अस्पताल में भर्ती होने के बाद कोविड-19 रोगियों की मृत्यु दर
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, कोविड-19 मेन्स के लिये:स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों का कोविड-19 के बाद की मृत्यु दर को कम करने में योगदान |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) द्वारा किये गए एक नए अध्ययन में पूर्व कोविड-19 से संक्रमित रोगियों की अस्पताल में भर्ती होने के बाद की मृत्यु दर पर प्रकाश डाला गया है।
- यह अध्ययन रोगियों की संवेदनशीलता पर प्रकाश डालता है तथा सहरुग्णता (एक ही समय में एक से अधिक बीमारियाँ), उम्र और टीकाकरण जैसे अन्य कारकों के गहन मूल्यांकन के माध्यम से मृत्यु दर के जोखिम को कम करने के लिये स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को हल करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
अध्ययन के प्रमुख बिंदु:
- मृत्यु दर और प्रतिभागी जनसांख्यिकी:
- इस अध्ययन में 31 भारतीय चिकित्सा केंद्रों में 14,419 पूर्व कोविड-19 रोगियों की जाँच की गई।
- अस्पताल से वापस आने के एक वर्ष बाद इन रोगियों की मृत्यु दर 6.5% पाई गई है।
- इनमें से लगभग 50% मरीज़ों की अस्पताल से छुट्टी मिलने के 28 दिनों के भीतर मृत्यु हो गई।
- अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद समय बीतने के साथ-साथ मृत्यु का जोखिम भी कम होना पाया गया।
- 60 से अधिक आयु वर्ग के व्यक्तियों (विशेष रूप से कई बीमारियों के कारण) में मृत्यु दर का खतरा अधिक पाया गया।
- इस अध्ययन में 31 भारतीय चिकित्सा केंद्रों में 14,419 पूर्व कोविड-19 रोगियों की जाँच की गई।
- कोविड-19 के बाद की स्वास्थ्य स्थितियों की व्यापकता:
- 17.1% व्यक्तियों ने कोविड-19 के बाद थकान, साँस लेने में तकलीफ, अनुभूति में बदलाव और ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई जैसे लक्षणों की जानकारी दी।
- मृत्यु दर के विभिन्न कारकों का अध्ययन:
- इस अध्ययन में केवल कोविड-19 से होने वाली मौतों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय मृत्यु दर में बड़े पैमाने पर योगदान देने वाले सभी कारणों की जाँच की गई।
- मृत्यु दर के विभिन्न कारकों में सहरुग्णता जैसे अन्य कारक शामिल हैं।
- टीकाकरण और रोग की गंभीरता:
- टीकाकरण से कोविड-19 संक्रमण से पहले लगभग 60% सुरक्षा मिलती है।
- टीका अस्पताल में भर्ती होने के दौरान रोग की गंभीरता को कम करने में योगदान करता है।
- उच्च मृत्यु दर जोखिम भेद्यता:
- मृत्यु दर जोखिम को प्रभावित करने वाले कारकों में सहरुग्णता, आयु और लिंग जैसे कारक शामिल हैं।
- एक सहरुग्ण स्थिति वाले मरीज़ की मृत्यु की संभावना 9 गुना अधिक होती है।
- पुरुषों ने 1.3 गुना अधिक जोखिम का सामना किया तथा 60 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के लोगों को 2.6 गुना अधिक जोखिम का सामना करना पड़ा।
- यह अध्ययन मृत्यु दर जोखिम को कम करने के लिये सहरुग्णता के प्रबंधन के महत्त्व को रेखांकित करता है।
- बच्चों की संवेदनशीलता:
- 0 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों को चार सप्ताह और एक वर्ष के फॉलो-अप के मध्य 5.6 गुना अधिक मृत्यु के जोखिम का सामना करना पड़ा।
- अस्पताल में भर्ती होने के बाद पहले चार सप्ताह के दौरान यह जोखिम 1.7 गुना अधिक होता है।
- कैंसर और किडनी विकार जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं वाले बच्चों की मृत्यु की संभावना अधिक होती है।
- 0 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों को चार सप्ताह और एक वर्ष के फॉलो-अप के मध्य 5.6 गुना अधिक मृत्यु के जोखिम का सामना करना पड़ा।
- अध्ययन की सीमाएँ:
- इस अध्ययन में दीर्घ अवधि तक रहने वाले कोविड लक्षणों की जाँच शामिल नहीं थी।
- इस अध्ययन में पोस्ट कोविड स्थिति (PCC) में उपयोग की गई परिचालन परिभाषा न तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) और न ही संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसी, जिसे सेंटर्स फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन कहा जाता है द्वारा प्रदान की गई परिभाषाओं से सटीक मेल खाती है।
- पोस्ट कोविड स्थिति (PCC) के लिये WHO की परिभाषा के अनुसार, हमें तीन महीने तक इंतज़ार करना होगा और फिर जाँच करनी होगी कि क्या लक्षण दो महीने तक बने रहते हैं, यह कहती है कि लंबे समय तक कोविड के लक्षण प्रारंभिक संक्रमण के बाद तीन महीने तक बने रहते हैं।
