आपदा प्रबंधन
कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता में वृद्धि
प्रीलिम्स के लिये:कार्बन डाइऑक्साइड मेन्स के लिये:कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता बढ़ने से भारतीय क्षेत्रों पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट ‘इम्पैक्टस ऑफ कार्बन डाइऑक्साइड इमिसंस ऑन ग्लोबल इंटेंस हाइड्रोमीट्रोलोज़िकल डिज़ास्टर्स’ (Impacts of Carbon Dioxide Emissions on Global Intense Hydrometeorological Disasters) में भारत में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता की वृद्धि के प्रभावों का उल्लेख किया गया है।
मुख्य बिंदु:
- इस रिपोर्ट ने जलवायु परिवर्तन और जल-मौसम संबंधी घटनाओं विशेष रूप से दुनिया भर में बाढ़ और तूफान की बढ़ती घटनाओं के बीच एक कड़ी स्थापित की है।
- इस रिपोर्ट को 155 देशों से एकत्रित किये गए 46 वर्ष (वर्ष 1970-2016) के जलवायु संबंधी आँकड़ों के आधार परतैयार किया गया है।
- इस रिपोर्ट में किया गया विश्लेषण ‘इकोनॉमीट्रिक मॉडलिंग’ (Econometric Modelling) पर आधारित है, जिसके अंतर्गत किसी देश की खतरों के प्रति भेद्यता, सकल घरेलू उत्पाद, जनसंख्या घनत्व और औसत वर्षा में परिवर्तन संबंधी आँकड़ों को शामिल किया जाता है।
अध्ययन से संबंधित प्रमुख बिंदु:
- ‘क्लाइमेट, डिज़ास्टर एंड डेवलपमेंट’ (Climate, Disaster and Development) नामक जर्नल में प्रकशित इस अध्ययन के अनुसार, भारत में कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती सांद्रता के कारण वातावरण में अतिशय बाढ़ या तूफान का जोखिम प्रत्येक 13 वर्षों के अंतराल पर दोगुना हो सकता है। इससे भारत में तबाही की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- वार्षिक रूप से लगभग एक चरम आपदा का सामना करने वाले भारत में तीव्र ‘जलीय-मौसम संबंधी’ (Hydro-Meteorological) आपदाओं की संख्या वार्षिक रूप से 5.4% तक बढ़ सकती है।
चरम आपदा:
(Extreme Disaster):
एक ऐसी आपदा जो 100 या उससे अधिक मौतों का कारण बनती है या जिससे 1,000 या अधिक व्यक्ति प्रभावित होते हैं।
- वर्ष 2018 में भारत के केरल में आई बाढ़ की एक और चरम घटना, जिसमें लगभग 400 व्यक्तियों की मृत्यु हुई थी, ने देश में आपदा का सामना करने की क्षमता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया।
- पिछले चार दशकों में वैश्विक स्टार पर तीव्र बाढ़ और तूफान की घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि वायुमंडलीय CO2 की सांद्रता में निरंतर वृद्धि के कारण हुई।
- भारत को एक सामान्य देश से 5-10 गुना अधिक चरम आपदाओं के जोखिम का सामना करना पड़ता है।
आगे की राह:
- भारत की अवस्थिति भौगोलिक रूप से अधिक विविधता वाली है। इसमें एक ओर हिमालय जैसे पर्वत शिखर तो दूसरी ओर बड़े-बड़े समुद्री तट हैं। इसके अतिरिक्त सदाबहार से लेकर मौसमी नदियों तक का भारत में नदियों का विस्तृत संजाल मौजूद है, साथ ही भारत के मुख्य भागों में वर्षा की अवधि का वर्ष में निश्चित समय है।
- इससे वर्षा ऋतु के दौरान बड़ी मात्रा में जलभराव एवं बाढ़ की समस्या का सामना करना पड़ता है।
- उपर्युक्त भौगोलिक कारकों के अतिरिक्त मानवीय कारक भी इसके लिये ज़िम्मेदार हैं।
- यह भी ध्यान देने योग्य है कि प्रत्येक वर्ष आने वाली बाढ़ से बड़ी मात्रा में जन-धन की हानि होती है, साथ ही इससे सर्वाधिक नकारात्मक रूप से समाज का सबसे गरीब वर्ग प्रभावित होता है।
- इस आलोक में बाढ़ जैसी आपदा की रोकथाम तथा बाढ़ से होने वाली हानि को कम करने के लिये ज़रूरी प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
- विभिन्न सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों द्वारा बाढ़ के प्रभावों को कम करने के प्रयास किये जा रहे हैं। किंतु ये प्रयास तब तक ऐसी आपदाओं को रोकने में कारगर नहीं हो सकेंगे जब तक कि मानव निर्मित कारकों जैसे- जलवायु परिवर्तन, निर्वनीकरण, अवैज्ञानिक विकास आदि को नहीं रोका जाता।
स्रोत- द हिंदू
शासन व्यवस्था
दुर्लभ रोगों हेतु राष्ट्रीय नीति-2020
प्रीलिम्स के लिये:दुर्लभ रोग मेन्स के लिये:जागरूकता की आवश्यकता, नीति की विशेषताएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) ने 450 'दुर्लभ रोगों' (Rare Diseases) के इलाज हेतु एक राष्ट्रीय नीति जारी की है।
पृष्ठभूमि:
केंद्र सरकार द्वारा पहली बार वर्ष 2017 में इस प्रकार की नीति तैयार की गई थी और इसकी समीक्षा के लिये वर्ष 2018 में एक समिति नियुक्त की गई।
प्रमुख बिंदु:
- वर्तमान मसौदा नीति में ऐसे रोगी जिन्हें एकमुश्त उपचार की आवश्यकता है और वे सरकार की प्रमुख आयुष्मान भारत योजना के पात्र हैं तो उन्हें दुर्लभ रोगों के इलाज हेतु 15 लाख रुपए तक की राशि प्रदान करने का प्रस्ताव है।
- नीति के लिये स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय अपनी अम्ब्रेला योजना ‘राष्ट्रीय आरोग्य निधि’ (Rashtriya Arogya Nidhi) के तहत वित्तीय सहायता प्रदान करेगा।
- राष्ट्रीय आरोग्य निधि का उद्देश्य दुर्लभ बीमारी नीति के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले रोगियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
- इसके अलावा मसौदा नीति के अनुसार, डेटाबेस तैयार करने हेतु भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ( Indian Council of Medical Research- ICMR) के तहत एक रजिस्ट्री स्थापित करने का प्रस्ताव भी है।
- यह कुछ चिकित्सा संस्थानों को दुर्लभ रोगों के लिये उत्कृष्टता केंद्र के रूप में अधिसूचित करेगा।
- नीति के तहत, दुर्लभ बीमारियों की तीन श्रेणियाँ हैं:
- एक बार के उपचार के लिये उत्तरदायी रोग (उपचारात्मक)।
- ऐसे रोग जिनमें लंबे समय तक उपचार की आवश्यकता होती है लेकिन लागत कम होती है।
- ऐसे रोग जिन्हें उच्च लागत के साथ दीर्घकालिक उपचार की आवश्यकता है।
- पहली श्रेणी के कुछ रोगों में ऑस्टियोपेट्रोसिस (Osteopetrosis) और प्रतिरक्षा की कमी के विकार शामिल हैं।
दुर्लभ रोग क्या हैं?
