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डेली न्यूज़

  • 23 May, 2022
  • 44 min read
कृषि

विश्व मधुमक्खी दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व मधुमक्खी दिवस, मधुमक्खी पालक, जलवायु परिवर्तन, मधुमक्खी, FAO

मेन्स के लिये:

किसानों की आय दोगुनी करना, मीठी क्रांति, मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देना

चर्चा में क्यों? 

विश्व मधुमक्खी दिवस प्रतिवर्ष 20 मई को मनाया जाता है। 

विश्व मधुमक्खी दिवस: 

  • परिचय: 
    • यह दिन आधुनिक मधुमक्खी पालन के अग्रणी एंटोन जनसा की जयंती का प्रतीक है।
    • एंटोन जनसा स्लोवेनिया में मधुमक्खी पालकों के एक परिवार से हैं, जहांँ मधुमक्खी पालन एक महत्त्वपूर्ण कृषि गतिविधि है, जिसकी एक लंबे समय से चली आ रही परंपरा है।  
      • एंटोन ने यूरोप के पहले मधुमक्खी पालन स्कूल में दाखिला लिया और मधुमक्खी पालक के रूप में पूर्णकालिक काम किया।
        • उनकी पुस्तक 'डिस्कशन ऑन बी-कीपिंग' भी जर्मन में प्रकाशित हुई थी।
  • 2022 के लिये थीम: 
    • “बी एंगेज्ड: मधुमक्खियों और मधुमक्खी पालन प्रणालियों की विविधता का जश्न मनाना" (Bee Engaged: Celebrating the diversity of bees and beekeeping systems)।

मधुमक्खी पालन का महत्त्व: 

  • महत्त्वपूर्ण परागणकर्त्ता:
    • मधुमक्खियांँ सबसे महत्त्वपूर्ण परागणकों में से हैं, जो खाद्य और खाद्य सुरक्षा, टिकाऊ कृषि और जैव विविधता सुनिश्चित करती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन के शमन में योगदान:
    • मधुमक्खियांँ जलवायु परिवर्तन को कम करने और पर्यावरण के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।
    • दीर्घावधि में मधुमक्खियों का संरक्षण और मधुमक्खी पालन क्षेत्र गरीबी एवं भूख को कम करने में मदद कर सकता है, साथ ही एक स्वस्थ पर्यावरण व जैव विविधता सुनिश्चित करने में सहायक हो सकता है।
  • सतत् कृषि और ग्रामीण रोज़गार सृजित करना:
    • सतत् कृषि और ग्रामीण रोज़गार सृजित करने की दृष्टि से भी मधुमक्खी पालन महत्त्वपूर्ण है।
    • परागण द्वारा वे कृषि उत्पादन में वृद्धि करते हैं, इस प्रकार खेतों में विविधता एवं बहुरूपता बनाए रखते हैं।
    • इसके अलावा वे लाखों लोगों को रोज़गार प्रदान करते हैं और किसानों की आय का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
  • किसानों की आय दोगुनी करने के भारत के लक्ष्य को प्राप्त करना:
    • खाद्य और कृषि संगठन के डेटाबेस के अनुसार, वर्ष 2017-18 में भारत शहद उत्पादन (64.9 हज़ार टन) के मामले में दुनिया में आठवें स्थान पर था, जबकि चीन (551 हज़ार टन के उत्पादन के साथ) पहले स्थान पर था।
    • इसके अलावा किसानों की आय को दोगुना करने के वर्ष 2022 के लक्ष्य को प्राप्त करने में मधुमक्खी पालन महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

भारत में मधुमक्खी पालन की स्थिति:

  • विश्व स्तर पर मधुमक्खी पालन बाज़ार का अनुमान है कि 2020-25 की अवधि के दौरान एशिया-प्रशांत द्वारा प्रमुख उत्पादक के रूप में 4.3% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) दर्ज की जाएगी।
  • भारतीय मधुमक्खी पालन बाज़ार वर्ष 2024 तक 33,128 मिलियन रुपए तक पहुंँचने की उम्मीद है, जो लगभग 12 प्रतिशत की CAGR से बढ़ रहा है।  
  • भारत छठा प्रमुख प्राकृतिक शहद निर्यातक देश है। 
    • वर्ष 2019-20 के दौरान 633.82 करोड़ रुपए के प्राकृतिक शहद का रिकॉर्ड निर्यात किया गया जो कि 59,536.75 मीट्रिक टन था। प्रमुख निर्यात गंतव्य संयुक्त राज्य अमेरिका, सऊदी अरब, कनाडा और कतर थे।
    • जैविक मधुमक्खी पालन दिशा-निर्देशों को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में जैविक शहद की मांग का लाभ उठाया जा सकता है।
  • इस क्षेत्र के प्रचार-प्रसार के लिये मधुमक्खी पालन के परिदृश्य और प्रजातियों का व्यावसायिक स्तर पर विस्तार किया जा सकता है।

संबंधित पहल:

  • 'मीठी क्रांति':
    • यह मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी पहल है, जिसे 'मधुमक्खी पालन' '(Beekeeping) के नाम से जाना जाता है।
    • मीठी क्रांति को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा वर्ष 2020 में (कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत) राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन शुरू किया गया।
      • राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन का लक्ष्य 5 बड़े क्षेत्रीय एवं 100 छोटे शहद व अन्य मधुमक्खी उत्पाद परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित करना है।
      • इनमें में से 3 विश्व स्तरीय अत्याधुनिक प्रयोगशालाएंँ स्थापित की गई हैं, जबकि 25 छोटी प्रयोगशालाएंँ स्थापित होने की प्रक्रिया में हैं।
  • प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना:
    • भारत प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के लिये मधुमक्खी पालकों को भी सहायता प्रदान कर रहा है।
    • देश में 1.25 लाख मीट्रिक टन से अधिक शहद का उत्पादन किया जा रहा है, जिसमें से 60 हज़ार मीट्रिक टन से अधिक प्राकृतिक शहद का निर्यात किया जाता है।
  • वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाना: 
    • घरेलू शहद की गुणवत्ता में सुधार लाने एवं वैश्विक बाज़ार को आकर्षित करने के लिये भारत सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी वैज्ञानिक तकनीकों के उपयोग के माध्यम से मधुमक्खी पालकों के क्षमता निर्माण पर सहयोग एवं ध्यान केंद्रित कर रही हैं।

मधुमक्खियों की मुख्य विशेषताएँ:

  • दुनिया में मधुमक्खियों की लगभग 20,000 विभिन्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • मधुमक्खियाँ कॉलोनी में रहती हैं एवं प्रत्येक कॉलोनी में तीन प्रकार की मधुमक्खियाँ होती हैं, रानी मधुमक्खी, श्रमिक मधुमक्खी और नर मधुमक्खी।
    • श्रमिक और रानी दोनों ही मादा मधुमक्खी होती हैं, लेकिन केवल रानी मधुमक्खी ही प्रजनन कर सकती है। 
  • श्रमिक मधुमक्खियाँ कॉलोनी को साफ करती हैं, पराग और फूलों के रस का संग्रहण करती हैं तथा कॉलोनी की अन्य मधुमक्खियों का भरण-पोषण करती हैं एवं संतानों की देखभाल करती हैं। नर मधुमक्खी का एकमात्र कार्य अपने छत्ते की अनुवांशिकता को बढ़ाना है।   
  • भारत, सात मधुमक्खी प्रजातियों में से चार का घर है।
    • इनमें से दो पालतू हैं, एपिस सेराना (ओरिएंटल हनी बी) और एपिस मेलिफेरा (यूरोपियन हनी बी) तथा अन्य दो जंगली, एपिस डोरसाटा (जायंट/रॉक हनी बी) और एपिस फ्लोरिया (ड्वार्फ हनी बी) हैं।

विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs): 

प्रश्न. जीवों के निम्नलिखित प्रकारों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. चमगादड़ 
  2. मधुमक्खी
  3. पक्षी

उपर्युक्त में से कौन-सा/से परागणकारी है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: D

व्याख्या:

  • परागण एक पौधे के नर भाग से पौधे के मादा भाग में पराग का स्थानांतरण है, इस प्रकार यह निषेचन और बीज के उत्पादन को सक्षम बनाता है, यह प्रक्रिया सजीव कारकों या हवा द्वारा संपन्न होती है।
  • परागणकारी प्रजातियों में कीड़े, पक्षी, मधुमक्खियाँ और चमगादड़ शामिल हैं , जबकि अन्य कारकों में पानी, हवा तथा यहाँ तक कि खुद पौधे (एक ही फूल के भीतर स्व-परागण) भी शामिल होते हैं। अत: कथन 1, 2 और 3 सही हैं।
  • परागण अक्सर समान प्रकार की प्रजाति के मध्य ही होता है परंतु जब यह विभिन्न प्रजातियों के बीच होता है तो यह प्रकृति में और पौधों के प्रजनन द्वारा संकर संतानों की उत्पत्ति कर सकता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI)

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI), प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम 2002

मेन्स के लिये:

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) के मुद्दे और उपलब्धियाँ, विभिन्न प्रकार के सांविधिक निकाय

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वित्त मंत्री ने भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) के 13वें वार्षिक दिवस समारोह में भाग लिया।

  • इस अवसर पर वित्त मंत्री ने कोलकाता में क्षेत्रीय कार्यालय का उद्घाटन किया और CCI के लिये एक उन्नत वेबसाइट का शुभारंभ भी किया।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI):

