अंतर्राष्ट्रीय संबंध
चीन तिब्बत में बना रहा नया बाँध
प्रिलिम्स के लिये:वास्तविक नियंत्रण रेखा, माब्जा ज़ांगबो नदी, गंगा नदी, ब्रह्मपुत्र नदी। मेन्स के लिये:तिब्बत में चीन द्वारा बनाए जा रहे नए बाँध के निर्माण पर चिंता। |
चर्चा में क्यों?
भारत, नेपाल और तिब्बत के ट्राई-जंक्शन (Tri-Junction) के करीब चीन द्वारा तिब्बत में माब्जा ज़ांगबो नदी पर नए बाँध का निर्माण, साथ ही LAC (वास्तविक नियंत्रण रेखा) के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों में सैन्य तैनाती तथा दोहरे उपयोग वाले अवसंरचना के निर्माण में वृद्धि चिंता का विषय बना हुआ है।
पृष्ठभूमि:
- चीन द्वारा यह कदम वर्ष 2021 में यारलुंग ज़ांगबो के निचले क्षेत्र में 70 गीगावाट बिजली उत्पादन के लिये एक बड़े बाँध के निर्माण की योजना की घोषणा के बाद उठाया गया है। यह देश के थ्री गोर्जेज़ बाँध (Three Gorges Dam) द्वारा उत्पादित विद्युत क्षमता से तीन गुना ज़्यादा है, साथ ही स्थापित क्षमता के मामले में सबसे बड़ा जलविद्युत संयंत्र है।
- ब्रह्मपुत्र, जिसे चीन में यारलुंग त्संग्पो के नाम से जाना जाता है, मानसरोवर झील से निकलने वाली इस नदी की कुल लंबाई 2,880 किमी. है और इसका वितरण तिब्बत में 1,700 किमी., अरुणाचल प्रदेश और असम में 920 किमी. तथा बांग्लादेश में 260 किमी. है। यह मीठे जल के स्रोत का लगभग 30% और भारत की जलविद्युत क्षमता का 40% हिस्सा है।
बाँध की अवस्थिति:
- यह नया बाँध ट्राई-जंक्शन(Tri-Junction) से लगभग 16 किमी. उत्तर में स्थित है और उत्तराखंड के कालापानी क्षेत्र के नज़दीक है।
- यह बाँध गंगा की एक सहायक नदी मब्ज़ा ज़ांगबो पर बना है।
- तिब्बत के बुरांग काउंटी में नदी के उत्तरी किनारे पर बाँध निर्माण की गतिविधि मई 2021 से देखी गई है।
- मब्ज़ा ज़ांगबो नदी भारत में गंगा नदी में मिलने से पहले नेपाल के घाघरा या करनाली नदी में मिलती है।
चिंताएँ:
- जल पर प्रभुत्त्व:
- चीन एक जलाशय के साथ एक तटबंध प्रकार का बाँध बना रहा है जो भविष्य में इस क्षेत्र के जल पर चीन के नियंत्रण को लेकर चिंता बढ़ाता है।
- सैन्य प्रतिष्ठान की संभावना:
- जल का उपयोग करने के अलावा ट्राई-जंक्शन के पास चीन द्वारा एक सैन्य प्रतिष्ठान बनाए जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि चीन ने पहले भी अरुणाचल प्रदेश के पास यारलुंग ज़ांगबो नदी क्षेत्र में सैन्य प्रतिष्ठान विकसित किया था।
- जल की कमी:
- चीन इस बाँध का उपयोग न केवल मार्ग परिवर्तन के लिये कर सकता है, बल्कि जल के संग्रहण हेतु भी कर सकता है जिससे मब्ज़ा ज़ांगबो नदी पर निर्भर क्षेत्रों में जल की कमी हो सकती है और नेपाल में घाघरा एवं करनाली जैसी नदियों में भी जल स्तर घट सकता है।
- चीन द्वारा विवादित क्षेत्र पर दावों को मज़बूत करना:
- सीमा के करीब बाँधों का निर्माण कर चीन विवादित क्षेत्रों पर अपना दावा मज़बूत कर सकता है।
चीन हाइड्रो आधिपत्य का लक्ष्य:
- चीन ने सिंधु, ब्रह्मपुत्र और मेकांग पर नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिये बड़ी संख्या में बाँध और तटबंध बनाए हैं।
- तिब्बत पर कब्ज़े के साथ चीन ने 18 देशों से होकर बहने वाली नदियों के उद्गम बिंदुओं पर नियंत्रण कर लिया है।
- चीन ने हज़ारों बाँधों का निर्माण किया है, जो अचानक पानी छोड़े जाने पर बाढ़ या पानी को रोके जाने पर सूखे की स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं, साथ ही नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर सकते हैं जिससे सामान्य जन-जीवन बाधित हो सकता है।
- चीन की ब्रह्मपुत्र नदी पर चार बाँध बनाने की योजना है, जिससे ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह प्रभावित होगा। भारत ने चीन के समक्ष इस बाँध निर्माण पर आपत्ति दर्ज कराई है।
- चीन ने बांग्लादेश के साथ हाइड्रोग्राफिक डेटा साझा करते हुए इसे भारत के साथ साझा करने से मना कर दिया, इसके परिणामस्वरूप असम में बाढ़ के कारण बड़े पैमाने पर विनाश हुआ, जिसके लिये भारत तैयार नहीं था।
- चीन पहले ही मेकांग नदी पर 11 विशाल बाँध बना चुका है, जो दक्षिण-पूर्व-एशियाई देशों के लिये चिंता का विषय है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. "चीन अपने आर्थिक संबंधों और सकारात्मक व्यापार अधिशेष का उपयोग एशिया में संभाव्य सैनिक शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिये उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है"। इस कथन के प्रकाश में उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2017) |
स्रोत: द हिंदू
इन्फोग्राफिक्स
सामाजिक न्याय
खसरा और रूबेला
प्रिलिम्स के लिये:डब्ल्यूएचओ, जन्मजात रूबेला सिंड्रोम, मिशन इंद्रधनुष, खसरा-रूबेला टीकाकरण। मेन्स के लिये:खसरा और रूबेला, बच्चों से संबंधित मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप। |
चर्चा में क्यों?
