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डेली न्यूज़

  • 26 Aug, 2020
  • 53 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन-पाकिस्तान सैन्य संबंध और भारत

प्रिलिम्स के लिये

टाइप-054 श्रेणी के युद्धपोत, जेएफ -17 मल्टी-रोल लड़ाकू विमान

मेन्स के लिये

चीन-पाकिस्तान सैन्य संबंध और भारत पर उसके प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन ने एक समारोह के दौरान पाकिस्तानी नौसेना के लिये निर्मित एक उन्नत नौसैनिक युद्धपोत लॉन्च किया है। यह चीन द्वारा किसी देश के लिये बनाया गया सबसे बड़ा नौसैनिक युद्धपोत है।

प्रमुख बिंदु

  • यह युद्धपोत उन चार सबसे उन्नत नौसैनिक युद्धपोतों में से एक है, जो चीन द्वारा पाकिस्तान की नौसेना के लिये तैयार किया गया है।
  • ध्यातव्य है कि पाकिस्तान ने चीन की एक कंपनी चाइना शिपबिल्डिंग ट्रेडिंग कंपनी लिमिटेड (CSTC) के साथ टाइप-054 श्रेणी के युद्धपोतों को खरीदने हेतु समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
  • वर्ष 2021 तक पाकिस्तान की नौसेना में इसी श्रेणी के तीन और युद्धपोत शामिल हो जाएंगे।

टाइप-054 श्रेणी का युद्धपोत

  • नवीनतम सतही हथियारों, ऐंटी-एयर हथियार प्रणाली, कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम और सेंसर्स आदि से लैस टाइप-054 श्रेणी का यह युद्धपोत पाकिस्तान नौसेना के पास उपलब्ध तकनीकी रूप से उन्नत युद्धपोतों में से एक होगा।
  • विशेषज्ञ मानते हैं कि टाइप-054 श्रेणी के युद्धपोत चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (People’s Liberation Army Navy-PLAN) में कार्यरत सबसे बेहतर युद्ध पोतों में से एक है।
  • टाइप-054A श्रेणी का युद्धपोत एक मल्टी-रोल वाला युद्धपोत है, जिसे चीन की नौसेना के सतही बेड़े का आधार माना जाता है।

निहितार्थ:

  • चीन-पाकिस्तान संबंधों में मज़बूती: टाइप-054 श्रेणी के इस युद्धपोत के लॉन्च होने से पाकिस्तान और चीन के रक्षा संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत हुई है।
  • युद्धक क्षमता में वृद्धि: इस प्रकार के उन्नत युद्धपोत के अधिग्रहण से पाकिस्तानी नौसेना के सतही बेड़े की युद्धक क्षमता में काफी अधिक वृद्धि होगी।
  • सैन्य निर्यात के लिये बड़ी उपलब्धि: विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन द्वारा किसी भी विदेशी नौसेना को बेचा गया यह सबसे बड़ा युद्धक जहाज़ चीन के सैन्य निर्यात क्षेत्र के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
  • भारत के लिये सुरक्षा चुनौती: गौरतलब है कि वर्तमान में भारत, सीमा विवादों एवं जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद से चीन तथा पाकिस्तान के साथ संबंधों में तनाव का सामना कर रहा है।
    • पाकिस्तान द्वारा चीन से इस प्रकार का उन्नत युद्धपोत खरीदना भारत के लिये सुरक्षा की दृष्टि से काफी चिंताजनक हो सकता है, ऐसे में भारत अपने दोनों पड़ोसियों के बीच सैन्य सहयोग पर बारीकी से नजर रखेगा।

चीन-पाकिस्तान सैन्य संबंध

  • बीते दो दशकों में चीन और तुर्की के साथ पाकिस्तान के सैन्य संबंधों ने एक नया आयाम प्राप्त किया है, और पाकिस्तान के साथ दोनों देशों के संबंधों में सैन्य उपकरण आदि केंद्र में आ गए हैं।
  • गौरतलब है कि चीन, पाकिस्तान के प्राथमिक रक्षा साझीदारों में से रहा है और आँकड़ों के अनुसार, चीन ने वर्ष 2008 से वर्ष 2012 के बीच पाकिस्तान के रक्षा आयात भंडार में तकरीबन 70 प्रतिशत का योगदान दिया था।
  • पिछले दशक में चीन और पाकिस्तान के ये सैन्य संबंध और अधिक मज़बूत हुए हैं, और इन्ही संबंधों का परिणाम है कि चीन और पाकिस्तान द्वारा संयुक्त रूप से उन्नत लड़ाकू क्षमताओं के साथ विकसित जेएफ -17 मल्टी-रोल लड़ाकू विमान के नए संस्करण ने दिसंबर, 2019 में अपनी पहली उड़ान भरी थी।
  • ध्यातव्य है कि चीन ने वर्ष 2008 में पाकिस्तान को घातक ए-100 मल्टीपल रॉकेट लॉन्चर (A-100 Multiple Rocket Launcher) की पहली इकाई भी बेची थी।

भारत के लिये गंभीर खतरा

  • गलवान घाटी (Galwan Valley) में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद से दोनों देशों के संबंधों में तनाव काफी बढ़ गया है, वहीं पाकिस्तान के साथ तो भारत के संबंधों में पहले से ही तनाव मौजूद है।
  • भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव बीते दिनों तब देखने को मिला था, जब जम्मू-कश्मीर में धारा 370 की समाप्ति की पहली वर्षगांठ पर चीन ने पाकिस्तान का साथ देते हुए न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council-UNSC) में जम्मू-कश्मीर की स्थिति का मुद्दा उठाया था।
  • ऐसे में चीन और पाकिस्तान के बढ़ते सैन्य संबंध भारत के लिये सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक गंभीर खतरा बन सकते हैं, ऐसी स्थिति में आवश्यक यही है कि सरकार चीनी सैन्य क्षमताओं का निरंतर मूल्यांकन करे और उसी के अनुसार अपनी प्रतिक्रियाओं को आकार दे। साथ ही सरकार को सतर्क रहने की ज़रूरत है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

