डेली न्यूज़ (22 Jul, 2022)



भारत-मालदीव न्यायिक सहयोग

प्रिलिम्स के लिये:

सार्क, एसएएसईसी, ऑपरेशन कैक्टस, मिशन सागर, ग्रेटर मेल कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट।

मेन्स के लिये:

भारत-मालदीव संबंध, भारत और उसके पड़ोसी, द्विपक्षीय समूह एवं समझौते।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने भारत और मालदीव के न्यायिक सेवा आयोग के बीच न्यायिक सहयोग के क्षेत्र में समझौता ज्ञापन (MoU) को मंज़ूरी दी है।

  • न्यायिक सहयोग के क्षेत्र में भारत और अन्य देशों के बीच यह आठवांँ समझौता ज्ञापन है।
  • इससे पहले भारत के विदेश मंत्री ने मालदीव की अपनी दो दिवसीय यात्रा के दौरान नेशनल कॉलेज फॉर पुलिसिंग एंड लॉ एनफोर्समेंट (NCPLE) का उद्घाटन किया था।
    • द्वीपीय राष्ट्र मालदीव के अड्डू शहर में NCPLE भारत की सबसे बड़ी वित्तपोषित परियोजनाओं में से एक है।

समझौते का महत्त्व:

  • यह समझौता ज्ञापन न्यायालयों के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया में सूचना प्रौद्योगिकी की सुविधाओं का लाभ उठाने के लिये एक उपयुक्त मंच प्रदान करेगा और दोनों देशों की आईटी कंपनियों एवं स्टार्टअप के लिये विकास का एक संभावित क्षेत्र साबित हो सकता है।
  • इससे दोनों देशों के बीच अच्छे संबंधों को और गति मिलेगी।
  • यह समझौता न सिर्फ दोनों देशों के बीच न्यायिक एवं अन्य कानूनी क्षेत्रों में ज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान को संभव बनाएगा बल्कि “पड़ोसी पहले नीति” के उद्देश्यों को भी आगे बढ़ाएगा।
  • भारत-मालदीव संबंध का महत्त्व:
    • मालदीव, हिंद महासागर में एक टोल गेट के रूप में है।
      • इस द्वीप शृंखला के दक्षिणी और उत्तरी भाग में दो महत्त्वपूर्ण ‘सी लाइन्स ऑफ कम्युनिकेशन’ (Sea Lines Of Communication- SLOCs) स्थित हैं।
      • ये SLOC पश्चिम एशिया में अदन और होर्मुज़ की खाड़ी तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में मलक्का जलडमरूमध्य के बीच समुद्री व्यापार के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
      • भारत के विदेशी व्यापार का लगभग 50% और इसकी ऊर्जा आयात का 80% हिस्सा अरब सागर में इन SLOCs के माध्यम से होता है।
    • महत्त्वपूर्ण समूहों का हिस्सा: इसके अलावा भारत और मालदीव दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) तथा दक्षिण एशिया उप-क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग (एसएएसईसी) के सदस्य हैं।

भारत-मालदीव संबंध:

  • रक्षा सहयोग: दशकों से भारत ने मालदीव की मांग पर उसे तात्कालिक आपातकालीन सहायता पहुँचाई है।
    • वर्ष 1988 में जब हथियारबंद आतंकवादियों ने राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गय्यूम सरकार के तख्तापलट की कोशिश की, तो भारत ने ऑपरेशन कैक्टस (Operation Cactus) के तहत पैराट्रूपर्स और नेवी जहाज़ों को भेजकर वैध सरकार को पुनः बहाल किया।
    • भारत और मालदीव एकुवेरिन (Ekuverin) नामक एक संयुक्त सैन्य अभ्यास का संचालन करते हैं।
    • कोलंबो सुरक्षा कॉन्क्लेव, जो भारत, श्रीलंका, मालदीव और मॉरीशस का एक समुद्री सुरक्षा समूह है, का उद्देश्य इन हिंद महासागरीय देशों के बीच समुद्री एवं सुरक्षा मामलों पर सहयोग स्थापित करना है।
      • कोलंबो सुरक्षा कॉन्क्लेव के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की पाँचवीं बैठक के दौरान मॉरीशस को कॉन्क्लेव के नए सदस्य के रूप में शामिल किया गया था।
  • आपदा प्रबंधन: वर्ष 2004 में सुनामी और इसके एक दशक बाद मालदीव में पेयजल संकट कुछ अन्य ऐसे मौके थे जब भारत ने उसे आपदा सहायता पहुँचाई।
    • मालदीव, भारत द्वारा अपने सभी पड़ोसी देशों को उपलब्ध कराई जा रही COVID-19 सहायता और वैक्सीन के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक रहा है।
    • COVID-19 महामारी के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के अवरुद्ध रहने के दौरान भी भारत ने मिशन सागर (SAGAR) के तहत मालदीव को महत्त्वपूर्ण वस्तुओं की आपूर्ति जारी रखी।
  • नागरिक संपर्क: मालदीव के छात्र भारत के शैक्षिक संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करते हैं और मालदीव के मरीज़ भारत द्वारा विस्तारित उदार वीज़ा-मुक्त व्यवस्था का लाभ लेते हुए उच्च कोटि की स्वास्थ्य सेवाएँ प्राप्त करने के लिये भारत आते हैं।
  • आर्थिक सहयोग: पर्यटन, मालदीव की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। वर्तमान में मालदीव कुछ भारतीयों के लिये एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और कई अन्य भारतीय वहाँ रोज़गार के लिये जाते हैं।
    • अगस्त 2021 में एक भारतीय कंपनी, ‘एफकॉन’ (Afcons) ने मालदीव में अब तक की सबसे बड़ी बुनियादी अवसंरचना परियोजना- ग्रेटर मेल कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) हेतु एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये थे।