- लॉन्ग कोविड-19, जैसा कि रोग नियंत्रण केंद्र (CDC) द्वारा परिभाषित किया गया है, में कोविड-19 संक्रमण के बाद की विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएँ शामिल हैं, जो संक्रमण के कम-से-कम चार सप्ताह बाद शुरू होती हैं। हालाँकि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने अध्ययन में केवल चार सप्ताह (उसके बाद नहीं) की अवधि में लक्षणात्मक मूल्यांकन किया।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR):
- ICMR जैव चिकित्सा अनुसंधान के संचालन, समन्वय और प्रचार के लिये भारत में शीर्ष निकाय है।
- ICMR की स्थापना वर्ष 1911 में इंडियन रिसर्च फंड एसोसिएशन (IRFA) के रूप में की गई थी और वर्ष 1949 में इसका नाम बदलकर ICMR कर दिया गया।
- ICMR को भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के माध्यम से वित्तपोषित किया जाता है।
- इसका अधिदेश समाज के लाभ के लिये चिकित्सा अनुसंधान का संचालन, समन्वय और कार्यान्वयन करना है; चिकित्सा नवाचारों को उत्पादों/प्रक्रियाओं में बदलना तथा उन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में पेश करना है।
- ICMR विभिन्न स्वास्थ्य अनुसंधान परियोजनाओं और कार्यक्रमों पर WHO, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) आदि जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ भी सहयोग करता है।
- ICMR ने विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से जैव चिकित्सा अनुसंधान में मानव संसाधन विकास एवं क्षमता निर्माण का भी समर्थन किया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. कोविड-19 महामारी ने भारत में वर्ग असमानताओं एवं गरीबी को गति दे दी है। टिप्पणी कीजिये। (2020) |
इंडिया स्मार्ट सिटीज़ अवार्ड प्रतियोगिता 2022
प्रिलिम्स के लिये:इंडिया स्मार्ट सिटीज़ अवार्ड प्रतियोगिता 2023, स्मार्ट सिटीज़ मिशन, इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर (ICCC), केंद्र प्रायोजित योजना, ईज़ ऑफ लिविंग इंडेक्स, म्युनिसिपल परफॉर्मेंस इंडेक्स मेन्स के लिये:इंडिया स्मार्ट सिटीज़ अवार्ड प्रतियोगिता, स्मार्ट सिटीज़ मिशन |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) ने स्मार्ट सिटीज़ मिशन (SCM) के तहत इंडिया स्मार्ट सिटीज़ अवार्ड प्रतियोगिता (ISAC) 2022 के परिणामों की घोषणा की है जिसमें विभिन्न श्रेणियों में 66 विजेताओं को सम्मानित किया गया है।
- शहरी विकास के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्रदर्शित करते हुए इंदौर, मध्य प्रदेश और चंडीगढ़ ISAC 2022 में शीर्ष प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं।
ISAC 2022 के प्रमुख बिंदु:
- राष्ट्रीय स्मार्ट सिटी पुरस्कार:
- शहरी विकास रणनीतियों में असाधारण प्रगति के लिये इंदौर को प्रतिष्ठित राष्ट्रीय स्मार्ट सिटी पुरस्कार प्रदान किया गया, इसके बाद सूरत और आगरा का स्थान रहा।
- स्वच्छता, जल आपूर्ति और शहरी पर्यावरण के प्रति इंदौर की प्रतिबद्धता के परिणामस्वरूप इसे प्रतियोगिता में शीर्ष स्थान प्राप्त हुआ है।
- शहरी विकास रणनीतियों में असाधारण प्रगति के लिये इंदौर को प्रतिष्ठित राष्ट्रीय स्मार्ट सिटी पुरस्कार प्रदान किया गया, इसके बाद सूरत और आगरा का स्थान रहा।
- पुरस्कार पाने वाले राज्य:
- राज्य की सीमाओं के भीतर स्मार्ट सिटी पहल को बढ़ावा देने के व्यापक दृष्टिकोण के लिये मध्य प्रदेश को राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त हुआ।
- मध्य प्रदेश के बाद तमिलनाडु और राजस्थान का स्थान है।
- पुरस्कार पाने वाले केंद्रशासित प्रदेश:
- मॉडल स्मार्ट सिटी में बदलने के प्रयासों को चिह्नित करते हुए केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ को सम्मानित किया गया।
- अन्य श्रेणियाँ:
- पर्यावरण को बेहतर बनाने के प्रयासों के संदर्भ में कोयंबटूर ने शीर्ष स्थान प्राप्त किया।
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संस्कृति तथा एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र श्रेणी के लिये अहमदाबाद।
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अर्थव्यवस्था के लिये जबलपुर।
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शासन व्यवस्था और मोबिलिटी के लिये चंडीगढ़।
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स्वच्छता, जल और शहरी पर्यावरण के लिये इंदौर।
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सामाजिक पहलुओं के लिये वड़ोदरा।
