भारतीय अर्थव्यवस्था
पब्लिक फोरम: शत्रु संपत्ति @ 1 लाख करोड़ रुपए
- 18 Jan 2018
- 19 min read
संदर्भ व पृष्ठभूमि
केंद्र सरकार जल्दी ही इस कार्यकाल का अपना अंतिम पूर्ण बजट पेश करेगी और इससे पहले उसने अनुमान लगाया है कि देश में मौज़ूद शत्रु संपत्तियों में जिनका सर्वे हो चुका है, उनकी बाज़ार में नीलामी से लगभग 1 लाख करोड़ रुपए की आय हो सकती है।
क्या है शत्रु संपत्ति?
1947 में देश के बँटवारे, 1962 में चीन, 1965 और 1971 पाकिस्तान के खिलाफ हुए युद्धों के दौरान या उसके बाद भारत छोड़कर पाकिस्तान या चीन चले गए नागरिकों को भारत सरकार शत्रु मानती है और उनकी संपत्तियों को शत्रु संपत्ति।
- पाकिस्तान, चीन के अलावा अन्य देशों की नागरिकता ले चुके लोगों और कंपनियों की संपत्ति भी शत्रु संपत्ति मानी जाती है।
- ऐसी संपत्तियों की देख-रेख के लिये भारत सरकार अभिरक्षक या संरक्षक (कस्टोडियन) की नियुक्ति करती है।
- भारत सरकार ने 1968 में शत्रु संपत्ति अधिनियम लागू किया था, जिसके तहत शत्रु संपत्ति को कस्टोडियन में रखने की सुविधा प्रदान की गई थी
- केंद्र सरकार ने इसके लिये कस्टोडियन ऑफ एनिमी प्रॉपर्टी विभाग का गठन किया है, जिसे शत्रु संपत्तियों को अधिग्रहित करने का अधिकार है।
- इसके तहत ज़मीन, मकान, सोना, गहने, कंपनियों के शेयर और दुश्मन देश के नागरिकों की किसी भी दूसरी संपत्ति को अधिकार में लिया जा सकता है।
- पहले और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका और ब्रिटेन ने जर्मनी के नागरिकों की जायदाद को इसी आधार पर अपने नियंत्रण में ले लिया था।
(टीम दृष्टि इनपुट)
9411 संपत्तियों की नीलामी से मिलेंगे 1 लाख करोड़ रुपए
अनुमानतः देशभर में शत्रु संपत्ति के दायरे में आने वाली लगभग 16,000 संपत्तियाँ हैं, जिनमें से 9411 को अब तक शत्रु संपत्ति घोषित किया जा चुका है। इनकी अनुमानित कीमत लगभग एक लाख करोड़ रुपए है। अब सरकार इस शत्रु संपत्तियों की नीलामी करने की तैयारी कर रही है।
वस्तुतः शत्रु संपत्ति अधिनियम में संशोधन के माध्यम से ऐसी संपत्तियों पर किसी भी प्रकार के दावे की गुंजाइश ही नहीं बचेगी। विधेयक में यह प्रावधान है कि जिस संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित किया जा चुका है, ऐसी संपत्तियों को पाकिस्तान में बसे लोग (जो देश छोड़कर जाने से पूर्व उनके हकदार थे) या उनके उत्तराधिकारी इन संपत्तियों का हस्तांतरण नहीं कर सकेंगे।
कहाँ-कहाँ हैं शत्रु संपत्तियाँ?
