भूगोल
जलयुक्ता शिवार
प्रीलिम्स के लिये:जलयुक्ता शिवार मेन्स के लिये:जल संसाधन तथा उनका संरक्षण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने पाँच वर्ष पूर्व प्रारंभ की गई प्रमुख जल संरक्षण परियोजना ‘जलयुक्ता शिवार’ (Jalyukta Shivar) को समाप्त कर दिया है।
क्या है जलयुक्ता शिवार?
- महाराष्ट्र में लगातार सूखे की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इसे दिसंबर 2014 में लॉन्च किया गया था।
- इस परियोजना का उद्देश्य, व्यवस्थित तरीके से सर्वाधिक सूखा प्रभावित गाँवों में जल की कमी को दूर करना था।
- महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ सहित राज्य का लगभग 52% भौगोलिक क्षेत्र सूखे से प्रभावित है।
महाराष्ट्र राज्य का भौगोलिक विभाजन:
- महाराष्ट्र में कुल 36 ज़िले हैं जिन्हें भौगोलिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक आधारों पर पाँच क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।
1. कोंकण: ‘कोंकण’ जिसका शाब्दिक अर्थ 'तट' है, भारत के पश्चिमी तट का भाग है जिसे कोंकण तट के रूप में जाना जाता है।
2. देश: यह पश्चिमी घाट के पूर्व, खानदेश के दक्षिण, मराठवाड़ा के पश्चिम तथा कर्नाटक उत्तर दिशा में स्थित है।
3. खानदेश: यह मध्य भारत में एक भौगोलिक क्षेत्र है, जो महाराष्ट्र राज्य के उत्तर-पश्चिमी हिस्से का निर्माण करता है।
4. मराठवाड़ा: यह विदर्भ के पश्चिम में और खानदेश के पूर्व में स्थित है। औरंगाबाद मराठवाड़ा का सबसे बड़ा शहर है।
5. विदर्भ: यह महाराष्ट्र राज्य के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में है, जिसमें नागपुर और अमरावती संभाग शामिल हैं।
- इस परियोजना का उद्देश्य मौजूदा जल संसाधनों जैसे- नहरों, बाँधों और तालाबों में मानसून के दौरान अधिकतम वर्षावाही-जल ( Run-off Rainwater) को संरक्षित करना था।
- संसाधनों की मज़बूती के लिये प्राकृतिक जल-धाराओं को चौड़ा व गहरा करना, उन्हें निकटवर्ती जल भंडारण स्रोतों से जोड़ना, मिट्टी या कंक्रीट के चेक-डैम निर्माण करना आदि कार्य शामिल था।
- परियोजना के पहले चरण (वर्ष 2015-2019) के दौरान प्रति वर्ष 5,000 गाँवों को सूखा मुक्त बनाने की परिकल्पना की गई थी।
परियोजना का मूल्यांकन:
- सरकार का मानना है कि उसने 16,000 सूखाग्रस्त गाँवों का कायाकल्प कर दिया है, सिंचाई कवर 34 लाख हेक्टेयर तक बढ़ गया है तथा 24 लाख ट्रिलियन क्यूबिक मीटर जल का स्टॉक किया गया।
- यद्यपि सरकार के पास इस संबंध में आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं कि जल-दबाव (Water Stress) में कमी लाकर कितने ज़िलों को सूखा मुक्त घोषित किया गया।
जल की कमी (Water Scarcity):
- इसमें केवल जल की उपलब्धता पर ध्यान दिया जाता है।
जल-तनाव (Water Stress):
- जल-तनाव से तात्पर्य जलाभाव की उस स्थिति से है जब ताज़े जल की उपलब्धता मानवीय और पारिस्थितिक मांग को पूरा नहीं कर पाती है।
- जल की कमी की तुलना में ‘जल का तनाव’ एक अधिक समावेशी और व्यापक अवधारणा है। यह जल संसाधनों से संबंधित कई भौतिक पहलुओं पर विचार करता है, जिसमें पानी की उपलब्धता, पानी की गुणवत्ता और पानी की पहुँच शामिल है।
जल-जोखिम (Water Risk):
- यह जलसंबंधी चुनौती का सामना करने वाली इकाई की संभावना को दर्शाता है जो विशिष्ट कारक की सुभेद्यता पर निर्भर करता है।
परियोजना की समाप्ति:
- परियोजना में जल संरक्षण संबंधी 10,094 कार्यों को पूरा करना था परंतु लगभग 1,300 कार्यों में विसंगतियाँ पाई गईं जिससे यह विपक्षी दलों के लिये राजनीतिक हथियार बन गया था, अत: महाराष्ट्र की नवगठित सरकार ने इसे हटाने का फैसला किया।
आगे की राह:
- जलयुक्ता शिवार जैसी नवीन योजना को राज्य में लागू करना होगा तथा जल संकट से निपटने हेतु राज्य सरकार को नवीन ठोस कदम उठाने होंगे।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
SPICe + वेब फॉर्म का उद्घाटन
प्रीलिम्स के लिये:SPICe + वेब फॉर्म, व्यापार सुगमता सूचकांक मेन्स के लिये:व्यापार सुगमता के मार्ग में आने वाली प्रमुख समस्याएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs-MCA) ने ‘SPICe+’ वेब फॉर्म का उद्घाटन किया।
क्या है SPICe+ वेब फॉर्म:
- भारत सरकार की ‘इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ (Ease of Doing Business-EODB) पहल के एक भाग के रूप में कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने SPICe+ (जिसे SPICe प्लस के रूप में जाना जाता है ) नामक एक वेब फाॅर्म (डिजिटल प्लेटफॉर्म) को अधिसूचित किया है।
- इस वेब फाॅर्म से व्यापार की सुगमता में आने वाली समस्याओं यथा- प्रक्रियागत जटिलता, समय की देरी और अधिक लागत आदि का समाधान संभव हो पायेगा।
- यह वेब फाॅर्म केंद्र सरकार के 3 मंत्रालयों (कॉर्पोरेट मामलों का मंत्रालय, श्रम मंत्रालय और वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग) तथा 1 राज्य (महाराष्ट्र) को लगभग 10 सेवाएँ प्रदान करेगा।
SPICe+ वेब फाॅर्म की विशेषताएँ:
- SPICe+ एक एकीकृत वेब फॉर्म होगा, जिसके दो भाग हैं:
- भाग A- नई कंपनियों के नाम को आरक्षित करने के लिये।
- भाग B- विभिन्न सेवाओं को एक साथ लिंक करने यथा-PAN (Permanent Account Number) का अनिवार्य मुद्दा, DIN (Director Identification Number) आवंटन आदि के लिये।
- नया वेब फॉर्म ऑन-स्क्रीन फाइलिंग और कंपनियों के निर्बाध समावेश (Incorporated) के लिये वास्तविक समय डेटा सत्यापन (Real Time Data Validation) की सुविधा प्रदान करेगा।