  • परिचय:  
  • संरंचना: 
    • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम के अनुसार, आयोग में एक अध्यक्ष और छह सदस्य होते हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
    • आयोग एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय (Quasi-Judicial Body) है जो सांविधिक प्राधिकरणों को परामर्श देने के साथ-साथ अन्य मामलों को भी संबोधित करता है। इसके अध्यक्ष और अन्य सदस्य पूर्णकालिक होते हैं।
  • सदस्यों की पात्रता: 
    • इसके अध्यक्ष और सदस्य बनने के लिये ऐसा व्यक्ति पात्र होगा जो सत्यनिष्ठा और प्रतिष्ठा के साथ-साथ उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो या उच्च न्यायालय के  न्यायाधीश के पद पर नियुक्त होने की योग्यता रखता हो या जिसके पास अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, अर्थशास्त्र, कारोबार, वाणिज्य, विधि, वित्त, लेखा कार्य, प्रबंधन, उद्योग, लोक कार्य या प्रतिस्पर्द्धा संबंधी विषयों में कम-से-कम पंद्रह वर्ष का विशेष ज्ञान एवं वृत्तिक अनुभव हो और केंद्र सरकार की राय में आयोग के लिये उपयोगी हो।      

प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002:

  • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम वर्ष 2002 में पारित किया गया था और प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) अधिनियम, 2007 द्वारा इसे संशोधित किया गया। यह आधुनिक प्रतिस्पर्द्धा विधानों के दर्शन का अनुसरण करता है।
    • यह अधिनियम प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी करारों और उद्यमों द्वारा अपनी प्रधान स्थिति के दुरुपयोग का प्रतिषेध करता है तथा समुच्चयों [अर्जन, नियंत्रण, 'विलय एवं अधिग्रहण' (M&A)] का विनियमन करता है, क्योंकि इनकी वजह से भारत में प्रतिस्पर्द्धा पर व्यापक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है या इसकी संभावना बनी रहती है।
    • संशोधन अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग और प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (Competition Appellate Tribunal- COMPAT) की स्थापना की गई
    • वर्ष 2017 में सरकार ने प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (COMPAT) को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal- NCLAT) से प्रतिस्थापित कर दिया।   

CCI की भूमिका और कार्य:

  • प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले अभ्यासों को समाप्त करना, प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और उसे जारी रखना, उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना तथा भारतीय बाज़ारों में व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
  • किसी विधान के तहत स्थापित किसी सांविधिक प्राधिकरण से प्राप्त संदर्भ के लिये प्रतिस्पर्द्धा संबंधी विषयों पर परामर्श देना एवं प्रतिस्पर्द्धा की भावना को संपोषित करना, सार्वजनिक जागरूकता पैदा करना एवं प्रतिस्पर्द्धा के विषयों पर प्रशिक्षण प्रदान करना।
  •  उपभोक्ता कल्याण: उपभोक्ताओं के लाभ और कल्याण के लिये बाज़ारों को सक्षम बनाना।
  • अर्थव्यवस्था के तीव्र तथा समावेशी विकास एवं वृद्धि के लिये देश की आर्थिक गतिविधियों हेतु निष्पक्ष और स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करना
  • आर्थिक संसाधनों के कुशलतम उपयोग को कार्यान्वित करने के उद्देश्य से प्रतिस्पर्द्धा नीतियों को लागू करना।
  • प्रतिस्पर्द्धा के पक्ष-समर्थन को प्रभावी रूप से आगे बढ़ाना और सभी हितधारकों के बीच प्रतिस्पर्द्धा के लाभों को लेकर सूचना का प्रसार करना ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्द्धा की संस्कृति का विकास तथा संपोषण किया जा सके। 

CCI की अब तक की उपलब्धियांँ: 

  • आयोग ने 1,200 से अधिक स्पर्द्धारोधी  मामलों का निर्णय किया है, यानी स्पर्द्धारोधी मामलों में केस निपटान दर 89% है।
  • इसने अब तक 900 से अधिक विलय और अधिग्रहण के मामलों की समीक्षा की है, उनमें से अधिकांश को 30 दिनों के रिकॉर्ड औसत समय के भीतर मंजूँरी दी है।
  • आयोग ने संयोजनों/लेन-देनों पर स्वचालित अनुमोदन के लिये 'ग्रीन चैनल' प्रावधान जैसे कई नवाचार भी किये हैं तथा ऐसे 50 से अधिक लेन-देन को मंजूँरी दी है। 

चुनौतियांँ:

  • डिजिटलीकरण से उत्पन्न चुनौतियांँ: चूंँकि प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम (2002) के समय हमारे पास एक मज़बूत डिजिटल अर्थव्यवस्था नहीं थी, अतः CCI को नए डिजिटल युग की तकनीकी बारीकियों को समझना चाहिये।
  • नई बाज़ार परिभाषा की आवश्यकता: भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग को अब बाज़ार की अपनी परिभाषा को आधुनिक बनाने की आवश्यकता है। चूंँकि डिजिटल स्पेस की कोई सीमा नहीं है, अतः प्रासंगिक बाज़ारों को परिभाषित करना विश्व भर के नियामकों के लिये एक कठिन काम रहा है।
  • कार्टेलाइज़ेशन से खतरा: कार्टेलाइज़ेशन से खतरे की संभावना है। चूंँकि महामारी के कारण वस्तुओं की वैश्विक कमी देखी गई है और पूर्वी यूरोप में युद्ध के परिणामस्वरूप आपूर्ति शृंखला पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 
    • इनकी जांँच कर यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि कीमतों में वृद्धि और आपूर्ति पक्ष में उतार-चढ़ाव के पीछे कोई एकाधिकार/द्वैतवादी प्रवृत्ति तो नहीं है।

