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डेली न्यूज़

  • 23 Mar, 2022
  • 35 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

विश्व जल दिवस 2022

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व जल दिवस, सतत् विकास लक्ष्य।

मेन्स के लिये:

संरक्षण, विश्व जल दिवस का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

जल के महत्त्व को उजागर करने हेतु प्रतिवर्ष 22 मार्च को ‘विश्व जल दिवस’ मनाया जाता है।

  • विश्व जल दिवस के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय के कनाडा स्थित ‘जल पर्यावरण और स्वास्थ्य संस्थान’ (UNU-INWEH) ने एक मूल्यांकन रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें दिखाया गया है कि अफ्रीका में समग्र तौर पर जल सुरक्षा का स्तर अस्वीकार्य रूप से कम है।
  • ‘विश्व जल दिवस 2022’ की थीम वार्षिक विश्व जल विकास रिपोर्ट पर ध्यान केंद्रित करती है।

World-Water-Day

विश्व जल दिवस क्या है?

  • उद्देश्य: इस दिवस का उद्देश्य सतत् विकास लक्ष्य 6: ‘वर्ष 2030 तक सभी के लिये पानी और स्वच्छता’ के लक्ष्य का समर्थन करना है।
  • थीम: भूजल: अदृश्य को दृश्यमान बनाना।
    • इस विषय को यूएन-वाटर ने रोम में अपनी 30वीं बैठक में तय किया था। यह अंतर्राष्ट्रीय भूजल संसाधन आकलन केंद्र (IGRAC) द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
  • इतिहास:
    • इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस का विचार सर्वप्रथम वर्ष 1992 में प्रस्तुत किया गया था, ज्ञात हो कि इसी वर्ष वर्ष रियो डी जनेरियो में पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का भी आयोजन किया गया था।
    • वर्ष 1992 में ही संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव अपनाया, जिसके द्वारा प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाने की घोषणा की गई।
    • बाद में अन्य समारोहों और कार्यक्रमों को जोड़ा गया। उदाहरण के लिये जल क्षेत्र में सहयोग का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष 2013 और सतत् विकास हेतु जल संबंधी कार्रवाई के लिये वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय दशक- 2018-2028।
  • महत्त्व:
    • इस दिवस का उद्देश्य दुनिया भर के लोगों को जल से संबंधित मुद्दों पर अधिक जानकारी प्राप्त करने के साथ ही बदलाव के लिये कार्रवाई हेतु प्रेरित करना है।
      • जबकि जल, ग्रह के लगभग 70% हिस्से को कवर करता है, मीठे पानी की मात्रा केवल लगभग 3% है, जिसमें से दो-तिहाई जमा हुआ या दुर्गम और उपयोग के लिये अनुपलब्ध है।
    • ये तथ्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि जल एवं स्वच्छता हेतु किये जाने वाले उपाय गरीबी में कमी, आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • अन्य महत्त्वपूर्ण दिवस:

संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट 2022:

  • भूजल पृथ्वी के सभी तरल मीठे पानी का लगभग 99% है जिसमें समाज को सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ प्रदान करने की क्षमता है।
  • भूजल पहले से ही पीने के पानी सहित घरेलू उद्देश्यों के लिये उपयोग किये जाने वाले कुल जल का लगभग 50% हिस्सा प्रदान करता है।
  • रिपोर्ट में भूजल को गरीबी के खिलाफ लड़ाई और खाद्य एवं जल सुरक्षा, यहाँ तक कि नौकरियों के सृजन व सामाजिक-आर्थिक विकास का केंद्र बताया गया है।
  • एशिया-प्रशांत क्षेत्र दुनिया का सबसे बड़ा भूजल क्षेत्र है, इसमें 10 देश शामिल है जिनमें से 7 देशों (बांग्लादेश, चीन, भारत, इंडोनेशिया, ईरान, पाकिस्तान और तुर्की) द्वारा सबसे अधिक भूजल का दोहन किया जाता है।
    • दुनिया के कुल भूजल निकासी के लगभग 60% हिस्से का उपयोग अकेले इन देशों द्वारा किया जाता है।
  • वर्तमान में सभी क्षेत्रों में जल की बढ़ती मांग तथा वर्षा के पैटर्न में व्यवधान के कारण भूजल पर निर्भरता बढ़ गई है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके उचित प्रबंधन और स्थायी रूप से उपयोग हेतु उचित कार्रवाई के साथ ठोस प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. पृथ्वी ग्रह पर अधिकांश मीठे पानी में बर्फ का आवरण और हिमनद मौजूद हैं। शेष मीठे पानी में से सबसे अधिक अनुपात किस रूप में मौजूद है? (2013)