- दुर्लभ बीमारी एक ऐसी स्वास्थ्य स्थिति होती है जिसका प्रचलन लोगों में प्रायः कम पाया जाता है या सामान्य बीमारियों की तुलना में बहुत कम लोग इन बीमारियों से प्रभावित होते हैं।
- दुर्लभ बीमारियों की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है तथा अलग-अलग देशों में इसकी अलग-अलग परिभाषाएँ हैं।
- 80 प्रतिशत दुर्लभ बीमारियाँ मूल रूप से आनुवंशिक होती हैं, इसलिये बच्चों पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है।
- नीति के अनुसार, दुर्लभ बीमारियों में आनुवंशिक रोग ( Genetic Diseases), दुर्लभ कैंसर (Rare Cancer), उष्णकटिबंधीय संक्रामक रोग ( Infectious Tropical Diseases) और अपक्षयी रोग (Degenerative Diseases) शामिल हैं।
- भारत में 56-72 मिलियन लोग दुर्लभ बीमारियों से प्रभावित हैं।
विभिन्न देशों में दुर्लभ बीमारियों का प्रसार:
क्रमांक | देश | प्रसार प्रति 10,000 की आबादी से कम |
1. | संयुक्त राज्य अमेरिका | 6.4 |
2. | यूरोप | 5.0 |
3. | कनाडा | 5.0 |
4. | जापान | 4.0 |
5. | दक्षिण कोरिया | 4.0 |
6. | ऑस्ट्रेलिया | 1.0 |
7. | ताईवान | 1.0 |
परिभाषा:
- भारत में दुर्लभ बीमारियों की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है क्योंकि इसकी घटनाओं और व्यापकता पर महामारी विज्ञान के आँकड़ों की कमी है।
- इसके अलावा दुर्लभ बीमारियों की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है सामान्यतः सभी देश रोग की व्यापकता, गंभीरता और वैकल्पिक चिकित्सीय विकल्पों के अस्तित्व को ध्यान में रखते हुए इसको परिभाषित करते हैं।
इस प्रकार की नीति की आवश्यकता क्यों है?
- नीति के अनुसार, विश्व में सभी दुर्लभ बीमारियों में से 5% से भी कम बीमारियों के उपचार के लिये थेरेपी उपलब्ध है।
- भारत में, लगभग 450 दुर्लभ बीमारियों को तृतीयक अस्पतालों से दर्ज किया गया है, जिनमें से हीमोफिलिया, थैलेसीमिया, सिकल-सेल एनीमिया, ऑटो-इम्यून रोग, गौचर रोग (Gaucher’s Disease) और सिस्टेम फाइब्रोसिस सबसे आम हैं।
- राज्य के पास प्रत्येक नागरिक को सस्ती, सुलभ और विश्वसनीय स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ प्रदान करने की जिम्मेदारी है।
- इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 21, 38 और 47 में स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं के महत्त्व का भी उल्लेख किया गया है।
- हालाँकि अन्य बीमारियों की तुलना में दुर्लभ बीमारियों का अनुपात बहुत कम है और यह दुर्लभ बीमारियों से प्रभावित व्यक्ति के जीवन के महत्त्व को कम नहीं करता है।
- इस प्रकार राष्ट्रीय नीति इस प्रतिकूल अंतर को दूर करेगी और सरकार को सभी लोगों के लिये समान रूप से प्रतिबद्ध करेगी।
स्रोत: लाईवमिंट
शासन व्यवस्था
शत्रु संपत्ति
प्रीलिम्स के लिये:शत्रु संपत्ति मेन्स के लिये:शत्रु संपत्ति संशोधन की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय ग्रह मंत्री की अध्यक्षता में मंत्रियों के समहू (Group of Ministers-GOM) द्वारा 9400 से अधिक शत्रु संपत्तियों का निपटान किया जाएगा।
मुख्य बिंदु:
- शत्रु संपत्ति अधिनियम (The Enemy Property Act) के तहत भारत में शत्रु संपत्ति के कस्टोडियन/संरक्षक के अंतर्गत अचल संपत्ति के निपटान के लिये वरिष्ठ अधिकारियों की अध्यक्षता में दो समितियों को अधिसूचित किया गया है।
- गृह मंत्रालय, आर्थिक मामलों के विभाग, व्यय विभाग, सार्वजनिक उद्यम विभाग, कानूनी मामलों के विभाग और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के प्रतिनिधि तथा अन्य लोगों के साथ अंतर-मंत्रालय समूह के सदस्य इन समितियों में शामिल होंगे।
- गृह मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दी गई एक जानकारी के अनुसार 2 जनवरी, 2018 तक भारत में कुल 9,280 शत्रु संपत्तियाँ पाकिस्तानी नागरिकों की तथा 126 चीनी नागरिकों की थीं। सरकार के अनुसार इन संपत्तियों की अनुमानित लागत 1 लाख करोड़ रुपए है।
- पाकिस्तानी नागरिकों द्वारा छोड़ी गई 9,280 संपत्तियों में सर्वाधिक उत्तर प्रदेश में (4991) इसके बाद पश्चिम बंगाल (2,735) तथा दिल्ली (487) में हैं।
- चीनी नागरिकों द्वारा छोड़ी गई 126 संपत्तियों में सर्वाधिक मेघालय (57) में तथा पश्चिम बंगाल (29) में स्थित हैं।
शत्रु संपत्ति क्या है?
