डेली न्यूज़ (26 Oct, 2020)



इज़राइल-सूडान शांति समझौता

प्रिलिम्स के लिये:

 इज़राइल-सूडान शांति समझौता 

मेन्स के लिये:

 इज़राइल-सूडान शांति समझौता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में  इज़राइल और सूडान ने अमेरिका के 'वाशिंगटन-ब्रोकेड समझौते' (Washington-brokered Deal) के तहत रिश्तों को सामान्य बनाने की दिशा में काम करने पर सहमति व्यक्त की है।

प्रमुख बिंदु:

sudan

  • इस समझौते के तहत सूडान, पिछले दो माह में इज़राइल के साथ सामान्य संबंध स्थापित करने वाला तीसरा अरब देश बन जाएगा।
  • समझौते के हिस्से के रूप में सूडान को अमेरिकी सरकार की 'ब्लैक लिस्ट' से हटाने की दिशा में कदम उठाए गए हैं।
    • हाल ही में ट्रंप प्रशासन द्वारा सूडान को आतंकवाद की 'ब्लैक लिस्ट' से औपचारिक रूप से हटाने की घोषणा की गई थी। हालाँकि राष्ट्रपति के निर्णय को अभी काॅन्ग्रेसकी मंज़ूरी मिलना आवश्यक है। 
  • सूडान और इज़राइल द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ आक्रामक नीति का त्याग करने और आर्थिक एवं व्यापार संबंधों को शुरू करने पर सहमति व्यक्त की गई है। समझौते के तहत मुख्यत: कृषि पर प्रारंभिक ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

सूडान-इज़राइल संबंध:

  • सूडान द्वारा वर्ष 1948 में इज़राइल के निर्माण और वर्ष 1967 के 'छह दिवसीय युद्ध' के दौरान युद्ध में इज़राइल के खिलाफ लड़ने के लिये सेना भेजी गई थी।
    • वर्ष 1948 में हुए प्रथम अरब-इज़राइल युद्ध में जॉर्डन ने 'वेस्ट बैंक' क्षेत्र पर अधिकार कर लिया परंतु वर्ष 1967 में हुए तीसरे अरब-इज़राइल युद्ध (छः दिवसीय युद्ध) में अरब देशों की हार के बाद इज़राइल ने इसे पुनः प्राप्त कर लिया।
  • 1970 के दशक में इज़राइल द्वारा सूडानी विद्रोहियों को खार्तूम (सूडान की राजधानी) सरकार के खिलाफ लड़ने का समर्थन किया गया था। 
  • वर्ष 2019 में सूडान के तानाशाह शासक उमर अल-बशीर द्वारा अपने पतन से पूर्व ईरान के स्थान पर सऊदी अरब के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित किये गए। 
  •  हाल के वर्षों में इज़राइल और सूडान की खुफिया सेवाओं के बीच संपर्क में वृद्धि हुई है। सूडान द्वारा इज़राइल को अपने क्षेत्र में उड़ान भरने की अनुमति दी गई है।

वैश्विक प्रतिक्रिया:

  • अमेरिकी सहयोगी देश: जर्मनी, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन सहित अमेरिकी सहयोगियों ने समझौते का स्वागत किया है। इन देशों का मानना है कि पश्चिम एशिया में स्थिरता को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण से समझौता महत्त्वपूर्ण है।
  • फिलिस्तीन: फिलिस्तीनी नेताओं द्वारा समझौते की कड़ी आलोचना की गई है। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि पूर्व में भी फिलिस्तीन ने यूएई और बहरीन द्वारा इज़राइल के साथ किये गए शांति समझौते की आलोचना की थी। 
  • ईरान: ईरान, फिलिस्तीन का प्रमुख समर्थक रहा है। ईरान ने कहा कि सूडान ने समझौते का समर्थन करके शर्मनाक कार्य किया है। ईरान का मानना है कि सूडान द्वारा समझौते का समर्थन इसलिये किया गया है क्योंकि इसके बाद उसे आतंकवादियों की 'ब्लैक लिस्ट' से बाहर कर दिया जाएगा तथा फिलिस्तीनियों के खिलाफ अपराधों पर ईरान अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करेगा।  

समझौते का महत्त्व:

  • यूएई और बहरीन के अलावा सूडान के साथ किये जाने वाले शांति समझौते का  इज़राइल पर सकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव होगा। जो देश पूर्व में  इज़राइल का व्यापक विरोध करते थे, वे देश वर्तमान में इसके मज़बूत समर्थक बनकर उभरे हैं।
  • सूडान वर्तमान में आंतरिक संघर्ष, राजनीतिक उथल-पुथल, चरमराती अर्थव्यवस्था, भोजन और ईंधन की कीमतों में वृद्धि जैसी समस्याओं का सामना कर रहा है। समझौते के क्रियान्वयन से सूडान अब अमेरिका से ऋण और आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकेगा।

समझौते के समक्ष चुनौतियाँ:

  • अमेरिका और सूडान के बीच आतंकवाद के प्रायोजकों की 'ब्लैक लिस्ट' के निर्धारण पर टकराव देखने को मिल सकता है क्योंकि अमेरिका चाहता है कि शांति समझौते के आवश्यक कानूनी दावों का निपटान 'ब्लैक लिस्ट' के निर्धारण से पहले ही कर लिया जाए।
    • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि अमेरिका द्वारा सूडान के तानाशाह पर ओसामा बिन लादेन समूह सहित अनेक अन्य आतंकवादियों को महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान करने का आरोप लगाया गया था

निष्कर्ष: 

  • शांति समझौते को लागू किया जाना पूर्वी अफ्रीका में अमेरिका की भूमिका को निर्धारित करेगा परंतु सूडान में आतंकवाद के खिलाफ प्रतिरोध को देखते हुए सूडान को आतंकवादियों की 'ब्लैक लिस्ट' से हटाने का निर्णय सूडान- इज़राइल शांति समझौते के आधार पर नहीं किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


सी-प्लेन सर्विस

प्रिलिम्स के लिये:

स्टेच्यू ऑफ यूनिटी, सी- प्लेन 

मेन्स के लिये

सी-प्लेन का आर्थिक महत्त्व

चर्चा में क्यों?

