कारण इसका प्रभाव भविष्य में लंबे समय तक रहता है।
जलवायु परिवर्तन: एक चुनौती के रूप में
- सामान्यतः जलवायु का आशय किसी दिये गए क्षेत्र में लंबे समय तक औसत मौसम से होता है। अतः जब किसी क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) कहते हैं।
- जलवायु परिवर्तन को किसी एक स्थान विशेष में भी महसूस किया जा सकता है एवं संपूर्ण विश्व में भी। यदि वर्तमान संदर्भ में बात करें तो यह इसका प्रभाव लगभग संपूर्ण विश्व में देखने को मिल रहा है।
- गौरतलब है कि पृथ्वी के समग्र इतिहास में यहाँ की जलवायु कई बार परिवर्तित हुई है एवं जलवायु परिवर्तन की अनेक घटनाएँ सामने आई हैं।
स्रोत: पी.आई.बी
REDD+ कार्यक्रम
प्रीलिम्स के लिये:REDD+ कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र REDD कार्यक्रम मेन्स के लिये:REDD+ कार्यक्रम |
चर्चा में क्यों?
युगांडा ‘निर्वनीकरण और वन निम्नीकरण से होने वाले उत्सर्जन में कटौती’ (Reducing Emissions from Deforestation and Forest Degradation- REDD+) कार्यक्रम के माध्यम से उत्सर्जन में कमी के परिणाम प्रस्तुत करने वाला पहला अफ्रीकी देश बन गया है।
प्रमुख बिंदु:
- REDD+ कार्यक्रम का उद्देश्य निर्वनीकरण और वन निम्नीकरण में कमी के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन में कमी लाना है।
- ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन' (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) को परिणाम प्रस्तुत करने से देश को REDD+ कार्यक्रम के संभावित परिणाम-आधारित भुगतानों (Results-Based Payments) का लाभ प्राप्त हो सकेगा।
REDD+ कार्यक्रम:
- REDD+ ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन’ के भागीदार देशों द्वारा विकसित एक तंत्र है। यह विकासशील देशों को वनाच्छादित भूमि से उत्सर्जन में कमी कम करने तथा कम कार्बन आधारित निवेश को प्रोत्साहन देकर सतत् विकास को प्रोत्साहित करता है।
REDD+ के चरण:
REDD+ कार्यक्रम के निम्नलिखित तीन चरण हैं:
- तत्परता (Readiness):
- राष्ट्रीय REDD+ रणनीति और क्षमता निर्माण का चरण
- कार्यान्वयन (Implementation):
- प्रदर्शन गतिविधियों का चरण
- परिणाम-आधारित भुगतान (Result-Based Payment):
- परिणाम आधारित भुगतान REDD+ कार्यक्रम का अंतिम चरण है।
- यह उन विकासशील देशों जिनके द्वारा निश्चित अवधि के दौरान निर्वनीकरण पर रोक लगाई है, को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करता है।
- यह संयुक्त राष्ट्र समर्थित तकनीकी मूल्यांकन के माध्यम से किया जाता है। ब्राज़ील परिणाम आधारित भुगतानों के तहत निधि प्राप्त करने वाला प्रथम देश था।
संयुक्त राष्ट्र REDD कार्यक्रम:
- UN-REDD कार्यक्रम विकासशील देशों में निर्वनीकरण और वन निम्नीकरण से होने वाले उत्सर्जन में कटौती‘ (REDD+) की दिशा में संयुक्त राष्ट्र का सहयोग कार्यक्रम है।
- कार्यक्रम की शरुआत वर्ष 2008 में की गई थी।
- कार्यक्रम को ‘खाद्य एवं कृषि संगठन’ (Food and Agriculture Organization- FAO), ‘संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ (United Nations Development Programme-UNDP) और ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (United Nations Environment Programme- UNEP) की निर्धारित भूमिका और तकनीकी विशेषज्ञता के आधार पर बनाया गया है।
- कार्यक्रम अफ्रीका, एशिया-प्रशांत और लैटिन अमेरिका के भागीदार देशों में राष्ट्रीय REDD+ तत्परता (Readiness) चरणों के प्रयासों को समर्थन प्रदान करता है।
REDD+ तथा UN-REDD कार्यक्रम में अंतर:
युगांडा में REDD+ कार्यक्रम:
- युगांडा में REDD + कार्यक्रम को देश की राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन नीति के एक भाग के रूप में वर्ष 2013 में तथा वर्ष 2017 में REDD+ रणनीति को शुरू किया।
- युगांडा सरकार ने REDD+ रणनीति के तहत वर्ष 2015-17 के दौरान कार्बन उत्सर्जन में कमी को मापने के लिये वन परिवर्तन तथा संबंधित उत्सर्जन कारकों के क्षेत्र में किये गए प्रदर्शन का आकलन करने का निर्णय लिया।
- इस आकलन पर आधारित परिणामों को हाल ही में UNFCCC को प्रस्तुत किया गया है।
- युगांडा द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़ों के अनुसार, उसने वर्ष 2015-2017 की अवधि के दौरान 8,070,694 टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम किया।
प्रस्तुत परिणामों का महत्त्व:
- इससे युगांडा को ‘हरित जलवायु कोष’ (Green Climate Fund- GCF) के तहत वन संरक्षण योजना के माध्यम से निधि प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
- यह अन्य अफ्रीकी देशों को निर्वनीकरण और वन निम्नीकरण में कमी के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये प्रोत्साहित करेगा।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि अफ्रीका में शुद्ध वन ह्रास की दर विश्व में सर्वाधिक 3.9 मिलियन हेक्टेयर प्रति दशक है।
REDD+ कार्यक्रम के समक्ष चुनौतियाँ:
- REDD+ कार्यक्रम के लक्ष्यों को प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि देशों द्वारा वनीकरण के स्थान पर अन्य प्राथमिकताओं यथा- कृषि, खनन, ऊर्जा और वानिकी को वरीयता दी जाती है।
निष्कर्ष:
- REDD+ कार्यक्रम के सभी चरणों के क्रियान्वयन के लिये कार्यक्रम के डिज़ाइन, क्रियान्वयन तथा परिणामों का विश्लेषण आवश्यक है। अफ्रीका में REDD+ के सभी चरणों के क्रियान्वयन से इस बात की पूरी संभावना है कि अगले दशक में अफ्रीका वन चैंपियन के रूप में स्थान प्राप्त करेगा।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
COVID-19 दवा के मानवीय परीक्षण को मंज़ूरी
प्रीलिम्स के लिये:कोवाक्सिन वैक्सीन, COVID-19 मेन्स के लिये:ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया, भारत बायोटेक का चिकित्सा क्षेत्र में महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘भारत बायोटेक’ द्वारा भारत में विकसित की जा रही पहली COVID-19 वैक्सीन 'कोवाक्सिन' (COVAXIN), के मानव क्लीनिकल परीक्षण के लिये ‘ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया’ (Drug Controller General of India- DCGI) द्वारा अनुमति दे दी गई है।
प्रमुख बिंदु:
- भारत बायोटेक कंपनी द्वारा इस वैक्सीन को ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद’ (Indian Council of Medical Research- ICMR) तथा ‘राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान’ (National Institute of Virology- NIV) के सहयोग से विकसित किया गया है।
- ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया’ तथा ‘स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय’ द्वारा इस वैक्सीन के फेज़-1 एवं फेज़-2 के लिये मानव क्लीनिकल परीक्षण की मंज़ूरी प्रदान की है।
- अगले महीने अर्थात जुलाई से इस वैक्सीन का इंसानों पर परीक्षण शुरू किया जाएगा।
- इस वैक्सीन को हैदराबाद जीनोम वैली में स्थित भारत बायोटेक कंपनी की बीएसएल-3 (बायो-सेफ्टी लेवल 3) हाई कंटेनमेंट फैसिलिटी के माध्यम से कोरोना वायरस स्ट्रेन से अलग किया गया है जिसे बाद में भारत बायोटेक कंपनी को भेजा गया जहाँ इस स्वदेशी वैक्सीन को विकसित किया गया है।