संरचित वित्त और आंशिक गारंटी कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये:

संरचित वित्त और आंशिक गारंटी कार्यक्रम, सूक्ष्म वित्त संस्थान

मेन्स के लिये:

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार हेतु सरकार के प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक’ (National Bank for Agriculture and Rural Development- NABARD) द्वारा ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी -सूक्ष्म वित्त संस्थानों’ के लिये एक ‘संरचित वित्त और आंशिक गारंटी कार्यक्रम’ (Structured Finance and Partial Guarantee Programme) की शुरुआत की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य COVID-19 से प्रभावित देश के ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण की निर्बाध आपूर्ति को सुनिश्चित करना है।
  • इस कार्यक्रम के तहत नाबार्ड द्वारा छोटे और मध्यम आकार के ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी-सूक्ष्म वित्त संस्थानों’ (Non-Banking Financial Company - Micro Finance Institutions or NBFC-MFIs) को सामूहिक/संयोजित ऋण (Pooled Loans) पर आंशिक गारंटी प्रदान की जाएगी।
  • इसके तहत नाबार्ड द्वारा प्राथमिक चरण के तहत 2500 करोड़ रुपए के वित्त पोषण की सुविधा प्रदान की जाएगी तथा इसे आगे चलकर और भी बढ़ाया जा सकता है।
  • इस कार्यक्रम के तहत देश के 28 राज्यों और 650 ज़िलों में 10 लाख से अधिक परिवारों को लाभ प्राप्त होने का अनुमान है।

क्रियान्वयन:

  • नाबार्ड द्वारा इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन हेतु विवृत्ति कैपिटल (Vivriti Capital) और उज्जीवन स्मॉल फाइनेंस बैंक (Ujjivan Small Finance Bank) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया है।

प्रभाव:

  • वर्तमान में COVID-19 महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था में आई गिरावट के बीच इस आंशिक गारंटी युक्त ऋण सुविधा के माध्यम से बड़ी संख्या में परिवारों, किसानों और व्यवसायों को इस चुनौती से निपटने के लिये आवश्यक वित्तीय सुविधा प्राप्त हो सकेगी।
  • गौरतलब है कि COVID-19 महामारी की शुरुआत के बाद से बाज़ार में तरलता की कमी को दूर करने के लिये नाबार्ड द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से सूक्ष्म वित्त संस्थानों (MFIs) और ‘गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ (NBFCs) को लगभग 2,000 करोड़ रुपये उपलब्ध कराए हैं।


सामूहिक ऋण निर्गमन (Pooled Loan Issuance- PLI):

  • इस व्यवस्था के तहत कई ऋणग्राहियों के जोखिम को एक साथ जोड़ दिया जाता है और ऋण पर समूह के किसी उच्च मानक प्राप्त गारंटर (Highly Rated Guarantor) के माध्यम से एक सामान्य आंशिक गारंटी प्रदान की जाती है।
  • PLI की इस व्यवस्था में नाबार्ड द्वारा आंशिक ऋण संरक्षण के प्रावधान से ऋण दाता बैंकों के लिये ऋण वितरण की प्रक्रिया बहुत ही सुविधाजनक हो जाएगी।
  • इसके तहत नाबार्ड की गारंटी से ऋणों की रेटिंग बढ़ने से पूंजी की लागत कम हो जाएगी, जो ऋणदाताओं को प्राथमिक क्षेत्र के लक्ष्यों को पूरा करने में सहायता करता है।
  • इस कार्यक्रम में एक गारंटर के रूप में नाबार्ड की भूमिका से बड़ी संख्या में मुख्यधारा के बैंकों और छोटे वित्त बैंकों को इससे जुड़ने हेतु आकर्षित करने में सहायता प्राप्त हुई है।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी - सूक्ष्म वित्त संस्थान:

  • NBFC-MFIs एक प्रकार की गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी है, जिसमें धन जमा करने की सुविधा नहीं होती।
  • NBFC-MFIs के निर्धारण के कुछ मानदंड निम्नलखित हैं-
    • NBFC-MFIs की कुल संपत्ति में से 85% क्वालीफाइंग संपत्ति (Qualifying Assets) के रूप में होनी चाहिये।
    • NBFC-MFI द्वारा ऋण प्राप्त करने के लिये ग्रामीण क्षेत्र के परिवार की वार्षिक आय 1,00,000 रुपए और अर्द्ध-शहरी क्षेत्र में परिवार की वार्षिक आय 1,60,000 रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिये।
    • एक NBFC तथा NBFC-MFI में मुख्य अंतर यह होता है कि जहाँ NBFC बड़ी परियोजनाओं, उद्यमों के लिये वित्तीय सुविधा उपलब्ध कराती है वहीं NBFC-MFI समाज के निचले स्तर पर बहुत छोटे ऋण उपलब्ध कराती हैं।

निष्कर्ष:

  • सूक्ष्म वित्त संस्थान ग्रामीण अर्थव्यवस्था और समाज के निचले स्तर पर पूंजी उपलब्ध कराने तथा बाज़ार में मांग को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, वर्तमान में COVID-19 महामारी के बीच नाबार्ड द्वारा प्रस्तावित आंशिक ऋण गारंटी से कृषि, छोटे व्यवसायों और विशेष कर ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय तरलता को कुछ सीमा तक कम करने में सहायता प्राप्त होगी।

स्त्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

लीबियाई संकट और संघर्षविराम की घोषणा

प्रिलिम्स के लिये

लीबिया की अवस्थिति, संयुक्त राष्ट्र, लीबियाई संकट संबंधित मुख्य तथ्य

मेन्स के लिये

लीबियाई संकट की पृष्ठभूमि और संघर्षविराम की घोषणा के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

लीबिया में संयुक्त राष्ट्र समर्थित अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार ने देश भर में संघर्ष विराम की घोषणा की है, साथ ही सरकार ने अगले वर्ष मार्च माह में संसदीय और राष्ट्रपति चुनावों का भी आह्वान किया है।