- नई कंपनियों को SPICe+ के माध्यम से समावेशन के लिये कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (Employees' Provident Fund Organisation- EPFO) और कर्मचारी राज्य बीमा निगम (Employees State Insurance Corporation- ESIC) में पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
- महाराष्ट्र राज्य की नई कंपनियों के लिये SPICe+ के माध्यम से व्यवसाय टैक्स (Profession Tax) हेतु पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
- नई कंपनियों को बैंक खाते खोलने के लिये SPICe+ के माध्यम से आवेदन करना अनिवार्य होगा।
EODB के क्षेत्र:
- राष्ट्रीय स्तर पर सरकार निम्नलिखित 10 क्षेत्रों में सुधार के प्रयास कर रही है-
- किसी व्यवसाय को शुरू करना,
- निर्माण परमिट लेना
- बिजली प्राप्त करना
- संपत्ति को पंजीकृत करना
- ऋण प्राप्त करना
- लघु निवेशकों की रक्षा करना
- करों का भुगतान करना
- सीमा पार व्यापार
- अनुबंधों को लागू करना
- दिवालियापन की समस्या को हल करना
EODB के लिये उठाए गए कदम:
- ऑनलाइन प्लेटफाॅर्म का बेहतर उपयोग, व्यावसायिक प्रमाणीकरण की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना, परमिट के निर्माण में लगने वाले समय को कम करना।
- GST (Goods and Services Tax), मेक इन इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, मुद्रा योजना जैसी पहलें प्रारंभ की हैं, जिनकी सहायता से लोगों द्वारा व्यवसाय करना और व्यापार के लिये पूंजी प्राप्त आसान हो गया है।
- लघु और मध्यम उद्योगों की क्षमता को ठीक से पहचान कर इनमें वित्त के प्रवाह को बढ़ावा देने के लिये छोटे-छोटे क्लस्टर विकसित करना, लघु और मध्यम उद्योगों तथा कृषि क्षेत्र में ऋण की उपलब्धता बढ़ाने के लिये MCLR (Marginal Cost of Fund Based Lending Rate) प्रणाली के स्थान पर एक्सटर्नल बेंचमार्क रेट की प्रणाली लागू की गई है।
- हाल ही में कॉर्पोरेट करों में कटौती की गई है ताकि निवेश लागत कम हो तथा निवेश को बढ़ावा मिले।
- ऑनलाइन प्लेटफाॅर्म के संदर्भ में भारत डिजिटल इंडिया का क्रियान्वयन कर रहा है जिसके तहत व्यापार प्रारंभ करना, संचालित करना, ऋण उपलब्धता अधिक आसान हो गई है।
आगे की राह:
- विश्व बैंक के ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस सूचकांक-2020’ में भारत 63वें स्थान पर पहुँच गया है लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था की आर्थिक वृद्धि दर लगातार कम हो रही है, इस कम होती गति को पुन: तेज़ करने हेतु GST व्यवस्था, NPA और दोहरे तुलनपत्र जैसी समस्याओं, भारतीय अर्थव्यवस्था संबंधी राजनीतिक निर्णयों में निवेशकों का विश्वास, IBC सुधार जैसे उपायों पर जल्द कार्यवाही की आवश्यकता है।
स्रोत: पीआईबी
शासन व्यवस्था
आयुध अधिनियम, 1959 एवं आयुध नियम, 2016 में संशोधन
प्रीलिम्स के लिये:आयुध नियम, 2016 मेन्स के लिये:आयुध (संशोधन) अधिनियम, 2019, शस्त्रों के अधिग्रहण एवं उपयोग से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आयुध अधिनियम, 1959 एवं आयुध नियम, 2016 में संशोधन संबंधी अधिसूचना जारी की है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- आयुध अधिनियम एवं आयुध नियम में संशोधन का मुख्य उद्देश्य खिलाड़ियों द्वारा रखे जा सकने वाले अग्न्यायुधों की संख्या में वृद्धि करना है।
- शूटिंग भारत में एक महत्त्वपूर्ण ओलंपिक खेल है। भारतीय निशानेबाज़ों ने अंतराष्ट्रीय स्पर्द्धाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। इसे ध्यान में रखते हुए गृह मंत्रालय आयुध अधिनियम, 1959 के अंतर्गत जारी अधिसूचना के तहत भारतीय निशानेबाज़ों को अभ्यास के लिये अब पर्याप्त मात्रा में अग्न्यायुध तथा गोला बारूद रखने की अनुमति देगा। इस प्रावधान के उपरांत खिलाड़ी विभिन्न प्रकार के शस्त्रों से अभ्यास कर सकेंगे।
- आयुध अधिनियम, 1959 देश के भीतर हथियारों के गैर-कानूनी संग्रहण को रोकने के लिये लाया गया था। ध्यातव्य है कि वर्ष 1959 के इस अधिनियम में व्याप्त खामियों को दूर करने के लिये सरकार ने दिसंबर 2019 में आयुध (संशोधन) अधिनियम, 2019 पारित किया है।
आयुध अधिनियम, 1959 में संशोधन
- संशोधन के अनुसार, अब अंतर्राष्ट्रीय पदक विजेता एवं विख्यात निशानेबाज़ को अधिकतम 12 शस्त्र रखने की रियायत दी गई है, जबकि पहले यह संख्या केवल 7 थी।
- यदि कोई निशानेबाज़ किसी एक प्रतियोगिता में विख्यात है तो उसे अधिकतम 8 शस्त्र रखने की रियायत दी गई है, जबकि यह संख्या पहले केवल 4 थी।
- इस संशोधन के अनुसार, कनिष्ठ लक्ष्य शूटर/महत्त्वाकांक्षी शूटर भी अब किसी भी वर्ग के 2 शस्त्र रख सकते हैं जबकि पहले उनको केवल 1 शस्त्र ही रखने की अनुमति थी।
- इन रियायत प्राप्त वर्गों के शस्त्रों के अतिरिक्त भी खिलाड़ी आयुध अधिनियम, 1959 के अंतर्गत 2 अतिरिक्त शस्त्र बतौर सामान्य नागरिक रख सकते हैं।
- आयुध (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा किये गए संशोधन के तहत किसी व्यक्ति द्वारा रखे जाने वाले अग्न्यायुधों की अधिकतम संख्या को 3 से घटाकर 2 कर दिया गया है तथा जिन व्यक्तियों के पास 3 लाइसेंसी अग्न्यायुध हैं तो उन्हें अपना कोई भी एक अग्न्यायुध 13 दिसंबर, 2020 तक अधिनियम में दिये गए प्रावधान के अनुसार जमा करने की सुविधा प्रदान की गई है।
आयुध नियम, 2016 में संशोधन
