शासन व्यवस्था
इंडोनेशिया का पाम ऑयल निर्यात प्रतिबंध और भारत पर इसका प्रभाव
प्रिलिम्स के लिये:इंडोनेशिया का पाम ऑयल निर्यात प्रतिबंध और भारत पर इसका प्रभाव, बायोडीज़ल, खाद्य तेल- तेल पाम पर राष्ट्रीय मिशन मेन्स के लिये:कृषि संसाधन, खाद्य सुरक्षा, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इंडोनेशिया जो कि विश्व का सबसे बड़े पाम ऑयल (Palm Oil) उत्पादक, निर्यातक और उपभोक्ता देश है, द्वारा घोषणा की गई है कि वह खाना पकाने के तेल की घरेलू कमी तथा इसकी बढ़ती कीमतों को कम करने हेतु कमोडिटी और इसके कच्चे माल के सभी निर्यातों पर प्रतिबंध लगाएगा।
- भारत अपनी पाम ऑयल की सालाना ज़रूरत का आधा हिस्सा यानी 8.3 मिलियन टन का आयात इंडोनेशिया से करता है। इस प्रकार इंडोनेशिया द्वारा आरोपित निर्यात प्रतिबंध भारत के हितों को प्रभावित करेगा।
प्रमुख बिंदु
पाम ऑयल तथा इसके उपयोग:
- पाम ऑयल एक खाद्य वनस्पति तेल है जिसे ऑयल पाम फल (Fruit of the Oil Palms) के मेसोकार्प (लाल गूदे) से प्राप्त किया जाता है।
- इसका उपयोग खाना पकाने, सौंदर्य प्रसाधन, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, केक, चॉकलेट, स्प्रेड, साबुन, शैम्पू और सफाई उत्पादों से लेकर जैव ईंधन तक हर चीज़ में किया जाता है।
- बायोडीज़ल (Biodiesel) बनाने में कच्चे पाम ऑयल के इस्तेमाल को 'ग्रीन डीज़ल' करार दिया गया है।
- इंडोनेशिया और मलेशिया मिलकर वैश्विक पाम ऑयल का लगभग 90% का उत्पादन करते हैं, इसमें भी इंडोनेशिया की हिस्सेदारी अधिक है जिसने वर्ष 2021 में 45 मिलियन टन पाम ऑयल का उत्पादन किया।
- पाम ऑयल उद्योग आलोचना के दायरे में आ गया है क्योकि इसके निरंतर उत्पादन के कारण वनों की कटाई में वृद्धि हुई है, साथ ही श्रम के शोषणकारी तरीकों के कारण औपनिवेशिक युग जैसी परिस्थिति उत्पन्न हो गई है।
- हालांँकि पाम ऑयल को इसलिये भी पसंद किया जाता है क्योंकि यह सस्ता है; सोयाबीन जैसे कुछ अन्य वनस्पति तेल संयंत्रों की तुलना में पाम ऑयल का प्रति हेक्टेयर अधिक उत्पादन होता है।
वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं हेतु पाम ऑयल का महत्त्व:
- संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग (USDA) के अनुसार, वर्ष 2020 में पाम ऑयल का वैश्विक उत्पादन 73 मिलियन टन (MT) से अधिक होने के साथ ही यह विश्व में सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला वनस्पति तेल है।
- चालू वित्त वर्ष 2022-23 में इसका उत्पादन 77 मीट्रिक टन होने का अनुमान है।
- रॉयटर्स के अनुसार, सबसे व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले चार प्रमुख खाद्य तेलों (पाम, सोयाबीन, रेपसीड (कैनोला) और सूरजमुखी का तेल) की वैश्विक आपूर्ति में पाम ऑयल की हिस्सेदारी 40% है।
- वैश्विक रूप से पाम ऑयल की 60% आपूर्ति इंडोनेशिया द्वारा की जाती है।
खाद्य तेलों की कीमतों में बढ़ोतरी का कारण:
- भारत पाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक है। वैकल्पिक वनस्पति तेलों की कम आपूर्ति के कारण मांग बढ़ने से इस वर्ष पाम ऑयल की कीमतों में तेज़ी आई है।
- सोयाबीन तेल का दूसरा स्थान है जिसका सबसे अधिक उत्पादन किया जाता है, इसके भी इस साल प्रभावित होने की संभावना है क्योंकि इसके प्रमुख उत्पादक अर्जेंटीना में सोयाबीन उत्पादन हेतु इस बार मौसम अनुकूल नहीं है।
- पिछले साल कनाडा में सूखे के कारण कैनोला तेल का उत्पादन प्रभावित हुआ था और सूरजमुखी तेल जिसका 80-90% उत्पादन रूस और यूक्रेन द्वारा किया जाता है, की आपूर्ति जारी संघर्ष के कारण बुरी तरह प्रभावित हुई है।
- महामारी से प्रेरित श्रम की कमी तथा महामारी और यूक्रेन संकट से जुड़ी वैश्विक खाद्य मुद्रास्फीति के कारण खाद्य तेल की वैश्विक कीमतों में पिछले साल के अंत से बहुत अधिक वृद्धि हुई है।