भारत ने खसरा और रूबेला (MR) को वर्ष 2023 तक समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया था, जो विभिन्न कारणों से वर्ष 2020 की पूर्व निर्धारित समय-सीमा के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका था।
- वर्ष 2019 में भारत ने वर्ष 2023 तक खसरा और रूबेला उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया था, यह अनुमान लगाते हुए कि वर्ष 2020 तक लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती है।
खसरा और रूबेला:
- खसरा :
- यह अत्यधिक संक्रामक विषाणुजनित रोग है और वैश्विक स्तर पर छोटे बच्चों की मृत्यु का मुख्य कारण है।
- यह 1 सीरोटाइप वाले सिंगल स्ट्रैंडेड, आरएनए वायरस से घिरे होने के कारण होता है। इसे पैरामाइक्सोविरिडे (Paramyxoviridae) परिवार के जीनस मोरबिलीवायरस (Morbillivirus ) के सदस्य के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- यह आर्थिक रूप से कमज़ोर पृष्ठभूमि के बच्चों के लिये विशेष रूप से खतरनाक है, क्योंकि यह कुपोषित और कम प्रतिरोधक क्षमता वाले बच्चों पर हमला करता है।
- यह अंधापन, इंसेफलाइटिस, दस्त, कान के संक्रमण और निमोनिया सहित गंभीर जटिलताओं का कारण हो सकता है।
- रूबेला:
- इसे जर्मन मीज़ल्स भी कहते हैं।
- रूबेला एक संक्रामक, आमतौर पर हल्का वायरल संक्रमण है जो अक्सर बच्चों और युवा वयस्कों में होता है।
- यह रूबेला वायरस के कारण होता है जो सिंगल स्ट्रैंडेड आरएनए वायरस से घिरा होता है।
- गर्भवती महिलाओं में रूबेला संक्रमण मृत्यु या जन्मजात दोषों का कारण बन सकता है जिसे जन्मजात रूबेला सिंड्रोम (CRS) कहा जाता है जो अपरिवर्तनीय जन्म दोषों का कारण बनता है।
- रूबेला खसरे के समान नहीं है, किंतु दोनों बीमारियों के कुछ संकेत और लक्षण समान हैं, जैसे कि लाल चकत्ते।
- रूबेला खसरे की तुलना में एक अलग वायरस के कारण होता है और रूबेला संक्रामक या खसरा जितना गंभीर नहीं होता है।
खसरा और रूबेला का वैश्विक एवं भारतीय परिदृश्य:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, खसरा वायरस विश्व के सबसे संक्रामक मानव विषाणुओं में से एक है, जिस कारण प्रतिवर्ष 1,00,000 से अधिक बच्चों की मौत होती है। रूबेला जन्म संबंधी विकार है और इसे वैक्सीन की मदद से रोका जा सकता है।
- WHO के आँकड़ों के अनुसार, पिछले दो दशकों में टीके की अनुपलब्धता के कारण हुई वैश्विक स्तर पर 30 मिलियन से अधिक मौतों को टाला जा सकता था।
- वर्ष 2010-2013 के दौरान भारत ने 14 राज्यों में 9 महीने से 10 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये चरणबद्ध खसरा टीकाकरण का आयोजन किया, जिसमें लगभग 119 मिलियन बच्चों का टीकाकरण किया गया।
- मिशन इंद्रधनुष को वर्ष 2014 में गैर-टीकाकरण आबादी के टीकाकरण करने के लिये लॉन्च किया गया था।
- भारत ने वर्ष 2017-2021 के दौरान खसरा और रूबेला उन्मूलन के लिये एक राष्ट्रीय रणनीतिक योजना को अपनाया।
- इसी अवधि के दौरान सरकार ने रूबेला युक्त टीके (Rubella-Containing Vaccine- RCV) को नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया।
- दिसंबर 2021 तक भूटान, DPR कोरिया, मालदीव, श्रीलंका और तिमोर-लेस्ते में खसरे को समाप्त करने की पुष्टि की गई है। मालदीव तथा श्रीलंका ने भी वर्ष 2021 में रूबेला को खत्म करने वाले देशों के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखी है।
खसरा और रूबेला की रोकथाम के उपाय:
- खसरा-रूबेला टीकाकरण: इस अभियान का लक्ष्य देश भर में लगभग 41 करोड़ बच्चों का टीकाकरण करना है और यह अब तक का सबसे बड़ा अभियान है।
- 9 महीने से लेकर 15 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को उनके पिछले खसरा/रूबेला टीकाकरण की स्थिति या खसरा/रूबेला रोग की स्थिति के बावजूद एक MR टीका लगाया जाता है।
- अन्य पहलों में सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (Universal Immunization Programme- UIP), मिशन इंद्रधनुष और सघन मिशन इंद्रधनुष शामिल हैं।
- इन बीमारियों के लिये टीके खसरा-रूबेला (MR), खसरा-कण्ठमाला-रूबेला (MMR) अथवा खसरा-कण्ठमाला-रूबेला-वैरिसेला (MMRV) संयोजन के रूप में प्रदान किये जाते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही उत्तर है। प्रश्न. भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया 'मिशन इंद्रधनुष' किससे संबंधित है? (2016) (a) बच्चों और गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण उत्तर: (a) |
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