आगे की राह

  • वेब 3.0, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स, ब्लॉकचेन और अन्य तकनीकी उन्नयनों के साथ ही डेटा सुरक्षा एवं गोपनीयता, प्लेटफॉर्म तटस्थता, डीप डिस्काउंटिंग, किलर एक्विज़िशन आदि जैसे मुद्दों का उद्भव हुआ है जिसके परिणामस्वरूप भारत के लिये एक मज़बूत प्रतिस्पर्द्धा कानून-जो प्रौद्योगिकी की वर्तमान दुनिया में कानूनी आवश्यकताओं को पूरा कर सके, अपरिहार्य हो गया है। इस तरह का कानून डिजिटल बाज़ार के अभिकर्त्ताओंओ को व्यावहारिक स्तर पर सहभागिता में सक्षम बनाएगा।
    • CCI को नए डिजिटल युग की तकनीकी बारीकियों के साथ यह समझने की आवश्यकता है कि उपभोक्ताओं के लाभ के लिये इन बाज़ारों का उचित, प्रभावी और पारदर्शी तरीके से उपयोग किया जा रहा है या नहीं।  
  • FAQS एक स्थायी समर्थन साधन बन सकते हैं जिसका प्रयोग “उपयोग के लिये तैयार आधार (Ready-to-Use Basis)” के रूप में सूचना प्रसारित करने के लिये किया जा सकता है।
    • यह एक सक्रिय और प्रगतिशील नियामक के रूप के रूप में CCI की स्थिति को मज़बूत करेगा तथा इस तरह के मार्गदर्शन से बाज़ार सहभागियों को निवारक उपाय प्रदान करने में मदद मिलेगी।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

जैविक अनुसंधान नियामक अनुमोदन पोर्टल

प्रिलिम्स  के लिये:

सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप, पोर्टल बायोआरआरएपी, जीडीपी।

मेन्स के लिये:

शासन, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप, सकल घरेलू उत्पाद (GDP), रोज़गार, जैविक क्षेत्र में भारत की स्थिति , भारत में स्टार्टअप विकास परिदृश्य।

चर्चा में क्यों? 

"एक राष्ट्र, एक पोर्टल" की भावना को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय मंत्री ने हाल ही में बायोटेक शोधकर्त्ताओं और स्टार्टअप के लिये एक एकल राष्ट्रीय पोर्टल यानी जैविक अनुसंधान नियामक अनुमोदन पोर्टल (BioRRAP) लॉन्च किया।

  • जैव प्रौद्योगिकी भारत में युवाओं के लिये एक अकादमिक और आजीविका के साधन के रूप में तेज़ी से उभरी है।

भारत में स्टार्टअप विकास परिदृश्य: 

  • भारत स्टार्टअप्स के लिये एक ‘हॉटस्पॉट’ है। अकेले वर्ष 2021 में ही भारतीय स्टार्टअप्स ने 23 बिलियन डॉलर से अधिक की राशि जुटाई, ये 1,000 से अधिक सौदों में शामिल हुए और 33 स्टार्टअप कंपनियों का प्रतिष्ठित ‘यूनिकॉर्न क्लब’ में भी प्रवेश हुआ। वर्ष 2022 में अब तक 13 अन्य स्टार्टअप यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हो चुके हैं। 
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद भारत विश्व के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप पारितंत्र के रूप में उभरा है।
      • वर्तमान में भारत में स्टार्टअप्स की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। ‘बैन एंड कंपनी’ द्वारा प्रकाशित ‘इंडिया वेंचर कैपिटल रिपोर्ट 2021’ के अनुसार, संचयी स्टार्टअप की संख्या वर्ष 2012 के बाद से 17% चक्रवृद्धि वार्षिक विकास दर (CAGR) से बढ़ी है और 1,12,000 की संख्या को पार कर गई है।
  • वर्ष 2021 तक भारत का बायोटेक उद्योग का वार्षिक राजस्व लगभग 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है।

जैविक अनुसंधान नियामक अनुमोदन पोर्टल का महत्त्व: 