प्रमुख बिंदु

  • संयुक्त राष्ट्र समर्थित अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार द्वारा की गई संघर्ष विराम की इस घोषणा से देश में लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष में कुछ कमी आने की संभावना जताई जा रही है।

लीबिया में संकट- पृष्ठभूमि

  • अनुमान के अनुसार, लीबिया में अफ्रीका का सबसे बड़ा प्रमाणित तेल भंडार मौजूद है, इसके अलावा यह प्राकृतिक गैस बाज़ार में भी एक भूमिका अदा करता है। लीबिया की इस प्रकृति तेल की समृद्धि को ही उसके गृहयुद्ध संकट का एक मूल कारण माना जा सकता है।
    • किंतु लीबिया की कहानी तेल बाज़ारों पर इसके प्रभाव से कहीं अधिक जटिल है।
  • असल में लीबिया संकट की शुरुआत 16 फरवरी, 2011 को सरकार विरोधी प्रदर्शनों के साथ हुई थी, इन विरोध प्रदर्शनों के प्रति सरकार ने काफी कड़ा रुख अपनाया और विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत के कुछ ही दिनों में 200 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई।
  • समय के साथ इन विरोध प्रदर्शनों के कारण लीबिया की स्थिति और खराब होती गई और विपक्षी बलों और मुअम्मर गद्दाफी के समर्थकों के बीच गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई।
  • लीबिया में स्थिति को बिगड़ते देख पश्चिमी देशों ने हस्तक्षेप किया और नाटो द्वारा किये गए सैन्य अभियानों में अक्तूबर, 2011 को तानाशाही शासक मुअम्मर गद्दाफी की मृत्यु हो गई।
    • गद्दाफी की मृत्यु वर्ष 1969 में एक सैन्य तख्तापलट में सत्ता की बागडोर संभालने वाले पूर्व सैनिक अधिकारी द्वारा किये गए 42 वर्ष के शासनकाल के अंत का प्रतीक थी।
  • मुअम्मर गद्दाफी की मृत्यु के बाद प्रशासन लीबिया में कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने में विफल रहे हैं। स्थिति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र भी लीबिया संकट में शामिल हो गया और जुलाई 2012 में चुनाव के द्वारा लीबिया की राजधानी त्रिपोली में नई सरकार बनाई गई।
  • वर्ष 2014 में त्रिपोली स्थित सरकार ने चुनाव स्थगित कर दिये और कानूनी तौर पर अपने कार्यकाल को आगे बढ़ा दिया।
  • इसके पश्चात् खलीफा हफ्तर की स्वघोषित लीबियाई राष्ट्रीय सेना (LNA) के नेतृत्त्व में एक ओर समानांतर सरकार का गठन किया गया।
  • वर्तमान में लीबिया की हालत दयनीय है। एक तरफ जहाँ LNA टोब्रुक-आधारित संसद की सहायता से लीबिया के पूर्वी हिस्से को नियंत्रित करती है, वहीं दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र समर्थित अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार लीबिया के पश्चिमी भागों को त्रिपोली से नियंत्रित करती है।
  • संयुक्त राष्ट्र समर्थित सरकार लीबिया को स्थिरता प्रदान करने में विफल रही। पश्चिमी लीबिया (जो कि GNA नियंत्रण में है) अंदरूनी लड़ाइयों और अपहरण की घटनाओं से प्रभावित है। साथ ही पश्चिमी लीबिया को पानी, पेट्रोल और बिजली जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है और इस क्षेत्र में कुछ ही बैंक संचालित होते हैं।

लीबिया में तेल भंडार

  • अनुमान के अनुसार, लीबिया में अफ्रीका का सबसे बड़ा तेल भंडार उपलब्ध है, और यहाँ वर्ष 2011 से पूर्व प्रति दिन 1.6 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन किया जाता था।
  • लीबिया में वर्ष 2011 के बाद से ही तेल के उत्पादन में कई बार उतार-चढ़ाव दर्ज किया गया है, वर्ष 2016 के अंत में लीबिया में तेल का उत्पादन लगभग एक मिलियन बैरल प्रतिदिन तक बढ़ गया था, वहीं इस वर्ष जनवरी माह की शुरुआत में यहमात्र 100000 बैरल प्रतिदिन पर पहुँच गया था, क्योंकि खलीफा हफ्तर की स्वघोषित लीबियाई राष्ट्रीय सेना (LNA) के सहयोगियों ने बंदरगाह और पाइपलाइन को बंद कर दिया था।
  • लीबिया की तेल उद्योग कंपनी नेशनल ऑयल कार्पोरेशन (NOC) के अनुसार, कंपनी तेल का निर्यात केवल तभी शुरू करेगी, जब सैनिक बल तेल भंडारों को पूरी तरह से छोड़ देंगे।

अंतर्राष्ट्रीय भूमिका

  • लीबिया के गृह युद्ध में दोनों पक्षों को अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त है। तुर्की, इटली और कतर आदि त्रिपोली स्थित संयुक्त राष्ट्र समर्थित अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार का समर्थन करने वालों में से हैं, जबकि रूस, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात आदि जनरल खलीफा हफ्तर की सरकार का समर्थन करने वाले देशों में से एक हैं।
    • गौरतलब है कि फ्रांँस भी टोब्रुक-आधारित जनरल खलीफा हफ्तर की सरकार का समर्थन करता है, हालाँकि फ्रांँस ने कभी भी सार्वजनिक मंच पर इसे स्वीकार नहीं किया है।

