विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर
प्रिलिम्स के लिये:क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर, साइबर अटैक, एनपीसीआई, आईटी अधिनियम 2000 मेन्स के लिये:क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर, साइबर सुरक्षा, साइबर युद्ध और साइबर कल्याण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (MeitY) ने आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक और भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) के सूचना प्रौद्योगिकी (IT) संसाधनों को ‘महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना/क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर ‘(Critical Information Infrastructure-CII) के रूप में घोषित किया है।
प्रमुख बिंदु
क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर:
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना को एक कंप्यूटर संसाधन के रूप में परिभाषित करता है, जिसकी अक्षमता या विनाश का राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, सार्वजनिक स्वास्थ्य या सुरक्षा पर दुर्बल प्रभाव पड़ेगा।
- सरकार, 2000 के आईटी अधिनियम के तहत, उस डिजिटल संपत्ति की रक्षा के लिये किसी भी डेटा, डेटाबेस, आईटी नेटवर्क या संचार बुनियादी ढांँचे को CII के रूप में घोषित करने की शक्ति रखती है।
- कोई भी व्यक्ति जो कानून के उल्लंघन में किसी संरक्षित प्रणाली तक पहुंँच सुरक्षित करता है या सुरक्षित होने का प्रयास करता है, उसे 10 साल तक की जेल की सजा हो सकती है।
CII के वर्गीकरण और संरक्षण की आवश्यकता:
- वैश्विक अभ्यास: दुनिया भर की सरकारें अपने महत्त्वपूर्ण सूचना बुनियादी ढांँचे की रक्षा के लिये तत्परता से आगे बढ़ रही हैं।
- अनगिनत अतिमहत्त्वपूर्ण अभियानों की रीढ़: आईटी संसाधन, देश के बुनियादी ढांँचे में अनगिनत महत्त्वपूर्ण संचालन की रीढ़ हैं और उनकी परस्परता को देखते हुए, व्यवधानों का सभी क्षेत्रों में व्यापक प्रभाव हो सकता है।
- आईटी की विफलता अन्य क्षेत्रों के लिये प्रतिकूल: पावर ग्रिड में सूचना प्रौद्योगिकी की विफलता के कारण स्वास्थ्य सेवा, बैंकिंग सेवाओं आदि जैसे अन्य क्षेत्रों में लंबे समय तक व्यवधान हो सकता है।
- उदाहरण: एस्टोनिया में सेवा बाधित करने वाले हमलों की शृंखला: वर्ष 2007 में कथित रूप से रूसी IP एड्रेस द्वारा हमलों की एक शृंखला, प्रमुख एस्टोनियाई बैंकों, सरकारी निकायों - मंत्रालयों और संसद, और मीडिया आउटलेट्स को प्रभावित किया गया। यह उस तरह की साइबर आक्रामकता थी जिसे दुनिया ने पहले नहीं देखा था। हमलों ने लगभग तीन सप्ताह तक दुनिया के सबसे अधिक नेटवर्क वाले देशों में से एक में तबाही मचाई।
- डिनायल-ऑफ-सर्विस (DoS) हमला एक मशीन या नेटवर्क को बंद करने के लिये किया गया हमला है, जिससे यह अपने इच्छित उपयोगकर्त्ताओं के लिये दुर्गम हो जाता है।
- भारत के मामले:
- अक्तूबर, 2020 में जब भारत महामारी से जूझ रहा था, मुंबई की बिजली ग्रिड की आपूर्ति अचानक बंद हो गई, जिससे बड़े शहर के अस्पतालों, ट्रेनों और व्यवसायों पर असर पड़ा।
- बाद में, एक अमेरिकी फर्म द्वारा किए गए एक अध्ययन में दावा किया गया कि यह बिजली कटौती एक साइबर हमला हो सकता है, जो कथित तौर पर चीन से जुड़े समूह से महत्वपूर्ण बुनियादी ढांँचे के उद्देश्य से किया गया था। हालाँकि, सरकार ने मुंबई में किसी भी साइबर हमले से इनकार किया।
- लेकिन इस घटना ने अन्य देशों में इंटरनेट पर निर्भर महत्वपूर्ण प्रणालियों की जांँच करने वाले शत्रुतापूर्ण राज्य और गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं की संभावना और ऐसी संपत्तियों को मज़बूत करने की आवश्यकता को रेखांकित किया।
भारत में CIIs संरक्षण:
- नोडल एजेंसी के रूप में NCIIPC:
- इसका निर्माण जनवरी 2014 में किया गया। राष्ट्रीय महत्वपूर्ण सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र (NCIIPC) देश की महत्वपूर्ण सूचना अवसंरचना की सुरक्षा के लिये सभी उपाय करने हेतु नोडल एजेंसी है।
- NCIIPC का अधिदेश:
- यह CII को अनधिकृत पहुँच, संशोधन, उपयोग, प्रकटीकरण, व्यवधान, अक्षमता से बचाने के लिये अनिवार्य है।
- यह नीति मार्गदर्शन, विशेषज्ञता साझा करने और प्रारंभिक चेतावनी या अलर्ट के लिये स्थितिजन्य जागरूकता हेतु CII को राष्ट्रीय स्तर के खतरों की निगरानी और पूर्वानुमान करेगा।
- महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना के लिये किसी भी खतरे की स्थिति में NCIIPC सूचना मांग सकता है और महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों या महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने वाले या सेवा देने वाले व्यक्तियों को निर्देश दे सकता है।
- बुनियादी ज़िम्मेदारी:
- CII प्रणाली की सुरक्षा की मूल ज़िम्मेदारी उस CII को चलाने वाली एजेंसी की होगी।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसके लिये साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना कानूनी रूप से अनिवार्य है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) व्याख्या:
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
निर्माण श्रमिकों के कौशल विकास को बढ़ावा देने हेतु राष्ट्रीय पहल (निपुण-NIPUN)
प्रिलिम्स के लिये:निपुण, DAY-NULM । मेन्स के लिये:निपुण पहल और इसका महत्त्व, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में निर्माण श्रमिकों के कौशल प्रशिक्षण के लिये 'निपुण (NIPUN)' नामक एक अभिनव परियोजना यानी निर्माण श्रमिकों के कौशल को बढ़ावा देने हेतु राष्ट्रीय पहल शुरू की गई।
- निपुण निर्माण उद्योग के लिये भविष्य की श्रम शक्ति का निर्माण कर रहा है जो देश में नवाचार और बड़े पैमाने पर विकास को बढ़ावा देगा।
- निर्माण क्षेत्र 2022 तक सबसे बड़ा नियोक्ता बनने की राह पर है, और इसके लिये अगले दस वर्षों में 45 मिलियन से अधिक योग्य श्रमिकों की आवश्यकता होगी।
निपुण परियोजना:
- परिचय:
- परियोजना का मूल उद्देश्य 1 लाख से अधिक निर्माण श्रमिकों को नए कौशल और अपस्किलिंग कार्यक्रमों के माध्यम से प्रशिक्षित करना है।
- परियोजना निपुण आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) की एक पहल है।
- यह परियोजना दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (DAY-NULM) के प्रमुख कार्यक्रम के तहत संचालित हो रही है।
- राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (NULM) के परिवर्तनकारी प्रभाव ने शहरी निवासियों, विशेषकर युवाओं को कौशल और रोज़गार के अवसर प्रदान करके शहरी गरीब परिवारों की सुभेद्यता को कम कर दिया है।
- कार्यान्वयन एजेंसी:
- राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC)
- NSDC कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) के तहत नोडल और कार्यान्वयन एजेंसी है।
- NSDC प्रशिक्षण, निगरानी और उम्मीदवार ट्रैकिंग के समग्र निष्पादन के लिये ज़िम्मेदार होगा।
- राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC)
निपुण परियोजना का कार्यान्वयन:
- परियोजना कार्यान्वयन को तीन भागों में विभाजित किया गया है:
- निर्माण स्थलों पर पूर्व प्रशिक्षण की मान्यता (RPL) के माध्यम से प्रशिक्षण।
- MoHUA के साथ ब्रांडेड RPL प्रमाणन के तहत उद्योग संघों के माध्यम से लगभग 80,000 निर्माण श्रमिकों को ऑनसाइट कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
- प्लंबिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर स्किल काउंसिल द्वारा नए कौशल के माध्यम से प्रशिक्षण (SSC).