देश में पहली बार एक विशेष सेवा के रूप में 19 सीटर सी-प्लेन (Seaplane) जिसे गुजरात में साबरमती रिवरफ्रंट (Sabarmati Riverfront) और सरदार वल्लभभाई पटेल की ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ (Statue of Unity) के बीच उड़ानों के लिये इस्तेमाल किया जाएगा, रविवार को मालदीव से भारत पहुँचा।

Seaplane

प्रमुख बिंदु:

  • समुद्र में संचालन योग्य यह विमान अहमदाबाद जाने के रास्ते में कोच्चि पहुँचा और वेंदुरुथी चैनल (Venduruthy Channel) में सुरक्षित उतरा, जहाँ नर्मदा ज़िले में साबरमती रिवरफ्रंट और स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के बीच देश की पहली सी-प्लेन सेवा शुरू की जाएगी। 
  • केंद्रीय शिपिंग राज्य मंत्री मनसुख मंडाविया के अनुसार, यदि सब सुचारु रूप से रहा तो सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती पर 31 अक्तूबर, 2020 से यह सेवा शुरू होने की संभावना है।  
  • स्पाइसजेट कंपनी ने ट्विन ओटर (Twin Otter) 300 सी-प्लेन को किराए पर लिया है, जिसमें एक बार में 12 यात्री उड़ान भर सकेंगे। 

भारत की पहली सी-प्लेन परियोजना:

  • देश का पहला सी-प्लेन प्रोजेक्ट केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय के एक निर्देश का हिस्सा है। 
  • इस निर्देश के अनुसार, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (Airports Authority of India- AAI) ने गुजरात, असम, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की राज्य सरकारों तथा अंडमान एवं निकोबार के प्रशासन से पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये पानी के एयरोड्रोम स्थापित करने हेतु संभावित स्थानों का प्रस्ताव प्रस्तुत करने का अनुरोध किया गया है।

सी-प्लेन सर्विस का पर्यावरण पर प्रभाव:

  • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2006 और इसके संशोधनों की अनुसूची में जल एयरोड्रम एक सूचीबद्ध परियोजना/गतिविधि नहीं है।
  • हालाँकि एक विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति की राय यह थी कि वाटर एयरोड्रम परियोजना के तहत प्रस्तावित गतिविधियों के एक हवाई अड्डे के समान प्रभाव हो सकते हैं।
  • नर्मदा में शूलपाणेश्वर वन्यजीव अभयारण्य प्रस्तावित परियोजना स्थल से दक्षिण-पश्चिम दिशा में 2.1 किमी की अनुमानित हवाई दूरी पर स्थित है, जबकि निकटतम आरक्षित वन पूर्व दिशा में 4.7 मीटर की दूरी पर स्थित है, जो स्थानीय संवेदनशील पशु वर्ग प्रजातियों के संरक्षण के लिये जाना जाता है। 

शूलपाणेश्वर वन्यजीव अभयारण्य

(Shoolpaneshwar Wildlife Sanctuary):

  • शूलपाणेश्वर वन्यजीव अभयारण्य गुजरात राज्य के नर्मदा ज़िले में स्थित है। इसमें पुष्पीय पौधों की लगभग 575 प्रजातियाँ मौजूद हैं। इसमें पतझड़ वन के साथ-साथ अर्द्ध-सदाबहारीय पेड़ों की बहुतायत है। इसमें बाँस के पेड़ भी बड़ी संख्या में हैं। यह अभयारण्य 607.70 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें रीसस स्लॉथ बियर, तेंदुआ, मकाक, चौसिंघा , बार्किंग डीयर, छिपकली और हर्पेटो जीव जैसी प्रजातियों की व्यापक किस्में मौजूद हैं।
  • इस अभयारण्य को वर्ष 1982 में 150.87 वर्ग किमी. के क्षेत्र में बनाया गया था। इसके बाद वर्ष 1987 और 1989 में अभयारण्य का क्षेत्रफल 607.70 वर्ग किमी. तक विस्तारित कर दिया गया। 

Shoolpaneshwar

  • भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (Inland Waterways Authority of India- IWAI) द्वारा डाइक-3 को अंतिम रूप देने से पहले बाथिमेट्रिक (Bathymetric) और हाइड्रोग्राफिक (Hydrographic) सर्वेक्षण किया गया जहाँ एक चट्टानयुक्त तालाब पाया गया जिसे लोकप्रिय रूप से ‘मगर तालाब’ (Magar Talav) कहा जाता है क्योंकि यह मगरमच्छों से प्रभावित है।
  • जनवरी 2019 से इस तालाब से मगरमच्छों को निकालने का काम जारी है, जिसके बाद मगरमच्छों का डाइक 1 और 2 से फिर से प्रवेश रोकने के लिये सीमा की फेंसिंग कार्य को भी पूरा किया गया।

सी-प्लेन:

  • सी-प्लेन एक निश्चित पंख वाला हवाई जहाज़ है जो पानी पर उतरने और उड़ने के लिये बनाया गया है। 
  • यह एक नाव की उपयोगिता के साथ एक हवाई जहाज़ की गति प्रदान करता है।
  • सी-प्लेन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
  1. फ्लाइंग बोट (Flying Boats)
  2. फ्लोटप्लेन (Floatplanes)