- 6,289 शत्रु संपत्तियों का सर्वे कर लिया गया है और बाकी 2,991 संपत्तियों का सर्वे किया जा रहा है। ये सभी 9,280 संपत्तियाँ पाकिस्तान जाने वाले लोगों की हैं।
- इनमें सबसे अधिक 4,991 संपत्तियाँ उत्तर प्रदेश में, पश्चिम बंगाल 2,735 और राजधानी दिल्ली में ऐसी 487 संपत्तियाँ हैं। इनके साथ-साथ गोवा में भी ऐसी संपत्तियों की संख्या 263 है।
- इनके अलावा 126 संपत्तियाँ ऐसे लोगों की हैं, जिन्होंने चीन की नागरिकता ले ली। इनमें सबसे ज़्यादा 57 शत्रु संपत्तियां मेघालय में, 29 पश्चिम बंगाल में और असम में ऐसी 7 संपत्तियाँ हैं।
- ऐसी संपत्तियाँ, जिनमें कोई बसावट नहीं है उन्हें बोली लगाने के लिये शीघ्र खाली कराया जाएगा।
- इन शत्रु संपत्तियों का अनुमानित मूल्य 1,00,000 करोड़ रुपए से अधिक है और राज्य सरकारों की ओर से इनकी पहचान करने और उनकी कीमत का आकलन करने के लिये नोडल अधिकारियों की तैनाती की गई है।
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान और चीन में भारतीयों से जुड़ी ऐसी संपत्तियों को ऐसा कानून बनाकर पहले ही बेचा जा चुका है। 1965 के युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान ने 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद घोषणा पर हस्ताक्षर किये थे। इस घोषणा में शामिल एक खंड के अनुसार दोनों देश युद्ध के संदर्भ में एक-दूसरे के द्वारा कब्ज़ा की गई संपत्ति और परिसंपत्तियों को लौटाने पर विचार-विमर्श करने पर सहमत हुए थे। लेकिन पाकिस्तान सरकार ने 1971 में स्वयं ही अपने देश में इस तरह कि सभी संपत्तियों का निपटारा कर दिया।
(टीम दृष्टि इनपुट)
शत्रु संपत्ति (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) अधिनियम, 2017
संसद तथा प्रवर समिति में लंबे विचार-विमर्श के बाद पिछले वर्ष शत्रु संपत्ति (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) अधिनियम, 2017 अस्तित्व में आया। उल्लेखनीय है कि राजनीतिक सहमति के अभाव में लगभग 50 वर्ष पुराने इस कानून में संशोधन से पहले 6 बार अध्यादेश जारी किये गए थे। इस संशोधित कानून ने शत्रु संपत्ति (संरक्षण एवं पंजीकरण) अधिनियम, 1968 का स्थान लिया।
'शत्रु' शब्द की परिभाषा में बदलाव
पाकिस्तान से 1965 में हुए युद्ध के बाद 1968 में शत्रु संपत्ति (संरक्षण एवं पंजीकरण) अधिनियम पारित हुआ था। अब इस संशोधित कानून में ‘शत्रु’ शब्द की परिभाषा में बदलाव किया गया है। 1968 के कानून में शत्रु की जो परिभाषा थी, उसमें भारतीय नागरिकों को शामिल नहीं किया गया था, लेकिन अब भारतीय नागरिक भी इस परिभाषा में शामिल कर लिये गए हैं। ऐसे में यदि किसी भारतीय नागरिक के परिजन कई साल पहले पाकिस्तान जाकर बस गए हों तो उन परिजनों की संपत्ति का वारिस इन नागरिकों को नहीं माना जाएगा और इनकी संपत्ति को शत्रु संपत्ति मानते हुए ज़ब्त कर लिया जाएगा।
(टीम दृष्टि इनपुट)
- यदि कोई शत्रु संपत्ति कस्टोडियन के निहित है, तो यह शत्रु, शत्रु विषयक अथवा शत्रु फर्म का विचार किये बिना उसके तहत ही रहेगी।
- यदि मृत्यु आदि जैसे कारणों की वज़ह से शत्रु संपत्ति के रूप में इसे स्थगित भी कर दिया जाता है, तो भी यह कस्टोडियन के ही निहित रहेगी।
- उत्तराधिकार का कानून शत्रु संपत्ति पर लागू नहीं होगा।
- शत्रु अथवा शत्रु विषयक अथवा शत्रु फर्म के द्वारा कस्टोडियन में निहित किसी भी संपत्ति का हस्तांतरण नहीं किया जा सकता।
- कस्टोडियन शत्रु संपत्ति की तब तक सुरक्षा करेगा, जब तक अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप इसका निपटारा नहीं होता।
अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
इस कानून में युद्ध के बाद पाकिस्तान एवं चीन पलायन कर गए लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति पर उत्तराधिकार के दावों को रोकने के प्रावधान किये गए हैं। चूँकि भारत के पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध हो चुके हैं, ऐसे में जो भी भारतीय नागरिक देश छोड़कर इन देशों में बस गए हैं, उनका या फिर उनके उत्तराधिकारियों का भारत में स्थित पुश्तैनी जायदाद पर कोई अधिकार नहीं माना जाएगा।
