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डेली न्यूज़

  • 27 Aug, 2022
  • 42 min read
इन्फोग्राफिक्स

जल जीवन मिशन (शहरी)

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शासन व्यवस्था

प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) विधेयक, 2022

प्रिलिम्स के लिये:

CCI,प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम 2002, राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT)।

मेन्स के लये:

बाज़ार की गतिशीलता में परिवर्तन के कारण प्रतिस्पर्द्धा आयोग का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 में संशोधन करने वाला विधेयक लोकसभा में पेश किया गया।

संशोधन की आवश्यकता:

  • नयी पीढ़ी का बाज़ार:
    • तकनीकी प्रगति, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और कीमत एवं अन्य कारकों के बढ़ते महत्त्व के कारण बाज़ार की गतिशीलता तेज़ी से बदली है, बाज़ार की प्रतिस्पर्द्धा को बनाए रखने और बढ़ावा देने के लिये ये संशोधन अपरिहार्य हो गए थे।
  • अधिग्रहण का मद्दा:
    • अधिनियम की धारा 5 के अनुसार विलय, अधिग्रहण या समामेलन में शामिल पक्षों को केवल परिसंपत्ति या कारोबार के आधार पर संयोजन की गतिविधि के विषय में भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग सूचित करने की आवश्यकता है।
  • गन जंपिंग:
    • ऐसी स्थिति में दो या दो से अधिक संयुक्त पक्ष अनुमोदन से पूर्व अधिसूचित लेन-देन बंद कर देते हैं अथवा आयोग के संज्ञान में लाए बगैर लेन-देन की प्रक्रिया का समापन करते हैं।
  •  हब-एंड-स्पोक कार्टेल:
    • हब-एंड-स्पोक व्यवस्था एक प्रकार का व्यापारिक गुट है जिसमें ऊर्ध्वाधर रूप से संबंधित हितधारक एक हब के रूप में कार्य करते हैं और आपूर्तिकर्त्ताओं या खुदरा विक्रेताओं पर क्षैतिज प्रतिबंध लगाते हैं।
      • वर्तमान में प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी समझौतों पर प्रतिबंध केवल समान व्यापार वाली संस्थाओं को शामिल करता है जो प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी गतिविधियों में संलग्न हैं।
      • यह वितरकों और आपूर्तिकर्त्ताओं द्वारा ऊर्ध्वाधर शृंखला के विभिन्न स्तरों पर संचालित हब-एंड-स्पोक कार्टेल की उपेक्षा करता है।

प्रस्तावित संशोधन:

  • सौदे के मूल्य की अवसीमा:
    • नए विधेयक में सौदे के मूल्य की अवसीमा का प्रावधान भी प्रस्तावित है।
      • इसके अलावा 2,000 करोड़ रुपए से अधिक के सौदे मूल्य वाले किसी भी लेन-देन के विषय में आयोग को सूचित करना अनिवार्य होगा यदि दोनों पक्षों में से किसी का भारत में पर्याप्त व्यावसायिक संचालन है।
  • पर्याप्त व्यवसाय संचालन:
    • आयोग किसी उद्यम के भारत में पर्याप्त व्यावसायिक संचालन हेतु आकलन और आवश्यकताओं को निर्धारित करने के लिये विनियम तैयार करेगा।
      • यह आयोग के समीक्षा तंत्र को सशक्त करेगा, विशेष रूप से डिज़िटल और बुनियादी ढाँचे के क्षेत्र में, जिनमें से अधिकांश की पहले रिपोर्टिंग नहीं की गई थी, क्योंकि ये परिसंपत्ति या कारोबार मूल्य क्षेत्राधिकार की सीमा को पूरा नहीं करते थे।
  • संयोजन की गति को तीव्र करना:
    • किसी भी व्यावसायिक संस्था के लिये जो एक संयोजन निष्पादित करना चाहता है, उन्हें इस विषय में आयोग को सूचित करना होगा।
    • पहले आयोग को संयोजन को मंजूरी प्रदान करने के लिये 210 कार्य दिवस की समय-सीमा निर्धारित थी, जिसके बाद यह स्वतः स्वीकृत हो जाता था।
      • नए संशोधन ने समय सीमा को 210 कार्य दिवसों से घटाकर केवल 150 कार्य दिवसों और 30 दिनों की विस्तार अवधि को निर्धारित कर दिया है।
        • यह संयोजनों की मंजूरी में तेज़ी लाएगा और आयोग के साथ संयोजन-पूर्व परामर्श के महत्त्व को बढ़ावा देगा।
  • गन जंपिंग:
    • पहले गन-जंपिंग के लिये जुर्माना संपत्ति या कारोबार का कुल 1% था जिसे अब सौदे के मूल्य का 1% किये जाने का प्रस्ताव है।
  • खुले बाज़ार में खरीदारी की छूट:
    • यह आयोग को अग्रिम रूप से सूचित करने की आवश्यकता से खुले बाज़ार की खरीद और शेयर बाज़ार के लेन-देन में छूट देने का प्रस्ताव करता है।
  • हब-एंड-स्पोक कार्टेल:
    • संशोधन उन संस्थाओं को चिह्नित के लिये 'प्रतीस्पर्द्धा-विरोधी समझौतों' के दायरे को विस्तृत करता है जो कार्टेलाइजेशन को बढ़ावा देते हैं, भले ही वे समान व्यापार प्रथाओं में शामिल न हों।
  • मामलों का निपटान और प्रतिबद्धताएँ:
    • नया संशोधन ऊर्ध्वाधर समझौतों और प्रभुत्व के दुरुपयोग से संबंधित मामलों के निपटान और प्रतिबद्धताओं के लिये एक रूप-रेखा का प्रस्ताव करता है।
      • ऊर्ध्वाधर समझौतों और प्रभुत्व के दुरुपयोग के मामले में, महानिदेशक (DG) द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पहले दोनों पक्ष प्रतिबद्धता के लिये आवेदन कर सकती हैं।
        • संशोधन के अनुसार, मामले में सभी हितधारकों का पक्ष सुनने के बाद प्रतिबद्धता या निपटान के संबंध में आयोग का निर्णय अपील योग्य नहीं होगा।
  • अन्य प्रमुख संशोधन:
    • उदारता का प्रावधान:
      • यह आयोग को आवेदक को दंड की अतिरिक्त छूट देने की अनुमति देता है जो एक असंबंधित बाज़ार में दूसरे कार्टेल की उपस्थिति का खुलासा करता है, बशर्ते सूचना आयोग को कार्टेल के अस्तित्व के बारे में प्रथम दृष्टया राय बनाने में सक्षम बनाती हो।
    • महानिदेशक की नियुक्ति:
      • केंद्र सरकार के बजाय आयोग द्वारा महानिदेशक की नियुक्ति आयोग को अधिक नियंत्रण प्रदान करती है।
        • यह आयोग को अधिक नियंत्रण देता है।
    • जुर्माने के संबंध में दिशानिर्देश:
      • आयोग विभिन्न प्रतिस्पर्द्धा उल्लंघनों के लिये दंड की संख्या के संबंध में दिशानिर्देश जारी करेगा।

आगे की राह

  • नए परिवर्तनों के साथ आयोग को नए युग के बाज़ार के कुछ पहलुओं का प्रबंधन करने एवं इसके संचालन को और अधिक मज़बूत बनाने में सक्षम होना चाहिये।
    • प्रस्तावित परिवर्तन निस्संदेह आवश्यक हैं, हालाँकि ये आयोग द्वारा बाद में अधिसूचित नियमों पर अत्यधिक निर्भर हैं।
    • इसके अलावा सरकार को यह समझना चाहिये कि बाज़ार की गतिशीलता लगातार बदल रही है, इसलिये कानूनों को नियमित रूप से अद्यतन करने की आवश्यकता है।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग

