डेली न्यूज़ (29 Mar, 2022)



पशु रोग मुक्त क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

पशु रोग मुक्त क्षेत्र, पशुपालन, विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (OIE), राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम, खुरपका-मुँहपका रोग (FMD) और ब्रुसेलोसिस, राष्ट्रीय पशुधन मिशन पशुपालन अवसंरचना विकास कोष, किसान उत्पादक संगठन (FPO), कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण।

मेन्स के लिये:

पशुपालन का अर्थशास्त्र, किसानों की आय बढ़ाना।

चर्चा में क्यों?

मूल्यवर्द्धित मांस उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार ने हितधारकों से देश में क्षेत्र-विशिष्ट ‘पशु रोग मुक्त क्षेत्रों’ के निर्माण की दिशा में काम करने का आह्वान किया है।

पशु रोग मुक्त क्षेत्र क्या है?

  • ‘पशु रोग-मुक्त क्षेत्र’ का अर्थ एक ऐसे स्पष्ट रूप से परिभाषित हिस्से से है, जहाँ किसी विशिष्ट बीमारी के संबंध में एक विशिष्ट स्वास्थ्य स्थिति वाली पशु जनसंख्या मौजूद होती है और जहाँ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के उद्देश्य हेतु आवश्यक निगरानी, नियंत्रण एवं जैव सुरक्षा उपायों को लागू किया जाता है।

‘पशु रोग मुक्त क्षेत्र’ बनाने की आवश्यकता:

  • पशुपालन का महत्त्व: पशु हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिये जीवन समर्थन प्रणाली हैं, वे कठिन समय में जीविका प्रदान करते हैं और पोषण, विशेष रूप से ग्रामीण लोगों के लिये प्रोटीन का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
    • पशुपालन मिश्रित कृषि पद्धतियों के अंतर्गत आता है।
    • मिश्रित खेती एक ऐसी कृषि प्रणाली है, जिसमें एक किसान विभिन्न कृषि पद्धतियों को एक साथ अपनाता है, जैसे कि नकदी फसलें उगाना और पशुपालन।
    • इसका उद्देश्य ऐसे विभिन्न स्रोतों के माध्यम से आय में वृद्धि करना और वर्ष भर भूमि एवं श्रम की मांग को पूरा करना है।
  • कृषि निर्यात: जैविक शहद और मछली उत्पादों के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हासिल करते हुए भारत गोजातीय (Bovine) मांस का सबसे बड़ा निर्यातक है।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देना: विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (OIE) के अनुसार, ज़ोनिंग पशु रोगों के प्रगतिशील नियंत्रण एवं उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये गारंटी प्रदान करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण जोखिम प्रबंधन रणनीति है।

सरकार द्वारा की गई संबंधित पहलें:

आगे की राह

  • सिक्किम मॉडल: जैविक राज्य के रूप में घोषित सिक्किम के जैविक मॉडल का सभी राज्यों में अनुकरण किया जाना चाहिये।
  • पशु चिकित्सा सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार: क्षेत्रीय स्तर पर कार्यान्वयन और प्रभावशीलता पशु चिकित्सा सेवाओं की गुणवत्ता पर निर्भर करती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण: बाहरी बाज़ारों से लाभ उठाने, रोग मुक्त क्षेत्रों की द्विपक्षीय मान्यता में वृद्धि करने जैसे द्विपक्षीय पशु चिकित्सा समझौते या मुक्त व्यापार समझौते, व्यापारिक साझेदार देशों द्वारा लागू किये जाने वाले स्पष्ट क्षेत्रों और प्रक्रियाओं को स्थापित करते हैं।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी मिश्रित खेती की प्रमुख विशषेता है? (2012)

(a) नकदी और खाद्य दोनों फसलों की साथ-साथ खेती
(b) दो या दो से अधिक फसलों को एक ही खेत में उगाना
(c) पशुपालन और फसल-उत्पादन कार्य एक साथ करना
(d) उपर्युक्त मे से कोई नही

उत्तर: (c)

स्रोत: पी.आई.बी.