- संशोधन के बाद अब किसी भी शत्रु संपत्ति के मामले में केंद्र सरकार या कस्टोडियन द्वारा की गई किसी कार्रवाई के संबंध में किसी वाद या कार्यवाही पर विचार नहीं किया जाएगा।
- शत्रु संपत्ति के मालिक का कोई उत्तराधिकारी भी यदि भारत लौटता है तो उसका इस संपत्ति पर कोई दावा नहीं होगा।
- एक बार कस्टोडियन के अधिकार में जाने के बाद शत्रु संपत्ति पर उत्तराधिकारी का कोई अधिकार नहीं होगा।
- शत्रु के उत्तराधिकारी के भारतीय होने या शत्रु अपनी नागरिकता बदलकर किसी और देश का नागरिक बन जाए, तो भी शत्रु संपत्ति कस्टोडियन के पास ही रहेगी।
- कानून के अनुसार, शत्रु संपत्ति अब केवल तभी संपत्ति के मालिक को वापस दी जाएगी, जब वह सरकार के पास आवेदन भेजेगा और संपत्ति शत्रु संपत्ति नहीं पाई जाएगी।
- संशोधित कानून में कस्टोडियन को शत्रु संपत्ति को बेचने का अधिकार भी होगा, जबकि पिछले कानून में केवल संपत्ति के संरक्षण या रखरखाव के लिये ज़रूरी होने पर ही उसे बेचने का प्रावधान था।
- पिछले कानून में यह प्रावधान था कि शत्रु संपत्ति से होने वाली आय का इस्तेमाल शत्रु के वारिस (यदि वे भारत के नागरिक हों) कर सकते थे, जबकि नए कानून में यह प्रावधान हटा लिया गया है।
- शत्रु संपत्ति संशोधित कानून में पिछली तिथि से प्रभावी होने का जो कुछ उल्लेख किया गया है, उससे कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- इस संशोधित कानून के तहत शत्रु संपत्ति की अब तक हुई बिक्री अवैध मानी गई है। यदि किसी भारतीय नागरिक ने कोई शत्रु संपत्ति खरीदी है या उसे विकसित किया है तो कानूनी तौर पर उसे वापस लिया जा सकता है।
- इस कानून के द्वारा सिविल कोर्ट्स और अन्य विभागों से शत्रु संपत्ति से जुड़े किसी भी विवाद पर सुनवाई करने का अधिकार भी ले लिया गया है।
- किसी ट्रिब्यूनल या इस तरह के किसी वैकल्पिक न्यायिक का प्रावधान भी नहीं किया गया है, जहाँ इससे जुड़े विवादों की सुनवाई हो सके।
- ऐसे मामलों की सुनवाई केवल उच्च न्यायालयों या सर्वोच्च न्यायालय में ही हो सकेगी।
- केंद्र सरकार के किसी आदेश से असहमत कोई व्यक्ति आदेश की सूचना अथवा प्राप्ति की तारीख के 60 दिन की अवधि के भीतर ऐसे आदेश से उत्पन्न किसी प्रश्नगत तथ्य अथवा विधि के संबंध में उच्च न्यायालयों में अपील कर सकता है।
बदलाव की ज़रूरत क्यों पड़ी?
शत्रु संपत्ति कानून 1968 में बनाया गया था अर्थात् चीन से हुए युद्ध के 6 साल और पाकिस्तान से हुए युद्ध के 3 साल बाद। कानून बनने के बाद भारत से चीन या पाकिस्तान पलायन करने वाले लोगों को ‘शत्रु देश’ का नागरिक मान लिया गया और सरकार को उनकी संपत्ति जब्त करके उस पर कस्टोडियन यानी संरक्षक नियुक्त करने का अधिकार मिल गया।
इन संपत्तियों से जुड़े सबसे ज़्यादा मामले उन लोगों के हैं, जो विभाजन के समय या फिर उसके बाद पाकिस्तान में बस गए। ऐसे कई परिवारों के वारिसों ने भारत में स्थित अपनी पारिवारिक संपत्ति पर दावा पेश किया था। कई ऐसे परिवार भी हैं, जिनमें मुखिया तो पाकिस्तान चला गया, लेकिन उसकी पत्नी और बच्चे भारत में ही रह गए। ऐसे लोग अपने दावों में कहते हैं कि भारतीय नागरिक होने के कारण पैतृक संपत्ति पर उनका बुनियादी अधिकार है।
राजा महमूदाबाद के पक्ष में आया था सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