- अधिनियम में संशोधन की ही भाँति गृह मंत्रालय ने आयुध नियम, 2016 की धारा 40 में भी संशोधन किया है जिसके अनुसार, खिलाड़ियों द्वारा अभ्यास के लिये एक वर्ष के दौरान क्रय किये जाने वाले गोला बारूद की मात्रा में भी भारी बढ़ोतरी की गई है।
- इसके अतिरिक्त गृह मंत्रालय ने आयुध अधिनियम, 1959 में संशोधन के कारण भी आयुध नियम, 2016 में अन्य ज़रूरी संशोधन किये हैं।
- इन संशोधनों के अनुसार, 50 वर्ष से पुराने दुर्लभ वस्तु की श्रेणी में आने वाले लघु आयुधों को प्राप्त करने अथवा कब्ज़े के लिये भारतीय नागरिकों को लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होगी।
- किंतु ऐसे आयुधों के उपयोग, वहन या परिवहन के लिये उपयुक्त लाइसेंस की आवश्यकता होगी तथा लाइसेंस में प्रविष्टि के बिना धारक को उन शस्त्रों के उपयोग हेतु गोला-बारूद की बिक्री नहीं की जाएगी।
संशोधन का महत्त्व
- आयुध अधिनियम एवं नियम में संशोधन के फलस्वरूप विभिन्न स्तर पर विख्यात निशानेबाजों को अभ्यास करने हेतु अलग-अलग प्रकार के शस्त्र उपलब्ध हो सकेंगे ताकि वे विभिन्न मंचों पर बेहतर प्रदर्शन कर सकें।
- इन संशोधनों में खिलाड़ियों को अतिरिक्त 2 शस्त्र रखने की भी अनुमति दी गई है जो कि खिलाड़ियों के लिये आत्मरक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
आगे की राह
- भारत में खेल एवं शिक्षा के मध्य समन्वय बनाने की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है, ध्यातव्य है कि अधिकतर भारतीय अभिभावक अपने बच्चों के लिये खेल की अपेक्षा केवल शिक्षा को महत्त्व देते हैं।
- पुराने एवं उपयोगिता रहित कानूनों को समाप्त किये जाने की आवश्यकता है तथा मौजूदा कानूनों को वर्तमान समय की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जाना चाहिये।
स्रोत: पी.आई.बी.
सामाजिक न्याय
किशोर न्याय अधिनियम पर मंत्री समूह की बैठक
प्रीलिम्स के लिये:GoM, बाल कल्याण समिति मेन्स के लिये:किशोर न्याय से संबंधित मुद्दे, किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री की अध्यक्षता में किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम [Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act], 2015 में संशोधन के संदर्भ में चर्चा करने हेतु मंत्री समूह (Group of Ministers- GoM) की बैठक का आयोजन किया गया।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- इस बैठक का आयोजन जनवरी में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देश के फलस्वरूप हुआ है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 में उन अपराधों की श्रेणी का निर्धारण करने का निर्देश दिया था जो जघन्य अपराध तो नहीं हैं लेकिन फिर भी उनके लिये 7 साल की जेल की सज़ा का प्रावधान है।
- किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2018 पर मंत्रालयों के बीच अधिक तालमेल बनाने के लिये GoM की बैठक बुलाई गई थी।
मंत्री समूह की बैठक के मुख्य बिंदु
- मंत्री समूह की बैठक का मुख्य उद्देश्य किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 में प्रस्तावित संशोधनों पर व्यापक चर्चा करना है।
- इस बैठक में ज़िला मजिस्ट्रेटों को नाबालिगों के विरुद्ध मामलों में प्रशासक के रूप में कार्य करने हेतु सशक्त बनाने पर भी चर्चा की गई।
- किशोर न्याय अधिनियम के अनुसार, कोई भी ज़िला अधिकारी जो राज्य के उपसचिव रैंक से नीचे का नहीं है और जिसे मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ प्राप्त हैं, प्रशासक की श्रेणी में आता है।
- सरकार उपसचिव को जिला मजिस्ट्रेट के साथ प्रतिस्थापित करने पर विचार कर रही है जिससे कि मामलों का त्वरित निपटान किया जा सके।
- प्रशासक प्रारंभिक जाँच का हिस्सा होता है जिसका काम यह पता लगाना है कि कानून का उल्लंघन करने वाला व्यक्ति नाबालिग है या नहीं। ध्यातव्य है कि प्रशासक पुलिस रिपोर्ट के आधार पर इस संदर्भ में अपनी राय देता है।
- यदि प्रशासक, अपराध में किसी नाबालिग की संलिप्तता पाता है तो वह मामले को किशोर न्याय बोर्ड के पास भेजता है जहाँ न्यायिक मजिस्ट्रेट किशोर की उम्र के साथ-साथ मामले के संदर्भ में अपना फैसला सुनाता है।
किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015
- यह अधिनियम किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000 का स्थान लेता है। यह बिल उन बच्चों से संबंधित है जिन्होने कानूनन कोई अपराध किया हो और जिन्हें देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता हो।
- यह बिल जघन्य अपराधों में संलिप्त 16-18 वर्ष की आयु के बीच के किशोरों (जुवेनाइल) के ऊपर बालिगों के समान मुकदमा चलाने की अनुमति देता है। साथ ही कोई भी 16-18 वर्षीय जुवेनाइल जिसने कम जघन्य अर्थात् गंभीर अपराध किया हो उसके ऊपर बालिग के समान केवल तभी मुकदमा चलाया जा सकता है जब उसे 21 वर्ष की आयु के बाद पकड़ा गया हो।
- इस अधिनियम के अनुसार, प्रत्येक ज़िले में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (Juvenile Justice Board- JJB) और बाल कल्याण समितियों (Child Welfare Committees) के गठन का प्रावधान है।
- इस अधिनियम में बच्चे के विरुद्ध अत्याचार, बच्चे को नशीला पदार्थ देने और बच्चे का अपहरण या उसे बेचने के संदर्भ में दंड निर्धारित किया गया है।
- इस अधिनियम में गोद लेने के लिये माता-पिता की योग्यता और गोद लेने की पद्धति को शामिल किया गया है।
किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2018