भारत-मालदीव संबंधों में चुनौतियाँ और तनाव: 

  • राजनीतिक अस्थिरता: भारत की सुरक्षा और विकास पर मालदीव की राजनीतिक अस्थिरता का संभावित प्रभाव, एक बड़ी चिंता का विषय है।
    • गौरतलब है कि फरवरी 2015 में आतंकवाद के आरोपों में मालदीव के विपक्षी नेता मोहम्मद नशीद की गिरफ्तारी और इसके बाद के राजनीतिक संकट ने भारत की नेबरहुड पालिसी के लिये वास्तव में एक कूटनीतिक संकट खड़ा कर दिया था।
  • कट्टरपंथ: मालदीव में पिछले लगभग एक दशक में इस्लामिक स्टेट (IS) जैसे आतंकवादी समूहों और पाकिस्तान स्थित मदरसों तथा जिहादी समूहों की ओर झुकाव वाले नागरिकों की संख्या में वृद्धि हुई है।
    • यह पाकिस्तानी आतंकी समूहों द्वारा भारत और भारतीय हितों के खिलाफ आतंकवादी हमलों के लिये मालदीव के सुदूर द्वीपों को एक लॉन्च पैड के रूप में उपयोग करने की संभावना को जन्म देता है।
  • चीनी पक्ष: हाल के वर्षों में भारत के पड़ोस में चीन के सामरिक दखल में वृद्धि देखने को मिली है। मालदीव दक्षिण एशिया में चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ (String of Pearls) रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण घटक बनकर उभरा है।
    • चीन-भारत संबंधों की अनिश्चितता को देखते हुए मालदीव में चीन की रणनीतिक उपस्थिति चिंता का विषय है।
    • इसके अलावा मालदीव ने भारत के साथ सौदेबाज़ी के लिये 'चाइना कार्ड' का उपयोग शुरू कर दिया है।

आगे की राह

  • यद्यपि भारत मालदीव का एक महत्त्वपूर्ण भागीदार है, किंतु भारत को अपनी स्थिति पर संतुष्ट नहीं होना चाहिये और मालदीव के विकास के प्रति अधिक ध्यान देना चाहिये।
  • दक्षिण एशिया और आसपास की समुद्री सीमाओं में क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये भारत को हिंद-प्रशांत सुरक्षा क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिये।
    • इंडो-पैसिफिक सिक्योरिटी स्पेस को भारत के समुद्री प्रभाव क्षेत्र में अतिरिक्त-क्षेत्रीय शक्तियों (विशेषकर चीन की) की वृद्धि की प्रतिक्रिया के रूप में विकसित किया गया है।
  • वर्तमान में 'इंडिया आउट' अभियान को सीमित आबादी का समर्थन प्राप्त है, लेकिन इसे भारत सरकार द्वारा समर्थन प्रदान नहीं किया जा सकता है।
    • यदि 'इंडिया आउट' के समर्थकों द्वारा उठाए गए मुद्दों को सावधानी से नहीं संभाला जाता है और भारत, मालदीव के लोगों को द्वीप राष्ट्र पर परियोजनाओं के पीछे अपने इरादों के बारे में प्रभावी ढंग से नहीं समझाता है, तो यह अभियान मालदीव में घरेलू राजनीतिक स्थिति को बदल सकता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


वामपंथी उग्रवाद (LWE)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान गृह मंत्रालय ने भारत में वामपंथी उग्रवाद से संबंधित आँकड़े उपलब्ध कराए हैं।

प्रमुख डेटा तथ्य:

  • वर्ष 2009 और 2021 के बीच देश में नक्सली हिंसा की घटनाओं में 77 प्रतिशत की कमी आई है जबकि छत्तीसगढ़ में पिछले तीन वर्षों में माओवादी हिंसा के कारण दोगुने से अधिक सुरक्षा बल के जवान मारे गए।
  • इसी तरह परिणामी मौतें (नागरिक + सुरक्षा बल) वर्ष 2010 के 1,005 के सर्वकालिक उच्च स्तर से 85% घटकर वर्ष 2021 में 147 हो गई हैं।
  • वर्ष 2021 में देश में कुल सुरक्षा कर्मियों की मौत के मामले में 90 प्रतिशत (50 में से 45) मौतें छत्तीसगढ़ में हुई थीं। झारखंड एकमात्र राज्य है जिसने वर्ष 2021 में छत्तीसगढ़ के अलावा सुरक्षा कर्मियों की मौत (5) दर्ज की।
  • हिंसा के भौगोलिक प्रसार में कमी आई है क्योंकि केवल 46 ज़िलों ने वर्ष 2021 में वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसा की सूचना दी, जबकि वर्ष 2010 में 96 ज़िलों में हिंसा हुई थी।
    • इसके कारण सुरक्षा संबंधी व्यय (SRE) योजना के अंतर्गत आने वाले ज़िलों की संख्या वर्ष 2018 में 126 से घटकर 90 और वर्ष 2021 में 70 हो गई।
    • इसी तरह LWE हिंसा में लगभग 90 प्रतिशत योगदान वाले ज़िलों की संख्या, जिसे सबसे अधिक LWE प्रभावित ज़िलों' के रूप में वर्गीकृत किया गया है, वर्ष 2018 में 35 से घटकर 30 और वर्ष 2021 में 25 हो गई।

