इन्फोग्राफिक्स
भारतीय अर्थव्यवस्था
अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023
प्रिलिम्स के लिये:पोषक अनाज और इसका महत्त्व, UNEP FAO, खाद्य सुरक्षा। मेन्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 और इसका महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
देश में प्राचीन और पौष्टिक अनाज के प्रति जागरूकता बढ़ाने एवं भागीदारी की भावना पैदा करने के लिये कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 की समयावधि तक पूर्व में शुरू किये गए कार्यक्रमों तथा पहलों की एक शृंखला का आयोजन किया गया।
- इसके तहत कई कार्यक्रम शुरू किये गए जैसे-'इंडिया वेल्थ, मिलेट्स फॉर हेल्थ', मिलेट स्टार्टअप इनोवेशन चैलेंज, माइटी मिलेट्स क्विज, लोगो और स्लोगन प्रतियोगिता आदि।
अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष (IYM):
- परिचय:
- वर्ष 2023 में अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाजा वर्ष मनाने के भारत के प्रस्ताव को वर्ष 2018 में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा अनुमोदित किया गया था और संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के रूप में घोषित किया है।
- इसे संयुक्त राष्ट्र के एक प्रस्ताव द्वारा अपनाया गया और इसका नेतृत्व भारत ने किया तथा 70 से अधिक देशों ने इसका समर्थन किया।
- उद्देश्य:
- खाद्य सुरक्षा और पोषण में पोषक अनाज/बाजरा/मोटे अनाज के योगदान के बारे में जागरूकता का प्रसार करना।
- पोषक अनाज के टिकाऊ उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार के लिये हितधारकों को प्रेरित करना।
- उपर्युक्त दो उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये अनुसंधान और विकास एवं विस्तार सेवाओं में निवेश बढ़ाने पर ध्यान देना।
पोषक अनाज/बाजरा/मोटे अनाज:
- परिचय:
- पोषक अनाज सामूहिक शब्द है जो कई छोटे-बीज वाले फसलों कों संदर्भित करता है, जिसकी खाद्य फसल के रूप में मुख्य रूप से समशीतोष्ण, उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों व शुष्क क्षेत्रों में सीमांत भूमि पर खेती की जाती है।
- भारत में उपलब्ध कुछ सामान्य फसलों में बाजरा रागी (फिंगर मिलेट), ज्वार (सोरघम), समा (छोटा बाजरा), बाजरा (मोती बाजरा) और वरिगा (प्रोसो मिलेट) शामिल हैं।
- इन अनाजों के प्रमाण सबसे पहले सिंधु सभ्यता में पाए गए और ये भोजन के लिये उगाए गए पहले पौधों में से थे।
- यह लगभग 131 देशों में उगाया जाता है और एशिया एवं अफ्रीका में लगभग 60 करोड़ लोगों का पारंपरिक भोजन है।
- विश्व में भारत बाजरा का सबसे बड़ा उत्पादक है।
- यह वैश्विक उत्पादन का 20% और एशिया में उत्पादन का 80% हिस्सा है।
- वैश्विक वितरण:
- दुनिया में भारत, नाइजीरिया और चीन, बाजरा के सबसे बड़े उत्पादक हैं, जो वैश्विक उत्पादन के 55% से अधिक हैं।
- कई वर्षों तक भारत बाजरा का प्रमुख उत्पादक था। हालाँकि हाल के वर्षों में अफ्रीका में बाजरा उत्पादन में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है।
- महत्त्व:
- पौष्टिक रूप से संपन्न:
- उच्च प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, लौह तत्त्व जैसे खनिजों के कारण बाजरा कम खर्चीला और पौष्टिक रूप से गेहूँ एवं चावल से बेहतर होता है।
- बाजरा कैल्शियम और मैग्नीशियम से भी भरपूर होता है। उदाहरण के लिये रागी को सभी खाद्यान्नों में सबसे अधिक कैल्शियम सामग्री के लिये जाना जाता है।
- बाजरा पोषण सुरक्षा प्रदान कर सकता है और विशेष रूप से बच्चों एवं महिलाओं में पोषण की कमी के खिलाफ एक ढाल के रूप में कार्य कर सकता है। इसकी उच्च लौह सामग्री भारत में प्रजनन आयु की महिलाओं तथा शिशुओं में एनीमिया के उच्च प्रसार से लड़ सकती है।
- ग्लूटेन फ्री लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स:
- बाजरा जीवनशैली की समस्याओं और मोटापे एवं मधुमेह जैसी स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने में मदद कर सकता है क्योंकि यह ग्लूटेन फ्री (एक प्रकार का प्रोटीन जो कभी-कभी सेहत के लिये हानिकारक भी हो सकता है) होता है और इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है (खाद्य पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट की एक सापेक्ष रैंकिंग यह है कि वे रक्त शर्करा के स्तर को कैसे प्रभावित करते हैं)।
- उपज में काफी बेहतर :