- यह विधेयक ज़िला मजिस्ट्रेट को बच्चे को गोद लेने के आदेश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है ताकि गोद लेने संबंधी लंबित मामलों की संख्या को कम किया जा सके।
- इस विधेयक में किसी भी अदालत के समक्ष गोद लेने से संबंधित सभी लंबित मामलों को ज़िला मजिस्ट्रेट को स्थानांतरित करने का प्रावधान है। इसके माध्यम से मामलों की कार्यवाही में तेज़ी लाने का प्रयास किया जा रहा है।
मंत्री समूह
(Group of Ministers- GoM)
- विभिन्न मुद्दों/विषयों पर चर्चा करने के लिये समय-समय पर मंत्रियों के समूह (GoM) का गठन किया जाता है।
- ये तदर्थ निकाय हैं जो उभरते मुद्दों और महत्त्वपूर्ण रूप से समस्या ग्रस्त क्षेत्रों पर कैबिनेट को सिफारिशें देने के लिये गठित किये जाते हैं।
- मंत्री समूह में मंत्रालयों के प्रमुखों को शामिल किया जाता है और जब समस्या का समाधान हो जाता है तो उन मंत्री समूहों को भंग कर दिया जाता है।
- गौरतलब है कि वर्ष 2015 में देश के प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करने के लिये 16 अनौपचारिक मंत्री समूह (GoMs) बनाए गए थे।
- कुछ मंत्री समूहों को कैबिनेट की ओर से फैसले लेने की शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। जिन्हें शक्ति प्राप्त मंत्री समूह (Empowered Groups of Ministers- EGoMs) कहा जाता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीय इस्पात उद्योग
प्रीलिम्स के लियेभारतीय इस्पात उद्योग से संबंधित आँकड़े मेन्स के लियेइस्पात उद्योग का महत्त्व और चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इस्पात मंत्रालय के लिये संसद सदस्यों की सलाहकार समिति की बैठक का आयोजन किया गया। ‘इस्पात क्लस्टर विकास’ (Steel Cluster Development) विषय पर आयोजित इस बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और इस्पात मंत्री धर्मेंद्र प्रधान द्वारा की गई।
प्रमुख बिंदु
- इस अवसर पर केंद्रीय इस्पात मंत्री ने कहा कि इस्पात भारत के औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, क्योंकि यह बुनियादी ढाँचा, निर्माण और ऑटोमोबाइल जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लिये एक आवश्यक इनपुट है।
- नवीन आँकड़ों के अनुसार, भारतीय इस्पात क्षमता में 142 मिलियन टन प्रतिवर्ष (Million Tonnes Per Annum-MTPA) तक की वृद्धि हुई है, इसके साथ ही भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश बन गया है।
- वर्ष 2024-25 तक कुल इस्पात की खपत लगभग 160 MTPA होने की उम्मीद है, साथ ही भारत सरकार इस्पात के घरेलू उत्पादन और खपत को भी प्रोत्साहित कर रही है।
- बैठक के दौरान सभी भागीदारों ने इस्पात उद्योग और विशेष रूप से क्लस्टर नीति के संदर्भ अपने सुझाव प्रस्तुत किये।
इस्पात उद्योग का महत्त्व
- किसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिये एक जीवंत घरेलू इस्पात उद्योग का होने आवश्यक है क्योंकि यह निर्माण, बुनियादी ढाँचे, मोटर वाहन, पूंजीगत वस्तुओं, रक्षा, रेल आदि जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लिये एक महत्त्वपूर्ण इनपुट होता है।
- इस्पात को इसकी पुनर्चक्रण प्रकृति (Recyclable Nature) के कारण पर्यावरणीय रूप से स्थायी आर्थिक विकास के लिये भी एक महत्त्वपूर्ण चालक माना जाता है।
- आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन में इस्पात उद्योग की महत्त्वपूर्ण भूमिका के कारण भी इसका महत्त्व काफी अधिक बढ़ जाता है।
- इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत का स्तर किसी भी देश में सामाजिक-आर्थिक विकास और लोगों के जीवन स्तर के एक महत्त्वपूर्ण सूचकांक के रूप में माना जाता है।
भारतीय इस्पात क्षेत्र
- इस्पात उद्योग भारत में औद्योगिक विकास का एक मुख्य आधार रहा है। स्वतंत्रता के समय 1 MTPA की क्षमता के साथ शुरुआत करने वाला भारतीय इस्पात उद्योग आज 142 MTPA की क्षमता पर पहुँच गया है।
- आँकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर वर्ष 2018 में कुल कच्चे इस्पात का उत्पादन 1789 MTPA पहुँच गया था, जिसमें वर्ष 2017 के मुकाबले 4.94 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। ज्ञात हो कि वर्ष 2018 में चीन दुनिया का सबसे बड़ा कच्चा इस्पात उत्पादक (923 MTPA) था।
- इसके अलावा चीन और अमेरिका के पश्चात् भारत विश्व में तीसरा सबसे बड़ा इस्पात उपभोक्ता है।
- सरकार ने इस्पात उद्योग को बढ़ावा देने के लिये कई कदम उठाए हैं जिसमें राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 और स्वचालित मार्ग के तहत इस्पात उद्योग में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दे दी गई है।
इस्पात उद्योग का विकास
- वर्ष 1991 के पश्चात् भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए आर्थिक सुधारों ने सामान्य रूप से औद्योगिक विकास और विशेष रूप से इस्पात उद्योग में नए आयाम शामिल किये।
- इन सुधारों के तहत क्षमता निर्माण हेतु लाइसेंस की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया था। कुछ स्थानीय प्रतिबंधों को छोड़कर इस्पात उद्योग को सार्वजनिक क्षेत्र के लिये आरक्षित उद्योगों की सूची से हटा दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय इस्पात उद्योग में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ने लगी और उद्योग तीव्र गति से विकास करने लगा।