- ऐसे लोग जो देश के विभाजन के समय या फिर 1962, 1965 और 1971 के युद्धों के बाद चीन या पाकिस्तान जाकर बस गए और उन्होंने वहाँ की नागरिकता ले ली हो, भारत के रक्षा अधिनियम, 1962 के तहत सरकार उनकी संपत्ति को ज़ब्त कर सकती है और ऐसी संपत्ति के लिये अभिरक्षक या संरक्षक (कस्टोडियन) नियुक्त कर सकती है। अतः देश छोड़कर जाने वाले ऐसे लोगों की भारत में मौजूद संपत्ति ‘शत्रु संपत्ति’ कहलाती है।
- 10 जनवरी, 1966 के ताशकंद घोषणा में एक खंड को शामिल किया गया जिसमें कहा गया था कि भारत और पाकिस्तान युद्ध के बाद दोनों ओर से कब्ज़े में ली गई संपत्ति और उसकी वापसी पर चर्चा की जाएगी।
- पाकिस्तान सरकार द्वारा वर्ष 1971 में ही अपने देश में मौजूद सभी संपत्तियों का निपटारा किया जा चुका है।
शत्रु संपत्ति के निपटारे हेतु भारत सरकार का कदम:
- शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 के अनुसार , कोई भी व्यक्ति जो भारत में शत्रु संपत्ति के कस्टोडियन के रूप में नियुक्त है। केंद्र सरकार,उस कस्टोडियन/संरक्षक के माध्यम से, देश के राज्यों में फैली दुश्मन संपत्तियों को अपने कब्ज़े में लेने के लिये प्रयासरत है।
- वर्ष 2017 में संसद ने शत्रु संपत्ति (संशोधन और सत्यापन) विधेयक, 2016 पारित किया, जिसमें शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 और सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत व्यवसायियों का निष्कासन) अधिनियम, 1971 में संशोधन किया गया। इन संशोधनों के अनुसार:
- यदि कोई शत्रु संपत्ति कस्टोडियन के अंतर्गत है, तो यह शत्रु, शत्रु विषयक अथवा शत्रु फर्म का विचार किये बिना उसके अंतर्गत ही रहेगी।
- यदि मृत्यु आदि जैसे कारणों की वज़ह से शत्रु संपत्ति के रूप में इसे स्थगित भी कर दिया जाता है, तो भी यह कस्टोडियन के ही निहित रहेगी।
- उत्तराधिकार का कानून शत्रु संपत्ति पर लागू नहीं होगा।
- शत्रु अथवा शत्रु विषयक अथवा शत्रु फर्म के द्वारा कस्टोडियन में निहित किसी भी संपत्ति का हस्तांतरण नहीं किया जा सकता।
- कस्टोडियन शत्रु संपत्ति की तब तक सुरक्षा करेगा, जब तक अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप इसका निपटारा नहीं होता।
- केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति के साथ कस्टोडियन, अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार उसके द्वारा निहित शत्रु संपत्तियों का निपटान कर सकता है, और सरकार इस उद्देश्य के लिये कस्टोडियन को निर्देश जारी कर सकती है।
संशोधन की आवश्यकता:
- इन संशोधनों का उद्देश्य से युद्ध के बाद पाकिस्तान और चीन चले गए लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्तियों के हस्तांतरण दावों को संरक्षण प्रदान करना था।
- शत्रु संपत्ति पर किसी भी कानूनी वारिस के इनकार करने से संबंधित न्यायालय के फैसले को संशोधनों के माध्यम से नकारा गया।
- विधेयक में कहा गया है कि विभिन्न अदालतों द्वारा देर से निर्णय लिये गए हैं जिन्होंने कस्टोडियन और भारत सरकार की शक्तियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है विभिन्न अदालतों द्वारा दिये गये इन निर्णयों के मद्देनज़र, कस्टोडियन को शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 के तहत बनाए रखना मुश्किल हो रहा था।
- अतः उपरोक्त सभी कारणों की वज़ह से संशोधन किया जाना आवश्यक था।
शत्रु संपत्ति के संबंध में अदालत के विभिन्न निर्णय:
- महमूदाबाद के तत्कालीन राजा की संपत्ति के मामले में एक बड़ा फैसला न्यायालय द्वारा सुनाया गया, जिसके पास हज़रतगंज, सीतापुर और नैनीताल में कई बड़ी संपत्तियाँ थीं। विभाजन के बाद वह लंदन में जाकर बस गए। उनकी पत्नी और पुत्र मोहम्मद अमीर मोहम्मद खान, भारतीय नागरिक के रूप में भारत में ही रहे।
- वर्ष 1968 में भारत सरकार द्वारा शत्रु संपत्ति अधिनियम लागू किये जाने के बाद उनकी संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया गया था। फिलहाल सर्वोच्च न्यायलय द्वारा राजा महमूदाबाद की संपत्ति को बेचने पर रोक लगा दी गई है।
- 2 जुलाई, 2010 में तत्कालीन सरकार ने उस अध्यादेश को रद्द कर दिया था, जिसमें सरकार ने कस्टोडियन से शत्रु संपत्तियों को विभाजित करने के आदेशों पर रोक लगा दी थी।
- 7 जनवरी 2016 को राष्ट्रपति ने शत्रु संपत्ति (संशोधन और मान्यता) अध्यादेश, 2016 [Enemy Property (Amendment and Validation) Ordinance] को रद्द कर दिया, जिसे 2017 में कानून बनने वाले विधेयक द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
भ्रष्टाचार बोध सूचकांक-2019
प्रीलिम्स के लिये:भ्रष्टाचार बोध सूचकांक-2019 मेन्स के लिये:भ्रष्टाचार बोध सूचकांक में भारत की स्थिति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (Transparency International) भ्रष्टाचार बोध सूचकांक-2019 (Corruption Perception Index-2019) जारी किया है।
मुख्य बिंदु:
इस सूचकांक के अनुसार, भ्रष्टाचार के मामले में भारत की स्थिति में वर्ष 2018 की तुलना में दो स्थान की गिरावट आई है।
सूचकांक में भारत की स्थिति:
- ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी इस सूचकांक के अनुसार, भारत भ्रष्टाचार के मामले में 180 देशों की सूची में 80वें स्थान पर है, जबकि वर्ष 2018 में भारत इस सूचकांक में 78वें स्थान पर था।
- वर्ष 2019 में भारत को इस सूचकांक के अंतर्गत 41 अंक प्राप्त हुए हैं, वर्ष 2018 में भी भारत को 41अंक प्राप्त हुए थे।
वैश्विक परिदृश्य:
- डेनमार्क 87 अंकों के साथ इस सूचकांक में पहले स्थान पर है, जबकि सोमालिया 9 अंकों के साथ दुनिया का सबसे भ्रष्ट देश है।
