विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक
- 30 Jan 2020
- 8 min read
प्रीलिम्स के लिये:एवनगार्ड मिसाइल, हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक मेन्स के लिये:रक्षा क्षेत्र में तकनीक का योगदान, शस्त्रीकरण प्रतिस्पर्द्धा से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
27 दिसंबर, 2019 को रूस ने अपने नए हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन (Hypersonic Glide Vehicle- HGV) एवनगार्ड (Avangard) को रूसी सेना में शामिल किया।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- रूस का दावा है कि यह परमाणु-सशस्त्र HGV ध्वनि की गति से 20 गुना अधिक तेज़ी से उड़ सकता है और इस तरह के युद्धाभ्यास के लिये सक्षम है जो संभावित प्रतिकूल परिस्थितियों में बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस के लिए अभेद्य है।
- अमेरिका इस तकनीक के संदर्भ में अनुसंधान से विकास के चरण में प्रवेश कर रहा है और चीन ने अक्तूबर 2019 में सैन्य परेड में एक मध्यम दूरी की मिसाइल DF-17 का प्रदर्शन किया। ध्यातव्य है कि अगले कुछ वर्षों में ऐसी क्षमता का समावेश अपरिहार्य होगा।
हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक से संबंधित राष्ट्र को लाभ
- हाइपरसोनिक मिसाइल नवीनतम एवं अत्यंत तीव्र होने के कारण इसे शत्रु देश के बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (Ballistic Missile Defense- BMD) प्रणाली द्वारा ट्रेस (Trace) नहीं किया जा सकता है। यह युद्ध काल में संबंधित राष्ट्र को अजेय बढ़त दिला सकती है।
- इस तकनीक के कारण संबंधित देश की वैश्विक छवि एक सशक्त राष्ट्र के रूप में स्थापित होगी तथा इसके कारण उसे सुरक्षा चुनौतियों से निपटने में सफलता मिलेगी।
हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक से संबंधित वैश्विक चुनौतियाँ
- इस मिसाइल तकनीक को उन देशों की सैन्य क्षमताओं से जोड़ा जा रहा है जिनके पास परमाणु हथियार हैं। ध्यातव्य है कि इस मिसाइल की अत्यंत तीव्र गति के कारण इसे इंटरसेप्ट करना अत्यंत मुश्किल है जिसके कारण यह अन्य परमाणु संपन्न देशों के लिये बड़ी चुनौती है।
- इसके अतिरिक्त इन मिसाइलों के लक्ष्य एवं इनके द्वारा ले जाई जाने वाली युद्ध सामग्री का भी पता नही लगाया जा सकता है।
- दोनों ही मामलों में यह पता लगाना मुश्किल है कि मिसाइल पारंपरिक है या परमाणु संपन्न तथा उसका लक्ष्य क्या है। इस प्रकार अन्य परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्रों के लिये राष्ट्र की सुरक्षा के साथ अपने परमाणु हथियारों की सुरक्षा भी एक बड़ी चुनौती होगी।
- इन चुनौतियों के कारण अन्य देशों को सदैव आक्रमण के लिये तैयार एवं अलर्ट (Alert) रहना पड़ेगा। इस तरह के बदलाव से संकट के क्षणों में गलत धारणा और गलतफहमी संबंधी जोखिम भी बढ़ेंगे।
- हाइपरसोनिक मिसाइल का विकास विश्व में एक रक्षा दुश्चक्र का निर्माण कर सकता है। ध्यातव्य है कि विकसित एवं तकनीक संपन्न राष्ट्र इन मिसाइलों का निर्माण करेंगे तथा इनको इंटरसेप्ट करने की तकनीक भी खोजेंगे। इस प्रकार लगातार इस दिशा में संघर्ष जारी रहेगा। ध्यातव्य है कि अमेरिका अपने बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (Ballistic Missile Defense- BMD) को सशक्त करने, मिसाइल का निर्माण एवं हाइपरसोनिक तकनीक को काउंटर करने के लिये रणनीति तैयार कर रहा है।
- इस तकनीक के विकास के कारण बाह्य अंतरिक्ष में भी युद्ध की संभावना उत्पन्न होगी तथा अंतरिक्ष में हथियारों की प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलेगा।
- इस प्रकार इस तकनीक का प्रवर्तन विश्व को अस्थायी लाभ तो प्रदान करेगा किंतु विश्व एक जटिल जाल में फँस जाएगा।
- भारत को अपनी स्वयं की निवारक आवश्यकताओं का एक कूल-हेडेड मूल्यांकन करने की ज़रूरत है और बुद्धिमानी से अपने रास्ता स्वयं चुनना होगा।
रूसी हाइपरसोनिक मिसाइल (एवनगार्ड) प्रणाली के बारे में
- एवनगार्ड, हाइपरसोनिक श्रेणी का मिसाइल सिस्टम है।
- (हाइपरसोनिक श्रेणी = ध्वनि की गति से 5 गुना या उससे अधिक तेज़)
- एवनगार्ड मिसाइल सिस्टम दो हिस्सों से मिलकर बना है जिसमें हमलावर मिसाइल को एक अन्य बैलिस्टिक मिसाइल पर री-एंट्री बॉडी की तरह ले जाया जाता है।
- यह मिसाइल हमले से पूर्व के अंतिम क्षणों में तेज़ी से अपना मार्ग बदलने में सक्षम है जिसके कारण इसके लक्ष्य का पूर्वानुमान लगाना और इसे निष्क्रिय करना लगभग असंभव है।
- यह मिसाइल सिस्टम 6000 किमी. दूर स्थित लक्ष्य को सफलतापूर्वक नष्ट कर सकता है और लगभग 2000 किग्रा. भार के परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है।
- इसके साथ ही यह मिसाइल 2000°C तक तापमान सहन कर सकती है।
- इस मिसाइल में स्क्रैमजेट इंजन का प्रयोग किया गया है जिससे यह MACH-27 या ध्वनि की गति से 27 गुना अधिक तेज़ गति से हमला करने में सक्षम है।
- औपचारिक अनावरण से पहले इसे “Project 4202” के नाम से भी जाना जाता था।
- मार्च 2018 में रूसी राष्ट्रपति ने घोषणा की थी कि रूस अगली पीढ़ी की मिसाइलों का परीक्षण कर रहा है और एवनगार्ड भी इसी कार्यक्रम का हिस्सा है।
हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक के क्षेत्र में भारत की स्थिति
- विश्व के अन्य राष्ट्रों की भाँति भारत भी अपनी रक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये प्रयासरत है, इसी दिशा में रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) ने भारत की अगली पीढ़ी की हाइपरसोनिक मिसाइलों का निर्माण शुरू कर दिया है।
- इसके लिये DRDO ‘विंड टनल’ में तकनीक का परीक्षण करेगा। ध्यातव्य है कि इसके माध्यम से भारत रक्षा मामलों में आत्मनिर्भरता की स्थिति सुनिश्चित करना चाहता है।
आगे की राह
- वैश्विक स्तर पर परमाणु निःशस्त्रीकरण की दिशा में कदम उठाया जाना चाहिये तथा अंतर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय मुद्दों को वार्ता के माध्यम से हल करने का प्रयास करना चाहिये।
- विकसित एवं विकासशील दोनों प्रकार के देशों को शस्त्रीकरण की होड़ के बजाय आपसी समन्वय से मुद्दों को सुलझाने एवं विकासात्मक रणनीतियों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देशों को स्वयं के मतभेदों को भूलकर परमाणु निःशस्त्रीकरण, जलवायु परिवर्तन, भुखमरी, गरीबी, स्वास्थ्य जैसी समस्याओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है।