  • परिचय:
    • भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCi) की स्थापना मार्च, 2009 में भारत सरकार द्वारा प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के तहत अधिनियम के प्रशासन, कार्यान्वयन और प्रवर्तन के लिये की गई थी।
      • यह मुख्य रूप से बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं के तीन मुद्दों का अनुसरण करता है:
        • प्रतिस्पर्द्धा विरोधी समझौते।
        • प्रभुत्व का दुरुपयोग।
        • संयोजन।
  • उद्देश्य:
    • प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली प्रथाओं को समाप्त करना।
    • प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और बनाए रखना।
    • उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना।
    • भारत के बाज़ारों में व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
    • निम्नलिखित के माध्यम से मज़बूत प्रतिस्पर्द्धा माहौल स्थापित करना:
      • उपभोक्ताओं, उद्योग, सरकार और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों सहित सभी हितधारकों के साथ सक्रिय जुड़ाव।
  • संरचना:
    • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम के अनुसार, आयोग में एक अध्यक्ष और छह सदस्य होते हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
      • आयोग अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जो वैधानिक अधिकारियों को सलाह देता है और अन्य मामलों से भी निपटता है।
      • अध्यक्ष और अन्य सदस्य पूर्णकालिक सदस्य होंगे।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):

प्रश्न. अर्द्ध-न्यायिक निकाय क्या हैं? उपयुक्त उदाहरण की सहायता से देश के शासन में उनकी भूमिका स्पष्ट कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2016)

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

F/A 18 सुपर हॉर्नेट लड़ाकू विमान

प्रिलिम्स के लिये:

विमान वाहक, INS विक्रांत, INS विक्रमादित्य,INS विशाल, F/A 18 सुपर हॉर्नेट लड़ाकू विमान।

मेन्स के लिये :

आंतरिक सुरक्षा के लिये विमान वाहक का महत्त्व।

चर्चा में क्यों ?

भारत के पहले स्वदेशी विमान वाहक (IAC), विक्रांत को तैनात करने से पूर्व अमेरिका की प्रमुख सैन्य उपकरण निर्माता कंपनी बोइंग ने भारतीय नौसेना को अपने F/A 18 सुपर हॉर्नेट लड़ाकू विमान को तैनात करने का प्रस्ताव रखा है।

fighter-jets

 F/A18 सुपर हॉर्नेट लड़ाकू विमान की मुख्य विशेषताएँ:

  • F/A-18 सुपर हॉर्नेट ब्लॉक III दुनिया का सबसे उन्नत मल्टी-रोल फ्रंटलाइन नौसैनिक लड़ाकू विमान है जो भारतीय नौसेना के वाहक के साथ अद्वितीय और विभेदित क्षमता तथा पूर्ण संगतता प्रदान करता है।
  • इसे वाहक संचालन के लिये डिज़ाइन और निर्मित किया गया है और यह INS विक्रमादित्य तथा INS विक्रांत विमान वाहक के साथ पूरी तरह से अनुकूलित है।
  • F/A-18 हैंगर में डेक पर और भारतीय नौसेना के विमान वाहक के बेस पर कार्य करने में सक्षम है।
  • यह विमान वाहक पर मानवयुक्त और मानव रहित प्रणालियों के मध्य इंटरफेस बढ़ावा देगा ।
  • सुपर हॉर्नेट का सटीक लैंडिंग मोड सॉफ्टवेयर विशेष रूप से उचित ग्लाइड स्लोप और गति को बनाए रखते हुए भारतीय नौसेना के विक्रमादित्य वाहक पर उतरते समय पायलट कार्यभार को कम करने के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया है।
  • यह पूर्णतः स्वचालित और वाहक के ऑप्टिकल लैंडिंग प्रणाली से स्वतंत्र है।
  • F/A-18 सुपर हॉर्नेट के सिंगल-सीटर (E-Variant) और टू-सीटर (F-Variant) दोनों संस्करण उपलब्ध हैं जो पूरी तरह वाहक डेक द्वारा संचालित हो सकते हैं।
    • टू-सीटर एक सक्षम प्रशिक्षक विमान भी है।

आईएसी विक्रांत:

  • परिचय:
    • विक्रांत भारत में अब तक बनाया गया सबसे बड़ा युद्धपोत है, और भारतीय नौसेना के लिये स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और निर्मित पहला विमानवाहक पोत है।
    • यह भारत को उन राष्ट्रों के एक विशिष्ट समूह में शामिल करता है जो इन विशाल, शक्तिशाली युद्धपोतों को डिज़ाइन और उनका निर्माण करने की क्षमता रखते हैं।
    • यह कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL) द्वारा डिज़ाइन किया गया है, जो कि बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्रालय के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र का शिपयार्ड है।
    • जहाज़ ने समुद्री परीक्षणों के अपने चौथे और अंतिम चरण को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया था
  • संचालन क्षमता:
  • महत्व:
    • यह हवाई वर्चस्व अभियानों के संचालन के लिये अपने घरेलू समुद्री तटों से दूर यात्रा करने की नौसेना की क्षमता को बढ़ाएगा।
    • इसे एक "" नौसेना माना जाता है, जो एक ऐसी नौसेना है जो उच्च समुद्रों में एक राष्ट्र की ताकत और शक्ति को प्रोजेक्ट करने की क्षमता रखती है।

