अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ब्रिक्स इनोवेशन बेस
प्रिलिम्स के लिये:ब्रिक्स देश, ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ मेन्स के लिये:वैश्विक अर्थव्यवस्था और तकनीकी विकास, चतुर्थ औद्योगिक क्रांति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ब्रिक्स (BRICS) देशों के उद्योग मंत्रियों की एक वर्चुअल बैठक के दौरान चीन द्वारा ब्रिक्स देशों के बीच ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence-AI) और 5G के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये चीन में एक ‘ब्रिक्स इनोवेशन बेस’ (BRICS Innovation Base) की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- चीन ने भारत सहित समूह के सभी देशों से ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ और 5G के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने का आग्रह किया है।
- चीन का यह प्रस्ताव भारत के लिये एक नई परेशानी खाड़ी कर सकता है क्योंकि ब्रिक्स समूह में भारत ही एक ऐसा सदस्य है जो चीन को अपने देश के 5G तंत्र से बाहर रखने का प्रयास कर रहा है।
- गौरतलब है कि चीनी की एक दूरसंचार कंपनी ‘हुवेई’ (Huawei) को संयुक्त राज्य अमेरिका में काफी हद तक प्रतिबंधित कर दिया गया है।
अन्य ब्रिक्स देशों की प्रतिक्रिया:
- रूस:
- रूस ने 5G तकनीकी पर चीन के साथ काम करने पर सहमति व्यक्त की है।
- रूसी विदेश मंत्री ने इसी माह 5G के क्षेत्र में चीनी दूरसंचार कंपनी हुवेई (Huawei) के साथ मिलकर कार्य करने का स्वागत किया है।
- दक्षिण अफ्रीका:
- दक्षिण अफ्रीका में हुवेई देश की तीन दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियों द्वारा उनकी 5G सेवा को शुरू करने में सहयोग कर रहा है।
- ब्राज़ील:
- ब्राज़ील ने भी चीनी कंपनियों को अपने देश के 5G के परीक्षण में में शामिल होने की अनुमति दी है हालाँकि देश में 5G को पूरी तरह से शुरू किये जाने की प्रक्रिया में चीनी कंपनियों को शामिल करने पर अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।
- हालाँकि ब्राज़ील के उपराष्ट्रपति ने इसी माह हुवेई को 5G नेटवर्क में शामिल करने के संकेत दिये हैं। उनके अनुसार, वर्तमान में ब्राज़ील के 4G तंत्र में देश की दूरसंचार सेवाप्रदाता कंपनियों द्वारा प्रयोग किये जा रहे उपकरणों में से एक-तिहाई (1/3) से अधिक हुवेई के ही हैं।
- ब्राज़ील के उपराष्ट्रपति के अनुसार, हुवेई में अपने प्रतिद्वंदियों से बेहतर क्षमता है और वे अभी अमेरिकी कंपनियों को इस क्षेत्र की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा में आगे बढ़ता हुए नहीं देखते।
भारत की चुनौती:
- वर्तमान में भारत और चीन तनाव के बीच भारत सरकार द्वारा 5G के क्षेत्र में चीनी कंपनियों की भागीदारी की अनुमति दिये जाने की संभावनाएँ बहुत ही कम है।
- गौरतलब है कि हाल ही में भारत द्वारा चीनी निवेश पर नियमों में सख्ती के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए लगभग 59 चीनी मोबाइल एप पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था।
- भारतीय खुफिया तंत्र ने अपने आकलन के आधार पर हुवेई सहित चीन की कई अन्य कंपनियों के चीनी सेना से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध की संभावनाओं के संदर्भ में चिंता ज़ाहिर की है।
- 5G से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती डेटा सुरक्षा की है, वर्तमान में 5G जैसे क्षेत्र में भारतीय बाज़ार में चीनी कंपनियों की भागीदारी की अनुमति देने से यह आर्थिक हितों के साथ सुरक्षा की दृष्टि से भी एक चिंता का विषय होगा।