- लगभग 14,000 उम्मीदवारों को प्लंबिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर स्किल काउंसिल (एसएससी) के माध्यम से उन ट्रेडों में नए कौशल प्राप्त होंगे जिनमें प्लेसमेंट की संभावनाएंँ हैं।
- उद्योगों/बिल्डरों/ठेकेदारों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय प्लेसमेंट:
- पाठ्यक्रम राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क के अनुरूप हैं।
- यह केवल मान्यता प्राप्त और संबद्ध प्रशिक्षण केंद्रों पर प्रदान किया जाएगा।
- यह भी परिकल्पना की गई है कि एनएसडीसी लगभग 12,000 लोगों को सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और अन्य खाड़ी देशों जैसे विदेशी देशों में रखेगा।
- निर्माण स्थलों पर पूर्व प्रशिक्षण की मान्यता (RPL) के माध्यम से प्रशिक्षण।
निपुण परियोजना से जुड़े लाभ:
- नए अवसर तक पहुँच:
- निपुण परियोजना निर्माण श्रमिकों को बेहतर नौकरी के अवसर तलाशने, उनकी मज़दूरी बढ़ाने और यहाँ तक कि विदेशी प्लेसमेंट का में सक्षम बनाएगी।
- उद्यमिता की भावना:
- शहरी श्रमिकों को स्व-रोज़गार और कुशल मजदूरी रोज़गार के अवसरों तक पहुँच प्रदान करके इसे प्रोत्साहित और समर्थित किया गया है।
- यह पहल निर्माण श्रमिकों को अधिक कुशल बनाने में सक्षम बनाएगी।
- शहरी श्रमिकों को स्व-रोज़गार और कुशल मजदूरी रोज़गार के अवसरों तक पहुँच प्रदान करके इसे प्रोत्साहित और समर्थित किया गया है।
- कौशल उन्नति:
- निर्माण कार्यकर्त्ता अपनी क्षमताओं को उन्नत करके और अपने कौशल में विविधता लाकर निर्माण उद्योग से जुड़े भविष्य के रुझानों को ध्यान में रखते हुए उन्नत कौशल अपना सकते हैं।
- मंत्रालय ने प्रौद्योगिकी चुनौतियों का भी सामना किया, जिसके कारण रिकॉर्ड समय में छह लाइट हाउस परियोजनाओं का कार्यान्वयन हुआ, जिसमें स्थायी हरित भवनों के निर्माण के लिये प्रौद्योगिकी और स्थानीय सामग्री का उपयोग किया गया था।
- निर्माण कार्यकर्त्ता अपनी क्षमताओं को उन्नत करके और अपने कौशल में विविधता लाकर निर्माण उद्योग से जुड़े भविष्य के रुझानों को ध्यान में रखते हुए उन्नत कौशल अपना सकते हैं।
- अर्थव्यवस्था का विकास:
- निर्माण उद्योग देश के सकल घरेलू उत्पाद में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्त्ता है इसलिये यह योजना सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को उत्प्रेरित करेगी।
- सामाजिक सुरक्षा:
- यह प्रशिक्षुओं को 'कौशल बीमा', 2 लाख रुपए के कवरेज के साथ तीन साल का आकस्मिक बीमा, कैशलेस लेन-देन और EPF और BOCW सुविधाओं जैसे डिजिटल कौशल प्रदान करेगा।
DAY-NRLM के बारे में
- परिचय:
- डीएवाई-एनयूएलएम (DAY-NULM) एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसे वर्ष 2014-15 से लागू किया जा रहा है।
- इसका उद्देश्य देश में शहरी गरीब परिवारों को स्वरोज़गार और कुशल मजदूरी रोज़गार के अवसरों तक पहुंँचने में सक्षम बनाकर गरीबी और उनकी भेद्यता को कम करना है।
- दीनदयाल अंत्योदय योजना - राष्ट्रीय आजीविका मिशन (DAY-NULM) को वर्ष 2011 में ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD), भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया था।
- उद्देश्य:
- मिशन का उद्देश्य ग्रामीण गरीबों के लिये कुशल और प्रभावी संस्थागत मंच तैयार करना है ताकि वे स्थायी आजीविका और वित्तीय सेवाओं तक बेहतर पहुँच के माध्यम से घरेलू आय में वृद्धि कर सकें।
- मुख्य विशेषताएंँ:
- डीएवाई-एनआरएलएम (DAY-NRLM) विशेष विशेष रूप से सबसे गरीब तथा सबसे कमजोर समुदायों और उनके वित्तीय समावेशन को लक्षित करने पर केंद्रित है।