(a) वातावरण में नमी और बादलों के रूप में पाया जाता है
(b) मीठे पानी की झीलों और नदियों में पाया जाता है
(c) भूजल के रूप में मौजूद है
(d) मिट्टी की नमी के रूप में मौजूद है

उत्तर (c)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

पारा प्रदूषण

प्रिलिम्स के लिये:

पारा के लिये मिनामाता सम्मेलन , पारा और इसकी विशेषताएँ।

मेन्स के लिये:

पारा प्रदूषण, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट से संबंधित चिंताएँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंडोनेशिया ने एक वैश्विक घोषणा की जिसमें पारा/मर्करी पर मिनामाता कन्वेंशन के पक्षकारों से पारे के अवैध व्यापार से निपटने का आह्वन किया गया है।

  • यह घोषणा नुसा दुआ, बाली में की गई, जहाँ इंडोनेशिया द्वारा मिनामाता कन्वेंशन के पक्षकारों के चौथे सम्मेलन (COP4) की मेज़बानी की जा रही है।
  • यह सम्मेलन 21 से 25 मार्च, 2022 तक आयोजित किया जा रहा है।

घोषणा के उद्देश्य:

  • पारा के व्यापार की निगरानी और प्रबंधन के लिये अधिसूचना तथा सूचना-साझाकरण प्रणाली विकसित करना।
  • पारा के अवैध व्यापार से निपटने के लिये अनुभवों और पद्धति का आदान-प्रदान करना जिसमें कारीगर एवं छोटे पैमाने पर सोने के खनन में पारे के उपयोग को कम करना शामिल है।
  • राष्ट्रीय कानून के उदाहरण साझा कर व्यापार से संबंधित डेटा तथा जानकारी को साझा करना

पारा पर मिनामाता कन्वेंशन:

  • पारा पर मिनामाता कन्वेंशन मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को पारे तथा इसके यौगिकों के प्रतिकूल प्रभावों से बचाने के लिये एक वैश्विक संधि है।
  • वर्ष 2013 में जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में अंतर-सरकारी वार्ता समिति के पाँचवें सत्र में इस पर सहमति प्रदान की गई थी।
  • अपने पूरे जीवनचक्र में पारे के दुष्प्रभावो को नियंत्रित करना कन्वेंशन के प्रमुख दायित्वों में से एक है।
  • कन्वेंशन पारा के अंतरिम भंडारण तथा इसके अपशिष्ट के निपटान व दूषित स्थलों के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को भी संबोधित करता है।
  • कन्वेंशन में पारा के जीवन चक्र के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है, जो उत्पादों, प्रक्रियाओं और उद्योगों की शृंखला में पारा को नियंत्रित व इसमें कमी करता है। इसमें निम्नलिखित पर नियंत्रण शामिल है:
    • पारा खनन
    • पारा और पारा से संबंधित उत्पादों का निर्माण और व्यापार
    • पारायुक्त कचरे का निपटान
    • उद्योगो में पारे का उत्सर्जन।
  • जिन देशों ने कन्वेंशन की पुष्टि की है, उन्हें इन नियंत्रणों को लागू करना अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत  बाध्यकरी है।
    • भारत ने भी कन्वेंशन की पुष्टि की है।

पारा के बारे में:

  • परिचय:
    • पारा प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक तत्व है जो हवा, पानी और मिट्टी में पाया जाता है।
    • पारा के संपर्क में (यहाँ तक ​​कि थोड़ी मात्रा में) आने से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं तथा यह गर्भाशय में स्थित शिशु के विकास को भी प्रभावित कर सकता है।
    • यह तंत्रिका तंत्र, पाचन और प्रतिरक्षा प्रणाली, फेफड़ों, गुर्दे, त्वचा तथा आँखों पर विषाक्त प्रभाव डाल सकता है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा मरकरी/पारा को प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के शीर्ष 10 रसायनों या रसायनों के समूहों में से एक माना जाता है।
    • समान्यतः लोग प्रायः तब ‘मिथाइलमरकरी’ (एक कार्बनिक यौगिक) के संपर्क में आते हैं, जब वे मछली और शैलफिश का सेवन करते हैं और इस प्रकार मिनामाता रोग के प्रति अधिक सुभेद्य हो जाते हैं।
      • मिनामाता रोग: यह मिथाइलमरकरी विषाक्तता के कारण होने वाला एक विकार है, जिसे पहली बार जापान के मिनामाता खाड़ी के निवासियों में पाया गया था, जो कि मरकरी/पारा से संबंधित औद्योगिक कचरे से दूषित मछली खाने के कारण पूरे क्षेत्र में फैल गया था।
        • इस रोग में संवेदी हानि और श्रवण एवं दृश्य हानि जैसे प्रभाव शामिल हैं।
      • मिथाइलमरकरी, एथिलमरकरी से काफी अलग है। एथिलमरकरी का उपयोग कुछ टीकों में एक संरक्षक के रूप में किया जाता है और इससे स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं होता है।
  • स्रोतों के प्रकार:
    • प्राकृतिक स्रोत: ज्वालामुखी विस्फोट और समुद्र से उत्सर्जन।
    • मानवजनित उत्सर्जन: इसमें वह पारा/मरकरी शामिल होता है, जो ईंधन या कच्चे माल या उत्पादों या औद्योगिक प्रक्रियाओं में उपयोग के कारण उत्सर्जित होता है।
      • कारीगर और छोटे पैमाने पर सोने का खनन (ASGM): यह मानवजनित पारा उत्सर्जन (37.7%) का सबसे बड़ा स्रोत है, जिसके बाद कोयले के स्थिर दहन (21%) का स्थान है।
      • उत्सर्जन के अन्य बड़े स्रोत हैं- ‘अलौह धातु उत्पादन’ (15%) और ‘सीमेंट उत्पादन’ (11%)।
      • विश्व स्तर पर ASGM क्षेत्र में 10-20 मिलियन लोग काम करते हैं और उनमें से कई दैनिक आधार पर पारे का उपयोग करते हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न. इस्तेमाल किये गए फ्लोरोसेंट इलेक्ट्रिक लैंप के विवेकहीन निपटान से पर्यावरण में पारा प्रदूषण होता है। इन लैंपों के निर्माण में पारे का उपयोग क्यों किया जाता है? (2010)

(a) लैंप के अंदर की गई पारे की कोटिंग प्रकाश को चमकदार सफेद बनाती है।
(b) जब लैंप को चालू किया जाता है, तो लैंप में पारा अल्ट्रा-वायलेट विकिरणों के उत्सर्जन का कारण बनता है।
(c) जब लैंप चालू होता है, तो यह पारा पराबैंगनी ऊर्जा को दृश्य प्रकाश में परिवर्तित करता है।
(d) फ्लोरोसेंट लैंप के निर्माण में पारा के उपयोग के बारे में ऊपर दिया गया कोई भी कथन सही नहीं है।

उत्तर: (b)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस

प्रीलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस, विश्व जल दिवस, संयुक्त राष्ट्र, खाद्य और कृषि संगठन, भारत वन स्थिति रिपोर्ट।

मेन्स के लिये:

संरक्षण, विकास से संबंधित मुद्दे, वन संसाधन, भारत के वन, राज्य और संबंधित पहलें।

चर्चा में क्यों? 

हर साल 21 मार्च को संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस (International Day of Forests- IDF) के रूप में मनाया जाता है।

  •  यह ध्यान देने योग्य है कि 22 मार्च के ठीक एक दिन बाद संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व जल दिवस मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु 

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस:

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा सभी प्रकार के वनों के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने हेतु वर्ष 2012 में 21 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस के रूप में घोषित किया गया।
  • वृक्षारोपण अभियान जैसे- वनों और वृक्षों को शामिल करने वाली गतिविधियों के आयोजन हेतु देशों को स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रयास करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। 
  • वन तथा क्षेत्र में अन्य प्रासंगिक संगठनों पर सहयोगात्मक भागीदारी हेतु आयोजक संयुक्त राष्ट्र वन फोरम एवं सरकारों के सहयोग से संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation- FAO) शामिल हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस 2022 की थीम "वन और टिकाऊ उत्पादन एवं खपत" (Forests and Sustainable Production and Consumption) है। 

वनों का महत्त्व: 