‘भारत बायोटेक’ का राष्ट्रीय महत्त्व’
- भारत बायोटेक कंपनी देश में महामारियों से निपटने के लिये राष्ट्रीय महत्त्व के विषय के रूप में टीका विकास को आगे बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध है।
- भारत बायोटेक अपने सेल कल्चर प्लेटफॉर्म (Cell Culture Platform) प्रौद्योगिकी द्वारा पोलियो, रेबीज़, रोटावायरस, जापानी एन्सेफलाइटिस, चिकनगुनिया और ज़ीका रोगों के लिये भी टीका विकसित करने के लिये भी प्रतिबद्ध है।
- भारत में COVID-19 वैक्सीन का निर्माण करने वाली भारत बायोटेक कंपनी ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद’ तथा ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी’ के सहयोग से कॉवोफ्लू टीका तैयार करने के प्रयासों में लगी है।
स्रोत: द हिंदू
PM फॉर्मलाइजेशन ऑफ माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइजेज योजना
प्रीलिम्स के लिये:सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों के औपचारिकीकरण हेतु योजना मेन्स के लिये:सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 'खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय' (Ministry of Food Processing Industries- MoFPI) ने 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' के एक भाग के रूप में ‘PM फॉर्मलाइजेशन ऑफ माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइजेज’ (PM Formalization of Micro Food Processing Enterprises - PM FME) योजना की शुरुआत की है।
प्रमुख बिंदु:
- योजना के तहत कुल 35,000 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा। जिससे 9 लाख कुशल और अर्द्ध-कुशल रोज़गारों के सृजित होने की संभावना है।
- असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की लगभग 25 लाख इकाइयों में लगभग 74% खाद्य प्रसंस्करण श्रमिक कार्यरत हैं।
PM FME योजना के उद्देश्य:
- मौजूदा सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों के उन्नयन के लिये वित्तीय, तकनीकी और व्यावसायिक सहायता प्रदान करना।
- सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के क्षमता निर्माण और अनुसंधान पर विशेष ध्यान केन्द्रित करना।
योजना की आवश्यकता:
- असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र द्वारा निम्नलिखित चुनौतियों का सामना किया जा रहा है, जिनका समाधान आवश्यक है।
- आधुनिक प्रौद्योगिकी और उपकरणों तक पहुँच की कमी;
- संस्थागत प्रशिक्षण का अभाव;
- संस्थागत ऋण तक पहुँच की कमी;
- उत्पादों की खराब गुणवत्ता;
- जागरूकता की कमी;
- ब्रांडिंग और विपणन कौशल की कमी।
योजना का वित्तपोषण:
- यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसके तहत 10,000 करोड़ रुपए का परिव्यय किया जाएगा।
- परिव्यय को निम्नलिखित तरीके से केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा साझा किया जाएगा:
- केंद्र और राज्य सरकारों के बीच 60:40 के अनुपात में;
- पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के बीच 90:10 के अनुपात में;
- विधानमंडल युक्त केंद्र शासित प्रदेशों में 60:40 के अनुपात में;
- अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में 100% व्यय केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
योजना की समयावधि:
योजना को वर्ष 2020-21 से वर्ष 2024-25 तक पाँच वर्षों की अवधि में लागू किया जाएगा।
‘एक ज़िला एक उत्पाद’ (One District One Product- ODDP) का दृष्टिकोण:
- निवेश प्रबंधन, आम सेवाओं का लाभ उठाने और उत्पादों के विपणन को बढ़ाने के लिये योजना के तहत एक ज़िला एक उत्पाद के दृष्टिकोण को अपनाया गया है।
- राज्यों द्वारा कच्चे माल की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए एक ज़िले के लिये एक खाद्य उत्पाद की पहचान की जाएगी।
- ODOP में जल्दी खराब होने वाला उत्पाद या अनाज आधारित उत्पाद हो सकता है जिसका ज़िले और उनके संबद्ध क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर उत्पादन किया जाता है।
- ऐसे उत्पादों की सूची में आम, आलू, लीची, टमाटर, साबूदाना, कीनू, भुजिया, पेठा, पापड़, अचार, मत्स्यन, मुर्गी पालन आदि शामिल हैं।
योजना के अन्य पहलू:
- योजना के तहत ODOP उत्पादों के अलावा अन्य उत्पादों का उत्पादन करने वाली इकाइयों को भी सहायता दी जाएगी।
- ODOP उत्पादों के लिये बुनियादी ढाँचे के विकास के साथ ही ब्रांडिंग और विपणन हेतु भी सहायता दी जाएगी।
- योजना के तहत ‘वेस्ट टू वेल्थ’ (Waste to Wealth) उत्पादों, लघु वन उत्पादों को प्रोसाहित किया जाएगा।
- ‘आकांक्षी ज़िलों’ (Aspirational Districts) पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया जाएगा।
योजना के तहत वित्तीय सहायता:
- मौजूदा सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ, जो अपनी इकाइयों के उन्नयन की इच्छुक हैं, वे पात्र इकाइयाँ परियोजना लागत का 35% तक ऋण-आधारित पूंजीगत सब्सिडी का लाभ उठा सकती हैं, जिसकी अधिकतम सीमा 10 लाख रुपए प्रति इकाई है।
- कृषक उत्पादक संगठनों (FPOs)/स्वयं सहायता समूहों (SHGs)/सहकारी समितियों या राज्य के स्वामित्व वाली एजेंसियों या निजी उद्यमों को सामान्य प्रसंस्करण सुविधा, प्रयोगशाला, गोदाम सहित बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये 35% की दर से क्रेडिट-लिंक्ड अनुदान के माध्यम से सहायता प्रदान की जाएगी।
- सीड कैपिटल (आरंभिक वित्त पोषण) के रूप में प्रति स्वयं सहायता समूह सदस्य को कार्यशील पूंजी और छोटे उपकरण खरीदने के लिये 40,000 रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
निष्कर्ष:
योजना के माध्यम से असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों यथा संस्थागत ऋण तक पहुँच, बुनियादी ढाँचे, ब्रांडिंग और मार्केटिंग कौशल आदि का समाधान करना संभव हो पाएगा। जिससे आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
स्रोत: पीआईबी
खोलोंगछु जलविद्युत परियोजना
प्रीलिम्स के लिये:चुखा, ताला, कुरिछु जलविद्युत परियोजना, खोलोंगछु जलविद्युत परियोजना, मंगदेछु (Mangdechhu) जलविद्युत परियोजना मेन्स के लिये:भारत-भूटान संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत एवं भूटान ने 600 मेगावाट क्षमता वाली खोलोंगछु जलविद्युत परियोजना (Kholongchhu Hydropower Project) हेतु एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
प्रमुख बिंदु:
- यह भारत एवं भूटान के बीच पहली संयुक्त उद्यम परियोजना होगी।
- इस परियोजना के संयुक्त उद्यम साझेदारों में भारत का सतलुज जल विद्युत निगम (Satluj Jal Vidyut Nigam- SJVN) और भूटान का ड्रुक ग्रीन पावर कॉर्पोरेशन (Druk Green Power Corporation- DGPC) शामिल होंगे।
- उल्लेखनीय है कि भारत ने वर्ष 2008 में भूटान को वर्ष 2020 तक कुल 10,000 मेगावाट विद्युत क्षमता विकसित करने में सहायता का आश्वासन दिया था। भारत की इस प्रतिबद्धता के तहत भूटान में विकसित की जाने वाली चार परियोजनाओं में खोलोंगछु जलविद्युत परियोजना एक अहम परियोजना है।