इस कानून का सबसे ज़्यादा नुकसान महमूदाबाद के राजा के परिवार को हुआ है। महमूदाबाद लखनऊ के नज़दीक सीतापुर ज़िले की एक बड़ी तहसील और पुरानी रियासत है। शत्रु संपत्ति घोषित हो चुकी राजा महमूदाबाद की लखनऊ, सीतापुर और नैनीताल में ऐसी 936 संपत्तियाँ हैं। महमूदाबाद के राजा अमीर अहमद खान 1957 में पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी पत्नी रानी कनीज आबिद अपने बेटे के साथ यहीं रह गईं। अमीर अहमद खान के बेटे का कहना है कि चूँकि वह और उनकी माँ हमेशा से ही भारतीय नागरिक रहे हैं, इसीलिये उनकी पुश्तैनी जायदाद को शत्रु संपत्ति नहीं माना जाना चाहिये। लेकिन 1968 में जब शत्रु संपत्ति अधिनियम बना तो राजा की तमाम संपत्तियाँ भी ‘शत्रु संपत्ति’ घोषित कर दी गईं।
तब राजा के बेटे मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान ने न्यायालय की शरण ली। 1973 में अपने पिता की मृत्यु के बाद अवध भू-संपत्ति अधिनियम, 1869 के तहत वह उसके वारिस हुए और उन संपत्तियों पर अपना अधिकार मांगा। लंबी मुकदमेबाज़ी के बाद 2005 में राजा महमूदाबाद सर्वोच्च न्यायालय में अपनी और अन्य ऐसी संपत्तियों से 'शत्रु' शब्द हटवाने में सफल हुए, जिसके बाद उनको उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की अपनी संपत्तियों पर मालिकाना हक मिला।
लेकिन इस नए कानून के लागू होने के बाद उनकी लखनऊ, सीतापुर और नैनीताल स्थित अरबों रुपए की संपत्ति पर मालिकाना हक सरकार का हो गया है, क्योंकि शत्रु संपत्ति संशोधित अधिनियम, 2016 के लागू होने के बाद और शत्रु नागरिक की नई परिभाषा के बाद विरासत में मिली ऐसी संपत्तियों पर से भारतीय नागरिकों का मालिकाना हक समाप्त हो गया है।
(टीम दृष्टि इनपुट)
सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद अदालतों में इस तरह के मामलों की संख्या काफी बढ़ गई और पाकिस्तान जा चुके लोगों के कई वारिस अदालतों पहुँचने लगे और इस फैसले का हवाला देते हुए उन संपत्तियों पर अधिकार की मांग करने लगे जिन्हें शत्रु संपत्ति घोषित किया जा चुका था। लेकिन कानून बन जाने पर लखनऊ, मुंबई और हैदराबाद सहित कई जगहों पर शत्रु संपत्ति का मालिकाना हक अब कस्टोडियन यानी भारत सरकार को मिल गया है।
समस्या भी हो सकती है
पाकिस्तान जा चुके महमूदाबाद के राजा के वारिस और भोपाल के नवाब के वारिसों द्वारा उनकी संपत्ति कई लोगों को बेची गई थी और उन्होंने इसे आगे अन्य लोगों को बेच दिया| इस वज़ह से शत्रु संपत्ति घोषित हो चुकी ऐसी संपत्तियों का मालिकाना हक कई बार बदल चुका है| नए कानून के उपरोक्त प्रावधानों से वर्तमान में जिनका इस प्रकार की संपत्तियों पर मालिकाना हक है, वे ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं| यदि उनकी संपत्तियों को शत्रु संपत्ति मानकर कस्टोडियन अपने अधिकार में लेता है तो केवल इन दोनों ही शहरों में लाखों की संख्या में ऐसी आबादी प्रभावित हो सकती है, जो ऐसी संपत्तियों पर दशकों से रह रही है। इसमें कई आवासीय परिसर, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, होटल और नगर निगम की ज़मीन भी शामिल है और इनमें से अधिकांश अपने हितों की रक्षा के लिये न्यायालय की शरण भी ले सकते हैं।
(टीम दृष्टि इनपुट)
निष्कर्ष: ऑफिस ऑफ द कस्टोडियन ऑफ एनिमी प्रॉपर्टी द्वारा 2016 में जारी किये गए आँकड़ों से पता चलता है कि देशभर में लगभग 16,000 शत्रु संपत्तियां हैं, जिनकी कीमत हज़ारों करोड़ रुपए की है। कई बड़े शहरों में कई इमारतें और ज़मीनें शत्रु संपत्ति की श्रेणी में आती हैं। सरकार का यह मानना है कि किसी सरकार को अपने शत्रु राष्ट्र या उसके नागरिकों को संपत्ति रखने या व्यावयायिक हितों की मंज़ूरी नहीं देनी चाहिये। शत्रु संपत्ति का अधिकार सरकार के पास होना चाहिये न कि शत्रु देशों के नागरिकों के उत्तराधिकारियों के पास। इस प्रकार का कानून पाकिस्तान और चीन सहित विश्व के कई अन्य देशों में पहले से लागू है। हमारे देश का यह कानून केवल पाकिस्तान गए लोगों की संपत्ति पर ही नहीं, बल्कि 1962 के युद्ध के बाद चीन चले गए लोगों की संपत्ति पर भी लागू होता है और इससे मानवाधिकारों या न्याय के नैसर्गिक सिद्धांतों का कहीं से कोई उल्लंघन नहीं होता।