- इसके पश्चात् सरकार ने उद्योग में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये स्वचालित मार्ग से 100 प्रतिशत विदेशी इक्विटी निवेश की स्वीकृति प्रदान कर दी।
इस्पात उद्योग की चुनौतियाँ
- इस्पात उद्योग एक पूंजी प्रधान उद्योग है। अनुमानतः 1 टन स्टील बनाने की क्षमता स्थापित करने के लिये लगभग 7,000 करोड़ रुपए की आवश्यकता होती है। आमतौर पर इस प्रकार का वित्तपोषण उधार ली गई राशि के माध्यम से किया जाता है। किंतु भारत में चीन, जापान और कोरिया जैसे देशों की अपेक्षा वित्त की लागत काफी अधिक है जो कि इस उद्योग के विकास में एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आया है।
- अधिकांश भारतीय इस्पात निर्माताओं के लिये लाॅजिस्टिक्स आवश्यकताओं का प्रबंधन करना काफी कठिन, चुनौतीपूर्ण और महँगा होता है।
- पर्यावरण संबंधी चिंताएँ लगातार केंद्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करती जा रही हैं, हालाँकि भारत के भविष्य के लिये यह एक अच्छी खबर है, किंतु ये चिंताएँ कई उद्योगों के विकास में बाधा उत्पन्न कर रही हैं, जिनमें इस्पात उद्योग भी शामिल है।
आगे की राह
- आर्थिक विकास में इस्पात उद्योग की भूमिका को देखते हुए इस्पात उद्योग का अनवरत विकास भारतीय दृष्टिकोण से अच्छी खबर है।
- हालाँकि इस उद्योग के विकास में अभी भी कई बाधाएँ मौजूद हैं, जिन्हें जल्द-से-जल्द संबोधित कर उद्योग का विकास सुनिश्चित किया जाना अति आवश्यक है। किंतु इसके परिणामस्वरूप होने वाली पर्यावरणीय क्षति को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिये।
स्रोत: पी.आई.बी
कृषि
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की पहली वर्षगांठ
प्रीलिम्स के लियेप्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना मेन्स के लियेपीएम-किसान से संबंधित तथ्य, योजना के उद्देश्य और चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
24 फरवरी, 2019 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में शुरू हुई महत्त्वाकांक्षी प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) योजना ने एक वर्ष पूरा कर लिया है।
प्रमुख बिंदु
- इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने पीएम-किसान मोबाइल एप भी लॉन्च किया है।
- इस एप का उद्देश्य योजना की पहुँच को और अधिक व्यापक बनाना है। इस एप के माध्यम से किसान अपने भुगतान की स्थिति जान सकते हैं, साथ ही योजना से संबंधित अन्य मापदंडों के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
पीएम-किसान योजना की मौजूदा स्थिति
- मौजूदा वित्तीय वर्ष के केंद्रीय बजट में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) योजना के लिये 75,000 करोड़ रुपए की राशि प्रदान की गई है, जिसमें से 50,850 करोड़ रुपए से अधिक की राशि जारी की जा चुकी है।
- आँकड़ों के अनुसार, अब तक 8.45 करोड़ से अधिक किसान परिवारों को इस योजना का लाभ पहुँचाया जा चुका है, जबकि इस योजना के तहत कवर किये जाने वाले लाभार्थियों की कुल संख्या 14 करोड़ है।
- केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने घोषणा की है कि पीएम-किसान योजना के सभी लाभार्थियों को किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card-KCC) प्रदान किया जाएगा, ताकि वे आसानी से बैंक से ऋण प्राप्त कर सकें।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना
- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) योजना एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 24 फरवरी, 2019 को लघु एवं सीमांत किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी।
- इस योजना के तहत पात्र किसान परिवारों को प्रतिवर्ष 6,000 रुपए की दर से प्रत्यक्ष आय सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
- यह आय सहायता 2,000 रुपए की तीन समान किस्तों में लाभान्वित किसानों के बैंक खातों में प्रत्यक्ष रूप से हस्तांतरित की जाती है, ताकि संपूर्ण प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
- आरंभ में यह योजना केवल लघु एवं सीमांत किसानों (2 हेक्टेयर से कम जोत वाले) के लिये ही शुरू की गई थी, किंतु 31 मई, 2019 को कैबिनेट द्वारा लिये गए निर्णय के उपरांत यह योजना देश भर के सभी किसानों हेतु लागू कर दी गई।
- इस योजना का वित्तपोषण केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा है। इस योजना पर अनुमानतः 75 हज़ार करोड़ रुपए का वार्षिक व्यय आएगा।
योजना का उद्देश्य
- इस योजना का प्राथमिक उद्देश्य देश के लघु एवं सीमांत किसानों को प्रत्यक्ष आय संबंधी सहायता प्रदान करना है।
- यह योजना लघु एवं सीमांत किसानों को उनकी निवेश एवं अन्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिये आय का एक निश्चित माध्यम प्रदान करती है।
- योजना के माध्यम से लघु एवं सीमांत किसानों को साहूकारों तथा अनौपचारिक ऋणदाता के चंगुल से बचाने का प्रयास किया जा रहा है।
चुनौतियाँ
- ध्यातव्य है कि पश्चिम बंगाल अब तक इस योजना में शामिल नहीं हुआ है। आधिकारिक सूचना के अनुसार, पश्चिम बंगाल सरकार ने किसानों के डेटा को सत्यापित (Verified) नहीं किया है। अनुमानित आँकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में लगभग 70 लाख लोग योजना के लिये पात्र हैं।
- पश्चिम बंगाल के कुल पात्र किसानों में से लगभग 10 लाख किसानों ने व्यक्तिगत रूप से ऑनलाइन आवेदन किया है, किंतु किसानों के संपूर्ण डेटाबेस का राज्य सरकार द्वारा सत्यापित किया जाना अभी शेष है।