भारतीय सेना में महिलाओं को कमान की भूमिका
प्रिलिम्स के लिये:लैंगिक समानता, भारतीय सेना, समावेशिता। मेन्स के लिये:समाज और राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के संदर्भ में सेना में महिलाओं की भूमिका का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय सेना ने महत्त्वपूर्ण पहल करते हुए पहली बार 108 महिला अधिकारियों को उनके संबंधित सैन्य दल /ट्रुप और सेवाओं में यूनिट एवं सैनिकों को कमांड करने हेतु मंज़ूरी प्रदान की।
- लैंगिक समानता की दिशा में यह एक बड़ा कदम होगा।
- यह निर्णय अधिक महिलाओं को भारतीय सेना में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित करेगा और संगठन के भीतर विविधता एवं समावेशिता को बढ़ावा देने में मदद करेगा।
सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2020 के आदेश:
- वर्ष 2019 में सेना ने शॉर्ट सर्विस कमीशन (Short Service Commission- SSC) की महिला अधिकारियों को स्थायी आयोग का विकल्प चुनने की अनुमति देते हुए अपने नियमों में बदलाव किया, जो अन्यथा 14 साल की सेवा के बाद सेवानिवृत्त हो जातीं।
- हालाँकि यह पूर्वव्यापी नहीं था और केवल वर्ष 2020 में सेना में अपना कॅरियर शुरू करने वाली महिला अधिकारियों पर लागू होता था।
- वर्ष 2020 के सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले द्वारा महिला अधिकारियों के लिये पूर्वव्यापी प्रभाव से स्थायी आयोग की व्यवस्था की गई।
- इसने सेना में उनकी आगे की उन्नति और पदोन्नति का मार्ग प्रशस्त किया, जिसने हाल ही में महिलाओं के लिये नेतृत्त्व और उच्च प्रबंधन पाठ्यक्रम शुरू किया है।
महिलाओं को कर्नल रैंक पर पदोन्नत करने में देरी:
- सेना में एक अधिकारी को वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट और विभिन्न पाठ्यक्रमों जैसे कुछ मानदंडों के आधार पर 16 से 18 वर्ष के बीच सेवा के बाद ही कर्नल के पद पर पदोन्नत किया जाता है।
- सेना में शामिल होने वाली महिला अधिकारियों को वर्ष 1992 में SSC अधिकारियों के रूप में शामिल किया गया था लेकिन बाद के वर्षों में स्थायी आयोग का विकल्प चुनने का विकल्प नहीं था।
- JAG और सेना शिक्षा कोर अपवाद थे, क्योंकि इनके लिये वर्ष 2008 में स्थायी आयोग बनाया गया था।
- अन्य सैन्य और सेवाओं के लिये महिलाएँ स्थायी कैडर नहीं बन सकती थीं, क्योंकि उन्हें कर्नल बनने के लिये अनिवार्य सेवा अवधि पूरी करने से पहले ही सेवानिवृत्त होना पड़ता था।
यूनिट को कमांड करने का अर्थ:
- कर्नल के पद पर पदोन्नत होने के बाद अधिकारी को सैनिकों को सख्त आदेश देने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
- कर्नल सेना में एक प्रतिष्ठित पद है क्योंकि यह एक उच्च पद है, लेकिन यह अधिकारी को सैनिकों के साथ सीधे बातचीत करने की भी अनुमति देता है।
- यह बातचीत कर्नल को नेतृत्व और निर्णय लेने के लिये अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण रखने में सहायता करती है, हालाँकि यह अवसर ब्रिगेडियर या मेजर जनरल जैसे उच्च-रैंक के अधिकारियों हेतु उपलब्ध नहीं है।
सेना के विभिन्न क्षेत्र जहाँ महिलाओं को कार्य करने की अनुमति नहीं:
- महिलाएँ अभी भी इन्फैंट्री, मैकेनाइज़्ड इन्फैंट्री और सेना के रूप में बख्तरबंद जैसे मुख्य शस्त्रों के लिये पात्र नहीं हैं क्योंकि सेना में महिलाओं को पैदल सैनिकों के रूप में सीमाओं पर युद्ध लड़ने की अनुमति नहीं है। यह प्रतिरोध पुरुष सैनिकों को युद्ध कैदियों के रूप में दुश्मन द्वारा प्रताड़ित किये जाने के पिछले उदाहरणों से उपजा है।
- हालाँकि सेना ने हाल ही में महिलाओं के लिये एक सहायक बल ‘कोर ऑफ आर्टिलरी’ खोलने का निर्णय लिया है।
भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना (IAF):
- नौसेना की सभी शाखाओं में महिला अधिकारियों को शामिल किया गया है और वे भविष्य में स्थायी कमीशन के लिये पात्र होंगी।
- महिला अधिकारी तट-आधारित इकाइयों की कमान संभाल सकती हैं और जैसे ही वे सेवा में शामिल होती हैं और स्थायी कमीशन के लिये पात्र हो जाती हैं, वे जहाज़ों एवं हवाई स्क्वाड्रन को कमांड करने में सक्षम होंगी।
- IAF ने महिला अधिकारियों के लिये सभी शाखाएँ खोल दी हैं, जिनमें फाइटर स्ट्रीम और नई हथियार प्रणाली शाखा (Weapon Systems Branch) शामिल हैं।
- चूँकि उन्हें पात्रता और रिक्तियों के आधार पर स्थायी कमीशन दिया जाता है, इसलिये वे भविष्य में कमांड इकाइयों के लिये पात्र होंगी।
अन्य सेनाएँ जो महिलाओं को कमांड पोज़ीशन धारण करने की अनुमति देती:
- संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, रूस और इज़रायल सहित सभी प्रमुख देश महिलाओं को अपने राष्ट्रीय सशस्त्र बलों में कमांड पदों पर तैनाती की अनुमति देते हैं। इसमें अधिकारियों और गैर-कमीशंड अधिकारियों जैसे पदों के साथ-साथ लड़ाकू इकाइयों और विशेष बलों में भूमिकाएँ शामिल हैं।
आगे की राह
- भारतीय सेना को कमांड भूमिकाओं हेतु महिलाओं के लिये प्रशिक्षण और सहायता प्रदान करनी चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे प्रभावी ढंग से नेतृत्त्व करने में सक्षम हों।
- भारतीय सेना को सेना में शामिल होने के लिये अधिक महिलाओं को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करना चाहियेऔर भर्ती करना चाहिये, ताकि योग्य महिलाओं का एक बड़ा पूल हो जो कमांड भूमिका निभा सकें।
- भारतीय सेना को सेना की संस्कृति को बदलने के लिये काम करना चाहिये ताकि यह महिलाओं के लिये अधिक समावेशी हो और मौजूद किसी भी पूर्वाग्रह को दूर कर सके।
- भारतीय सेना को महिला सैनिकों के लिये बेहतर सुविधाएँ और सहायता प्रदान करने हेतु भी काम करना चाहिये जैसे कि बाल देखभाल, मातृत्व अवकाश और अन्य आवश्यकताएँ जो महिलाओं के लिये विशिष्ट हैं।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. "हालाँकि आज़ादी के बाद के भारत में महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है, लेकिन महिलाओं और नारीवादी आंदोलन के प्रति सामाजिक रवैया पितृसत्तात्मक रहा है।" महिला शिक्षा एवं महिला सशक्तीकरण योजनाओं के अलावा कौन से हस्तक्षेप इस परिवेश को बदलने में मदद कर सकते हैं? (2021) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
पत्रकारिता सूत्रों का प्रकटीकरण
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय विधि आयोग, अनुच्छेद 19, भारतीय प्रेस परिषद मेन्स के लिये:पत्रकारिता स्रोतों के प्रकटीकरण के लिये विधिक संरक्षण, भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय जाँच ब्यूरो द्वारा दायर एक क्लोज़र रिपोर्ट को खारिज करते हुए दिल्ली के एक न्यायालय ने फैसला सुनाया कि भारत में पत्रकारों को अपने स्रोतों की जानकारी जाँच एजेंसियों को देने के संबंध में कोई वैधानिक छूट नहीं है।
पत्रकारिता स्रोतों के प्रकटीकरण से संबंधित विधिक संरक्षण:
- भारत:
- भारत में ऐसा कोई विशिष्ट कानून नहीं है जो पत्रकारों को उनके स्रोतों का खुलासा करने के संबंध में संरक्षण प्रदान करता हो।
- हालाँकि संविधान का अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है।
- जाँच एजेंसियाँ सूचना देने के लिये पत्रकारों समेत किसी को भी नोटिस जारी कर सकती हैं।
- किसी भी नागरिक की तरह पत्रकार को भी न्यायालय में साक्ष्य देने के लिये बाध्य किया जा सकता है। यदि वह अनुपालन नहीं करता है, तो पत्रकार को न्यायालय की अवमानना के आरोपों का सामना करना पड़ सकता है।
- भारत में ऐसा कोई विशिष्ट कानून नहीं है जो पत्रकारों को उनके स्रोतों का खुलासा करने के संबंध में संरक्षण प्रदान करता हो।
- वैश्विक स्तर पर:
- यूनाइटेड किंगडम: न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1981 उन पत्रकारों के पक्ष में धारणा का निर्माण करता है जो अपने स्रोतों की पहचान की रक्षा करना चाहते हैं। हालाँकि यह अधिकार ‘न्याय के हित’ में शर्तों के अधीन है।
- एक पत्रकार को समाचार हेतु अपने स्रोत को प्रकट करने के लिये मजबूर करने के प्रयास ने मानव अधिकारों पर यूरोपीय सम्मेलन द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्र विचार और अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन किया है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका: हालाँकि पहला संशोधन संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वतंत्र भाषण की गारंटी प्रदान करता है, यह विशेष रूप से प्रेस का उल्लेख करता है, सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि पत्रकारों को संघीय ग्रैंड जूरी कार्यवाही में गवाही देने और स्रोतों का खुलासा करने से इनकार करने का अधिकार नहीं है।
- हालाँकि अमेरिका के कई राज्यों में रक्षा कानून हैं जो अलग-अलग डिग्री तक पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा करते हैं।
- स्वीडन: स्वीडन में प्रेस की स्वतंत्रता अधिनियम पत्रकारों के अधिकारों का एक व्यापक संरक्षक है और यहाँ तक कि राज्य और नगरपालिका कर्मचारियों तक विस्तृत है जो स्वतंत्र रूप से पत्रकारों के साथ जानकारी साझा कर सकते हैं। एक पत्रकार जो सहमति के बिना अपने स्रोत का खुलासा करता है, उस पर स्रोत के अनुरोध पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
