विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक
प्रीलिम्स के लियेविश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक मेन्स के लियेलोकतंत्र में मीडिया की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी 180 देशों के ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक’ (World Press Freedom Index) 2020 में भारत 142वें स्थान पर पहुँच गया है, जबकि बीते वर्ष भारत इस सूचकांक में 140वें स्थान पर था।
प्रमुख बिंदु
- रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (Reporters Without Borders) नामक गैर-सरकारी संगठन द्वारा जारी किये जाने वाला यह सूचकांक विश्व के कुल 180 देशों और क्षेत्रों में मीडिया और प्रेस की स्वतंत्रता को दर्शाता है।
- ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2020’ में पहले स्थान पर नॉर्वे (Norway) है, जो कि वर्ष 2019 में भी पहले स्थान पर था। इसके अतिरिक्त दूसरा स्थान फिनलैंड (Finland) को और तीसरा स्थान डेनमार्क (Denmark) को प्राप्त हुआ है।
- इस सूचकांक में 180वें स्थान पर उत्तर कोरिया (North Korea) है, जो कि बीते वर्ष 179वें स्थान पर था।
- भारत के पड़ोसी देशों में भूटान (Bhutan) को 67वाँ स्थान, म्याँमार (Myanmar) को 139वाँ स्थान, पाकिस्तान (Pakistan) को 145वाँ स्थान, नेपाल (Nepal) को 112वाँ स्थान, अफगानिस्तान (Afghanistan) को 122वाँ स्थान, बांग्लादेश (Bangladesh) को 151 वाँ स्थान और चीन (China) को 177वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक
- विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक प्रत्येक वर्ष रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) द्वारा जारी किया जाता है। RSF द्वारा जारी ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक’ का प्रथम संस्करण वर्ष 2002 में प्रकाशित किया गया था।
- इस सूचकांक में पत्रकारों के लिये उपलब्ध स्वतंत्रता के स्तर के आधार पर 180 देशों की रैंकिंग की जाती है।
- यह सूचकांक बहुलतावाद के मूल्यांकन, मीडिया की स्वतंत्रता, विधायी ढाँचे की गुणवत्ता और प्रत्येक देश तथा क्षेत्र में पत्रकारों की सुरक्षा पर आधारित मीडिया स्वतंत्रता की स्थिति का एक सरल विवरण प्रस्तुत करता है।
भारतीय परिदृश्य
- RSF द्वारा एकत्रित आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में किसी भी पत्रकार की मृत्यु नहीं हुई, जबकि वर्ष 2018 में देश में कुल 6 पत्रकारों की मृत्यु हुई है।
- हालाँकि इसके बावजूद देश में अभी भी लगातार मीडिया की स्वतंत्रता का उल्लंघन हो रहा है, जिसमें पत्रकारों के विरुद्ध पुलिस हिंसा और आपराधिक समूहों या भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों द्वारा उकसाए गए विद्रोह शामिल हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जो लोग एक विशेष विचारधारा का समर्थन करते हैं वे अब राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे सभी विचारों को दबाने की कोशिश कर रहे हैं, जो उनके विचार से मेल नहीं खाती हैं। इसके अतिरिक्त देश में उन सभी पत्रकारों के विरुद्ध एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जा रहा है, जो सरकार और राष्ट्र के बीच के अंतर को समझते हुए अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह कर रहे हैं।
- महिला पत्रकार की स्थिति में इस प्रकार के अभियान और अधिक गंभीर हो जाते हैं।
- रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि भारत में आपराधिक धाराओं को उन लोगों खासकर पत्रकारों के विरुद्ध प्रयोग किया जा रहा है, जो अधिकारियों की आचोलना कर रहे हैं। उदाहरण के लिये बीते दिनों देश में पत्रकारों पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A (राजद्रोह) के प्रयोग के कई मामले सामने आए हैं।
मीडिया की स्वतंत्रता: क्यों आवश्यक?
- प्रेस या मीडिया, सरकार और आम नागरिकों के मध्य संचार के माध्यम के रूप में कार्य करता है। मीडिया नागरिकों को सार्वजनिक विषयों के संदर्भ में सूचित करता और सभी स्तरों पर सरकार के कार्यों की निगरानी करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
- ध्यातव्य है कि किसी भी लोकतंत्र में सूचना की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार होता है, किंतु आँकड़े दर्शाते हैं कि दुनिया की लगभग आधी आबादी की स्वतंत्र रूप से रिपोर्ट की गई सूचना और समाचार तक कोई पहुँच नहीं है।
- कई बार ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं कि हम पत्रकारों की स्वतंत्रता सुनिश्चित नहीं की जाएगी तो नागरिकों पर हो रहे अत्याचारों से लड़ना, नागरिकों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा करना और पर्यावरण जैसे विभिन्न मुद्दों को संबोधित करना किस प्रकार संभव हो सकेगा।
- रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) के अनुसार, वर्ष 2020 में वैश्विक स्तर पर अब तक कुल 10 पत्रकारों की हत्या कर दी गई है और 228 पत्रकारों को कैद कर लिया गया है। वहीं इस वर्ष अब तक 116 नागरिक पत्रकारों को भी कैद कर लिया गया है।
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स
- रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी, गैर-लाभकारी संगठन है, जो सार्वजनिक हित में संयुक्त राष्ट्र, यूनेस्को, यूरोपीय परिषद, फ्रैंकोफोनी के अंतर्राष्ट्रीय संगठन और मानव अधिकारों पर अफ्रीकी आयोग के साथ सलाहकार की भूमिका निभाता है।
- रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स को रिपोर्टर्स संस फ्रंटियर (Reporters Sans Frontières-RSF) के नाम से भी जाना जाता है।
- इसका मुख्यालय पेरिस में है।
स्रोत: द हिंदू
