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डेली न्यूज़

  • 29 Feb, 2020
  • 44 min read
कृषि

बाज़ार बुद्धिमत्ता और पूर्व चेतावनी प्रणाली

प्रीलिम्स के लिये:

MIEWS, ऑपरेशन ग्रीन्स

मेन्स के लिये:

किसानों की आय दोगुनी करने से संबंधित मुद्दे, कृषि क्षेत्र से संबंधित मुद्दे, ऑपरेशन ग्रीन का कृषि क्षेत्र में योगदान

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय खाद्य प्रंसस्करण उद्योग मंत्री ने हाल ही में बाज़ार बुद्धिमत्ता और पूर्व चेतावनी प्रणाली (Market Intelligence and Early Warning System- MIEWS) पोर्टल की शुरुआत की।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • यह पोर्टल केंद्रीय खाद्य प्रंसस्करण उद्योग मंत्रालय (Ministry of Food Processing Industry-MoFPI) की पहल है।
  • टमाटर, प्याज़ और आलू (Tomato,Onion,Poteto- TOP) के मूल्यों की वास्तविक निगरानी करने और साथ ही ऑपरेशन ग्रीन्स (Operation Greens) योजना की शर्तों के तहत हस्तक्षेप करने संबंधी चेतावनी जारी करने के लिये MIEWS डैशबोर्ड और पोर्टल अपने तरह का पहला प्लेटफॉर्म है।
  • यह पोर्टल TOP फसलों से संबंधित प्रासंगिक जानकारी जैसे- मूल्य और आगमन, क्षेत्र, उपज एवं उत्पादन, आयात और निर्यात, फसल कैलेंडर, फसल कृषि विज्ञान आदि के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी का दृश्य फ़ॉर्मेट (Visual Format) में प्रसार करेगा।

MIEWS पोर्टल के कार्य

यह प्रणाली किसानों को परामर्श देने के लिये तैयार की गई है ताकि आधिक्य की स्थिति में पूर्व चेतावनी मिलने के साथ-साथ चक्रीय उत्पादन से बचा जा सके।

  • बाज़ार हस्तक्षेप के लिये आपूर्ति स्थिति की निगरानी करना।
  • आधिक्य की स्थिति में त्वरित प्रक्रिया द्वारा सहायता करना ताकि जल्द-से-जल्द आधिक्य वाले क्षेत्रों से उत्पादों को उन क्षेत्रों तक ले जाया जा सके जहाँ इनकी कमी है।
  • निर्यात/आयात से संबंधित निर्णय लेने के लिये जानकारी प्रदान करना।

MIEWS पोर्टल की विशेषताएँ

  • यह एक ऐसा डैशबोर्ड है जो कम कीमत और अधिक कीमत की चेतावनी का संकेत देने के साथ-साथ आने वाले तीन महीनों के लिये मूल्यों की जानकारी देगा।
  • इस पोर्टल में देश में TOP फसलों के मूल्य और फसलों के आगमन से संबंधित जानकारियाँ उपलब्ध हैं, साथ ही इसमें चार्ट के माध्यम से पिछले मौसम से तुलना और परस्पर प्रभाव का आकलन किया जाता है।
  • यह पोर्टल TOP फसलों के क्षेत्र, उपज और उत्पादन से संबंधित जानकारियाँ भी उपलब्ध कराता है।
  • इस पोर्टल के माध्यम से TOP फसलों की बाज़ार स्थिति के बारे में नियमित और विशेष रिपोर्ट प्रदान की जाएगी।

इस पोर्टल में सार्वजनिक और निजी दो वर्ग होंगे जिनके मध्य उपरोक्त विशेषता को विभाजित किया जाएगा। मूल्य एवं आगमन, उपज और उत्पादन, फसल कृषि वैज्ञानिक तथा व्यापार संबंधी रूपरेखा जैसे वर्ग तक लोगों की आसान पहुँच होगी किंतु नियमित एवं विशेष बाज़ार बुद्धिमत्ता रिपोर्ट और मूल्यों की भविष्यवाणी तक केवल नीति निर्धारकों की पहुँच होगी।

ऑपरेशन ग्रीन्स योजना

(Operation Green Scheme)

  • 2018-19 के बजट में ‘ऑपरेशन फ्लड’ की तर्ज़ पर किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producer Organizations- FPOs), कृषि-रसद, प्रसंस्करण सुविधाओं और पेशेवर प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये 500 करोड़ रुपए के व्यय के साथ एक नई योजना ‘ऑपरेशन ग्रीन्स’ की घोषणा की गई थी।
  • ऑपरेशन ग्रीन्स योजना की शुरुआत देश भर में पूरे वर्ष मूल्‍यों में बिना उतार-चढ़ाव के टमाटर, प्‍याज़ और आलू की आपूर्ति व उपलब्‍धता सुनिश्चित करने के उद्देश्‍य से की गई थी।

उद्देश्य:

  • TOP (Tomato,Onion,Poteto) उत्पादन समूहों और उनके FPO को मज़बूत कर तथा उन्हें बाजार से जोड़कर TOP किसानों की आय को बढ़ाना।
  • TOP समूहों में उचित उत्पादन योजना और दोहरे उपयोग जैसी किस्मों की शुरुआत द्वारा उत्पादकों और उपभोक्ताओं के लिये मूल्य स्थिरीकरण सुनिश्चित करना।
  • फार्म गेट इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण, उपयुक्त कृषि-लॉजिस्टिक्स के विकास और उपभोग केंद्रों को जोड़ने वाली उचित भंडारण क्षमता को विकसित कर कटाई के बाद फसल के नुकसान में कमी करना।
  • उत्पादन समूहों का फर्म के साथ संपर्क बढ़ाने के साथ खाद्य प्रसंस्करण क्षमताओं में वृद्धि और टमाटर,आलू और प्याज़ (TOP) की मूल्य शृंखला में मूल्यवर्धन करना।
  • TOP फसलों की मांग एवं आपूर्ति तथा कीमतों का रियल टाइम डेटा एकत्र करने और तुलना करने के लिये एक बाज़ार बुद्धिमत्ता नेटवर्क की स्थापना करना।

पोर्टल से संभावित लाभ

  • इस पोर्टल की सहायता से ऑपरेशन ग्रीन्स के उद्देश्यों को पूरा किया जा सकता है, साथ ही रियल टाइम डेटा के आधार पर बेहतर नीति निर्माण में सहायता प्राप्त होगी।
  • इससे सरकार को किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्य को पूरा करने में सहायता मिलेगी, साथ ही बेहतर आपूर्ति व्यवस्था के माध्यम से TOP फसलों के नुकसान को काम किया जा सकेगा।

आगे की राह

  • चूँकि कृषि का देश की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान है, इसलिये आवश्यक है कि कृषि को बेहतर बनाए जाने के लिये निरंतर प्रयास किया जाए।
  • किसानों को कृषि की उन्नत एवं वैज्ञानिक तकनीकों और तरीकों से अवगत कराने का प्रयास किया जाना चाहिये जिससे कि कृषि में नुकसान को काम किया जा सके।

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

इनसाइट लैंडर मिशन

प्रीलिम्स के लिये:

इनसाइट लैंडर मिशन, नासा का डिस्कवरी प्रोग्राम

मेन्स के लिये:

मंगल ग्रह को लेकर नासा के मिशन और उनसे संबंधित प्रमुख मुद्दे

चर्चा में क्यों?

नासा के इनसाइट लैंडर मिशन (InSight Lander Mission) को मंगल ग्रह की सतह पर एक वर्ष से भी अधिक समय बीत चुका है। इनसाइट लैंडर द्वारा मंगल ग्रह के संदर्भ में प्रदान की गई सूचनाओं को लेकर नासा ने 6 पत्रों का एक संग्रह प्रकाशित किया है।

इनसाइट लैंडर मिशन

  • इनसाइट का पूरा नाम ‘इंटीरियर एक्सप्लोरेशन यूजिंग सिस्मिक इन्वेस्टिगेशंस जियोडेसी एंड हीट ट्रांसपोर्ट’ (Interior Exploration Using Seismic Investigations, Geodesy and Heat Transport- InSight) है।
  • इनसाइट लैंडर मिशन मंगल ग्रह की सतह के नीचे विस्तृत अध्ययन के लिये समर्पित पहला मिशन है।
  • मंगल ग्रह के अध्ययन के लिये भेजा गया इनसाइट लैंडर 26 नवंबर, 2018 को मंगल ग्रह की सतह पर उतरा था।
  • इस मिशन के दौरान विस्तृत अध्ययन करने हेतु भूकंपमापी यंत्र (Seismometer), हवा के दबाव को मापने के लिये सेंसर, मैग्नेटोमीटर (Magnetometer) और ग्रह के तापमान का अध्ययन करने के लिये एक ताप प्रवाह यंत्र मौजूद है।
  • इनसाइट मिशन नासा के डिस्कवरी प्रोग्राम-1992 (Discovery Program-1992) का हिस्सा है।

इनसाइट लैंडर का अध्ययन

Insight

  • इनसाइट लैंडर द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, मंगल ग्रह पर उम्मीद से अधिक कंपन होती है, किंतु यह कंपन काफी हल्की होती है। यह निष्कर्ष अति-संवेदनशील भूकंपमापी यंत्र द्वारा किये गए अध्ययन से सामने आया है।
    • यह उपकरण वैज्ञानिकों को सैकड़ों से हज़ारों मील दूर तक कंपन की घटनाओं को ‘जानने’ में सक्षम बनाता है।
  • मंगल के पास पृथ्वी की तरह टेक्टोनिक प्लेट (Tectonic Plates) नहीं हैं, किंतु इसमें ज्वालामुखी सक्रिय क्षेत्र हैं जो कंपन का कारण हो सकते हैं।
  • भूकंपमापी यंत्र ने अब तक 450 से अधिक कंपन के संकेत प्राप्त किये हैं और वैज्ञानिकों के अनुसार, इनमें से अधिकांश भूकंप के संकेतक हैं। इसके अलावा कई संकेतक मंगल ग्रह के पर्यावरणीय कारकों जैसे- हवा से भी उत्पन्न हुए हैं।
  • अध्ययन के अनुसार, अरबों वर्ष पूर्व मंगल ग्रह पर एक चुंबकीय क्षेत्र मौजूद था, यद्यपि यह अब मौजूद नहीं है, किंतु इसके कारण ग्रह की सतह के नीचे कुछ चुंबकीय चट्टानें बची हुई हैं। इनसाइट के मैग्नेटोमीटर ने इन चुंबकीय चट्टानों के संकेतकों का पता लगाया है।
  • अब वैज्ञानिक इन सूचनाओं और पहले से ज्ञात तथ्यों का उपयोग कर मंगल ग्रह की सतह के नीचे मौजूद चुंबकीय परतों के बारे में जानकारी प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं।