- NRETP के तहत वित्तीय समावेशन के वैकल्पिक चैनलों का संचालन करने, ग्रामीण उत्पादों के आस-पास मूल्य शृंखला निर्मित करने, आजीविका सवर्द्धन और वित्त तक पहुंँच हेते अभिनव मॉडल पेश करने, डिजिटल वित्त और आजीविका हस्तक्षेप पर पहल करने हेतु अभिनव परियोजनाएंँ शुरू की जानी हैं।
- DAY-NRLM पंचायती राज संस्थानों (PRIs) और समुदाय आधारित संगठनों (CBOs) के बीच परामर्श के लिये पारस्परिक रूप से लाभप्रद कार्य संबंध और औपचारिक मंच प्रदान करता है।
- NRLM ने हस्तक्षेप के विभिन्न क्षेत्रों में अभिसरण की सुविधा के लिये गतिविधि मानचित्र भी विकसित किया है जहांँ NRLM संस्थान और PRIs एक साथ कार्य कर सकते हैं जिसे सभी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशनों में प्रसारित किया गया है।
स्रोत: पी.आई.बी
शासन व्यवस्था
वन नेशन वन राशन कार्ड
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, उचित मूल्य की दुकान, प्रवासी श्रमिक, आत्मनिर्भर भारत। मेन्स के लिये:वन नेशन वन राशन कार्ड, महत्त्व और चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
असम वन नेशन वन राशन कार्ड (ONORC) को लागू करने वाला 36वाँ राज्य/केद्रशासित प्रदेश बन गया है।
- इसके साथ ही ONORC कार्यक्रम को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सफलतापूर्वक लागू किया गया है, जिससे पूरे देश में खाद्य सुरक्षा निश्चित हुई है।
- ONORC योजना का अधिकतम लाभ उठाने के लिये सरकार ने 'मेरा राशन' मोबाइल एप्लीकेशन भी शुरू किया है। मोबाइल ऐप लाभार्थियों को उपयोगी रीयल-टाइम जानकारी प्रदान कर रहा है और यह 13 भाषाओं में उपलब्ध है।
- कोविड-19 महामारी के पिछले दो वर्षों के दौरान, ONORC योजना ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के लाभार्थियों विशेष रूप से प्रवासी लाभार्थियों को रियायती खाद्यान्न सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
ONORC:
- परिचय:
- ONORC योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत लागू की जा रही है।
- इस योज़ना के तहत प्रवासी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (Migratory National Food Security Act- NFSA), 2013 के लाभार्थी देश में कहीं भी अपनी पसंद के किसी भी उचित मूल्य की दुकान ( Fair Price Shop- FPS) से अपने हिस्से के खाद्यान्न कोटे की खरीद कर सकते हैं।
- यह प्रणाली उनके परिवार के सदस्यों को घर पर यदि कोई हो तो उसे राशन कार्ड पर शेष खाद्यान्न का दावा करने की अनुमति देती है।
- ONORC का कार्यान्वयन अगस्त 2019 में शुरू किया गया था।
- उद्देश्य:
- सभी NFSA लाभार्थियों को उनके मौजूदा राशन कार्डों की सुवाह्यता के माध्यम से देश में कहीं भी उनकी खाद्य सुरक्षा के लिये आत्मनिर्भर बनने हेतु सशक्त बनाना।
- उनकी पसंद के किसी भी उचित मूल्य की दुकान से उनके हकदार सब्सिडी वाले खाद्यान्न (आंशिक या पूर्ण) को निर्बाध रूप से उठाना।
- परिवार के सदस्यों को अपनी पसंद के उचित दर दुकान से अपने मूल स्थान/किसी भी स्थान पर उसी राशन कार्ड पर शेष/आवश्यक मात्रा में खाद्यान्न उठाने में सक्षम बनाना।
ONORC का महत्त्व:
- भोजन के अधिकार को सक्षम करना: पूर्व में राशन कार्डधारक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सब्सिडीयुक्त खाद्यान्न की अपनी पात्रता का लाभ केवल संबंधित राज्य के अंदर निर्दिष्ट उचित मूल्य की दुकान (FPS) से ही प्राप्त कर सकते थे।
- यदि कोई लाभार्थी किसी दूसरे राज्य में प्रवास या पलायन करता है तो उसे उस दूसरे राज्य में नए राशन कार्ड के लिये आवेदन करना होता है।