टर्मिनल के लिये साइट को अंतिम रूप दे दिया गया है क्योंकि इसके आयाम सी-प्लेन को उतारने की आवश्यकताओं के अनुरूप हैं, जिसके लिये कम-से-कम छह फीट की गहराई के साथ एक जल निकाय में न्यूनतम 900 मीटर की चौड़ाई की आवश्यकता होती है।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


कश्मीर मुद्दा और पाकिस्तान का आक्रमण

प्रिलिम्स के लिये

पाक-अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान की भौगोलिक अवस्थिति

मेन्स के लिये

पाक-अधिकृत कश्मीर की मौजूदा स्थिति और भारत के लिये इसके निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

22 अक्तूबर, 1947 को जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तानी सेना समर्थित हमले और आम लोगों पर किये गए अत्याचार को प्रदर्शित करने के लिये केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी में एक संग्रहालय स्थापित करने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु

  • नई दिल्ली में स्थापित होने वाले इस संग्रहालय में कश्मीर में हिंसा तथा आतंक को बढ़ावा देने और यहाँ की संस्कृति को नष्ट करने में पाकिस्तान की भूमिका को उजागर किया जाएगा।
  • पाकिस्तानी सेना द्वारा समर्थित इस हमले के बाद तत्कालीन जम्मू-कश्मीर रियासत का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्ज़े में चला गया था और हज़ारों हिंदुओं एवं सिखों को भारत की ओर पलायन करना पड़ा था।
    • पलायन के अलावा हज़ारों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को इस हमले में अपनी जान गँवानी पड़ी थी।
  • उद्देश्य
    • इस संग्रहालय की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य आम लोगों को कश्मीर में आतंकवाद, अस्थिरता और अशांति फैलाने में पाकिस्तान की भूमिका के बारे में जानकारी देना है।

पाकिस्तान का आक्रमण

  • कश्मीर संकट के इतिहास की जड़ें वर्ष 1947 में खोजी जा सकती हैं, जब पाकिस्तान की सेना के इशारे पर तकरीबन 1000 आदिवासियों ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया था। 
  • दरअसल विभाजन के दौरान जम्मू-कश्मीर रियासत को भारत अथवा पाकिस्तान में शामिल होने का विकल्प दिया गया था, लेकिन उस समय के शासक महाराजा हरि सिंह ने इसे एक स्वतंत्र राज्य के रूप में रखने का फैसला किया।
  • 1947 में पाकिस्तान के पख्तून आदिवासियों ने जम्मू-कश्मीर पर हमला कर दिया, इस स्थिति से निपटने के लिये महाराजा ने तत्कालीन भारतीय गवर्नर-जनरल माउंटबेटन से सैन्य मदद मांगी।
    • ध्यातव्य है कि पाकिस्तानी सेना ने हमलावरों को आक्रमण करने के लिये रसद, हथियार और गोला-बारूद मुहैया कराए थे। इन्हें पाकिस्तान की सेना द्वारा निर्देश दिये जा रहे थे। 
  • 26 अक्तूबर, 1947 को आक्रमणकारी श्रीनगर के करीब बारामूला पहुँच गए तथा उन्होंने स्थानीय लोगों पर काफी अत्याचार किये और हिंदू तथा सिखों को पलायन के लिये मजबूर कर दिया।
  • अंत में जब महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार के विलय पत्र पर हस्ताक्षर किये तब जम्मू-कश्मीर औपचारिक रूप से भारत का हिस्सा बन गया।

पृष्ठभूमि 

  • वर्ष 1947 में भारत के विभाजन के पूर्व जम्मू-कश्मीर रियासत में कुल पाँच क्षेत्र शामिल थे: जम्मू, कश्मीर घाटी, लद्दाख, गिलगित वज़रात और गिलगित एजेंसी।
  • 22 अक्तूबर, 1947 में जब पाकिस्तान ने कश्मीर घाटी पर आक्रमण किया तब जम्मू-कश्मीर की रियासत का कुछ हिस्सा पाकिस्तान के पास चला गया, जबकि शेष हिस्सा भारत के पास रह गया। पाकिस्तान के पास जम्मू-कश्मीर रियासत का जो हिस्सा है उसे पाक-अधिकृत कश्मीर (PoK) के नाम से जाना जाता है।
  • पाकिस्तान के कब्ज़े वाला कश्मीर मुख्यतः दो हिस्सों में बँटा हुआ है-
  • पाक-अधिकृत कश्मीर (PoK) पश्चिम में पंजाब और खैबर-पख्तूनख्वा से, उत्तर-पश्चिम में अफगानिस्तान से, उत्तर में चीन के शिनजियांग प्रांत से और पूर्व में भारत के जम्मू-कश्मीर से अपनी सीमा साझा करता है, इसीलिये अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) का सामरिक महत्त्व काफी अधिक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत: ILO के शाषी निकाय का अध्यक्ष

प्रिलिम्स के लिये

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, ILO शाषी निकाय, ILO के प्रमुख अभिसमय 

मेन्स के लिये

भारत और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन

चर्चा में क्यों?