ग्रह के कोर से संबंधित सूचना

  • इनसाइट लैंडर में दो रेडियो हैं जिसमें से पहला नियमित रूप से डेटा भेजने और प्राप्त करने का कार्य कर रहा है। इनसाइट लैंडर का दूसरे रेडियो, जो कि अधिक शक्तिशाली है, को ग्रह की घूर्णन गति और आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • यह रेडियो यह बताने में सक्षम है कि ग्रह का कोर ठोस है या तरल। ठोस कोर वाले ग्रह की घूर्णन गति में एक तरल कोर वाले ग्रह की तुलना में कम अनियमितताएँ होंगी।

आगे की राह

  • नासा ने कहा है कि मंगल ग्रह को लेकर इनसाइट लैंडर से प्राप्त अब तक की सूचना इस मंगल के विस्तृत अध्ययन को लेकर एक नए दौर की शुरुआत है।
  • ज्ञात हो कि मंगल ग्रह का एक वर्ष पृथ्वी के दो वर्षों के सामान होता है। नासा का मानना है कि मंगल ग्रह का एक पूरा वर्ष वैज्ञानिकों को ग्रह की गति और तापमान से संबंधित विभिन्न पहलुओं को जानने का अवसर प्रदान करेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

वैश्विक मीथेन उत्सर्जन

प्रीलिम्स के लिये:

मीथेन उत्सर्जन के स्रोत, मीथेन का जलवायु पर प्रभाव

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘पर्यावरण अनुसंधान संचार’ (Environmental Research Communication) पत्रिका में “वर्ष 2050 तक वैश्विक मीथेन उत्सर्जन के उपशमन में मानवीय तकनीकी क्षमता और लागत” शीर्षक से एक शोध प्रकाशित किया गया।

मुख्य बिंदु:

  • अध्ययन के अनुसार यदि मीथेन उत्सर्जन को नियंत्रित करने वाले उपाय नहीं अपनाए गए तो वैश्विक मीथेन उत्सर्जन वर्ष 2050 तक वर्तमान स्तर से 30% अधिक हो जाएगा। वर्ष 2010 के बाद से मीथेन उत्सर्जन में बहुत तेज वृद्धि दर्ज की गई जिससे वर्ष 2050 वैश्विक तापमान को औद्योगिक क्रांति के स्तर के 1.5°C की वृद्धि से नीचे रखना असंभव हो जाएगा।
  • उपलब्ध शमन प्रौद्योगिकी को अपनाकर कुल मीथेन उत्सर्जन का 38% तक कम किया जा सकता है लेकिन फिर भी वर्ष 2020-2050 की अवधि में इसका उत्सर्जन जारी रहेगा।

उत्सर्जन वृद्धि के कारण:

  • उत्तरी अमेरिका में शेल गैस उत्पादन
  • इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया में कोयला खनन
  • एशिया और अफ्रीका में बढ़ती जनसंख्या तथा आर्थिक विकास से अपशिष्ट एवं अपशिष्ट जल की वृद्धि का होना

शमन का प्रयास (Mitigation Efforts):

  • शोध के अनुसार, भविष्य में वैश्विक उत्सर्जन के 30-50% उत्सर्जन को 50 यूरो प्रति टन CO2 से कम लागत में हटाया जा सकता है। इसे तकनीकी भाषा में तकनीकी उपशमन क्षमता (Technical Abatement Potentials- TAP) के रूप में जाना जाता है।
  • तकनीकी उपशमन क्षमता पहल की कृषि में सीमित संभावना है अत: गैर-तकनीकी उपायों जैसे संस्थागत उपाय, सामाजिक-आर्थिक सुधार, व्यवहार में बदलाव (Behavioural Changes) का आह्वान आदि को प्रयुक्त किया जाना आवश्यक है, उदाहरण- डेयरी और माँस की खपत को व्यवहार में बदलाव द्वारा कम करना, अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में छोटे पशुपालकों में जोखिम प्रबंधन का प्रयोग।
  • विश्व के अलग-अलग क्षेत्रो में मीथेन उज्सर्जन के अलग-अलग स्रोत है यथा- पश्चिम एशिया तथा अफ्रीका में तेल उत्पादन, यूरोप एवं लैटिन अमेरिका में डेयरी और गोमाँस उत्पादन, उत्तरी अमेरिका में शेल गैस निष्कर्षण। अत: किसी एक उपाय से समस्या का समाधान संभव नहीं है क्योंकि एक उपाय सभी पर लागू नहीं होता है (No One-size Fits all Solution)। अत: शमन रणनीतियों को सेक्टर-विशिष्ट दृष्टिकोण से तैयार किया जाना चाहिये।

