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  • 15 Nov 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    प्रश्न. अर्द्ध-न्यायिक निकाय क्या हैं? उपयुक्त उदाहरण की सहायता से देश के शासन में उनकी भूमिका स्पष्ट कीजिये।

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • अर्द्ध-न्यायिक निकायों को परिभाषित करें।
    • उदाहरणों के साथ देश के शासन में अर्द्ध-न्यायिक निकायों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये।
    • अर्द्ध-न्यायिक निकायों के महत्त्व को रेखांकित करते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    अर्द्ध-न्यायिक निकाय एक ऐसा संगठन होता है, जिसके पास कानून लागू करने वाले निकायों के समान शक्ति होती है परंतु यह न्यायालय नहीं होता है। अर्द्ध-न्यायिक निकाय अदालत एवं विधानमंडल के अतिरिक्त सरकार का एक अंग है, जो निजी हितधारकों के अधिकारों को कानून निर्माण द्वारा प्रभावित करता है। यह अनिवार्य नहीं है कि अर्द्ध-न्यायिक निकाय न्यायालय से मिलता-जुलता संगठन होना चाहिये। उदाहरण के लिये, भारत का चुनाव आयोग भी एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है, लेकिन इसके मूल कार्य न्यायालय जैसे नहीं हैं। भारत में अर्द्ध-न्यायिक निकाय के कुछ उदाहरण भारत का चुनाव आयोग, राष्ट्रीय हरित अधिकरण, केंद्रीय सूचना आयोग (CIC), लोक अदालत आदि हैं।

    शासन में अर्द्ध-न्यायिक निकायों की भूमिका:

    • पारंपरिक न्यायिक प्रक्रिया में खर्च के डर से आबादी का एक बड़ा वर्ग न्यायालयों से दूर रहता है, इस प्रकार की सोच न्याय के उद्देश्य को कमज़ोर कर सकती है। दूसरी ओर, अर्द्ध-न्यायिक निकायों की कुल लागत कम होती है, जो लोगों को उनकी शिकायतों के निवारण के लिये प्रोत्साहित करती है।
    • ट्रिब्यूनल और अन्य ऐसे निकाय आवेदन या साक्ष्य आदि प्रस्तुत करने के लिये किसी लंबी या जटिल प्रक्रिया का पालन नहीं करते हैं।
    • विशिष्ट मामलों को अपने क्षेत्राधिकार में लेते हुए अर्द्ध-न्यायिक निकाय न्यायपालिका के बोझ को बड़े पैमाने पर साझा करते हैं। जैसे- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल पर्यावरण और प्रदूषण से संबंधित मामलों की सुनवाई करता है।
    • अर्द्ध-न्यायिक निकाय सभी के लिये सुलभ हैं तथा तकनीकी झंझटों से मुक्त हैं। यह विशेषज्ञों द्वारा कुशलता से संचालित किये जाते हैं, साथ ही शीघ्रता से न्याय प्रदान करते हैं।
    • भारत के चुनाव आयोग का उदाहरण लेते हुए यह कहा जा सकता है कि इसकी अर्द्ध-न्यायिक शक्तियाँ और कार्य पर्याप्त रूप से यह संकेत देते हैं कि इसे प्राप्त कानूनी शक्तियाँ काफी हद तक अदालती प्रणाली के समान हैं।

    चुनाव आयोग के अर्द्ध-न्यायिक कार्य:

    • आयोग के पास समय के भीतर और कानून द्वारा निर्धारित तरीके से अपने चुनाव खर्च का लेखा-जोखा देने में विफल रहे उम्मीदवार को अयोग्य घोषित करने की शक्ति है।
    • आयोग के पास अयोग्यता की अवधि को हटाने या कम करने की शक्ति के साथ-साथ अन्य अयोग्यता के संदर्भ में भी पर्याप्त अधिकार है।
    • आयोग राजनीतिक दलों को मान्यता देने और उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करने से संबंधित विवादों के निपटारे के लिये एक अदालत के रूप में कार्य करता है।

    अर्द्ध-न्यायिक निकाय कम कर्मचारी संख्या तथा मामलों की बढ़ती संख्या के कारण अपने कार्यों को सुचारु रूप से करने में अक्षम साबित हो रहे हैं। समस्या की जड़ इस तथ्य में निहित है कि न्यायपालिका के आधे जनशक्ति के बराबर होने के बावजूद इन निकायों से लगभग उनके बराबर काम करने की उम्मीद की जाती है। इस तरह की बाधाओं के बावजूद, अर्द्ध-न्यायिक निकाय राष्ट्र के लिये काफी मददगार हैं और उन्होंने न्यायपालिका के बोझ को काफी हद तक कम कर दिया है। वे मुख्य मुद्दों को संबोधित करके देश में कुशल शासन को भी सक्षम बनाते हैं।

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