COVID-19 के कारण भारत में प्रेषित धन/रेमिटेंस में भारी गिरावट
प्रीलिम्स के लिये:रेमिटेंस, विश्व बैंक मेन्स के लिये:वैश्विक अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक (World Bank) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 की महामारी के कारण वर्ष 2020 में वैश्विक स्तर पर प्रवसियों द्वारा भेजे जाने वाले धन/रेमिटेंस (Remittances) में भारी गिरावट देखी जा सकती है।
मुख्य बिंदु:
- विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में भारतीय प्रवासियों द्वारा भेजे जाने वाला रेमिटेंस 23% की गिरावट के साथ 64 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है।
- गौरतलब है कि वर्ष 2019 में भारत को रेमिटेंस के रूप में प्राप्त होने वाले धन में 5.5% की वृद्धि के साथ कुल 83 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त हुए थे।
- इसके साथ ही विश्व के अन्य प्रमुख हिस्सों में जैसे- यूरोप और मध्य एशिया (27.5%), उप-सहारा अफ्रीका (23.1%), दक्षिण एशिया (22.1%), मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका (19.6%), लैटिन अमेरिका तथा कैरेबियन (19.3%), पूर्वी एशिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र (13%) में रेमिटेंस में भारी गिरावट देखने को मिल सकती है।
- विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में पाकिस्तान का रेमिटेंस 23% की गिरावट के साथ 17 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है, जबकि पिछले वर्ष पाकिस्तान को 6.2% की वृद्धि के साथ रेमिटेंस के रूप में 22.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त हुए थे।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में बंग्लादेश के रेमिटेंस में 22%, नेपाल के रेमिटेंस में 14% और श्रीलंका के रेमिटेंस में 19% तक की गिरावट हो सकती है।
प्रेषित धन या रेमिटेंस (Remittance):
- रेमिटेंस से आशय प्रवासी कामगारों द्वारा धन अथवा वस्तु के रूप में अपने मूल समुदाय/परिवार को भेजी जाने वाली आय से है।
- पिछले कुछ वर्षों में वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप रेमिटेंस का महत्त्व बढ़ा है, वर्तमान में विश्व के कई विकासशील देशों में रेमिटेंस विदेशों से होने वाली आय का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है।
- आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में ‘निम्न और मध्य आय वाले देशों’ (Low and Middle-Income Countries- LMICs) को रेमिटेंस के रूप में लगभग 554 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त हुए।
देशों के विकास में रेमिटेंस का योगदान:
- कई अध्ययनों में देखा गया है कि रेमिटेंस ‘निम्न और मध्य आय वाले देशों’ में गरीबी दूर करने, पोषण में वृद्धि, स्वास्थ्य और मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक रहे हैं।
- साथ ही यह भी देखा गया है कि रेमिटेंस पाने वाले घरों में बाल मज़दूरी के मामलों में कमी आई है तथा शिक्षा पर होने वाले खर्च में वृद्धि हुई है।
- अन्य किसी पूंजी की तुलना में रेमिटेंस का प्रवाह स्थिर होता है और प्रायः किसी आपदा के बाद जब निजी क्षेत्र के निवेश में गिरावट आती है ऐसे समय में रेमिटेंस की मात्रा में वृद्धि देखी गई है।
- राजनीतिक संघर्ष और आतंरिक अस्थिरता से जूझ रहे देशों में रेमिटेंस अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2011 में हैती (Haiti) की जीडीपी में रेमिटेंस का योगदान 12% रहा था और वर्ष 2006 में सोमालिया के कुछ क्षेत्रों की जीडीपी में रेमिटेंस का योगदान 70% तक रहा था।
माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट ब्रीफ
(Migration and Development Brief):
- माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट ब्रीफ, प्रवासी कामगारों के संदर्भ में विश्व बैंक द्वारा तैयार की जाने वाली एक महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट है।
- इसे विश्व बैंक की प्रमुख अनुसंधान शाखा ‘डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स’ (Development Economics- DEC) की माइग्रेशन एंड रेमिटेंस यूनिट (Migration and Remittances Unit) द्वारा तैयार किया जाता है।
- इस रिपोर्ट को हर वर्ष दो बार जारी किया जाता है।
- यह रिपोर्ट पिछले 6 माह में माइग्रेशन और रेमिटेंस के प्रवाह तथा इससे जुड़ी नीतियों के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करने का प्रयास करती है।
रेमिटेंस में गिरावट के कारण:
- वर्तमान में COVID-19 की महामारी के कारण विश्वभर में औद्योगिक इकाइयों को भारी क्षति हुई है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भी कमी आयी है, जिसके कारण प्रवासी कामगारों की आय में कमी के साथ काम के अवसरों में भी कटौती हुई है ।
- भारत के साथ ही दक्षिण एशिया के कई अन्य देशों के लिये मध्य पूर्व के देश रोज़गार और रेमिटेंस का एक बड़ा स्रोत हैं, परंतु हाल ही में वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की घटती कीमतों से इन देशों की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिले हैं।
- यूरोप के कई देश प्रवासी कामगारों की एक बड़ी आबादी को रोज़गार के अवसर प्रदान करते हैं परंतु यूरोप के कुछ प्रमुख देश COVID-19 महामारी से सबसे गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। साथ ही COVID-19 के संक्रमण को रोकने हेतु लागू लॉकडाउन का प्रभाव यूरोप की मुद्रा पर भी पड़ा है।
- प्रवासी कामगारों में पेशेवर प्रशिक्षित लोगों के अतिरिक्त एक बड़ी आबादी सेवा क्षेत्र (परिवहन, होटल आदि) में काम करने वाले लोगों और अकुशल मज़दूरों की है, COVID-19 के कारण वैश्विक स्तर पर बंदी के कारण कामगारों का यह वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुआ है।
