भारतीय अर्थव्यवस्था
चीनी विदेशी पोर्टफोलियो निवेश की जाँच में सख्ती
- 21 Apr 2020
- 10 min read
प्रीलिम्स के लिये:विदेशी पोर्टफोलियो निवेश मेन्स के लिये:विदेशी निवेश का विनियमन, COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई चुनौतियों से निपटने हेतु सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India-SEBI) ने विदेशी निवेश से जुड़े संरक्षक बैंकों को चीन से आने वाले विदेशी निवेश की निगरानी में वृद्धि करने को कहा है। सेबी ने भारतीय कंपनियों में चीनी नागरिकों या संस्थाओं के निवेश को रोकने के लिये ये निर्देश जारी किये हैं।
मुख्य बिंदु:
- सेबी ने संरक्षक बैंकों से चीन और हाॅन्गकाॅन्ग के साथ 11 अन्य एशियाई देशों से भारतीय कंपनियों में किये गए ‘विदेशी पोर्टफोलियो निवेश’ (Foreign Portfolio Investment- FPI) का विवरण मांगा है।
- निवेश के क्षेत्र में संरक्षक बैंक या कस्टोडियन बैंक (Custodian Bank) से आशय उन वित्तीय संस्थाओं से है, जो चोरी या धोखाधड़ी जैसे नुकसानों को कम करने के लिये ग्राहक की प्रतिभूतियों को सुरक्षित रखने का कार्य करती हैं।
- कस्टोडियन बैंक प्रतिभूतियों और अन्य संपत्तियों को इलेक्ट्रॉनिक या भौतिक रूप में सुरक्षित रखता है।
- स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, भारतीय स्टेट बैंक, स्टेट स्ट्रीट बैंक एंड ट्रस्ट और स्टॉक होल्डिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, आदि भारतीय कस्टोडियन बैंक के कुछ उदाहरण हैं।
- सेबी द्वारा संरक्षक बैंकों से विदेशी निवेश के संदर्भ में मांगी गई जानकारियों में से कुछ निम्नलिखित है:
- यदि इन फंड्स का नियंत्रण चीनी निवेशकों द्वारा किया जा रहा है।
- यदि फंड का संचालक चिन्हित 13 देशों से सक्रिय है।
- यदि फंड का लाभांश प्राप्त करने वाले निवेशकर्त्ता चिन्हित 13 देशों से संबंधित हैं, आदि।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश
(Foreign Portfolio Investment- FPI)
- FPI किसी व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा किसी दूसरे देश की कंपनी में किया गया वह निवेश है, जिसके तहत वह संबंधित कंपनी के शेयर या बाॅण्ड खरीदता है अथवा उसे ऋण उपलब्ध कराता है।
- FPI के तहत निवेशक शेयर के लाभांश या ऋण पर मिलने वाले ब्याज के रूप में लाभ प्राप्त करते हैं।
- FPI में निवेशक ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ के विपरीत कंपनी के प्रबंधन (उत्पादन, विपणन आदि) में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं होता है।
- भारत में विदेशी निवेशकों को FPI के तहत किसी कंपनी में 10% तक के निवेश की अनुमति दी गई है।
FPI पर सेबी की सख्ती का कारण:
- COVID-19 की महामारी तथा इसके प्रसार के नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन के कारण देश में व्यावसायिक गतिविधियों में कमी आई है जिससे कई कंपनियों के शेयर की कीमतों में काफी गिरावट हुई है।
- ध्यातव्य है कि हाल ही में भारत सरकार ने COVID-19 के कारण उत्पन्न हुए आर्थिक दबाव के बीच भारतीय कंपनियों के ‘अवसरवादी अधिग्रहण’ (Opportunistic Takeovers/Acquisitions) को रोकने के लिये भारत की थल सीमा से जुड़े देशों से FDI हेतु सरकार की अनुमति को अनिवार्य कर दिया था।
- सेबी द्वारा FPI के तहत विदेशी निवेश की जाँच करने का उद्देश्य सरकार द्वारा भारतीय कंपनियों के ‘अवसरवादी अधिग्रहण’ को रोकने की पहल को मज़बूत करना है।
- वर्तमान में पोर्टफोलियो निवेश के संदर्भ में किसी विशेष प्रतिबंध के अभाव में चीनी संस्थाएँ भारतीय कंपनियों में 10% तक शेयर खरीद सकती है।