- ध्यातव्य है कि वर्तमान में विश्व में COVID-19 महामारी से सबसे अधिक प्रभावित 5 देशों में से 4 ब्रिक्स समूह के देश (ब्राज़ील, भारत, रूस और दक्षिण अफ्रीका) हैं और ऐसे समय में चीनी कंपनियाँ इन देशों के बाज़ारों पर मज़बूत बढ़त बनाने के लिये प्रयासरत हैं।
आगे की राह:
- पिछले कुछ वर्षों में भारतीय सीमा पर चीन की आक्रामकता में वृद्धि और अमेरिका-चीन व्यापारिक तनाव ने भारत के लिये ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी’ (RCEP), ‘रूस-भारत-चीन’ (Russia-India-China- RIC) और ब्रिक्स जैसे अंतर्राष्ट्रीय समूहों से जुड़े राजनीतिक निर्णयों को अधिक जटिल बना दिया है।
- हाल ही में भारत ‘ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ (Global Partnership on Artificial Intelligence-GPAI) में एक संस्थापक सदस्य के तौर पर शामिल हुआ है।
- यह आर्थिक विकास के साथ मानवाधिकारों, समावेशन, विविधता, और नवाचार जैसे मूल्यों पर आधारित ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence-AI) के ज़िम्मेदारी पूर्ण विकास का मार्गदर्शन करने हेतु एक अंतरराष्ट्रीय और बहु-हितधारक पहल है।
- ‘GPAI’ की ही तरह 5G के क्षेत्र में भी सामान विचारधारा वाले देशों के सहयोग से 5G से जुड़े तकनीकी विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- पिछले एक दशक में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों ने महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, 5G से जुड़े रणनीतिक और आर्थिक हितों को देखते हुए ‘मेक-इन-इंडिया' और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे प्रयासों के तहत भारतीय कंपनियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
निर्यात तत्परता सूचकांक 2020
प्रिलिम्स के लियेनिर्यात तत्परता सूचकांक मेन्स के लियेभारतीय निर्यात क्षेत्र की दशा और दिशा |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नीति आयोग ने इंस्टीट्यूट ऑफ कॉम्पिटेटिवनेस ( Institute of Competitiveness) के साथ संयुक्त रूप से निर्यात तत्परता सूचकांक (Export Preparedness Index-EPI) 2020 जारी किया है।
सूचकांक संबंधी प्रमुख बिंदु
- राज्यों की निर्यात तत्परता का मूल्यांकन करने के उद्देश्य से तैयार किये गए निर्यात तत्परता सूचकांक (EPI) 2020 में गुजरात को पहला स्थान प्राप्त हुआ है। इस सूचकांक में गुजरात के बाद दूसरा और तीसरा स्थान क्रमशः महाराष्ट्र और तमिलनाडु को मिला है।
- शीर्ष 10 में स्थान प्राप्त करने वाले अन्य राज्यों में राजस्थान, ओडिशा, तेलंगाना, हरियाणा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और केरल शामिल हैं।
- समग्र तौर पर निर्यात तत्परता के मामले में भारत के तटीय राज्यों का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा और इस सूचकांक में शीर्ष 10 राज्यों में से 6 तटीय राज्य हैं।
- पूरी तरह से भू-सीमा से घिरे हुए राज्यों में राजस्थान ने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है, जिसके बाद तेलंगाना और हरियाणा का स्थान है।
- हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड को पहला स्थान, जबकि त्रिपुरा और हिमाचल प्रदेश क्रमशः दूसरा और तीसरा स्थान प्राप्त हुआ है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में, भारत के 70 प्रतिशत निर्यात में पाँच राज्यों- महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना का वर्चस्व मौजूद है।
- रिपोर्ट यह भी रेखांकित करती है कि निर्यात अनुकूलन और तत्परता केवल समृद्ध राज्यों तक ही सीमित नहीं है। कई ऐसे भी राज्य हैं जो उतने अधिक समृद्ध नहीं हैं, किंतु उन्होंने निर्यात को बढ़ावा देने के लिये कई उपाय आरंभ किये हैं।
भारत में निर्यात