भारत पर प्रभाव:
- भारत पाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक है, जो इसके वनस्पति तेल की खपत का 40% हिस्सा है।
- भारत अपनी सालाना ज़रूरत का आधा (8.3 मीट्रिक टन) पाम ऑयल इंडोनेशिया से आयात करता है।
- इससे उन लोगों की संख्या में वृद्धि होगी जो पहले से ही रिकॉर्ड-उच्च थोक मुद्रास्फीति से जूझ रहे हैं।
- यह महत्त्वपूर्ण है कि पिछले साल केंद्र ने भारत के घरेलू पाम ऑयल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये खाद्य तेल पर राष्ट्रीय मिशन-पाम ऑयल को आरंभ किया।
आगे की राह
- घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना: भारत की खाद्य आवश्यकताओं के लिये पाम ऑयल से संबंधित लाभों को देखते हुए, भारतीय किसानों को देश में पाम ऑयल के उत्पादन को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- इस दिशा में उठाया गया खाद्य तेल पर राष्ट्रीय मिशन- पाम ऑयल एक सही कदम है।
- विविधीकरण: भारत को अपनी खरीद के साथ-साथ आवश्यकताओं में भी विविधता लानी चाहिये।
- सर्वप्रथम भारत को अन्य देशों से अधिक पाम ऑयल की खरीद पर ध्यान देना चाहिये।
- साथ ही साथ साल, महुआ, जैतून, जटरोफा, नीम, जोजोबा, जंगली खुबानी, अखरोट आदि जैसे वृक्षों से उत्पन्न तिलहन (TBOs) को एक विकल्प के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
स्रोत: द हिन्दू
शासन व्यवस्था
नागरिक पंजीकरण प्रणाली में संशोधन
प्रिलिम्स के लिये:नागरिक पंजीकरण प्रणाली, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर, भारत का महापंजीयक मेन्स के लिये:जनसंख्या और संबंधित मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, नागरिक पंजीकरण प्रणाली में संशोधन की आवश्यकता और महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
गृह मंत्रालय की 2020-21 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार न्यूनतम मानव हस्तक्षेप के साथ वास्तविक समय में जन्म और मृत्यु पंजीकरण को सुनिश्चित करने के लिये नागरिक पंजीकरण प्रणाली (CRS) में सुधार करने की योजना बना रही है। पंजीकरण की यह प्रक्रिया किसी भी स्थान से पूरी की जा सकती है।
- भारत के रजिस्ट्रार जनरल (RGI) को जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 की धारा 3 (3) के तहत सभी राज्यों के जन्म और मृत्यु पंजीकरण कार्यालय के मुख्य रजिस्ट्रार की गतिविधियों के मध्य समन्वय और एकीकरण के लिये कदम उठाने का अधिकार प्राप्त है।
नागरिक पंजीकरण प्रणाली:
- भारत में नागरिक पंजीकरण प्रणाली महत्त्वपूर्ण घटनाओं (जन्म, मृत्यु, प्रसव के दौरान मृत्यु) और उनकी विशेषताओं की निरंतर, स्थायी, अनिवार्य एवं सार्वभौमिक पंजीकरण की एकीकृत प्रक्रिया है।
- संपूर्ण और अद्यतन सीआरएस के माध्यम से उत्पन्न डेटा सामाजिक-आर्थिक नियोजन के लिये आवश्यक है।
प्रस्तावित संशोधन:
- जन्म और मृत्यु के कारण हुए नए परिवर्तनों को अद्यतन करना:
- "जन्म, मृत्यु और प्रवास के कारण हुए परिवर्तनों को शामिल करने के लिये एनपीआर (राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर) को फिर से अपडेट करने की आवश्यकता है, जिसे पहली बार वर्ष 2010 में जोड़ा गया तथा वर्ष 2015 में आधार, मोबाइल और राशन कार्ड नंबरों के साथ अपडेट किया गया।
- सीआरएस के समक्ष विभिन्न चुनौतियाँ:
- सीआरएस प्रणाली समयबद्धता, दक्षता और एकरूपता के मामले में चुनौतियों का सामना कर रही है जिसके कारण जन्म एवं मृत्यु कवरेज में देरी के साथ-साथ कमी आई है।