- ONORC सामाजिक न्याय के लिये इस भौगोलिक बाधा को दूर करने और भोजन के अधिकार को सक्षम करने की परिकल्पना करता है।
- आबादी के लगभग एक-तिहाई भाग का समर्थन: देश की लगभग 37% आबादी प्रवासी श्रमिकों की है। इसलिये यह योजना उन सभी लोगों के लिये महत्त्वपूर्ण है जो रोज़गार आदि कारणों से एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर पलायन करते हैं।
- रिसाव कम करना: ONORC रिसाव या लीकेज को कम कर सकता है क्योंकि इस योजना की पूर्व शर्त नकली/डुप्लिकेट राशन कार्डों की पहचान करना या डी-डुप्लीकेशन है।
- इससे यह सुनिश्चित होगा कि एक ही व्यक्ति देश के दो अलग-अलग स्थानों में लाभार्थी के रूप में चिह्नित नहीं है।
- इसके अलावा, यह योजना आधार और बायोमेट्रिक्स से लिंक्ड है जो भ्रष्टाचार की अधिकांश संभावनाओं को दूर करती है और पारदर्शिता लाती है।
- सामाजिक भेदभाव को कम करना: ONORC महिलाओं और अन्य वंचित समूहों के लिये विशेष रूप से लाभप्रद होगा क्योंकि PDS तक पहुँच प्रदान करने में सामाजिक पहचान (जाति, वर्ग और लिंग) और अन्य प्रासंगिक घटकों (शक्ति संबंधों सहित) को पर्याप्त महत्त्व दिया गया है।
संबद्ध चुनौतियाँ:
- अपवर्जन त्रुटि: आधार से लिंक्ड राशन कार्ड और स्मार्ट कार्ड के माध्यम से इस PDS प्रक्रिया के डिजिटलीकरण को लीकेज कम करने के प्रयास के तहत आगे बढ़ाया गया है। हालाँकि आधार-सीडिंग के बाद अपवर्जन त्रुटियों (Exclusion Error) में वृद्धि हुई है।
- समाज के कई वर्ग ऐसे हैं जिनके पास अभी भी आधार कार्ड नहीं है और इस कारण वे खाद्य सुरक्षा से वंचित हो रहे हैं।
- अधिवास-आधारित सामाजिक क्षेत्र योजनाएँ: न केवल PDS बल्कि निर्धनता उन्मूलन, ग्रामीण रोज़गार, कल्याण और खाद्य सुरक्षा संबंधी अधिकांश योजनाएँ ऐतिहासिक रूप से अधिवास-आधारित पहुँच पर आधारित रही हैं और सरकारी सामाजिक सुरक्षा, कल्याण और खाद्य अधिकारों तक लोगों की पहुँच को उनके मूल स्थान या अधिवास स्थान तक के लिये सीमित रखती हैं।
- FPS पर आपूर्ति बाधित करना: किसी FPS को प्राप्त उत्पादों का मासिक कोटा कठोरता से उससे संबद्ध लोगों की संख्या के अनुसार सीमित रखा गया है।
- ONORC जब पूर्णरूपेण कार्यान्वित होगा तब इस अभ्यास को समाप्त कर देगा क्योंकि कुछ FPS को नए लोगों के आगमन के कारण अधिक संख्या में कार्डधारकों को सेवा देनी होगी जबकि कुछ अन्य FPS लोगों के पलायन के कारण निर्धारित कोटे से कम लोगों को सेवा देंगे।
योजना का अब तक का प्रदर्शन:
- यह देश में अपनी तरह का एक नागरिक केंद्रित पहल है, जिसे अगस्त 2019 में शुरू किये जाने के बाद, लगभग 80 करोड़ लाभार्थियों को कवर करते हुए कम समय में तेजी से लागू किया गया है।
- वर्ष 2019 के बाद से पोर्टेबिलिटी के माध्यम से खाद्य सब्सिडी में लगभग 40,000 करोड़ रुपए की खाद्यान्न पहुंँचाने के लिये लगभग 71 करोड़ रुपए का पोर्टेबल लेन-देन हुआ है।
- वर्तमान में लगभग 3 करोड़ पोर्टेबल मासिक औसत लेन-देन दर्ज किया जा रहा है, लाभार्थियों को किसी भी स्थान पर लचीलेपन के साथ सब्सिडी वाले NFSA और मुफ्त प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) खाद्यान्न वितरित किया जा रहा है।
आगे की राह:
- यदि आपात स्थिति में राशन की दुकानों पर आपूर्ति बाधित होती है, तो कमज़ोर समूहों को खाद्यान्न पहुंँचाने के लिये वैकल्पिक वितरण चैनलों पर विचार किया जा सकता है।
- खाद्य सुरक्षा को पोषण सुरक्षा के व्यापक ढांँचे से देखा जाना चाहिये। इसलिये ONOPC को समेकित बाल विकास योजनाओं, मध्याह्न भोजन, टीकाकरण, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य सुविधाओं की पोर्टेबिलिटी की अनुमति देनी चाहिये।