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इनोवेटिव आइडिया श्रेणी के लिये हुबली धारवाड़ और कोविड इनोवेशन श्रेणी हेतु सूरत का चयन किया गया।
सूचना साझाकरण और विश्लेषण केंद्र (ISAC):
- ISAC उन शहरों, परियोजनाओं और नवीन विचारों को मान्यता देता है एवं पुरस्कृत करता है जो 100 स्मार्ट शहरों में धारणीय विकास को बढ़ावा दे रहे हैं, साथ ही समावेशी, न्यायसंगत, सुरक्षित, स्वस्थ तथा सहयोगी शहरों को प्रोत्साहित कर सभी के लिये गुणवत्तापूर्ण जीवन सुनिश्चित कर रहे हैं।
- ISAC के तीन संस्करण- वर्ष 2018, 2019 और 2020 में देखे गए हैं।
- ISAC का चौथा संस्करण अप्रैल 2022 में गुजरात के सूरत शहर में 'स्मार्ट सिटीज़-स्मार्ट शहरीकरण' कार्यक्रम के दौरान लॉन्च किया गया था।
- परियोजना पुरस्कार: 10 विभिन्न विषय/थीम्स
- नवाचार पुरस्कार: 2 विभिन विषय/थीम्स
- राष्ट्रीय/क्षेत्रीय शहर पुरस्कार
- राज्य पुरस्कार
- पुरस्कृत केंद्रशासित प्रदेश
- सहभागी पुरस्कार, 3 विभिन्न थीम्स
- ISAC 2022 पुरस्कार में दो चरण की प्रस्तुति प्रक्रिया शामिल थी- 'योग्यता चरण'(Qualifying Stage) जिसमें शहर के प्रदर्शन का समग्र मूल्यांकन शामिल था और 'प्रस्ताव चरण' जिसमें स्मार्ट शहरों को छह पुरस्कार श्रेणियों के लिये अपने नामांकन जमा करने की आवश्यकता थी।
स्मार्ट सिटी मिशन:
- परिचय:
- यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसे जून 2015 में 100 शहरों के परिवर्तन के माध्यम से "स्मार्ट सॉल्यूशंस" का अनुप्रयोग कर अपने नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु मूल अवसंरचना और स्वच्छ एवं धारणीय वातावरण प्रदान करने के लिये शुरू किया गया था।
- मिशन का लक्ष्य विभिन्न शहरी विकास परियोजनाओं के माध्यम से शहरों में रहने वाली भारत की आबादी की आकांक्षाओं को पूरा करना है।
- विशेषताएँ:
- इसके रणनीतिक घटकों में 'क्षेत्र-आधारित विकास', जिसमें शहर सुधार (Retrofitting), शहर नवीनीकरण (Redevelopment) और शहर विस्तार (Greenfield Development) शामिल हैं, साथ ही एक ‘पैन-सिटी’ पहल शामिल है जिसमें शहर के बड़े हिस्सों को समाहित करते हुए 'स्मार्ट समाधान'(Smart Solutions) लागू किये जाते हैं।
- योजना के मुख्य केंद्रित क्षेत्रों में पैदल रास्ता (Walkways), पैदल यात्री क्रॉसिंग, साइक्लिंग ट्रैक का निर्माण, कुशल अपशिष्ट-प्रबंधन प्रणाली, एकीकृत यातायात प्रबंधन और मूल्यांकन शामिल हैं।
- यह योजना शहरी विकास को ट्रैक करने के लिये विभिन्न सूचकांकों का भी आकलन करती है जैसे- ईज़ ऑफ लिविंग सूचकांक, नगर निगम कार्य प्रदर्शन सूचकांक, शहरीय GDP ढाँचा, जलवायु स्मार्ट शहर मूल्यांकन ढाँचा आदि।
- उपलब्धियाँ:
- एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र (ICCC): स्मार्ट सिटी मिशन की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक सभी 100 स्मार्ट शहरों में ICCC की स्थापना करना है।
- ये केंद्र शहरी प्रबंधन के लिये परिचालन केंद्र के रूप में काम करते हैं, और शहर के संचालन के विभिन्न पहलुओं को बढ़ाने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं। ICCC ने विशेषकर अपराध ट्रैकिंग, नागरिक सुरक्षा, परिवहन प्रबंधन, अपशिष्ट प्रबंधन, जल आपूर्ति और आपदा तैयारियों के क्षेत्र में सुधार में योगदान दिया है।
- क्षेत्रीय प्रगति: स्मार्ट सिटी मिशन में गतिशीलता, ऊर्जा, जल, स्वच्छता, सार्वजनिक स्थान, सामाजिक बुनियादी ढाँचे और शासन सहित विभिन्न क्षेत्रों में परियोजनाओं की एक विस्तृत शृंखला शामिल है।
- स्मार्ट मोबिलिटी: 1,174 परियोजनाओं का समापन।
- स्मार्ट एनर्जी: 573 परियोजनाओं का सफलतापूर्वक समापन।
- जल आपूर्ति, स्वच्छता और स्वास्थ्य विज्ञान (वॉश): 1,162 से अधिक परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं।
- सार्वजनिक स्थान: 1,063 से अधिक सार्वजनिक स्थानों का विकास।
- एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र (ICCC): स्मार्ट सिटी मिशन की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक सभी 100 स्मार्ट शहरों में ICCC की स्थापना करना है।
स्मार्ट सिटी:
- स्मार्ट सिटी की कोई मानक परिभाषा नहीं है। हमारे देश के संदर्भ में स्मार्ट सिटी की अवधारणा पर आधारित जो छह मूलभूत सिद्धांत हैं:
शहरी विकास से संबंधित अन्य पहलें:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में नगरीय जीवन की गुणवत्ता की संक्षिप्त पृष्ठभूमि के साथ 'स्मार्ट नगर कार्यक्रम' के उद्देश्य और रणनीति बताइये। (2016) |
भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति और मुद्रास्फीति
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति और मुद्रास्फीति, खुदरा मुद्रास्फीति, भारतीय रिज़र्व बैंक, मौद्रिक नीति, सकल घरेलू उत्पाद, आपूर्ति शृंखला मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति और मुद्रास्फीति, अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीति का प्रभाव |
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
जुलाई 2023 में खुदरा मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो 7.44% तक पहुँच गई, जिससे भारत के लिये गोल्डीलॉक्स परिदृश्य तैयार हुआ जो निवेशकों एवं बचतकर्ताओं की आर्थिक स्थिति के बारे में अनिश्चितताओं को दर्शाता है।
- गोल्डीलॉक्स परिदृश्य एक अर्थव्यवस्था के लिये आदर्श स्थिति का वर्णन करता है जहाँ अर्थव्यवस्था बहुत अधिक विस्तार या संकुचन नहीं कर रही है। गोल्डीलॉक्स अर्थव्यवस्था में स्थिर आर्थिक विकास होता है, जिससे मंदी को रोका जा सकता है, लेकिन इतनी अधिक वृद्धि नहीं होती कि मुद्रास्फीति बहुत अधिक बढ़ जाए।
भारत का वर्तमान आर्थिक परिदृश्य और अनुमान:
- GDP अनुमान:
- वर्ष 2023-24 के लिये अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि 6.5% है, जबकि बेंचमार्क सेंसेक्स सूचकांक वर्तमान में 65,000 अंक पर है।
- दूसरी ओर आगामी महीनों में सोने और बैंक जमा दरों के स्थिर रहने की उम्मीद है।
- मुद्रास्फीति का अनुमान:
- भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) का अनुमान है कि वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही तक मुद्रास्फीति 5% से ऊपर रहेगी और संभावित रूप से वर्तमान तिमाही (जुलाई-सितंबर) 2023 में 6.2% तक पहुँच जाएगी जो RBI के 4% के कम्फर्ट लेवल (Comfort Level) से अधिक होगी।
- खाद्य मूल्य दबाव:
- अगले कुछ महीनों तक खाद्य पदार्थों की कीमतें ऊँची रहने की आशंका है। जुलाई के आँकड़ों के अनुसार अनाज व दालों (दोनों में कुल 13%), मसालों (21.6%), दूध (8.3%) के साथ-साथ सब्जियों की कीमतों (37.3%) में वृद्धि देखी गई है।
- सरकारी हस्तक्षेप और नई फसल की आवक से अंततः इस दबाव के कम होने की उम्मीद है।
- ब्याज दरें और मौद्रिक नीति:
- उच्च मुद्रास्फीति अनुमानों को देखते हुए ब्याज दर में किसी प्रकार की कटौती की संभावना अगले वित्तीय वर्ष (2024-25) तक के लिये टाल दी गई है।
- मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee- MPC) द्वारा आगामी बैठक में नीतिगत दरों को बनाए रखने की संभावना है जिसमें संभावित रूप से ब्याज दर में पहली कटौती अगले वित्तीय वर्ष में होगी।
- बाज़ार दृष्टिकोण:
- महँगाई और ऊँची ब्याज दरों के बावजूद भारतीय बाज़ार ने अच्छा प्रदर्शन किया है।
- दृढ़ आय की संभावनाओं और स्टेबल मैक्रो कंडीशन के समर्थन से भारत ने अन्य बाज़ारों से बेहतर प्रदर्शन किया है।
बढ़ती महँगाई का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- बाज़ारों पर प्रभाव:
- जब मुद्रास्फीति अधिक होती है तो स्टॉक की कीमतें कम आँकी जाती हैं और सोने का मूल्य बढ़ जाता है। बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण क्रय शक्ति कम हो जाती है जिससे वास्तविक आय कम हो जाती है।
- इसके अतिरिक्त उच्च मुद्रास्फीति के परिणामस्वरूप ब्याज दरें उच्च होती हैं, जिससे इक्विटी की लागत प्रभावित होती है।
- अप्रैल 2022 से भरतीय रिज़र्व बैंक की रेपो रेट में लगातार बढ़ोतरी के कारण उधार दरों में समग्र वृद्धि हुई है, जिससे विभिन्न प्रकार के ऋणों का काफी प्रभाव पड़ा है।
- आय पुनर्वितरण:
- मुद्रास्फीति का समाज के विभिन्न समूहों पर असमान प्रभाव पड़ सकता है। देनदारों से प्राप्त धन का मूल्य घटने से लेनदारों को नुकसान हो सकता है।
- इसके विपरीत देनदारों को उन पैसों से ऋण चुकाने से लाभ हो सकता है जिनकी कीमत उनके उधार लेने के समय की कीमत से कम है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता:
- किसी देश में उच्च मुद्रास्फीति उसकी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम कर सकती है। यदि घरेलू कीमतें व्यापारिक साझेदार देशों की तुलना में तेज़ी से बढ़ें तो देश का निर्यात वैश्विक बाज़ार में कम आकर्षक हो सकता है।
- पारिश्रमिक-मूल्य चक्र:
- मुद्रास्फीति के कारण कभी-कभी बढ़ी हुई पारिश्रमिकी और मूल्य चक्र की शुरुआत हो सकती है। बढ़ती लागत के साथ समन्वय बनाने के लिये श्रमिक उच्च मज़दूरी की मांग करते हैं और व्यवसायों में लगने वाली उच्च लागतों के कारण कीमतें उच्च होती हैं जिनका दबाव उपभोक्ताओं पर पड़ता है। इस चक्र के परिणामतः मुद्रास्फीति की स्थिति लगातार बनी रह सकती है।
आगे की राह
- मुद्रास्फीति की बढ़ती चिंताओं को देखते हुए सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक को मुद्रास्फीति के दबाव को प्रबंधित करने के लिये मिलकर काम करने की आवश्यकता है। इसमें खाद्य कीमतों को स्थिर करने, आपूर्ति शृंखला दक्षता में सुधार करने और सुरक्षात्मक मौद्रिक नीति बनाए रखने जैसे लक्षित उपाय शामिल हो सकते हैं।
- सरकार को संतुलित बजट बनाए रखने, अनावश्यक व्यय को कम करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाले सुधारों एवं उपायों के माध्यम से राजस्व अर्जन को बढ़ावा देने पर ध्यान देना चाहिये।
- RBI को सतर्क और डेटा-संचालित मौद्रिक नीति दृष्टिकोण अपनाना जारी रखना चाहिये। इसमें आर्थिक विकास संबंधी प्रभाव पर विचार करते हुए मुद्रास्फीति को प्रबंधित करने के लिये ब्याज दरों को समायोजित करना शामिल हो सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स :प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति या उसमें वृद्धि निम्नलिखित किन कारणों से होती है? (2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 4 उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) |
कायिक आनुवंशिक वैरिएंट
प्रिलिम्स के लिये:जीनोम अनुक्रमण, कैंसर, कायिक आनुवंशिक वैरिएंट, जर्मलाइन कोशिकाएँ, DNA प्रतिकृति मेन्स के लिये:मानव स्वास्थ्य की बेहतरी के लिये कायिक आनुवंशिक वैरिएंट का उपयोग |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जीनोम अनुक्रमण में हुई प्रगति में कैंसर के विकास से लेकर प्रतिरक्षा संबंधी समस्याओं, मानव स्वास्थ्य पर कायिक आनुवंशिक वैरिएंट (Somatic Genetic Variants) के प्रभाव के बारे में पता चला है, यह बीमारी का पता लगाने और उपचार रणनीति में नवाचार को बढ़ावा देने में काफी मददगार साबित हो सकता है।
कायिक आनुवंशिक वैरिएंट:
- परिचय:
- कायिक आनुवंशिक वैरिएंट को कायिक उत्परिवर्तन के रूप में भी जाना जाता है, इसका आशय विशेष रूप से किसी व्यक्ति के शरीर की कोशिकाओं (कायिक कोशिकाओं) के भीतर DNA अनुक्रम में परिवर्तन से है, जर्मलाइन कोशिकाएँ (शुक्राणु और अंडाणु कोशिकाओं) इसके अंतर्गत नहीं आती हैं।
- कायिक आनुवंशिक उत्परिवर्तन जन्म के बाद विकास के दौरान होते हैं और माता-पिता से बच्चे में नहीं आते हैं।
- कायिक आनुवंशिक वैरिएंट को कायिक उत्परिवर्तन के रूप में भी जाना जाता है, इसका आशय विशेष रूप से किसी व्यक्ति के शरीर की कोशिकाओं (कायिक कोशिकाओं) के भीतर DNA अनुक्रम में परिवर्तन से है, जर्मलाइन कोशिकाएँ (शुक्राणु और अंडाणु कोशिकाओं) इसके अंतर्गत नहीं आती हैं।
- कायिक उत्परिवर्तन में प्रगति:
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मानव जीनोम में 23 जोड़े गुणसूत्र होते हैं जो एक बच्चे को माता-पिता से विरासत में मिलते हैं, और ये हमारी आनुवंशिक पहचान का खाका तैयार करते हैं।
- एक शुक्राणु कोशिका द्वारा अंडे की कोशिका के निषेचन के बाद परिणामी एकल कोशिका में माता-पिता दोनों के आनुवंशिक तत्त्व शामिल होते हैं।
- विभिन्न विभाजनों के बाद यह प्रारंभिक कोशिका बड़े पैमाने पर बढ़ना शुरू करती है और अंततः मानव शरीर का निर्माण करने वाली अनगिनत यानी खरबों कोशिकाएँ बनाती है।
- DNA प्रतिकृति की प्रक्रिया के दौरान त्रुटि-सुधार करने वाले प्रोटीन द्वारा त्रुटियों का समावेश उल्लेखनीय रूप से कम कर दिया जाता है। फिर भी कुछ न्यूनतम त्रुटि दरें कायिक आनुवंशिक उत्परिवर्तन के उद्भव में योगदान करती है।
- कोशिकाएँ जीवन भर नवीनीकृत होती रहती हैं और जैसे-जैसे पुरानी कोशिकाओं को प्रतिस्थापित करती रहती हैं, त्रुटियाँ होती रहती हैं जिससे समय के साथ कायिक उत्परिवर्तन का क्रमिक संचय होता रहता है।
- यही कारण है कि जैसे-जैसे लोगों की आयु बढ़ती है, शरीर के विभिन्न ऊतकों के बीच आनुवंशिक संरचना में अंतर आ जाता है।
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- मानव स्वास्थ्य पर दैहिक आनुवंशिक वैरिएंट का प्रभाव:
- कैंसर का पनपना: दैहिक आनुवंशिक परिवर्तन कैंसर की अनियंत्रित कोशिका वृद्धि और विभाजन को बढ़ा सकते हैं जिससे ट्यूमर की बीमारी हो सकती है।
- तंत्रिका संबंधी विकार: मस्तिष्क कोशिकाओं में संचित दैहिक उत्परिवर्तन तंत्रिका संबंधी स्थितियों में योगदान कर सकते हैं, जो संज्ञानात्मक(Cognitive) और प्रेरण/गतिक प्रकार्य को प्रभावित कर सकते हैं।