- पिछले कुछ वर्षों में भारतीय कंपनियों में चीन से होने वाले निवेश में भारी वृद्धि हुई है, वर्तमान में चीन के 16 विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारत में पंजीकृत हैं और इनका शीर्ष भारतीय स्टॉक में निवेश लगभग 1.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है।
- गौरतलब है कि FDI का विनियमन वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) द्वारा और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश का विनियमन सेबी द्वारा किया जाता है।
वैश्विक परिदृश्य:
- वर्तमान में वैश्विक स्तर पर COVID-19 की महामारी के कारण भारत की ही तरह विश्व के कई अन्य देशों में भी उद्योगों और व्यावसायिक संस्थानों को आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
- पिछले दो महीनों में जर्मनी, ऑस्ट्रिया और स्पेन जैसे देशों ने खराब आर्थिक स्थिति के बीच विदेशी निवेशकों द्वारा स्थानीय कंपनियों के द्वेषपूर्ण या अवसरवादी अधिग्रहण को रोकने के लिये विदेशी निवेश की नीतियों में सख्ती की है।
- वर्तमान आर्थिक चुनौतियों के बीच स्थानीय कंपनियों के हितों की रक्षा के लिये यूरोपीय संघ ने विशेष दिशा-निर्देश जारी किये हैं और इटली ने भी कमज़ोर/संवेदनशील क्षेत्रों में निवेश को सीमित किया है।
- अमेरिका (USA) में पहले से ही एक ‘इंटर एजेंसी कमिटी’ (Inter-Agency Committee) विद्यमान है जो विदेशी अधिग्रहण के मामलों की समीक्षा करती है।
लाभ:
- वर्तमान में COVID-19 की चुनौती के दौरान FPI की निगरानी के संदर्भ में सेबी की पहल से भारतीय कंपनियों के अवसरवादी अधिग्रहण की गतिविधियों को रोकने में सहायता प्राप्त होगी।
- हाल के वर्षों में चीनी निजी क्षेत्र के निवेशकों व संस्थाओं द्वारा भारतीय कंपनियों में बड़ा निवेश कई मामलों में चिंता का कारण बना हुआ था क्योंकि चीन की निजी कंपनियों और चीनी सरकार द्वारा संरक्षित कंपनियों में अंतर करना बहुत ही कठिन है।
- भारत में चीनी निवेशकों द्वारा किये गए निवेश का एक बड़ा भाग मोबाईल और इंटरनेट जैसे क्षेत्रों से संबंधित है, वर्तमान में इस क्षेत्र में बदलती तकनीकी एवं कठोर कानूनों के अभाव में लोगों की निजी जानकारी और अन्य ज़रूरी डेटा की सुरक्षा का खतरा उत्पन्न हुआ है, ऐसे में यह आवश्यक है कि विदेशी निवेश की बेहतर जाँच कर इंटरनेट तथा डेटा क्षेत्र की बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
चुनौतियाँ:
- विशेषज्ञों के अनुसार, मात्र निगरानी प्रक्रिया में सख्ती से कंपनियों की निवेश प्रकिया में व्याप्त कमियों को दूर नहीं किया जा सकता है।
- FDI पर सरकार की सख्ती के बाद FPI के संदर्भ में सेबी द्वारा जारी निर्देशों में अस्पष्टता के कारण निवेशकों में तनाव बढ़ेगा और इससे विदेशी निवेश में गिरावट आने की संभावना है।
निष्कर्ष:
भारत की थल सीमा से जुड़े देशों से आने वाले FDI के लिये सरकार की अनुमति को अनिवार्य बनाए जाने के बाद, FPI की जाँच में वृद्धि के सेबी के निर्देश से, COVID-19 महामारी के दौरान, भारतीय कंपनियों के कम मूल्य पर अधिग्रहण के प्रयासों पर अंकुश लगाने में सहायता मिलेगी। साथ ही इन प्रावधानों से भारतीय बाज़ार में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप की बेहतर निगरानी भी की जा सकेगी। परंतु निवेश संबंधी नियमों में सख्ती से चीन के साथ अन्य देशों से आने वाले विदेशी निवेश में कमी आ सकती है अतः सेबी को जल्द ही निवेशकों के बीच इन प्रावधानों को स्पष्ट करना चाहिये जिससे आवश्यक कानूनी प्रक्रिया को अपनाते हुए विदेशी निवेश को जारी रखा जा सके।