- बाजरा प्रकाश के प्रति असंवेदनशील होता है (फलने के एक विशिष्ट समय में इसे प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है) और इस पर जलवायु परिवर्तन का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है। बाजरा खराब मिट्टी में भी बहुत कम या बिना किसी सहायता के उग सकता है।
- बाजरा कम पानी की खपत वाला अन्नाज है और बहुत कम वर्षा वाले क्षेत्रों, सूखे की स्थिति, गैर-सिंचित परिस्थितियों में उत्पादन में सक्षम है।
- बाजरे में कार्बन और वाटर फुटप्रिंट कम होता है (बाजरे की तुलना में चावल के पौधों को बढ़ने के लिये कम-से-कम 3 गुना अधिक पानी की आवश्यकता होती है)।
- पौष्टिक रूप से संपन्न:
- सरकार द्वारा की गई पहल:
- ‘गहन बाजरा संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल (Initiative for Nutritional Security through Intensive Millet Promotion-INSIMP):
- MSP में बढ़ोतरी: भारत सरकार द्वारा बाजरे के MSP में बढ़ोतरी की गई है, जिससे किसान बाजरा उत्पादन के लिये प्रोत्साहित होंगे।
- इसके अलावा बाजरे की उपज के लिये एक स्थिर बाज़ार प्रदान करने के लिये भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बाजरे को भी शामिल किया गया है।
- इनपुट सहायता (Input Support): बाजरे के उत्पादन के लिये भारत सरकार द्वारा किसानों को बीज किट (Seed Kits) और इनपुट सहायता के रूप में किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producer Organisations) के माध्यम से मूल्य शृंखला का निर्माण तथा बाजरे के लिये बाज़ार क्षमता को विकसित करने में मदद की जा रही है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. गहन बाजरा संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: c व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। |
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
गैर-संक्रामक रोग
प्रिलिम्स के लिये:विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), गैर-संक्रामक रोग (NCD), सतत् विकास लक्ष्य, हृदय रोग (CVD), राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM), प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY)। मेन्स के लिये:गैर-संक्रामक रोगों के प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपनी रिपोर्ट "अदृश्य संख्याएँ-गैर-संक्रामक रोगों की वास्तविक स्थिति और उनके लिये आवश्यक कदम” जारी की, जिसमें कहा गया है कि हर दो सेकंड में 70 वर्ष से कम आयु के एक व्यक्ति की मृत्यु गैर-संक्रामक रोग (NCD) के कारण होती है जिनमें 86% मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- विश्व स्तर पर तीन मौतों में से एक यानी प्रतिवर्ष 17.9 मिलियन मौतें हृदय रोगों (CVD) के कारण होती हैं।
- उच्च रक्तचाप वाले दो-तिहाई लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं, लेकिन उच्च रक्तचाप वाले लगभग आधे लोगों को पता भी नहीं है कि उन्हें यह रोग है। वर्तमान में यह 30-79 वर्ष की आयु वाले लगभग 1.3 बिलियन वयस्कों को प्रभावित करता है।
- प्रमुख रोग:
- मधुमेह: प्रत्येक वर्ष 2 मिलियन के आँकड़े के साथ 28 में से एक मौत मधुमेह के कारण होती है।
- विश्व स्तर पर मधुमेह के 95% से अधिक मामलों का कारण टाइप 2 मधुमेह है।
- कैंसर: यह प्रति छह मौतों में से एक यानी प्रतिवर्ष 9.3 मिलियन मौतों का कारण बनता है, स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों को कम करके कैंसर से होने वाली 44% मौतों को रोका जा सकता था।
- श्वसन रोग: रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों को कम करके साँस संबंधी पुरानी बीमारियों के कारण होने वाली 70% मौतों को रोका जा सकता था।
- मधुमेह: प्रत्येक वर्ष 2 मिलियन के आँकड़े के साथ 28 में से एक मौत मधुमेह के कारण होती है।
- इसके अलावा कोविड-19 ने NCD देखभाल पर गंभीर प्रभावों के साथ गैर-संक्रामक और संक्रामक रोग के बीच संबंधों को स्पष्ट किया। महामारी के शुरुआती महीनों में 75% देशों ने आवश्यक NCD की सेवाओं में विघटन की सूचना दी।
- WHO पोर्टल के अनुसार, वर्ष 2030 तक गैर-संक्रामक रोगों के कारण असमय होने वाली मौतों को एक- तिहाई तक कम करने के सतत् विकास लक्ष्य की पूर्ति की दिशा में गिने-चुने देश ही अग्रसर थे।
गैर- संक्रामक रोग:
- विषय:
- गैर-संक्रामक रोगों को दीर्घकालिक बीमारियों के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि ये लंबे समय तक बने रहते हैं तथा आमतौर पर ये रोग आनुवंशिक, शारीरिक, पर्यावरण और जीवन-शैली जैसे कारकों के संयोजन का परिणाम होते हैं।