भारत और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization-ILO) के बीच 100 वर्षों के उपयोगी संबंधों के एक नए अध्याय को चिह्नित करते हुए भारत ने 35 वर्षों बाद अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के शाषी निकाय की अध्यक्षता ग्रहण की है।

प्रमुख बिंदु

  • श्रम और रोज़गार सचिव अपूर्वा चंद्रा को अक्तूबर 2020 से जून 2021 तक की अवधि के लिये ILO के शाषी निकाय का अध्यक्ष चुना गया है।
  • ILO के शाषी निकाय के अध्यक्ष का पद अंतर्राष्ट्रीय स्तर के महत्त्व का पद है। शाषी निकाय (Governing Body- GB) ILO का शीर्ष कार्यकारी निकाय है।
    • शाषी निकाय की बैठकें वर्ष में तीन बार मार्च, जून और नवंबर में आयोजित की जाती हैं। यह ILO नीति पर निर्णय लेता है, अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन के लिये एजेंडा निर्धारित करता है, सम्मेलन के दौरान प्रस्तुत करने के लिये कार्यक्रम प्रारूप तथा बजट को स्वीकार करता है तथा महानिदेशक (Director-General) का चुनाव करता है। 
    • ILO की व्यापक नीतियाँ अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन के माध्यम से निर्धारित की जाती हैं जिसका आयोजन प्रत्येक वर्ष एक बार जून में स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में किया जाता है। इसे प्रायः अंतर्राष्ट्रीय श्रम संसद के रूप में संदर्भित किया जाता है।
  • अपूर्वा चन्द्रा शाषी निकाय की आगामी बैठक की अध्यक्षता करेंगे जिसका आयोजन नवंबर 2020 में किया जाएगा। 
    • यह संगठित अथवा असंगठित क्षेत्र के सभी श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के सार्वभौमिकरण के संबंध में धारणा स्पष्ट करने के अलावा श्रम बाज़ार की कठोरता को दूर करने के लिये सरकार द्वारा की गई परिवर्तनकारी पहलों से प्रतिभागियों को अवगत कराने हेतु एक मंच प्रदान करेगा।
    • मज़दूरी, औद्योगिक संबंध, सामाजिक एवं व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थिति से संबंधित चार संहिताओं से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे श्रमिकों के हितों की रक्षा कर सकती हैं तथा व्यवसाय संचालन को सरल बनाकर उसमें सुधार कर सकती हैं।
      • हाल ही में भारतीय संसद ने औद्योगिक संबंधों, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थिति और सामाजिक सुरक्षा पर तीन श्रम संहिताएँ पारित की हैं जो देश के पुरातन श्रम कानूनों को सरल बनाने और श्रमिकों के लाभों से समझौता किये बिना आर्थिक गतिविधियों को गति देने के लिये प्रस्तावित हैं। 

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO)

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय संस्था है जिसकी स्थापना वर्ष 1919 में वर्साय की संधि द्वारा राष्ट्र संघ की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में की गई थी।
  • यह श्रम मानक निर्धारित करने, नीतियाँ विकसित करने एवं  सभी महिलाओं तथा पुरुषों के लिये सभ्य कार्य को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने हेतु 187 सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को एक साथ लाता है।
  • वर्ष 1946 में ILO, संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध पहली विशिष्ट एजेंसी बना।
  • ILO में कार्रवाई का मुख्य साधन अभिसमयों एवं समझौतों के रूप में अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों की स्थापना करना है।
    • अभिसमय अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और ऐसे उपकरण हैं, जो उन देशों के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी दायित्वों का निर्माण करते हैं जिनके द्वारा इनकी पुष्टि की जाती है।
    • इसकी अनुशंसाएँ गैर-बाध्यकारी हैं और राष्ट्रीय नीतियों तथा कार्यों को उन्मुख करने वाले दिशा-निर्देशों  का निर्धारण करती हैं।
  • वर्ष 1969 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।
  • यह वार्षिक विश्व रोज़गार और सामाजिक दृष्टिकोण (World Employment and Social Outlook- WESO) रुझान रिपोर्ट जारी करता है।

भारत और ILO:

  • भारत, ILO का संस्थापक सदस्य है और यह वर्ष 1922 से ILO के शाषी निकाय का स्थायी सदस्य रहा है। भारत में ILO का पहला कार्यालय वर्ष 1928 में शुरू हुआ था।
  • भारत ने ILO के 41 अभिसमयों की पुष्टि की है, जो कई अन्य देशों में मौजूद स्थिति की तुलना में कहीं अधिक बेहतर है।
  • भारत ने आठ प्रमुख/मौलिक ILO अभिसमयों में से 6 की पुष्टि की है। ये अभिसमय निम्नलिखित हैं:
    1. बलात् श्रम पर अभिसमय (संख्या 29)
    2. बलात् श्रम के उन्मूलन पर अभिसमय (संख्या 105)
    3. समान पारिश्रमिक पर अभिसमय (संख्या 100)
    4. भेदभाव (रोज़गार और व्यवसाय) पर अभिसमय (संख्या 111)
    5. न्यूनतम आयु पर अभिसमय (संख्या 138)
    6. बाल श्रम के सबसे विकृत स्वरूप पर अभिसमय (संख्या 182)
  • भारत ने दो प्रमुख/मौलिक अभिसमयों, अर्थात् संघ बनाने की स्वतंत्रता एवं संगठित होने के अधिकार की सुरक्षा पर अभिसमय, 1948 (संख्या 87) और संगठित एवं सामूहिक सौदेबाज़ी के अधिकार पर अभिसमय, 1949 (संख्या 98) की पुष्टि नहीं की है।
    • ILO की कन्वेंशन संख्या 87 एवं  98 की पुष्टि नहीं करने का मुख्य कारण सरकारी कर्मचारियों पर लगाए गए कुछ प्रतिबंध हैं।
  • ILO ने कोविड-19 के प्रकोप के कारण धीमी पड़ चुकी आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये कई भारतीय राज्यों द्वारा श्रम कानूनों में किये गए परिवर्तनों पर गहरी चिंता व्यक्त की है।

स्रोत: पी.आई.बी.