- आयु बढ़ना/जरण और ऊतक प्रकार्य: आयु बढ़ने के साथ दैहिक उत्परिवर्तन का क्रमिक संचय ऊतक के कार्य को प्रभावित कर सकता है और आयु से संबंधित बीमारियों को बढ़ा सकता है।
- प्रतिरक्षा प्रणाली की निष्क्रियता: दैहिक वैरिएंट प्रतिरक्षा कोशिका के विकास और कार्य को बाधित कर सकता है, जिससे ऑटोइम्यून विकार(autoimmune disorder) और प्रतिरक्षा की कमी(immunodeficiencies) हो सकती है।
- मानव स्वास्थ्य उन्नति/वृद्धि के लिए दैहिक आनुवंशिक वैरिएंट का उपयोग:
- रोग बायोमार्कर: दैहिक वैरिएंट रोगों के लिये नैदानिक (Diagnostic) और पूर्वानुमानित (Prognostic) मार्कर के रूप में काम कर सकते हैं।
- विशिष्ट उत्परिवर्तन का पता लगाने से रोग का शीघ्र पता चलने और रोग की प्रगति की भविष्यवाणी करने में सहायता मिल सकती है।
- परिशुद्ध चिकित्सा: किसी व्यक्ति के दैहिक उत्परिवर्तन का ज्ञान व्यक्तिगत उपचार योजनाओं में मदद कर सकता है।
- किसी रोगी की विशिष्ट आनुवंशिक संरचना के अनुसार उपचार करने से परिणामों में वृद्धि हो सकती है।
- जरण और दीर्घजीवन: आयु बढ़ने से जुड़े दैहिक उत्परिवर्तन का अध्ययन आयु बढ़ने की प्रक्रिया और आयु से संबंधित बीमारियों पर प्रकाश डाल डालता है, जो संभावित रूप से स्वस्थ आयु बढ़ाने में बाधक हो सकता है।
- आनुवंशिक रोग का समाधान: कुछ मामलों में दैहिक उत्परिवर्तन सामान्य व्यक्ति में हानिकारक परिवर्तन लाता है, जिसे रिवर्टेंट मोज़ेसिज़्म (Revertant Mosaicism) के रूप में जाना जाता है।
- उदाहरण के लिये विस्कॉट-एल्ड्रिच सिंड्रोम (Wiskott-Aldrich syndrome) के लगभग 10% मामलों में एक दुर्लभ आनुवंशिक प्रतिरक्षा क्षमता, रिवर्टेंट मोज़ेसिज्म पाई गई है, जिसके परिणामस्वरूप कई व्यक्तियों में बीमारी की गंभीरता कम हो गई है।
- रोग बायोमार्कर: दैहिक वैरिएंट रोगों के लिये नैदानिक (Diagnostic) और पूर्वानुमानित (Prognostic) मार्कर के रूप में काम कर सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में कृषि के संदर्भ में प्रायः समाचारों में आने वाले 'जीनोम अनुक्रमण' की तकनीक का आसन्न भविष्य में किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022) DNA बारकोडिंग किसका उपसाधन हो सकता है?
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स, 2023
प्रिलिम्स के लिये:स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स, 2023, IUCN (अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ), पश्चिमी घाट, एशियाई कोयल, प्रवासी पक्षी, जलवायु परिवर्तन मेन्स के लिये:भारत के पक्षियों की स्थिति रिपोर्ट, 2023 |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स (State of India’s Birds- SoIB), अर्थात् भारत पक्षी स्थिति रिपोर्ट 2023 जारी की गई है, इसमें कुछ पक्षी प्रजातियों के अच्छे तरह विकसित होने और कई पक्षी प्रजातियों में पर्याप्त गिरावट को दर्शाया गया है।
- SoIB 2023 बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS), वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) और ज़ूलॉज़िकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) सहित 13 सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठनों का अपनी तरह का पहला सहयोगात्मक प्रयास है। उक्त संगठनों व निकायों के साथ वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (WTI), वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया (WWF-इंडिया) आदि भारत में नियमित रूप से पाए जाने वाली पक्षी प्रजातियों की समग्र संरक्षण स्थिति का मूल्यांकन करते हैं।
रिपोर्ट में प्रयुक्त पद्धतियाँ:
- यह रिपोर्ट लगभग 30,000 पक्षी विज्ञानियों द्वारा एकत्र किये गए आँकड़ों पर आधारित है।
- इस रिपोर्ट में पक्षियों की आबादी का आकलन करने के लिये तीन प्राथमिक सूचकांकों को आधार बनाया गया है:
- दीर्घकालिक रुझान (30 वर्षों में परिवर्तन)
- वर्तमान वार्षिक प्रवृत्ति (पिछले सात वर्षों में परिवर्तन)
- भारतीय वितरण क्षेत्र का आकार
- 942 पक्षी प्रजातियों के मूल्यांकन से पता चला है कि उनमें से कई प्रजातियों में सटीक दीर्घकालिक या अल्पकालिक रुझान निर्धारित नहीं किये जा सके हैं।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- स्थिति:
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चिह्नित दीर्घकालिक रुझानों वाली 338 प्रजातियों में से 60% प्रजातियों में गिरावट देखी गई है, 29% प्रजातियाँ स्थिर हैं तथा 11% में वृद्धि देखी गई है।