- कई विशेषज्ञ निर्यात को आर्थिक विकास के महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक मानते हैं। प्रायः यह देखा गया है कि पारंपरिक आयात प्रतिस्थापन की नीति से अधिक निर्यात-उन्मुख नीति देश के उच्च और निरंतर आर्थिक विकास में अधिक भूमिका अदा करती है।
- उदाहरण के लिये जापान ने 1960 के दशक में निर्यात-उन्मुख नीति का अनुसरण किया था, जिसके प्रभावस्वरूप 1960 के दशक में उसका व्यापार निर्यात 16.9 प्रतिशत की दर से और 1970 के दशक में 21 प्रतिशत की दर से बढ़ा था।
- इस प्रकार हम कह सकते हैं कि यदि भारत को आर्थिक वृद्धि करनी है तो निर्यात में बढ़ोतरी करना भारत की विकास नीति का अभिन्न अंग होना चाहिये।
- बीते कुछ वर्षों में भारत के व्यापारिक निर्यात में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है, आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2016-17 में भारत के व्यापारिक निर्यात में 275.9 बिलियन डॉलर, वित्तीय वर्ष 2017-18 में 303.5 बिलियन डॉलर और वित्तीय वर्ष 2018-19 में 331.0 बिलियन डॉलर तक वृद्धि दर्ज की गई।
- हालाँकि कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी ने भारत समेत विश्व की संपूर्ण अर्थव्यवस्था को एक बड़ा झटका दिया है।
निर्यात पर COVID-19 का प्रभाव
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निर्यात संवर्द्धन की प्रमुख चुनौतियाँ
- रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में निर्यात संवर्द्धन को मुख्य तौर पर तीन बुनियादी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
- निर्यात अवसंरचनाओं में अंतःक्षेत्रीय विषमताएँ,
- राज्यों के बीच निम्न व्यापार सहायता तथा विकास अनुकूलन,
- निर्यात को बढ़ावा देने के लिये निम्न अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना।
सुझाव
- रिपोर्ट में प्रस्तुत की गई चुनौतियों का सामना करने के लिये प्रमुख कार्यनीतियों पर ज़ोर दिये जाने की आवश्यकता है, जिसमे:
- निर्यात अवसंरचना का संयुक्त विकास
- उद्योग-शिक्षा क्षेत्र के बीच संपर्क का सुदृढ़ीकरण
- आर्थिक कूटनीति के लिये राज्य-स्तरीय भागीदारी में बढ़ोतरी
- 'आत्मनिर्भर भारत' पर ज़ोर देते हुए भारत को एक विकसित अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को अर्जित करने के लिये सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में निर्यात को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
निर्यात तत्परता सूचकांक (EPI)
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स्रोत: पी.आई.बी
भारतीय अर्थव्यवस्था
आर्थिक वृद्धि के लिये आवश्यक सुधार
प्रीलिम्स के लियेआर्थिक विकास और रोज़गार संबंधी महत्त्वपूर्ण तथ्य मेन्स के लियेभारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति और इस संबंध में आवश्यक सुझाव |
चर्चा में क्यों?
मैक्किंज़े ग्लोबल इंस्टीट्यूट (McKinsey Global Institute-MGI) के अनुसार, कोरोना वायरस (COVID-19) काल के पश्चात् आर्थिक वृद्धि के नए अवसरों का निर्माण करने के लिये भारत को अगले एक दशक में अपनी सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 8-8.5 प्रतिशत की दर से बढ़ाने की आवश्यकता है और यदि ऐसा नहीं होता है तो भारत आय स्थिरता के चक्र में फँस जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- मैक्किंज़े ग्लोबल इंस्टीट्यूट (MGI) ने भारतीय अर्थव्यवस्था के संबंध में जारी अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि भारत को अगले एक दशक में अपनी GDP 8-8.5 प्रतिशत की दर से बढ़ाने के लिये कम-से-कम 90 मिलियन (9 करोड़) नए गैर-कृषि रोज़गार का सृजन करना होगा।
- अनुमान के अनुसार, भारतीय GDP में वित्त वर्ष 2020-21 में 3 से 9 प्रतिशत के बीच संकुचन हो सकता है।मौजूद वित्तीय वर्ष अर्थव्यवस्था का संकुचन पूर्णतः सरकार द्वारा कोरोना वायरस (COVID-19) संक्रमण को रोकने तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये उठाए गए कदमों की प्रभावशीलता पर निर्भर करता है।