भारत में ‘अल्पसंख्यक’ का निर्धारण

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992, अनुच्छेद-29, अनुच्छेद-30, अनुच्छेद-350(B)

मेन्स के लिये:

भारत में अल्पसंख्यकों का निर्धारण एवं संबंधित संवैधानिक प्रावधान, अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया है कि राज्य सरकारें अब हिंदुओं सहित किसी भी धार्मिक या भाषायी समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकती हैं।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका के संबंध में केंद्र सरकार से जवाब मांगा था, जिसमें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान करने के लिये दिशा-निर्देश तैयार करने के निर्देश देने की मांग की गई थी।
  • ‘अल्पसंख्यक’ शब्द संविधान के कुछ अनुच्छेदों में दिखाई देता है, लेकिन इसे कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है।

मामला:

  • याचिका में कहा गया है कि भारत के छह राज्यों और तीन केंद्रशासित प्रदेशों में हिंदू 'अल्पसंख्यक' हैं, लेकिन वे कथित तौर पर अल्पसंख्यकों के लिये बनाई गई योजनाओं का लाभ उठाने में सक्षम नहीं थे।
    • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, लक्षद्वीप (2.5%), मिज़ोरम (2.75%), नगालैंड (8.75%), मेघालय (11.53%), जम्मू-कश्मीर (28.44%), अरुणाचल प्रदेश (29%), मणिपुर (31.39%) और पंजाब (38.40%) में हिंदू अल्पसंख्यक बन गए हैं।
  • इन राज्यों में ‘टीएमए पाई फाउंडेशन’ वाद (2002) और ‘बाल पाटिल’ वाद (2005) के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित सिद्धांत के अनुसार अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाना चाहिये।
    • ‘टीएमए पाई फाउंडेशन’ वाद (2002):
      • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिये अल्पसंख्यकों के अधिकारों से संबंधित अनुच्छेद 30 के प्रयोजन के लिये धार्मिक एवं भाषायी अल्पसंख्यकों का निर्धारण राज्यवार आधार पर किया जाना चाहिये।
    • ‘बाल पाटिल’ वाद (2005):
      • वर्ष 2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने 'बाल पाटिल' वाद में अपने फैसले में ‘टीएमए पाई’ वाद के निर्णय का उल्लेख किया था।
      • कानूनी स्थिति स्पष्ट करती है कि अब से भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यक, दोनों की स्थिति निर्धारित करने की इकाई 'राज्य' होगी।
  • याचिका में दावा किया गया है कि NCMEI (राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान) अधिनियम 2004 केंद्र को अत्यधिक शक्ति प्रदान करता है जो ‘स्पष्ट रूप से मनमाना, तर्कहीन एवं अपमानजनक’ है।
    • NCMEI अधिनियम 2004 की धारा 2(f) भारत में अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान करने और उन्हें अधिसूचित करने के लिये केंद्र को शक्ति प्रदान करती है।

केंद्र का रुख:

  • केंद्र ने कहा कि याचिकाकर्त्ताओं का तर्क सही नहीं है क्योंकि राज्य भी "उक्त राज्य के नियमों के अनुसार संस्थानों को अल्पसंख्यक संस्थानों के रूप में प्रमाणित कर सकते हैं।
  • संसद और राज्य विधानसभाओं को अल्पसंख्यकों एवं उनके हितों के संरक्षण के लिये समवर्ती सूची के तहत कानून बनाने की शक्तियाँ प्राप्त हैं।
  • लद्दाख, मिज़ोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में यहूदी, बहावाद और हिंदू धर्म के अनुयायियों को अल्पसंख्यक घोषित करने जैसे मामले स्थापित हो सकते हैं तथा उक्त राज्य में अपनी पसंद के शिक्षण संस्थानों का प्रशासन एवं राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक की पहचान हेतु दिशा-निर्देश निर्धारित करने पर संबंधित राज्य सरकारों द्वारा विचार किया जा सकता है।
  • टीएमए पई (TMA Pai) के फैसले से यह भी पता चलता है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसी समुदाय को 'अल्पसंख्यक' के रूप में अधिसूचित करने की केंद्र सरकार की शक्ति को कहीं भी सीमित नहीं किया गया है।
    • अल्पसंख्यकों के हितों को बढ़ावा देने तथा उनके संरक्षण हेतु कानून बनाने के लिये संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत संसद को समवर्ती सूची की प्रविष्टि 20, "आर्थिक और सामाजिक योजना" के तहत अधिकार दिया गया है।
    • संसद के पास विधायी तथा केंद्र सरकार के पास राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2 (सी) के तहत एक समुदाय को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित करने की कार्यकारी क्षमता है।