- इस वर्ष के CPI में दो-तिहाई से अधिक देशों का स्कोर 50 से कम है।
- भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे लोकतंत्रों में अनुचित और अपारदर्शी राजनीतिक वित्तपोषण (Unfair and Opaque Political Financing), निर्णय लेने में अनुचित प्रभाव (Undue Influence in Decision-Making) और शक्तिशाली कॉर्पोरेट हित समूहों की पैरवी करने के परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार के नियंत्रण में गिरावट आई है।
- वर्ष 2012 से 22 देशों ने अपने CPI स्कोर में काफी सुधार किया है, जिनमें एस्टोनिया (Estonia), ग्रीस (Greece) और गुयाना (Guyana) शामिल हैं।
- इस सूचकांक में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और निकारागुआ सहित 21 देशों की स्थिति में गिरावट आई है।
G-7 की स्थिति:
- चार G-7 देशों (कनाडा, फ्राँस, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका) के स्कोर में पिछले वर्ष की तुलना में कमी आई है।
- जर्मनी और जापान की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है तथा इटली को एक स्थान का लाभ मिला है।
एशिया-प्रशांत क्षेत्र की स्थिति:
- इस सूचकांक के अनुसार, एशिया प्रशांत क्षेत्र का औसत स्कोर 45 है जो कि पिछले कई वर्षों से 44 पर स्थिर था। जिससे इस क्षेत्र में सामान्य रूप से ठहराव की स्थिति दिखाई देती है।
भारत के पड़ोसी देशों की स्थिति:
- चीन सहित 5 देश 41 अंकों के साथ 80वें स्थान पर।
- श्रीलंका 38 अंकों के साथ 93वें स्थान पर
- पाकिस्तान 32 अंकों के साथ 120वें स्थान पर
- नेपाल 34 अंकों के साथ 113वें स्थान पर
- भूटान 68 अंकों के साथ 25वें स्थान पर
- म्याँमार 29 अंकों के साथ 130वें स्थान पर
- बांग्लादेश 26 अंकों के साथ 146वें स्थान पर
- अफगानिस्तान 16 अंकों के साथ 173वें स्थान पर
भ्रष्टाचार को रोकने के लिये ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा दिये गए सुझाव:
- नियंत्रण और संतुलन को सुदृढ़ करना तथा शक्तियों के पृथक्करण को बढ़ावा देना।
- बजट और सार्वजनिक सेवाओं को सुनिश्चित करने के लिये अधिमान्य व्यवहार (Preferential Treatment) से निपटना जो कि व्यक्तिगत संपर्क द्वारा संचालित या विशेष हितों के लिये पक्षपाती नहीं होना चाहिये।
- राजनीति में अत्यधिक धन और उसके प्रभाव को रोकने के लिये राजनीतिक वित्तपोषण पर नियंत्रण करना।
- सरकारी और निजी क्षेत्र के बीच ‘रिवोल्विंग डोर्स’ (Revolving Doors) जैसी पद्धतियों पर ध्यान रखना।
- निर्णय लेने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाकर और सभी की सार्थक पहुँच को बढ़ावा देकर लॉबिंग गतिविधियों को विनियमित करना।
- चुनावी अखंडता को मजबूत करना और गलत सूचना अभियानों को मंज़ूरी देने से रोकना।
- नागरिकों को सशक्त करना और कार्यकर्त्ताओं (Activists), व्हिसलब्लोअर्स (Whistleblowers) एवं पत्रकारों को संरक्षण प्रदान करना।
सूचकांक के बारे में:
- वर्ष 1995 में स्थापना के बाद से करप्शन परसेप्शन इंडेक्स, सार्वजनिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार का प्रमुख वैश्विक संकेतक बन गया है। यह सूचकांक दुनिया भर के देशों और क्षेत्रों की रैंकिंग के आधार पर भ्रष्टाचार के सापेक्ष एक वार्षिक रिपोर्ट प्रदान करता है।
- वर्तमान में इसके तहत 180 देशों की रैंकिंग की जाती है। रैंकिंग के लिये इस सूचकांक में 0 से 100 के पैमाने का उपयोग किया जाता है, जहाँ शून्य अत्यधिक भ्रष्ट स्थिति को दर्शाता है वहीं 100 भ्रष्टाचारमुक्त स्थिति को दर्शाता है।
- इस सूचकांक के तहत 13 अलग-अलग डेटा स्रोतों का उपयोग करके आकलन किया जाता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजव्यवस्था
सोशल मीडिया पोस्टिंग: एक मौलिक अधिकार
प्रीलिम्स के लिये:मौलिक अधिकार, सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000, अनुच्छेद 19, भारतीय दंड संहिता मेन्स के लिये:मौलिक अधिकारों से संबंधित मुद्दे, सोशल मीडिया से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने एक फैसले में सोशल मीडिया में पोस्ट करने को एक मौलिक अधिकार माना है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- उच्च न्यायालय ने यह आदेश सोशल मीडिया पर लिखे पोस्ट के आधार पर गिरफ़्तार किये गए शख्स की सुनवाई के दौरान दिया है|
- त्रिपुरा पुलिस ने युवा कान्ग्रेस के एक कार्यकर्त्ता को नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन के लिये जारी किये गए फोन नंबर के खिलाफ लिखे पोस्ट के तहत गिरफ्तार किया था।
- त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने कान्ग्रेस कार्यकर्त्ता को रिहा करने का आदेश देते हुए पुलिस को कहा कि इस तरह के मामले में किसी दूसरे की गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिये।
उच्च न्यायालय के निर्णय के मायने
- त्रिपुरा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने अपने आदेश में टिप्पणी की है कि सोशल मीडिया पर पोस्ट करना सरकारी कर्मचारियों सहित सभी नागरिकों के लिये ‘मौलिक अधिकार’ के समान है।
- न्यायालय के आदेश के अनुपालन में पुलिस को इस मामले को रद्द करने के लिये अब संबंधित प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) से भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) की धारा 120 (B) और 153 (A) को हटाना पड़ेगा।
- ध्यातव्य है कि इससे पहले वर्ष 2015 में इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की आज़ादी पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 (IT Act, 2000) की धारा 66A को असंवैधानिक करार दिया था|
सोशल मीडिया में पोस्ट करना मौलिक अधिकार कैसे?