- बिहार में लाभार्थियों की संख्या 158 लाख है, जबकि केवल 59.7 लाख किसानों का डेटा ही अपलोड किया गया है। राज्य ने लाभार्थी आवेदन के लिये अलग पद्धति अपनाई है जिसके कारण पहचान और डेटा अपलोड करने में देरी हो रही है।
निष्कर्ष
देश में किसानों की मौजूदा स्थिति को देखते हुए इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता की यह योजना किसानों को एक आर्थिक आधार प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। हालाँकि कई विशेषज्ञों का मानना है कि योजना के तहत दी जा रही सहायता राशि अपेक्षाकृत काफी कम है, किंतु हमें यह समझना होगा कि इस योजना का उद्देश्य किसानों को उनकी निवेश संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये एक आर्थिक आधार प्रदान करना है, ताकि वे फसल उत्पादन में नवीन तकनीक और गुणवत्तापूर्ण बीजों का प्रयोग कर उत्पादन में बढ़ोतरी कर सकें। आवश्यक है कि योजना के मार्ग में स्थित विभिन्न बाधाओं को समाप्त कर इसे अधिक-से-अधिक किसानों के लिये लाभदायी बनाया जा सके।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
शून्य मसौदा: वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क
प्रीलिम्स के लिये:COP-13, आईची लक्ष्य , एजेंडा 2030 मेन्स के लिये:वर्ष 2020 के बाद वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क का शून्य मसौदा (Zero Draft) |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क (वर्ष 2020 के बाद के लिये) के शून्य मसौदे (Zero Draft) में विश्व की जैव विविधता की गिरती स्थिति और इसे संरक्षित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया।
मुख्य बिंदु:
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के तहत वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण (Conservation of Migratory Species of Wild Animals- CMS) पर 13वें COP (Conference of Parties) में इस मसौदे पर चर्चा हुई।
- 6 मई, 2019 को पेरिस में जैव विविधता पर जारी रिपोर्ट ‘जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतर-सरकारी विज्ञान-नीति मंच (Intergovernmental Science-Policy Platform on Biodiversity and Ecosystem Services)’ का पालन करते हुए जनवरी 2020 को शून्य मसौदा को जारी किया गया।
- शून्य मसौदे के अनुसार-
‘जैव विविधता वाले क्षेत्रों तथा पारिस्थितिकी तंत्र में मानव जनित गतिविधियों के कारण अतीत एवं वर्तमान में तेज़ी से गिरावट का मतलब है कि अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक एवं पर्यावरणीय लक्ष्य जैसे- आइची जैव विविधता लक्ष्य (Aichi Biodiversity Targets) और सतत् विकास के लिये एजेंडा 2030 (2030 Agenda for Sustainable Development) इस आधार पर हासिल नहीं किये जा सकेंगे।’
नया फ्रेमवर्क:
- नया फ्रेमवर्क ‘परिवर्तन के सिद्धांत’ पर आधारित होगा। इस फ्रेमवर्क में वर्तमान वैश्विक रुझानों और भविष्य के परिदृश्यों को भी समाहित किया गया है। इसमें निम्नलिखित बिंदु शामिल होंगे-
- संसाधन जुटाना।
- वंचित समूहों को मुख्य धारा में लाना।
- डिजिटल अनुक्रम से संबंधित जानकारी प्राप्त करना।
- सतत् उपयोगी क्षमता-निर्माण।
- राष्ट्रीय स्तर पर योजना तैयार करना।
- रिपोर्टिंग की प्रक्रिया को बढ़ावा देना।
- ज़िम्मेदारी एवं पारदर्शिता से जुड़े मुद्दों पर ध्यानाकर्षण।
- लक्ष्यों की प्रगति का आकलन करने के लिये संकेतकों का प्रयोग।
- इसे एक अधिकार-आधारित दृष्टिकोण का उपयोग करके और ‘अंतर-पीढ़ी इक्विटी के सिद्धांत’ को मान्यता देते हुए लागू किया जाएगा। जबकि फ्रेमवर्क के विवरण को इस वर्ष के अंत तक अंतिम रूप दिया जाएगा, इसे वर्ष 2020-30 के बीच लागू करने का लक्ष्य रखा गया है।
उद्देश्य:
- इस कार्रवाई का उद्देश्य विज़न 2050 के तहत जैव विविधता के संरक्षण के साथ-साथ प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करना है।
- इस फ्रेमवर्क के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये सरकारों एवं समाज के सभी देशज़ लोगों और स्थानीय समुदायों, नागरिक समाज तथा औद्योगिक समूहों के साथ मिलकर तत्काल एवं परिवर्तनकारी कार्रवाई को बढ़ावा देना है।
परिवर्तन का सिद्धांत (Theory of Change):
- इस फ्रेमवर्क में परिवर्तन के सिद्धांत के तहत सामाजिक, आर्थिक एवं वित्तीय मॉडल को बदलने के लिये वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर तत्काल नीतिगत कार्रवाई की आवश्यकता बताई गई है ताकि अगले 10 वर्षों (वर्ष 2030 तक) में जैव विविधता के नुकसान को कम करने वाली प्रवृत्तियों में स्थिरता लाई जा सके और अगले 20 वर्षों तक (वर्ष 2050 तक) प्रमुख सुधारों के साथ प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों में सुधार करके वर्ष 2050 तक प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
- परिवर्तन का सिद्धांत सतत् विकास के लिये एजेंडा 2030 का पूरक एवं सहायक है। यह जैव विविधता से संबंधित तथा रियो सम्मेलनों सहित अन्य बहुपक्षीय पर्यावरण समझौतों की दीर्घकालिक रणनीतियों और लक्ष्यों को भी ध्यान में रखता है।
- असमान व्यापार परिदृश्यों के कारण जैव विविधता में गिरावट जारी रहने या बिगड़ने का अनुमान लगाया गया है।
- शून्य मसौदे के अनुसार, यह फ्रेमवर्क जैव विविधता के साथ समाजिक संबंधों में परिवर्तन लाने के लिये व्यापक कार्रवाई को लागू करने हेतु एक महत्त्वाकांक्षी योजना तैयार करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वर्ष 2050 तक प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाने का साझा विज़न पूरा हो।