- जनता को त्वरित सेवा प्रदान करने में प्रणाली के समक्षआने वाली चुनौतियों का समाधान करने हेतु, भारत सरकार द्वारा आईटी [सूचना प्रौद्योगिकी] के माध्यम से देश के नागरिक पंजीकरण प्रणाली में परिवर्तनकारी परिवर्तन शुरू करने का निर्णय लिया गया है जिससे न्यूनतम मानव इंटरफेस के साथ वास्तविक समय के आधार पर जन्म और मृत्यु का पंजीकरण हो सके।
- स्वचालन और समयबद्ध प्रणाली:
- परिवर्तन प्रक्रिया वितरण बिंदुओं को स्वचालित बनाया जाएगा ताकि सेवा वितरण समयबद्ध, एकरूप और विवेकाधीन हो।
- परिवर्तन धारणीय, मापनीय और स्वतंत्र होंगे।
- RBD अधिनियम में संशोधन:
- इसने जन्म और मृत्यु पंजीकरण (RBD) अधिनियम,1969 में संशोधन का भी प्रस्ताव रखा है ताकि "राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत जन्म और मृत्यु के डेटाबेस को बनाए रखा जा सके।
- प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार, डेटाबेस का उपयोग जनसंख्या रजिस्टर, चुनावी रजिस्टर, आधार, राशन कार्ड, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस सबंधित डेटाबेस को अपडेट करने के लिये किया जा सकता है।
- RBD अधिनियम के तहत जन्म और मृत्यु का पंजीकरण अनिवार्य है तथा मुख्य रजिस्ट्रार को वर्ष के दौरान पंजीकृत जन्म और मृत्यु पर एक सांख्यिकीय रिपोर्ट प्रकाशित करना अनिवार्य है।
आगे की राह
- शासन को एक टेक्नो-यूटोपियन आइडिया (Techno-Utopian Idea) की आवश्यकता है, जहाँ नागरिकों को कुछ भी मांगने की आवश्यकता नहीं होगी तथा नागरिकों की आवश्यकताओं को सरकार द्वारा पहले ही पूरा किया जा सकेगा।
- इस टेक्नो-यूटोपियन वास्तविकता की प्राप्ति के लिये, एक एकीकृत जनसंख्या डेटाबेस बनाने की आवश्यकता है जिसका वास्तविक समय में लोगों को ट्रैक करने हेतु प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकेगा।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में पेट्रोल और डीजल के मूल्य निर्धारण का मुद्दा
प्रिलिम्स के लिये:वैट, उत्पाद शुल्क, कच्चे तेल की कीमतें मेन्स के लिये:भारत में पेट्रोल और डीज़ल मूल्य निर्धारण का मुद्दा, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा कई विपक्ष शासित राज्यों से नागरिकों पर आर्थिक बोझ को कम करने तथा सहकारी संघवाद की भावना का पालन करते हुए इस वैश्विक संकट के समय में एक टीम के रूप में कार्य कर पेट्रोल और डीज़ल पर करों में कटौती का आग्रह किया गया है।
- महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल तथा झारखंड राज्यों द्वारा पेट्रोल और डीज़ल पर मूल्यवर्द्धित कर (Value-added tax- VAT) को कम नहीं किया गया है।
- वैट, उपभोग कर है जिसे आपूर्ति शृंखला के उत्पादन में शामिल हर बिंदु पर जोड़ा जाता है।
प्रमुख बिंदु
- ईंधन की खुदरा कीमतों के घटक:
- पेट्रोल और डीज़ल की खुदरा कीमतें मुख्य रूप से 3 घटकों से मिलकर बनी होती हैं:
- आधार मूल्य (अंतर्राष्ट्रीय तेल की लागत को दर्शाता है)
- केंद्रीय उत्पाद शुल्क
- राज्य कर (वैट)
- भारत में पेट्रोल और डीज़ल की कीमत का एक बड़ा हिस्सा केंद्रीय और राज्य कर है।
- उत्पाद शुल्क पूरे भारत में एक समान है, राज्य कर (बिक्री कर और मूल्यवर्द्धित कर) विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा लगाए गए दरों के आधार पर भिन्न होते हैं।
- ये कर उपभोक्ताओं के लिये ईंधन को और भी महंगा बनाते हैं।
- केंद्र सरकार ने नवंबर 2021 में ग्राहकों को कुछ राहत देने के लिये पेट्रोल और डीज़ल पर उत्पाद शुल्क कम कर दिया था।
- उत्पाद शुल्क के रूप में पेट्रोल पर 5 रुपए प्रति लीटर और डीज़ल पर 10 रुपए प्रति लीटर की कमी की गई।
- केंद्र सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क में कटौती करने के बाद भी ईंधन की कीमतें स्थिर रहीं।
- हालांँकि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के कारण वैश्विक कच्चे तेल की ऊँची कीमतों की वजह से भारत में भी पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है।