भारत में विक्रांत निर्माण का महत्त्व:

  • वर्तमान में केवल पांँच या छह देशों के पास विमानवाहक पोत बनाने की क्षमता है। भारत अब इस विशिष्ट क्लब में शामिल हो गया है।
    • विशेषज्ञों ने कहा है कि भारत ने दुनिया के सबसे उन्नत और जटिल युद्धपोतों में से एक माने जाने वाले निर्माण की क्षमता और आत्मनिर्भरता का प्रदर्शन किया है।
  • भारत के पास पहले भी विमानवाहक पोत ब्रिटिश या रूस से आयातित थे। 'INS विक्रमादित्य', जिसे 2013 में कमीशन किया गया था और जो वर्तमान में नौसेना का एकमात्र विमानवाहक पोत है, सोवियत-रूसी युद्धपोत 'एडमिरल गोर्शकोव' का भारतीय संस्करण है।
  • भारत के पहले के दो वाहक, 'INS विक्रांत' और 'INS विराट' मूल रूप से ब्रिटिश निर्मित 'एचएमएस हरक्यूलिस' और 'एचएमएस हर्मीस' थे। इन दोनों युद्धपोतों को क्रमश: वर्ष 1961 और 1987 में नौसेना में शामिल किया गया था।

नए युद्धपोत IAC-1 का नाम 'INS विक्रांत' रखा जाएगा:

  • 'INS विक्रांत' नाम मूल रूप से भारत के बहुचर्चित पहले विमानवाहक पोत से संबंधित था, जो 1997 में सेवामुक्त होने से पहले कई दशकों की सेवा मे राष्ट्रीय गौरव था।
    • मूल 'विक्रांत' 19,500 टन वजन का एक मैजेस्टिक-क्लास युद्धपोत, जिसे वर्ष 1961 में यूनाइटेड किंगडम से अधिग्रहीत किया गया था, ने पाकिस्तान के साथ वर्ष 1971 के युद्ध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • पिछले वर्ष जैसे ही IAC-1 ने अपना पहला समुद्री परीक्षण शुरू किया, नौसेना ने "भारत के लिये गौरवपूर्ण और ऐतिहासिक दिन" बताया क्योंकि समुद्री परीक्षणों के लिये 'विक्रांत' का पुनर्निर्माण हुआ था।

IACs हेतु भविष्य की योजनाएँ:

  • नौसेना 2015 से देश के लिये तीसरा विमानवाहक पोत बनाने की मंज़ूरी मांग रही है, जिसे अगर मंज़ूरी मिल जाती है, तो यह भारत का दूसरा स्वदेशी विमान वाहक (IAC-2) बन जाएगा।
  • इस प्रस्तावित वाहक का नाम ‘INS विशाल' रखा गया है, जो 65,000 टन का विशाल पोत है, यह IAC -1 और ' ‘INS विक्रमादित्य' दोनों से काफी बड़ा है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा 'INS अस्त्रधारिणी' का सबसे अच्छा वर्णन है, जो हाल ही में समाचारों में था? (2016)

(a) उभयचर (एम्फिब) युद्ध जहाज़
(b) परमाणु संचालित पनडुब्बी
(c) टारपीडो लॉन्च और रिकवरी पोत
(d) परमाणु संचालित विमान वाहक