LWE

वामपंथी उग्रवाद:

  • परिचय:
    • वामपंथी उग्रवादी संगठन वे समूह हैं जो हिंसक क्रांति के माध्यम से परिवर्तन लाने का प्रयास करते हैं। वे लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ हैं और ज़मीनी स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को नष्ट करने के लिये हिंसा का इस्तेमाल करते हैं।
    • ये समूह देश के सबसे कम विकसित क्षेत्रों में विकास प्रक्रियाओं को रोकते हैं और लोगों को वर्तमान घटनाओं से अनभिज्ञ रखकर उन्हें गुमराह करने का प्रयास करते हैं।
  • कारण:
    • जनजातीय असंतोष:
      • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 आदिवासियों, जो अपने जीवन यापन के लिये वनोपज पर निर्भर हैं, को पेड़ की शाखा काटने से भी वंचित करते हैं।
      • विकास परियोजनाओं, खनन कार्यों और अन्य कारणों से नक्सल प्रभावित राज्यों में जनजातीय आबादी का भारी विस्थापन।
    • माओवादियों के लिये आसान लक्ष्य: ऐसे लोग जिनके पास जीवन यापन करने का कोई स्रोत नहीं है, उन्हें माओवादी, नक्सलवादी गतिविधियों में शामिल करते हैं
      • माओवादी ऐसे लोगों को हथियार, गोला-बारूद और पैसा मुहैया कराते हैं।
    • देश की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में अंतराल।
      • सरकार अपनी सफलता को नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में किये गए विकास के बजाय हिंसक हमलों की संख्या के आधार पर माप रही है।
      • नक्सलियों से लड़ने के लिये मज़बूत तकनीकी खुफिया जानकारी का अभाव।
      • उदाहरण के लिये ढांँचागत समस्याएँ, कुछ गाँव अभी तक किसी भी संचार नेटवर्क से ठीक तरह से नहीं जुड़े हैं।
    • प्रशासन की ओर से कोई अनुवर्ती कार्रवाई नहीं: यह देखा जाता है कि पुलिस द्वारा किसी क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के बाद भी, प्रशासन उस क्षेत्र के लोगों को आवश्यक सेवाएंँ प्रदान करने में विफल रहता है।
    • नक्सलवाद से एक सामाजिक मुद्दे के रूप में या एक सुरक्षा खतरे के रूप में निपटने पर भ्रम।
    • राज्य सरकारें नक्सलवाद को केंद्र सरकार का मुद्दा मान रही हैं और इस तरह इससे लड़ने के लिये कोई पहल नहीं कर रही हैं।

वामपंथी उग्रवाद को नियंत्रित करने के लिये सरकार की पहल:

  • समाधान (SAMADHAN) सिद्धांत: यह वामपंथी उग्रवाद की समस्या का एकमात्र समाधान है। इसमें विभिन्न स्तरों पर तैयार की गई अल्पकालिक नीति से लेकर दीर्घकालिक नीति तक सरकार की पूरी रणनीति शामिल है। समाधान का अर्थ है-
    • S- स्मार्ट लीडरशिप।
    • A- आक्रामक रणनीति।
    • M- प्रेरणा और प्रशिक्षण।
    • A- एक्शनेबल इंटेलिजेंस।
    • D- डैशबोर्ड आधारित मुख्य प्रदर्शन संकेतक (KPIs) और मुख्य परिणाम क्षेत्र (KRAs)
    • H- हार्नेसिंग टेक्नोलॉजी।
    • A- प्रत्येक थिएटर/नाटकशाला हेतु कार्ययोजना।
    • N- वित्तपोषण तक पहुंँच नहीं।
  • वामपंथी उग्रवाद का मुकाबला करने के लिये एक बहुआयामी दृष्टिकोण के रूप में वर्ष 2015 में राष्ट्रीय रणनीति बनाई गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य अन्य बातों के साथ-साथ स्थानीय आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा और उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना था।
  • एलडब्ल्यूई संगठनों के खतरे को रोकने के लिये सरकार द्वारा खुफिया साझाकरण और एक अलग 66वीं भारतीय आरक्षित बटालियन (IRB) का गठन किया गया था।
  • 2015 में राष्ट्रीय नीति और कार्ययोजना: इसमें सुरक्षा उपायों, विकास पहलों और स्थानीय समुदायों के अधिकारों को सुनिश्चित करने वाले बहु-आयामी दृष्टिकोण शामिल हैं।
    • गृह मंत्रालय (MHA) केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) के बटालियनों की तैनाती, हेलीकॉप्टरों और यूएवी तथा भारतीय रिज़र्व बटालियनों (IRBs)/विशेष भारत रिज़र्व बटालियनों (SIRBs) की मंज़ूरी के माध्यम से राज्य सरकारों को व्यापक समर्थन प्रदान कर रहा है।
    • राज्य पुलिस के आधुनिकीकरण और प्रशिक्षण हेतु पुलिस बल के आधुनिकीकरण (Modernization of Police Force-MPF), सुरक्षा संबंधी व्यय (Security Related Expenditure-SRE) व विशेष बुनियादी ढांँचा योजनाओं (Special Infrastructure Scheme-SIS) के तहत धन उपलब्ध कराया जाता है।
    • सड़कों के निर्माण, मोबाइल टावरों की स्थापना, कौशल विकास, बैंकों और डाकघरों के नेटवर्क में सुधार, स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुविधाओं के लिये कई विकास पहलें लागू की गई हैं।
    • विशेष केंद्रीय सहायता (SCA) योजना के तहत अधिकांश वामपंथी उग्रवाद प्रभावित (LWE) ज़िलों को विकास के लिये धन भी प्रदान किया जाता है।
  • ग्रेहाउंड्स: इसे वर्ष 1989 में विशिष्ट नक्सल विरोधी बल के रूप में स्थापित किया गया था।
  • ऑपरेशन ग्रीन हंट: इसे वर्ष 2009-10 में शुरू किया गया था और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की भारी तैनाती की गई थी।

आगे की राह:

  • नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के घने जंगलों में सशस्त्र समूहों का पता लगाने के लिये सरकार को नवीन उपकरणों की आवश्यकता है।
  • स्थानीय पुलिस को क्षेत्र की भाषा का ज्ञान और स्थलाकृतिक सरंचना की जानकारी होती है, अतः वे सशस्त्र बलों की अपेक्षा बेहतर ढंग से नक्सलवाद से लड़ सकते हैं।
    • आंध्र पुलिस ने राज्य में नक्सलवाद से निपटने के लिये 'ग्रेहाउंड' विशेष बल तैनात किये हैं।
  • सरकार को दो प्रमुख बातें सुनिश्चित करने की ज़रूरत है; शांतिप्रिय लोगों की सुरक्षा और नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों का विकास।
  • राज्य सरकारों को यह समझने की ज़रूरत है कि नक्सलवाद उनकी भी समस्या है और केवल वे ही इससे प्रभावी ढंग से निपट सकती हैं। ज़रूरत पड़ने पर उन्हें केंद्र सरकार से मदद मिल सकती है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:

Q. पिछड़े क्षेत्रों में बड़े उद्योगों का विकास करने के सरकार के लगातार अभियानों का परिणाम जनजातीय जनता और किसानों, जिनको अनेक विस्थापनों का सामना करना पड़ता है, का विलगन (अलग करना) है। मल्कानगिरि और नक्सलबाड़ी पर ध्यान केंद्रित करते हुए वामपंथी उग्रवादी विचारधारा से प्रभावित नागरिकों को सामाजिक और आर्थिक संवृद्धि की मुख्यधारा में फिर से लाने की सुधारक रणनीतियों पर चर्चा कीजिये। (2015, मुख्य परीक्षा)

Q. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 244 अनुसूचित क्षेत्रों और आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है। वामपंथी उग्रवाद के विकास पर पाँचवीं अनुसूची के प्रावधानों के गैर-कार्यान्वयन के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। (2018, मुख्य परीक्षा)

Q. भारत के पूर्वी हिस्से में वामपंथी उग्रवाद के निर्धारक क्या हैं? प्रभावित क्षेत्रों में खतरे का मुकाबला करने के लिये भारत सरकार, नागरिक प्रशासन और सुरक्षा बलों को क्या रणनीति अपनानी चाहिये? (2020, मुख्य परीक्षा)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव अर्थव्यवस्था

प्रिलिम्स के लिये:

जैव अर्थव्यवस्था, भारत की जैव अर्थव्यवस्था रिपोर्ट 2022

मेन्स के लिये:

जैव अर्थव्यवस्था और इसके लाभ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) ने भारत की जैव अर्थव्यवस्था रिपोर्ट,  2022 जारी की है।

  • रिपोर्ट जारी करने के दौरान सरकार ने उत्तर-पूर्व क्षेत्र (BIG-NER) के लिये एक विशेष बायोटेक इग्निशन ग्रांट कॉल की शुरूआत की और बायोटेक समाधान विकसित करने हेतु उत्तर-पूर्व क्षेत्र के 25 स्टार्टअप और उद्यमियों के लिये 50 लाख रुप तक की वित्तीय सहायता की घोषणा की।
  • BIRAC जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा स्थापित एक गैर-लाभकारी (धारा 8, अनुसूची B) सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम है।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:

  • भारत की जैव-अर्थव्यवस्था के वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2030 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होने की संभावना है।
  • वर्ष 2021 में देश की जैव अर्थव्यवस्था 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गई है, जो कि वर्ष 2020 के2 बिलियन अमेरीकी डॉलर से 14.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्शा रही है।
  • वर्ष 2021 में हर दिन औसतन कम-से-कम तीन बायोटेक स्टार्टअप शामिल किये गए (वर्ष 2021 में कुल 1,128 बायोटेक स्टार्टअप स्थापित किये गए) और उद्योग ने अनुसंधान एवं विकास खर्च में 1 बिलियन अमेरीकी डॉलर को पार कर लिया।
  • भारत के पास अमेरिका के बाहर अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन(USFDA) द्वारा अनुमोदित विनिर्माण संयंत्रों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या है।
  • टीकाकरण
    • भारत ने प्रतिदिन कोविड-19 टीकों की लगभग 4 मिलियन टीके दिये(वर्ष 2021 में दी गई कुल 1.45 बिलियन टीके)।
  • कोविड-19
    • देश ने वर्ष 2021 में हर दिन 1.3 मिलियन कोविड -19 परीक्षण किये (कुल 506.7 मिलियन परीक्षण)।

जैव अर्थव्यवस्था (Bioeconomy):

  • परिचय:
    • संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, जैव अर्थव्यवस्था को जैविक संसाधनों के उत्पादन, उपयोग और संरक्षण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें संबंधित ज्ञान, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार, सूचना, उत्पाद, प्रक्रियाएँ प्रदान करना शामिल है ताकि स्थायी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के उद्देश्य से सभी आर्थिक क्षेत्रों को जानकारी, उत्पाद, प्रक्रियाओं और सेवाएँ प्रदान की जा सकें।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
    • यूरोपीय संघ (EU) और आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) द्वारा नए उत्पादों तथा बाज़ार को विकसित करने के लिये जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने हेतु अपनाए गए ढाँचे के बाद 21वीं सदी के पहले दशक में जैव अर्थव्यवस्था शब्द लोकप्रिय हो गया।
  • उदाहरण:
    • खाद्य प्रणालियाँ जैव-अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण स्थान पर स्थित हैं। इन प्रणालियों में शामिल हैं:
      • संधारणीय कृषि
      • संधारणीय मत्स्य
      • वानिकी और जलकृषि
      • खाद्य और चारा निर्माण
    • जैव आधारित उत्पाद:
      • बायोप्लास्टिक्स
      • बायोडिग्रेडेबल कपड़े

चक्रीय जैव अर्थव्यवस्था:

  • जैव-अर्थव्यवस्था का उद्देश्य सतत् विकास और चक्रीय अर्थव्यवस्था दोनों को बढ़ावा देना है। विशेष रूप से चक्रीय अर्थव्यवस्था के पुन: उपयोग,मरम्मत और पुनर्चक्रण का सिद्धांत जैव-अर्थव्यवस्था का मूलभूत हिस्सा है।
  • पुन: उपयोग, मरम्मत और पुनर्चक्रण के माध्यम से अपशिष्ट की कुल मात्रा और उसके प्रभाव को कम किया जाता है। यह ऊर्जा की भी बचत करता है तथा वायु व जल प्रदूषण को कम करता है, इस प्रकार पर्यावरण, जलवायु एवं जैवविविधता की क्षति को रोकने में मदद करता है।

bioeconomy

जैव अर्थव्यवस्था में भारत की स्थिति:

  • ऐसे कई क्षेत्र हैं जो भारत के जैव अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान दे रहे हैं जैसे,
    • जैव उद्योग, क्योंकि इस क्षेत्र को प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत और भारत के वर्ष 2047 तक "ऊर्जा आत्मनिर्भर" बनने के दृष्टिकोण से प्रोत्साहन मिला है।
      • इसके अलावा भारत सरकार ने जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति में संशोधनों को मंज़ूरी दे दी है और जैव ईंधन उत्पादन बढ़ाने और अप्रैल 2023 से 20% इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की शुरुआत का निर्णय लिया है।
    • अन्य क्षेत्र जैसे- जैव-कृषि जिसमें बीटी कॉटन, कीटनाशक, समुद्री जैव-तकनीक और पशु जैव-तकनीक में जैव अर्थव्यवस्था को वर्ष 2025 तक 5 बिलियन डॉलर से 20 बिलियन डॉलर के योगदान के साथ दोगुना करने की क्षमता है।
    • महामारी से पहले भारत विभिन्न शोध अध्ययनों के अनुसार मात्रा के हिसाब से दूसरा सबसे बड़ा वैक्सीन निर्यातक था।

जैव अर्थव्यवस्था से संबंधित भारतीय पहलें:

  • बायोफार्मा के लिये:
    • नेशनल बायोफार्मा मिशन, 'इनोवेट इंडिया' 2017, जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) का 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर का कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य बायोफार्मा में उद्यमशीलता और स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा देने के लिये उद्योग एवं शिक्षा जगत को एक साथ लाना है।
  • स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिये:
    • विश्व स्तरीय सुविधाओं के साथ पूरे भारत में 35 बायो इन्क्यूबेटर स्थापित किये गए हैं।
    • DBT और BIRAC द्वारा मिशन इनोवेशन के तहत पहला इंटरनेशनल इन्क्यूबेटर- क्लीन एनर्जी इंटरनेशनल इन्क्यूबेटर स्थापित किया गया है।
    • 23 भाग लेने वाले यूरोपीय संघ के देशों के स्टार्टअप संभावित रूप से भारत में आ सकते हैं और इनक्यूबेट कर सकते हैं, इसी तरह इस इनक्यूबेटर से स्टार्टअप वैश्विक अवसरों तक पहुँच की सुविधा के लिये भागीदार देशों में जा सकते हैं। विभाग 4 बायो-क्लस्टर (NCR, कल्याणी, बंगलूरू और पुणे) का समर्थन कर रहा है।
  • जैव अर्थव्यवस्था पर राष्ट्रीय मिशन: जैव संसाधनों का उपयोग करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के प्रयासों के बीच वर्ष 2016 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत जैव-संसाधन एवं सतत् विकास संस्थान द्वारा 'जैव अर्थव्यवस्था पर राष्ट्रीय मिशन' शुरू किया गया था।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारत नवाचार सूचकांक 2021: नीति आयोग

प्रिलिम्स के लिये:

नीति आयोग, इंडिया इनोवेशन इंडेक्स।

मेन्स के लिये:

भारत नवाचार सूचकांक, इसकी सिफारिशें।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति (National Institution for Transforming India-NITI) आयोग द्वारा इंडिया इनोवेशन इंडेक्स रिपोर्ट, 2021 जारी की गई, जिसमें कर्नाटक ने प्रमुख राज्यों की श्रेणी में अपना शीर्ष स्थान बरकरार रखा है।

  • यह रिपोर्ट का तीसरा संस्करण है, जो वैश्विक नवाचार सूचकांक 2021 के ढाँचे को रेखांकित करके देश में नवाचार विश्लेषण के दायरे पर प्रकाश डालता है।
  • इसमें अब संकेतकों की संख्या 36 (इंडिया इनोवेशन इंडेक्स 2020 में) से बढ़कर 66 (इंडिया इनोवेशन इंडेक्स 2021 में) हो गई है।

भारत नवाचार सूचकांक:

  • परिचय:
    • यह देश के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के मूल्यांकन और विकास हेतु व्यापक उपकरण है।
    • यह राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को उनके बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा विकसित करने के लिये उनके नवाचार प्रदर्शन पर रैंक प्रदान करता है।
  • शामिल संस्थाएँ:
    • प्रतिस्पर्द्धात्मकता संस्थान के साथ नीति आयोग।
  • प्रयुक्त संकेतक:
    • सूचकांक में 7 स्तंभ हैं,  जिनमें से पाँच 'सक्षम' स्तंभ इनपुट को मापते हैं और दो 'प्रदर्शन' स्तंभ आउटपुट को मापते हैं।
    • सर्वेक्षण में जिन संकेतकों का उपयोग किया जाता है उनमें शिक्षा का स्तर,  गुणवत्ता आदि जैसे मानदंड  शामिल हैं:
      • पीएचडी छात्रों की संख्या और ज्ञान-गहन रोज़गार।
      • इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में नामांकन तथा अत्यधिक कुशल पेशेवरों की संख्या।
      • अनुसंधान और विकास गतिविधियों (R&D) में निवेश एवं दायर पेटेंट तथा ट्रेडमार्क आवेदनों की संख्या।
      • इंटरनेट सब्सक्राइबर।
      • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का अंतर्वाह, कारोबारी माहौल और सुरक्षा एवं कानूनी प्रावधान।

India-Innovation-Index

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:

  • श्रेणियाँ:
    • इनोवेशन इंडेक्स को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है- प्रमुख राज्य, केंद्रशासित प्रदेश और पहाड़ी एवं उत्तर-पूर्व के राज्य।
  • प्रमुख राज्य:
    • शीर्ष राज्य: कर्नाटक 18.05 के स्कोर के साथ शीर्ष पर रहा और उसके बाद तेलंगाना तथा हरियाणा का स्थान रहा।
      • कर्नाटक की सफलता का श्रेय प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने में उसके उच्च स्तरीय प्रदर्शन और बड़ी संख्या में उद्यम पूंजी सौदों को दिया जा सकता है।
    • खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य: बिहार, ओडिशा और छत्तीसगढ़ ने सूचकांक में सबसे कम स्कोर किया, जिसने उन्हें "प्रमुख राज्यों" की श्रेणी में सबसे नीचे रखा।
      • छत्तीसगढ़ को 10.97 अंक के साथ अंतिम स्थान मिला है।
  • पहाड़ी और उत्तर-पूर्वी राज्य:
    • इस श्रेणी में मणिपुर सबसे आगे है जिसके बाद उत्तराखंड और मेघालय का स्थान है।
      • नगालैंड अंतिम (10वें) स्थान पर रहा।
  • केंद्रशासित प्रदेश/छोटे राज्य:
    • चंडीगढ़ 27.88 अंक के साथ शीर्ष प्रदर्शन करने वाला प्रदेश रहा है, जिसके बाद दिल्ली, अंडमान और निकोबार का स्थान है।
      • लद्दाख अंतिम (9वें) स्थान पर रहा।
  • चुनौतियाँ:
    • औसतन देश ने ज्ञान कार्यकर्त्ता स्तंभ (Knowledge Worker Pillar) में उतना अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है, जितना मानव पूंजी स्तंभ (Human Capital Pillar) में किया है।
    • मानव पूंजी पर होने वाला खर्च देश में उस ज्ञान का आधार बनाने में असमर्थ रहा है।
    • नवोन्मेष विनिर्माण क्षेत्र से संबंधित समस्याओं और मिसिंग मिडल के कारण विषम है।
      • मिसिंग मिडल हजारों लोगों को रोज़गार देने के लिये बहुत सारे छोटे, अनौपचारिक उद्यम और बहुत कम बड़े, औपचारिक उद्यम हैं।