लीबियाई संकट और जान-माल का नुकसान

  • आँकड़े बताते हैं कि लीबियाई संकट के प्रभावस्वरूप वर्ष 2011 के बाद अब तक बीते 9 वर्ष में लगभग 400,000 लीबियाई लोगों को विस्थापित होना पड़ा है, वहीं हज़ारों लोग दो सरकारों के इस आपसी झगड़े में मारे गए हैं।
  • एक अनुमान के अनुसार, संघर्ष के कारण तेल राजस्व में हुई कमी, क्षतिग्रस्त बुनियादी ढाँचे और जीवन स्तर में कमी के कारण लीबिया को अरबों डॉलर के नुकसान का सामना करना पड़ा है।
  • लीबिया में कोरोना वायरस (COVID-19) के मामले भी तेज़ी से बढ़ रहे हैं, और वहाँ के सार्वजनिक स्वास्थ्य ढाँचे का पतन हो गया है, ऐसे में लीबिया के पश्चिमी हिस्से में राजनेताओं के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन भी शुरू हो गए हैं।

शांति की संभावना

  • दोनों पक्षों के बीच लंबे समय से चल रहा युद्ध जून माह में बंद हो गया था, किंतु दोनों पक्ष अभी भी लामबंदी में लगे हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र समर्थित अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार के मुखिया फैयाज अल सराज़ ने संघर्ष विराम और मार्च माह में चुनाव आयोजित कराने की घोषणा की है।
  • हालाँकि खलीफा हफ्तर की स्वघोषित लीबियाई राष्ट्रीय सेना (LNA) ने फैयाज अल सराज़ द्वारा प्रस्तावित संघर्ष विराम को पूरी तरह से नकार दिया है।
  • संयुक्त राष्ट्र शुरू से ही दोनों पक्ष की सरकारों को तेल राजस्व के वितरण, सरकार का निर्माण और सशस्त्र समूहों की स्थिति जैसे मुद्दों को सुलझाने के लिये प्रेरित कर रहा है।
  • वहीं विदेशी पक्षकारों ने भी आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र के इस प्रयास का समर्थन किया है, किंतु वे अपने सहयोगियों को हथियार आदि उपलब्ध कराकर अपना सामरिक हित भी देख रहे हैं।

लीबिया

  • लीबिया उत्तरी अफ्रीका का एक तेल-समृद्ध देश है जिसका अधिकांश क्षेत्र रेगिस्तानी है।
  • लीबिया को मुख्य तौर पर उसके प्राचीन इतिहास, मुअम्मर गद्दाफी के 42 वर्षीय तानाशाही शासन और वर्तमान अराजकता के लिये जाना जाता है।
  • 1951 में स्वतंत्रता प्राप्त होने से पूर्व लीबिया सदियों तक विदेशी शासन के अधीन था और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश ने तेल भंडार के माध्यम से अपार समृद्धि अर्जित की।
  • मुअम्मर गद्दाफी ने वर्ष 1969 में तख्तापलट कर सत्ता प्राप्त की और और तकरीबन चार दशकों तक शासन किया।
  • लीबिया की राजधानी त्रिपोली है और वहाँ की जनसंख्या तकरीबन 6.4 मिलियन है। लगभग 1.77 मिलियन वर्ग किमी. क्षेत्रफल में फैले इस देश में अरबी प्रमुख भाषा के रूप में बोली जाती है। वहीं इस्लाम इस देश का एक प्रमुख धर्म है।


स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय रिज़र्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

RBI की वार्षिक रिपोर्ट, ई-वे बिल

मेन्स के लिये:

अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव, RBI की वार्षिक रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India) ने वित्तीय वर्ष 2019-20 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की है।

प्रमुख बिंदु:

  • RBI की इस रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था में आई गिरावट वर्तमान वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में भी जारी रह सकती है।
  • वर्तमान वित्तीय वर्ष में अब तक की कुल मांग के आकलन से पता चलता है कि COVID-19 महामारी के कारण खपत में भारी गिरावट देखी गई है।
  • RBI के अनुसार, खपत में आई इस कमी को दूर करने और अर्थव्यवस्था में पूर्व-COVID दौर की गति को पुनः प्राप्त करने में काफी समय लग सकता है।

आर्थिक सुधार की गति पर लॉकडाउन का प्रभाव:

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, मई और जून माह में देश के कई हिस्सों में लॉकडाउन में कुछ ढील के साथ ही अर्थव्यवस्था में कुछ सुधार देखने को मिला था परंतु देश के कुछ हिस्सों में पुनः लॉकडाउन लागू होने के कारण जुलाई तथा अगस्त में इसका प्रभाव कम होने लगा।
  • रेटिंग एजेंसियों के अनुसार, COVID-19 महामारी के नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन के कारण वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में देश की जीडीपी में 20% तक की गिरावट का अनुमान है।
  • जून 2020 में ई-वे बिल (e-Way Bill) जारी करने के मामलों में पिछले माह की तुलना में 70.3% का सुधार देखने को मिला हालाँकि जुलाई माह में इसमें केवल 11.4% की ही वृद्धि देखने को मिली।
  • पिछले वर्ष की तुलना में जुलाई 2020 में ई-वे बिल जारी करने के मामलों में 7.3% की गिरावट देखने को मिली है।
    • ई-वे बिल को घरेलू ट्रेडिंग गतिविधि के संकेतक के रूप में देखा जाता है।

असमानता:

  • RBI के अनुसार, इस महामारी ने नई विषमताओं को उजागर किया है।
  • इस महामारी के दौरान जहाँ कार्यालयों में प्रबंधन या डेस्क से जुड़े अधिकांश कर्मचारी घरों पर रहकर अपना कार्य करने में सक्षम हैं वहीं अति आवश्यक सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों को कार्यस्थल से अपना कार्य करने पर विवश होना पड़ा है जिससे उनके संक्रमित होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
  • होटल और रेस्त्रां, एयरलाइंस और पर्यटन जैसे कुछ क्षेत्रों में, रोज़गार के नुकसान के प्रभाव अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक गंभीर रहे हैं।

शहरी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण शहरी खपत में भारी कमी देखने को मिली है।
  • वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में यात्री वाहनों और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं (Consumer Durables) की बिक्री पिछले वित्तीय वर्ष की इसी अवधि की तुलना में घटकर क्रमशः 20% और 33% ही रह गई। साथ ही इस दौरान हवाई यातायात पूरी तरह से बंद रहा था।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