- यदि भारत सरकार कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी और उसके कारण उत्पन्न हुए आर्थिक संकट को सही ढंग से प्रबंधित करने में असमर्थ रहती है, तो वर्ष 2023 से वर्ष 2030 तक भारत भारत की आर्थिक वृद्धि दर 5.5 से 6.0 प्रतिशत के बीच ही रहेगी।
- रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि वायरस के कारण उत्पन्न हुआ आर्थिक आघात देश की बैंकिंग प्रणाली को तनाव में डाल सकता है। यदि आम नागरिकों, छोटे व्यवसायियों और निगमों पर वित्तीय तनाव को कम नहीं किया गया तो वित्तीय वर्ष 2020-21 में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में 7-14 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के परिणामस्वरूप वर्ष 2030 तक गैर-कृषि रोज़गार की तलाश कर रहे 90 मिलियन लोगों का कार्यबल मौजूद होगा।
- इस दौरान भारत को गैर-कृषि रोज़गार की सृजन की दर को तिगुना करना होगा। गौरतलब है कि वर्ष 2013 से वर्ष 2018 की अवधि के बीच भारत में प्रतिवर्ष 4 मिलियन गैर-कृषि रोज़गार का सृजन किया गया था।
- ध्यातव्य है कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस संक्रमण से पूर्व ही संरचनात्मक चुनौतियों का सामना कर रही थी, जिससे देश की GDP वृद्धि वित्त वर्ष 2020 में घटकर 4.2 प्रतिशत रह गई थी।
कोरोना महामारी और बेरोज़गारी की समस्या
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सुझाव
- भारत को उत्पादकता बढ़ाने और नए रोज़गार सृजित करने हेतु आगामी 12-18 महीनों में कई महत्त्वपूर्ण सुधार करने होंगे, इस रिपोर्ट में ऐसे कुल 6 क्षेत्रों को भी चिन्हित किया गया है, जिनमें सुधार कर अर्थव्यवस्था में उत्पादकता और प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाया जा सकता है।
- मैक्किंज़े ग्लोबल इंस्टीट्यूट (MGI) ने अपनी रिपोर्ट में मुख्यतः विनिर्माण, रियल एस्टेट, कृषि, स्वास्थ्य और खुदरा क्षेत्रों पर ध्यान देने की वकालत की है।
- रिपोर्ट में 30 से अधिक राज्य के स्वामित्त्व वाले उद्यमों का निजीकरण करने और पूंजी बाज़ार में अधिक घरेलू बचत को शामिल करने का भी सुझाव दिया गया है।
- इसके अलावा रिपोर्ट में लचीले श्रम बाज़ार का निर्माण करने और कुशल बिजली वितरण को सक्षम बनाने का भी सुझाव दिया गया है।
- वित्तीय क्षेत्र के दृष्टिकोण से इस रिपोर्ट में ‘बैड बैंक’ के निर्माण की भी बात की गई है।
‘बैड बैंक’ की अवधारणा
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स्रोत: द हिंदू
आंतरिक सुरक्षा
बैंक धोखाधड़ी में ई-सिम का दुरुपयोग
प्रिलिम्स के लिये:ई-सिम, ‘ई-बात कार्यक्रम’ मेन्स के लिये:सूचना प्रौद्योगिकी का विकास और साइबर सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हरियाणा पुलिस द्वारा 300 से अधिक बैंक खातों से जुड़े एक बहुराज्यीय बैंक धोखाधड़ी के मामले में ‘ई-सिम’ (e-SIM) के प्रयोग की बात कही गई है। इस मामले के सामने आने के बाद एक बार फिर इंटरनेट और साइबर सुरक्षा तंत्र पर प्रश्न उठने लगे हैं।
प्रमुख बिंदु:
- 300 से अधिक राष्ट्रीयकृत और निजी बैंक खातों में धोखाधड़ी के ये मामले देश के पाँच राज्यों (पंजाब, हरियाणा, बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड) से संबंधित हैं।
- इन मामलों में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गए पाँच आरोपियों में से 4 झारखंड के ‘जमतारा’ (Jamtara) ज़िले से हैं।
- बैंक धोखाधड़ी से जुड़े इन मामलों में आरोपियों द्वारा पीड़ितों के बैंक खातों से पैसे निकालने के लिये ‘ई-सिम’ का प्रयोग किया गया था।
बैंक धोखाधड़ी में ई-सिम का प्रयोग:
धोखाधड़ी के इन मामलों में अपराधी बड़ी संख्या में मोबाइल नंबरों को प्राप्त कर उनके माध्यम से बैंक खातों में लॉग-इन (Log-in) का प्रयास करते हैं।
- यदि किसी नंबर पर बैंक द्वारा ओटीपी (OTP) भेजने का संकेत प्राप्त होता है, तो वे उस नंबर पर ग्राहक सेवा अधिकारी होने का दिखावा करते हुए फोन करते हैं और संबंधित व्यक्ति से सिमकार्ड अपग्रेड करने या उसकी पहचान से जुड़ी जानकारी जानने का प्रयास करते हैं।
- इसके बाद अपराधी पीड़ित को एक इ-मेल भेजते हैं, जिसे आधिकारिक ग्राहक सेवा नंबर पर भेजना होता है।
- वास्तविकता में यह पीड़ित व्यक्ति के फोन नंबर से अपनी ईमेल आईडी (Email-id) जोड़ने का एक तरीका होता है, जिसके माध्यम से अपराधी पीड़ित के सिम को ‘ई-सिम’ में बदलने के लिये आधिकारिक आवेदन कर सकते हैं।
- यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद पीड़ित के नंबर से जुड़ी सभी सेवाओं (बैंक खाते सहित) तक अपराधियों की पहुँच हो जाती है।
‘ई-सिम’ (e-SIM):
- ‘ई-सिम’ का पूरा नाम ‘एंबेडेड सब्सक्राइबर आइडेंटिटी मॉड्यूल’ (Embedded Subscriber Identity Module) है, इसे एंबेडेड सिम (Embedded SIM) के नाम से भी जाना जाता है।
- पारंपरिक सिम कार्ड की तरह मोबाइल फोन से अलग होने की बजाय, इसे निर्माता द्वारा फोन में ही स्थापित कर दिया जाता है।
- ई-सिम, पारंपरिक सिम के विपरीत फोन में अनावश्यक स्थान नहीं घेरता है, साथ ही इसका प्रयोग स्मार्टवाच (Smartwatch) जैसे छोटे उपकरणों में भी किया जा सकता है।
भारत में इंटरनेट से जुड़े बैंक धोखाधड़ी के मामले:
- भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारतीय बैंकों द्वारा कुल 195 करोड़ रुपए से संबंधित इंटरनेट और क्रेडिट अथवा डेबिट कार्ड धोखाधड़ी से जुड़े 2,678 मामले दर्ज किये गए थे।
- वित्तीय वर्ष 2019-20 में इंटरनेट से जुड़े बैंक धोखाधड़ी के मामलों में पिछले वर्ष की तुलना में दोगुने से अधिक वृद्धि (मूल्य के आधार पर) देखी गई है।
- वर्तमान वित्तीय वर्ष में अप्रैल से जून के बीच इंटरनेट और क्रेडिट या डेबिट कार्ड धोखाधड़ी से संबंधित 530 मामले दर्ज किये गए, इन मामलों में कुल 27 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी देखी गई है।
बैंक धोखाधड़ी को रोकने के प्रयास:
- बैंक धोखाधड़ी की निगरानी और पहचान में सुधार हेतु RBI द्वारा विभिन्न डेटाबेस और सूचना प्रणालियों को जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।
- RBI द्वारा ‘इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग जागरूकता और प्रशिक्षण’ या ‘ई-बात’ (Electronic Banking Awareness And Training or e-BAAT) कार्यक्रम के माध्यम से जागरूकता बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।
- साथ ही RBI के द्वारा डिजिटल भुगतान प्रणाली के सुरक्षित उपयोग, महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत जानकारी जैसे- पिन, ओटीपी, पासवर्ड, आदि को साझा करने से बचने हेतु जागरुकता अभियानों का आयोजन किया जाता है।
- RBI द्वारा सभी बैंकों और प्राधिकृत भुगतान प्रणाली ऑपरेटरों को डिजिटल भुगतान के सुरक्षित उपयोग के बारे में अपने उपयोगकर्ताओं को शिक्षित करने हेतु एसएमएस, प्रिंट और विज़ुअल मीडिया आदि के माध्यम से लक्षित बहुभाषी अभियान शुरू करने का निर्देश दिया गया है।
- हाल ही में महाराष्ट्र पुलिस द्वारा इस प्रकार की बैंक धोखाधड़ी से बचने के लिये कुछ आवश्यक दिशा निर्देश जारी किये गए थे।
आगे की राह:
- पुलिस के अनुसार, बैंकों और टेलीकॉम कंपनियों की ओर से प्रक्रियात्मक कमी और तत्परता का अभाव ऐसे मामलों में वृद्धि का एक बड़ा कारण है।
- ऐसे मामलों से बचने का सबसे प्रभावी ग्राहक जागरूकता को ही माना जाता है, अतः लोगों को किसी संदेहप्रद लिंक पर क्लिक करने तथा किसी के साथ अपनी निजी जानकारी साझा करने से बचना चाहिये।