रेमिटेंस में गिरावट के नुकसान:
- वर्ष 2018 में भारत विश्व में सबसे अधिक रेमिटेंस प्राप्त करने वाला देश था, आँकड़ों के हिसाब से इस दौरान लगभग 170 लाख प्रवासी भारतीयों ने विश्व के कई देशों में कार्य करते हुए रेमिटेंस के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था में योगदान दिया था।
- ऐसे में वैश्विक स्तर पर रेमिटेंस में गिरावट का प्रत्यक्ष प्रभाव प्रवासी भारतीयों पर आश्रित उनके परिवारों पर पड़ेगा।
- वर्तमान में जब देश में लॉकडाउन के कारण आर्थिक क्षेत्र में तरलता की कमी हुई है ऐसे में रेमिटेंस में गिरावट से इस समस्या में अधिक वृद्धि हो सकती है।
- भारत में रेमिटेंस के रूप में प्राप्त होने वाले धन का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों से अन्य देशों (मुख्यतः अरब देशों) में गए कामगारों द्वारा भेजा जाता है, ऐसे में लंबे समय तक रेमिटेंस में कमी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है।
अन्य चुनौतियाँ:
- विशेषज्ञों के अनुसार, वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट के साथ ही देशों में संरक्षणवादी विचारधारा को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे आने वाले दिनों में प्रवासी कामगारों के लिये रोज़गार के अवसरों में गिरावट देखी जा सकती है।
- उदाहरण के लिये हाल ही में अमेरिका (USA) के राष्ट्रपति ने नए प्रवासी कामगारों के लिये कुछ प्रतिबंधों की घोषणा की है।
- अन्य देशों से रेमिटेंस भेजने पर लगने वाला खर्च प्रवासी कामगारों के लिये एक बड़ी समस्या है, वर्तमान में वैश्विक स्तर पर 200 अमेरिकी डॉलर भेजने की औसत लागत 6.8% है, जबकि उप-सहारा अफ्रीका में यह लागत औसतन 9% है।
- दक्षिण एशिया में रेमिटेंस भेजने की लागत औसतन 4.8% है, साथ ही कई क्षेत्रों में यह 3% के सतत् विकास लक्ष्य (Sustainable Development goals-SDGs) से भी कम है परंतु कुछ क्षेत्रों में प्रतिस्पर्द्धा और बेहतर विनियमन के अभाव में इसकी लागत 10% तक पहुँच जाती है।
आगे की राह:
- विशेषज्ञों के अनुसार, वर्तमान वैश्विक आपदा के समय विकासशील और विकसित देशों में गरीब और सुभेद्य लोगों के हितों की रक्षा के लिये प्रभावी सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, अतः सभी देशों द्वारा संकट के इस समय में स्थानीय नागरिकों की तरह ही प्रवासी कामगारों को भी आवश्यक सहायता उपलब्ध करानी चाहिये।
- रेमिटेंस भेजने के तरीकों को आसान बनाने तथा इसकी लागत को कम कर प्रवासी कामगारों और उनके परिवारों को महत्त्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया जा सकता है।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
आरक्षण का लाभ वास्तविक लाभार्थियों को नहीं
प्रीलिम्स के लिये:संवैधानिक पीठ, आरक्षण संबंधी प्रमुख निर्णय मेन्स के लिये:आरक्षण व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्रप्रदेश राज्यपाल के उस आदेश को असंवैधानिक घोषित किया जिसमें ‘अनुसूचित क्षेत्रों’ में स्कूल शिक्षकों के पदों पर ‘अनुसूचित जनजाति’ (Scheduled Tribes- STs) के उम्मीदवारों को 100% आरक्षण प्रदान करने का प्रावधान किया गया था।
मुख्य बिंदु:
- पाँच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ का गठन आंध्र प्रदेश राज्य के तत्कालीन राज्यपाल द्वारा जनवरी 2000 में जारी की गई अधिसूचना को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई करने के लिये किया गया था।
- हालाँकि परिस्थितियों को देखते हुए संवैधानिक पीठ ने आंध्र प्रदेश के इस नियुक्ति आदेश को रद्द नहीं किया है लेकिन भविष्य में इस तरह के प्रावधान नहीं करने को कहा है।
संवैधानिक पीठ:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के अनुसार, संविधान की व्याख्या के रूप में यदि विधि का कोई सारवान प्रश्न निहित हो तो उसका विनिश्चय करने अथवा अनुच्छेद 143 के अधीन मामलों की सुनवाई के प्रयोजन के लिये संवैधानिक पीठ का गठन किया जाएगा जिसमें कम-से-कम पाँच न्यायाधीश होंगे।
- हालाँकि इसमें पाँच से अधिक न्यायाधीश भी हो सकते हैं जैसे- केशवानंद भारती केस में गठित संवैधानिक पीठ में 13 न्यायाधीश थे।
आंध्र प्रदेश सरकार का पक्ष:
- अनुसूचित क्षेत्रों में 100% आरक्षण प्रदान करने के पीछे सरकार द्वारा यह तर्क दिया गया कि- "आदिवासियों को केवल आदिवासियों द्वारा ही शिक्षा देनी चाहिये।"
- पीठ ने सरकार के पक्ष को इस आधार पर खारिज कर दिया कि जब अन्य स्थानीय निवासी जनजातीय क्षेत्र में रह रहे हैं तो वे भी इन आदिवासियों को पढ़ा सकते हैं।
आरक्षण व्यवस्था पर चिंता:
- पाँच जजों की संविधान पीठ ने ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ (Other Backward Classes- OBCs), ‘अनुसूचित जाति’ (Scheduled Castes- SCs तथा ‘अनुसूचित जनजाति’ (Scheduled Tribes- STs) वर्गों में आरक्षण व्यवस्था पर चिंता व्यक्त की है।
- पीठ के अनुसार OBCs/STs/SCs वर्गों में भी अनेक सामाजिक और आर्थिक रूप से उन्नत उपवर्ग हैं जिनकी वजह से आरक्षण का लाभ आरक्षित वर्गों के सभी लोगों को नहीं मिल पा रहा है।
आरक्षण सूची में संशोधन:
- संवैधानिक पीठ ने इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि आरक्षण के हकदार लोगों की आरक्षण सूचियों को समय-समय पर संशोधित किया जाना चाहिये।
- सूचियों का अद्यतन, आरक्षण व्यवस्था में बदलाव किये बिना जा सकता है अर्थात किसी वर्ग को प्रदान किये गए आरक्षण के कुल प्रतिशत में किसी प्रकार की कमी न की जाए।
आरक्षण सूची में संशोधन का लाभ:
- प्रथम, वे वर्ग इस सूची से बाहर हो जाएँगे जो पिछले 70 वर्षों से आरक्षण का लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