  • RBI के अनुसार, शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव उतना गंभीर नहीं रहा है।
  • खरीफ की बुआई की प्रगति के कारण जुलाई माह में ट्रैक्टरों की बिक्री में 38.5% की वृद्धि देखने को मिली है।
  • साथ ही जुलाई माह में मोटरसाइकिल की बिक्री में आई गिरावट में भी सुधार देखने को मिला है।
  • हालाँकि ग्रामीण क्षेत्रों में दैनिक मज़दूरी में आई कमी के कारण मांग में हुई गिरावट पर पूर्ण सुधार नहीं संभव हो सका है।
  • लोगों की आजीविका के छिन जाने और प्रवासी मज़दूरों की समस्या के कारण दैनिक मज़दूरी में आई गिरावट का संकट अभी भी बना हुआ है।

अर्थव्यवस्था में सुधार के प्रयास :

  • COVID-19 के कारण अर्थव्यवस्था की क्षति को कम करने के लिये मार्च से लेकर अबतक RBI द्वारा बाज़ार में लगभग 10 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया है।
  • इस दौरान RBI ने विकास की गति को मज़बूती और वित्तीय प्रणाली को स्थिरता प्रदान करने के लिये रेपो रेट में 115 बेसिस पॉइंट की कटौती करते हुए इसे 4% तक कर दिया।

घरेलू निवेश में गिरावट:

  • RBI के अनुसार, सितंबर 2019 में सरकार द्वारा कॉर्पोरेट टैक्स में की गई कटौती अपेक्षा के अनुरूप निवेश चक्र को पुनः शुरू करने में सफल नहीं रही है।
  • अधिकांश कंपनियों द्वारा इस छूट का उपयोग अपने ऋण को कम करने और कैश बैलेंस को बनाए रखने और अन्य मौजूदा परिसंपत्तियों में किया गया।
  • गौरतलब है कि सितंबर 2019 में केंद्रीय वित्त मंत्री ने घरेलू कंपनियों के लिये कर दरों को 22% और नई घरेलू विनिर्माण कंपनियों के लिये 15% तक करने की घोषणा की थी।
  • इन सुधारों के बाद भी वित्तीय वर्ष 2019-20 में जीडीपी और सकल स्थिर पूंजी निर्माण (Gross Fixed Capital Formation-GFCF) का अनुपात घटकर 29.8% रह गया, जो वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान 31.9% था।

बैंक धोखाधड़ी के मामलों में वृद्धि:

  • वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान 1 लाख रुपए से अधिक के बैंक धोखाधड़ी के मामलों की संख्या में दोगुने से अधिक की वृद्धि देखने को मिली है।
  • वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान कुल 8,707 मामलों में 1.85 करोड़ रुपए की वित्तीय गड़बड़ी देखी गई जबकि वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान कुल 6,799 मामलों में 71,543 करोड़ रुपए की वित्तीय गड़बड़ी दर्ज की गई थी
  • RBI के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान बैंक धोखाधड़ी के कुल मामलों में 80% सार्वजनिक बैंकों और लगभग 18.4% निजी बैंकों से संबंधित थे।
  • वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान बैंक धोखाधड़ी की घटना होने और इसका पता चलने का औसत अंतराल 24 माह रहा।
  • RBI ने बैंकों द्वारा ‘प्रारंभिक चेतावनी संकेतों’ (Early Warning Signals- EWS) के कमज़ोर कार्यान्वयन, आंतरिक ऑडिट के दौरान EWS का पता न लगाने, फोरेंसिक ऑडिट के दौरान उधारकर्त्ताओं का गैर-सहयोग, अनिर्णायक ऑडिट रिपोर्ट आदि को धोखाधड़ी का पता लगाने में देरी का प्रमुख कारण बताया है।

महँगाई:

  • RBI की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee -MPC) के अनुमान के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही के दौरान भी हेडलाइन मुद्रास्फीति (Headline Inflation) में वृद्धि बनी रह सकती है, परंतु तीसरी तिमाही से इसमें कुछ कमी आने का अनुमान है।
  • जुलाई 2020 में खुदरा मुद्रास्फीति 6.93 प्रतिशत पर थी, जो ऊपरी सहिष्णुता सीमा (6%) से अधिक थी।

मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee -MPC):

  • RBI की मौद्रिक नीति समिति का गठन वर्ष 2016 में भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (RBI Act) में संशोधन के माध्यम से किया गया था।
  • मौद्रिक नीति समिति के कुल 6 सदस्यों में से 3 सदस्य RBI से होते हैं तथा अन्य 3 सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
  • मौद्रिक नीति समिति अन्य कार्यों के साथ मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने हेतु रेपो दर तय करने का कार्य करती है।

सुझाव:

  • COVID-19 महामारी की समाप्ति के पश्चात संभावित घाटे को कम करने और वित्तीय स्थिरता के साथ अर्थव्यवस्था को मज़बूत तथा सतत् विकास के मार्ग पर लाने हेतु उत्पाद बाज़ारों, वित्तीय क्षेत्र, विधि एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा से जुड़े व्यापक संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता होगी।
  • RBI के अनुसार, परिसंपत्ति मुद्रीकरण और प्रमुख बंदरगाहों के निजीकरण से प्राप्त धन के माध्यम से लक्षित सार्वजनिक निवेश को अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने का एक व्यवहारिक उपाय बताया है।
  • RBI के अनुसार, संरचनात्मक सुधारों और अवसंरचना परियोजनाओं के त्वरित कार्यान्वयन हेतु ‘वस्तु और सेवा कर परिषद’ [Goods and Services Tax (GST) Council] की तरह ही भूमि, श्रम तथा ऊर्जा के क्षेत्र में भी शीर्ष निकायों की स्थापना की जा सकती है।

स्त्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-वियतनाम संयुक्त आयोग की बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-वियतनाम संयुक्त आयोग, भारत-प्रशांत महासागरीय पहल

मेन्स के लिये:

भारत-वियतनाम संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग पर 'भारत-वियतनाम संयुक्त आयोग' की 17 वीं बैठक का आयोजन किया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय विदेश मंत्री और वियतनाम के उप प्रधानमंत्री द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सम्मेलन की सह-अध्यक्षता की गई।
  • दोनों पक्षों द्वारा 'भारत-वियतनाम व्यापक रणनीतिक साझेदारी' की दिशा में हाल ही में हुए विकास की समीक्षा की गई और भविष्य में दोनों देशों के व्यापक जुड़ाव पर चर्चा की गई।

संबंधों की पृष्ठभूमि:

  • भारत-वियतनाम औपनिवेशिक शासन से मुक्ति और स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय संघर्ष की ऐतिहासिक जड़ों के साथ पारंपरिक रूप से सौहार्दपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों को साझा करते हैं।
  • भारत ने स्वतंत्रता के बाद प्रारंभ में तत्कालीन उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम के साथ वाणिज्य-स्तर के संबंधों को बनाए रखा और 7 जनवरी 1972 को एकीकृत वियतनाम के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित किये।
  • जुलाई, 2007 में दोनों देशों के बीच संबंधों को 'रणनीतिक भागीदारी’ के स्तर तक बढ़ाया गया।
  • वर्ष 2016 में दोनों देशों के बीच 'व्यापक रणनीतिक साझेदारी' (Comprehensive Strategic Partnership) की शुरुआत की गई।

बैठक में सहयोग पर सहमति:

  • भारत-प्रशांत क्षेत्र:
    • भारत और वियतनाम, भारत-प्रशांत महासागरीय पहल (Indo-Pacific Oceans Initiative- IPOI) के अनुरूप अपने द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाने पर सहमत हुए हैं।
    • दोनों देशों द्वारा भारत-प्रशांत क्षेत्र में सभी के लिये साझा सुरक्षा, समृद्धि और वृद्धि हासिल करने के लिये आसियान के दृष्टिकोण पर सहमति व्यक्त की गई है।

भारत-प्रशांत महासागरीय पहल (IPOI):

  • ‘भारत-प्रशांत महासागरीय पहल’ को नवंबर 2019 में ‘पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन’ में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किया गया था।
  • यह पहल भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता, जिसमें दक्षिण चीन सागर क्षेत्र और भारत के साथ ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (LAC) भी शामिल है, की पृष्ठभूमि में प्रारंभ की गई है।
  • यह निम्नलिखित सात केंद्रीय स्तंभों पर सहयोग पर केंद्रित है:
    • समुद्री सुरक्षा;
    • समुद्री पारिस्थितिकी;
    • समुद्री संसाधन;
    • क्षमता निर्माण और संसाधन साझाकरण;
    • आपदा जोखिम न्यूनीकरण और प्रबंधन;
    • विज्ञान प्रौद्योगिकी और शैक्षणिक सहयोग;
    • व्यापार कनेक्टिविटी और समुद्री परिवहन।
  • यह पहल भारत-प्रशांत क्षेत्र में नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था बनाने और सामान्य समाधान खोजने के लिये एक साथ काम करने की आवश्यकता पर बल देती है।

  • बहुपक्षीय और क्षेत्रीय मंचों पर सहयोग:
    • दोनों पक्ष ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ (UNSC) सहित बहुपक्षीय मंचों पर निकट समन्वय करने पर सहमत हुए हैं।
      • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि भारत और वियतनाम दोनों वर्ष 2021 में UNSC में गैर-स्थायी सदस्यों के रूप में कार्य करेंगे।
    • दोनों देशों द्वारा आसियान तंत्र (ASEAN Framework) के माध्यम से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय मंचों पर सहयोग और समन्वय बढ़ाने पर भी सहमति व्यक्त की गई है।
      • भारत और वियतनाम पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, मेकांग गंगा सहयोग, एशिया यूरोप बैठक (ASEM) जैसे विभिन्न क्षेत्रीय मंचों में निकट सहयोगी हैं।
  • आर्थिक संबंध:
    • दोनों देशों ने असैन्य परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष, समुद्री विज्ञान और नवीन प्रौद्योगिकियों जैसे उभरते क्षेत्रों में घनिष्ठ सहयोग पर सहमति व्यक्त की है।
    • भारत द्वारा आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और मानव-केंद्रित वैश्वीकरण की दिशा में ‘आत्मनिर्भर भारत’ (Atmanirbhar Bharat) के अपने दृष्टिकोण को रेखांकित किया गया।
    • भारत द्वारा वर्तमान में 'त्वरित प्रभाव परियोजनाओं' (Quick Impact Projects- QIPs), 'भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम' (Indian Technical and Economic Cooperation Programme- ITEC) और e-ITEC पहल, पीएचडी फैलोशिप, वियतनाम के मेकांग डेल्टा क्षेत्र में जल संसाधन प्रबंधन, सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति, डिजिटल कनेक्टिविटी और विरासत संरक्षण क्षेत्रों में वियतनाम को विकास और क्षमता निर्माण की दिशा में सहायता प्रदान की जाती है।
  • त्वरित प्रभाव परियोजनाएँ (QIPs):
    • ये छोटे पैमाने तथा कम लागत वाली परियोजनाएँ होती हैं।
    • भारत सरकार द्वारा वियतनाम में कार्यान्वयन के लिये 12 QIP को अनुमोदित किया जा चुका है।
    • इनमें से सात QIPs जल संसाधन प्रबंधन से तथा पाँच शैक्षिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण से संबंधित हैं।

निष्कर्ष:

  • वियतनाम. भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ का एक प्रमुख स्तंभ है, अत: दोनों देशों के बीच आगे सहयोग की व्यापक गुंजाइश है। दोनों देशों के बीच घनिष्ठ संबंध दक्षिण पूर्व एशिया में चीन की आक्रामक गतिविधियों को संतुलित रखने के दृष्टिकोण से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

विमान-वाहक पोत ‘विराट

प्रिलिम्स के लिये

आईएनएस ‘विराट’, आईएनएस ‘विक्रांत’

मेन्स के लिये

जहाज़ों को संग्रहालयों में परिवर्तित करने का उद्देश्य और महत्त्व

चर्चा में क्यों?