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • INS अस्त्रधारिणी एक स्वदेश निर्मित टॉरपीडो लॉन्च और रिकवरी पोत है। इसे 6 अक्तूबर, 2015 को कमीशन किया गया था।
  • अस्त्रधारिणी का डिजाइन नौसेना विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला (NSTL), शाफ़्ट शिपयार्ड तथा आईआईटी खड़गपुर का एक सहयोगात्मक प्रयास था।
  • यह अस्त्रधारिणी के लिये एक उन्नत प्रतिस्थापन है जिसे 17 जुलाई, 2015 को बंद कर दिया गया था।
  • इसमें कटमरैन के रूप का एक अनूठा डिज़ाइन है जो इसकी बिजली की आवश्यकता को काफी कम करता है और इसे स्वदेशी स्टील के साथ बनाया गया है।
  • यह उच्च समुद्री राज्यों में काम कर सकता है और परिक्षणों के दौरान विभिन्न प्रकार के टारपीडो को तैनात करने और पुनर्प्राप्त करने के लिये टारपीडो लॉन्चर्स के साथ एक बड़ा डेक क्षेत्र है।
  • जहाज़ में आधुनिक बिजली उत्पादन और वितरण, नेविगेशन और संचार प्रणाली भी है।
  • जहाज़ की 95% प्रणालियाँ स्वदेशी डिज़ाइन की हैं, इस प्रकार यह 'मेक इन इंडिया' दृष्टिकोण लिये नौसेना के निरंतर प्रयास को प्रदर्शित करता है।
  • INS अस्त्रधारिणी का उपयोग डीआरडीओ की नौसेना प्रणाली प्रयोगशाला, एनएसटीएल द्वारा पानी के नीचे हथियारों और प्रणालियों के तकनीकी परीक्षण के लिये विकसित किया जाएगा। अतः विकल्प (C) सही है।

प्रश्न : एस-400 वायु रक्षा प्रणाली, दुनिया में वर्तमान में उपलब्ध किसी भी अन्य प्रणाली से तकनीकी रूप से कैसे बेहतर है? (मुख्य परीक्षा, 2021)

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


भारतीय राजनीति

सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ

प्रिलिम्स के लिये:

भारत के मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 145(3), अनुच्छेद 143।

मेन्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ।

चर्चा में क्यों?

भारत के 49वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित ने आश्वासन दिया कि सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष भर में कम से कम एक संविधान पीठ कार्य करेगी।

सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ:

  • परिचय:
    • संविधान पीठ सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ होती है जिसमें पाँच या उससे अधिक न्यायाधीश शामिल होते हैं।
    • हालाँकि इन पीठों का गठन नियमित तौर पर नहीं होता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अधिकांश मामलों की सुनवाई और निर्णय दो न्यायाधीशों (जिन्हें डिवीजन बेंच कहा जाता है) और कभी-कभी तीन सदस्यों की पीठ द्वारा किया जाता है।
  • संवैधानिक पीठ गठन हेतु अपरिहार्य परिस्थितियाँ:
    • अनुच्छेद 145(3):
      • अनुच्छेद 145(3) में प्रावधान है कि "इस संविधान की व्याख्या के रूप में या अनुच्छेद 143 के तहत किसी संदर्भ की सुनवाई के उद्देश्य से कानून के एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न से जुड़े किसी भी मामले के निर्णयन के उद्देश्य से शामिल होने वाले न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या पाँच होगी”।
    • अनुच्छेद 143:
      • जब राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत कानून के तहत सर्वोच्च न्यायालय की सलाह मांगता है।
      • प्रावधान के अनुसार, भारत के राष्ट्रपति के पास सर्वोच्च न्यायालय में प्रश्नों को संबोधित करने की शक्ति है, जिसे वह लोक कल्याण के लिये महत्त्वपूर्ण मानते हैं।
      • सर्वोच्च न्यायालय, इन संदर्भ में राष्ट्रपति को सलाह देता है। हालाँकि, शीर्ष न्यायालय द्वारा इस तरह की सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं है, न ही यह 'सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानून' है।
    • परस्पर विरोधी निर्णयन:
      • जब सर्वोच्च न्यायालय के दो या तीन से अधिक जजों की पीठ ने कानून के एक ही बिंदु पर परस्पर विरोधी निर्णय दिये हों, तो एक बड़ी पीठ द्वारा कानून की निश्चित समझ और व्याख्या की आवश्यकता होती है।
        • अतः संविधान पीठों को जब उपर्युक्त शर्तें मौजूद होती हैं तो तदर्थ आधार पर स्थापित किया जाता है और।

CJI द्वारा स्थायी संवैधानिक पीठ की मांग करने के प्रमुख कारण:

  • वर्तमान में संविधान पीठों की स्थापना तदर्थ आधार पर (विशेष उद्देश्य) के रूप में की जाती है विशेषकर जब इनकी आवश्यकता होती है।
  • इसका उद्देश्य न्यायाधीशों को उन मामलों की पहचान करने, सुनने और राहत प्रदान करने में मदद करना है, जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है और सर्वोच्च न्यायालय रजिस्ट्री की लंबी-चौड़ी प्रक्रियाओं के कारण न्यायाधीशों के समक्ष सुनवाई के लिये अपने मामलों को सूचीबद्ध करने में देरी से बचने के लिये वादियों और वकीलों की मदद करना है।
  • यह इसलिये भी ज़रूरी है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामले वर्ष 2017 के स्तर 55,000 से बढ़कर वर्तमान में 71, 000 से अधिक हो गई है।
    • यह इसके बावजूद है कि अगस्त 2019 में न्यायालय की स्वीकृत न्यायिक शक्ति को बढ़ाकर 34 न्यायाधीशों तक कर दिया गया था।

आगे की राह

  • जब तक संवैधानिक बेंच के फैसले स्पष्ट उदाहरण स्थापित नहीं करते हैं और बड़ी संख्या में मामलों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनवाई के बिना लिखित आदेशों के माध्यम से खारिज कर दिया जाता है तो संवैधानिक बेंच के क्षेत्राधिकार के दीर्घकालिक लाभ सीमित हो सकते हैं।

प्रश्न. हमने ब्रिटिश मॉडल के आधार पर संसदीय लोकतंत्र को अपनाया, लेकिन हमारा मॉडल उस मॉडल से कैसे अलग है?(2021)

  1. कानून के संबंध में, ब्रिटिश संसद सर्वोच्च या संप्रभु है लेकिन भारत में, संसद की कानून बनाने की शक्ति सीमित है।
  2. भारत में, संसद के एक अधिनियम के संशोधन की संवैधानिकता से संबंधित मामलों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संविधान पीठ को भेजा जाता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1                    
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों   
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: c

व्याख्या:

  • संसदीय संप्रभुता का अर्थ है कार्यकारी और न्यायिक निकायों सहित अन्य सभी सरकारी संस्थानों पर विधायी निकाय यानी संसद की सर्वोच्चता होती है। ब्रिटेन में संसदीय संप्रभुता है यानी विधायिका किसी भी पिछले कानून को बदल सकती है या निरस्त कर सकती है और संविधान जैसे किसी लिखित कानून से बाध्य नहीं है।अतःकथन 1 सही है।
  • भारत में कोई संसद संप्रभुता नहीं है बल्कि संवैधानिक संप्रभुता है और संसद के अधिकार और अधिकार क्षेत्र सीमित हैं:
    • लिखित संविधान जो राज्य के सभी अंगों पर प्रतिबंध लगाता है।
    • संघ और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण (अनुच्छेद 245-246 और सातवीं अनुसूची),
    • न्यायोचित मौलिक अधिकारों की संहिता का समावेश (अनुच्छेद 12-35 और 226), और
    • न्यायिक समीक्षा और एक स्वतंत्र न्यायपालिका के लिये सामान्य प्रावधान। न्यायपालिका विधायिका द्वारा पारित किसी भी कानून या अध्यादेश को शून्य घोषित कर सकती है, यदि उसका कोई प्रावधान संवैधानिक प्रावधानों में से एक या अधिक का उल्लंघन करता है। अत: 1 सही है।
  • संविधान पीठ सर्वोच्च न्यायालय की पीठ होती है जिसमें पाँच या अधिक न्यायाधीश होते हैं।

अतः विकल्प (c) सही है।


प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को भारत के राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने के लिये वापस बुलाया जा सकता है।
  2. भारत में एक उच्च न्यायालय को अपने स्वयं के निर्णय की समीक्षा करने की शक्ति है जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो मैं और न ही 2