- द्वितीय, आरक्षण सूची में बाद में शामिल किये गए वर्ग; जो वास्तव में आरक्षण के हकदार नहीं थे, बाहर हो जाएँगे।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह कि सरकार इस तरह की कवायद करने के लिए बाध्य है क्योंकि ‘इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार मामले’ के निर्णय के अनुसार ऐसा करना संवैधानिक रूप से परिकल्पित है।
आरक्षण प्रणाली के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या :
- संवैधानिक पीठ के अनुसार अनुसूचित जनजातियों को 100% आरक्षण देने से अनुसूचित जातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों को उनके उचित प्रतिनिधित्त्व से भी वंचित किया गया है।
- आरक्षण की अवधारणा समानुपाती नहीं, बल्कि पर्याप्त (Not Proportionate but Adequate) पर आधारित है, अर्थात आरक्षण का लाभ जनसंख्या के अनुपात में न होकर, पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व प्रदान करने के लिये है।
- इस प्रकार कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के प्रावधानों का उल्लंघन करती है।
- आरक्षण प्रदान करते समय मेरिट को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
- राज्यपाल का निर्णय कानून से ऊपर नहीं हो सकता, अत: असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं होनी चाहिये (इंदिरा साहनी वाद का निर्णय)।
निष्कर्ष:
- भारतीय समाज विशेषकर पिछड़े वर्ग के विकास में आरक्षण की भूमिका को पहचानने की ज़रूरत है। आवश्यक है कि विषय से संबंधित विभिन्न हितधारकों से विचार-विमर्श किया जाए और यथासंभव एक संतुलित मार्ग की खोज की जाए।
स्रोत: इंडियन एक्स्प्रेस
COVID-19 के दौरान आदिवासी समुदाय की सहायता हेतु TRIFED की पहल
प्रीलिम्स के लिये:वन धन सामाजिक जागरूकता अभियान, TRIFED मेन्स के लिये:COVID-19 से उत्पन्न चुनौतियों के समाधान हेतु सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में COVID-19 की महामारी और इसके प्रसार को रोकने के हेतु देशभर में लागू लॉकडाउन के कारण प्रभावित आदिवासी समुदाय की समस्याओं के समाधान के लिये ‘केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय’ (Ministry of Tribal Affairs) ने कई महत्त्वपूर्ण योजनाओं की शुरुआत की है।
मुख्य बिंदु:
- देश में लागू लॉकडाउन ने वनों पर आश्रित आदिवासी समुदाय की आजीविका को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
- देश के विभिन्न भागों में वर्तमान में वन्य उत्पादों के पकने और उनकी कटाई या एकत्र करने का मौसम है, ऐसे में यह समय वर्ष भर के लिये इस समुदाय की व्यापारिक गतिविधियों और उनकी सुरक्षा को निर्धारित करता है।
- वर्तमान में लॉकडाउन से उत्पन्न समस्याओं को दूर करने के लिये ‘केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय’ के तहत संचालित ‘भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ’ (The Tribal Cooperative Marketing Development Federation of India- TRIFED) ने कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
- TRIFED द्वारा आदिवासी समुदाय की सहायता के लिये किये जा रहे प्रयासों को निम्नलिखित तीन बिंदुओं के आधार पर समझा जा सकता है:
- प्रचार और जागरूकता (Publicity and Awareness Generation)
- व्यक्तिगत सुरक्षा हेतु स्वास्थ्य सुविधा (Personal Protective Healthcare)
- गैर-काष्ठ वन उत्पादों की खरीद {Non-Timber Forest Product (NTFP) Procurement}
- TRIFED ने समुदाय को इन चुनौतियों से निपटने हेतु अतिरिक्त सहायता प्रदान करने हेतु आवश्यकता के अनुसार तात्कालिक, मध्यम अवधि और दीर्घकालिक पहलों की शुरुआत की है।
- तात्कालिक/लघु अवधि के उपाय: सोशल डिस्टेंसिंग अवेयरनेस (Social Distancing Awareness)
1. वन धन सामाजिक दूरी जागरूकता अभियान (Van Dhan Samajik Doori Jagrookta Abhiyaan):
- इसके तहत गैर-काष्ठ वन उत्पादों को एकत्र करने वाले लोगों को COVID-19 से बचाव के लिये डिजिटल माध्यमों जैसे- वेबिनार और फेसबुक लाइव आदि से सुरक्षात्मक व्यवहार जैसे- सोशल डिस्टेंसिंग, क्वारंटीन और स्वच्छता के संबंध में दो स्तरीय (प्रशिक्षकों और स्वयं सहायता समूहों द्वारा) प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
- ‘वन धन स्वयं सहायता समूहों’ (Van Dhan Self Help Groups) को सुरक्षात्मक ढंग से कार्य करने के लिये मास्क और स्वच्छता से जुड़े उत्पाद जैसे- साबुन, कीटाणुनाशक आदि उपलब्ध कराया गया है।
वन धन सामाजिक दूरी जागरूकता अभियान
(Van Dhan Samajik Doori Jagrookta Abhiyaan):
- इस अभियान के माध्यम से ‘प्रधानमंत्री वन धन योजना’ (Pradhan Mantri Van Dhan Yojana) के तहत लगभग 15,000 स्वयं सहायता समूहों के सहयोग से देश के 28 राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों में आदिवासियों को जागरूक करने का प्रयास किया गया है।
- इसके तहत TRIFED ने यूनिसेफ (UNICEF) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) के सहयोग से COVID-19 संकट के दौरान ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ (Docial Distancing) के महत्त्व के संदर्भ में जागरूकता फैलाने हेतु एक डिजिटल अभियान शुरू किया है।
- यूनिसेफ ने ‘वन धन सामाजिक दूरी जागरूकता अभियान (Van Dhan Social Distancing Awareness Movement) हेतु जागरूकता, शिक्षा और संवाद (Information, Education and Communication-IEC) के लिये आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई है।
- इसके तहत COVID-19 से बचने के लिये प्रशिक्षकों तथा वेबिनार के माध्यम से सोशल डिस्टेंसिंग, होम क्वारंटीन आदि से जुड़े व्यापक अभियान चलाए गए हैं।
- मध्यम और दीर्घकालिक उपाय: आजीविका