- मुख्य गैर-संक्रामक रोग हैं- हृदय रोग (जैसे दिल का दौरा और स्ट्रोक), कैंसर, साँस की पुरानी बीमारियाँ (जैसे क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज एवं अस्थमा) और मधुमेह।
- कारण:
- तंबाकू का सेवन, अस्वास्थ्यकर आहार, शराब का अत्यधिक सेवन, शारीरिक निष्क्रियता और वायु प्रदूषण इस प्रकार की स्थितियों में योगदान देने वाले मुख्य कारक हैं।
- भारत में गैर-संक्रामक रोगों की स्थिति:
- WHO के अनुसार, वर्ष 2019 में इस प्रकार की बीमारियों से मरने वाले लोगों की संख्या 60.46 लाख थी।
- साल 2019 में हृदय रोग से मरने वालो की संख्या 25.66 लाख से अधिक और लंबे समय से साँस की बीमारी की समस्या से मरने वालो की संख्या46 लाख थी।
- देश में कैंसर के कारण 9.20 लाख मौतें हुईं, जबकि 3.49 लाख मौतें मधुमेह के कारण हुईं।
- भारत द्वारा की गई पहल:
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक (NPCDCS) की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम लागू किया जा रहा है।
- केंद्र सरकार देश के विभिन्न हिस्सों में राज्य कैंसर संस्थानों (SCI) और तृतीयक देखभाल केंद्रों (TCC) की स्थापना का समर्थन करने के लिये तृतीयक देखभाल कैंसर सुविधाओं के सुदृढ़ीकरण योजना को लागू कर रही है।
- ऑन्कोलॉजी अपने विभिन्न पहलुओं में नए एम्स और प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY) के तहत कई उन्नत संस्थानों पर ध्यान केंद्रित करती है।
- रोगियों को रियायती कीमतों पर कैंसर और हृदय रोग की दवाएँ तथा प्रत्यारोपण सुविधाउपलब्ध कराने के उद्देश्य से 159 संस्थानों/अस्पतालों में सस्ती दवाएँ एवं उपचार के लिये विश्वसनीय प्रत्यारोपण (अमृत) दीनदयाल आउटलेट खोले गए हैं।
- जन औषधि स्टोर की स्थापना फार्मास्युटिकल विभाग द्वारा सस्ती कीमतों पर जेनेरिक दवाएँ उपलब्ध कराने के लिये की जाती है।
- वैश्विक पहल:
- सतत् विकास हेतु एजेंडा: सतत् विकास एजेंडा 2030 के हिस्से के रूप में राज्य सरकारों ने रोकथाम एवं उपचार (SDG लक्ष्य 3.4) के माध्यम से NCD से समयपूर्व होने वाली एक-तिहाई मृत्यु दर को कम करने के लिये वर्ष 2030 तक महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ विकसित करने के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- WHO, NCD के खिलाफ वैश्विक लड़ाई के समन्वय और प्रचार में महत्त्वपूर्ण नेतृत्वकर्त्ता की भूमिका निभाता है।
- वैश्विक कार्ययोजना: वर्ष 2019 में विश्व स्वास्थ्य सभा ने NCD की रोकथाम और नियंत्रण के लिये WHO की वैश्विक कार्ययोजना को वर्ष 2013-2020 की अवधि से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक कर दिया है और NCD की रोकथाम एवं नियंत्रित करने की प्रगति में तेज़ी लाने के लिये कार्यान्वयन रोडमैप वर्ष 2023 से 2030 के विकास का आह्वान किया।
- यह NCD की रोकथाम और प्रबंधन की दिशा में सबसे अधिक प्रभाव वाले नौ वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये कार्यों का समर्थन करता है।
- सतत् विकास हेतु एजेंडा: सतत् विकास एजेंडा 2030 के हिस्से के रूप में राज्य सरकारों ने रोकथाम एवं उपचार (SDG लक्ष्य 3.4) के माध्यम से NCD से समयपूर्व होने वाली एक-तिहाई मृत्यु दर को कम करने के लिये वर्ष 2030 तक महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ विकसित करने के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
आगे की राह
- मज़बूत स्वास्थ्य प्रणाली के लिय ऐसे कार्यक्रमों की आवश्यकता है जिससे स्वास्थ्य को बढ़ावा देकर जोखिम कारकों का जल्दी और प्रभावी ढंग से पता लगाकर उन्हें नियंत्रित किया जा सके तथा साथ ही बीमारी का लागत प्रभावी ढंग से इलाज कर मौतों को रोका जाना चाहिये।
- इसके अलावा प्राथमिक देखभाल पर ज़ोर देने के साथ वित्तीय आवंटन और स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करने की पहल में NCD को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. कई घरेलू उत्पादों जैसे गद्दे और असबाब में ब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंट्स का उपयोग किया जाता है। उनके उपयोग के बारे में चिंताएँ क्यों हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: c व्याख्या:
|
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भूगोल
ड्वोरक तकनीक