अल्पसंख्यकों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 29:
    • यह अनुच्छेद उपबंध करता है कि भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार होगा।
    • अनुच्छेद-29 के तहत प्रदान किये गए अधिकार अल्पसंख्यक तथा बहुसंख्यक दोनों को प्राप्त हैं।
    • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस अनुच्छेद का दायरा केवल अल्पसंख्यकों तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि अनुच्छेद में 'नागरिकों के वर्ग' शब्द के उपयोग में अल्पसंख्यकों के साथ-साथ बहुसंख्यक भी शामिल हैं।
  • अनुच्छेद 30:
    • धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थानों की स्थापना करने और उनके प्रशासन का अधिकार होगा।
    • अनुच्छेद 30 के तहत संरक्षण केवल अल्पसंख्यकों (धार्मिक या भाषायी) तक ही सीमित है और नागरिकों के किसी भी वर्ग (जैसा कि अनुच्छेद 29 के तहत) तक विस्तारित नहीं किया जा सकता।
  • अनुच्छेद 350 B:
    • मूल रूप से भारत के संविधान में भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये विशेष अधिकारों के संबंध में कोई प्रावधान नहीं किया गया था। इसे 7वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1956 द्वारा संविधान में अनुच्छेद 350B के रूप में जोड़ा गया।
    • यह भारत के राष्ट्रपति द्वारा भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान करता है।

भारत सरकार द्वारा अधिसूचित अल्पसंख्यक:

  • वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा एनसीएम अधिनियम, 1992 की धारा 2 (सी) के तहत अधिसूचित समुदायों को ही अल्पसंख्यक माना जाता है।
  • वर्ष 1992 में NCM अधिनियम, 1992 के अधिनियमन के साथ अल्पसंख्यक आयोग (MC) एक वैधानिक निकाय बन गया और इसका नाम बदलकर राष्ट्रीयअल्पसंख्यक आयोग (NCM) कर दिया गया।
  • वर्ष 1993 में पहला सांविधिक राष्ट्रीय आयोग स्थापित किया गया था और पांँच धार्मिक समुदायों अर्थात् मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया था।
  • वर्ष 2014 में जैनियों को भी अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया गया था।

स्रोत: द हिंदू


आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक, 2022

प्रिलिम्स के लिये:

लोकसभा, भारतीय दंड संहिता, निवारक निरोध, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, नागरिकों के मौलिक अधिकार, गोपनीयता का अधिकार, आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक, 2022

मेन्स के लिये:

आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक, 2022 और मुद्दे, निर्णय और मामले, मौलिक अधिकार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक, 2022 को लोकसभा में पेश किया गया है।

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विधेयक के प्रावधान:

  • नमूनों का संग्रह:
    • यह पुलिस और जेल अधिकारियों को रेटिना और आईरिस स्कैन सहित भौतिक एवं जैविक नमूनों को एकत्र करने, संग्रहण और विश्लेषण करने की अनुमति देगा।
      • इस अधिनियम के तहत माप लेने की अनुमति देने का विरोध या इनकार करने को भारतीय दंड संहिता की धारा 186 के तहत अपराध माना जाएगा।
    • यह इन प्रावधानों को किसी भी निवारक निरोध कानून के तहत पकड़े गए व्यक्तियों पर भी लागू करने का प्रयास करता है।
    • यह आपराधिक मामलों में पहचान और जाँच हेतु दोषियों तथा "अन्य व्यक्तियों" के परीक्षण के लिये भी अधिकृत है।
      • यह दोषियों, गिरफ्तार व्यक्तियों या बंदियों से परे अपने दायरे को इंगित करने वाले "अन्य व्यक्तियों" को परिभाषित नहीं करता है।
  • परीक्षण/माप को रिकॉर्ड करने की शक्ति:
    • परीक्षण/माप रिकॉर्ड करने के लिये हेड कांस्टेबल रैंक तक के पुलिस कर्मियों को अधिकृत किया गया है।
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) भौतिक और जैविक नमूनों, हस्ताक्षर एवं हस्तलेखन डेटा का भंडार होगा जिसे कम-से-कम 75 वर्षों तक संरक्षित किया जा सकता है।
      • NCRB को किसी अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसी के साथ रिकॉर्ड साझा करने का भी अधिकार दिया गया है।