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निर्धारित वर्तमान वार्षिक रुझान वाली 359 प्रजातियों में से 39% घट रही हैं, 18% तेज़ी से घट रही हैं, 53% स्थिर हैं और 8% बढ़ रही हैं।
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सकारात्मक रुझान: पक्षियों की प्रजातियों में वृद्धि:
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सामान्य गिरावट के बावजूद कुछ पक्षी प्रजातियों में कुछ सकारात्मक रुझान देखे गए हैं।
- उदाहरण के लिये भारतीय मोर जो भारत का राष्ट्रीय पक्षी है, बहुतायत और विस्तार दोनों मामले में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है।
- इस प्रजाति ने अपनी सीमा को नए प्राकृतिक वास में विस्तारित किया है, जिनमें उच्च तुंग वाले हिमालयी क्षेत्र और पश्चिमी घाट के वर्षावन शामिल हैं।
- एशियन कोयल, हाउस क्रो, रॉक पिजन और एलेक्जेंड्रिन पैराकीट (Alexandrine Parakeet) को भी उन प्रजातियों के रूप में उजागर किया गया है जिन्होंने वर्ष 2000 के बाद से उल्लेखनीय वृद्धि की है।
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- विशिष्ट पक्षी प्रजाति:
- पक्षी प्रजातियाँ जो "विशिष्ट" हैं- आर्द्रभूमि, वर्षावनों और घास के मैदानों जैसे संकीर्ण आवासों तक ही सीमित हैं, जबकि इन प्रजातियों के विपरीत वृक्षारोपण और कृषि क्षेत्रों जैसे व्यापक आवासों में निवास करने वाली प्रजातियाँ तेज़ी से घट रही हैं।
- “सामान्य पक्षी प्रजाति” जो कई प्रकार के आवासों में रहने में सक्षम हैं, एक समूह के रूप में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।
- “हालाँकि, विशिष्ट प्रजाति के पक्षियों को सामान्य प्रजाति के पक्षियों की तुलना में अधिक खतरा है।
- घास के मैदानों में वास करने वाले विशेष पक्षियों में 50% से अधिक की गिरावट आई है।
- वनों में वास करने वाले पक्षियों में भी सामान्य पक्षियों की तुलना में अधिक गिरावट आई है, जो प्राकृतिक वन आवासों को संरक्षित करने की आवश्यकता को दर्शाता है ताकि वे विशिष्ट प्रजाति के पक्षियों को को आवास प्रदान कर सकें।
- प्रवासी और निवासी पक्षी:
- प्रवासी पक्षियों, विशेष रूप से यूरेशिया और आर्कटिक से लंबी दूरी के प्रवासी पक्षियों में 50% से अधिक की सार्थक कमी देखी गई है, साथ ही कम दूरी के प्रवासी पक्षियों की संख्या में भी कमी आई है।
- आर्कटिक में प्रजनन करने वाले तटीय पक्षी विशेष रूप से प्रभावित हुए हैं, जिनमें लगभग 80% की कमी आई है।
- इसके विपरीत एक समूह के रूप में निवासी प्रजाति पक्षी अधिक स्थिर बने हुए हैं।
- पक्षियों के आहार और संख्या में गिरावट का पैटर्न:
- पक्षियों की आहार संबंधी आवश्यकताओं में भी प्रचुरता देखी गई है। कशेरुक और मांसाहार खाने वाले पक्षियों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट आई है।
- डाइक्लोफेनाक (Diclofenac) से दूषित शवों को खाने से गिद्ध लगभग विलुप्त होने की अवस्था में थे।
- सफेद पूँछ वाले गिद्धों, भारतीय गिद्धों और लाल सिर वाले गिद्धों को सबसे अधिक दीर्घकालिक गिरावट (क्रमशः 98%, 95% और 91%) का सामना करना पड़ा है।
- पक्षियों की आहार संबंधी आवश्यकताओं में भी प्रचुरता देखी गई है। कशेरुक और मांसाहार खाने वाले पक्षियों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट आई है।
- स्थानिक पक्षियों और जलपक्षियों की आबादी में गिरावट:
- पश्चिमी घाट और श्रीलंका जैवविविधता हॉटस्पॉट के लिये अद्वितीय स्थानिक प्रजातियों में तेज़ी से गिरावट आई है।
- भारत की 232 स्थानिक प्रजातियों में से कई प्रजातियों का आवास स्थान वर्षावन हैं और उनकी गिरावट आवास संरक्षण के बारे में चिंता पैदा करती है।
- बत्तख, निवासी और प्रवासी दोनों की संख्या कम हो रही है, बेयर पोचार्ड, कॉमन पोचार्ड और अंडमान टील जैसी कुछ प्रजातियाँ विशेष रूप से असुरक्षित हैं।
- नदियों पर कई प्रकार के दबावों के कारण नदी के किनारे रेतीले घोंसले बनाने वाले पक्षियों की संख्या में भी गिरावट आक रही है।
- पश्चिमी घाट और श्रीलंका जैवविविधता हॉटस्पॉट के लिये अद्वितीय स्थानिक प्रजातियों में तेज़ी से गिरावट आई है।
- प्रमुख खतरे:
- रिपोर्ट में वन क्षरण, शहरीकरण और ऊर्जा अवसंरचना सहित कई प्रमुख खतरों पर प्रकाश डाला गया है, जिनका सामना देश भर में पक्षी प्रजातियों को करना पड़ रहा है।