सिफारिश:

  • GDERD (अनुसंधान और विकास पर सकल घरेलू व्यय) में काफी सुधार की आवश्यकता है, जो भारत में 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएग।
    • GDERD बढ़ने से अनुसंधान एवं विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा मिलता है तथा उद्योग की मांँग और देश अपनी शिक्षा प्रणालियों के माध्यम से जो उत्पादन करता है, उसके बीच की खाई को कम करता है।
    • GDERD पर कम खर्च करने वाले देश लंबे समय में अपनी मानव पूंजी को बनाए रखने में विफल रहते हैं और नवाचार करने की क्षमता मानव पूंजी की गुणवत्ता पर निर्भर करती है; सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के प्रतिशत के रूप में भारत का GDERD लगभग 0.7% था।
  • निजी क्षेत्र को अनुसंधान एवं विकास में तेज़ी लाने की ज़रूरत है, सार्वजनिक व्यय कुछ हद तक उत्पादक है; एक बार जब विकास एक प्रक्षेपवक्र का अनुसरण करता है, तो यह वांछनीय है कि अनुसंधान एवं विकास को ज़्यादातर निजी क्षेत्र द्वारा संचालित किया जाए।

स्रोत : पी.आई.बी.


राइट-टू-रिपेयर

प्रिलिम्स के लिये:

राइट-टू-रिपेयर, ई-कचरा, मरम्मत के अधिकार पर समिति

मेन्स के लिये:

ई-कचरे का पर्यावरणीय प्रभाव, मरम्मत के अधिकार का दायरा, बढ़ती एकाधिकार वाली कंपनियों का मुकाबला कैसे करें, सरकार की पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उपभोक्ता मामलों के विभाग ने घोषणा की कि उसने राइट-टू-रिपेयरपर व्यापक ढाँचा विकसित करने के लिये अतिरिक्त सचिव निधि खरे की अध्यक्षता में समिति का गठन किया है।

राइट-टू-रिपेयर:

  • परिचय:
    • ‘राइट-टू-रिपेयर’ एक ऐसे अधिकार अथवा कानून को संदर्भित करता है, जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को अपने स्वयं के उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत करना और उन्हें संशोधित करने की अनुमति देना है, जहाँ अन्यथा ऐसे उपकरणों के निर्माता उपभोक्ताओं को केवल उनके द्वारा प्रस्तुत सेवाओं के उपयोग करने की अनुमति देते हैं।
      • जब ग्राहक कोई उत्पाद खरीदते हैं, तो यह स्वाभाविक है कि उनके पास उस वस्तु पर पूर्ण स्वामित्व हो जाता है, जिसके लिये उपभोक्ताओं को मरम्मत हेतु निर्माताओं द्वारा आसानी से और उचित लागत पर उत्पाद की मरम्मत और संशोधन करने में सक्षम होना चाहिये।
    • ‘राइट-टू-रिपेयर’ का विचार मूल रूप से अमेरिका से उत्पन्न हुआ था, जहाँ ‘मोटर व्हीकल ओनर्स राइट-टू-रिपेयर एक्ट, 2012’ किसी भी व्यक्ति को वाहनों की मरम्मत करने में सक्षम बनाने के लिये वाहन निर्माताओं के लिये सभी आवश्यक दस्तावेज़ और जानकारी प्रदान करना अनिवार्य बनाता है।
  • प्रस्तावित ढाँचा:
    • इस नियामक ढांचे के तहत निर्माताओं के लिये अपने उत्पाद विवरण को ग्राहकों के साथ साझा करना अनिवार्य होगा ताकि वे मूल निर्माताओं पर निर्भर रहने के बजाय स्वयं या तीसरे पक्ष द्वारा उनकी मरम्मत करा सकें।
    • कानून का उद्देश्य मूल उपकरण निर्माताओं (OEMs) और तीसरे पक्ष के खरीदारों तथा विक्रेताओं के बीच व्यापार में सामंजस्य स्थापित करने में मदद करना है, साथ ही इस प्रकार नए रोज़गार का सृजन भी करना है।
  • वैश्विक स्थिति:
    • अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ सहित दुनिया भर के कई देशों में मरम्मत के अधिकार को मान्यता दी गई है।
    • अमेरिका में संघीय व्यापार आयोग ने निर्माताओं को अनुचित प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं को दूर करने का निर्देश दिया है और उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिये कहा है कि उपभोक्ता स्वयं या किसी तीसरे पक्ष की एजेंसी द्वारा मरम्मत करा सकें।
  • संभावित लाभ:
    • यह छोटी मरम्मत की दुकानों के लिये व्यापार को बढ़ावा देने में मदद करेगा, जो स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
    • यह इलेक्ट्रिक कचरे (e-waste) के विशाल ढेर को कम करने में मदद करेगा।
    • इससे उपभोक्ताओं का पैसा बचेगा।
    • यह उपकरणों के जीवन काल, रखरखाव, पुन: उपयोग, उन्नयन, पुनर्चक्रण और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करके चक्रीय अर्थव्यवस्था के उद्देश्यों में योगदान देगा।
  • कार्यान्वयन हेतु प्रस्तावित क्षेत्र:
    • कृषि उपकरण
    • मोबाइल फोन/टैबलेट
    • उपभोक्ता के लिये टिकाऊ वस्तुएँ
    • ऑटोमोबाइल/ऑटोमोबाइल उपकरण