  • वन पृथ्वी के एक-तिहाई भू-क्षेत्र को कवर करते हैं तथा विभिन्न पर्यावरणीय लाभ प्रदान करते हैं, जिसमें जल विज्ञान चक्र के संतुलन को बनाए रखने, जलवायु विनियमन में योगदान और जैव विविधता के संरक्षण में उनकी प्राथमिक भूमिका शामिल है।
  • पारिस्थितिक दृष्टिकोण के अलावा आर्थिक दृष्टिकोण से अध्ययन का भी यह निष्कर्ष निकालता है कि वन संसाधन देश के आर्थिक विकास में योगदान कर सकते हैं और इसलिये विभिन्न कृषि एवं वानिकी से संबंधित गतिविधियों के लिये वन आवरण को बनाए रखना आवश्यक है।
    • वन कई लोगों की आजीविका का समर्थन करते हुए 86 मिलियन से अधिक रोज़गार प्रदान करते हैं।
  • पृथ्वी पर हर किसी का जंगलों से किसी-न-किसी रूप में संपर्क रहा है। इसमें ऐसे समुदाय शामिल हैं जो अपने जीवन और आजीविका के लिये प्रत्यक्ष तौर पर इन पारिस्थितिक तंत्रों पर निर्भर हैं या ऐसे समुदाय जो इन जंगलों से प्राप्त उत्पादों पर निर्भर हैं।
  • वनों का सतत् प्रबंधन और संसाधनों का उपयोग जलवायु परिवर्तन को रोकने तथा वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों की समृद्धि व कल्याण में योगदान देने हेतु महत्त्वपूर्ण हैं। वन गरीबी उन्मूलन की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हैं।
    • इन अमूल्य पर्यावरणीय, आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य लाभों के बावजूद वैश्विक स्तर पर वनों की कटाई खतरनाक दर से जारी है।
    • संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन’ का अनुमान है कि वर्ष 2015 और वर्ष 2020 के बीच विश्व स्तर पर प्रत्येक पाँच वर्ष में 10 मिलियन हेक्टेयर भूमि को साफ किया गया। ‘ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच’ के अनुसार, भारत ने अकेले वर्ष 2020 में प्राकृतिक वन का 132 हेक्टेयर क्षेत्र खो दिया।
    • एक अन्य अध्ययन के अनुसार, अमेज़न के जंगलों ने कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित करने के बजाय इसका उत्सर्जन करना शुरू कर दिया है।

भारत में वनों की स्थिति 

  • भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2021 के अनुसार, देश में मुक्त श्रेणी में 3,07,120 वर्ग किलोमीटर जंगल हैं, जिसमें पिछले दो वर्षों (2019-21) में 4,203 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है।
  • इसमें स्क्रब लैंड (46,539 वर्ग किमी.) को शामिल करें तो यह कुल 3,53,659 वर्ग किमी. हो जाता है जो भारत में 10.76% अवक्रमित वन और स्क्रब लैंड का गठन करता है। यदि हम केवल वन क्षेत्र पर विचार करें तो यह 43.03% है।
  • रिपोर्ट ने देश भर में वनों के आवरण में निरंतर वृद्धि प्रदर्शित की है लेकिन पूर्वोत्तर के वन आवरण में गिरावट तथा प्राकृतिक वनों का क्षरण जैसे कुछ अन्य पहलुओं को विशेषज्ञों ने चिंता के प्रमुख कारणों के रूप में चिह्नित किया है।

International-Day-of-Forests

वनों के लिये प्रमुख सरकारी पहल:

  • हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन:
    • यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत आठ मिशनों में से एक है।
    • इसे फरवरी 2014 में देश के जैविक संसाधनों और संबंधित आजीविका को प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचाने तथा पारिस्थितिक स्थिरता, जैव विविधता संरक्षण व भोजन-पानी एवं आजीविका पर वानिकी के महत्त्वपूर्ण प्रभाव को पहचानने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। 
  • राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP):
    • इसे निम्नीकृत वन भूमि के वनीकरण के लिये वर्ष 2000 से लागू किया गया है।
    • इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (CAMPA Funds):
    • इसे वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया था, इसके फंड का 90% राज्यों को दिया जाना है, जबकि 10% केंद्र द्वारा बनाए रखा जाता है।
    • इस धन का उपयोग जलग्रहण क्षेत्रों के उपचार, प्राकृतिक उत्पादन, वन प्रबंधन, वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन, संरक्षित क्षेत्रों से गाँवों के पुनर्वास, मानव-वन्यजीव संघर्षों के प्रबंधन, प्रशिक्षण व जागरूकता पैदा करने, लकड़ी बचाने वाले उपकरणों की आपूर्ति तथा संबद्ध गतिविधियों के लिये किया जा सकता है।
  • नेशनल एक्शन प्रोग्राम टू कॉम्बैट डेज़र्टिफिकेशन:
    • इसे वर्ष 2001 में मरुस्थलीकरण से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिये तैयार किया गया था।
    • इसका कार्यान्वयन MoEFCC द्वारा किया जाता है।
  • वन अग्नि निवारण और प्रबंधन योजना (एफएफपीएम):
    • यह केंद्र द्वारा वित्तपोषित एकमात्र कार्यक्रम है जो विशेष रूप से जंगल की आग से निपटने में राज्यों की सहायता के लिये समर्पित है।

विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न. निम्नलिखित राज्यों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. छत्तीसगढ़
  2. मध्य प्रदेश
  3. महाराष्ट्र
  4. उड़ीसा

ऊपर वर्णित राज्यों में कुल क्षेत्रफल के वनावरण प्रतिशत के संदर्भ में राज्यों का निम्नलिखित में से कौन-सा आरोही क्रम सही है?

(a) 2-3-1-4 
(b) 2-3-4-1
(c) 3-2-4-1 
(d) 3-2-1-4

उत्तर: (c)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

विंग्स इंडिया 2022

प्रिलिम्स के लिये:

विंग्स इंडिया 2022, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI), फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI)।

मेन्स के लिये:

अवसंरचना, इंडियन एविएशन मार्केट।

चर्चा में क्यों?

नागरिक उड्डयन मंत्रालय, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) तथा भारतीय वाणिज्‍य एवं उद्योग महासंघ (Federation of Indian Chambers of Commerce & Industry- FICCI) द्वारा संयुक्त रूप से 24 से 27 मार्च, 2022 तक बेगमपेट एयरपोर्ट, हैदराबाद में विंग्स इंडिया 2022 का आयोजन किया जाएगा।

  • यह नागरिक उड्डयन (वाणिज्यिक, सामान्य और व्यावसायिक उड्डयन) पर एशिया का सबसे बड़ा आयोजन है।

विंग्स इंडिया 2022 का उद्देश्य:

  • यह भारत की देश को विश्व के शीर्ष उड्डयन केंद्र में बदलने की प्रतिबद्धता के अनुरूप है।
  • इसका उद्देश्य नए व्यापार अधिग्रहण, निवेश, नीति निर्माण और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी पर ध्यान केंद्रित करते हुए तेज़ी से बदलती गतिशीलता के लिये एक अनुकूल मंच प्रदान करना है।
  • यह उड्डयन के लिये वांछित और पुनर्गठित केंद्रित मंच प्रदान करेगा तथा 'विंग्स इंडिया 2022' पर खरीदारों, विक्रेताओं, निवेशकों और अन्य हितधारकों को जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

भारतीय नागरिक उड्डयन बाज़ार की मुख्य विशेषताएँ:

  • उड्डयन क्षेत्र: भारत का नागरिक उड्डयन विश्व स्तर पर सबसे तेज़ी से बढ़ते विमानन बाज़ारों में से एक है और यह वर्ष 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का एक प्रमुख विकास इंजन होगा।
  • यात्री यातायात: घरेलू हवाई यात्री यातायात का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाज़ार जो वित्त वर्ष 2015 में 274.05 मिलियन था। यह वित्तीय वर्ष 2016-2020 के दौरान 12.91% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ा।
  • हवाई अड्डे: भारत में नागरिक उड्डयन के 75 वर्षों में 75 हवाई अड्डे खोले गए, जबकि उड़े देश का आम नागरिक (उड़ान) के तत्त्वावधान में 3 वर्षों के भीतर 76 अनारक्षित/20 कम सेवा वाले हवाई अड्डों, 31 हेलीपोर्ट और 10 वाटर एयरोड्रोम को कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिये काम शुरू किया गया है।
  • फ्लीट स्ट्रेंथ: निजी अनुसूचित एयरलाइन्स की योजना अगले 5 वर्षों में 900 से अधिक विमान जोड़ने की है
  • ग्रीन एयरस्पेस के प्रति प्रतिबद्धता: विमानन कार्बन फुटप्रिंट्स को कम करने के लिये अपनाई गई व्यापक नियामक नीतियाँ और रणनीतियाँ।
  • परेशानी मुक्त यात्रा सुनिश्चित करना: यात्री शिकायतों के निवारण के लिये व्यवस्थित दृष्टिकोण शामिल करना और पूरे सिस्टम में परिचालन क्षमता सुधार करना।