- बैंकिंग क्षेत्र में तकनीकी के प्रयोग को बढ़ावा देने के साथ इससे जुड़ी सुरक्षा को मज़बूत बनाने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
- बैंकों द्वारा स्थानीय प्रशासन के सहयोग से नवीन तकनीकों और उससे जुड़ी सुरक्षा चुनौतियों के संदर्भ में जन-जागरूकता को बढ़ाने हेतु आवश्यक प्रयास जाना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
ई-पीपीओ’ का ‘डिजी-लॉकर’ के साथ एकीकरण
प्रिलिम्स के लिये:ई-पीपीओ’, ‘डिजी-लॉकर, सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली मेन्स के लिये:सरकार द्वारा सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली में पारदर्शिता के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा ‘इलेक्ट्रॉनिक पेंशन भुगतान आदेश’ (Electronic Pension Payment Order) या ‘ई-पीपीओ’ ( e-PPO) को ‘डिजी-लॉकर’ (Digi- Locker) के साथ एकीकृत करने का निर्णय लिया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- पेंशन और पेंशनर्स कल्याण विभाग के अनुसार, पेंशन भुगतान आदेश की मूल प्रति के खो जाने के बाद पेंशनधारकों को कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- इस समस्या को देखते हुए पेंशन और पेंशनर्स कल्याण विभाग द्वारा ‘ई-पीपीओ’ ( e-PPO) को ‘डिजी-लॉकर’ (Digi- Locker) के साथ एकीकृत करने का निर्णय लिया गया है।
- गौरतलब है कि इलेक्ट्रॉनिक पेंशन भुगतान आदेश को ‘सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली’ (Public Finance Management System- PFMS) द्वारा जारी किया जाता है।
- इस सुविधा को वित्तीय वर्ष 2021-22 तक शुरू करने का लक्ष्य रखा गया था, परंतु COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न हुई चुनौतियों को देखते हुए इसे पहले ही पूरा कर लिया गया।
ई-पीपीओ प्राप्त करने की प्रक्रिया:
- इस सुविधा को ‘भविष्य’ (Bhavishya) नामक सॉफ्टवेयर के माध्यम से तैयार किया गया है।
- यह सॉफ्टवेयर सेवानिवृत्त व्यक्तियों को अपने डिजी-लॉकर खाते को अपने ‘भविष्य’ खाते जोड़ने का विकल्प उपलब्ध कराएगा। जिसके माध्यम से वे निर्बाधित तरीके से अपना ई-पीपीओ प्राप्त कर सकेंगे।
- यह विकल्प सेवानिवृत्त होने वाले व्यक्तियों को सेवानिवृत्त संबंधी फार्म भरने के समय एवं फार्म जमा करने के बाद भी उपलब्ध होगा।
‘भविष्य’ (Bhavishya):
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लाभ:
- इस प्रणाली के माध्यम से कोई भी पेंशनभोगी डिजी-लॉकर खाते से तत्काल अपने पीपीओ की नवीनतम प्रति का प्रिंट-आउट प्राप्त कर सकेंगे।
- इसके माध्यम से पेंशनभोगी के डिजी-लॉकर में उसके पीपीओ का स्थायी रिकॉर्ड सुरक्षित रखा जा सकेगा।
- इसके माध्यम से नए पेंशनधारकों तक पीपीओ पहुँचने में होने वाले विलंब को दूर करने के साथ पेंशनधारकों द्वारा पीपीओ की भौतिक प्रति सुपुर्द करने की आवश्यकता को भी समाप्त किया जा सकेगा।
‘सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली’ (Public Finance Management System- PFMS):
डिजी-लॉकर:
उद्देश्य:
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स्त्रोत: पीआईबी
भारतीय राजनीति
50% कोटा सीमा पर पुनर्विचार की आवश्यकता
प्रिलिम्स के लिये:इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामला, 103वां संविधान संशोधन, अनुच्छेद 15(4), अनुच्छेद 16(4), 102वां संविधान संशोधन मेन्स के लिये:50% कोटा सीमा पर पुनर्विचार की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने 'मराठा आरक्षण कानून' की समीक्षा करने वाली बेंच को खुद को मराठा कानून तक सीमित रखने के बजाय आरक्षण पर 50% की सीमा/सीलिंग पर ही पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है।