विधेयक का महत्त्व:

  • आधुनिक तकनीकों का उपयोग करना:
    • विधेयक शरीर के उपयुक्त परीक्षणों की जाँच और उन्हें रिकॉर्ड करने हेतु आधुनिक तकनीकों के उपयोग का प्रावधान करता है।
      • वर्तमान कानून- कैदियों की पहचान अधिनियम (Identification of Prisoners Act) को वर्ष 1920 में लागू किया गया था, अतः यह काफी पुराना है और यह दोषी व्यक्तियों की एक सीमित श्रेणी के केवल फिंगरप्रिंट (Fingerprint) और पदचिह्न (Footprint) लेने की अनुमति प्रदान करता है।
  • निवेश एजेंसियों हेतु सहायक:
    • विधेयक उन "व्यक्तियों के दायरे" का विस्तार करता है जिनके शरीर का परीक्षण या जाँच की जा सकती है। इससे जांँच एजेंसियों को पर्याप्त कानूनी रूप से स्वीकार्य सबूत इकट्ठा करने और आरोपी व्यक्ति के अपराध को साबित करने में मदद मिलेगी।
  • अपराध की जांँच को और अधिक कुशल बनाना:
    • यह विधेयक व्यक्तियों के उचित शारीरिक परीक्षण हेतु कानूनी मंज़ूरी प्रदान करता है, जिन्हें इस तरह के परीक्षण/माप की आवश्यकता होती है और इससे अपराध की जांँच अधिक कुशल और तेज़ हो जाएगी और दोष-सिद्धि दर को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।

विधेयक से संबंधित मुद्दे:

  • यह तर्क दिया गया है कि विधेयक संसद की विधायी क्षमता से परे था क्योंकि यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है जिसमें निजता का अधिकार भी शामिल है।
    • विधेयक में राजनीतिक विरोध में शामिल प्रदर्शनकारियों के भी नमूने एकत्र करने का प्रस्ताव है।
  • यह संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन करता है। विधेयक में जैविक जानकारी के संग्रह में बल का प्रयोग निहित है, जिससे नार्को परीक्षण (Narco Analysis) और ब्रेन मैपिंग (Brain Mapping) भी शामिल हो सकती है।
    • अनुच्छेद 20(3) के अनुसार, 'किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाह बनने हेतु बाध्य नहीं किया जाएगा'।
  • विधेयक संयुक्त राष्ट्र चार्टर में निर्धारित मानवाधिकार प्रावधानों का भी उल्लंघन करता है।
  • साथ ही शारीरिक परीक्षण एवं नमूनें एकत्र करने हेतु खंड 6(1) में निहित शक्तियों का उपयोग ‘ए.के. गोपालन’ वाद (1950), ‘खड़ग सिंह’ वाद (1964), ‘चार्ल्स शोभराज’ वाद (1978), ‘शीला बरसे’ वाद (1983), ‘प्रमोद कुमार’ वाद के तहत सज़ा पाए लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है।

सरकार की संबंधित पहलें:

  • अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली (CCTNS):
    • यह ई-गवर्नेंस के माध्यम से प्रभावी पुलिस व्यवस्था के लिये एक व्यापक एवं एकीकृत प्रणाली बनाने की परियोजना है।
  • गृह मंत्रालय ‘सेंट्रल फिंगर प्रिंट ब्यूरो’ (CFPB) और NIST फिंगरप्रिंट इमेज सॉफ्टवेयर (NFIS) के फिंगरप्रिंट डेटाबेस के एकीकरण पर काम कर रहा है।
    • NFIS एक तकनीक है, जिसका उपयोग यूनाइटेड स्टेट्स फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (FBI) द्वारा उँगलियों के निशान से मिलान करने के लिये किया जाता है।
  • सरकार डेटा संग्रह को बढ़ाने पर भी काम कर रही है।
  • FBI के डेटाबेस में 4 करोड़ से अधिक उँगलियों के निशान हैं और CFPB के पास वर्तमान में सिर्फ 10 लाख से अधिक उँगलियों के निशान का डेटाबेस है।

विगत वर्षों के प्रश्न

प्रश्न. 'निजता का अधिकार' भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के तहत संरक्षित है?