- इंटरनेट और सोशल मीडिया एक महत्त्वपूर्ण संचार उपकरण बन गया है जिसके माध्यम से व्यक्ति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का उपयोग कर सकते हैं और सूचना एवं विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
- ध्यातव्य है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 और मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा का अनुच्छेद 19 के व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं और सोशल मीडिया पर पोस्टिंग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ही एक रूप है।
- इस प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में सोशल मीडिया पोस्टिंग को भी मौलिक अधिकार माना जा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
मालदीव को खसरे से निपटने हेतु भारत द्वारा मदद
प्रीलिम्स के लिये:मालदीव की भौगोलिक स्थिति मेन्स के लिये :भारत- मालदीव संबंध |
चर्चा में क्यों?
भारत ने मालदीव को खसरे के प्रकोप से निपटने में सहायता हेतु खसरा और रुबेला (Measles and Rubella- MR) वैक्सीन की 30,000 से अधिक खुराक प्रदान की।
प्रमुख बिंदु:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) द्वारा वर्ष 2017 में मालदीव को खसरा मुक्त घोषित करने के बाद तीन वर्ष से कम समय में इसका प्रकोप कम हुआ है।
- मालदीव ने भारत सरकार को "सद्भावना और एकजुटता के भाव प्रदर्शन" के लिये प्रशंसा प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया।
- यह भारत-मालदीव संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- दोनों देशों ने जून 2019 में स्वास्थ्य सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन (Memorandum Of Undestanding- MoU) पर हस्ताक्षर किये थे।
- समझौता ज्ञापन में मालदीव में डिजिटल स्वास्थ्य क्षमताओं की स्थापना, डॉक्टरों और चिकित्सा पेशेवरों, रोग निगरानी, मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के प्रशिक्षण की क्षमता निर्माण तथा प्रशिक्षण में सहयोग के लिये एक रोडमैप तैयार किया गया है।
- इसके अलावा भारत अपने 800 मिलियन डॉलर के लाइन ऑफ क्रेडिट (Line Of Credit) के हिस्से के रूप में मालदीव के हुलहुमले (Hulhumale) में 100-बेड के कैंसर अस्पताल के निर्माण में मालदीव की मदद कर रहा है।
- भारत और मालदीव दोनों देश दक्षिण पूर्व एशिया के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) की क्षेत्रीय समिति के सदस्य हैं।
खसरा (Measles):
- यह एक संक्रामक बीमारी है तथा विश्व स्तर पर छोटे बच्चों में मृत्यु का कारण है।
- यह अंधापन, एंसेफेलाइटिस, गंभीर दस्त, कान के संक्रमण और निमोनिया सहित गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है।
रुबेला (Rubella):
- इसे जर्मन मीज़ल्स (German Measles) भी कहा जाता है
- रूबेला एक संक्रामक रोग है आम तौर पर ये हल्के वायरल संक्रमण हैं जो बच्चों और युवा वयस्कों में सबसे अधिक फैलता है।
- गर्भवती महिलाओं में रूबेला संक्रमण से भ्रूण की मृत्यु या जन्मजात दोष हो सकते हैं जिसे जन्मजात रुबेला सिंड्रोम (Congenital Rubella Syndrome- CRS) के रूप में जाना जाता है। CRS अपरिवर्तनीय जन्म दोष का कारण बनता है।
खसरा और रूबेला वैक्सीन
(Measles and Rubella Vaccine- MR)
- खसरा और रूबेला अलग-अलग वायरस के कारण होते हैं लेकिन इन दोनों के लक्षण सामान्यतः एक जैसे होते हैं, जिसमें शरीर की त्वचा पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं।
- खसरा और रूबेला पहल (Measles & Rubella Initiative) एक वैश्विक कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य इन दोनों बीमारियों को खत्म करना है।
- इन रोगों के लिए वैक्सीन मीज़ल्स-रूबेला (Measles-Rubella- MR), मीज़ल्स-मम्प्स-रूबेला (Measles-Mumps-Rubella- MMR), या मीज़ल्स-मम्प्स-रूबेला-वैरीसेला ( Measles-Mumps-Rubella-Varicella- MMRV) संयोजन के रूप में प्रदान की जाती हैं।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
अपतटीय एवं तटवर्ती तेल और गैस अन्वेषण
प्रीलिम्स के लिये:MoEF&CC, अपतटीय एवं तटवर्ती तेल और गैस अन्वेषण मेन्स के लिये:समुद्री खनन का जैव-विविधता पर प्रभाव, अपतटीय एवं तटवर्ती तेल और गैस अन्वेषण से संबंधित पर्यावरणीय एवं आर्थिक मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Union Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEF&CC) ने तेल और गैस फर्मों को अपतटीय (OffShore) एवं तटवर्ती (On-Shore) ड्रिलिंग अन्वेषणों के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी लेने से छूट देने हेतु एक अधिसूचना जारी की है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environment Impact Assessment- EIA) अधिसूचना, 2006 में 16 जनवरी को एक अधिसूचना के माध्यम से संशोधन किया।