भारतीय विमानन बाज़ार के तहत अवसर:

  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश: ग्राउंड हैंडलिंग सेवाओं और रखरखाव, मरम्मत सेवाओं (MRO) और ग्रीन एंड ब्राउनफील्ड दोनों परियोजनाओं के लिये स्वचालित मार्ग के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति है।
  • विकास/वृद्धि का दायरा: भारतीय नागरिक उड्डयन MRO बाज़ार वर्तमान में लगभग 900 मिलियन अमेरिकी डाॅलर का है और वर्ष 2025 तक लगभग 14-15% CAGR से बढ़कर 4.33 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक बढ़ने का अनुमान है।
    • वर्ष 2038 तक देश के हवाई जहाज़ के बेड़े का आकार चौगुना होकर लगभग 2500 हवाई जहाज़ों तक पँहुंचने का अनुमान है।
  • नए हवाई अड्डों को जोड़ना: सरकार का लक्ष्य वर्ष 2024 तक (उड़ान योजना के तहत) 100 हवाई अड्डों का विकास करना है और वैश्विक मानकों के अनुरूप विश्व स्तरीय नागरिक उड्डयन बुनियादी ढांँचा तैयार करना है।

उड़े देश का आम नागरिक (उड़ान):

  • यह देश के क्षेत्रीय पर्यटन और आर्थिक विकास को बढ़ाने में योगदान देने वाले बंद या कम संचालित हवाई अड्डों को जोड़ने हेतु विश्व की पहली सस्ती कीमतों पर आधारित क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना है।
  • वांछित संचालन शुरू होने के साथ भारतीय विमानन क्षेत्र टियर-1 और टियर-2 शहरों में संचालित वाणिज्यिक मार्गों पर स्पिलओवर ट्रैफिक के लिये लेखांकन के बिना तेज़ी से बढ़ेगा।
  • UDAN योजना को सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने हेतु वर्षों से विकसित किया गया है।
    • UDAN 2.0 में प्राथमिकता वाले क्षेत्रों और हेलीकॉप्टर संचालन पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • UDAN 3.0 सी-प्लेन मार्गों को शामिल करने पर आधारित है।
    • UDAN 4.0 देश के दूरस्थ एवं क्षेत्रीय क्षेत्रों में कनेक्टिविटी को और अधिक बढ़ाने के लिये।
  • कोविड-19 महामारी के आगमन के साथ ‘लाइफलाइन उड़ान’ की परिकल्पना भारत को महामारी के खिलाफ लड़ाई में सहायता करने के लिये की गई थी।
  • यह योजना समग्र रूप से अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचा रही है और राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा दे रही है।

भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण

  • भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) का गठन संसद के एक अधिनियम द्वारा किया गया था और यह 01 अप्रैल, 1995 को तत्कालीन राष्ट्रीय विमानपत्तन प्राधिकरण एवं भारतीय अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा प्राधिकरण के विलय के कारण अस्तित्व में आया था।
  • इस विलय के कारण एक ऐसा एकल संगठन अस्तित्व में आया, जिसे देश में ज़मीन और हवाई क्षेत्र दोनों में नागरिक उड्डयन बुनियादी अवसंरचना के निर्माण, उन्नयन, रखरखाव एवं प्रबंधन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।

फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI):

  • FICCI भारतीय व्यापार और उद्योग का सबसे बड़ा और सबसे पुराना शीर्ष संगठन है, जो भारत में मुक्त उद्यमों के लिये एक विशेष बिंदु है। इसकी स्थापना वर्ष 1927 में हुई थी।
  • 1500 से अधिक कॉरपोरेट्स और 500 से अधिक चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एवं बिज़नेस एसोसिएशन की राष्ट्रव्यापी सदस्यता के साथ FICCI 2,50,000 से अधिक व्यावसायिक इकाइयों का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से नेतृत्त्व करता है।
  • FICCI व्यापार को बढ़ावा देने के लिये बड़ी संख्या में कार्यक्रम आयोजित करता है जिसमें प्रदर्शनी, सम्मेलन, सेमिनार, व्यापार बैठक आदि शामिल हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