- वैट दरों में अंतर के कारण विभिन राज्यों के पेट्रोल और डीज़ल की कीमत अलग-अलग हैं।
- उच्च वैट वाले राज्यों में पेट्रोल की कीमतों में थोड़ी अधिक कमी देखी गई।
- पेट्रोल और डीज़ल की खुदरा दरें अंतर्राष्ट्रीय कीमतों द्वारा नियंत्रित होती हैं क्योंकि भारत अपनी 85% तेल ज़रूरतों को पूरा करने के लिये आयात पर निर्भर है।
ईंधन की कीमतों से सरकार को राजस्व:
- ईंधन पर उत्पाद शुल्क और वैट केंद्र और राज्यों के लिये राजस्व का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
- बजट 2020-21 के अनुसार, ईंधन पर उत्पाद शुल्क केंद्र के सकल कर राजस्व का लगभग 18.4% है।
- पेट्रोलियम और अल्कोहल राज्यों के अपने कर राजस्व में औसतन 25-35% का योगदान करते हैं।
- राज्यों की राजस्व प्राप्तियों में से केंद्रीय कर हस्तांतरण में 25-29% और स्वयं के कर राजस्व में 45-50% शामिल हैं।
- पेट्रोलियम और अल्कोहल राज्यों के अपने कर राजस्व में औसतन 25-35% का योगदान करते हैं।
- अप्रैल-दिसंबर 2021 के दौरान कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों पर करों से केंद्र को 3.10 लाख करोड़ रुपए का राजस्व मिला, जिसमें उत्पाद शुल्क के रूप में 2.63 लाख करोड़ रुपए और कच्चे तेल पर उपकर के रूप में 11,661 करोड़ रुपए भी शामिल हैं।
- इसी अवधि में राज्य के कोष में कुल 2.07 लाख करोड़ रुपए जमा हुए, जिसमें से 1.89 लाख करोड़ रुपए वैट के माध्यम से संगृहीत हुये थे।
ईंधन कर कम करने के संदर्भ में राज्यों की समस्याएँ:
- राजस्व का प्रमुख स्रोत:
- पेट्रोलियम और अल्कोहल पर कर के माध्यम से राज्य अपने राजस्व का लगभग एक-तिहाई हिस्सा प्राप्त करते हैं, अतः राज्य इन करों में कमी को एक बड़ी हानि के रूप देखते हैं।
- महामारी का प्रभाव:
- आर्थिक मंदी और महामारी के कारण राज्य के खर्च में बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप राजस्व में कमी आई थी।
- राज्यों का समेकित राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2020 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 2.6% से बढ़कर वित्त वर्ष 2021 में 4.7% हो गया था।
- आर्थिक मंदी और महामारी के कारण राज्य के खर्च में बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप राजस्व में कमी आई थी।
मुद्रास्फीति को कम करने के उपाय:
- चूंँकि भारत कच्चे तेल के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है, इसलिये तैयार उत्पाद पर करों को कम करने या सब्सिडी को पुनः वितरित करने के अलावा ऊर्जा मूल्य मुद्रास्फीति को कम करने का कोई तरीका नहीं है।
- सब्सिडी राज्य के स्वामित्व वाले ईंधन के खुदरा विक्रेताओं को कम कीमत पर विक्रय में सक्षम बनाती है, जबकि निजी रिफाइनरी जिन्हें सरकार से सब्सिडी प्राप्त नहीं होती है, इस से नुकसान उठाना पड़ता है।
- यह देखते हुए कि उच्च ईंधन की कीमतों का प्रभाव परिवहन पर भी पड़ा है जिससे अन्य वस्तुओं की कीमतों में भी बढ़ोतरी हो रही है, अतः सख्त मौद्रिक नीति का पालन इस समस्या का सही समाधान होगा।
आगे की राह
- भारत अपने तेल और गैस आयात के स्रोत में विविधता लाने, रणनीतिक तेल भंडार बनाने, ऑटो फ्यूल के साथ इथेनॉल मिश्रण और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी योजना पर कार्य कर रहा है।
- हालांँकि कच्चे तेल, गैस, पेट्रोल और डीज़ल की वैश्विक कीमतों में भारी उछाल की स्थिति में ऊर्जा की कीमतों पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिये इन उपायों को को अपनाना आवश्यक है।
- सरकार द्वारा ईंधन की कीमतों को बढ़ने से रोकने का सबसे आसान तरीका है कि उन पर करों में कटौती की जाए तथा सार्वजनिक क्षेत्र के तेल उपक्रमों से कम लाभांश लिया जाए।.