- जैव विविधता लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये लोगों की भागीदारी को लेकर मसौदे में बताया गया है कि फ्रेमवर्क के लिये परिवर्तन का सिद्धांत लैंगिक समानता, महिला सशक्तीकरण, युवा, लैंगिक उत्तरदायी दृष्टिकोण की उचित पहचान की आवश्यकता को स्वीकार करता है और इस फ्रेमवर्क के कार्यान्वयन में स्वदेशी लोगों एवं स्थानीय समुदायों की पूर्ण व प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करता है।
- इस फ्रेमवर्क में जैव विविधता के लिये 2050 विज़न से संबंधित वर्ष 2050 हेतु पाँच दीर्घकालिक लक्ष्य हैं। इन लक्ष्यों में से प्रत्येक लक्ष्य वर्ष 2030 के परिणाम से संबद्ध है। ये पाँच दीर्घकालिक लक्ष्य निम्नलिखित हैं-
- अनुवांशिक विविधता, पारिस्थिकी तंत्र और प्रजातियों का संरक्षण।
- संसाधनों का सतत् उपयोग।
- लाभांश का सामान वितरण।
- स्वस्थ्य एवं सुदृढ पारिस्थिकी तंत्र तथा स्वस्थ्य प्रजातियाँ।
- मनुष्य की जरूरत को पूरा करना।
- यह फ्रेमवर्क सतत् विकास के लिये एजेंडा 2030 के कार्यान्वयन में योगदान देगा। साथ ही सतत् विकास लक्ष्यों की दिशा में प्रगति से फ्रेमवर्क को लागू करने में मदद मिलेगी।
आईची जैव विविधता लक्ष्य:
- वर्ष 2010 में नगोया, जापान के आईची प्रांत में आयोजित जैव विविधता अभिसमय (सीबीडी) के 10वें सम्मेलन में जैव विविधता की अद्यतन रणनीतिक योजना जिसे आईची लक्ष्य नाम दिया गया, को स्वीकार किया गया।
- जैव विविधता अभिसमय के एक भाग के रूप में लघु अवधि की रणनीतिक योजना-2020 के तहत 2011-2020 के लिये जैव विविधता पर एक व्यापक रूपरेखा तैयार की गई। इसके अंतर्गत सभी पक्षकारों को जैव विविधता के लिये कार्य करने हेतु एक 10 वर्षीय ढाँचा उपलब्ध कराया गया है।
- यह लघुवधि की योजना 20 महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों, जिसे सम्मिलित रूप से आईची लक्ष्य (Aichi Targets) कहते हैं, का एक समूह है।
- भारत ने 20 वैश्विक आईची जैव विविधता लक्ष्यों के अनुरूप 12 राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्य (NBT) विकसित किये है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
आपदा प्रबंधन
प्रतिमान और डेटा समावेशन सुनिश्चित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन
प्रीलिम्स के लिये:समष्टि विधियों द्वारा प्रतिमान और डेटा समावेशन सुनिश्चित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन मेन्स के लिये:भारत में मौसमी डेटा समावेशन संबंधी समस्याएँ |
चर्चा में क्यों?
24 फरवरी, 2020 से नोएडा में तीन दिवसीय ‘समष्टि विधियों द्वारा प्रतिमान और डेटा समावेशन सुनिश्चित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन’ [Ensemble Methods in Modelling and Data Assimilation (EMMDA)] का आयोजन किया जा रहा है।
मुख्य बिंदु:
- इस सम्मेलन का आयोजन पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences) के अंतर्गत स्थापित ‘राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र’ [National Centre for Medium Range Weather Forecasting (NCMRWF)] द्वारा किया जा रहा है।
- इस सम्मेलन का उद्देश्य मौसम पूर्वानुमान की वर्तमान स्थिति, भविष्य की संभावनाओं और साथ ही ‘एसेंबल प्रेडिक्शन सिस्टम (Ensemble Prediction System-EPS) के इष्टतम उपयोग पर ठोस चर्चा और विचार-विमर्श करना है।
‘एसेंबल प्रेडिक्शन सिस्टम’
(Ensemble Prediction System-EPS):
- एसेंबल प्रेडिक्शन सिस्टम मौसम की भविष्यवाणी करने की एक संख्यात्मक प्रणाली है जो मौसम के पूर्वानुमान के साथ-साथ संभावित परिणाम में अनिश्चितता का अनुमान लगाने में सहायता करती है। संख्यात्मक प्रणाली के अंतर्गत मौसम की भविष्यवाणी केवल एक नियतकालिक पूर्वानुमान के स्थान पर अलग-अलग प्रारंभिक स्थितियों के आधार पर की जाती है।
- भारत द्वारा हाल ही में दो वैश्विक EPS को प्रचलन में लाया गया है जिसका विश्व में उच्चतम रेज़ोल्यूशन है।
सम्मेलन के प्रमुख विषय:
(The Major themes of the Conference):
- मौसम की वैश्विक भविष्यवाणी के लिये एक सामूहिक प्रणाली विकसित करना।
- डेटा समावेशन के लिये एक सामूहिक प्रणाली विकसित करना।
- मासिक और मौसमी पूर्वानुमान हेतु एक सामूहिक प्रभाव प्रणाली विकसित करना।
- संवहन प्रभाव संबंधी पूर्वानुमान के लिये सामूहिक प्रणाली विकसित करना।
- मौसम के पूर्वानुमान के सामूहिक प्रभाव का सत्यापन करना।
- मौसम के पूर्वानुमान के सामूहिक प्रभाव के अनुप्रयोगों पर चर्चा करना।
सम्मेलन से संबंधित अन्य बिंदु:
- इस सम्मेलन में विभिन्न देशों की निम्नलिखित संस्थाएँ तथा विशेषज्ञ भाग लेंगे-
- ब्रिटेन के मौसम कार्यालय के विशेषज्ञ
- अमेरिका का नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फेयरिक एडमिनिस्ट्रेशन
- दक्षिण कोरिया का मौसम विभाग
- ऑस्ट्रेलिया का मौसम विभाग
- अमेरिका का मेरीलैंड विश्वविद्यालय
- ब्रिटेन की रीडिंग यूनिवर्सिटी
- न्यूजीलैंड का मौसम विभाग
- सउदी अरब का मौसम विभाग
- थाइलैंड के मौसम विभाग के अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ
- उपर्युक्त प्रमुख संगठनों के जाने-माने विशेषज्ञ भारतीय वैज्ञानिकों के साथ डेटा के सामूहिक समावेशन और प्रतिमान के क्षेत्र में तथा नवीनतम घटनाक्रमों के संबंध में चर्चा करेंगे।