हाइपरसोनिक मिसाइल

प्रिलिम्स के लिये:

हाइपरसोनिक वेपन्स, हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल प्रोग्राम।

मेन्स के लिये:

बैलिस्टिक मिसाइलों की तुलना में हाइपरसोनिक मिसाइलों के लाभ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रूस ने यूक्रेन के साथ जारी संघर्ष में पहली बार हाइपरसोनिक मिसाइल का इस्तेमाल किया।

हाइपरसोनिक मिसाइल:

  • हाइपरसोनिक मिसाइल एक हथियार प्रणाली है जो 5 मैक की गति या इससे अधिक की गति से उड़ान भरती है यानी ध्वनि की गति से पाँच गुना।
  • हाइपरसोनिक मिसाइल की गतिशीलता इसे एक बैलिस्टिक मिसाइल से अलग करती है क्योंकि यह बाद में बैलिस्टिक प्रक्षेपवक्र का अनुसरण करती है।
  • इस प्रकार बैलिस्टिक मिसाइलों के विपरीत, हाइपरसोनिक मिसाइलें बैलिस्टिक प्रक्षेपवक्र (Ballistic Trajectory) का पालन नहीं करती हैं तथा उन्हें इच्छित लक्ष्य तक ले जाया जा सकता है।
  • दो प्रकार की हाइपरसोनिक हथियार प्रणालियों में हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल ( Hypersonic Glide Vehicles- HGV) और हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल (Hypersonic Cruise Missiles) शामिल हैं।
    • ये मिसाइलें लक्ष्य की ओर लॉन्च होने से पूर्व एक पारंपरिक रॉकेट के माध्यम से पहले वायुमंडल में जाती हैं, जबकि हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल अपने लक्ष्य तक पहुँचने से पहले वायु की मदद से उच्च गति इंजन या 'स्क्रैमजेट' द्वारा संचालित होती है।

हाइपरसोनिक मिसाइलों के लाभ:

  • ये दूरी, बचाव या समय के महत्त्वपूर्ण खतरों (जैसे सड़क मोबाइल लॉन्चर) के खिलाफ सुरक्षित, लंबी दूरी के स्ट्राइक विकल्पों में सक्षम है, जब अन्य बल अनुपलब्ध हों, पहुंँच में न हों या पसंद न हों।
  • पारंपरिक हाइपरसोनिक हथियार केवल गतिज ऊर्जा यानी गति से प्राप्त ऊर्जा का उपयोग कठिन लक्ष्यों या भूमिगत लक्ष्यों को नष्ट करने हेतु करते हैं।

क्या हाइपरसोनिक मिसाइलों का पता लगाया जा सकता है?

  • गति, गतिशीलता और उड़ान की कम ऊँचाई के कारण प्रायः हाइपरसोनिक मिसाइलों का पता लगाना काफी चुनौतीपूर्ण होता है।
  • ज़मीन आधारित रडार या स्थलीय रडार हाइपरसोनिक मिसाइलों का पता तब तक नहीं लगा पाते हैं जब तक कि मिसाइल काफी नज़दीक नहीं पहुँच जाती।
    • इस विलंब के कारण प्रायः मिसाइल हमले के उत्तरदाताओं के लिये अपने विकल्पों का आकलन करना और मिसाइल को रोकने का प्रयास करना मुश्किल हो जाता है।

किन देशों के पास हाइपरसोनिक हथियार हैं?

  • जहाँ अमेरिका, रूस और चीन हाइपरसोनिक मिसाइल कार्यक्रमों के उन्नत चरण में हैं, वहीं भारत, फ्राँस, जर्मनी, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया भी हाइपरसोनिक हथियार विकसित कर रहे हैं।

भारतीय हाइपरसोनिक मिसाइल कार्यक्रम 

  • भारत अपने हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल’ (Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle- HSTDV) के हिस्से के रूप में एक स्वदेशी, दोहरी क्षमता वाली (पारंपरिक और साथ ही परमाणु) हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल भी विकसित कर रहा है जिसका जून 2019 और सितंबर 2020 में मैक 6 स्क्रैमजेट के साथ सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है।
  • भारत लगभग 12 हाइपरसोनिक विंड टनल’ (HWT) का संचालन करता है जो 13 मैक तक की गति प्राप्त करने में सक्षम हैं।

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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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