प्रिलिम्स के लिये:मौसम पूर्वानुमान की ड्वोरक तकनीक, बादल पैटर्न पहचान तकनीक, मौसम विज्ञान। मेन्स के लिये:ड्वोरक तकनीक और इसकी प्रासंगिकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी मौसम वैज्ञानिक वेरनौन ड्वोरक का निधन हो गया, जिनके नाम पर मौसम की भविष्यवाणी करने के लिये ड्वोरक तकनीक का नाम रखा गया था।
- ड्वोरक एक अमेरिकी मौसम वैज्ञानिक थे जिन्हें 1970 के दशक की शुरुआत में ड्वोरक (जिसे दो-रक के रूप में पढ़ा गया) तकनीक विकसित करने का श्रेय दिया जाता है।
ड्वोरक तकनीक:
- ड्वोरक तकनीक उष्णकटिबंधीय चक्रवात के विकास और क्षय के एक अवधारणा मॉडल पर आधारित बादल पैटर्न पहचान तकनीक (क्लाउड पैटर्न रिकग्निशन तकनीक-CPRT) है।
- इसे पहली बार 1969 में विकसित किया गया था और उत्तर-पश्चिमी प्रशांत महासागर में तूफानों को देखने के लिये इसका परीक्षण किया गया था।
- इस पद्धति में, ध्रुवीय परिक्रमा करने वाले उपग्रहों से प्राप्त उपलब्ध उपग्रह छवियों का उपयोग आगे बढ़ रहे उष्णकटिबंधीय तूफानों (तूफानों, चक्रवातों और आँधियों) की विशेषताओं की जाँच के लिये किया जाता है।
- दिन के समय, दृश्य स्पेक्ट्रम में छवियों का उपयोग किया जाता है, जबकि रात में, समुद्र को अवरक्त छवियों का उपयोग करके देखा जाता है।
- उपग्रह से प्राप्त छवियों के अनुसार, यह तकनीक पूर्वानुमानकर्त्ताओं को तूफान की देखी गई संरचना से एक प्रतिरूप की पहचान करने, उसके केंद्र का पता लगाने और तूफान की तीव्रता का अनुमान लगाने में मदद करती है।
- हालांकि यह किसी भी प्रकार की भविष्यवाणी करने, हवा या दबाव या चक्रवात से जुड़े किसी भी अन्य मौसम संबंधी मापदंडों को मापने में मदद नहीं कर सकती है, यह तूफान की उग्रता एवं संभावित तीव्रता का अनुमान लगाने का एक जरिया है, जो स्थानीय प्रशासन के लिये तटीय या अन्य आस-पास रहने वालों के लिये निकासी उपायों की योजना बनाने में महत्त्वपूर्ण है।
प्रासंगिकता:
- यहाँ तक कि भूमि-आधारित मौसम संबंधी अवलोकनों के एक बेहतर नेटवर्क होने के बावजूद महासागर का अवलोकन अभी भी सीमित है।
- चार महासागरों में ऐसे कई क्षेत्र हैं जिनकी पूरी तरह से मौसम संबंधी उपकरणों से जाँच नहीं की गई है।
- महासागर अवलोकन ज़्यादातर प्लव या समर्पित जहाज़ो को तैनात करके किये जाते हैं, लेकिन समुद्र से प्राप्त अवलोकनों की संख्या अभी भी पर्याप्त नहीं है।
- यही कारण है कि मौसम वैज्ञानिकों को उपग्रह-आधारित छवियों पर अधिक निर्भर रहना पड़ता है, और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता एवं हवा की गति का पूर्वानुमान लगाने के समय इसे उपलब्ध महासागर-डेटा के साथ मिलाना पड़ता है।
- ड्वोरक तकनीक की स्थापना के बाद से इसमें कई बदलाव हुए हैं। वर्तमान समय में भी जब पूर्वानुमानकर्त्ताओं के पास मॉडल मार्गदर्शन, एनिमेशन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग और उपग्रह प्रौद्योगिकी जैसे कई अत्याधुनिक उपकरणों तक पहुँच है, मूलतः यह ड्वोरक तकनीक का उन्नत संस्करण है जिसका व्यापक रूप से आज उपयोग किया जा रहा है। .
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (C)
अतः विकल्प (C) सही उत्तर है। प्रश्न. उष्णकटिबंधीय अक्षांशों में दक्षिण अटलांटिक और दक्षिण-पूर्वी प्रशांत क्षेत्रों में चक्रवात की उत्पत्ति नहीं होती है। क्या कारण है? (2015) (a) समुद्र की सतह का तापमान कम है उत्तर: (b) व्याख्या:
प्रश्न. भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा चक्रवात संभावित क्षेत्रों के लिये कलर-कोडित मौसम चेतावनियों के अर्थ पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
नीतिशास्त्र
मौसम में संशोधन के कारण नैतिक मुद्दे
मेन्स के लिये:मौसम में बदलाव और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
चीन ने वर्ष 2002 और 2012 के बीच 50 लाख से अधिक मौसम-संशोधन कार्यों का संचालन किया है।
- वर्ष 2020 में चीन ने 5.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में कृत्रिम बारिश या बर्फबारी करने के लिये अपने मौसम-संशोधन कार्यक्रम का विस्तार करने की योजना की घोषणा की, जो भारत के कुल आकार का 1.5 गुना से अधिक है।
- कई देशों ने जल की कमी, पारिस्थितिक संकट और खाद्य सुरक्षा से निपटने के लिये क्लाउड सीडिंग पर शोध और प्रयोग किया है।
मौसम संशोधन:
- मौसम संशोधन (मौसम नियंत्रण के रूप में भी जाना जाता है) जो कि जियो इंजीनियरिंग का एक हिस्सा है, जान-बूझकर मौसम में बदलाव या परिवर्तन करने का कार्य है।
- मौसम संशोधन का सबसे सामान्य रूप क्लाउड सीडिंग (आमतौर पर स्थानीय जल आपूर्ति को बढ़ाने के लिये) है, जो बारिश या हिमपात को बढ़ाता है।