- यूनाइटेड किंगडम: न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1981 उन पत्रकारों के पक्ष में धारणा का निर्माण करता है जो अपने स्रोतों की पहचान की रक्षा करना चाहते हैं। हालाँकि यह अधिकार ‘न्याय के हित’ में शर्तों के अधीन है।
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 19 के अंतर्गत मौलिक अधिकार: संविधान, अनुच्छेद 19 के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जो वाक् स्वतंत्रता इत्यादि के संबंध में कुछ अधिकारों के संरक्षण से संबंधित है।
- अंतर्निहित अधिकार: प्रेस की स्वतंत्रता को भारतीय कानूनी प्रणाली द्वारा स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं किया गया है, लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत अंतर्निहित रूप में संरक्षित है।
- हालाँकि प्रेस की स्वतंत्रता भी पूर्ण नहीं है।
- एक कानून इस अधिकार के प्रयोग पर केवल उन प्रतिबंधों को लागू कर सकता है जो अनुच्छेद 19(2) के तहत कुछ प्रतिबंधों का प्रावधान करता है, जो निम्नानुसार है:
- भारत की संप्रभुता और अखंडता
- राज्य की सुरक्षा
- विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
- सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार
- न्यायालय की अवमानना
- मानहानि
- किसी अपराध के लिये उकसाना
इस विषय पर कानूनी राय:
- जबकि सर्वोच्च न्यायालय व्यापक रूप से प्रेस की स्वतंत्रता को मान्यता देता है, जिसमें पत्रकारों के अपने स्रोतों की रक्षा करने का अधिकार भी शामिल है, साथ ही विभिन्न अदालतों ने इस मुद्दे पर अलग-अलग फैसला सुनाया है।
- पेगासस स्पाइवेयर की जाँच के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2021 में कहा था कि अनुच्छेद 19 के तहत मीडिया के लिये भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग करने की मूलभूत शर्तों में से एक 'पत्रकारिता स्रोतों' का संरक्षण है।
- पत्रकारिता स्रोतों की सुरक्षा प्रेस की स्वतंत्रता के लिये बुनियादी शर्तों में से एक है। इस तरह के संरक्षण के बिना, जनहित के मामलों पर जनता को सूचित करने में प्रेस को सहायता करने से स्रोतों को रोका जा सकता है।
- जब कोई समाचार पत्र पत्रकारिता के नैतिकता मानकों का उल्लंघन करता है या जब एक संपादक या कामकाज़ी पत्रकार पेशेवर कदाचार करता है तब 1978 का प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) अधिनियम प्रेस काउंसिल को शिकायतों को सुनने के लिये सिविल कोर्ट की शक्तियाँ देता है।
- हालाँकि परिषद किसी समाचार पत्र, समाचार एजेंसी, पत्रकार या संपादक को कार्यवाही के दौरान अपने स्रोत प्रकट करने के लिये बाध्य नहीं कर सकती है।
- रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य मामले में वर्ष 1950 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता सभी लोकतांत्रिक संगठनों की नींव है।
भारतीय प्रेस परिषद:
- परिचय:
- यह पहली बार वर्ष 1966 में भारतीय प्रेस परिषद अधिनियम, 1965 के तहत पहले प्रेस आयोग की सिफारिशों पर स्थापित किया गया था, जिसका दोहरा उद्देश्य भारत में समाचार पत्रों और समाचार एजेंसियों के मानकों को बनाए रखने एवं इसमें सुधार कर प्रेस की स्वतंत्रता को संरक्षित करना था।
- अर्द्ध-न्यायिक स्वायत्त प्राधिकरण के रूप में इसे वर्ष 1979 में संसद के एक अधिनियम, प्रेस परिषद अधिनियम, 1978 के तहत फिर से स्थापित किया गया था।
- भारतीय प्रेस परिषद एकमात्र निकाय है जो प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के अपने कर्त्तव्य में राज्य के उपकरणों पर भी अधिकार का प्रयोग करता है।
- संगठन:
- यह परिषद एक कॉर्पोरेट निकाय है जिसमें एक अध्यक्ष और 28 सदस्य होते हैं।
- इसमें सभापति का चयन लोकसभा के अध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति और परिषद के 28 सदस्यों द्वारा चुने गए सदस्य करते हैं।
अनुशंसाएँ:
- भारतीय विधि आयोग ने अपनी 93वीं रिपोर्ट में पत्रकारिता के विशेषाधिकार को मान्यता देने के लिये भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में संशोधन की सिफारिश की। रिपोर्ट ने नए प्रावधान को शामिल करने का सुझाव दिया:
- कोई भी न्यायालय किसी व्यक्ति को किसी प्रकाशन में निहित जानकारी के स्रोतों को प्रकट करने का आदेश नहीं देगा जिसके लिये वह ज़िम्मेदार है यदि ऐसी जानकारी व्यक्त या निहित समझौते या समझ के साथ प्राप्त की गई हो कि स्रोत को गोपनीय रखा जाएगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