  • शोधकर्त्ताओं के लिये एक प्रवेश द्वार: यह पोर्टल एक गेटवे के रूप में काम करेगा और शोधकर्त्ता को नियामक मंज़ूरी के लिये अपने आवेदनों के अनुमोदन चरणों को देखने और विशेष शोधकर्त्ता/ संगठन द्वारा किये जा रहे सभी शोध कार्यों के बारे में प्रारंभिक जानकारी प्राप्त करने में भी मदद करेगा।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: यह पोर्टल अंतर-विभागीय तालमेल को मज़बूत करेगा और जैविक अनुसंधान के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करने तथा उनके लिये अनुमति प्रदान करने वाली एजेंसियों के कामकाज में जवाबदेही, पारदर्शिता तथा प्रभावकारिता का समावेश करेगा।
  • BioRRAP ID: ऐसे जैविक शोधों को अधिक विश्वसनीयता और मान्यता प्रदान करने के लिये भारत सरकार ने एक वेब प्रणाली विकसित की है, जिसके तहत प्रत्येक अनुसंधान, जिसमें नियामक निरीक्षण की आवश्यकता होती है, की पहचान BioRRAP ID नामक एक विशिष्ट आईडी द्वारा की जाएगी।
    • इस आईडी का उपयोग करके संबंधित नियामक एजेंसियों को आवेदन जमा करने की प्रक्रिया शुरू करनी होती है। 
  • ईज़ ऑफ डूइंग रिसर्च: DBT (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) का यह अनूठा पोर्टल देश में ईज़ ऑफ डूइंग साइंस एंड साइंटिफिक रिसर्च और ईज़ ऑफ स्टार्टअप्स की दिशा में एक कदम है। 
    • विभिन्न नियामक एजेंसियों के पास अनुमोदन के लिये प्रस्तुत आवेदनों को आपस में लिंक करने की भी आवश्यकता है ताकि आवेदन की स्थिति एक ही स्थान पर देखी जा सके।
  • सूचना एकत्र करने हेतु: यह पोर्टल न केवल वैज्ञानिक क्षमता और विशेषज्ञता को समझने में मदद करेगा, बल्कि वैज्ञानिक अनुसंधान के लाभों को प्राप्त करने के लिये सक्षम नीतियों के निर्माण में भी मदद करेगा।

जैविक अनुसंधान क्षेत्र में भारत की स्थिति: 

  • भारत विश्व स्तर पर जैव प्रौद्योगिकी के लिये शीर्ष 12 गंतव्यों में से एक है और एशिया प्रशांत क्षेत्र में तीसरा सबसे बड़ा जैव प्रौद्योगिकी गंतव्य है।
    • वर्तमान में भारतीय उद्योग में 2,700 से अधिक बायोटेक स्टार्टअप शामिल हैं और 2,500 से अधिक बायोटेक कंपनियाँ मौज़ूद हैं।
  • जैव प्रौद्योगिकी के अलावा जैव विविधता से संबंधित जैविक कार्य, वनस्पति एवं जीवों के संरक्षण और संरक्षण के नवीनतम तरीके, वन एवं वन्यजीव, जैव-सर्वेक्षण तथा जैविक संसाधनों का जैव-उपयोग भी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण भारत में गति प्राप्त कर रहे हैं।
    • भारत में विभिन्न सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के अनुदान के कारण विभिन्न जैविक क्षेत्रों में अनुसंधान का लगातार विस्तार हो रहा है।
  • भारत का लक्ष्य वर्ष 2025 तक ग्लोबल बायो-मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में मान्यता प्राप्त करना है तब यह दुनिया के शीर्ष 5 देशों में शामिल हो जाएगा।
    • वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी बाज़ार में भारतीय जैव प्रौद्योगिकी उद्योग का योगदान वर्ष 2025 तक बढ़कर 19% हो जाने की उम्मीद है, जो वर्ष 2017 में 3% था। 
    • राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में जैव अर्थव्यवस्था का योगदान भी पिछले वर्षों में लगातार बढ़ा है।
      • जबकि जैव-अर्थव्यवस्था ने वर्ष 2017 में सकल घरेलू उत्पाद में 1.7% का योगदान दिया, यह हिस्सा वर्ष 2020 में बढ़कर 2.7% हो गया है।
      • भारतीय जैव-अर्थव्यवस्था वर्ष 2019 के 62.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2020 में 12.3% की वृद्धि दर के साथ 70.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई। 
    • भारत 2047 के शताब्दी वर्ष में 25 साल की जैव-अर्थव्यवस्था की यात्रा के बाद नई ऊंँचाइयों को छुएगा।

जैव अर्थव्यवस्था: 

  • जैव-अर्थव्यवस्था की अवधारणा संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय संघ (EU) तथा ऑस्ट्रेलिया द्वारा जैव-संसाधनों का उपयोग करके अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये शुरू की गई थी।
  • 'जैव-अर्थव्यवस्था' शब्द अक्षय जैविक संसाधनों के उत्पादन और इन संसाधनों एवं अपशिष्ट धाराओं के संरक्षण को मूल्यवर्द्धित उत्पादों, जैसे- भोजन,  जैव-आधारित उत्पादों और जैव-ऊर्जा के रूप में संदर्भित करता है

यूपीएससी विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs): 

प्रश्न. जोखिम पूंजी से क्या तात्पर्य है? (2014)