- इसके तहत वन्य उत्पाद पर आश्रित करोड़ों आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिये लॉकडाउन के दूसरे चरण में समुदाय को कुछ छूट दिये जाने के लिये गृह मंत्रालय से संपर्क किया गया था।
- गृह मंत्रालय द्वारा 16 अप्रैल, 2020 को आवश्यक परिवर्तनों के बाद संशोधित दिशा-निर्देश जारी किये गए, जिसके तहत अनुसूचित जनजातियों और वनों पर आश्रित अन्य समुदायों को ‘गैर-काष्ठ लघु वन उत्पाद’ {Non - Timber Minor Forest Produce (MFP)} की कटाई या एकत्र करने के लिये कुछ छूट प्रदान की गई है।
- साथ ही ‘केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय’ ने TRIFED को वन्य उत्पादों के ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (Minimum Support Price- MSP) में आवश्यक सुधार करने के निर्देश दिये, जिससे वनों पर आश्रित समुदायों को अपने उत्पादों के लिये बाज़ार के बराबर लाभ मिल सके।
- ‘केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय’ के 17 अप्रैल, 2020 के आदेशों के अनुसार, TRIFED ने सभी राज्यों के ‘हाट बाज़ार’ नामक प्राथमिक बाज़ारों में उचित MSP देने, उत्पादों की खरीद के लिये तौल, परिवहन और आवश्यकता के अनुरूप कोल्ड या ड्राई स्टोरेज (Cold and Dry Storage) सुविधा युक्त खरीद केंद्रों की स्थापना हेतु महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
स्रोत: पीआईबी
महामारी रोग (संशोधन) अध्यादेश, 2020
प्रीलिम्स के लियेमहामारी रोग (संशोधन) अध्यादेश, 2020 मेन्स के लियेस्वास्थ्यकर्मियों के विरुद्ध हिंसा |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के विरुद्ध लड़ रहे स्वास्थ्यकर्मियों के साथ हिंसा के कृत्य को संज्ञेय और गैर-ज़मानती अपराध घोषित करने वाले अध्यादेश को मंज़ूरी दे दी है।
अध्यादेश संबंधी प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि देश भर में स्वास्थ्यकर्मियों के के विरुद्ध हो रही हिंसा में बढ़ोतरी को देखते हुए 22 अप्रैल, 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अपनी बैठक में महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन को मंज़ूरी दी थी, ताकि महामारी के दौरान स्वास्थ्यकर्मियों और उनकी संपत्ति (आवास तथा कार्यस्थल) की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
- महामारी रोग अधिनियम, 1897 में यह संशोधन स्वास्थ्यकर्मियों के साथ हिंसा के कृत्य को संज्ञेय तथा गैर-ज़मानती अपराध बनाता है और स्वास्थ्यकर्मी को हुई क्षति अथवा उसकी संपत्ति को हुई क्षति के लिये मुआवज़े का प्रावधान करता है।
- वर्तमान अध्यादेश का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी स्थिति में मौजूदा महामारी के दौरान स्वास्थ्यकर्मियों के विरुद्ध हिंसा या संपत्ति का नुकसान होने पर दोषी के साथ शून्य सहिष्णुता की नीति अपनाई जाए।
- अध्यादेश में हिंसा की जो परिभाषा दी गई है उसमें उत्पीड़न तथा शारीरिक चोट के अतिरिक्त संपत्ति को नुकसान पहुँचाना भी शामिल है।
- अध्यादेश के अनुसार, स्वास्थ्यकर्मियों में सार्वजनिक तथा नैदानिक स्वास्थ्य सेवा प्रदाता जैसे डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल कार्यकर्त्ता तथा सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त स्वास्थ्यकर्मी की परिभाषा में ऐसे सभी लोगों को भी शामिल किया गया है जिन्हें इस महामारी के प्रकोप को रोकने या इसके प्रसार को रोकने के लिये अधिनियम के तहत अधिकार प्राप्त है।
- अध्यादेश के प्रावधानों के अनुसार, स्वास्थ्यकर्मियों के साथ हिंसा करने पर 3 माह से लेकर 5 वर्ष तक कैद और 50000 रुपए से लेकर 200000 रुपए तक जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है। वहीं गंभीर चोट के मामले में 6 माह से 7 वर्ष तक कैद और 100000 रुपए से 500000 रुपए तक जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है।
- इसके अतिरिक्त अपराधी पीड़ित को मुआवजे का भुगतान करने और संपत्ति के नुकसान का भुगतान करने के लिये भी उत्तरदायी होगा। ध्यातव्य है कि संपत्ति के नुकसान की स्थिति में भुगतान बाज़ार मूल्य का दोगुना होगा।
- अध्यादेश के अनुसार, 30 दिनों की अवधि के भीतर इंस्पेक्टर रैंक के एक अधिकारी द्वारा अपराधों की जाँच की जाएगी।
अध्यादेश की आवश्यकता
- COVID-19 महामारी के दौरान ऐसी कई घटनाएँ देखी गई हैं, जिनमें स्वास्थ्यकर्मियों के साथ हिंसा की गई और उन्हें लक्षित करके उन पर हमले किये गए, जिससे उन्हें अपने कर्त्तव्यों के निर्वाह में बाधाओं का सामना कर पड़ा।
- चौबीसों घंटे कार्य करने और बिना किसी स्वार्थ के मानव जीवन को बचाने के बावजूद चिकित्सा समुदाय के सदस्यों को उत्पीड़न का सामना कर पड़ रहा है।
- कई लोगों स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोनावायरस (COVID-19) का वाहक मान रहे हैं, जिसके कारण उन्हें चौतरफा संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है।
- ऐसी स्थिति चिकित्सा समुदाय को अपना सर्वोत्तम प्रदर्शन करने और उनके मनोबल को बनाए रखने से रोकती है, जो वैश्विक स्वास्थ्य संकट के इस समय में एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है।
आगे की राह
- स्वास्थ्यकर्मी COVID-19 के प्रसार से रोकने और उस महामारी से लड़ने में हमारे अग्रिम पंक्ति के सैनिक हैं। ये लोग दूसरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं।
- मौजूदा समय में सभी स्वास्थ्यकर्मी सर्वोच्च सम्मान और प्रोत्साहन के हकदार हैं, किंतु उन्हें इस महामारी के दौर में हिंसा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, बीते कुछ दिनों में स्वास्थ्यकर्मियों के विरुद्ध हिंसा की कुछ घटनाएँ सामने आई हैं, इस घटनाओं के कारण चिकित्सा समुदाय का मनोबल काफी गिरता जाता है।