ग्लोबल ट्रांस फैट उन्मूलन पर WHO की रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), ट्रांस वसा, खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL), ईट राइट मूवमेंट, हार्ट अटैक रिवाइंड, मधुमेह, भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI), REPLACE। मेन्स के लिये:ट्रांस वसा के प्रभाव, ट्रांस वसा के उन्मूलन में चुनौतियाँ, ट्रांस वसा के उन्मूलन की पहल। |
चर्चा में क्यों?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक नई रिपोर्ट में पाया गया है कि वैश्विक स्तर पर 5 अरब लोग हानिकारक ट्रांस वसा की वजह से असुरक्षित रहते हैं, जिससे हृदय रोग तथा मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
- WHO ने पहली बार वर्ष 2018 में औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस वसा के वैश्विक उन्मूलन का आह्वान किया, जिसमें वर्ष 2023 तक उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- WHO के अनुसार, ट्रांस वसा जो पैक किये गए खाद्य पदार्थों, पके भोजन, खाद्य तेल और स्प्रेड में पाया जाता है, प्रत्येक वर्ष हृदय रोग से पाँच लाख तक समयपूर्व मौतों के लिये ज़िम्मेदार है।
- 43 देशों ने अब भोजन में ट्रांस-वसा की समस्या से निपटने के लिये सर्वोत्तम अभ्यास नीतियों को लागू किया है, जिससे विश्व स्तर पर 2.8 बिलियन लोग संरक्षित हुए हैं। अमेरिका और यूरोप के कई देशों ने आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत तेलों पर प्रतिबंध के साथ ट्रांस-वसा को चरणबद्ध तरीके से हटा दिया है।
- हालाँकि कम आय वाले देशों ने अभी तक इस तरह के उपायों को नहीं अपनाया है।
- वर्तमान में ट्रांस-वसा के उपभोग के कारण कोरोनरी हृदय रोग से होने वाली मौतों के उच्चतम अनुमानित अनुपात वाले 16 देशों में से 9 में सर्वोत्तम अभ्यास नीति नहीं है।
- ये हैं- ऑस्ट्रेलिया, अज़रबैजान, भूटान, इक्वाडोर, मिस्र, ईरान (इस्लामी गणराज्य), नेपाल, पाकिस्तान और कोरिया गणराज्य।
- ट्रांस-वसा उन्मूलन नीतियों में सर्वोत्तम प्रथाएँ WHO द्वारा स्थापित विशिष्ट मानदंडों का पालन करती हैं और सभी दशाओं में औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस-वसा को सीमित करती हैं। अभ्यास हेतु दो सर्वोत्तम नीति विकल्प हैं:
- सभी खाद्य पदार्थों में औद्योगिक रूप से उत्पादित कुल वसा/वसा के प्रति 100 ग्राम में ट्रांस-वसा की 2 ग्राम की अनिवार्य राष्ट्रीय सीमा।
- सभी खाद्य पदार्थों में एक घटक के रूप में आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत तेलों के उत्पादन या उपयोग पर अनिवार्य राष्ट्रीय प्रतिबंध।
ट्रांस वसा:
- परिचय:
- ट्रांस-वसा या ट्रांस-वसाी एसिड, असंतृप्त वसाी एसिड होते हैं जो प्राकृतिक या औद्योगिक स्रोतों से प्राप्त होते हैं।
- प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले ट्रांस-वसा जुगाली करने वाले जानवरों (गायों और भेड़) से प्राप्त होते हैं।
- औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस-वसा एक औद्योगिक प्रक्रिया में बनता है जो तरल को ठोस में परिवर्तित करने वाले वनस्पति तेल में हाइड्रोजन को जोड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप ‘आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत’ तेल (PHO) प्राप्त होता है।
- प्रभाव:
- ट्रांस-वसा से हृदय रोग के जोखिम में वृद्धि देखी गई है, क्योंकि वे रक्त में खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) के स्तर को बढ़ा सकते हैं और अच्छे कोलेस्ट्रॉल (HDL) के स्तर को कम कर सकते हैं।
- वे मधुमेह और मोटापे जैसी अन्य बिमारियों की वृद्धि में भी योगदान देते हैं।
- ट्रांस वसा को खत्म करने में चुनौतियाँ:
- ट्रांस-वसा खाद्य उत्पादों के शेल्फ जीवन को स्थिर और विस्तारित करने का एक सस्ता और आसान तरीका है, यही कारण है कि खाद्य निर्माताओं द्वारा उनका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
- कई छोटे और मध्यम आकार के खाद्य निर्माताओं के पास ट्रांस-वसा को हटाने के लिये अपने उत्पादों को फिर से तैयार करने हेतु संसाधन या तकनीकी विशेषज्ञता नहीं होती है।
- ट्रांस-वसा का उपयोग अक्सर खाद्य सेवा और रेस्तराँ सेवाओं में किया जाता है, जहाँ खुदरा खाद्य उत्पादों की तुलना में विनियमित करना कठिन होता है।
- उपभोक्ता की आदतों और स्वाद वरीयता को बदलना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि लोग ट्रांस-वसा वाले खाद्य पदार्थों के स्वाद और बनावट के आदी हो गए हैं।
- कुछ देशों या क्षेत्रों में ट्रांस-वसा/वसा के प्रतिबंध की निगरानी और उसे लागू करने के लिये सीमित बुनियादी ढाँचे और संसाधन हो सकते हैं।