हिमालयन ब्राउन बियर

प्रिलिम्स के लिये: 

अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ, ज़ूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972, ग्लोबल वार्मिंग 

मेन्स के लिये:

वन्यजीव संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में अध्यन का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ज़ूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (Zoological Survey of India) के वैज्ञानिकों द्वारा पश्चिमी हिमालय में किये गए एक अध्ययन के परिणामों के आधार इस बात की  संभावना व्यक्त की है कि वर्ष 2050 तक हिमालयन ब्राउन बियर (Himalayan Brown Bear) के निवास स्थान में लगभग 73% की भारी गिरावट आ सकती है। 

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प्रमुख बिंदु:  

  • यह अध्ययन हिमालयन ब्राउन बियर जिसका वैज्ञानिक नाम उर्सस आर्कटोस इसाबेलिनस (Ursus Arctos Isabellinus) है, के संदर्भ में किया गया। 
    • अध्ययन के परिणामों के आधार पर यह आशंका जताई गई है कि  निकट भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण इनके आवास (Habitat ) एवं जैविक गलियारों (Biological Corridors) में कमी देखने को मिल सकती है।  
  • अध्ययन के अनुसार, संरक्षित क्षेत्रों (Protected Areas) के बीच कनेक्टिविटी के नुकसान/कमी के चलते 13 संरक्षित क्षेत्रों में स्थित निवास स्थानों (Habitat) में क्षति देखने को मिलेगी जिनमें से आठ निवास स्थान वर्ष 2050 तक पूरी तरह से निर्जन/आबादी रहित (Uninhabitable)  हो जाएंगे।
  • इस अध्ययन में हिमालयन ब्राउन बियर को एक उदाहरण के रूप में लेने का मुख्य कारण यह है कि यह  उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाया जाने वाला एक बड़े मांसाहारी जानवर है। 
    • जिन ऊँचाई वाले क्षेत्रों में बियर/भालू की यह प्रजाति पाई जाती है वह ग्लोबल वार्मिंग की दृष्टि से सबसे अधिक असुरक्षित क्षेत्र है क्योंकि ये क्षेत्र हिमालय के अन्य ऊँचाई वाले क्षेत्रों की तुलना में अत्यधिक तेज़ी से गर्म हो रहे हैं।
  • इस अध्ययन को अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका (International Science Journal) में ‘हिमालयन ब्राउन बियर के संरक्षण के लिये संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क की अनुकूल स्थानिक योजना’(Adaptive spatial planning of protected area network for conserving the Himalayan Brown Bear) नामक शीर्षक में प्रकाशित किया गया है।

हिमालयन ब्राउन बियर

(Himalayan Brown Bear):

  • हिमालयन ब्राउन बियर हिमालय के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में सबसे बड़े मांसाहारी जीवों में से एक है।
  • भारत में यह पश्चिमी हिमालयी राज्यों जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में 3000-5000 मीटर की ऊँचाई पर पाया जाता है।
  • इसकी छोटी एवं अलग-अलग आबादी  भारत और पाकिस्तान के दूरदराज़ के ऊँचे  हिमालय पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) द्वारा हिमालयन ब्राउन बियर को सुभेद्य (Vulnerable) प्रजाति की  सूची में शामिल किया गया है।
  • यह भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 के तहत सूचीबद्ध है।

ज़ूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया:

  • इसकी स्थापना 1 जुलाई, 1916 में की गई थी।
  • इसका उद्देश्य असाधारण एवं प्राकृतिक रूप से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण  विभिन्न जानवरों से संबंधित सर्वेक्षण एवं अनुसंधान द्वारा जानकारी इकट्ठा करना है। 

उद्देश्य:

  • अध्ययन का मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिकों को  पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में  प्रजातियों के संरक्षण के लिये  एक संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क विकसित करने हेतु  अनुकूल स्थानिक योजना का सुझाव देने के लिये  प्रेरित करना है।   
  •  संरक्षित क्षेत्रों के लिये ‘अनुकूल स्थानिक योजना’ का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के जोखिमों और अनिश्चितता को कम करना है।

स्रोत: द हिंदू


इंटीग्रिटी पैक्ट

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय सतर्कता आयोग, भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988

मेन्स के लिये: 

सरकारी संगठनों में पारदर्शिता एवं जबावदेहिता सुनिश्चित करने में संदर्भ में संशोधन का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission-CVC) ने सरकारी संगठनों में खरीद गतिविधियों के लिये ‘इंटीग्रिटी पैक्ट/समझौता ’(Integrity Pact) अपनाने के लिये मानक संचालन प्रक्रिया (Standard Operating Procedure- SOP) में संशोधन किया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • नवीनतम आदेश जनवरी 2017 में जारी की गई मानक संचालन प्रक्रिया को संशोधित करता है।
  • CVC द्वारा एक संगठन में इंटीग्रिटी एक्सटर्नल मॉनीटर्स (Integrity External Monitors- IEMs) के कार्यकाल को अधिकतम तीन वर्ष तक के लिये सीमित किया गया है।

इंटीग्रिटी पैक्ट:

  • इंटीग्रिटी पैक्ट एक प्रकार का सतर्कता उपकरण है, यह भावी विक्रेताओं/ बोलीदाताओं एवं खरीदार के मध्य एक समझौते की परिकल्पना प्रस्तुत करता है जो अनुबंध के किसी भी पहलू पर भ्रष्ट प्रभाव का प्रयोग रोकने के लिये दोनों पक्षों को प्रतिबद्ध करता है।
    • यह पैक्ट/समझौता सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता, इक्विटी और प्रतिस्पर्द्धा को सुनिश्चित करता है। 

इंटीग्रिटी एक्सटर्नल मॉनीटर्स:

  • इंटीग्रिटी एक्सटर्नल मॉनीटर्स (Integrity External Monitors-IEM) द्वारा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से दस्तावेज़ों की समीक्षा की जाती है, साथ ही इस बात का निर्धारण किया जाता है कि पार्टियों ने समझौते के तहत अपने दायित्वों का पालन सही से किया है या नहीं।
  • अगर IEM को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 के प्रावधानों के तहत गंभीर अनियमितताएँ देखने को मिलती हैं, तो वे संबंधित संगठन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी या सीधे मुख्य सतर्कता अधिकारी (Chief Vigilance Officer- CVO) और CVC को इससे संबंधित रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं। 

IEM की प्राथमिकता:

  • संशोधित प्रावधान: संशोधित प्रावधान के तहत IEM का विकल्प सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (Public Sector Undertakings- PSU) के अधिकारियों तक ही सीमित होगा जो सचिव स्तर से केंद्र सरकार के पदों से सेवानिवृत्त हुए हैं या जिनका वेतनमान समान हैं।
    • PSUs के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक (Chairman and Managing Directors (CMDs) पद के लिये सेवानिवृत्त अधिकारियों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, बीमा कंपनियों और वित्तीय संस्थानों में अनुसूची 'ए' कंपनियों तथा प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी स्तर के अधिकारी और कम-से-कम अतिरिक्त सचिव स्तर या इसके समकक्ष अधिकारी नियुक्ति के पात्र होंगे।
    • सशस्त्र बलों के अधिकारी जो जनरल के समकक्ष रैंक से सेवानिवृत्त हुए हों , की नियुक्ति पर भी विचार किया जा सकता है।
    • उन व्यक्तियों को वरीयता दी जाएगी जिन्होंने किसी अन्य क्षेत्र में कार्य किया हो या किसी संगठन में मुख्य सतर्कता अधिकारी (Chief Vigilance Officer-CVO) के रूप में कार्यरत रहे हों।
  • पूर्व प्रावधान: वर्ष 2017 के आदेश के तहत वे अधिकारी जो केंद्र सरकार के अतिरिक्त सचिव स्तर पर या इससे ऊपर के स्तर या समकक्ष वेतनमान से सेवानिवृत्त हुए हों, वे सार्वजनिक उपक्रमों, अनुसूची 'ए' कंपनियों, पीएसबी, बीमा कंपनियों और वित्तीय संस्थानों में बोर्ड स्तर के अधिकारी पद के लिये पात्र थे। 
    • सशस्त्र बलों के अधिकारी जो लेफ्टिनेंट-जनरल और उससे ऊपर के पद से सेवानिवृत्त हुए हों, उनकी नियुक्ति पर भी विचार किया जा सकता था।

IEM के रूप में नियुक्ति:

  • संशोधित प्रावधान के तहत IEM के रूप में नियुक्ति के लिये संबंधित मंत्रालय, विभाग या संगठन को CVC के लिये उपयुक्त व्यक्तियों के पैनल को अग्रेषित करना होगा।
  • पूर्व प्रावधान: वर्ष 2017 के आदेश के अनुसार, CVC द्वारा बनाए गए पैनल में पहले से ही नियुक्त लोग शामिल हो सकते हैं या वे अन्य उचित व्यक्तियों के नामों का प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकते हैं।
  • कार्यकाल:
    • संशोधित प्रावधान के अनुसार, IEM को किसी संगठन में तीन साल की अवधि के लिये नियुक्त किया जाएगा।
    • पूर्व प्रावधान: वर्ष 2017 के आदेश के अनुसार IEM का प्रारंभिक कार्यकाल तीन वर्ष के लिये था जिसे संबंधित संगठन से CVC द्वारा प्राप्त अनुरोध पर दो वर्ष के दूसरे कार्यकाल के लिये बढ़ाया जा सकता था।

केंद्रीय सतर्कता आयोग:

  • CVC एक सर्वोच्च सतर्कता संस्थान है, जो किसी भी कार्यकारी प्राधिकरण से मुक्त है
  • यह केंद्र सरकार के अधीन सभी सतर्कता गतिविधियों की निगरानी के अलावा केंद्र सरकार के संगठनों में विभिन्न अधिकारियों को योजना बनाने, क्रियान्वयन, समीक्षा करने और उनके सतर्कता कार्यों में सुधार करने से संबंधित सलाह प्रदान करता है।
    •  यह एक स्वतंत्र निकाय है जिसकी जबावदेहिता केवल संसद के प्रति है।
  • इसकी स्थापना फरवरी 1964 में के. संथानम (K. Santhanam) की अध्यक्षता में गठित भ्रष्टाचार निरोधक समिति की सिफारिशों के आधार पर की गई थी।
  • संसद द्वारा केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 (CVC Act) को CVC पर वैधानिक स्थिति प्रदान करते हुए अधिनियमित किया गया है।

स्रोत: द हिंदू


गर्भपात और पोलैंड में विरोध प्रदर्शन

प्रिलिम्स के लिये

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम, 1971

मेन्स के लिये

पोलैंड में विरोध प्रदर्शन और उसके कारण, भारत में गर्भपात संबंधी कानून

चर्चा में क्यों?