- लंबे समय में PDS प्रणाली को फुल-प्रूफ फूड कूपन सिस्टम या प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
- वहीं गरीबी रेखा से नीचे का परिवार किसी भी किराना स्टोर से बाज़ार मूल्य पर चावल, दाल, चीनी और तेल कूपन के माध्यम से या नकद द्वारा पूरी तरह से भुगतान करके खरीद सकता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) 1 और 2 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। |
सामाजिक न्याय
ग्लोबल ट्रेंड रिपोर्ट ऑन फोर्स्ड डिस्प्लेसमेंट इन 2021
प्रिलिम्स के लिये:यूएनएचसीआर, आंतरिक विस्थापन, 1951 का शरणार्थी कन्वेंशन। मेन्स के लिये:क्लाइमेंट रिफ्यूजी से जुड़ी चुनौतियाँ और समाधान, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (United Nations High Commissioner for Refugees- UNHCR) द्वारा वर्ष 2022 की वार्षिक ग्लोबल ट्रेंड रिपोर्ट (Global Trends Report) प्रकाशित की गई है।
- 20 जून को संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व शरणार्थी दिवस के रूप में नामित किया गया है। विश्व शरणार्थी दिवस 2022 की थीम ‘’जो भी कहीं भी और जब भी मौजूद हो उसे सुरक्षा मांगने का अधिकार है’’ (Whoever, whatever, whenever Everyone has got a right to seek safety) है।
ग्लोबल ट्रेंड रिपोर्ट:
- यह प्रमुख सांख्यिकीय प्रवृत्तियों और शरणार्थियों की नवीनतम संख्या, शरण चाहने वालों, आंतरिक रूप से विस्थापित और दुनिया भर में राज्यविहीन व्यक्तियों के साथ-साथ उन लोगों की संख्या को प्रस्तुत करता है जो अपने देशों या मूल क्षेत्रों में लौट आए हैं।
- रिपोर्ट का प्रकाशन वर्ष में एक बार होता है जो पिछले पिछले वर्ष की स्थिति को दर्शाती है।
- आंँकड़ें सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों और UNHCR द्वारा रिपोर्ट किये गए आंँकड़ों पर आधारित हैं।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएंँ:
- वैश्विक परिदृश्य:
- पिछले वर्ष हिंसा, मानवाधिकारों के हनन, खाद्य असुरक्षा, जलवायु संकट, यूक्रेन में युद्ध और अफ्रीका से अफगानिस्तान तक अन्य आपात स्थितियों के कारण वैश्विक स्तर पर 100 मिलियन लोगों को अपने घरों को छोड़ने के लिये मज़बूर होना पड़ा था।
- आपदाओं के कारण विश्व स्तर पर 23.7 मिलियन नए आंतरिक विस्थापन हुए (ये संघर्ष और हिंसा के कारण आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के अतिरिक्त हैं)। यह पिछले वर्ष की तुलना में सात मिलियन या 23% की कमी को दर्शाता है।
- वर्ष 2021 में आपदाओं के संदर्भ में सबसे अधिक विस्थापन चीन (6.0 मिलियन), फिलीपींस (5.7 मिलियन) और भारत (4.9 मिलियन) में हुआ।
- अधिकांश आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति अपने गृह क्षेत्रों में लौट आए, लेकिन दुनिया भर में 5.9 मिलियन लोग आपदाओं के कारण वर्ष के अंत में विस्थापित हुए।
- अपने घरों से भागने के लिये मज़बूर लोगों की संख्या पिछले एक दशक से हर साल बढ़ी है और अपने उच्चतम स्तर पर है, इस प्रवृति को केवल शांति निर्माण की दिशा में एक नए, ठोस प्रयास से ही बदला जा सकता है।
- भारत:
- वर्ष 2021 में जलवायु परिवर्तन और आपदाओं के कारण भारत में लगभग 50 लाख लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए थे।
आंतरिक विस्थापन:
- आंतरिक विस्थापन (अर्थ):
- आंतरिक विस्थापन उन लोगों की स्थिति का वर्णन करता है जिन्हें अपने घर छोड़ने के लिये मज़बूर किया गया है लेकिन उन्होंने अपना देश नहीं छोड़ा है।