- ट्रांस-वसा खाद्य उत्पादों के शेल्फ जीवन को स्थिर और विस्तारित करने का एक सस्ता और आसान तरीका है, यही कारण है कि खाद्य निर्माताओं द्वारा उनका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
- ट्रांस-वसा को खत्म करने की पहल:
- भारत:
- ईट राइट मूवमेंट: इसे वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया, यह कार्यक्रम 'ईट हेल्दी' और 'ईट सेफ' जैसे दो व्यापक स्तंभों के आधार पर बनाया गया है।
- स्वच्छ भारत यात्रा: खाद्य सुरक्षा, खाद्य अपमिश्रण और स्वस्थ आहार के मुद्दों से निपटने हेतु नागरिकों को शिक्षित करने के अभियान के तहत एक पैन इंडिया साइक्लोथॉन लॉन्च किया गया था।
- हार्ट अटैक रिवाइंड: यह 30 सेकंड की सार्वजनिक सेवा घोषणा है जिसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर 17 भाषाओं में प्रसारित किया गया था।
- अभियान का उद्देश्य नागरिकों को ट्रांस-वसा के उपभोग के स्वास्थ्य संबंधी खतरों के बारे में चेतावनी देना और स्वस्थ विकल्पों के माध्यम से उनसे बचने की रणनीति प्रस्तुत करना था।
- भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) ने कहा है कि जनवरी 2022 से सभी खाद्य पदार्थों में 2% से कम ट्रांस-वसा होना चाहिये।
- वैश्विक:
- WHO ने वैश्विक खाद्य आपूर्ति से औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस-वसाी एसिड के उन्मूलन के लिये चरण-दर-चरण मार्गदर्शिका REPLACE जारी की।
- REPLACE औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस-वसा के खाद्य आपूर्ति से त्वरित, पूर्ण और निरंतर उन्मूलन को सुनिश्चित करने के लिये छह रणनीतिक कार्रवाइयाँ प्रदान करता है:
- औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस-वसा के आहार स्रोतों और आवश्यक नीति परिवर्तन के लिये परिदृश्य की समीक्षा (R- Review) करना।
- स्वस्थ वसा और तेलों के साथ औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस-वसा के प्रतिस्थापन को बढ़ावा (P- Promote) देना।
- औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस-वसा को खत्म करने के लिये विधायी या विनियामक (L- Legislate) कार्रवाई करना।
- खाद्य आपूर्ति में ट्रांस-वसा सामग्री का आकलन (A- Assess) और निगरानी एवं जनसंख्या में ट्रांस-वसा की खपत में बदलाव लाना।
- नीति निर्माताओं, उत्पादकों, आपूर्तिकर्त्ताओं और जनता के बीच ट्रांस-वसा के नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभाव के बारे में जागरूकता (Create awareness) का प्रसार करना।
- नीतियों और विनियमों के अनुपालन को लागू (Enforce ) करना
- REPLACE औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस-वसा के खाद्य आपूर्ति से त्वरित, पूर्ण और निरंतर उन्मूलन को सुनिश्चित करने के लिये छह रणनीतिक कार्रवाइयाँ प्रदान करता है:
- WHO ने वैश्विक खाद्य आपूर्ति से औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस-वसाी एसिड के उन्मूलन के लिये चरण-दर-चरण मार्गदर्शिका REPLACE जारी की।
- भारत:
आगे की राह
- शिक्षा और जागरूकता: जनता और खाद्य उद्योग के बीच ट्रांस-वसा के खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनकी खपत को कम करने के महत्त्व के बारे में जानकारी प्रदान किये जाने से आने वाले समय में इस दिशा में बदलाव हेतु प्रोत्साहित करने में मदद मिल सकती है।
- निगरानी और प्रवर्तन: खाद्य गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिये सरकारें निगरानी और प्रवर्तन प्रणाली स्थापित कर सकती हैं और यह भी ध्यान रख सकती हैं कि खाद्य निर्माता विनियमों एवं लेबलिंग आवश्यकताओं के अनुपालन कर रहे हैं अथवा नहीं।
- अनुसंधान और विकास: खाद्य उत्पादों में ट्रांस-वसा को प्रतिस्थापित करने वाली नई तकनीकों और अवयवों के अनुसंधान तथा विकास में निवेश करना।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. आहार उत्पादों के विक्रय में जुटी एक कंपनी यह विज्ञापित करती है कि उसके उत्पादों में ट्रांस-वसा नहीं होती। उसके इस अभियान का ग्राहकों के लिये क्या अभिप्राय है? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) |
स्रोत: डब्ल्यू.एच.ओ.
भारतीय इतिहास
पराक्रम दिवस 2023
प्रिलिम्स के लिये:अंडमान और निकोबार, परमवीर चक्र, सुभाष चंद्र बोस, नेताजी, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन। मेन्स के लिये :नेताजी सुभाष चंद्र बोस और स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान। |
चर्चा में क्यों?