- मौसम संशोधन में हानिकारक मौसम, जैसे कि ओला या तूफान की उत्पत्ति को रोकने का लक्ष्य या दुश्मन के खिलाफ हानिकारक मौसम को उकसाने के लिये सैन्य या आर्थिक युद्ध की रणनीति के रूप में भी हो सकता है जैसे ऑपरेशन पोपेय, जहाँ वियतनाम में मानसून को दीर्घकालिक करने के लिये शुरू किया गया था।
मौसम में संशोधन के कारण नैतिक मुद्दे:
- आम लोगों की त्रासदी:
- 'आम लोगों की त्रासदी' उस स्थिति को संदर्भित करती है जब व्यक्ति अपने स्वयं के हित में तर्कहीन रूप से कार्य करते हुए सामूहिक तर्कसंगत संसाधन को अपूरणीय रूप से समाप्त कर देते हैं जो सार्वजनिक स्वामित्व में होता है।
- चीन की कार्रवाई वैश्विक स्तर पर 'त्रासदी' का एक संभावित उदाहरण है।
- विषम कमज़ोरियाँ:
- कई सबसे कमज़ोर देशों एवं लोगों के लिये मौसम संशोधन के संबंध में चीन की कार्रवाइयाँ गंभीर रूप से अनुचित प्रतीत होती हैं, जो पर्यावरणविदों पर दबाव डालती है।
- अंतर्जनपदीय नैतिकता:
- नैतिकता की एक शाखा जिसे अंतर-पीढ़ीगत नैतिकता कहा जाता है, इस बात की जाँच करती है कि क्या वर्तमान मानवता का नैतिक दायित्व है कि वह भावी पीढ़ियों के लाभ के लिये पर्यावरणीय स्थिरता के प्रयास करे।
मौसम में संशोधन के प्रभाव:
- मानसून को बाधित कर सकता है:
- उदाहरणतः ज्वालामुखी के बादलों की नकल करने हेतु आर्कटिक के ऊपर समताप मंडल में सल्फेट एरोसोल को इंजेक्ट करना, एशिया में मानसून को बाधित कर सकता है और सूखे को बढ़ा सकता है, विशेष रूप से अफ्रीका में दो अरब लोगों के लिये भोजन और जल स्रोतों को खतरे में डाल सकता है।
- इसके अलावा क्लाउड सीडिंग से उत्पन्न अतिरिक्त बर्फ के परिणामस्वरूप मानव-प्रेरित आपदा को ट्रिगर कर सकती हैं।
- रुचियों में भेद:
- तकनीकी आधुनिकीकरण को पर्यावरणीय समस्याओं का सबसे अच्छा समाधान माना जाता है, लेकिन डेटा के अभाव में प्रौद्योगिकी मानव निर्मित आपदाओं के अग्रदूत के रूप में कार्य करती है।
- चीन का सत्तावादी शासन सभी वैज्ञानिकों के दृष्टिकोण को नियंत्रित कर सकता है।
- कुछ लोग भू-अभियांत्रिकी को जलवायु परिवर्तन का त्वरित समाधान मानते हैं। भू-अभियांत्रिकी के विस्तार के रूप में मौसम संशोधन को देखने में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन हमें इसे अधिक सटीक बनाने के लिये और अधिक शोध की आवश्यकता है।
भू-अभियांत्रिकी:
- विषय:
- ऑक्सफोर्ड भू-अभियांत्रिकी प्रोग्राम के अनुसार, भू-अभियांत्रिकी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बदलने के लिये पृथ्वी की प्राकृतिक प्रणालियों में जान-बूझकर किया गया एक बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप है।
- इसमें ग्रह को ठंडा करने के लिये वैश्विक जलवायु में भौतिक रूप से हेरफेर करने की तकनीक शामिल है।
- श्रेणियाँ:
- इस तकनीक की मुख्यतः तीन श्रेणियाँ हैं:
- सौर विकिरण प्रबंधन (सोलर रेडिएशन मैनेजमेंट-SRM): सौर भू-अभियांत्रिकी या 'धूप को कम करना' हवा में सल्फेट्स का छिड़काव करके अंतरिक्ष में वापस सूर्य के प्रकाश को प्रतिबिंबित करना, बादलों का चमकना या बादलों को अधिक परावर्तक बनाने के लिये खारे पानी का छिड़काव करना।
- कार्बन डाइऑक्साइड हटाने (कार्बन डाइऑक्साइड रिमूवल (Carbon Dioxide Removal- CDR): अधिक कार्बन को अवशोषित करने के लिये पादप प्लवक विकास को प्रोत्साहित करने के लिये समुद्री निषेचन या लोहे या उर्वरक की डंपिंग।
- कार्बन कैप्चर, यूटिलाइज़ेशन और स्टोरेज (CCUS), डायरेक्ट एयर कैप्चर (DAC) और बायोएनर्जी के साथ कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (BECCS) जैसी कार्बन डाइऑक्साइड रिमूवल तकनीकों को 'पूर्ण शून्य' उत्सर्जन प्राप्त करने के साधन के रूप में प्रस्तावित किया जा रहा है।
- मौसम में बदलाव।
- इस तकनीक की मुख्यतः तीन श्रेणियाँ हैं:
आगे की राह
- एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता:
- मौसम-संशोधन कार्यक्रमों को संचालित करने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता है।
- मौसम परिवर्तन वायुमंडल में होता है, जहाँ कोई सीमा नहीं होती है। यह अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करता है और हमें भू-राजनीति से निपटने के लिये और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
- मौसम-संशोधन कार्यक्रमों को संचालित करने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता है।
- अधिक शोध की आवश्यकता:
- मौसम प्रयोगशाला में प्रयोग करने जैसा नहीं है। इसलिये हमें इसे अधिक सटीक बनाने के लिये और अधिक शोध की आवश्यकता है।
- सामाजिक परिणामों के अलावा नैतिक और नीतिशास्त्रीय मुद्दों पर और अधिक चर्चा करने की आवश्यकता है।
- अधिक सूझ-बूझ की आवश्यकता:
- मौसम परिवर्तन वायुमंडल में होता है, जहाँ कोई सीमा नहीं होती है। लेकिन यह परिवर्तन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करता है और भू-राजनीति से निपटने के लिये अधिक कल्पना की आवश्यकता होती है।
- इसकी एक स्पष्ट सीमा नहीं है बल्कि एक विशिष्ट प्रकार की शक्ति है जिसे सामान्यतः मानव द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।
- भूभौतिकीय राजनीतिज्ञों को यह पहचानने की ज़रूरत है कि पृथ्वी प्रणाली बल अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका निभा सकता है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
किर्गिज़स्तान-ताज़िकिस्तान संघर्ष
प्रिलिम्स के लिये: किर्गिज़स्तान- ताजिकिस्तान संघर्ष, मध्य एशिया, शंघाई सहयोग संगठन (SCO), अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC), यूपीएससी, आईएएस, विगत वर्ष के प्रश्न। मेन्स के लिये: मध्य एशिया में भारत की भूमिका का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में किर्गिज़स्तान और ताजिकिस्तान के बीच हिंसक सीमा संघर्ष में लगभग 100 लोग मारे गए हैं और कई घायल हुए हैं।
दोनों देशों के बीच संघर्ष का कारण:
- ऐतिहासिक विरासत:
- वर्तमान संघर्ष सोवियत काल से पहले और बाद की पुरानी विरासतों को दोहरा रहे हैं।
- जोसेफ स्टालिन के नेतृत्व में दो गणराज्यों की सीमाओं का सीमांकन किया गया था।
- प्राकृतिक संसाधनों पर सामान्य अधिकार: ऐतिहासिक रूप से किर्गिज़ और ताजिक आबादी को प्राकृतिक संसाधनों पर समान अधिकार प्राप्त थे।
- सोवियत संघ के निर्माण ने सामूहिक और राज्य के खेतों में पशुधन के बड़े पैमाने पर पुनर्वितरण को देखा, जिसने मौजूदा यथास्थिति को अस्थिर किया।
- वर्तमान विवाद:
- हाल की घटनाओं में दोनों पक्षों के समूहों ने विवादित क्षेत्रों में पेड़ लगाए और कृषि उपकरणों के हथियार के रूप में इस्तेमाल के कारण संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हुई।
- वर्तमान में फरगना घाटी संघर्ष और लगातार हिंसक विस्फोटों का स्थल बनी हुई है, जिसमें मुख्य रूप से ताजिक, किर्गिज़ और उज्बेक शामिल हैं, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से सामान्य सामाजिक विशिष्टताओं, आर्थिक गतिविधियों एवं धार्मिक प्रथाओं को साझा किया है।
- दोनों देश लहरदार प्रक्षेपवक्र और प्रवाह के साथ कई जल चैनल साझा करते हैं, जो दोनों तरफ पानी तक समान पहुँच को बाधित करते हैं। नतीजतन, महत्त्वपूर्ण सिंचाई अवधि के दौरान व्यावहारिक रूप से प्रत्येक वर्ष छोटे पैमाने पर संघर्ष होते रहते हैं।
- किर्गिज़स्तान और ताजिकिस्तान 971 किलोमीटर सीमा साझा करते हैं, जिनमें से लगभग 471 किलोमीटर विवादित है।
- दोनों देशों के नेताओं ने एक विशेष प्रकार की विकास परियोजना की कल्पना के माध्यम से संघर्ष को जारी रखने में योगदान दिया है, जिसके परिणामस्वरूप घुमंतू समुदायों का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ है, जो अपने संबंधित देशों की आंतरिक गतिशीलता को स्थिर करने और उनकी शक्ति को वैध बनाने की उम्मीद कर रहे हैं।
ताजिकिस्तान-भारत संबंध:
- अंतर्राष्ट्रीय मंचों में सहयोग:
- 2020 में ताजिकिस्तान ने 2021-22 की अवधि के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अस्थायी सीट के लिये भारत की उम्मीदवारी का समर्थन किया।
- ताजिकिस्तान ने भारत के लिये शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य के दर्जे का पुरज़ोर समर्थन किया।
- भारत ने जल संबंधी मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र में ताजिकिस्तान के प्रस्तावों का लगातार समर्थन किया है।
- भारत ने मार्च 2013 में संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC) में ताजिकिस्तान की उम्मीदवारी एवं विश्व व्यापार संगठन में शामिल होने का भी समर्थन किया।
- विकास और सहायता साझेदारी:
- विकास सहायता:
- 6 मिलियन अमेरिकी डाॅलर के अनुदान के साथ 2006 में एक सूचना और प्रौद्योगिकी केंद्र (बेदिल केंद्र) शुरू किया गया था।
- यह परियोजना 6 वर्षों के पूर्ण हार्डवेयर चक्र (Full Hardware Cycle) के लिये संचालित की गई जिसके तहत ताजिकिस्तान में सरकारी क्षेत्र में पहली पीढ़ी के लगभग सभी आईटी विशेषज्ञों को प्रशिक्षित किया गया।