- विस्थापन के कारक: प्रत्येक वर्ष लाखों लोग संघर्ष, हिंसा, विकास परियोजनाओं, आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में अपने घरों या निवास स्थानों को छोड़कर अपने देशों की सीमाओं के भीतर विस्थापित हो जाते हैं।
- घटक: आंतरिक विस्थापन दो घटकों पर आधारित है:
- यदि लोगों का विस्थापन जबरदस्ती या अनैच्छिक है (उन्हें आर्थिक और अन्य स्वैच्छिक प्रवासियों से अलग करने हेतु);
- यदि व्यक्ति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त राज्य की सीमाओं के भीतर रहता है (उन्हें शरणार्थियों से अलग करने हेतु)।
- शरणार्थी से अंतर: वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन के अनुसार, "शरणार्थी" एक ऐसा व्यक्ति है जिस पर अत्याचार किया गया है और अपने मूल देश को छोड़ने के लिये मज़बूर किया गया है।
- शरणार्थी माने जाने की एक पूर्व शर्त यह है कि वह व्यक्ति एक अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार करता हो।
- शरणार्थियों के विपरीत, आंतरिक रूप से विस्थापित लोग किसी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का विषय नहीं हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों की सुरक्षा और सहायता पर वैश्विक नेतृत्व के रूप में किसी एक एजेंसी या संगठन को नामित नहीं किया गया है।
- हालाँकि आंतरिक विस्थापन पर संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शक सिद्धांत हैं।
- आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों (IDP) द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ: IDP को शारीरिक शोषण, यौन या लिंग आधारित हिंसा का खतरा बना रहता है और वे परिवार के सदस्यों से अलग होने का जोखिम उठाते हैं।
- वे प्राय: पर्याप्त आश्रय, भोजन और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रहते हैं और अक्सर अपनी संपत्ति, भूमि या आजीविका तक अपनी स्थापित पहुँच को खो देते हैं।
आंतरिक विस्थापन से जुड़ी चुनौतियाँ:
- उचित और आमतौर पर स्वीकृत आँकड़ों का अभाव: जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में विस्थापन से संबंधित आँकड़ों के संदर्भ में, सीधे शब्दों में कहें तो जो परिभाषित नहीं है, उसकी मात्रा निर्धारित नहीं की जा सकती है, और जिनकी मात्रा निर्धारित नहीं की जा सकती है, उसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।
- जलवायु शरणार्थियों के लिये कानूनी स्थिति का अभाव: कानूनी दृष्टिकोण से यूएनएचसीआर "जलवायु शरणार्थी" शब्द का समर्थन नहीं करता है जो अंतर्राष्ट्रीय कानून में मौजूद नहीं है। यह आकलन करना भी बहुत मुश्किल है कि क्या कोई व्यक्ति जो जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में विस्थापित हुआ है। वैसे भी विस्थापित हो जाते अगर कोई जलवायु परिवर्तन नहीं होता।
- ऐतिहासिक मिसाल का अभाव: दूसरे कई स्थितियों के लिये ऐतिहासिक मिसाल की कमी जो मानव से संबंधित जलवायु परिवर्तन की प्रगति के रूप में उत्पन्न होगी, जिसका मानव गतिशीलता पर प्रभाव पहले कभी नहीं देखा गया है। इसका मतलब यह है कि यह स्पष्ट नहीं है कि बदलती जलवायु भविष्य में लोगों के निर्णयों और व्यवहार को कैसे प्रभावित करेगी।
- जलवायु परिवर्तन और विस्थापन के बीच गैर-मौजूद संबंध: अंत में, जलवायु परिवर्तन और विस्थापन के बीच की कड़ी पूरी तरह से मापने योग्य नहीं है और इस बात पर कोई सहमति नहीं है कि यह एक सीधा कारण है, उदाहरण के लिये केवल सीमित जानकारी उपलब्ध है। अन्य कारण भी हैं- बढ़ती गरीबी, राजनीतिक अस्थिरता और सशस्त्र संघर्ष पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव आदि।