- आशा है कि इस अध्यादेश के माध्यम से चिकित्सा समुदाय में विश्वास पैदा करने में मदद मिलेगी और वे मौजूदा कठिन परिस्थितियों अपने महान पेशे के माध्यम से अपना बहुमूल्य योगदान देते रहें।
स्रोत: पी.आई.बी
नैनोब्लिट्ज़-3D
प्रीलिम्स के लिये:इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स, प्रत्यास्थता, कठोरता मेन्स के लिये:विभिन्न पदार्थों की विशेषताओं को चित्रित करने हेतु नैनोब्लिट्ज़-3D से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स’ (International Advanced Research Centre for Powder Metallurgy and New Materials-ARCI) और ‘नैनोमैकेनिक्स इंक’. (Nanomechanics Inc.) के वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से नैनोब्लिट्ज़-3D (NanoBlitz 3D) नामक एक तकनीक विकसित की है।
प्रमुख बिंदु:
- गौरतलब है कि इस तकनीक की मदद से मल्टी फेज़ एलाय (Multi-phase Alloys), कम्पोज़िट (Composite), मल्टी-लेयरड कोटिंग (Multi-layered Coatings) जैसे विभिन्न पदार्थों की विशेषताओं को चित्रित किया जा सकता है।
- नैनोब्लिट्ज़-3D की सहायता से एक बार में 1000 उच्च गति वाले नैनो-इंडेंटेशन परीक्षण (Nano-indentation Tests) किये जा सकते हैं।
- नैनो-इंडेंटेशन परीक्षण: नैनो-इंडेंटेशन परीक्षण से पदार्थों के यांत्रिक गुण जैसे कठोरता, प्रत्यास्थता और पतली कोटिंग्स की विभंजन कठोरता का मूल्यांकन किया जाता है।
- पदार्थों की कठोरता और प्रत्यास्थता संबंधित आँकड़ों को प्राप्त करने हेतु प्रत्येक नैनो-इंडेंटेशन परीक्षण को एक सेकंड से भी कम समय लगता है।
- नैनोब्लिट्ज़-3D को ‘इंटीग्रेटेड कम्प्यूटेशनल मैटेरियल इंजीनियरिंग (Integrated Computational Material Engineering-ICME)’ की मदद से विकसित किया गया है ।
कठोरता (Hardness):
- कठोरता किसी वस्तु की एक ऐसी विशेषता है, जो बाह्य बल की उपस्थिति में अपनी संरचना में परिवर्तन का विरोध करती है।
प्रत्यास्थता (Elasticity):
- प्रत्यास्थता किसी वस्तु की एक ऐसी विशेषता है, जो वस्तु पर बाह्य बल लगाने से किसी भी प्रकार के परिवर्तन का विरोध करती है तथा जैसे ही बाह्य बल हटा लिया जाता है वह अपनी पूर्व अवस्था में वापस आने का प्रयत्न करती है।
नैनोब्लिट्ज़-3D की विशेषताएँ:
- नैनोब्लिट्ज़-3D तकनीक की मदद से पदार्थों का परीक्षण कर हजारों आँकड़े कुछ ही घंटो में प्राप्त किये जा सकते हैं। साथ ही इन पदार्थों से संबंधित आँकड़ों को मशीन लर्निंग (Machine Learning-ML) एल्गोरिदम की सहायता से प्रसंस्कृत किया जा सकता है।
- नैनोब्लिट्ज़-3D की उच्च गति मानचित्रण क्षमताओं का उपयोग कर आकार में एक माइक्रोमीटर (या उससे अधिक) के पदार्थों की संरचना संबंधी विशेषताएँ शीघ्रता से प्राप्त की जा सकती हैं। उल्लेखनीय है कि यह तकनीक मल्टीस्केल मैकेनिक्स को समझने और पदार्थों (Hierarchical Materials) के विकास में सहायक साबित हो सकती है।
इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स
(International Advanced Research Centre for Powder Metallurgy and New Materials- ARCI):
- वर्ष 1997 में स्थापित इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology-DST) का एक स्वायत्त अनुसंधान और विकास केंद्र है।
- इसका मुख्यालय हैदराबाद एवं परिचालन संबंधी कार्य चेन्नई और गुरुग्राम में होते हैं।
- ARCI का उद्देश्य:
- उच्च गुणवत्ता वाले पदार्थों की खोज।
- भारतीय उद्योग में प्रौद्योगिकी का स्थानांतरण करना।
स्रोत: पीआईबी
गैर-यूरिया उर्वरक सब्सिडी
प्रीलिम्स के लिये:पोषक तत्त्वों पर आधारित सब्सिडी (NBS) योजना, खाद्य, उर्वरक और ईंधन सब्सिडी मेन्स के लिये:उर्वरक सब्सिडी का विवेकीकरण |
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में ‘आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति’ (Cabinet Committee on Economic Affairs- CCEA) ने वर्ष 2020-21 के लिये गैर-यूरिया उर्वरकों के लिये ‘पोषक तत्त्वों पर आधारित सब्सिडी’ (Nutrient Based Subsidy- NBS) दरों का निर्धारण किया है।
मुख्य बिंदु:
- केंद्र सरकार ने वर्ष 2020- 21 के लिये गैर-यूरिया उर्वरक सब्सिडी में 3% की कटौती करके 22,186 करोड़ रुपये व्यय का लक्ष्य रखा है।
- वर्ष 2019-20 में गैर-यूरिया उर्वरक सब्सिडी की अनुमानित लागत 22,875 करोड़ रुपए थी।
- CCEA ने NBS योजना के तहत अमोनियम फॉस्फेट नामक मिश्रित उर्वरक को भी शामिल करने की मंज़ूरी दी।
पोषक तत्त्वों पर आधारित सब्सिडी (NBS) योजना:
पृष्ठभूमि:
- यह योजना ‘उर्वरक और रसायन मंत्रालय’ (Ministry of Fertilizers and Chemicals) के उर्वरक विभाग द्वारा वर्ष 2010 से लागू की जा रही है।
- NBS नीति के तहत सरकार फॉस्फेट और पोटाश (P & K) उर्वरकों के प्रत्येक पोषक तत्त्व जैसे- नाइट्रोज़न (N), फॉस्फेट (P), पोटाश (K) और सल्फर (S) पर, सब्सिडी की एक निश्चित दर की घोषणा करती है।
वर्ष 2020-21 के लिये प्रति किग्रा. सब्सिडी (रुपए में):
N (नाइट्रोजन) |
P (फॉस्फोरस) |
K (पोटाश) |
S (सल्फर) |
18.789 |
14.888 |
10.116 |
2.374 |
उद्देश्य:
- पर्याप्त मात्रा में P & K उपलब्धता।
- कृषि में उर्वरकों का संतुलित उपयोग सुनिश्चित करना।
- स्वदेशी उर्वरक उद्योग के विकास को बढ़ावा देना।
- सब्सिडी के बोझ को कम करना।
गैर-यूरिया उर्वरक सब्सिडी का निर्धारण:
- वार्षिक आधार पर सब्सिडी निर्धारित करते समय अंतर्राष्ट्रीय मूल्य, विनिमय दर, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में गैस की कीमत सहित सभी प्रासंगिक कारकों को ध्यान में रखा जाता है।
- इस योजना के तहत किसानों को सस्ती कीमत पर फॉस्फेट और पोटाश उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये की गई थी।