- 600 मेगावाट की इस रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना (Run-Of-The-River Project) को पूर्वी भूटान के त्राशियांगत्से (Trashiyangtse) ज़िले में खोलोंगछु नदी (Kholongchhu River) के निचले हिस्से पर स्थापित किया जायेगा।
- इस परियोजना के वर्ष 2025 की दूसरी छमाही में पूरा होने की संभावना है।
- इस परियोजना का निर्माण दोनों देशों के बीच 50:50 संयुक्त उद्यम भागीदारी के रूप में किया जाएगा।
महत्त्व:
- रियायत अवधि: भारत सरकार अनुदान के रूप में भूटानी संयुक्त उद्यम कंपनी DGPC को इक्विटी हिस्सेदारी प्रदान करेगी।
- एक बार परियोजना चालू हो जाने के बाद, संयुक्त उद्यम के सहयोगी इसे 30 वर्षों के लिये संचालित करेंगे जिसे ‘रियायत अवधि’ कहा जाएगा।
- इसके बाद इस परियोजना का पूर्ण स्वामित्व भूटान सरकार को हस्तांतरित कर दिया जाएगा जो रॉयल्टी के रूप में इस परियोजना से विद्युत प्राप्त करेगा।
- द्विपक्षीय सहयोग: भूटान में पनबिजली का दोहन भारत एवं भूटान के बीच सफल द्विपक्षीय सहयोग एवं आपसी जुड़ाव का मार्ग प्रशस्त करेगा।
- रणनीतिक महत्त्व: BIMSTEC का सदस्य होने के कारण भूटान, भारत के लिये भू-सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण है। दोनों देशों के बीच इस तरह की विकास परियोजनाओं के संदर्भ में समर्थन एवं सहायता की साझा भावना से भारत अपनी एक्ट ईस्ट-लुक ईस्ट नीति को प्रभावी बना सकता है।
- ऊर्जा व्यापार: यह परियोजना ऊर्जा उत्पादन एवं ऊर्जा व्यापार में एक अहम भूमिका निभायेगी। यह परियोजना भारत के लिये एक स्वच्छ एवं स्थिर ऊर्जा स्रोत उपलब्ध कराने में सहायक सिद्ध होगी और नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी योगदान देगी।
- रोज़गार के अवसर: इस परियोजना की निर्माण गतिविधियों के शुरू होने से भूटान में रोज़गार के अवसर पैदा होंगे।
- आर्थिक संवृद्धि: यह परियोजना भूटान के आर्थिक विकास को गति प्रदान करेगी और भूटान में सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देगी।
चिंताएँ:
- पावर टैरिफ: वर्ष 2014 में शुरू हुई परियोजना दिसंबर 2016 के बाद से भारत के ‘क्रॉस बॉर्डर ट्रेड ऑफ इलेक्ट्रिसिटी' (Cross Border Trade of Electricity- CBTE) के नए बिजली शुल्क दिशा-निर्देशों पर टिकी हुई थी जब तक कि भारत सरकार ने भूटान सरकार के साथ बातचीत के बाद अपने दिशा-निर्देशों में संशोधन नहीं किया इसलिये पावर टैरिफ संशोधन जिसमें परिचालन एवं रखरखाव शुल्क में वृद्धि शामिल है, विवाद की जड़ बन सकता है।
- संयुक्त उद्यम मॉडल का जोखिम: एक प्रमुख मुद्दा इस परियोजना के लिये संयुक्त उद्यम मॉडल के जोखिम के बारे में है क्योंकि भूटान ने परियोजना में देरी के कारण होने वाले अधिक वित्तीय जोखिम पर चिंता व्यक्त की थी।
- इस परियोजना में होने वाली देरी से भूटान की आर्थिक वृद्धि के साथ ही इसका निर्यात एवं राजस्व भी प्रभावित हुआ है। उदाहरण के लिये विश्व बैंक ने जलविद्युत परियोजना के निर्माण में देरी एवं बिजली उत्पादन में गिरावट से सीधे-सीधे भूटान की विकास दर में गिरावट का उल्लेख किया है।
- हालाँकि भारत ने कहा है कि वह वाणिज्यिक मॉडल को प्राथमिकता देता है क्योंकि यह न केवल जोखिम साझा करता है बल्कि भारतीय PSU को समय एवं लागत पर अधिक जवाबदेह बनाता है क्योंकि वे ठेकेदारों के बजाय निवेशक बन जाते हैं।
भारत-भूटान जलविद्युत परियोजनाएँ:
- अब तक भारत सरकार ने भूटान में कुल 1416 मेगावाट की तीन पनबिजली परियोजनाओं- 336 मेगावाट की चुखा (Chukha) परियोजना, 60 मेगावाट की कुरिछू (Kurichhu) परियोजना एवं 1020 मेगावाट की ताला (Tala) परियोजना का निर्माण किया है जो भारत को अधिशेष बिजली का परिचालन एवं निर्यात कर रहे हैं।
