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डेली न्यूज़

  • 21 Feb, 2023
  • 60 min read
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रोगाणुरोधी प्रतिरोध

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भारतीय राजव्यवस्था

विशेष श्रेणी का दर्जा

प्रिलिम्स के लिये:

विशेष श्रेणी के राज्य, गाडगिल सूत्र 

मेन्स के लिये:

विशेष श्रेणी की स्थिति से जुड़े लाभ और मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया कि केंद्र किसी भी राज्य के लिये 'विशेष श्रेणी के दर्जे' की मांग पर विचार नहीं करेगा क्योंकि 14वें वित्त आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा है कि विशेष दर्जा नहीं दिया जा सकता है। 

  • यह ओडिशा, बिहार, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के लिये बड़ा झटका है क्योंकि ये राज्य पिछले कुछ वर्षों से विशेष श्रेणी के दर्जे की मांग कर रहे हैं। 

विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS):

  • परिचय:  
    • विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) केंद्र द्वारा निर्धारित उन राज्यों का एक वर्गीकरण है जो भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक नुकसान का सामना करते हैं।
    • संविधान SCS के लिये प्रावधान नहीं करता है और यह वर्गीकरण बाद में 1969 में पाँचवें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर किया गया था।
    • पहली बार वर्ष 1969 में जम्मू-कश्मीर, असम और नगालैंड को यह दर्जा दिया गया था। 
    • पूर्व में योजना आयोग की राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा योजना के तहत सहायता के लिये SCS प्रदान किया गया था।
    • असम, नगालैंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, उत्तराखंड और तेलंगाना सहित 11 राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया। 
      • तेलंगाना, भारत के सबसे नवीन राज्य को यह दर्जा दिया गया था क्योंकि इसे आंध्र प्रदेश राज्य से अलग किया गया था। 
    • 14वें वित्त आयोग ने पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों के लिये 'विशेष श्रेणी का दर्जा' समाप्त कर दिया है।
      • इसने सुझाव दिया कि प्रत्येक राज्य के संसाधन अंतर को 'कर हस्तांतरण' के माध्यम से भरा जाए, केंद्र से कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी को 32% से बढ़ाकर 42% करने का आग्रह किया गया है।
    • SCS, विशेष स्थिति से अलग है जो बढ़े हुए विधायी और राजनीतिक अधिकार प्रदान करती है, जबकि विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) केवल आर्थिक और वित्तीय पहलुओं से संबंधित है।
      • उदाहरण के लिये अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से पहले जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था।
  • निर्धारक (गाडगिल सिफारिश पर आधारित): 
    • पहाड़ी इलाका
    • कम जनसंख्या घनत्व और/या जनजातीय जनसंख्या का बड़ा हिस्सा
    • पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर सामरिक स्थिति
    • आर्थिक और आधारभूत संरचना पिछड़ापन 
    • राज्य के वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति

विशेष श्रेणी के दर्जे के लाभ:

  • अन्य राज्यों के मामले में 60% या 75% की तुलना में केंद्र प्रायोजित योजना में आवश्यक निधि का 90% विशेष श्रेणी के राज्यों को भुगतान किया जाता है, जबकि शेष निधि राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की जाती है।
  • वित्तीय वर्ष में अव्ययित निधि व्यपगत नहीं होती है और इसे आगे बढ़ाया जाता है।
  • इन राज्यों को उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क, आयकर एवं निगम कर में महत्त्वपूर्ण रियायतें प्रदान की जाती हैं।
  • केंद्र के सकल बजट का 30% विशेष श्रेणी के राज्यों को प्रदान किया जाता है।

विशेष श्रेणी के दर्जे के संबंध में चिंताएँ: 

  • यह केंद्रीय वित्त पर दबाव में वृद्धि करता है।
  • साथ ही एक राज्य को विशेष दर्जा देने से दूसरे राज्य भी ऐसी मांग करने लगते हैं। उदाहरण के लिये आंध्र प्रदेश, ओडिशा और बिहार द्वारा की जाने वाली मांग।

निष्कर्ष: 