- उर्वरक कंपनियों को उपर्युक्त दरों के अनुसार सब्सिडी जारी की जाएगी, ताकि वे किसानों को सस्ते दामों पर उपलब्ध करा सके।
- NBS नीति के तहत कंपनियों को उर्वरकों की ‘अधिकतम खुदरा मूल्य’ (Maximum Retail Price- MRP) तय करने की अनुमति है।
यूरिया के संबंध में सरकार की नीति:
- यूरिया के संबंध में किसानों को वैधानिक रूप से अधिसूचित ‘अधिकतम खुदरा मूल्य’ (Maximum Retail Price- MRP) पर यूरिया उपलब्ध कराया जा रहा है।
- सरकार द्वारा यूरिया निर्माता/आयातक को; यूरिया इकाइयों द्वारा किसानों या फार्म गेट तक उर्वरक उपलब्ध कराने की लागत तथा MRP के बीच के मूल्य अंतर सब्सिडी के रूप में दी जाती है।
लाभ:
- यह उर्वरक निर्माताओं तथा आयातकों को आपूर्ति संबंधी अनुबंधों को पूरा करने में मदद करेगा तथा इससे वर्ष 2020-21 के लिये उर्वरक उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी।
निष्कर्ष:
- NBS को शुरू करने के पीछे का उद्देश्य उर्वरक कंपनियों के बीच उचित मूल्य पर बाज़ार में विविध उत्पादों की उपलब्धता के लिये प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाना था। हालांकि P & K उर्वरकों की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है।
खाद्य, उर्वरक और ईंधन सब्सिडी बिल (करोड़ रुपए में):
खाद्य |
उर्वरक |
ईंधन |
कुल |
1,15,569.68 |
71,309 |
40,915.21 |
2,27,793.89 |
स्रोत: पीआईबी
मानव गतिविधियों के कारण उत्पन्न महामारी
प्रीलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, ज़ूनोसिस रोग मेन्स के लिये:मानव गतिविधियों के कारण उत्पन्न महामारी से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
ग्वेनाएल वोर्क (Gwenael Vourc’h) नामक एक फ्रांसीसी सार्वजनिक अनुसंधान संस्थान के अनुसार, COVID-19 जैसी महामारी मानव गतिविधियों के कारण उत्पन्न होती है।
प्रमुख बिंदु:
- गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environmental Programme- UNEP) की रिपोर्ट के अनुसार, इंसानों को होने वाले 60% संक्रामक रोगों के मूल स्रोत जानवर होते हैं। इबोला (Ebola), एचआईवी (HIV), एवियन इन्फ्लूएंज़ा (Avian influenza-AI), फ्लू (Flu), ज़ीका (Zika), सार्स (SARS) जैसी बीमारियों की वज़ह से अब यह आँकड़ा 75% हो गया है।
पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव एक वज़ह:
- UNEP की रिपोर्ट के अनुसार, पर्यावरणीय परिवर्तन या पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव के कारण ज़ूनोसिस रोग उत्पन्न हुए हैं।
- पिछले 50 वर्षों के दौरान प्रकृति के परिवर्तन की दर मानव इतिहास में अभूतपूर्व है तथा प्रकृति के परिवर्तन का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण भूमि उपयोगिता में परिवर्तन है।
- जनसंख्या बढ़ने के साथ ही अत्यधिक मात्रा में प्राकृतिक संसाधन का दोहन करना, अत्यधिक पैदावार हेतु कृषि में खाद का उपयोग करना, मानव द्वारा जंगलों एवं अन्य स्थानों पर अतिक्रमण करना, इत्यादि पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव के कारण हैं।
ज़ूनोसिस रोग पर विशेषज्ञों का मत:
- COVID-19 चमगादड़ या पैगोंलिन से उत्पन्न हुआ है इस बात की अभी तक पुष्टि नहीं हुई है लेकिन यह स्पष्ट है कि COVID-19 जानवरों से ही उत्पन्न हुआ है। साथ ही उत्पन्न संक्रमणों में से चमगादड़ से लगभग तीन-चौथाई संक्रमण उत्पन्न होते हैं।
- COVID-19 वर्ष 2019 के अंत में चीन के वुहान शहर से उत्पन्न हुआ है।
- पालतू जानवरों को अत्यधिक प्रतिजैविक पदार्थ देने तथा पालतू जानवरों से मनुष्यों के अत्यधिक संपर्क से ज़ूनोसिस रोग उत्पन्न होता है।
प्रमुख ज़ूनोज़ रोग निम्नलिखित हैं:
- इबोला (Ebola):
- इबोला वायरस की खोज सबसे पहले वर्ष 1976 में इबोला नदी के पास हुई थी जो अब कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य है। अफ्रीका में फ्रूट बैट चमगादड़ इबोला वायरस के वाहक हैं जिनसे पशु (चिम्पांजी, गोरिल्ला, बंदर, वन्य मृग) संक्रमित होते हैं। मनुष्यों को या तो संक्रमित पशुओं से या संक्रमित मनुष्यों से संक्रमण होता है, जब वे संक्रमित शारीरिक द्रव्यों या शारीरिक स्रावों के निकट संपर्क में आते हैं। इसमें वायु जनित संक्रमण नहीं होता है।
- ज़ीका (Zika):
- ज़ीका विषाणु एडीज़ मच्छर के काटने से शरीर में प्रवेश करता है। ज़िका का पहला मामला वर्ष 1952 में आया था। वर्ष 2007 तक यह केवल अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्सों में पाया जाता था। उसके बाद धीरे-धीरे यह अन्य स्थानों में भी फैलने लगा। 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये आपात घोषित कर दिया।
- ह्यूमन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस (Human Immunodeficiency Virus-HIV):
- HIV शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में CD-4, जो कि एक प्रकार का व्हाइट ब्लड सेल (T-Cells) होता है, पर हमला करता है। शरीर में प्रवेश करने के बाद एचआईवी वायरस की संख्या में तीव्र वृद्धि होती है और यह CD-4 कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है, इस प्रकार यह मानव प्रतिरक्षा प्रणाली (Human Immune System) को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाता है। कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण एक व्यक्ति में संक्रमण और कैंसर की संभावना अधिक रहती है।
आगे की राह:
- COVID-19 की व्यापक चुनौतियों को देखते हुए इस वायरस के प्रसार को रोकने के लिये प्रयास किये जाने की आवश्यकता है तथा साथ ही यह सुनिश्चित करना भी ज़रूरी है कि देश में किये जाने वाले चिकित्सा संबंधी शोधों में सभी मानदंडों का सख्ती से पालन किया जाए।