- भारत ने हाल ही में 720 मेगावाट की मंगदेछु (Mangdechhu) जलविद्युत परियोजना को पूरा किया है और दोनों पक्ष 1200 मेगावाट की पुनात्सांगछू-1 (Punatsangchhu-1) एवं 1020 मेगावाट की पुनात्सांगछू-2 (Punatsangchhu-2) सहित अन्य परियोजनाओं को पूरा करने हेतु प्रयासरत हैं।
आगे की राह:
- भारत एवं भूटान ने पारस्परिक रूप से लाभकारी द्विपक्षीय सहयोग के सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक ‘पनबिजली विकास’ के महत्त्व पर ज़ोर दिया है।
- खोलोंगछु परियोजना दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय सहयोग की एक निरंतरता है जो दोनों देशों की दोस्ती की प्रगाढ़ता को दर्शाता है।
- हालाँकि इस परियोजना के कार्यान्वयन में देरी के कारण लागत में वृद्धि हुई है और स्थानीय समुदाय के तत्काल लाभ के अवसरों में चूक हुई है इसलिये निर्माण शुरू होने से पहले एक परियोजना के सभी विवरणों पर पूरी तरह से काम किया जाना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 30 जून, 2020
आधार आधारित डेटाबेस
केंद्र सरकार अपनी सभी कृषि-उन्मुख योजनाओं को डिजिटल बनाने और किसानों के लिये सीधे खरीद मूल्य का भुगतान सुनिश्चित करने के लिये आधार आधारित डेटाबेस (Aadhaar-Based Database) लॉन्च करने की योजना बना रही है। इसके तहत किसानों का डेटाबेस तैयार करने के साथ-साथ उनके भू-भाग का नक्शा भी तैयार किया जाएगा। आधिकारिक सूचना के अनुसार, इस आधार आधारित डेटाबेस के पहले चरण में देश भर के कुल 9 राज्यों के लगभग 50 मिलियन किसानों का विवरण शामिल होगा। इस डेटाबेस में व्यक्तिगत कृषि भूमि की उपग्रह इमेजिंग (Satellite Imaging) भी शामिल होगी, जिससे किसानों को उनकी भूमि और उनके द्वारा उगायी जाने वाली फसलों के आधार पर सलाह दी जा सकेगी। संभवतः इस आधार आधारित डेटाबेस में मौजूद डेटा को उत्पादकता बढ़ाने हेतु नवीन समाधान विकसित करने के लिये भारतीय कृषि प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ भी साझा किया जा सकता है। यह डेटाबेस सभी किसानों के बैंक खातों में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (Direct Benefit Transfer-DBT) सुनिश्चित करने में मदद करेगा। ध्यातव्य है कि इसके माध्यम से सभी योजना के कार्यान्वयन में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सकेगी। प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) अथवा लाभार्थियों के खाते में सीधे धन स्थानांतरित करके लाभार्थियों के चयन में सरकारी मानदंड का पालन न करने, अवैध लाभार्थी और योजना में धन के दुरुपयोग से संबंधित विभिन्न समस्याओं को दूर किया जा सकता है। इस प्रकार यह डेटाबेस धन के दुरुपयोग को रोकने और सभी किसानों के लिये योजना का उचित लाभ सुनिश्चित करने में मददगार साबित होगा।
के. के. वेणुगोपाल
हाल ही में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने वरिष्ठ अधिवक्ता के. के. वेणुगोपाल (K.K. Venugopal) को एक बार पुनः अटॉर्नी जनरल (Attorney General-AG) के पद पर नियुक्त कर दिया है। के. के. वेणुगोपाल की नियुक्ति एक वर्ष की अवधि के लिये की गई है। ध्यातव्य है कि राष्ट्रपति द्वारा यह निर्णय 30 जून, 2020 को अटॉर्नी जनरल के रूप में के. के. वेणुगोपाल के 3 वर्ष के कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व लिया गया है। 30 जून, 2017 को के.के. वेणुगोपाल को भारत का 15वाँ अटॉर्नी जनरल (AG) नियुक्त किया गया था। इनकी नियुक्ति पूर्व अटॉर्नी जनरल (AG) मुकुल रोहतगी के स्थान पर की गई थी। वर्ष 1931 में जन्मे के. के. वेणुगोपाल ने वर्ष 1954 में एक अधिवक्ता के तौर पर अपने कैरियर की शुरुआत की थी। 