(a) उद्योगों को उपलब्ध कराई गई अल्पकालीन पूंजी
(b) नए उद्यमियों को उपलब्ध कराई गई दीर्घकालीन प्रारम्भिक पूंजी
(c) उद्योगों को हानि उठाते समय उपलब्ध कराई गई निधियाँ
(d) उद्योगों के प्रतिस्थापन एवं नवीकरण के लिये उपलब्ध कराई गई निधियाँ

उत्तर: B

  • जोखिम पूंजी एक नए या बढ़ते व्यवसाय को निधि प्रदान करती है। आमतौर पर यह जोखिम पूंजी उद्योगों द्वारा प्रदान की जाती है, जो उच्च जोखिम वाले वित्तीय पोर्टफोलियो से संबंधित होती है।
  • जोखिम पूंजी वाले उद्योग किसी भी स्टार्टअप में इक्विटी के बदले स्टार्टअप कंपनी को निधि प्रदान करते हैं।
  • जो निवेशक पूंजी का निवेश करते हैं उन्हें जोखिम पूंजीवादी (VC) कहा जाता है। उद्यम पूंजी निवेश को जोखिम पूंजी या बीमारू जोखिम पूंजी के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इसमें उद्यम के  सफल न होने पर हानि का जोखिम भी शामिल होता है और साथ ही साथ निवेश के प्रतिफल की प्राप्ति में मध्यम से लंबी अवधि का समय भी लग सकता है।

अतः विकल्प B सही है।

 स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय इतिहास

राजा राम मोहन राय

प्रिलिम्स के लिये:

राजा राम मोहन राय द्वारा किये गए समाज सुधार के कार्य

मेन्स के लिये:

राजा राम मोहन राय और उनका योगदान

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में संस्कृति मंत्रालय ने राजा राम मोहन राय की 250वीं जयंती पर उनकी स्मृति में वर्ष भर चलने वाले उत्सव के उद्घाटन समारोह का आयोजन किया।

  • यह उद्घाटन समारोह कोलकाता में ‘राजा राम मोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन’, साल्ट लेक और साइंस सिटी ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया।
  • यह एक वर्षीय उत्सव है जो अगले वर्ष (22 मई, 2023) तक मनाया जाएगा।
  • इस  वर्ष राजा राम मोहन राय की 250वीं जयंती और ‘राजा राम मोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन’ का 50वाँ स्थापना दिवस भी है।
  • संस्कृति मंत्रालय ने राजा राम मोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन में राजा राम मोहन राय की एक प्रतिष्ठित प्रतिमा का भी अनावरण किया है।

Rajaram-Mohan-ray

राजा राम मोहन राय:

  • परिचय: 
    • राजा राम मोहन राय आधुनिक भारत के पुनर्जागरण के जनक और एक अथक समाज सुधारक थे जिन्होंने भारत में ज्ञानोदय एवं उदार सुधारवादी आधुनिकीकरण के युग की शुरुआत की।
  • जीवन: 
    •  राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल के राधानगर में एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
    • राजा राम मोहन राय की प्रारंभिक शिक्षा फारसी और अरबी भाषाओं में पटना में हुई, जहाँ उन्होंने कुरान, सूफी रहस्यवादी कवियों की रचनाओं  तथा प्लेटो एवं अरस्तू की पुस्तकों के अरबी संस्करण का अध्ययन किया।
    • बनारस में उन्होंने संस्कृत भाषा, वेद और उपनिषद का भी अध्ययन किया।
    • वर्ष 1803 से 1814 तक उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिये वुडफोर्ड और डिग्बी के अंतर्गत निजी दीवान के रूप में काम किया।
    • वर्ष 1814 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने जीवन को धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सुधारों के प्रति समर्पित करने के लिये कलकत्ता चले गए।
    • नवंबर 1830 में वे सती प्रथा संबंधी अधिनियम पर प्रतिबंध लगाने से उत्पन्न संभावित अशांति का प्रतिकार करने के उद्देश्य से इंग्लैंड चले गए।
    • राम मोहन राय दिल्ली के मुगल सम्राट अकबर II की पेंशन से संबंधित शिकायतों हेतु इंग्लैंड गए तभी अकबर II द्वारा उन्हें ‘राजा’ की उपाधि दी गई।
    • अपने संबोधन में 'टैगोर ने राम मोहन राय को' भारत में आधुनिक युग के उद्घाटनकर्त्ता के रूप में भारतीय इतिहास का एक चमकदार सितारा कहा।
  • विचारधारा: 
    • राम मोहन राय पश्चिमी आधुनिक विचारों से बहुत प्रभावित थे और बुद्धिवाद तथा आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर बल देते थे।
    • राम मोहन राय की तात्कालिक समस्या उनके मूल निवास बंगाल के धार्मिक और सामाजिक पतन की थी।
    • उनका मानना ​​था कि धार्मिक रूढ़िवादिता सामाजिक जीवन को क्षति पहुँचाती है और समाज की स्थिति में सुधार करने के बजाय लोगों को और परेशान करती है।
      • राजा राम मोहन राय का मानना था कि सामाजिक और राजनीतिक आधुनिकीकरण धार्मिक सुधार की परिधि में ही शामिल हैं।
      • राम मोहन राय का मानना ​​था कि प्रत्येक पापी को अपने पापों के लिये प्रायश्चित करना चाहिये और यह प्रायश्चित आत्म-शुद्धि तथा पश्चाताप के माध्यम से किया जाना चाहिये, न कि आडंबर व अनुष्ठानों के माध्यम से।
    • वह सभी मनुष्यों की सामाजिक समानता में विश्वास करते थे और इस तरह से जाति व्यवस्था के प्रबल विरोधी थे।
    • राम मोहन राय इस्लामिक एकेश्वरवाद के प्रति आकर्षित थे। उन्होंने कहा कि एकेश्वरवाद भी वेदांत का मूल संदेश है।
      • एकेश्वरवाद को वे हिंदू धर्म के बहुदेववाद और ईसाई धर्मवाद के प्रति एक सुधारात्मक कदम मानते थे। उनका मानना ​​था कि एकेश्वरवाद ने मानवता के लिये एक सार्वभौमिक मॉडल का समर्थन किया है।
    • राजा राम मोहन राय का मानना ​​था कि जब तक महिलाओं को अशिक्षा, बाल विवाह, सती प्रथा जैसे अमानवीय रूपों से मुक्त नहीं किया जाता, तब तक हिंदू समाज प्रगति नहीं कर सकता।
      • उन्होंने सती प्रथा को हर मानवीय और सामाजिक भावना के उल्लंघन के रूप में तथा एक जाति के नैतिक पतन के लक्षण के रूप में चित्रित किया।