बीते कुछ दिनों से कानूनी गर्भपात के संबंध में पोलैंड की एक अदालत के निर्णय को लेकर हज़ारों महिलाएँ सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रही हैं।

प्रमुख बिंदु

  • न्यायालय का निर्णय
    • 22 अक्तूबर, 2020 को पोलैंड के संवैधानिक न्यायाधिकरण ने अपने एक निर्णय में कहा कि गर्भपात संबंधी पोलैंड का मौजूदा कानून विकृत भ्रूणों (Malformed Foetuses) यानी ऐसे भ्रूणों के गर्भपात की अनुमति देता है, जो पूरी तरह से विकसित नहीं हुए हैं अथवा उनमें कोई विकार है, इस तरह यह कानून पूर्णतः असंवैधानिक है।
    • संवैधानिक न्यायाधिकरण की अध्यक्ष जूलिया प्रेज़लेबस्का ने इस संबंध में निर्णय देते हुए कहा कि भ्रूण की विकृतियों के मामले में गर्भपात की अनुमति देना, एक अजन्मे बच्चे के संबंध में सुजनन की प्रथाओं (Augenic Practices) को वैध बनाता है।
    • संवैधानिक न्यायाधिकरण ने तर्क दिया कि चूँकि पोलैंड के संविधान में जीवन के अधिकार की गारंटी दी गई है, इसलिये भ्रूण की विकृति के आधार पर गर्भपात की अनुमति देना भी भेदभाव का ही एक रूप है।
    • ध्यातव्य है कि बीते वर्ष पोलैंड के सत्तारुढ़ दल के कुछ सांसदों ने पहली बार वर्ष 1993 में बने गर्भपात कानून को संवैधानिक चुनौती दी थी, जिसमें भ्रूण के दोष अथवा विकृति के आधार पर गर्भपात की अनुमति दी गई थी।
    • पोलैंड के गर्भपात कानूनों को पहले से ही यूरोप के सबसे कठोर गर्भपात कानूनों में से एक माना जाता है, वहीं अब संवैधानिक न्यायाधिकरण का निर्णय लागू होने के बाद पोलैंड में केवल दुष्कर्म और अनाचार के मामलों में या फिर जब गर्भावस्था से माँ के जीवन को खतरा हो तभी गर्भपात की अनुमति दी जाएगी।
  • पोलैंड की महिलाओं के लिये इस निर्णय के निहितार्थ
    • बीबीसी (BBC) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पोलैंड में प्रत्येक वर्ष 2,000 से अधिक कानूनी गर्भपात किये जाते हैं, जिनमें से अधिकांश भ्रूण विकृति के कारण होते हैं।
    • रिपोर्ट की मानें तो बलात्कार, अनाचार के मामलों में या जहाँ माँ के जीवन पर खतरा हो ऐसे सभी मामलों में होने वाले गर्भपातों की संख्या कुल गर्भपातों का केवल 2 प्रतिशत है।
      • इस प्रकार अदालत के इस निर्णय से पोलैंड में एक प्रकार से गर्भपात पर पूर्णतः प्रतिबंध लग गया है।
    • महिला अधिकारों के लिये कार्य करने वाले समूहों और संगठनों के मुताबिक, प्रत्येक वर्ष पोलैंड की लगभग 80,000 से 120,000 महिलाएँ या तो गर्भपात के लिये विदेश जाती हैं या फिर कठोर गर्भपात कानूनों के मद्देनज़र अवैध गर्भपात कराती हैं।
    • इस प्रकार यदि गर्भपात संबंधी कानूनों को और कठोर कर दिया जाता है तो इससे अवैध रूप से होने वाले गर्भपतों की संख्या में बढ़ोतरी होगी।

पोलैंड में गर्भपात को लेकर विरोध प्रदर्शन- पृष्ठभूमि

  • ज्ञात हो कि यह पहली बार नहीं है जब पोलैंड में कठोर गर्भपात कानूनों के विरोध में प्रदर्शन किये जा रहे हैं। इससे पूर्व वर्ष 2016 में गर्भपात पर पूर्ण प्रतिबंध के प्रस्ताव के विरोध में हज़ारों महिलाओं ने हड़ताल की थी।
    • इस प्रदर्शन के दौरान सभी महिलाओं ने काले कपड़े पहनकर विरोध प्रकट किया था, जो इस बात का प्रतीक था कि महिलाएँ अपने प्रजनन अधिकारों की मृत्यु का शोक मना रही थीं।
  • यदि गर्भपात संबंधी इस कानून के मसौदे को लागू कर दिया जाता तो इसके कारण उन महिलाओं को कम-से-कम पाँच वर्ष जेल की सज़ा होगी जिन्होंने गर्भपात करवाया था। 

भारत में गर्भपात संबंधी कानून

  • भारत में गर्भपात के संबंध में वर्ष 1971 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम लागू किया गया था, जो कि वर्तमान में देश में गर्भपात को लेकर सबसे महत्त्वपूर्ण कानून है।
    • ज्ञात हो कि वर्ष 1971 से पूर्व भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 312 के तहत गर्भपात को आपराधिक कृत्य घोषित किया गया था।
  • इस अधिनियम के तहत गर्भपात की अनुमति के लिये गर्भधारण की अधिकतम अवधि 20 सप्ताह निर्धारित की गई है। यद्यपि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (संशोधन) विधेयक, 2020 में इस अवधि को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह करने की बात कही गई है, किंतु यह विधेयक अभी राज्यसभा में लंबित है।
  • कोई भी पंजीकृत डॉक्टर उस स्थिति में गर्भपात करा सकता है यदि गर्भावस्था की अवधि 12 सप्ताह से अधिक नहीं है और यदि गर्भावस्था की अवधि 12 सप्ताह से अधिक है किंतु 20 सप्ताह से अधिक नहीं है, तो गर्भपात उसी स्थिति में हो सकता है जब दो डॉक्टर ऐसा मानते हैं कि-
    • गर्भावस्था जारी रखने से माँ के जीवन या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य पर कोई खतरा उत्पन्न हो सकता है।
    • भ्रूण किसी गंभीर विकार अथवा रोग से पीड़ित है, जिससे उसके गंभीर रूप से विकलांग होने की आशंका है।
    • गर्भावस्था का कारण दुष्कर्म अथवा अनाचार है।
    • गर्भावस्था, गर्भनिरोधक की विफलता के परिणामस्वरूप हुई है (हालाँकि यह केवल विवाहित महिलाओं पर लागू होता है)।