मीथेन एक ग्रीनहाउस गैस:

Global-Greenhouse-Gas

मीथेन उत्सर्जन के मुख्य स्रोत:

  • वैश्विक रूप से कुल CH4 उत्सर्जन का 50-65% मानव गतिविधियों से होता है जो ऊर्जा, उद्योग, कृषि और अपशिष्ट प्रबंधन गतिविधियों से मुख्यत: उत्सर्जित होती है।

ऊर्जा और उद्योग:

  • प्राकृतिक गैस और पेट्रोलियम मीथेन गैस का प्राथमिक घटक है। मीथेन, प्राकृतिक गैस और पेट्रोलियम के उत्पादन, प्रसंस्करण, भंडारण, संचरण और वितरण के दौरान वायुमंडल में उत्सर्जित होती है। इसके अलावा कोयला खनन भी CH4 उत्सर्जन का एक स्रोत है।

कृषि:

  • मवेशी, सूअर, भेड़, बकरी जैसे घरेलू पशुधन अपनी सामान्य पाचन प्रक्रिया के दौरान भी मीथेन का उत्सर्जन होता है।
  • जब जानवरों की खाद को लैगून या भंडारण टैंक में संग्रहित किया जाता है तब भी मीथेन का उत्सर्जन होता है।

घर तथा औद्योगिक अपशिष्ट:

  • लैंडफिल में अपशिष्ट अपघटन और अपशिष्ट जल के उपचार से भी मीथेन गैस उत्सर्जित होती है।

अन्य स्रोत:

  • प्राकृतिक आर्द्रभूमि (Wetlands), ऑक्सीजन से अनुपस्थिति में कार्बनिक पदार्थों को विघटित करने वाले जीवाणु, दीमक, महासागर, तलछट जमाव, ज्वालामुखी, वनाग्नि आदि प्राकृतिक स्रोतों से भी मीथेन का उत्सर्जन होता है।

मीथेन उत्सर्जन में कमी:

उत्सर्जन स्रोत

कैसे उत्सर्जन कम किया जा सकता है?

उद्योग

  • तेल और गैस के उत्पादन, भंडारण और परिवहन के लिये उपयोग किए जाने वाले उपकरणों का उन्नयन करके।
  • कोयला खदानों से उत्सर्जित मीथेन को भी ऊर्जा के लिए उपयोग किया जा सकता है।

कृषि

  • बेहतर खाद प्रबंधन प्रथाओं और खाद प्रबंधन रणनीतियों अपनाया जाए।

घर व औद्योगिक अपशिष्ट

  • लैंडफिल से मीथेन को कैप्चर और स्टोरेज (Capture & Storage) करना एक प्रभावी रणनीति है।

स्रोत: द हिंदू


कृषि

11वाँ राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र सम्मेलन

प्रीलिम्स के लिये:

11वाँ राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र सम्मेलन

मेन्स के लिये:

11वें राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र सम्मेलन के तहत किसानों के लिये कल्याणकारी प्रावधान

चर्चा में क्यों?

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा 28 फरवरी 2020 से 1 मार्च 2020 तक नई दिल्ली में राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र सम्मेलन (National Krishi Vigyan Kendra Conference) के 11वें संस्करण का आयोजन किया जा रहा है।

मुख्य बिंदु:

  • केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण, ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री ने 11वें राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र सम्मेलन का उद्घाटन किया।
  • इस सम्मेलन का विषय ‘प्रौद्योगिकी आधारित कृषि के लिये युवाओं को सशक्त करना’ (Empowering Youth for Technology Led Farming) है।

सम्मेलन के बारे में:

  • कृषि विज्ञान केंद्रों का तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी आधारित कृषि और युवा उद्यमिता पर आधारित होगा जिसमें पूरे भारत के सभी कृषि विज्ञान केंद्र शामिल होंगे।
  • केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, कृषि विज्ञान केंद्र प्रयोगशालाओं और खेतों के बीच एक कड़ी की भूमिका निभाते हैं।
  • वर्ष 1974 में पुद्दुचेरी में पहले कृषि विज्ञान केंद्र के निर्माण के बाद अब पूरे देश में 717 कृषि विज्ञान केंद्र काम कर रहे हैं।

अन्य तथ्य:

  • केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, किसानों को उनके उत्‍पाद का बेहतर मूल्‍य प्रदान करने के लिये ई-नाम पोर्टल का सृजन किया गया है।
  • ई-नाम पोर्टल पर पहले ही 585 मंडियाँ शामिल की जा चुकी हैं और नियत समय में 415 अन्‍य मंडियों को भी शामिल किया जाएगा। ई-नाम पोर्टल पर 91 हज़ार करोड़ रुपए का ई-व्‍यापार (ई-ट्रेड) हो चुका है।

ई-नाम

(e-National Agriculture Market: eNAM):