- सरकार को ईंधन और अन्य पेट्रो उत्पादों के निर्यात को प्रतिबंधित करना चाहिये।
- यह रिफाइनरियों को अपने उत्पाद को घरेलू बाज़ार में बेचने के लिये मजबूर करेगा, जिससे उन्हें सुनिश्चित व्यापार-समानता मूल्य देने से छुटकारा मिलेगा।
विगत वर्षों का प्रश्न:प्रश्न. वैश्विक तेल कीमतों के संदर्भ में "ब्रेंट क्रूड ऑयल" को अक्सर समाचारों में संदर्भित किया जाता है। इस शब्द का क्या अर्थ है? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 2 उत्तर: (b)
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
चीन की वैश्विक सुरक्षा पहल
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक सुरक्षा पहल, क्वाड ग्रुप, AUKUS ग्रुपिंग, इंडो-पैसिफिक रणनीति मेन्स के लिये:नया शीत युद्ध, भारत को शामिल करने वाले समूह और समझौते और/या भारत के हित को प्रभावित करना, भारत के हितों पर देशों की नीतियांँ और राजनीति का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीनी राष्ट्रपति द्वारा एक नई वैश्विक सुरक्षा पहल (GSI) का प्रस्ताव रखा गया है। GSI को अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति और क्वाड (भारत, यूएस, ऑस्ट्रेलिया, जापान ग्रुप) के विरुद्ध प्रतिक्रियात्मक कदम के रूप में देखा जा सकता है।
- हालांँकि चीन ने प्रस्तावित वैश्विक सुरक्षा पहल के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं दी है।
GSI के बारे में:
- अविभाज्य सुरक्षा का सिद्धांत: एकाधिकारवाद (Unilateralism), आधिपत्य और सत्ता की राजनीति से उत्पन्न खतरों, शांति, सुरक्षा, विश्वास और शासन की कमी के कारण मानव जाति अधिक समस्याओं और सुरक्षा खतरों का सामना कर रही है।
- अतःचीन का कहना है कि "अविभाज्य सुरक्षा" के सिद्धांत को बनाए रखने के लिये वैश्विक सुरक्षा पहल की परिकल्पना की गई है।
- "अविभाज्य सुरक्षा" के सिद्धांत का अर्थ है कि कोई भी देश दूसरे देश की सुरक्षा कीमत पर अपनी सुरक्षा को मज़बूत नहीं कर सकता है।
- एशियाई सुरक्षा मॉडल: GSI एक "साझा, व्यापक, सहकारी और टिकाऊ" सुरक्षा एवं आपसी सम्मान, खुलेपन तथा एकीकरण के लिये एशियाई सुरक्षा मॉडल के निर्माण की बात करता है।
- प्रतिबंध का विरोध: यह मॉडल पश्चिमी प्रतिबंधों को संदर्भित करने के लिये एकतरफा प्रतीत होने वाले प्रतिबंधों और लंबे समय तक अधिकार क्षेत्र के उपयोग का विरोध करेगा।
- नए शीत युद्ध का समाधान: यूएस की इंडो-पैसिफिक रणनीति इस क्षेत्र को विभाजित करने और 'नया शीत युद्ध' शुरू होने की स्थिति में 'उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सैन्य गठबंधनों का उपयोग एशिया में करना है।
- चीन के अनुसार, क्वाड समूह ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, कनाडा,अमेरिका और यूके ऑकस संधि से जुड़े "फाइव आईज़" खुफिया गठबंधन के समकक्ष है, जिसे अमेरिका के "नाटो के एशियन संस्करण" के निर्माण की योजना के प्रमुख तत्त्व के रूप में देखा जा रहा है।
क्वाड सदस्यों की प्रतिक्रियाएँ:
- क्वाड एक सैन्य गठबंधन नहीं है: क्वाड के सदस्यों ने इस धारणा को खारिज किया है कि यह नाटो का एक एशियन संस्करण या एक सैन्य गठबंधन है, बल्कि उन्होंने इसे वैक्सीन और प्रौद्योगिकी सहित एक व्यापक सहयोग आधारित समझौता कहा है।