- लगभग 20 युवा वैज्ञानिक और अनुसंधानकर्त्ता अपने अनुसंधान के निष्कर्षों को प्रस्तुत करेंगे।
- इनके अलावा सम्मेलन में विभिन्न क्षेत्रों के साझेदार, भविष्यवक्ताओं सहित करीब 100 प्रतिनिधि शामिल होंगे।
राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र:
(National Centre for Medium Range Weather Forecasting- NCMRWF):
- राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत मौसम और जलवायु मॉडलिंग में उत्कृष्टता का केंद्र है।
- इस केंद्र का उद्देश्य उन्नत संख्यासूचक मौसम भविष्यवाणी प्रणालियों को लगातार विकसित करना है जिसका कार्य भारत और पड़ोसी क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास करना है। साथ ही नए अनुप्रयोगों के माध्यम से ज्ञान और कौशल के उच्चतम स्तर को बनाए रखते हुए मौसम पूर्वानुमान में विश्वसनीयता और सटीकता बढ़ाना है।
आगे की राह:
हालाँकि अत्याधुनिक संख्यासूचक पूर्वानुमान प्रणालियों (Numerical Weather Prediction) को लागू करके और डेटा समावेशन की नवीनतम तकनीक को अपना कर पूर्वानुमान प्राप्त करने की दिशा में बेहतर कौशल हासिल कर लिया गया है, लेकिन यह सर्वविदित है कि मौसम की संख्यासूचक भविष्यवाणी से जुड़ी कुछ अनिश्चितताओं का हल खोजा जाना अभी भी ज़रूरी है।
स्रोत- पीआईबी
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 25 फरवरी, 2020
विश्वकर्मा पुरस्कार 2019
हाल ही में अलग-अलग क्षेत्रों में इनोवेशन करने वाले छात्रों की 23 टीमों को 'विश्वकर्मा' अवार्ड से सम्मानित किया गया, इन 23 टीमों को 8 अलग-अलग उप-श्रेणियों के तहत पुरस्कार के लिये चुना गया और प्रत्येक उप-श्रेणी में शीर्ष तीन टीमों को प्रशंसा प्रमाण पत्र और नकद धनराशि (51,000 रुपए, 31,000 और 21,000 रुपए) दी गई। इन टीमों के नवाचारों का उपयोग ऐसी परियोजनाएँ बनाने में किया जाएगा जो आम आदमी के जीवन की समस्याओं को हल करती हो। इस पुरस्कार की शुरुआत अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) द्वारा वर्ष 2017 में की गई थी। ‘विश्वकर्मा' अवार्ड के 2019 के संस्करण के लिये इंडियन सोसाइटी ऑफ टेक्निकल एजुकेशन (ISTE) और नीति आयोग के अटल इनोवेशन मिशन ने भी AICTE के साथ सहयोग किया था।
लैरी टेस्लर
कट, कॉपी, पेस्ट, फाइंड और रिप्लेस कमांड के आविष्कारक और मशहूर कंप्यूटर वैज्ञानिक लैरी टेस्लर (Larry Tesler) का 74 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। वर्ष 1945 में न्यूयॉर्क में जन्मे और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में ग्रेजुएट लैरी ने वर्ष 1973 में जेरॉक्स पालो अल्टो रिसर्च सेंटर से कैरियर की शुरुआत की थी। टेस्लर को ह्यूमन कंप्यूटर इंटरेक्शन में विशेषज्ञता प्राप्त थी तथा उन्होंने अमेज़न, एप्पल, याहू जैसी संस्थाओं में भी काम किया था।
सतत् विकास लक्ष्य सम्मेलन 2020
पूर्वोत्तर क्षेत्र में सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की प्रक्रिया को गति देने तथा इनके समाधान तलाशने के उद्देश्य से असम के गुवाहाटी में पूर्वोत्तर सतत् विकास लक्ष्य सम्मेलन-2020 का आयोजन किया जा रहा है। इस सम्मेलन का आयोजन पूर्वोत्तर विकास परिषद, असम सरकार तथा टाटा ट्रस्ट के साथ मिलकर नीति आयोग द्वारा किया जा रहा है। पूर्वोत्तर राज्यों की भागीदारी, सहयोग और विकास पर आधारित इस तीन दिवसीय सम्मेलन में पूर्वोत्तर राज्यों, केंद्रीय मंत्रालयों, शिक्षण संस्थानों, सामाजिक संगठनों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। उद्घाटन सत्र के बाद सतत् विकास लक्ष्यों का स्थानीयकरण, आर्थिक समृद्धि और सतत् आजीविका, जलवायु के अनुकूल कृषि, स्वास्थ्य और पोषण आदि विषयों पर तकनीकी सत्र आयोजित किये जा रहे हैं।
दिल्ली विधानसभा स्पीकर
दिल्ली विधानसभा के नए सत्र की शुरुआत के साथ ही शाहदरा से निर्वाचित विधायक राम निवास गोयल को एक बार पुनः सदन का अध्यक्ष चुना गया है। इसी के साथ राम निवास गोयल लगातार दूसरी बार दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष चुने गए। पिछले पाँच वर्ष में उन्होंने विधानसभा में बहुत से कार्य करवाए हैं। राम निवास गोयल के कार्यकाल में ही क्रांतिकारियों की गैलरी बनवाई गई और शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की प्रतिमाओं को लगवाने का कार्य किया गया। इसके अलावा दिल्ली विधानसभा में रिसर्च सेंटर भी स्थापित किया गया है। गौरतलब है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) को कुल 70 विधानसभा सीटों में से 62 सीटों पर विजय मिली है।
महातिर मोहम्मद
हाल ही में मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने राजनीतिक कारणों के चलते अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। ध्यातव्य है कि 94 वर्ष के महातिर मोहम्मद दुनिया के सबसे बूढ़े प्रधानमंत्री के तौर पर जाने जाते थे। वे 1981 से 2003 तक लगातार मलेशिया के प्रधानमंत्री रहे, इसके बाद 2018 में इन्होंने नजीब रज्ज़ाक को हराकर सत्ता में वापसी की थी। महातिर मोहम्मद का जन्म 10 जुलाई, 1925 को मलेशिया में हुआ था। ज्ञात हो कि महातिर मोहम्मद ने अनुच्छेद-370 को निलंबित किये जाने के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत द्वारा कश्मीर पर ‘आक्रमण करने और कब्ज़ा’ करने के आरोप लगाए थे। इसके पश्चात् भारत ने मलेशिया से धीरे-धीरे पाम आयल का आयात कम कर दिया। इसका मलेशिया के पाम आयल बाज़ार पर काफी अधिक प्रभाव पड़ा है।