  • ई-राष्ट्रीय कृषि बाज़ार एक पैन इंडिया ई-व्यापार प्लेटफॉर्म है। कृषि उत्पादों के लिये एक एकीकृत राष्ट्रीय बाज़ार का सृजन करने के उद्देश्य से इसका निर्माण किया गया है।
  • इसके तहत किसान नज़दीकी बाज़ार से अपने उत्पाद की ऑनलाइन बिक्री कर सकते हैं तथा व्यापारी कहीं से भी उनके उत्पाद का मूल्य चुका सकते हैं।
  • इसके परिणामस्वरूप व्यापारियों की संख्या में वृद्धि होगी जिससे प्रतिस्पर्द्धा में भी बढ़ोतरी होगी।
  • इसके माध्यम से मूल्यों का निर्धारण भलीभाँति किया जा सकता है तथा किसानों को अपने उत्पाद का उचित मूल्य प्राप्त होता है।

कृषि विज्ञान केंद्र तथा उनकी भूमिका:

  • KVK राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली का एक अभिन्न हिस्सा है।
  • KVK योजना को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि शोध एवं शिक्षा विभाग के तहत शत-प्रतिशत केंद्रीय वितपोषण के ज़रिये संचालित किया जा रहा है।
  • KVK की गतिविधियों में प्रौद्योगिकियों का खेतों में परीक्षण एवं प्रदर्शन करना, किसानों एवं कृषिकर्मियों की क्षमता का विकास करना, कृषि प्रौद्योगिकियों का ज्ञान एवं अनुसंधान केंद्र के रूप में कार्य करना और किसानों के हित वाले विभिन्‍न विषयों पर ICT तथा अन्‍य मीडिया साधनों का उपयोग कर कृषि परामर्श जारी करना शामिल है।
  • इसके अलावा KVK प्रौद्योगिकी आधारित गुणवत्तापूर्ण कृषि उत्‍पाद (बीज, रोपण सामग्री, बॉयो–एजेंट, पशुधन) मुहैया करने में सहायता करते हैं एवं इन्‍हें किसानों को उपलब्‍ध कराके जागरूकता बढ़ाने वाली विभिन्न गतिविधियों का आयोजन करते हैं, चयनित कृषि नवाचारों की पहचान करने के साथ-साथ उनका प्रलेखन करते हैं और पहले से ही जारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों के साथ सामंजस्‍य सुनिश्चित करते हैं।

सुझाव:

  • KVK को मज़बूत करने के लिये किसानों को बेहतर बीज, फसलों के लिये सिंचाई और खाद, फसल कटाई के लिये मशीनें और उत्पादों का सर्वोत्तम मूल्य देने वाला एक बाज़ार उपलब्ध कराने पर बल देना होगा।
  • प्रत्येक कृषि विज्ञान केंद्र में किसानों का डेटाबेस अपडेट करना होगा।
  • KVK को किसानों की विभिन्न ज़रूरतों को पूरा करने के लिये एकल खिड़की सेवा प्रदान करनी चाहिये।

आगे की राह:

आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न उत्पादन के तीन प्रमुख कारक हैं- पहला किसानों की मेहनत, दूसरा कृषि वैज्ञानिकों, प्रयोगशालाओं एवं विश्वविद्यालयों की भूमिका और तीसरा केंद्र एवं राज्य सरकारों की किसान कल्याण नीतियाँ, योजनाएँ और प्रोत्साहन। हमें एक ऐसी आदर्श स्थिति बनानी होगी, जिससे कृषि क्षेत्र को आकर्षक बनाया जा सके। किसानों को अपने उत्तराधिकारियों को न केवल जमीन के टुकड़े, बल्कि एक पेशे के रूप में कृषि विरासत भी सौंपनी होगी।

स्रोत: पी.आई.बी.


कृषि

प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना

प्रीलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना, ऑपरेशन ग्रीन्स

मेन्स के लिये:

कृषि प्रसंस्करण संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (Ministry of Food Processing Industries- MoFPI) की अध्यक्षता में गठित अंतर-मंत्रालयी अनुमोदन समिति (Inter-Ministerial Approval Committee- IMAC) द्वारा ‘प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना’ (Pradhan Mantri Kisan Sampada Yojana- PMKSY) के तहत 32 नवीन परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई।

मुख्य बिंदु:

  • इन परियोजनाओं के तहत 17 राज्यों में लगभग 406 करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा।

परियोजनाओं का उद्देश्य:

  • परियोजनाओं के तहत 15 हज़ार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गारों के सृजन, ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसरों में वृद्धि, कृषि उपज की शेल्फ-लाइफ (Shelf-Life) में वृद्धि के लिये आधुनिक प्रसंस्करण तकनीकों की शुरुआत, किसानों की आय में स्थिरता आदि की परिकल्पना की गई है।

खाद्यान प्रसंस्करण का महत्त्व:

  • भारतीय किसानों को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों के उपभोक्ताओं से जोड़ने में खाद्य प्रसंस्करण की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग

(Food Processing Industries):