- तटवर्ती ड्रिलिंग का अर्थ है पृथ्वी की सतह के नीचे गहरे गड्ढे खोदने के लिये ड्रिल करना, जबकि अपतटीय ड्रिलिंग समुद्रतल के नीचे ड्रिलिंग से संबंधित है।
- इन ड्रिलिंग विधियों का उपयोग आमतौर पर पृथ्वी से तेल और गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों को निकालने के लिये किया जाता है।
- अब अपतटीय और तटवर्ती तेल एवं गैस अन्वेषण तथा अपतटीय और तटवर्ती तेल विकास एवं उत्पादन संबंधी परियोजनाओं को अलग-अलग वर्गीकृत कर दिया गया है। ध्यातव्य है कि अपतटीय और तटवर्ती तेल एवं गैस के अन्वेषण के संबंध में सभी परियोजनाओं को अब B2 श्रेणी परियोजनाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- स्वास्थ्य और पर्यावरण पर उनके संभावित प्रभाव के आधार पर परियोजनाओं को 'ए' और 'बी' श्रेणियों में विभाजित किया गया है। श्रेणी ‘ए’ के तहत आने वाली परियोजनाओं को MoEF&CC से पर्यावरणीय मंज़ूरी प्राप्त करनी होती है। जबकि श्रेणी ‘बी’ के तहत आने वाली परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंज़ूरी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (Environment Impact Assessment- EIA) से प्राप्त करनी होगी।
- श्रेणी B को B1 और B2 श्रेणियों में विभाजित किया गया है। ध्यातव्य है कि B2 के रूप में वर्गीकृत परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होती है।
- गौरतलब है कि एक हाइड्रोकार्बन ब्लॉक के रूप में अपतटीय या तटवर्ती ड्रिलिंग साइट के विकास को श्रेणी ए के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- ध्यातव्य है कि सभी अपतटीय और तटवर्ती तेल एवं गैस के अन्वेषण, विकास और उत्पादन परियोजनाओं को पहले श्रेणी ए परियोजनाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया था जिनके लिये केंद्र सरकार से पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता होती थी।
इस निर्णय से पर्यावरण पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव
- बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में तेल और गैस की खोज सबसे जटिल परियोजना मानी जाती है। इसके परिणाम सिर्फ स्थानीय परिवेश तक ही सीमित नहीं रहते बल्कि वैश्विक हैं।
- इस तरह की परियोजनाओं से द्वीपों, प्रमुख मछली प्रजनन क्षेत्रों, निकटतम तटीय शहरों के साथ-साथ प्रवासी मार्गों के लिये एक बड़ा खतरा पैदा होता है।
- इसके अतिरिक्त समुद्री खनन से समुद्री जैवविविधता को भी हानि होती है, ध्यातव्य है कि खनन के कारण तेल समुद्री जल में फैल सकता है जिससे समुद्री जीवों सहित वनस्पतियों को नुकसान होगा। तेल फैलने से तटीय के साथ स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र को भी खतरा हो सकता है।
तेल एवं गैस के व्यापार और उत्पादन के संदर्भ में भारत की वर्तमान स्थिति
- ध्यातव्य है कि भारत की निर्भरता आयातित तेल और प्राकृतिक गैस पर बढ़ रही है।
- भारत की आयातित कच्चे तेल पर निर्भरता वर्ष 2014-15 के 78.3 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 83.8 प्रतिशत हो गई है।
- इसी प्रकार आयातित प्राकृतिक गैस पर भारत की निर्भरता वर्ष 2014-15 के 36.3 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 47.3 प्रतिशत हो गई है।
- इसके अलावा भारत में कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का उत्पादन कम हो रहा है। जहाँ वर्ष 2013-14 में कच्चे तेल का उत्पादन 37.79 मीट्रिक टन था वहीं 2018-19 (अप्रैल से दिसंबर) के लिये इसका अनंतिम आँकड़ा (Provisional Figure) 25.99 मीट्रिक टन था।
- मंत्रालय के वर्ष 2018 (अप्रैल-दिसंबर) के अनंतिम आँकड़ों के अनुसार, प्राकृतिक गैस का उत्पादन वर्ष 2013-14 के 35.1 बिलियन क्यूबिक मीटर (Billion Cubic Meters- BCM) से घटकर 24.65 BCM हो गया है।
- ईरान से कच्चे तेल का आयात कम हो रहा है, हालाँकि यह देश भारत का प्रमुख तेल निर्यातक बना हुआ है। ध्यातव्य है कि नवंबर 2018 और नवंबर 2019 के बीच ईरान से कच्चे तेल के आयात में लगभग 89 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है।
सरकार के इस कदम से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- अमेरिका-ईरान संघर्ष को देखते हुए देश के तेल एवं गैस की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं।
- इस कदम से तेल आयात पर राजकोषीय बजट के खर्च को कम किया जा सकता है।
- पश्चिम एशिया की अस्थिर प्रकृति और अमेरिका द्वारा ईरान पर प्रतिबंधों के कारण, भारत तेल आपूर्ति के लिये अन्य विकल्प की खोज में है। इस अधिसूचना को घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर जारी किया गया है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
जैव विविधता और पर्यावरण
हाइड्रो क्लोरो फ्लोरोकार्बन - 141b
प्रीलिम्स के लिये:
हाइड्रो क्लोरो फ्लोरो कार्बन - 141b मेन्स के लिये:फेज आउट मैनेजमेंट प्लान तथा इसके लाभ |
चर्चा में क्यों?