- निमेसुलाइड जैसी पशु चिकित्सा दवाओं सहित पर्यावरण प्रदूषक अभी भी भारत में गिद्ध आबादी के लिये खतरा हैं।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव (जैसे प्रवासी प्रजातियों पर) पक्षी रोग और अवैध शिकार तथा व्यापार भी प्रमुख खतरों में से हैं।
- अन्य प्रजातियाँ:
- लंबी अवधि में सारस क्रेन की आबादी में तेज़ी से गिरावट आई है और यह जारी है।
- कठफोड़वा की 11 प्रजातियों, जिनके लिये स्पष्ट दीर्घकालिक रुझान प्राप्त किये जा सकते हैं, में से सात स्थिर दिखाई देती हैं, जबकि दो की आबादी घट रही हैं, और दो के मामले में तेज़ी से गिरावट आ रही है।
- पीले मुकुट वाले कठफोड़वा (Yellow-Crowned Woodpecker), जो व्यापक रूप से काँटेदार और झाड़ियों वाले जंगलों में रहते हैं, की संख्या में पिछले तीन दशकों में 70% से अधिक की गिरावट आई है।
- जबकि विश्व भर में सभी बस्टर्ड में से आधे खतरे में हैं, भारत में प्रजनन करने वाली तीन प्रजातियाँ- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, लेसर फ्लोरिकन और बंगाल फ्लोरिकन सबसे अधिक असुरक्षित पाई गई हैं।
सिफारिशें:
- पक्षियों के विशिष्ट समूहों को संरक्षित करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये रिपोर्ट में पाया गया कि घास के मैदान संबंधी विशिष्ट प्रजातियों की संख्या में 50% से अधिक की गिरावट आई है, जो घास के मैदान के पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा और रखरखाव के महत्त्व को दर्शाता है।
- पक्षियों की आबादी में छोटे पैमाने पर होने वाले बदलावों को समझने के लिये लंबे समय तक पक्षियों की आबादी की व्यवस्थित निगरानी करना महत्त्वपूर्ण है।
- गिरावट या वृद्धि के पीछे के कारणों को समझने के लिये और अधिक शोध की आवश्यकता स्पष्ट होती जा रही है।
- रिपोर्ट के निष्कर्ष पक्षियों की आबादी में गिरावट को रोकने और एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित करने के लिये आवास संरक्षण, प्रदूषण को संबोधित करने तथा पक्षियों की आहार आवश्यकताओं को समझने के महत्त्व पर ज़ोर देते हैं।
पारिस्थितिकी तंत्र में पक्षियों की व्यवहार्य आबादी सुनिश्चित करने के लिये संभावित कदम:
- पर्यावास संरक्षण और पुनरुद्धार:
- जंगलों, आर्द्रभूमियों, घास के मैदानों और तटीय क्षेत्रों जैसे प्राकृतिक आवासों की रक्षा तथा संरक्षण करना, जो पक्षियों के घोंसले, भोजन एवं प्रजनन के लिये आवश्यक हैं।
- देशी वनस्पति लगाकर और पक्षियों की आबादी के लिये खतरा पैदा करने वाली आक्रामक प्रजातियों को हटाकर नष्ट हुए आवासों को पुनर्स्थापित करना।
- संरक्षित क्षेत्र और रिज़र्व:
- संरक्षित क्षेत्रों और वन्यजीव अभयारण्यों की स्थापना व प्रबंधन करना जहाँ पक्षी मानवीय हस्तक्षेप के बिना रह सकें।
- इन क्षेत्रों में आवास विनाश और गड़बड़ी को रोकने के लिये नियम और दिशा-निर्देश लागू करना।
- प्रदूषण कम करना:
- वायु और जल प्रदूषण सहित प्रदूषण स्रोतों को नियंत्रित करना, जो पक्षियों की आबादी को सीधे या उनके खाद्य स्रोतों के संदूषण के माध्यम से नुकसान पहुँचा सकते हैं।
- शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों में प्रदूषण को कम करने के लिये स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देना।
- जलवायु परिवर्तन को कम करना:
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके और टिकाऊ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देकर जलवायु परिवर्तन का समाधान करना।
- आवास गलियारों का समर्थन करना जो पक्षियों को स्थानांतरित करने और बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल होने की अनुमति देते हैं।
- मानवीय हस्तक्षेप को सीमित करना:
- घोंसले बनाने और भोजन प्रदान करने वाली जगहों पर विशेष रूप से प्रजनन के मौसम के दौरान गड़बड़ी को कम करने के महत्त्व के बारे में जनता को शिक्षित करना।
- मानवीय हस्तक्षेप को कम करने के लिये संवेदनशील पक्षी आवासों के आसपास बफर ज़ोन स्थापित करना।
विभिन्न पक्षी प्रजातियों की सुरक्षा के लिये किये गए उपाय:
- प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना (2018-2023)।
- बाघ, एशियाई हाथी, हिम तेंदुआ, एशियाई शेर, एक सींग वाला गैंडा और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जैसी प्रजातियों के संरक्षण के लिये सीमा पार संरक्षित क्षेत्र।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972
- भारत ने गिद्धों के संरक्षण के लिये कई आवश्यक कदम उठाए हैं जैसे- डाइक्लोफेनाक का पशु चिकित्सा में उपयोग पर प्रतिबंध, गिद्ध प्रजनन केंद्रों की स्थापना आदि।