राइट-टू-रिपेयर की आवश्यकता:

  • आमतौर पर निर्माता अपने डिज़ाइन सहित स्पेयर पार्ट्स पर मालिकाना नियंत्रण बनाए रखते हैं, रिपेयर प्रक्रियाओं पर इस तरह का एकाधिकार ग्राहक के "चुनने के अधिकार" का उल्लंघन करता है।
  • कई उत्पादों के वारंटी कार्ड में उल्लेख किया जाता है कि गैर-मान्यता प्राप्त संगठनों रिपेयर कराने की स्थिति में ग्राहक वारंटी लाभ से वंचित हो जाएंगे।
  • कंपनियाँ मैनुअल के प्रकाशन से भी बचती हैं जो उपयोगकर्त्ताओं को आसानी से रिपेयर करने में मदद कर सकती हैं।
  • तकनीकी सेवा/उत्पाद कंपनियाँ मैनुअल, स्कीमैटिक्स और सॉफ्टवेयर अपडेट के लिये पूर्ण ज्ञान एवं पहुँच प्रदान नहीं करती हैं।
  • निर्माता "नियोजित अप्रचलन" की संस्कृति को प्रोत्साहित कर रहे हैं।
    • यह एक ऐसी प्रणाली है जिसके तहत किसी भी गैजेट का डिज़ाइन ऐसा होता है कि वह एक विशेष समय तक ही रहता है और उस विशेष अवधि के बाद उसे अनिवार्य रूप से बदलना पड़ता है।
    • एक उत्पाद जिसकी मरम्मत नहीं की जा सकती है या नियोजित अप्रचलन के अंतर्गत आता है अर्थात।
    • कृत्रिम रूप से सीमित उपयोगी जीवन वाले उत्पाद को डिजाइन करना
    • न केवल ई-कचरा बन जाता है बल्कि उपभोक्ताओं को किसी मरम्मत के अभाव में नए उत्पाद खरीदने के लिए मजबूर करता है ताकि इसका पुन: उपयोग किया जा सके।
    • एक उत्पाद जिसकी मरम्मत नहीं की जा सकती है या नियोजित अप्रचलन के तहत आता है यानी कृत्रिम रूप से सीमित उजीवनकाल के लिये उपयोगी उत्पाद को डिज़ाइन करना न केवल ई-कचरा को बढ़ाएगा बल्कि उपभोक्ताओं को रिपेयर करने की अपेक्षा नए उत्पाद खरीदने के लिये मज़बूर करेगा।
  • भारत ने हाल ही में LiFE आंदोलन (पर्यावरण के लिये जीवन शैली) की अवधारणा शुरू की है।
    • इसमें विभिन्न उपभोक्ता उत्पादों के पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण की अवधारणा शामिल है।
    • राइट-टू-रिपेयर, लाइफ मूवमेंट के तहत लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करेगा।

आगे की राह

  • नैदानिक उपकरणों सहित सेवा संबंधी उपकरणों को व्यक्तियों सहित तीसरे पक्ष को उपलब्ध कराए जाने चाहिये ताकि मामूली गड़बड़ियों के मामले में उत्पाद की रिपेयरिंग की जा सके।
    • ‘राइट-टू-रिपेयर’ कानून भारत जैसे देश में विशेष रूप से मूल्यवान हो सकता है, जहाँ सेवा नेटवर्क अक्सर असमान (Spotty) होते हैं और अधिकृत कार्यशालाएँ कम होने के साथ ही दूर के इलाकों में होती हैं।
      भारत मेंअनौपचारिक रिपेयरिंग क्षेत्र की स्थिति मज़बूत है।
    • लेकिन अगर इस तरह के कानून को अपनाया जाता है तो मरम्मत और रखरखाव सेवाओं की गुणवत्ता में काफी सुधार हो सकता है।

स्रोत: द हिंदू