भारत द्वारा 1जनवरी, 2020 तक फोम विनिर्माण उद्यमों में उपयोग में लाये जाने वाले हाइड्रो क्लोरो फ्लोरो कार्बन [Hydro Chloro Fluoro Carbon (HCFC)] -141b नामक रसायन के प्रयोग को चरणबद्ध तरीके से हटा लिया गया है।
मुख्य बिंदु:
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) द्वारा 31 दिसंबर 2019 को, पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिये भारत के राजपत्र में एक अधिसूचना जारी की गई।
- इस अधिसूचना के द्वारा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 (Environment (Protection) Act, 1986) के अंतर्गत स्थापित किये गए ओज़ोन क्षयकारी पदार्थ (विनियमन और नियंत्रण) संशोधन नियम, 2019 (Ozone Depleting Substances (Regulation and Control) Amendment Rules, 2019) के तहत HCFC-141b के आयात संबंधी लाइसेंस प्रदान करने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
- HCFC-141b का उपयोग फोम निर्माण उद्यमों में किया जाता है जो क्लोरो फ्लोरो कार्बन (CFCs) के बाद सबसे शक्तिशाली ओज़ोन क्षयकारी रासायनिक में से एक है।
- HCFC -141b मुख्य रूप से कठोर पॉलीयूरेथेन (Polyurethane) फोम के उत्पादन में एक ब्लोइंग एजेंट (Blowing Agent) के रूप में कार्य करता है।
- देश में HCFC-141b का उत्पादन नहीं किया जाता है इसलिये सभी घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये इसका आयत किया जाता है।
- हाइड्रो फ्लोरो कार्बन फेज़ आउट मैनेजमेंट प्लान (Hydro Chloro Phluro Phase Out Management Plan- HPMP) द्वारा प्रौद्योगिकी रूपांतरण परियोजनाओं की सहायता से देश में वर्ष 2009 -2010 तक बेसलाइन स्तर से HCFC 141-b की लगभग 7800 मीट्रिक टन मात्रा को हटा दिया गया है।
इस कदम की आवश्यकता क्यों?
- भारत द्वारा ओज़ोन परत क्षयकारी तत्त्वों (Ozone Depleting Substances-ODS) को चरणबद्ध तरीके से कम करने तथा पर्यावरण के अनुकूल और ऊर्जा कुशल प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिये यह कदम उठाया गया है।
- देश में लगभग 50% ओज़ोन क्षयकारी रसायनों का उत्सर्जन फोम सेक्टर में प्रयुक्त होने वाले HCFC-141 b के कारण होता था।
- मंत्रालय द्वारा HPMP के तहत गैर-ओजोन क्षयकारी पदार्थ (NON-ODS) और निम्न ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल (Global warming potential- GWP) प्रौद्योगिकियों में तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये फोम विनिर्माण उद्यमों से जुड़ने के लिये यह समग्र दृष्टिकोण अपनाया गया ।
- HPMP के तहत लगभग 175 फोम विनिर्माण उद्यमों को कवर किया गया है, जिनमें से 163 उद्यम HPMP के द्वितीय चरण के तहत आते हैं।
फोम सेक्टर:
- फोम सेक्टर के अंतर्गत मुख्य रूप से कोल्ड स्टोरेज इमारतें, कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर (cold chain infrastructure) , ऑटोमोबाइल, कमर्शियल रेफ्रिजरेशन (commercial refrigeration), वॉटर गीज़र (water geysers), थर्मो वेयर(thermo ware), ऑफिस और घरेलू फर्नीचर एप्लीकेशन, विशिष्ट उच्च मूल्य वाले घरेलू उपकरणों से संबंधित महत्त्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्रों को शामिल किया जाता है।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के अनुच्छेद-5 के तहत (विकासशील देशों) फोम सेक्टर में HCFC141b के प्रयोग को फेज़ आउट मैनेजमेंट प्लान में सबसे उपर रखा गया है।
HCFC-141b के फेज आउट मैनेजमेंट प्लान के लाभ-
- HPMP समताप मंडल में ओज़ोन परत के क्षरण को रोकने में सहायक होगा।
- फोम विनिर्माण उद्यमों में प्रयुक्त तकनीकी जो जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाती है, HPMP द्वारा कम हो जाने से मददगार साबित होगी।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (1987):
यह प्रोटोकॉल ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों पर एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये चरणबद्ध ढंग से ऐसे पदार्थों के उत्सर्जन को रोकने के लिये लागू की गई है।
स्रोत: पी.आई.बी
जैव विविधता और पर्यावरण
कार्बन डिस्क्लोज़र प्रोजेक्ट इंडिया रिपोर्ट 2019
प्रीलिम्स के लिये:कार्बन डिस्क्लोज़र प्रोजेक्ट, CDP इंडिया वार्षिक रिपोर्ट 2019, जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन एवं कॉर्पोरेट क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को सीमित करने की धिषा में किये गए वैश्विक प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कार्बन डिस्क्लोज़र प्रोजेक्ट (Carbon Disclosure Project- CDP) द्वारा 20 जनवरी, 2020 को भविष्य की जलवायु और व्यावसायिक साझेदारी: CDP इंडिया वार्षिक रिपोर्ट 2019 (Climate and Business Partnership of The Future: CDP India Annual Report 2019) जारी की गई है|
रिपोर्ट में निहित महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- इस रिपोर्ट के अंतर्गत विज्ञान-आधारित लक्ष्यों (Science Based Targets- SBT) के लिये कॉर्पोरेट प्रतिबद्धताओं का सर्वेक्षण और जलवायु परिवर्तन के जोखिम का मूल्यांकन किया जाता है।
- कार्बन डिस्क्लोज़र प्रोजेक्ट 2019 के अनुसार, लगभग 6,900 कंपनियों ने वर्ष 2018 में CDP के माध्यम से पर्यावरण संबंधी डेटा का खुलासा किया है।ध्यातव्य है कि इन फर्मों का वैश्विक पूंजीकरण में लगभग 55% का योगदान हैं।
- इस रिपोर्ट में अमेरिका प्रथम स्थान एवं जापान और यूके क्रमशः दूसरे व तीसरे स्थान पर हैं। ध्यातव्य है कि अमेरिका ने 135 कंपनियों के जलवायु से संबंधित गतिविधियों का खुलासा किया है इसके बाद जापान ने 83 कंपनियों के एवं यूनाइटेड किंगडम ने 78 कंपनियों के जलवायु से संबंधित गतिविधियों का खुलासा किया है।