योगदान:

धार्मिक सुधार:

राजा राम मोहन राय का पहला प्रकाशन तुहफ़ात-उल-मुवाहिदीन (देवताओं को एक उपहार) वर्ष 1803 में सामने आया था जिसमें हिंदुओं के तर्कहीन धार्मिक विश्वासों और भ्रष्ट प्रथाओं को उजागर किया गया था।

वर्ष 1814 में उन्होंने मूर्ति पूजा, जातिगत कठोरता, निरर्थक अनुष्ठानों और अन्य सामाजिक बुराइयों का विरोध करने के लिये कलकत्ता में आत्मीय सभा की स्थापना की।

  • उन्होंने ईसाई धर्म के कर्मकांड की आलोचना की और ईसा मसीह को ईश्वर के अवतार के रूप में खारिज कर दिया। प्रिसेप्टस ऑफ जीसस (1820) में उन्होंने न्यू टेस्टामेंट के नैतिक और दार्शनिक संदेश को अलग करने की कोशिश की जो कि चमत्कारिक कहानियों के माध्यम से दिये गए थे।

समाज सुधार:

  • राजा राम मोहन राय ने सुधारवादी धार्मिक संघों की कल्पना सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के उपकरणों के रूप में की।
  • उन्होंने वर्ष 1815 में आत्मीय सभा, वर्ष 1821 में कलकत्ता यूनिटेरियन एसोसिएशन और वर्ष 1828 में ब्रह्म सभा (जो बाद में ब्रह्म समाज बन गया) की स्थापना की।
  • उन्होंने जाति व्यवस्था, छुआछूत, अंधविश्वास और नशीली दवाओं के इस्तेमाल के विरुद्ध अभियान चलाया।
  • वह महिलाओं की स्वतंत्रता और विशेष रूप से सती एवं विधवा पुनर्विवाह के उन्मूलन पर अपने अग्रणी विचार तथा  कार्रवाई के लिये जाने जाते थे।
  • उन्होंने बाल विवाह, महिलाओं की अशिक्षा और विधवाओं की अपमानजनक स्थिति का विरोध किया तथा महिलाओं के लिये विरासत व संपत्ति के अधिकार की मांग की।

शैक्षिक सुधार:

  • राम मोहन राय ने देशवासियों के मध्य आधुनिक शिक्षा का प्रसार करने के लिये बहुत प्रयास किये। उन्होंने वर्ष 1817 में हिंदू कॉलेज खोजने के लिये डेविड हेयर के प्रयासों का समर्थन किया, जबकि राय के अंग्रेज़ी स्कूल में मैकेनिक्स और वोल्टेयर के दर्शन को पढ़ाया जाता था।
  • वर्ष 1825 में उन्होंने वेदांत कॉलेज की स्थापना की जहाँ भारतीय शिक्षण और पश्चिमी सामाजिक एवं भौतिक विज्ञान दोनों पाठ्यक्रमों को पढ़ाया जाता था।

आर्थिक और राजनीतिक सुधार:

  • नागरिक स्वतंत्रता: राम मोहन राय ब्रिटिश प्रणाली की संवैधानिक सरकार द्वारा लोगों को दी गई नागरिक स्वतंत्रता से अत्यंत प्रभावित थे और उसकी प्रशंसा करते थे। वह सरकार की उस प्रणाली का लाभ भारतीय लोगों तक पहुँचाना चाहते थे।