प्रमुख बिंदु:
- इन अधिवक्ताओं द्वारा आरक्षण पर निर्धारित 50% सीलिंग पर पुनर्विचार करने के लिये 11 ‘न्यायाधीशों की बेंच’ गठित करने का आग्रह किया गया।
- यह मांग उस समय उठाई गई जब सर्वोच्च न्यायालय 'मराठा आरक्षण कानून' को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है।
- यह कानून मराठा समुदाय के लिये 12 से 13 प्रतिशत कोटा प्रदान करता है।
आरक्षण सीमा की पृष्ठभूमि:
- वर्ष 1979 में मोरारजी देसाई सरकार ने बी. पी. मंडल की अध्यक्षता में ‘द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ का गठन किया गया।
- आयोग द्वारा अपनी रिपोर्ट में सामाजिक एवं शैक्षणिक आधार पर 3743 पिछड़ी जातियों की पहचान की गई। जिनकी कुल आबादी भारतीय आबादी की लगभग 52% थी (अनुसूचित जाति एवं जनजाति के अलावा)।
- दस वर्ष बाद 1990 में वी. पी. सरकार द्वारा सरकारी सेवाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की गई।
- वर्ष 1991 में पी. वी. नरसिम्हा राव सरकार द्वारा 27% आरक्षण के अलावा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये 10% आरक्षण की व्यवस्था की गई।
- इन प्रावधानों को प्रसिद्ध ‘इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले’ (वर्ष 1992) में सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, जहाँ अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये आरक्षण व्यवस्था को बनाए रखा गया परंतु आर्थिक आधार पर दिये गए 10% आरक्षण के प्रावधान को निरस्त कर दिया गया।
इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में निर्णय:
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50% सीमा पर पुनर्विचार की आवश्यकता:
- इंदिरा साहनी निर्णय का उल्लंघन:
- सर्वोच्च न्यायालय में दायर अनेक याचिकाओं के माध्यम से यह तर्क दिया कि मराठा आरक्षण कानून वर्ष 1992 में ‘इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के मामले’ में सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों वाली पीठ द्वारा निर्धारित आरक्षण की 50% सीमा का उल्लंघन करता है।
- इंदिरा साहनी मामले में दिया गया निर्णय लगभग 30 वर्ष पहले किया गया था, अत: इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
- पिछड़े वर्गों की उच्च जनसंख्या:
- ‘द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ के अनुसार, सामाजिक एवं शैक्षणिक आधार पर लगभग 52% आबादी पिछड़ी थी (अनुसूचित जाति एवं जनजाति के अलावा)।
- महाराष्ट्र में 85% प्रतिशत लोग पिछड़े वर्गों से संबंधित हैं। इसी प्रकार अन्य राज्यों में भी पिछड़े लोगों का प्रतिशत 50% की सीमा से अधिक है।
- 28 राज्यों द्वारा अपने यहाँ संबंधित पिछड़े वर्गों को आरक्षण प्रदान करने के लिये 50% की कोटा सीमा का उल्लंघन किया गया है।
- 103वाँ संविधान संशोधन:
- इस संवैधानिक संशोधन के माध्यम से आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये 10% कोटा प्रदान किया गया है। न्यायालय को इस 10% कोटे को समाहित करते हुए कोटे पर 50% की सीमा पर फिर से विचार करना चाहिये।
आगे की राह:
- अनुच्छेद 15 (4) और अनुच्छेद 16 (4) की व्याख्या इंदिरा साहनी (निर्णय) के संदर्भ में की जानी चाहिये।
- 102 वें संवैधानिक संशोधन के अनुसार, आरक्षण केवल तभी दिया जा सकता है जब किसी विशेष समुदाय का नाम राष्ट्रपति द्वारा तैयार की गई सूची में हो। अत: इसका पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- 102 वां संविधान संशोधन अधिनियम- 2018 'राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग' (NCBC) को संवैधानिक दर्जा प्रदान करता है।
अनुच्छेद 15(4):
अनुच्छेद 16 (4):
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