- ताजिकिस्तान में 37 स्कूलों में कंप्यूटर लैब स्थापित करने की एक परियोजना पूरी हुई जिसे अगस्त 2016 में शुरू किया गया था।
- 6 मिलियन अमेरिकी डाॅलर के अनुदान के साथ 2006 में एक सूचना और प्रौद्योगिकी केंद्र (बेदिल केंद्र) शुरू किया गया था।
- मानवीय सहायता:
- जून 2009 में ताजिकिस्तान में बाढ़ से हुए नुकसान में मदद करने के लिये भारत द्वारा 200,000 अमेरिकी डाॅलर की नकद सहायता दी गई थी।
- दक्षिण-पश्चिम ताजिकिस्तान में पोलियो के फैलने के बाद भारत ने नवंबर 2010 में यूनिसेफ के माध्यम से ओरल पोलियो वैक्सीन की 2 मिलियन खुराक प्रदान की।
- विकास सहायता:
- मानव क्षमता निर्माण:
- वर्ष 1994 में दुशांबे में भारतीय दूतावास की स्थापना के बाद से ताजिकिस्तान भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम (Indian Technical & Economic Cooperation Programme- ITEC) का लाभार्थी रहा है।
- वर्ष 2019 में भारत-मध्य एशिया संवाद प्रक्रिया के तहत कुछ ताजिकिस्तानी राजनयिकों को विदेश सेवा संस्थान, दिल्ली में प्रशिक्षण प्रदान किया गया था।
- व्यापार और आर्थिक संबंध:
- भारत द्वारा ताजिकिस्तान को निर्यात में शामिल मुख्य वस्तुओं में फार्मास्यूटिकल्स, चिकित्सा सामग्री, गन्ना या चुकंदर की चीनी, चाय, हस्तशिल्प और मशीनरी शामिल हैं।
- ताजिकिस्तान के बाज़ार में भारतीय फार्मास्यूटिकल् उत्पाद की लगभग 25% की हिस्सेदारी है।
- ताजिकिस्तान द्वारा विभिन्न प्रकार के अयस्क, स्लैग और राख, एल्युमीनियम, कार्बनिक रसायन, हर्बल तेल, सूखे मेवे और कपास भारत को निर्यात किये जाते हैं।
- वर्ष 2018 में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, आपदा प्रबंधन, नवीकरणीय ऊर्जा व कृषि अनुसंधान तथा शिक्षा के शांतिपूर्ण उपयोग के क्षेत्रों में आठ समझौता ज्ञापनों पर दोनों देशों के मध्य हस्ताक्षर किये गए।
- भारत द्वारा ताजिकिस्तान को निर्यात में शामिल मुख्य वस्तुओं में फार्मास्यूटिकल्स, चिकित्सा सामग्री, गन्ना या चुकंदर की चीनी, चाय, हस्तशिल्प और मशीनरी शामिल हैं।
- सांस्कृतिक लगाव और लोगों के मध्य संबंध:
- गहरे मज़बूत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों ने दोनों देशों के मध्य संबंधों को नए स्तर पर विस्तारित करने में मदद की है।
- दोनों देशों के बीच सहयोग में सैन्य और रक्षा संबंधों पर विशेष ध्यान देने के साथ मानव प्रयास के सभी पहलू शामिल हैं।
- दुशांबे में स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा नियुक्त शिक्षकों के माध्यम से कथक और तबला पाठ्यक्रम में शिक्षा प्रदान करता है। केंद्र संस्कृत और हिंदी भाषा की कक्षाएंँ भी आयोजित करता है।
- वर्ष 2020 में 'माई लाइफ माई योगा' वीडियो ब्लॉगिंग प्रतियोगिता में ताजिकिस्तान के लोगों द्वारा उत्साह के साथ योग में भागीदारी की गई।
- गहरे मज़बूत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों ने दोनों देशों के मध्य संबंधों को नए स्तर पर विस्तारित करने में मदद की है।
- सामरिक:
- दुशांबे (Dushanbe) से करीब तीस किलोमीटर दूर अयनी (Ayni) नामक जगह पर भारत का एयरबेस है। इन वर्षों में यह एक भारतीय वायु सेना (IAF) बेस के रूप में विकसित हुआ, जिसे गिस्सार मिलिट्री एरोड्रोम (Gissar Military Aerodrome- GMA) के रूप में जाना जाता है।
आगे की राह
- संघर्ष के समाधान के लिये युद्धरत समूहों को एक सामान्य समझौते पर सहमत होने की आवश्यकता होगी।
- अंतर्राष्ट्रीय समुदायों को बड़े देशों को शामिल करके विवाद को सुलझाने के प्रयास करने की आवश्यकता है क्योंकि ऐतिहासिक रूप से संघर्षों को हल करने के लिये बड़े देशों का उपयोग किया गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. SCO के लक्ष्य और उद्देश्यों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। भारत के लिये इसका क्या महत्त्व है? (मुख्य परीक्षा, 2021) |
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
ब्रेकथ्रू एजेंडा रिपोर्ट 2022
प्रिलिम्स के लिये:IEA, IRENA, जलवायु परिवर्तन, COP26, पेरिस समझौता। मेन्स के लिये:ब्रेकथ्रू एजेंडा रिपोर्ट 2022 और इसकी सिफारिशें। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA), अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी (IRENA) और संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के उच्च-स्तरीय अभिकर्त्ताओं द्वारा द ब्रेकथ्रू एजेंडा रिपोर्ट 2022 जारी की गई, जिसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तेज़ी से कमी लाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह पाँच प्रमुख क्षेत्रों - विद्युत , हाइड्रोजन, सड़क परिवहन, इस्पात और कृषि में उत्सर्जन को कम करने की प्रगति का आकलन करता है।