- चीन के दोहरे मानदंड: चीन द्वारा जब भी एकाधिकारवाद, आधिपत्य और दोहरे मानकों की आलोचना की जाती है उसमें प्रायः अमेरिका को लक्षित किया जाता है।
- रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव: प्रशांत क्षेत्र में चीन की नई प्रगति यूक्रेन युद्ध के कारण बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के ठहराव से संबंधित हो सकती है।
एक नए शीत युद्ध का संकेत देने वाली घटनाएँ:
- चीन का विकास: कई दशकों तक देंग शियाओपिंग (Deng Xiaoping) और उनके उत्तराधिकारियों के अपेक्षाकृत प्रबुद्ध अधिनायकवाद के अंतर्गत चीन के आक्रामक विकास को संयुक्त राज्य अमेरिका में सकारात्मक रूप से देखा गया था।
- हालाँकि शी जिनपिंग (राष्ट्रपति) के शासन के अधीन चीन नरम से कठोर अधिनायकवाद के रूप में विकसित हुआ है।
- उदीयमान व्यक्तित्व के साथ अब वह जीवन भर के लिये चीन के राष्ट्रपति हैं।
- अमेरिका द्वारा प्रतिरोध: चीन की बढ़ती दृढ़ता पर अंकुश लगाने के लिये अमेरिका ने अपनी 'एशिया के लिये धुरी' (Pivot to Asia) नीति के तहत क्वाड इनिशिएटिव एंड इंडो पैसिफिक नैरेटिव की शुरुआत की है।
- हाल ही में अमेरिका ने चीन को शामिल किये बिना G7 को G-11 तक विस्तारित करने का प्रस्ताव रखा।
- दक्षिण चीन सागर पर चीन का रुख: दक्षिण चीन सागर में चीन की कार्रवाइयों, पहले भूमि पुनर्ग्रहण और फिर अतिरिक्त-क्षेत्रीय दावे का विस्तार करने के लिये कृत्रिम द्वीपों के निर्माण की नीति की अमेरिका और उसके सहयोगियों ने तीखी आलोचना की है।
- आर्थिक आधिपत्य को चुनौती देना: चीन अमेरिका के प्रभुत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन के लिये वैकल्पिक शासन तंत्र के साथ सामने आया है, जिसमें न्यू डेवलपमेंट बैंक का आकस्मिक रिज़र्व समझौता (सीआरए) बेल्ट एंड रोड पहल तथा एशिया अवसंरचना निवेश बैंक जैसे संस्थान शामिल हैं।
भारत की भूमिका:
- भारत एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति है और इसके महत्त्व को देखते हुए अमेरिका और चीन दोनों भारत को अपने खेमे में आकर्षित करने की कोशिश करते रहे। अमेरिकी विदेश नीति विशेषज्ञों का तर्क है कि भारत नए शीत युद्ध में अमेरिका का एक स्वाभाविक सहयोगी है।
- दूसरी ओर भारत में चीनी राजदूत ने "मानवता के लिये एक साझा भविष्य" के साथ "एक साथ एक नया अध्याय" लिखने का सुझाव दिया है तथा इसी संदर्भ में:
- भारत वसुधैव कुटुम्बकम के तत्त्वावधान में नए बहुपक्षवाद को बढ़ावा दे सकता है जो समान सतत् विकास हेतु आर्थिक व्यवस्था और सामाजिक व्यवहार दोनों के पुनर्गठन पर निर्भर करता है।
- भारत को वैश्विक शक्तियों के साथ गहन कूटनीति अपनानी चाहिये ताकि एशिया की इस सदी को शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और वैश्विक हित के संदर्भ में परिभाषित किया जा सके।
- इसके अलावा भारत को यह स्वीकार करना चाहिये कि राष्ट्रीय सुरक्षा अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), साइबर और अंतरिक्ष में तकनीकी श्रेष्ठता पर निर्भर करती है, न कि महंगे पूंजीगत उपकरणों पर।
- इस प्रकार भारत को महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना चाहिये।