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का तात्पर्य ऐसी गतिविधियों से है जिसमें प्राथमिक कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण कर उनका मूल्यवर्द्धन किया जाता है। उदाहरण के लिये डेयरी उत्पाद, दूध, फल तथा सब्जियों का प्रसंस्करण, पैकेट बंद भोजन तथा पेय पदार्थ खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के अंतर्गत आते हैं।

  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग किसानों, सरकार एवं बेरोज़गार युवाओं के बीच कड़ी का कार्य कर भारतीय अर्थव्यवस्था को मज़बूती प्रदान कर सकता है।
  • चीन के बाद भारत खाद्य पदार्थों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है, साथ ही विशाल जनसंख्या तथा बढ़ती आर्थिक समृद्धि के कारण भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिये बड़ा बाज़ार उपलब्ध है।
  • सस्ते श्रम बल की उपस्थिति के कारण भी भारत में खाद्य प्रसंस्करण अपेक्षाकृत कम लागत पर किया जा सकता है। इससे वैश्विक व्यापार में भारत को लाभ प्राप्त हो सकता है।

उद्योग के समक्ष चुनौतियाँ:

  • भारत में बुनियादी अवसंरचनाओं का अभाव है। भारत में न तो राष्ट्रीय राजमार्गों और न ही डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर की स्थिति इतनी अधिक सशक्त है कि देश के प्रत्येक हिस्से में मौजूद किसान को स्टोर मालिकों से संबद्ध किया जा सके।
  • वर्तमान में यह उद्योग विभिन्न राज्य स्तरीय एवं केंद्रीय कानूनों से शासित होता है, जिससे उद्योग संबंधी कानूनों में स्पष्टता का अभाव है।
  • भारत में खाद्य पदार्थों की जाँच हेतु आधुनिक तकनीक से युक्त प्रयोगशालाओं तथा जाँच मानकों में एकरूपता का अभाव है।
  • खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास की कमी है, जिसके कारण इस उद्योग में न तो नवाचार हो पाता है और न ही जागरूकता का वातावरण तैयार हो पाता है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • खाद्य उत्पादों के विनिर्माण में स्वचालित मार्ग के माध्यम से 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश।
  • खाद्य प्रसंस्करण परियोजनाओं / इकाइयों को सस्ता ऋण प्रदान करने के लिये ‘राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक’ (National Bank for Agriculture and Rural Development- NABARD) ने 2000 करोड़ रुपए का एक विशेष कोष बनाया गया है।
  • खाद्य और कृषि आधारित प्रसंस्करण इकाइयाँ और कोल्ड चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर को ‘प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों के ऋण’ (Priority Sector Lending-PSL) के लिये कृषि गतिविधि के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • नई खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के लाभ पर आयकर में 100% छूट जैसे राजकोषीय उपाय।
  • 500 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ टमाटर, प्याज़ और आलू (Tomato, Onion and Potato- TOP) की फसलों की मूल्य शृंखला के एकीकृत विकास के लिये केंद्रीय क्षेत्र योजना "ऑपरेशन ग्रीन्स" का प्रारंभ।

PMKSY

योजना का उद्देश्य:

  • इस योजना का मुख्य उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण एवं संरक्षण क्षमताओं का निर्माण, मूल्य संवर्द्धन, खाद्यान अपव्यय में कमी के लिये प्रसंस्करण के स्तर को बढ़ाना तथा मौजूदा खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों का आधुनिकीकरण एवं विस्तार करना है।
  • व्यक्तिगत प्रसंस्करण इकाइयों की गतिविधियों में फसल कटाई के बाद की विभिन्न प्रक्रियाओं (Post-harvest Processes) यथा- मूल्य संवर्द्धन, उत्पाद की शेल्फ लाइफ बढ़ाने जैसी सुविधाएँ, संरक्षण कार्य आदि शामिल हैं।

योजना के प्रावधान:

  • PMKSY योजना को MoFPI मंत्रालय लागू कर रहा है जिसके कार्यान्वयन की अवधि वर्ष 2016-20 है तथा कुल परिव्यय राशि 6,000 करोड़ रुपए है।
  • इस योजना की सात घटक योजनाएँ हैं-
    1. मेगा फूड पार्क
    2. एकीकृत कोल्ड चेन और मूल्य संवर्द्धन अवसंरचना
    3. कृषि-प्रसंस्करण समूहों ( Agro-Processing Clusters) के लिये बुनियादी ढाँचा
    4. बैकवर्ड और फॉरवर्ड लिंकेज का निर्माण
    5. खाद्य प्रसंस्करण और संरक्षण क्षमता का निर्माण / विस्तार
    6. खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता आश्वासन अवसंरचना
    7. मानव संसाधन और संस्थान

कृषि प्रसंस्करण क्लस्टर

(Agro Processing Cluster):

  • यह किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producer Organizations- FPOs) को आधुनिक बुनियादी अवसंरचना युक्त आपूर्ति शृंखला के माध्यम से बाज़ारों से जोड़ता है।
  • क्लस्टर आधारित प्रणाली से लागत में कमी आती है तथा लाभ बढ़ जाता है, क्योंकि क्लस्टर में विभिन्न इकाइयाँ आपस में जुड़कर परिवहन लागत, श्रम लागत तथा समय की बचत करते हैं।

