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नीतिशास्त्र

धर्म और पर्यावरणीय संरक्षण

  • 14 Jan 2020
  • 14 min read

संदर्भ:

  • वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में पर्यावरण एक अहम मुद्दा है तथा बढ़ता भूमंडलीय उष्मन (Global Warming), ग्रीनहाउस गैसों का प्रभाव, जैव विविधता संकट तथा प्रदूषण को नियंत्रित करना आज के दौर की मुख्य चुनौतियाँ हैं। पर्यावरण संरक्षण हेतु वैश्विक स्तर पर देशों, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं, गैर-सरकारी संगठनों तथा स्थानीय समूहों द्वारा लगातार प्रयास किये जा रहे हैं।
  • पर्यावरणीय संरक्षण के लिये विश्व में कार्य कर रही इन संस्थाओं के अलावा कई धार्मिक समूह भी इसमें प्रमुख भागीदारी दे रहे हैं। विश्व के प्रत्येक 10 में से 8 व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में धर्म से संबंधित हैं तथा विश्व के प्रमुख धर्मों में इसाई, मुसलमान, हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, यहूदी, बहाई आदि शामिल हैं।
  • हालाँकि विश्व के सभी धर्म पर्यावरण के प्रति सद्भाव व नैतिकता का पालन करने की प्रेरणा देते हैं लेकिन वर्तमान में धार्मिक ग्रंथों और समाज के व्यवहार में अंतर देखने को मिल रहा है।

पर्यावरण संरक्षण में धर्म की भूमिका:

  • धर्म और पर्यावरण में एक गहरा संबंध है तथा सभी धर्मों का दृष्टिकोण प्रकृति के प्रति सकारात्मक रहा है। उदाहरण के तौर पर बौद्ध धर्म का मत है कि सभी जीव-जंतुओं, वनस्पतियों व मनुष्यों का जीवन एक दूसरे से संबंधित हैं इसलिये व्यक्ति को सभी जीवों का सम्मान करना चाहिये। इसी प्रकार बहाई धर्म का मानना है कि प्राकृतिक ऐश्वर्य और विविधता मानव जाति पर ईश्वर की कृपा है, अतः हमे इसकी रक्षा करनी चाहिये।
  • वर्तमान में पर्यावरण संरक्षण तथा भूमंडलीय उष्मन के नियंत्रण हेतु व्यापक प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन इसके माध्यम से पर्यावरणीय लक्ष्यों को प्राप्त करने की राह अभी भी काफी दूर है। अतः इन लक्ष्यों को जन सामान्य की भागीदारी के माध्यम से संभाव्य बनाया जा सकता है।
  • विश्व के सभी समुदायों में धर्म एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है और बड़ी संख्या में लोग धर्म में आस्था रखते हैं। इसलिये पर्यावरण संरक्षण में धर्म अहम भूमिका निभा सकता है और पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने में मदद मिल सकती है।
  • विभिन्न धर्मों में पर्यावरण संरक्षण हेतु अलग-अलग सुझाव दिये गए हैं जो कि इस प्रकार है-

हिंदू:

  • हिंदू धर्म में प्रकृति को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है तथा प्रकृति के विभिन्न रूपों को देवी देवताओं का रूप माना गया है। हिंदू धर्म के अनुसार, जीवन पाँच तत्त्वों- क्षिति (पृथ्वी), जल, पावक (अग्नि), गगन (आकाश), समीर (वायु) से मिलकर बना है।
  • हिंदू धर्म में पृथ्वी को देवी का रूप माना गया है। इसके अलावा इसके विभिन्न अवयव जैसे- पर्वत, नदी, जंगल, तालाब, वृक्ष, पशु-पक्षी आदि सभी को दैवीय कथाओं व पुराणों से जोड़कर देखा जाता है।
  • हिंदू ग्रंथ जैसे- भगवद्गीता में अनेक स्थानों पर कहा गया है कि ईश्वर सर्वव्यापी है तथा विभिन्न रूपों में सभी प्राणियों में विद्यमान है इसलिये व्यक्ति को सभी जीवों की रक्षा करनी चाहिये।
  • हिंदू धर्म में कर्म की प्रधानता पर बल दिया जाता है और यह विश्वास किया जाता है कि व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार ही फल प्राप्त होता है। इसके अलावा व्यक्ति के कर्मों का प्रभाव प्रकृति पर भी पड़ता है अतः मानव जाति को प्रकृति तथा उसके विभिन्न जीवों की रक्षा करना चाहिये।
  • हिंदू धर्म में पुनर्जन्म (Reincarnation) पर विश्वास किया जाता है। इसके अनुसार, मृत्यु के बाद कोई व्यक्ति पृथ्वी पर विद्यमान किस जीव के रूप में जन्म लेगा यह उसके कर्मों पर निर्भर करता है। इसलिये सभी जीवों के प्रति अहिंसा हिंदू धर्म का मुख्य सिद्धांत है।