89 वर्षीय वरिष्ठ अधिवक्ता के. के. वेणुगोपाल को एक अधिवक्ता के तौर पर 50 वर्षों से भी अधिक का अनुभव है और इन्हें संवैधानिक मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है। संविधान के अनुच्छेद 76 के अंतर्गत, भारत का अटॉर्नी जनरल (Attorney General) भारत सरकार का मुख्य कानूनी सलाहकार तथा उच्चतम न्यायालय में सरकार का प्रमुख अधिवक्ता होता है। अटॉर्नी जनरल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति ऐसे किसी व्यक्ति को अटॉर्नी जनरल के रूप में नियुक्त कर कर सकता है, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायधीश बनने की योग्यता रखता हो।
‘किल कोरोना अभियान’
मध्य प्रदेश में कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के प्रसार को रोकने के लिये राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की है कि वे 1 जुलाई, 2020 से राज्य में ‘किल कोरोना अभियान’ (Kill Corona Campaign) की शुरुआत करेंगे, ताकि राज्य के सभी घरों की स्क्रीनिंग की जा सके। इस अभियान की शुरुआत राज्य की राजधानी भोपाल से की जाएगी। इस अभियान के तहत राज्य में कुल 10000 टीमों का गठन किया जाएगा और प्रत्येक टीम एक दिन में लगभग 100 घर कवर करेगी। डोर-टू-डोर सर्वे के इस अभियान में कोरोना वायरस (COVID-19) के साथ-साथ मलेरिया, डेंगू एवं अन्य मौसमी बीमारियों से पीड़ित मरीज़ों को भी चिह्नित किया जाएगा और उनका स्वास्थ्य परीक्षण भी किया जाएगा। ध्यातव्य है कि ‘किल कोरोना’ अभियान पूरे राज्य में 15 दिनों तक चलाया जाएगा। राज्य सरकार ने इस 15 दिवसीय अवधि के दौरान तकरीबन 2.5 लाख COVID-19 परीक्षण करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश समेत भारत के सभी राज्यों में कोरोना वायरस का प्रकोप तेज़ी से फैलता जा रहा है। नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, भारत में वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 5 लाख से भी ऊपर पहुँच गई है।
लाजरस चकवेरा
हाल ही में मलावी में राष्ट्रपति के चुनाव आयोजित किये गए। इन चुनावों में सर्वाधिक वोट हासिल करने के बाद विपक्षी नेता लाजरस चकवेरा (Lazarus Chakwera) को मलावी का नया राष्ट्रपति चुना गया है, उन्हें इन चुनावों के दौरान कुल 58.57 प्रतिशत मत प्राप्त हुए हैं। ध्यातव्य है कि बीते वर्ष 21 मई को मलावी में राष्ट्रपति चुनाव आयोजित किये गए थे, जिसमें तत्कालीन राष्ट्रपति पीटर मुथारिका (Peter Mutharika) को 38.57 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे और सर्वाधिक मत प्राप्त करने के कारण पीटर मुथारिका को राष्ट्रपति चुन लिया गया था, हालाँकि मलावी के विपक्षी नेताओं ने इन चुनावों की काफी आलोचना की थी और पीटर मुथारिका पर चुनाव के साथ छेड़-छाड़ करने का आरोप लगाया था। मलावी के न्यायालय ने अपनी जाँच के दौरान विपक्षी नेताओं के आरोपों को सही पाया और अपनी जाँच के आधार पर 3 फरवरी, 2020 को वर्ष 2019 में हुए राष्ट्रपति चुनावों को निरस्त कर दिया, इसके पश्चात् हाल ही में पुनः चुनाव आयोजित किये गए और विपक्षी नेता लाजरस चकवेरा विजयी हुए। मलावी, दक्षिणपूर्वी अफ्रीका में स्थित स्थलबद्ध (Landlocked) देश है। ध्यातव्य है कि मलावी की अधिकांश आबादी जीवन निर्वाह के लिये कृषि पर निर्भर है। यह उत्तर में तंज़ानिया, पूर्व में मलावी झील, दक्षिण में मोज़ाम्बिक (Mozambique) और पश्चिम में ज़ाम्बिया (Zambia) से घिरा हुआ है।