  • जैसा कि 14वें वित्त आयोग ने सुझाव दिया था, राज्यों को कर हस्तांतरण बढ़ाकर 42% कर दिया गया है और इसे 15वें वित्त आयोग (41%) द्वारा भी जारी रखा गया है ताकि SCS का विस्तार किये बिना संसाधन भिन्नता/अंतर को कम किया जा सके।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय विरासत और संस्कृति

ग्रामीण पर्यटन

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रामीण पर्यटन, पर्यटन मंत्रालय, भारतीय विरासत स्थल, ग्राम समूह, भारत भ्रमण 2023।

मेन्स के लिये:

ग्रामीण पर्यटन, महत्त्व और चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

पर्यटन मंत्रालय के ग्रामीण पर्यटन और ग्रामीण होमस्टे (CNA- RT & RH) प्रभाग ने ग्रामीण भारत में आने के इच्छुक पर्यटकों हेतु छह विशिष्ट क्षेत्रों की पहचान की है, जिनमें कृषि पर्यटन, कला एवं संस्कृति, इकोटूरिज़्म, वन्य जीवन, जनजातीय पर्यटन तथा होमस्टे शामिल हैं।

  • पर्यटन मंत्रालय प्रतिस्पर्द्धी और स्थायी तथा ज़िम्मेदार पर्यटन को बढ़ावा देने के व्यापक लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु राज्य मूल्यांकन एवं रैंकिंग मानदंड स्थापित करने पर भी काम कर रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • उद्देश्य: 
    • इस पहल का उद्देश्य बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचे के विकास के बजाय धारणीय विकास पर ज़ोर देना है।
    • इसका उद्देश्य स्थानीय संसाधनों तथा गाँवों में रोज़गार के अवसरों को बढ़ावा देकर  समुदायों को अद्वितीय जैविक अनुभव प्रदान करना है।
    • पर्यटन मंत्रालय बजट तैयार करने की प्रक्रिया में है, जिसमें ज़िला स्तर पर कुछ प्रशिक्षण मॉड्यूल्स 100% केंद्र द्वारा वित्तपोषित किये जाएंगे, जबकि अन्य मामलों में  60% केंद्र और 40% राज्य द्वारा वित्तपोषित होंगे।
  • ग्राम समूह: 
    • लगभग पाँच से सात गाँवों के समूह/क्लस्टर चिह्नित किये जाएंगे।
    • ये क्लस्टर लंबी दूरी के साथ अलग-अलग गाँवों की ग्रामीण पर्यटन परियोजनाओं की तुलना में पर्यटकों को अधिक आकर्षित करेंगे।
    • ये शिल्प बाज़ारों के माध्यम से स्थानीय उत्पादों के विपणन में ग्राम समूह को सहायता प्रदान करेंगे। 

ग्रामीण पर्यटन की अवधारणा:

  • परिचय: 
    • भारत में ग्रामीण पर्यटन, ग्रामीण जीवन-शैली और संस्कृति की खोज तथा अनुभव पर केंद्रित है। 
    • इसमें स्थानीय संस्कृति और जीवन के प्रति गहरी समझ विकसित करने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों की यात्रा करना और खेती, हस्तशिल्प एवं गाँव की सैर जैसी विभिन्न गतिविधियों में भाग लेना शामिल है।
      • उदाहरण के लिये तमिलनाडु का कोलुक्कुमलाई विश्व का सबसे ऊँचा चाय बागान है; केरल में देवलोकम नदी के किनारे एक योग केंद्र है; नगालैंड का कोन्याक टी रिट्रीट आदि आगंतुकों/पर्यटकों को आदिवासी संस्कृति को समझने-जानने में मदद करते हैं।
  • विस्तार: 
    • भारत की ग्रामीण पर्यटन क्षमता इसकी विविध और जीवंत संस्कृति, हस्तशिल्प, लोक कलाओं, त्योहारों और मेलों में निहित है।
    • एक अमेरिकी मार्केट रिसर्च कंपनी, ग्रैंड व्यू रिसर्च के अनुसार, कृषि-पर्यटन उद्योग वर्ष 2022 से 2030 तक 11.4% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ने की संभावना है।
  • महत्त्व: 
    • ग्रामीण पर्यटन न केवल स्थानीय कला और शिल्प को नई ऊर्जा प्रदान करने के साथ व्यवहार्य पारंपरिक व्यवसायों को विस्थापित होने से रोक सकता है, बल्कि यह ग्रामीण क्षेत्रों के पुनर्विकास एवं ग्रामीण जीवन को पुनः जीवंत करने, रोज़गार तथा नए व्यावसायिक अवसर पैदा करने में भी मदद करेगा।
  • लाभ: 
    • बाह्य-प्रवासन में कमी, वैकल्पिक व्यापार के अवसरों में वृद्धि
    • उद्यमशीलता के दायरे में वृद्धि
    • गरीबी उन्मूलन में मदद
    • सामुदायिक सशक्तीकरण
    • कला और शिल्प 
    • विरासत संरक्षण