- यह अपनी तरह की पहली वार्षिक प्रगति रिपोर्ट है, जिसका अनुरोध विश्व नेताओं द्वारा नवंबर 2021 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन COP 26 में ब्रेकथ्रू एजेंडा के शुभारंभ के हिस्से के रूप में किया गया था।
- ब्रेकथ्रू एजेंडा वर्तमान में वैश्विक अर्थव्यवस्था के दो-तिहाई से अधिक को कवर करता है, जिसे G7, चीन और भारत सहित 45 विश्व के देशों का समर्थन प्राप्त है।
- परिणाम:
- हाल के वर्षों में व्यावहारिक तौर पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में वृद्धि के साथ ही आवश्यक प्रौद्योगिकियों को तैनात करने में प्रगति हुई है, जिसमें वर्ष 2022 में वैश्विक नवीकरणीय क्षमता में 8% की वृद्धि का पूर्वानुमान शामिल है जो पहली बार 300GW के साथ लगभग 225 मिलियन घरों को विद्युत उपलब्ध कराने के बराबर है।
- रिपोर्ट में विश्लेषण किये गए पाँच क्षेत्रों में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन का लगभग 60% हिस्सा है, और वर्ष 2030 तक आवश्यक उत्सर्जन में कमी कर सकता है, जो ग्लोबल वार्मिंग को अधिकतम 1.5 डिग्री सेल्सियस, पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप तक सीमित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देगा।
- विश्व सही मायने में पहले से ही वैश्विक ऊर्जा संकट के दौर में है, विश्व अर्थव्यवस्था में विशेष रूप से विकासशील देशों को इस संकट के अधिक घातक प्रभाव का सामना करना पड़ सकता है।
- तेल, गैस और बिजली से जुड़े बाज़ारों में ऊर्जा संकट उभर कर सामने आया है तथा महामारी, तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव व रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण यह संकट और बढ़ गया है।
- ऊर्जा और जलवायु संकट ने 20वीं शताब्दी की उस प्रणाली की कमज़ोरियों एवं सुभेद्यताओं को उजागर किया है जो ईंधन पर बहुत अधिक निर्भर है।
- सिफारिशें:
- समाधानों की सीमा का विस्तार करने और परिवर्तनीय नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिये लचीली कम कार्बन वाली विद्युत प्रणालियों का प्रदर्शन और परीक्षण करना।
- कम कार्बन युक्त ऊर्जा में व्यापार बढ़ाने, उत्सर्जन को कम करने, ऊर्जा सुरक्षा में सुधार और तंत्र में लचीलापन बढ़ाने के लिये इस दशक में नए क्रॉस-बॉर्डर सुपरग्रिड का निर्माण करना।
- कोयला उत्पादक देशों के स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन के रूपांतरण में मदद करने के लिये वित्त और तकनीकी सहायता के चैनल के लिये विशेषज्ञता के नए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र स्थापित करना।
- एक सामान्य परिभाषा और लक्ष्य तिथियों पर सहमत होना जिसके द्वारा सभी नए वाहनों के शुद्ध शून्य उत्सर्जक होंने के लक्ष्य को वर्ष 2035 तथा भारी वाहनों के लिये वर्ष 2040 के दशक को लक्षित करना।
- विकासशील देशों के लिये प्राथमिक सहायता सहित चार्जिंग बुनियादी ढाँचे के लिये निवेश जुटाना और निवेश को बढ़ावा देने तथा वैश्विक स्तर पर अपनाने में तेज़ी लाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय चार्जिंग मानकों में सामंजस्य स्थापित करना।
- कोबाल्ट और लिथियम जैसी कीमती धातुओं पर निर्भरता को कम करने के लिये बैटरी निर्माण हेतु रसायन विज्ञान में वैकल्पिक बैटरी और सुपरचार्जिंग अनुसंधान को बढ़ावा देना चाहिये।
- वैश्विक व्यापार को सक्षम बनाने के लिये मानकों के साथ-साथ कम कार्बन और नवीकरणीय हाइड्रोजन की मांग तथा तैनाती हेतु सरकारी नीतियाँ एवं निजी क्षेत्र की खरीद प्रतिबद्धताएँ तय हों।
- कृषि प्रौद्योगिकियों और कृषि पद्धतियों में निवेश जो कि पशुधन एवं उर्वरकों से उत्सर्जन में कटौती कर सकते हैं, वैकल्पिक प्रोटीन की उपलब्धता का विस्तार कर सकते हैं और जलवायु अनुकूल फसलों के विकास में तेज़ीजी ला सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) पार्टियों के सम्मेलन (COP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत ने क्या प्रतिबद्धताएँ तय की हैं? (2021) प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग पर चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने हेतु नियंत्रण उपायों की व्याख्या कीजिये। (2022) |