(a) अनुच्छेद 15
(b) अनुच्छेद 19
(c) अनुच्छेद 21
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (c)

  • पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले (2017) में निजता के अधिकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मौलिक अधिकार घोषित किया गया था।
  • निजता का अधिकार अनुच्छेद-21 के तहत जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक भाग के रूप में और भारतीय संविधान के भाग III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के एक भाग के रूप में संरक्षित है।

स्रोत: द हिंदू


PACER योजना

प्रिलिम्स के लिये:

भारत के अंटार्कटिक और आर्कटिक मिशन, PACER योजना, राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र, इंडएआरसी महासागर सेवाएंँ, प्रौद्योगिकी, अवलोकन, संसाधन मॉडलिंग और विज्ञान, ACROSS योजना।

मेन्स के लिये:

विज्ञान और प्रौद्योगिकी, ध्रुवीय अनुसंधान में भारतीयों की उपलब्धियांँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा वर्ष 2021 से वर्ष 2026 तक ध्रुवीय विज्ञान और क्रायोस्फीयर रिसर्च (Polar Science and Cryosphere- PACER) योजना को जारी रखने की मंज़ूरी दी गई है।

प्रमुख बिंदु

PACER योजना के बारे में:

  • PACER में निम्नलिखित छह घटक शामिल हैं:
    • ध्रुवीय अनुसंधान पोत का निर्माण
    • अंटार्कटिक में तीसरे शोध आधार का निर्माण
    • आर्कटिक में भारतीय वैज्ञानिक प्रयास
    • ध्रुवीय अभियान-अंटार्कटिक
    • मैत्री स्टेशन का प्रतिस्थापन
    • दक्षिणी महासागर अभियान
  • योजना को नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च ( National Centre for Polar and Ocean Research- NCPOR) के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है।

योजना के तहत प्रमुख कार्य:

  • जैव-भू-रासायनिक प्रक्रियाओं की समझ: सुपरग्लेशियल वातावरण (Supraglacial Environments) में जैव-भू-रासायनिक प्रक्रियाओं की समझ हेतु पूर्वी अंटार्कटिका के लार्समैन हिल्स (Larsemann Hills, East Antarctica) की झीलों में क्षेत्र-आधारित अध्ययन आयोजित किये गए थे।
  • इंडआर्क प्रणाली: हाइड्रोफोन प्रणाली (Hydrophone System) के साथ इंडआर्क मूरिंग सिस्टम (IndARC Mooring System) को कोंग्सफजॉर्डन, स्वालबार्ड में सफलतापूर्वक पुनः तैनात किया गया।
  • हिमालय में अनुसंधान अध्ययन: पश्चिमी हिमालय के लाहौल-स्पीति क्षेत्र के चंद्रा बेसिन में छह बेंचमार्क ग्लेशियरों में हिमनद संबंधी क्षेत्र अभियान चलाए गए।
    • हिमपात के गड्ढों और बर्फ के कोनों का उपयोग करके हिमनदों पर शीतकालीन हिम संचय दर्ज किया गया था।
  • स्वचालित मौसम स्टेशन (AWS) सिस्टम: चंद्रा बेसिन में बुनियादी ढांँचे को मज़बूत करने हेतु शुष्क स्पीति क्षेत्र (Arid Spiti Region) में एक उच्च ऊंँचाई स्थल, बारालाचा ला में दो नए स्वचालित मौसम स्टेशन (Automatic Weather Station- AWS) सिस्टम स्थापित किये गए थे।
  • दक्षिणी महासागर अभियान: 11वें हिंद दक्षिणी महासागर अभियान को सफलतापूर्वक संचालित किया गया।

नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (NCPOR) क्या है?

  • यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान है।
  • इसके दायित्वों में शामिल हैं:
    • भारतीय अंटार्कटिक अनुसंधान केंद्र- ‘मैत्री’ और ‘भारती’ तथा भारतीय आर्कटिक बेस ‘हिमाद्री’ का प्रबंधन और उनका रखरखाव करना।
    • मंत्रालय के महासागर अनुसंधान वाहन- ‘सागर कन्या’ के साथ-साथ मंत्रालय द्वारा चार्टर्ड अन्य अनुसंधान जहाज़ों का प्रबंधन करना।
      • ‘सागर कन्या’ तकनीकी रूप से उन्नत वैज्ञानिक उपकरणों और संबंधित सुविधाओं से लैस एक बहुमुखी महासागर अवलोकन प्लेटफाॅर्म है।
    • अंटार्कटिक, आर्कटिक और दक्षिणी महासागर के हिंद महासागर क्षेत्र में कई राष्ट्रीय संस्थानों एवं संगठनों द्वारा की जा रही वैज्ञानिक अनुसंधान गतिविधियों में एक समुचित भूमिका निभा रहा है।
    • देश के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) और विस्तारित महाद्वीपीय शेल्फ के भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षणों, अंतर्राष्ट्रीय महासागर खोज कार्यक्रम (IODP) के माध्यम से अरब सागर बेसिन में गहरे समुद्र में ड्रिलिंग, महासागर में गैर-जीवित साधनों की खोज, मध्य-महासागर पर्वतमाला (Mid-ocean Ridge) में गैस हाइड्रेट और बहु-धातु सल्फाइड जैसे संसाधनों की खोज में अग्रणी भूमिका अदा करना।
  • इसका मुख्यालय गोवा में स्थित है।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की अन्य प्रमुख पहलें:

भारत के आर्कटिक मिशन क्या हैं?

  • भारत ने वर्ष 2007 में आर्कटिक महासागर में अपना पहला वैज्ञानिक अभियान शुरू किया था।
  • भारत ने ग्लेशियोलॉजी, वायुमंडलीय विज्ञान और जैविक विज्ञान जैसे विषयों में अध्ययन करने के लिये जुलाई 2008 में स्वालबार्ड, नॉर्वे में "हिमाद्री" नामक एक शोध केंद्र खोला था।

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भारत के अंटार्कटिक मिशन:

  • भारत आधिकारिक तौर पर 1 अगस्त, 1983 को अंटार्कटिक संधि प्रणाली में शामिल हुआ।
  • 12 सितंबर, 1983 को भारत अंटार्कटिक संधि का पँद्रहवाँ सलाहकार सदस्य बना।
  • भारत अंटार्कटिक में अपने बुनियादी ढाँचे के विकास का विस्तार कर रहा है।
  • वर्ष 2015 में प्रमाणित नवीनतम बेस स्टेशन भारती है।
  • भारत अपने स्टेशन मैत्री का पुनर्निर्माण कर रहा है, ताकि इसके आकार में वृद्धि कर इसे कम-से-कम 30 वर्षों से अधिक समय तक चलने योग्य बनाया जा सके।
  • दक्षिण गंगोत्री वर्ष 1984 में स्थापित पहला भारतीय वैज्ञानिक अनुसंधान बेस स्टेशन था, जो अब क्षतिग्रस्त हो गया है तथा इसका उपयोग सिर्फ आपूर्ति के केंद्र के रूप में किया जाता है।
  • सागर निधि: वर्ष 2008 में भारत ने शोध के लिये सागर निधि की स्थापना की।
    • एक आइस-क्लास पोत, अंटार्कटिक जल को नेविगेट करने वाला पहला भारतीय पोत जो 40 सेमी. गहराई की पतली बर्फ को काट सकता है।

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यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये:

  1. डेनमार्क
  2. जापान
  3. रशियन फेडरेशन
  4. यूनाइटेड किंगडम
  5. यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका

उपर्युक्त में से कौन-से 'आर्कटिक परिषद' के सदस्य हैं?

(a) 1, 2 और 3
(b) 2, 3 और 4
(c) 1, 4 और 5
(d) 1, 3 और 5

उत्तर: (d)

  • आर्कटिक परिषद के सदस्यों में कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूसी संघ, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.