प्रेस की स्वतंत्रता: 

  • लेखन और अन्य गतिविधियों के माध्यम से उन्होंने भारत में स्वतंत्र प्रेस के लिये आंदोलन का समर्थन किया।
  • जब वर्ष 1819 में लॉर्ड हेस्टिंग्स द्वारा प्रेस सेंसरशिप में ढील दी गई तो राम मोहन राय ने तीन पत्रिकाओं- ब्राह्मणवादी पत्रिका (वर्ष 1821); बंगाली साप्ताहिक- संवाद कौमुदी (वर्ष 1821) और फारसी साप्ताहिक- मिरात-उल-अकबर का प्रकाशन किया।
  • कराधान सुधार: राम मोहन राय ने बंगाली ज़मींदारों की दमनकारी प्रथाओं की निंदा की और न्यूनतम लगान तय करने की मांग की। उन्होंने कर-मुक्त भूमि व करों के उन्मूलन की भी मांग की।
    • उन्होंने विदेशों में भारतीय सामानों पर निर्यात शुल्क में कमी और ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक अधिकारों को समाप्त करने का आह्वान किया।
  • प्रशासनिक सुधार: उन्होंने बेहतर सेवाओं के भारतीयकरण और न्यायपालिका से कार्यपालिका को अलग करने की मांग की। उन्होंने भारतीयों एवं यूरोपीय लोगों के बीच समानता की मांग की।

प्रश्न. डेविड हरे और अलेक्जेंडर डफ के सहयोग से निम्नलिखित में से किसने कलकत्ता में हिंदू कॉलेज की स्थापना की? (2009)

(A) हेनरी लुई विवियन डेरोजियो
(B) ईश्वर चंद्र विद्यासागर
(C) केशब चंद्र सेन
(D) राजा राम मोहन राय

उत्तर: D

  • हिंदू कॉलेज आधुनिक अर्थों में एशिया में उच्च शिक्षा का सबसे पहला संस्थान था जिसे 20 जनवरी, 1817 को स्थापित किया गया था और 1855 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में बदल दिया गया था। इसे 2010 में प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय के रूप में एक स्वतंत्र विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया था। .
  • कॉलेज की स्थापना राजा राम मोहन राय, राधाकांत देब, डेविड हरे, जस्टिस सर एडवर्ड हाइड ईस्ट, बैद्यनाथ मुखोपाध्याय और रसमय दत्त ने की थी।
  • हिंदू कॉलेज के जूनियर सेक्शन का नाम बदलकर हिंदू स्कूल कर दिया गया और महापाठशाला विंग का नाम बदलकर 1855 में प्रेसीडेंसी कॉलेज कर दिया गया।
  • 1944 में लड़कियों को कॉलेज में शामिल होने की अनुमति दी गई और तब से कॉलेज एक सह-शिक्षा संस्थान में बदल गया।

अतः विकल्प (D) सही उत्तर है।


प्रश्न. ब्रह्म समाज के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (2012)

  1. इसने मूर्ति पूजा का विरोध किया।
  2. इसने धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या के लिये पुरोहित वर्ग की आवश्यकता से इनकार किया।
  3. इसने इस सिद्धांत को लोकप्रिय बनाया कि वेद अचूक हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(A) केवल 1
(B) केवल 1 और 2
(C) केवल 3
(D) 1, 2 और 3

उत्तर: B

  • राजा राम मोहन राय ने अगस्त 1828 में ब्रह्म सभा की स्थापना की, जिसे बाद में 'ब्रह्म समाज' (ईश्वर का समाज) नाम दिया गया। ब्रह्म समाज का उद्देश्य शाश्वत, अप्राप्य, अपरिवर्तनीय ईश्वर की पूजा और आराधना थी।
  • इसने मूर्ति पूजा का विरोध किया और पुरोहित एवं बलि की प्रथा से दूर रहा। अत: कथन 1 और 2 सही हैं।
  • पूजा के लिये लोगों द्वारा प्रार्थना, ध्यान तथा उपनिषदों में दिये गए श्लोकों का प्रयोग किया जाता था।
  • "दान, नैतिकता, परोपकार को बढ़ावा देने और सभी धार्मिक विश्वासों व पंथों के पुरुषों के बीच एकता के बंधन को मज़बूत करने" पर विशेष ध्यान दिया गया था।
  • दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित आर्य समाज ने वेदों के अचूक अधिकार में विश्वास के आधार पर मूल्यों और प्रथाओं को बढ़ावा दिया। आर्य समाज के सदस्य एक ईश्वर में विश्वास करते हैं और मूर्तियों की पूजा को अस्वीकार करते हैं। ब्रह्म समाज वेदों की अचूकता में विश्वास नहीं करता था। अत: कथन 3 सही नहीं है

स्रोत: पी.आई.बी.


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