3 वर्ष पूर्व सेवामुक्त हुए विमान-वाहक पोत ‘विराट’ (INS Viraat) को अगले माह मुंबई से गुजरात के अलंग (Alang) कस्बे में स्थित शिप यार्ड में लाकर कबाड़ (Scrapped) में परिवर्तित किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • भारतीय नौसेना के अनुसार, धातु स्क्रैप व्यापार निगम लिमिटेड (MSTC) द्वारा विमान-वाहक पोत ‘विराट’ को ई-नीलामी के माध्यम से गुजरात के ‘श्री राम ग्रीन शिप रीसाइक्लिंग इंडस्ट्रीज़’ को बेच दिया गया है।
  • श्री राम ग्रीन शिप रीसाइक्लिंग इंडस्ट्रीज़ ने INS विराट को कुल 38 करोड़ रुपए में खरीदा है, हालाँकि श्री राम ग्रुप ने अभी तक सुपुर्दगी आदेश (Delivery Order) नहीं दिया है।

कारण

  • विमान-वाहक पोत ‘विराट’ (INS Viraat) को मार्च 2017 से डिकमीशन या सेवामुक्त किया गया था और तभी से नौसेना अपने खर्च बजट पर बिजली, पानी की व्यवस्था और मरम्मत आदि पर खर्च कर रही थी।
  • इसके अलावा यह भीड़-भाड़ वाले मुंबई के नौसेना डॉकयार्ड (Dockyard) में भी काफी स्थान घेर रहा था।

संग्रहालय में परिवर्तन के प्रयास

  • डिकमीशन या सेवामुक्त होने के बाद से ही आईएनएस विराट (INS Viraat) को आईएनएस विक्रांत (INS VIKRANT) की तरह कबाड़ (Scrapped) में परिवर्तित न करने की मांग की जा रही थी।
  • कई राज्य की सरकारों ने इसे संग्रहालय के रूप में परिवर्तन करने को लेकर प्रस्ताव दिये थे, किंतु इनमें से किसी को भी स्वीकार नहीं किया गया।
    • पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्त्व वाली आंध्रप्रदेश सरकार ने इस संबंध में कई प्रयास किये थे, इन प्रयासों के तहत अक्तूबर 2016 में आंध्रप्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार के साथ एक संयुक्त उद्यम के माध्यम से आईएनएस विराट को एक विमान संग्रहालय में परिवर्तित करने का प्रस्ताव दिया था। हालाँकि 2 माह के बाद रक्षा मंत्रालय ने इस प्रस्ताव को खारिज़ कर दिया।
    • महाराष्ट्र सरकार ने भी इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया था, किंतु उसमें कुछ प्रगति संभव नहीं हो सकी थी।

जहाज़ों का संग्रहालयों में परिवर्तन

  • कई विशेषज्ञ मानते हैं कि सेवानिवृत्त नौसैनिक जहाज़ों को कबाड़ में परिवर्तित के बजाय उन्हें संरक्षित करने से वृहद् आर्थिक परिदृश्य का निर्माण किया जा सकता है।
  • सामान्य तौर पर संग्रहालय कई अर्थों में अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, उदाहरण के लिये पर्यटन को बढ़ावा देना, रोज़गार पैदा करना, सरकारी राजस्व में योगदान करना और स्थानीय समुदायों के विकास का समर्थन करना।
  • सैन्य और समुद्री संग्रहालयों के कुछ अतिरिक्त लाभ भी होते हैं, जैसे- इनका उपयोग सैन्य नायकों का सम्मान करने, रक्षा कर्मियों द्वारा सामना की जाने वाली कठिनाइयों के बारे में आम जनता को जागरूक करने और युवा पीढ़ी को सशस्त्र बलों मेंशामिल होने हेतु प्रेरित करने के लिये किया जा सकता है।
  • नौसैनिक जहाज़ों को संग्रहालयों में परिवर्तित करने में एक महत्त्वपूर्ण समस्या उनके रखरखाव में आने वाली लागत है। ऐसे संग्रहालयों को सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों से फंडिंग के साथ-साथ पर्याप्त राजस्व उत्पन्न करने की भी आवश्यकता होती है।

विमान-वाहक पोत ‘विराट’ के बारे में

  • सेंतौर श्रेणी (Centaur Class) का विमान वाहक पोत आईएनएस विराट को एच.एम.एस. हर्मस (HMS Hermes) नाम से वर्ष 1959 में ब्रिटिश नौसेना में तैनात किया गया था।
  • यह लगभग 25 वर्षों तक ब्रिटिश नौसेना में कार्यरत रहा और फिर वर्ष 1984 में इसे सेवा से मुक्त कर दिया गया, जिसके पश्चात् मई 1987 में इसका आधुनिकीकरण किया गया और इसे भारतीय नौसेना में शामिल कर लिया गया।
  • विमान-वाहक पोत ‘विराट’ को मार्च 2017 में नौसेना से मुंबई के नेवल डॉकयार्ड में डिकमीशन किया गया था।
  • आईएनएस विराट विश्व में सबसे अधिक समय तक सेवारत रहने वाला युद्धपोत है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

माली में सैन्य तख्तापलट

प्रिलिम्स के लिये:

माली की भौगोलिक स्थिति

मेन्स के लिये:

माली में सैन्य तख्तापलट से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में माली में सेना ने तख्तापलट करते हुए राष्ट्रपति इब्राहिम बाउबकर कीता (Ibrahim Boubacar Keita) और प्रधानमंत्री बुबौ सिसे (Boubou Cisse) को राजधानी बामको में गिरफ्तार कर लिया, जिसके बाद राष्ट्रपति ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि: वर्ष 2011 के लीबियाई संकट ने माली को अराजकता की ओर अग्रसर किया।
    • लीबिया से सहारा रेगिस्तान में हथियारों की आपूर्ति की गई जिससे उत्तरी माली में अलगाववादी संघर्ष को हवा मिली। इसका परिणाम यह हुआ कि यह संघर्ष एक इस्लामी जंग में परिवर्तित हो गया जिसने राजधानी बमाको (माली) में तख्तापलट कर दिया।
  • कारण: माली की समस्याओं के तीन निम्न अतिव्यापी समूह हैं:
    • मार्च 2020 के विवादित विधायी चुनावों से राजनीतिक संकट बढ़ गया।
    • आर्थिक ठहराव, भ्रष्टाचार और फिर COVID-19 महामारी द्वारा उत्पन्न जटिलताओं के कारण उपजे आर्थिक संकट से अत्यधिक कम भुगतान के कारण सैनिकों में पहले से असंतोष व्याप्त था।
    • आतंकवाद और जिहादियों एवं नागरिकों के खिलाफ होने वाली सैन्य कार्रवाईयों को नियंत्रित करने में हाथ लगी विफलता के कारण उपजा सुरक्षा संकट
  • सैन्य तख्तापलट:
    • यह पहले के सभी समझौतों का सम्मान करते हुए उन्हें लागू रखेगा, इसमें क्षेत्र में जिहाद विरोधी अभियानों को दिये गए माली के समर्थन के साथ-साथ देश के उत्तर में सशस्त्र समूहों और मालियन सरकार के बीच हुए वर्ष 2015 के शांति समझौते, जिसे अल्जीयर्स प्रक्रिया का नाम दिया गया है, का भी सम्मान करेगा।
      • माली में संयुक्त राष्ट्र के बहुआयामी एकीकृत स्थिरीकरण अभियान (United Nations Multidimensional Integrated Stabilization Mission in Mali- MINUSMA), फ्राँस का बर्कहेन बल, G5 साहेल (बुर्किना फासो, चाड, माली, मॉरिटानिया और नाइजर का संस्थागत ढाँचा), ताकुबा (एक यूरोपीयन स्पेशल फोर्स इनिशिएटिव) माली के भागीदार बने रहेंगे।
  • प्रतिक्रिया:
    • फ्राँस ने माली से नागरिक शासन को लागू करने का आग्रह करते हुए कहा है कि आतंकवादी समूहों के खिलाफ लड़ाई और लोकतंत्र की रक्षा एवं कानून का शासन अविभाज्य है।
      • माली के पूर्व औपनिवेशिक शासक फ्राँस के माली में कई हज़ार सैनिक तैनात हैं जो इस्लामी आतंकवादी समूहों से लड़ रहे हैं।
      • माली में प्रभावी विभिन्न जिहादी समूह अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट समूह से जुड़े हुए हैं, जो उत्तरी माली के रेगिस्तान में स्थित हैं, यहाँ से वे पड़ोसी देशों, खासकर बुर्किना फासो और नाइजर में फैले हुए हैं।
    • अफ्रीकी संघ ने माली को यह कहते हुए पहले ही निलंबित कर दिया था कि सैन्य तख्तापलट के मुद्दे अतीत का विषय हुआ करते थे इन्हें वर्तमान समय में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
    • पश्चिम अफ्रीकी राज्यों (Economic Community of West African States-ECOWAS) के 15-सदस्यीय आर्थिक समुदाय ने भी अपनी-अपनी सीमाओं को बंद करके, माली के साथ होने वाले वित्तीय लेन-देन को निलंबित करते हुए इसे निर्णायक निकायों से बाहर निकालते हुए माली के खिलाफ तीव्र कार्रवाई की है।
    • संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने सभी सरकारी अधिकारियों की तत्काल रिहाई और संवैधानिक व्यवस्था की बहाली की मांग की है।

माली गणराज्य

  • माली पश्चिमी अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान में फैला एक विशाल देश है।
  • एक समय कई पूर्व-औपनिवेशिक साम्राज्यों का निवास स्थान रहा यह स्थलाबद्ध अफ्रीकी देश इस महाद्वीप के सबसे बड़े देशों में से एक है। यह दुनिया के सबसे गरीब राष्ट्रों में से एक है।
  • वर्ष 1960 में फ्राँस से स्वतंत्रता मिलने के बाद माली ने वर्ष 1992 के लोकतांत्रिक चुनावों तक सूखा, विद्रोह, तख्तापलट और 23 साल की सैन्य तानाशाही का कष्ट सहा है।
    • इसने कई सैन्य शासनों का भी अनुभव किया है, वर्तमान में यह जिहादी हमलों और जातीय हिंसा से जूझ रहा है।
  • राजधानी: बमाको।
  • जनसंख्या: लगभग 19 मिलियन।
  • क्षेत्रफल: 1.25 मिलियन वर्ग किमी।
  • प्रमुख भाषाएँ: फ्रेंच, बाम्बारा, बर्बर और अरबी।
  • धर्म: इस्लाम और स्वदेशी मान्यताएँ।
  • मुद्रा: कम्यूनायट फाइनेंसियर अफ्रीका (Communaute Financiere Africaine) फ्रैंक।

आगे की राह

  • स्पष्ट रूप से नवीनतम सैन्य तख्तापलट सुरक्षा चुनौतियों के संदर्भ में ही नहीं बल्कि भ्रष्टाचार, विवादित चुनावों और राजनीतिक धारा के प्रति एक प्रतिक्रिया है। हालाँकि सैन्य तख्तापलट से इनमें से किसी भी समस्या का समाधान संभव नहीं है।
  • माली की इस स्थिति से एक चिर-परिचित सच्चाई अवश्य उजागर होती है कि भले ही विदेशी हस्तक्षेप के अपने लाभ हों, लेकिन माली जैसे राष्ट्र की स्थिति में सुधार करने की क्षमता इसके अपने हाथों में है, देश की बिगड़ती स्थिति को ठीक करने का एक मात्र विकल्प देश के लड़खड़ाते लोकतांत्रिक संस्थानों को साथ लेकर चलने में ही है।

स्रोत: द हिंदू


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