उद्योग में संभावना:

  • भारत में मूल्यवर्द्धन की अपार क्षमता एवं संभावनाओं के कारण खाद्य प्रसंस्करण उद्योग उच्च विकास और उच्च लाभ के क्षेत्र के रूप में उभरा है। पिछले पाँच वर्षों में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में चक्रीय वार्षिक वृद्धि दर (Compound Annual Growth Rate- CAGR) लगभग 8% रही है।
  • खाद्यान प्रसंस्करण बाज़ार 14.6% के CAGR के साथ वर्ष 2016 के 322 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2020 में 543 बिलियन डॉलर होने की संभावना है।

खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकास से बड़े-बड़े निवेशक इस क्षेत्र में शामिल होंगे और संविदा पर आधारित खेती का विकास होगा, जिससे भारत में कृषि संबंधी समस्याओं का समाधान संभव होगा।

स्रोत: PIB


भारतीय अर्थव्यवस्था

भूमि संघर्ष और उसका प्रभाव

प्रीलिम्स के लिये:

लैंड कंफ्लिक्ट वॉच

मेन्स के लिये:

भूमि संघर्ष से संबंधित मुद्दे, भूमि अधिग्रहण से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

28 फरवरी, 2020 को लैंड कंफ्लिक्ट वॉच (Land Conflict Watch- LCW) नामक अनुसंधान संस्थान द्वारा जारी एक रिपोर्ट में भूमि संघर्ष एवं उसका विभिन्न क्षेत्रों पर प्रभाव को प्रकाशित किया गया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु:

  • यह रिपोर्ट तीन वर्ष में किये गए शोध पर आधारित है जिसमें भूमि संघर्ष के क्षेत्रों एवं उससे प्रभावित लोगों की गणना की गई है।
  • रिपोर्ट में भूमि के संघर्ष को 6 व्यापक क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है जिसमें बुनियादी ढाँचा, बिजली, संरक्षण और वानिकी, भूमि उपयोग, खनन तथा उद्योग शामिल हैं।
  • पूरे भारत में भूमि संघर्ष से लगभग 6.5 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित हैं।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के कारण भूमि संघर्ष से सबसे अधिक क्षेत्र प्रभावित है। ध्यातव्य है कि बुनियादी ढांचे पर भूमि संघर्ष से 15,62,362.59 हेक्टेयर भूमि प्रभावित है जो लगभग नगालैंड के आकार के बराबर है।
    • बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के अंतर्गत रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स में संघर्ष के सबसे अधिक 68 मामले सामने आए हैं।
    • इसके बाद बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के अंतर्गत सड़क परियोजनाओं (63), बागानों (51) और संरक्षित क्षेत्रों (44) में भूमि संघर्ष से संबंधित मामले सामने आए हैं तथा रेलवे परियोजनाओं (22) तथा पर्यटन क्षेत्र (19) में सबसे कम संघर्ष संबंधी मामले हैं।
  • बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के बाद सबसे ज़्यादा भूमि संघर्ष के मामले खनन क्षेत्र से संबंधित हैं।
  • कुल प्रलेखित भूमि संघर्ष के मामलों में से सबसे अधिक 43% या 300 मामले बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के तहत थे।
  • दूसरी सबसे अधिक संख्या 15% या 105 मामले संरक्षण और वानिकी परियोजनाओं से संबंधित थे।

Land Conflict

  • खनन क्षेत्र में भूमि संघर्ष से प्रभावित लोगों की संख्या बुनियादी ढाँचा क्षेत्र की अपेक्षा अधिक है, ध्यातव्य है कि खनन क्षेत्र में भूमि संघर्ष से प्रभावित लोगों की संख्या लगभग 21,312 है तथा बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में भूमि संघर्ष से प्रभावित लोगों की संख्या लगभग 12,354 है।
  • अध्ययन के अनुसार सभी प्रकार के भूमि संघर्ष में प्रत्येक से औसतन 10,688 लोग प्रभावित होते हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भूमि संघर्ष को ऐसे किसी भी उदाहरण के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें दो या दो से अधिक पार्टियाँ भूमि और उससे जुड़े संसाधनों पर पहुँच या नियंत्रण का प्रयास करती हैं।
  • गौरतलब है कि ये टकराव भारत के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में व्याप्त हैं।

भूमि संघर्ष के कारण

  • भूमि कानूनों में व्याप्त अनियमितताएँ विभिन्न क्षेत्रों के संदर्भ में भूमि संघर्ष का सबसे बड़ा कारण है।
  • इसके अतिरिक्त लोगों की बढती महत्त्वाकांक्षाएँ भी भूमि संघर्ष के कारणों में से एक हैं।
  • भूमि अधिग्रहण संबंधी डेटा का अभाव एवं भूमि संबंधी विवरण में अनियमितताएँ भी भूमि संघर्ष को बढ़ावा देती हैं।
  • भूमि संबंधी मामलों में नियमों एवं विनियमों का लचीला होना।