- जबकि फ्राँस को उनके विवरण का खुलासा करने वाली 51 कंपनियों के साथ चौथे स्थान पर रखा गया है और भारत को विज्ञान आधारित लक्ष्यों के लिए 38 कंपनियों के साथ पाँचवें स्थान पर रखा गया है। गौरतलब है कि वर्ष 2018 में भारत में SBT के लिये केवल 25 कंपनियाँ थीं।
- SBT पहल में 18 कंपनियों के साथ नीदरलैंड 10 वें स्थान पर है।
SBT कंपनियों के आधार पर शीर्ष 5 देश:
रैंक | देश | SBT कंपनियाँ |
1 | संयुक्त राज्य अमेरिका | 135 |
2 | जापान | 83 |
3 | यूनाइटेड किंगडम (यूके) | 78 |
4 | फ्राँस | 51 |
5 | भारत | 38 |
भारत से संबंधित रिपोर्ट के महत्त्वपूर्ण तथ्य
- भारत, जर्मनी और स्वीडन से आगे 5वें स्थान पर है। इस प्रकार भारत पहली विकासशील अर्थव्यवस्था है जिसकी विज्ञान आधारित लक्ष्यों के लिये अधिकतम संख्या में कंपनियाँ हैं।
- इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के मूल्यांकन के लिये लगभग सभी बड़ी कंपनियों के गठन के साथ भारत में बदलते दृष्टिकोण को भी प्रदर्शित किया गया। ध्यातव्य है कि यह परिवर्तन जलवायु-सचेत निवेशकों और देश के युवाओं के बीच बढ़ी हुई जलवायु सक्रियता से प्रेरित है।
- रिपोर्ट में यह पाया गया कि निवेशकों ने उन कंपनियों को बेहतर प्रतिक्रिया दी जिन्होंने अपनी पर्यावरणीय गतिविधियों का खुलासा किया है।
- रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि निवेशकों ने किसी संगठन में निवेश करने से पहले भारतीय कंपनियों से जलवायु परिवर्तन के जोखिम को भी ध्यान में रखा है।
- कार्बन डिस्क्लोज़र प्रोजेक्ट रिपोर्ट 2019 के अनुसार, इस वर्ष कुल 58 भारतीय कंपनियों ने पर्यावरण से संबंधित गतिविधियों के बारे में जानकारी साझा की है।
- रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि 98 प्रतिशत से अधिक शीर्ष भारतीय कंपनियों ने जलवायु से संबंधित मुद्दों को पहचानने और संबोधित करने के लिये अपने संगठन के भीतर समिति या समूह का गठन किया है।
- भारतीय कंपनियों ने बोल्ड एमिशन रिडक्शन टारगेट्स (Bold Emission Reduction Targets) में कमी लाने और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये जलवायु परिवर्तन की चुनौती को संबोधित करने हेतु अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है, जिससे भारत पेरिस समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने के मार्ग पर अग्रसर होगा।
कार्बन डिस्क्लोज़र प्रोजेक्ट
(Carbon Disclosure Project- CDP)
- यह यूनाइटेड किंगडम में स्थित एक वैश्विक गैर-लाभकारी संगठन है जो प्रमुख कंपनियों के पर्यावरणीय प्रभाव का खुलासा करने में सहयोग करता है।
- कार्बन डिस्क्लोज़र प्रोजेक्ट, ग्लोबल रिपोर्टिंग इनिशिएटिव (Global Reporting Initiative) की एक पहल है जिसका उद्देश्य दुनिया भर के विभिन्न देशों में विभिन्न कंपनियों और फर्मों द्वारा संचालित कार्बन कटौती गतिविधियों का मापन करना है।
स्रोत: द इकोनोमिक टाइम्स
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 24 जनवरी, 2020
सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार 2020
वर्ष 2020 के लिये आपदा शमन और प्रबंधन केंद्र (DMMC), उत्तराखंड को संस्था श्रेणी में और कुमार मुन्नन सिंह को व्यक्तिगत श्रेणी में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में उनके सराहनीय कार्य के लिये सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार हेतु चुना गया है। संस्था की श्रेणी में विजेता को एक प्रमाणपत्र के साथ 51 लाख रुपए का नकद पुरस्कार दिया जाएगा, जबकि व्यक्तिगत श्रेणी में विजेता को प्रमाणपत्र के साथ कुल 5 लाख रुपए का नकद पुरस्कार दिया जाएगा। ज्ञात हो कि वर्ष 2019 के लिये गाज़ियाबाद स्थित राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) की 8वीं बटालियन को आपदा प्रबंधन में अपने सराहनीय कार्य के लिये पुरस्कार हेतु चुना गया था।
राष्ट्रीय बालिका दिवस
देश भर में 24 जनवरी, 2020 को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2008 से प्रति वर्ष मनाया जाता है। इसका उद्देश्य समाज में बालिकाओं द्वारा असमानता की चुनौती के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना है। नगालैंड में इस अवसर पर सप्ताह भर चलने वाली विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया गया है। साथ ही विभिन्न स्थानों पर बच्चों के लिये कई तरह की प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जा रही हैं।
मध्य प्रदेश के स्कूलों में प्रस्तावना का पाठ अनिवार्य
मध्य प्रदेश सरकार ने प्रदेश के स्कूलों में संविधान की प्रस्तावना के पाठ को अनिवार्य कर दिया है। मध्य प्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश के अनुसार, प्रदेश के समस्त शासकीय विद्यालयों में प्रत्येक शनिवार को संविधान की प्रस्तावना का पाठ किया जाएगा। विदित हो कि इससे पूर्व महाराष्ट्र सरकार ने भी आदेश जारी कर राज्य के सभी स्कूलों में 26 जनवरी से संविधान की प्रस्तावना का पाठ अनिवार्य कर दिया है।
ओमान के नए सुल्तान
ओमान के सुल्तान काबूस बिन सईद अल सईद के निधन के पश्चात् उनके चचेरे भाई और पूर्व संस्कृति मंत्री हैयथम बिन तारिक अल सईद को देश का नया सुल्तान घोषित किया गया है। नए सुल्तान हैयथम ने संस्कृति मंत्रालय के अलावा ओमान के विदेश मंत्रालय में भी कई अहम पदों पर कार्य किया है। ज्ञात हो कि आधुनिक अरब क्षेत्र में सबसे लंबे समय तक राज करने वाले ओमान के सुल्तान काबूस का 79 साल की उम्र में निधन हो गया था। काबूस ने वर्ष 1970 में अपने पिता का तख्तापलट किया था और तब से वे सत्ता में थे।