निहित समस्याएँ

  • कई विशेषज्ञ मानते हैं कि इस अधिनियम में गर्भपात को लेकर एक महिला की पसंद और स्व-चयन के विकल्प को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया गया है। यह अधिनियम केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में गर्भपात की अनुमति देता है, इस प्रकार महिलाओं को अपनी इच्छा के अनुरूप गर्भपात का विकल्प चुनने का कोई विकल्प नहीं है।
  • मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम, 1971 की इस आधार पर भी आलोचना की जाती है कि यह अधिनियम कई अवसरों पर चिकित्सा प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति के साथ तालमेल स्थापित करने में सक्षम नहीं रहा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


ब्याज स्थगन घोषणा पर दिशा-निर्देश

प्रिलिम्स के लिये:

ब्याज स्थगन घोषणा पर दिशा-निर्देश

मेन्स के लिये:

ब्याज स्थगन घोषणा पर दिशा-निर्देश

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने ‘भारतीय रिज़र्व बैंक’ द्वारा प्रारंभ 'ब्याज स्थगन' घोषणा के परिचालन के संबंध दिशा-निर्देश जारी किये हैं। 

प्रमुख बिंदु:

  • सर्वोच्च न्यायालय COVID-19 महामारी के राहत उपायों के तहत घोषित ‘ऋण स्थगन अवधि (Moratorium Period) से संबंधित मुद्दों की याचिकाओं पर सुनवाई की गई।
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 14 अक्तूबर को योजना को 2 करोड़ रुपए तक के ऋण पर लागू करने का निर्देश दिया गया था।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा यद्यपि ब्याज स्थगन की घोषणा की गई थी परंतु इस संबंध में सरकार द्वारा कोई विस्तृत दिशा-निर्देश जारी नहीं किये गए थे। सर्वोच्च न्यायालय के दखल के बाद वित्त मंत्रालय द्वारा इस संबंध में औपचारिक दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।
  • योजना के तहत सरकार द्वारा लगभग 6,500 करोड़ रुपए की राशि वहन की जाएगी। 

प्रमुख दिशा-निर्देश:

  • दिशा-निर्देशों के तहत बैंकों तथा अन्य उधारदाताओं यथा- सहकारी बैंक और गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियाँ आदि को भी शामिल किया गया है।
  • 'सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम’ ऋण, शिक्षा ऋण, आवास ऋण, उपभोक्ता टिकाऊ ऋण, क्रेडिट कार्ड बकाया, ऑटोमोबाइल ऋण, पेशेवर और उपभोग ऋण आदि योजना के पात्र हैं।
  • 29 फरवरी, 2020 तक ऋण खाता 'मानक खाता' होना चाहिये अर्थात ‘गैर-निष्पादनकारी संपत्ति’ (NPA) के रूप में वर्गीकृत खाते योजना के तहत लाभार्थी नहीं होंगे। 
  •  1 नवंबर से 31 अगस्त के बीच छह महीने (184 दिन) की अवधि के लिये चक्रवृद्धि ब्याज और साधारण ब्याज के बीच अंतर को 5 नवंबर तक ग्राहकों के ऋण खातों में क्रेडिट करने के लिये कहा गया है।
  •  यह उन उधारकर्त्ताओं के लिये भी लागू किया जाएगा जिन्होंने 31 अगस्त की समयसीमा तक योजना के तहत लाभ नहीं उठाया था।

Festive-respite

ब्याज स्थगन योजना:

  • ध्यातव्य है कि COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों द्वारा दिये गए ऋण के भुगतान पर 90 दिनों (1 मार्च से 31 मई तक) के अस्थायी स्थगन की घोषणा की थी, इस अवधि को बाद में 31 अगस्त तक बढ़ा दिया था।
  • योजना का उद्देश्य महामारी के दौरान उधारकर्त्ताओं को राहत प्रदान करना था। इसके तहत ब्याज की राशि और मूल राशि दोनों को कवर किया गया था।

ब्याज स्थगन की गणना:

  • आमतौर पर ब्याज की गणना चक्रवृद्धि ब्याज सूत्र का उपयोग करके की जाती है, अर्थात् आप अर्जित ब्याज पर भी ब्याज का भुगतान करते हैं। ऋण स्थगन योजना के तहत उधारकर्त्ताओं को ऋण स्थगन अवधि के दौरान बकाया ऋण राशि पर चक्रवृद्धि ब्याज के बजाय साधारण ब्याज का भुगतान करना होता है। 
  • साधारण ब्याज (जो योजना के तहत पेश किया गया है) और चक्रवृद्धि ब्याज (एक सामान्य बैंकिंग अभ्यास) के बीच का अंतर सरकार द्वारा वहन किया जाता है।
  • योजना का लाभ उन उधारकर्त्ताओं को भी मिलेगा जिन्होंने ‘स्थगन अवधि’ के दौरान भी अपनी ईएमआई का भुगतान किया है।
  • योजना के तहत मिलने वाले छूट लाभ की राशि उस ब्याज की राशि से सीधे आनुपातिक रूप से संबंधित होती है जिसका भुगतान स्थगन अवधि के दौरान करना होता है।

निष्कर्ष:

  • त्योहार के मौसम की शुरुआत में ब्याज में राहत देने से न केवल उधारकर्त्ताओं को राहत मिली है, बल्कि इसने बैंकों के NPA में वृद्धि की संभावना को भी कम किया गया है। परंतु इससे सरकार के राजकोषीय नीतिगत निर्णय प्रभावित हो सकते हैं। 

स्रोत: द हिंदू