भूमि संघर्ष के प्रभाव

  • भूमि संघर्ष के कारण विभिन्न प्रकार की परियोजनाएँ लंबित रह जाती हैं जिससे परियोजनाओं की लागत बढ़ जाती है और देश को आर्थिक नुकसान होता है।
  • भूमि अधिग्रहण संबंधी समस्याएँ निवेशकों को भारत में निवेश करने से हतोत्साहित करती हैं फलस्वरूप देश का विकास बाधित होता है।

भूमि संघर्ष को कम करने के उपाय

  • भूमि कानूनों में व्याप्त अनियमितताओं को दूर किया जाना चाहिये तथा पुराने कानून जो विनियमन में बाधा डालते हैं उन्हें समाप्त किया जाना चाहिये।
  • भूमि अधिग्रहण संबंधी डेटा का डिजिटलीकरण किया जाना चाहिये जिससे कि लोगों को आसानी से भूमि से संबंधित जानकारियाँ एवं विवरण प्राप्त हो सकें।
  • इसके अतिरिक्त भूमि संबंधी नियमों एवं विनियमों को सख्त किये जाने की आवश्यकता है साथ ही इन नियमों के उल्लंघन पर कठोर दंड का प्रावधान किया जाना चाहिये।

आगे की राह

  • ओडिशा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों द्वारा भूमि संबंधी डेटा को डिजिटल माध्यम में उपलब्ध कराया जा रहा है। अतः इसी प्रकार अन्य क्षेत्रों में भी भूमि संबंधित डेटा का डिजिटलीकरण किया जाना चाहिये।
  • साथ ही, मौजूदा सभी भूमि अभिलेखों को यह सुनिश्चित करने हेतु अद्यतन किया जाना चाहिये कि वे किसी भी प्रकार के भार से मुक्त हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 29 फरवरी, 2020

पूर्वी आंचलिक परिषद की 24वीं बैठक

पूर्वी आंचलिक परिषद की 24वीं बैठक भुवनेश्वर में 28 फरवरी, 2020 को आयोजित की गई। पूर्वी आंचलिक परिषद में बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल राज्य शामिल होते हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह इस बैठक के अध्यक्ष और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक इसके उपाध्यक्ष थे। परिषद की बैठक के दौरान लगभग 4 दर्जन 40 से अधिक मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया, जिनमें परस्पर अंतर-राज्य जल मुद्दे, कोयले की खानों और उनके परिचालन पर रॉयल्टी, रेल परियोजनाओं की भूमि एवं वन मंज़ूरी, जघन्य अपराधों की जाँच और देश की सीमाओं के रास्ते मवेशियों की तस्करी आदि प्रमुख हैं। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के तहत वर्ष 1957 में पाँच आंचलिक परिषदों की स्थापना की गई थी।

एस. एन. श्रीवास्तव

दिल्ली के स्पेशल कमिश्नर (लॉ एंड ऑर्डर) एस. एन. श्रीवास्तव को राजधानी का नया पुलिस कमिश्नर नियुक्त किया गया है। ध्यातव्य है कि दिल्ली के मौजूदा पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक 29 फरवरी, 2020 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। 1985 बैच के IPS अधिकारी एस. एन. श्रीवास्तव अभी तक CRPF (ट्रेनिंग) जम्मू-कश्मीर में तैनात थे। दिल्ली में हो रही हिंसा के बीच उन्हें दिल्ली का स्पेशल कमिश्नर (लॉ एंड ऑर्डर) बनाया गया था। इससे पूर्व एस. एन. श्रीवास्तव दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल में भी कार्य कर चुके हैं। स्पेशल सेल में रहते हुए उन्होंने दिल्ली में IPL मैच में फिक्सिंग का खुलासा किया था।

ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती यूनिवर्सिटी

उत्तर प्रदेश सरकार ने ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती यूनिवर्सिटी के नाम में बदलाव के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है। प्रस्ताव के अनुसार, ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती उर्दू अरबी-फारसी यूनिवर्सिटी का नया नाम ‘ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय’ किया जाएगा। इस संदर्भ में राज्य सरकार ने राज्य विश्वविद्यालय कानून-1973 में संशोधन कर दिया है। नाम परिवर्तन को लेकर सरकार का तर्क है कि ऐसा करने से छात्रों के लिये रोज़गार सृजन का विस्तार होगा। ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती उर्दू अरबी-फारसी यूनिवर्सिटी एक राज्य विश्वविद्यालय है जिसकी स्थापना वर्ष 2013 में की गई थी।

लीप वर्ष (Leap Year)

लीप वर्ष (अधिवर्ष) हर चार वर्ष बाद आने वाला वर्ष है जिसमें वर्ष में 366 दिन तथा फरवरी माह में 29 दिन होते हैं। दरअसल पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 365 दिन और करीब 6 घंटे लगते है। ऐसा होने से हर चार साल में एक दिन अधिक हो जाता है, अतः प्रत्येक चार साल बाद फरवरी माह में एक अतिरिक्त दिन को जोड़कर संतुलन बनाए रखने की कोशिश की जाती है। अगला लीप वर्ष 2024 में मनाया जाएगा।


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