- यह सत्य है कि मज़बूत आधारिक संरचना के अभाव में किसी भी समाज के लिये विकास करना अपेक्षाकृत काफी मुश्किल होता है, परंतु इस तथ्य का पालन करते हुए पर्यावरण को पूर्णतः नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। अतः यह आवश्यक है कि यदि कभी देश के विकास और पर्यावरण के मध्य द्वंद्व उत्पन्न हो तो विवेक के साथ इस विषय पर विचार किया जाए और ऐसे वैकल्पिक रास्तों की तलाश की जाए जो पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए हमें विकास की नई दिशा दिखाएँ।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 23 अप्रैल, 2020
उत्तर भारत में वायु प्रदूषण न्यूनतम स्तर पर
हाल ही में राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space Administration.-NASA) ने घोषणा की है कि उत्तर भारत में वायु प्रदूषण 20 वर्ष के अपने सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया है। नासा के सैटेलाइट्स के माध्यम से प्राप्त जानकारी के अनुसार, एरोसोल (Aerosol) अर्थात् वायुमंडल में मौजूद धूल के सूक्ष्म कण काफी कम हो गए हैं। एरोसोल न सिर्फ दृश्यता (Visibility) घटाते हैं बल्कि इनसे फेफड़ों से संबंधित बीमारियाँ भी होती हैं। ध्यातव्य है कि केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिये संपूर्ण भारत में 03 मई तक देशव्यापी लॉकडाउन का दूसरा चरण लागू किया है। इस लॉकडाउन अवधि के दौरान कई भारत के अधिकांश शहरों में वायु प्रदूषण अपने न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया है, क्योंकि लॉकडाउन के कारण देश में अधिकांश आर्थिक और गैर-आर्थिक गतिविधियाँ रुक गई हैं। वायु प्रदूषण के अतिरिक्त देश की तमाम नदियों के जल की गुणवत्ता में भी काफी सुधार देखा गया है। नासा (NASA) संयुक्त राज्य अमेरिका के संघीय सरकार की कार्यकारी शाखा की एक स्वतंत्र एजेंसी है जो नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम के साथ-साथ वैमानिकी और अंतरिक्ष अनुसंधान के लिये उत्तरदायी है। इसकी स्थापना वर्ष 1958 में की गई थी और इसका मुख्यालय वॉशिंगटन डीसी (अमेरिका) में स्थित है।
अंग्रेजी भाषा दिवस
23 अप्रैल को प्रतिवर्ष वैश्विक स्तर पर अंग्रेजी भाषा दिवस मनाया जाता है। ध्यातव्य है कि 23 अप्रैल, 1564 को अंग्रेजी के प्रख्यात कवि और नाटककार विलियम शेक्सपियर का जन्म हुआ था और 23 अप्रैल, 1616 को उनकी मृत्यु हुई थी, जिसके कारण 23 अप्रैल को अंग्रेजी भाषा दिवस के रूप में चुना गया है। वर्ष 2010 में संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक संचार विभाग (United Nations Department of Global Communications) ने संयुक्त राष्ट्र की सभी 6 आधिकारिक भाषाओं के लिये दिवस की स्थापना की पहल की थी। प्रत्येक भाषा के लिये एक दिवस के आयोजन का उद्देश्य बहुभाषावाद तथा सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देना है। संयुक्त राष्ट्र भाषा दिवस के अंतर्गत 6 आधिकारिक भाषाओं के लिये अलग-अलग दिवस निश्चित किये गए हैं, जिसमें अरबी भाषा के लिये 18 दिसंबर, चीनी भाषा के लिये 20 अप्रैल, फ्रेंच भाषा के लिये 20 मार्च, रुसी भाषा के लिये 6 जून और स्पेनिश भाषा के लिये 23 अप्रैल शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक संचार विभाग को रणनीतिक संचार अभियानों, मीडिया और नागरिक समाज समूहों के साथ रिश्तों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र के कार्य हेतु सार्वजनिक जागरूकता और समर्थन बढ़ाने का महत्त्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है।
सुदर्शनम बाबू
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय-अमेरिकी (Indian-American) सुदर्शनम बाबू (Sudarshanam Babu) को अमेरिका के राष्ट्रीय विज्ञान बोर्ड (National Science Board) में नियुक्त किया है। इस संबंध में जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार, सुदर्शनम बाबू को 6 वर्ष के कार्यकाल के लिये राष्ट्रीय विज्ञान बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया है। ध्यातव्य है कि सुदर्शनम बाबू ने वर्ष 1988 में IIT-मद्रास से परास्नातक की डिग्री प्राप्त की थी और वर्ष 1986 में कोयंबटूर के इंजीनियरिंग कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। इसके अतिरिक्त सुदर्शनम बाबू ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय (Cambridge University) से सामग्री विज्ञान एवं धातु विज्ञान में PhD किया है और वर्तमान में वे इंटरडिसिप्लिनरी रिसर्च एंड ग्रेजुएट एजुकेशन (Interdisciplinary Research and Graduate Education) के लिये ब्रेडसेन सेंटर (Bredesen Center) के निदेशक हैं, साथ ही वे प्रतिष्ठित ओक रिज़ नेशनल लेबोरेटरी (Oak Ridge National Laboratory-ORNL) से भी जुड़े हुए हैं।
उषा गांगुली
प्रसिद्ध रंगकर्मी उषा गांगुली का 75 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। ध्यातव्य है कि उषा गांगुली का जन्म 1945 में राजस्थान में हुआ था और उन्होंने अपनी शिक्षा कोलकाता से पूरी की थी। कोलकाता से शिक्षा पूरी करने के पश्चात् उन्होंने कोलकाता को ही अपने कार्यक्षेत्र के रूप में चुना और वहाँ हिंदी थियेटर को स्थापित किया। कोलकाता से हिंदी साहित्य में परास्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत एक हिंदी शिक्षक के रूप में की थी। अपने शिक्षण कैरियर के साथ उषा गांगुली थियेटर भी करती रहीं, उन्होंने वर्ष 1976 में ‘रंगकर्मी’ (Rangakarmee) नाम से एक थियेटर समूह की शुरुआत भी की थी। उषा गांगुली को वर्ष 1998 में निर्देशन के लिये संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें उन्हें पश्चिम बंगाल राज्य सरकार द्वारा ‘गुडिया घर’ नाटक के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में भी सम्मानित किया गया था।