उत्तर: c

व्याख्या:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 128 के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश किसी भी समय राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से किसी भी व्यक्ति से निम्नलिखित योग्यताओं के साथ सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने का अनुरोध कर सकते हैं:
  • जिसने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद पर कार्य किया हो। अत: कथन 1 सही है।
  • जिसने किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण किया हो और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिये विधिवत अर्हता प्राप्त कर चुका हो।
  • कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड होने के कारण उच्च न्यायालय भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने स्वयं के निर्णयों की समीक्षा कर सकता है। इसी तरह अनुच्छेद 137 के तहत सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी निर्णय या उसके द्वारा दिये गए आदेश की समीक्षा करने की शक्ति होगी। अत: कथन 2 सही है।

प्रश्न. भारत में उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2017)

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य

प्रिलिम्स के लिये:

शुद्ध शून्य उत्सर्जन, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC)।

मेन्स के लिये:

शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य हासिल करने के लिये भारत द्वारा उठाए गए आवश्यक कदम।

चर्चा में क्यों?

गेटिंग इंडिया टू नेट ज़ीरो की रिपोर्ट के अनुसार, अगर भारत को वर्ष 2070 तक अपने शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करना है, तो भारत को अब से बड़े पैमाने पर 10.1 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता है।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएंँ:

  • निवेश:
    • यदि शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को वर्ष 2050 तक पूरा करना है तो भारत द्वारा आवश्यक निवेश 13.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होगा।
  • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC):
  • अधिकम उत्सर्जन:
    • भारत, वर्ष 2030 तक उत्सर्जन में चरम पर पहुँच सकता है।
  • लाभ:
    • वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य प्राप्त करने के संदर्भ में वर्ष 2036 तक वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद में 4.7% की वृद्धि होगी और 2047 तक 1.5 मिलियन नए रोज़गार सृजित होंगे।
  • सुझाव:
    • नवीकरणीय ऊर्जा और विद्युतीकरण को बढ़ावा देने के लिये सुझाई गई विभिन्न नीतियांँ सदी के मध्य तक शुद्ध शून्य को संभव बना सकती हैं।
      • वर्ष 2023 तक नए कोयले के उपयोग को समाप्त करना और वर्ष 2040 तक कोयला शक्ति का संक्रमणीय प्रयोग 20वीं शताब्दी के मध्य के करीब शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुँचने के लिये विशेष रूप से प्रभावशाली होगा।

शुद्ध शून्य लक्ष्य:

  • इसे कार्बन तटस्थता के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ यह नहीं है कि कोई देश अपने उत्सर्जन को शून्य पर लाएगा।
  • बल्कि, यह एक ऐसा देश है जिसमें किसी देश के उत्सर्जन की भरपाई वातावरण से ग्रीनहाउस गैसों के अवशोषण और हटाने से होती है।
    • इसके अलावा, वनों जैसे अधिक कार्बन सिंक बनाकर उत्सर्जन के अवशोषण को बढ़ाया जा सकता है।
      • जबकि वातावरण से गैसों को हटाने के लिये कार्बन कैप्चर और स्टोरेज़ जैसी भविष्य की तकनीकों की आवश्यकता होती है।
  • 70 से अधिक देशों ने सदी के मध्य तक यानी वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य बनने का दावा किया है।
  • भारत ने COP-26 शिखर सम्मेलन के सम्मेलन में वर्ष 2070 तक अपने उत्सर्जन को शुद्ध शून्य करने का वादा किया है।

वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने हेतु भारत द्वारा उठाए गए कदम: 