पराक्रम दिवस (23 जनवरी) 2023 के अवसर पर अंडमान और निकोबार के 21 द्वीपों का नाम परमवीर चक्र पुरस्कार विजेताओं के नाम पर रखा गया है।
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप पर नेताजी को समर्पित एक राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाएगा।
- पराक्रम दिवस स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती के अवसर पर मनाया जाता है।
द्वीपों के नामकरण का उद्देश्य:
- परमवीर चक्र पुरस्कार विजेताओं के नाम वाले द्वीप आने वाली पीढ़ियों के लिये प्रेरणा स्थल होंगे। लोग अब भारत के इतिहास को जानने एवं इन द्वीपों को देखने के लिये प्रोत्साहित होंगे।
- परमवीर चक्र भारत का सर्वोच्च सैन्य अलंकरण है, जो युद्ध के दौरान ज़मीन पर, समुद्र या हवा में वीरता के विशिष्ट कार्यों को प्रदर्शित करने के लिये दिया जाता है।
- इसका उद्देश्य उन भारतीय नायकों को श्रद्धांजलि अर्पित करना है, जिनमें से कई ने भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा हेतु अपना बलिदान दिया था।
- द्वीपों का नाम मेजर सोमनाथ शर्मा, सूबेदार और मानद कैप्टन (तत्कालीन लांस नायक) करम सिंह, नायक जदुनाथ सिंह आदि के नाम पर रखा गया है।
नोट: वर्ष 2018 में रॉस द्वीप समूह का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप, साथ ही नील द्वीप और हैवलॉक द्वीप का नाम बदलकर क्रमशः शहीद द्वीप और स्वराज द्वीप कर दिया गया था।
सुभाष चंद्र बोस:
- जन्म:
- सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनकी माता का नाम प्रभावती दत्त बोस और पिता का नाम जानकीनाथ बोस था।
- परिचय:
- वर्ष 1919 में बोस ने भारतीय सिविल सेवा (Indian Civil Services- ICS) परीक्षा पास की, हालाँकि कुछ समय बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
- वे स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से अत्यधिक प्रभावित थे और उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे।
- उनके राजनीतिक गुरु चितरंजन दास थे।
- कॉन्ग्रेस के साथ संबंध:
- उन्होंने बिना शर्त स्वराज (Unqualified Swaraj) अर्थात् स्वतंत्रता का समर्थन किया और मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट का विरोध किया जिसमें भारत के लिये डोमिनियन (अधिराज्य) के दर्जे की बात कही गई थी।
- उन्होंने वर्ष 1930 के नमक सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भाग लिया और वर्ष 1931 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के निलंबन तथा गांधी-इरविन समझौते पर हस्ताक्षर करने का विरोध किया।
- वर्ष 1930 के दशक में वह जवाहरलाल नेहरू और एम.एन. रॉय के साथ कॉन्ग्रेस की वाम राजनीति में संलग्न रहे।
- बोस ने वर्ष 1938 में हरिपुरा में कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष का चुनाव जीता।
- इसके पश्चात् वर्ष 1939 में उन्होंने त्रिपुरी में गांधी जी द्वारा समर्थित उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैय्या के विरुद्ध पुनः अध्यक्ष पद का चुनाव जीता।
- गांधी जी के साथ वैचारिक मतभेद के कारण बोस ने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और कॉन्ग्रेस से अलग हो गए। उनकी जगह राजेंद्र प्रसाद को नियुक्त किया गया था।
- कॉन्ग्रेस से अलग होकर उन्होंने ‘द फॉरवर्ड ब्लॉक’ नाम से एक नया दल बनाया। इसके गठन का उद्देश्य अपने गृह राज्य बंगाल में वाम राजनीति के आधार को और अधिक मज़बूत करना था।
- इंडियन नेशनल आर्मी (आज़ाद हिन्द फौज):
- वह जुलाई 1943 में जर्मनी से सिंगापुर (जापान द्वारा नियंत्रित) पहुँचे, वहाँ से उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा 'दिल्ली चलो' जारी किया और 21 अक्टूबर, 1943 को आज़ाद हिंद सरकार और भारतीय राष्ट्रीय सेना के गठन की घोषणा की।
- INA का गठन पहली बार मोहन सिंह और जापानी मेजर इवाइची फुजिवारा के तहत किया गया था और इसमें ब्रिटिश-भारतीय सेना के युद्ध के भारतीय कैदी शामिल थे, जिन्हें मलायन (वर्तमान मलेशिया) तथा सिंगापुर अभियान में जापान द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया था।
- INA में सिंगापुर से भारतीय युद्ध कैदी और दक्षिण-पूर्व एशिया से भारतीय नागरिक दोनों शामिल थे। इनकी संख्या बढ़कर 50,000 हो गई।
- INA ने वर्ष 1944 में इंफाल और बर्मा में भारत की सीमाओं के अंदर ब्रिटिश सेना से लड़ाई लड़ी।
- नवंबर 1945 में INA के लोगों पर मुकदमा चलाने के ब्रिटिश सरकार के एक कदम ने पूरे देश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों को भड़का दिया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रश्न. औपनिवेशिक भारत के संदर्भ में शाह नवाज खान, प्रेम कुमार सहगल और गुरबख्श सिंह ढिल्लों किस रूप में याद किये जाते हैं? (2021) (a) स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के नेता के रूप में उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही उत्तर है। प्रश्न . भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान निम्नलिखित में से किसने 'फ्री इंडियन लीजन' नामक सेना स्थापित की थी? (2008) (a) लाला हरदयाल उत्तर: c व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही है। |