आगे की राह
- स्वदेश में वापसी: अधिकांश शरणार्थियों के लिये एक स्वतंत्र और सूचित विकल्प के आधार पर अपने देश लौटना शरणार्थियों के रूप में उनकी अस्थायी स्थिति को समाप्त करने का एक उचित समाधान होगा। इसके लिये राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक अवसर यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हैं कि पर्यावरण प्रभावित शरणार्थियों सुरक्षा और सम्मान के साथ पुन: एकीकृत करने की अनुमति मिले। साथ ही यह सुनिश्चित करना कि वापसी टिकाऊ है।
- पुनर्वास: जबकि कई देशों ने मेज़बान देशों के साथ अपनी एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए, पुनर्वास के लिये अपनी प्रतिबद्धता का संकेत दिया है, हालाँकि राज्यों द्वारा प्रस्तावित स्थानों की संख्या में उल्लेखनीय कमी के कारण यह कम शरणार्थियों के लिये एक विकल्प प्रदान करता है। पुनर्वास एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा उपकरण और समाधान है जो UNHCR के कानून अनुसार अनिवार्य एक मुख्य गतिविधि है, जो कुछ सबसे कमजोर शरणार्थियों (जिन्हें विशिष्ट या तत्काल जोखिम का सामना करना पड़ सकता है) की रक्षा करने में मदद करता है।
- स्थानीय एकीकरण: सुरक्षित रूप से लौटने या फिर से बसने की संभावना के अभाव में कुछ देशों में शरणार्थियों के लिये अपने देश में लंबे समय तक या स्थायी रूप से रहने के लिये रास्ते उपलब्ध हैं। स्थानीय एकीकरण यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि शरणार्थी इन देशों में नए जीवन की शुरुआत कर सकें।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR):
- परिचय:
- शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (UNHCR) का कार्यालय वर्ष 1950 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उन लाखों यूरोपीय लोगों की मदद के लिये बनाया गया था, जो अपने घर छोड़कर भाग गए थे या खो गए थे।
- 1954 में UNHCR ने यूरोप में अपने अभूतपूर्व कार्य के लिये नोबेल शांति पुरस्कार जीता। लेकिन हमें अपनी अगली बड़ी आपात स्थिति का सामना करने में ज़्यादा समय नहीं लगा।
- 1960 के दशक के दौरान अफ्रीका के उपनिवेशवाद ने इस महाद्वीप के कई शरणार्थी संकटों में से एक था। इसने अगले दो दशकों में एशिया और लैटिन अमेरिका में लोगों को प्रवास हेतु बाध्य किया।
- 1981 में शरणार्थियों के लिये विश्वव्यापी सहायता करने हेतु इसे दूसरा नोबेल शांति पुरस्कार मिला।
- 1951 शरणार्थी सम्मेलन और इसका 1967 प्रोटोकॉल:
- वे प्रमुख कानूनी दस्तावेज हैं जो इसके काम का आधार बनाते हैं। 149 राज्य पार्टियों में से किसी एक या दोनों के साथ वे 'शरणार्थी' शब्द को परिभाषित करते हैं और शरणार्थियों के अधिकारों के साथ-साथ उनकी रक्षा के लिये राज्यों के कानूनी दायित्वों की रूपरेखा तैयार करते हैं।
- मूल सिद्धांत गैर-प्रतिशोधन है, जो इस बात पर ज़ोर देता है कि शरणार्थी को उस देश में वापस नहीं किया जाना चाहिये जहांँ उन्हें अपने जीवन या स्वतंत्रता के लिये गंभीर खतरे का सामना करना पड़ता है। इसे अब प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय कानून का नियम माना जाता है।
- UNHCR 1951 के सम्मेलन और इसके 1967 प्रोटोकॉल के 'अभिभावक' के रूप में कार्य करता है। कानून के अनुसार, राज्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे यह सुनिश्चित करने में हमारे साथ सहयोग करें कि शरणार्थियों के अधिकारों का सम्मान और संरक्षण किया जाता है।