  • भारत के अक्षय ऊर्जा लक्ष्य:
    • भारत द्वारा पेरिस में घोषित किये गए अपने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य, वर्ष 2022 तक के स्तर 175 गीगावाट से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट करने को अब वर्ष 2030 तक बढ़ाकर COP26 में 500 गीगावाट कर दिया है।
    • भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से 50% स्थापित विद्युत् उत्पादन क्षमता के लक्ष्य की भी घोषणा की है, जो 40% के मौजूदा लक्ष्य को बढ़ाता है, जो पहले ही लगभग हासिल कर लिया गया है।
  • NDC के लक्ष्य:
    • इनकी पहचान निम्नानुसार की गई है: 
      • जलवायु परिवर्तन से निपटने की कुंजी के रूप में लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट (LIFE) के लिये जन आंदोलन सहित संरक्षण और संयम की परंपराओं एवं मूल्यों के आधार पर जीवन जीने के स्वस्थ तथा टिकाऊ तरीके को आगे बढ़ाना।
      • आर्थिक विकास के संबंधित स्तर पर अन्य लोगों द्वारा अपनाए गए मार्ग की तुलना में जलवायु के अनुकूल और स्वच्छ मार्ग को अपनाना।
      • वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करना।
      • वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 50% संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता प्राप्त करना,
        • यह हरित जलवायु कोष (GCF) सहित प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण और कम लागत वाले अंतर्राष्ट्रीय वित्त की मदद से संभव होगा।
      • वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्षों के आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन CO2 के बराबर अतिरिक्त कार्बन संचय करना।
      • जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों विशेष रूप से कृषि, जल संसाधन, हिमालयी क्षेत्र, तटीय क्षेत्रों और स्वास्थ्य एवं आपदा प्रबंधन के लिये विकास कार्यक्रमों में निवेश बढ़ाकर जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन करना।
      • आवश्यक संसाधन और संसाधन अंतराल को देखते हुए उपरोक्त शमन एवं अनुकूलन कार्यों को लागू करने के लिये विकसित देशों से घरेलू तथा नए तथा अतिरिक्त धन जुटाना।
      • भारत में अत्याधुनिक जलवायु प्रौद्योगिकी के त्वरित प्रसार और ऐसी भावी प्रौद्योगिकियों के लिये संयुक्त सहयोगी अनुसंधान एवं विकास हेतु क्षमता निर्माण, तथा एक घरेलू ढाँचा और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का निर्माण करना।
  • पहल:
    • सौर ऊर्जा:
      • भारत ने दुनिया की सबसे बड़ी सौर ऊर्जा स्थापना पहलों में से एक की शुरूआत की है।
        • चाहे वह वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट क्षमता प्राप्त कर ले या वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट लक्ष्य प्राप्त कर ले,
    • कार्बन संचय:
    • हाइड्रोजन ऊर्जा:

आगे की राह:

  • भारत के शुद्ध-शून्य लक्ष्य और अद्यतित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) निश्चित रूप से महत्त्वाकांक्षी हैं, जो कि कोविड महामारी के बाद इससे उबरने की आवश्यकताओं पर बल दे रहे हैं।
    • हालाँकि ये वैश्विक स्तर पर जलवायु कार्रवाई पर वृद्धिशील प्रगति के एक सामान्य प्रणाली में समायोजित होते हैं जिसमें पूर्व-औद्योगिक स्तरों से वैश्विक तापन को 5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये आवश्यक सामूहिक भावना का अभाव है।
    • इसके अलावा भारत सहित विश्व स्तर पर सीमित अल्पकालिक उत्सर्जन में कमी और महत्त्वाकांक्षी दीर्घकालिक जलवायु कार्य योजनाओं का कार्यान्वयन उपेक्षित है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रिलिम्स:

Q. 'इच्छित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान' शब्द को कभी-कभी समाचारों में किस संदर्भ में देखा जाता है? (2016)

(a) युद्ध प्रभावित मध्य पूर्व से शरणार्थियों के पुनर्वास के लिये यूरोपीय देशों द्वारा की गई प्रतिज्ञा
(b) जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिये विश्व के देशों द्वारा उल्लिखित कार्य योजना
(c) एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक की स्थापना में सदस्य देशों द्वारा योगदान की गई पूंजी
(d) सतत् विकास लक्ष्यों के संबंध में दुनिया के देशों द्वारा उल्लिखित कार्य योजना

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • ‘इच्छित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’, UNFCCC के तहत पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले सभी देशों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने के लिये व्यक्त की गई प्रतिबद्धता को बताता है।
  • CoP 21 में दुनिया भर के देशों ने सार्वजनिक रूप से उन कार्रवाइयों की रूपरेखा तैयार की, जिन्हें वे अंतर्राष्ट्रीय समझौते अंतर्गत क्रियान्वयित करना चाहते थे। राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान पेरिस समझौते के दीर्घकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर है जो "वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों को बढ़ावा देता हैऔर इस शताब्दी के उत्तरार्ध में नेट ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करता है।" अतः विकल्प (b) सही है।

मेन्स:

Q. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के पार्टियों के सम्मेलन (CoP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन करें। इस सम्मेलन में भारत द्वारा व्यक्त की गई प्रतिबद्धताएँ क्या हैं?(2021)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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