इस्लाम:

  • इस्लाम के अनुसार, पृथ्वी का मालिक खुदा है तथा यहाँ इंसान की भूमिका खलीफा अर्थात् खुदा के न्यासी (Trustee of God) की है एवं इंसान का कार्य पृथ्वी और इसके विभिन्न अवयवों की रक्षा करना है।
  • इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरान के अनुसार, सृष्टि की रचना जल से हुई है तथा जल को व्यर्थ करना इस्राफ (पाप) है। इसके अलावा किसी भी प्राकृतिक संसाधन का व्यर्थ उपयोग करना इस्लाम में वर्जित माना गया है।
  • इसके अलावा इस्लाम में कुछ पर्यावरणीय संरक्षित क्षेत्र हैं जिसे ‘हरम’ कहते हैं, इन्हें इस्लाम में वर्जित माना गया है।
  • कुरान में 6,000 से अधिक आयते हैं जिनमें 500 से अधिक प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित है। इन घटनाओं में अधिकतर पृथ्वी, सूर्य, चंद्रमा, पौधे, जल आदि की चर्चा की गई है। इस्लाम में जल के सीमित उपयोग पर ज़ोर दिया जाता है।

इसाई:

  • इसाई धर्म का मत है कि सभी जीवों की रचना ईश्वर के प्रेम का रूप है तथा मानव को जैविक विविधता तथा ईश्वर के निर्माण को नष्ट करने का अधिकार नहीं है।
  • इस्लाम की भाँति ही इसाई धर्म के अनुसार भी मनुष्य को सृष्टि के अन्य जीवों की रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
  • इसके अलावा यह संसाधनों के सीमित उपयोग और उनके संरक्षण पर ज़ोर देता है।

बौद्ध:

  • बौद्ध धर्म पूर्णतः प्रेम, सद्भाव तथा अहिंसा पर आधारित है।
  • बौद्ध धर्म ‘प्रतीत्यसमुत्पाद’ पर आधारित है जिसे करण-कारण का सिद्धांत भी कहते हैं। इसके अनुसार, प्रत्येक कार्य का प्रभाव होता है। इसे हिंदू धर्म के कर्म के सिद्धांत के समान माना जा सकता है अर्थात् मानव के व्यवहार का प्रभाव उसके पर्यावरण पर पड़ता है।
  • बौद्ध धर्म साधारण जीवनशैली को बढ़ावा देता है, जो सतत-पोषणीय विकास के लिये आवश्यक है। यह संसाधनों के अतिदोहन को वर्जित करता है।
  • बौद्ध धर्म सभी प्राकृतिक जीवों की परस्पर निर्भरता में विश्वास करता है और इसमें सभी जीव-जंतु, वनस्पतियाँ, नदी, पर्वत, जंगल आदि शामिल हैं।

जैन:

  • जैन धर्म में अहिंसा को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है तथा किसी भी जीव-जंतु, वनस्पति आदि को नुकसान पहुँचाना वर्जित माना गया है।
  • जैन धर्म में पंचमहाव्रत है- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। जैन धर्म को मानने वाले जीवन के सभी आयामों में इन पंचमहाव्रतों का अनुपालन करते हैं।
  • अतः जैन धर्म के अनुयायियों के लिये प्रकृति व इसके सभी जीव जंतुओं को सामान माना गया है तथा इनका संरक्षण और इनके प्रति समान व्यवहार करना इस धर्म की मूल शिक्षा है।

सिक्ख:

  • सिक्ख धर्म के अनुसार, संसार में स्थित सभी वस्तुएँ ईश्वर की इच्छा के अनुरूप ही कार्य करती हैं तथा ईश्वर उनकी रक्षा करता है। सिक्ख धर्म की शिक्षा दिखावे के लिये किये गए व्यय का निषेध करती है।
  • सिक्ख धर्म के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के अनुसार, सभी जीव-जंतु, वृक्ष, नदी, पर्वत, समुद्र आदि को ईश्वर का रूप माना गया है।

यहूदी:

  • हिब्रू बाइबिल तोराह (Torah) में प्रकृति के संरक्षण के लिये अनेक नैतिक बाध्यताएँ दी गई हैं।
  • तोराह के अनुसार, “जब ईश्वर ने आदम को बनाया, उसने उसे स्वर्ग के बगीचे दिखाए और कहा मेरे कार्यों को देखो, कितना सुंदर है ये? मैंने जो भी बनाया है वह सब तुम्हारे लिये है। तुम्हें इसकी रक्षा करनी है और यदि तुमने इसे नष्ट किया तो तुम्हारे बाद इसे ठीक करने वाला कोई नहीं होगा।”
  • इस प्रकार यहूदी धर्म में भी पर्यावरण संरक्षण को विशेष महत्त्व दिया गया है।

पर्यावरण संरक्षण हेतु धार्मिक संस्थाओं द्वारा प्रयास:

  • ऊपर दिये गए बिंदुओं से यह पता चलता है कि विश्व के सभी धर्मों में पर्यावरण को संरक्षित करने की बात कही गई है। प्रकृति के संरक्षण के लिये विभिन्न धार्मिक समूहों द्वारा वैश्विक या स्थानीय स्तर पर कई प्रयास किये जा रहे हैं। पाकिस्तान में स्थित कब्रगाहों में प्राचीन वृक्षों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं क्योंकि इनको काटना गुनाह माना जाता है, लेबनान के मैरोनाईट (Maronite) चर्च ने हरीसा (Harisa) के जंगलों को पिछले 1,000 वर्षों से संरक्षित रखा है, थाईलैंड के बौद्ध भिक्षुओं ने संकटग्रस्त जंगलों की रक्षा हेतु वहाँ छोटे-छोटे विहारों (Monastries) की स्थापना की है तथा उसे को पवित्र जंगल घोषित किया गया है।
  • इसके अलावा जर्मनी के 300 चर्चों ने स्थानीय समुदायों के सहयोग से सौर ऊर्जा प्रणाली अपनाई है तथा वृहत स्तर पर इसका लगातार प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। अमेरिका में रहने वाले अफ्रीकी मूल के लोगों द्वारा क्वान्ज़ा (Kwanzaa) त्यौहार प्रकृति संरक्षण का एक उपयुक्त उदाहरण है।
  • वर्ष 1986 में इटली के शहर असीसी में विश्व वन्यजीव कोष (World Wildlife Fund- WWF) द्वारा ‘असीसी घोषणा’ (Assisi Declarations) का आयोजन किया गया। इसमें विश्व के पाँच प्रमुख धर्मों (इसाई, हिंदू, इस्लाम, बौद्ध तथा यहूदी) के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया था ताकि वे इस मुद्दे पर सुझाव प्रस्तुत कर सकें कि उनके धर्मों में प्रकृति संरक्षण हेतु क्या प्रावधान है तथा किस प्रकार वे योगदान कर सकते हैं?
  • वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण हेतु विभिन्न धर्मों के सहयोग से अलायंस ऑफ रिलिजन एंड कंसर्वेशन (Alliance of Religions and Conservation- ARC) नामक संगठन की स्थापना वर्ष 1995 में की गई थी।
  • WWF तथा ARC के सहयोग से ‘लिविंग प्लैनेट कैंपेन’ (Living Planet Campaign) नामक एक मुहिम शुरू की गई। इसके तहत विश्व के प्रमुख धर्मों ने पर्यावरण संरक्षण हेतु कार्य करने की प्रतिबद्धता प्रदर्शित की तथा उनकी इस प्रतिबद्धता को ‘जीवंत पृथ्वी के लिये पवित्र उपहार’ (Sacred Gifts for a Living Planet) का नाम दिया गया।
  • इस अभियान के तहत वकालत, शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि, संपत्ति, जीवनशैली तथा मीडिया के क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहित करना शामिल है।
  • इस प्रतिबद्धता के तहत जैन धर्म ने अंतर्राष्ट्रीय जैन व्यापार पुरस्कार (International Jain Business Award) प्रारंभ किया है। इसके तहत उन कंपनियों को पुरुस्कृत किया जाता है जिन्होंने पर्यावरणीय प्रभावों को कम करते हुए प्रगति की है। इसी प्रकार स्वीडन के लूथरन चर्च (Lutheran Church) के सहयोग से स्वीडन में नेशनल फॉरेस्ट स्टेवर्डशिप काउंसिल (National Forest Stewardship Council) की स्थापना की गई।
  • इसी तरह विभिन्न स्तर पर सभी धर्मों के सहयोग से पर्यावरण संरक्षण के लिये अनेक कार्य किये जा रहे हैं।
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