भारत में ग्रामीण पर्यटन के लिये चुनौतियाँ: 

  • बुनियादी ढाँचे की कमी:  
    • ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर अच्छी सड़कों, बिजली और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव होता है, इसे पर्यटकों को आकर्षित करने की दिशा में एक बाधा के रूप में देखा जाता है।
    • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा भी आगंतुकों/पर्यटकों को गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ प्रदान करने की स्थानीय समुदायों की क्षमता को कम कर सकता है।
  • जागरूकता की कमी:  
    • पर्यटकों और स्थानीय समुदायों के बीच ग्रामीण पर्यटन के बारे में जागरूकता की कमी पर्यटन क्षेत्र के विकास में बाधा उत्पन्न करती है।
    • बड़ी संख्या में लोग पर्यटन स्थलों के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों की क्षमता और पर्यटन से स्थानीय समुदायों को होने वाले लाभों से अनजान हैं।
  • निम्न आय और बेरोज़गारी:
    • ग्रामीण क्षेत्र अधिकांशतः निम्न-आय स्तर और उच्च बेरोज़गारी दर से पीड़ित होते हैं।
    • इससे स्थानीय समुदायों के लिये पर्यटन के बुनियादी ढाँचे में निवेश करना और आगंतुकों को गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ प्रदान करना मुश्किल हो सकता है।
  • पारिस्थितिकी के लिये खतरा:
    • यदि इसे ठीक से प्रबंधित नहीं किया गया, तो ग्रामीण पर्यटन में स्थानीय समुदायों और पर्यावरण को नुकसान होने की संभावना है।
    • भीड़भाड़, प्रदूषण और प्राकृतिक आवासों का विनाश स्थानीय पारिस्थितिकी तथा संस्कृति को नुकसान पहुँचा सकता है, जो लंबे समय तक आगंतुकों को यहाँ आने से रोक सकता है।
  • सुरक्षा चिंताएँ: 
    • उचित सुरक्षा व्यवस्था की कमी के कारण पर्यटक ग्रामीण क्षेत्रों में असुरक्षित महसूस कर सकते हैं, जिससे पर्यटन अनुभव और गंतव्य के प्रति नकारात्मक छवि बन जाती है।

संबंधित पहल:

  • सरकार ग्रामीण पर्यटन स्थलों के रूप में विकास के लिये परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) और मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट इन नॉर्थ ईस्ट रीजन (MOVCD-NER) के तहत विकसित जैविक कृषि क्षेत्रों की खोज कर रही है।
  • देश भर से सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गाँव का चयन करने और देश में ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये हाल ही में बेस्ट टूरिज़्म विलेज कॉम्पिटिशन पोर्टल लॉन्च किया गया।
    • 'सर्वश्रेष्ठ पर्यटन ग्राम प्रतियोगिता' तीन चरणों में आयोजित की जाएगी और इसके लिये ज़िला स्तर, राज्य स्तर और अंत में राष्ट्रीय स्तर पर प्रविष्टियाँ मांगी जाएंगी।
  • पर्यटन मंत्रालय ने देश की विभिन्न पर्यटन पेशकशों को उजागर करने और उन्हें वैश्विक पर्यटकों के सामने प्रदर्शित करने के लिये भारत में आने वाले यात्रियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए विज़िट इंडिया ईयर- 2023 की शुरुआत की है।
  • ‘तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक विरासत संवर्द्धन अभियान’ (National Mission on Pilgrimage Rejuvenation and Spiritual Heritage Augmentation Drive- PRASHAD) को पर्यटन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया था।
    • अभी तक प्रसाद (PRASHAD) योजना के तहत 1586.10 करोड़ रुपए की कुल 45 परियोजनाओं को मंज़ूरी दी जा चुकी है।
  • वर्ष 2014-15 में आरंभ स्वदेश दर्शन योजना देश में थीम-आधारित पर्यटन सर्किट के एकीकृत विकास पर ध्यान केंद्रित करती है।  
    • थीम- इको, हेरिटेज, हिमालयन एवं तटीय सर्किट आदि जैसे विभिन्न विषयों के तहत 5315.59 करोड़ रुपए की राशि के साथ 76 परियोजनाएँ मंज़ूर की गई थीं।  

आगे की राह

  • ग्रामीण पर्यटन स्थल विशिष्ट रूप से उन क्षेत्रों के नज़दीक होने चाहिये जहाँ लोग आमतौर आवागमन करते हैं।    
  • ग्रामीण पर्यटन के लिये विकसित किये जाने वाले गंतव्यों के चयन हेतु गंतव्यों तक पहुँच पहला मानदंड होना चाहिये। 
  • गंतव्यों का प्रचार-प्रसार कारीगरों को अपने उत्पादों को बेहतर ढंग से बेचने में मदद करेगा और पर्यटकों की संख्या बढ़ाने हेतु परियोजना के उचित पर्यवेक्षण की आवश्यकता होती है।  
  • पर्यटन से उत्पन्न आय का उपयोग कला, नृत्य और लोकगीतों के जातीय रूपों के संरक्षण में किया जा सकता है। यह ग्रामीण लोगों के हितों की रक्षा करेगा तथा घरों से मीलों दूर जाकर आजीविका कमाने के उनके दबाव को कम करेगा। 
  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. विकास की पहल और पर्यटन के नकारात्मक प्रभाव से पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र को कैसे बहाल किया जा सकता है?  (मुख्य परीक्षा- 2019)

प्रश्न. जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड राज्य पर्यटन के कारण अपनी पारिस्थितिक वहन क्षमता की सीमा तक पहुँच रहे हैं। समीक्षात्मक मूल्यांकन कीजिये।  (मुख्य परीक्षा- 2015)

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

बाल विवाह रोकने हेतु ओडिशा की पहल

प्रिलिम्स के लिये:

अद्विका, बाल विवाह रोकथाम (संशोधन) विधेयक 2021 

मेन्स के लिये:

भारत में न्यूनतम विवाह योग्य आयु में वृद्धि, बाल विवाह संबंधी मुद्दे।

चर्चा में क्यों?  

ओडिशा पिछले 4-5 वर्षों से बाल विवाह के संबंध में सामाजिक एवं व्यावहारिक परिवर्तन लाने हेतु दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपना रहा है। 

  • ओडिशा ने बाल विवाह की व्यापकता में समग्र गिरावट दर्ज की है; राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के 21.3% से NFHS- 5 में 20.5% तक।  

ओडिशा बाल विवाह की समस्या से कैसे निपट रहा है?

  • राज्य ने बाल विवाह से निपटने के लिये एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें स्कूलों और गाँवों में लड़कियों की अनुपस्थिति पर नज़र रखना, परामर्श देना तथा 10 से 19 आयु वर्ग की लड़कियों को लक्षित करने वाली सभी योजनाओं को एकीकृत करने के लिये "अद्विका" (Advika) नामक मंच का उपयोग करना शामिल है। 
  • इसने गाँवों को बाल-विवाह मुक्त घोषित करने के लिये दिशा-निर्देश तथा विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासी समूहों हेतु मौद्रिक प्रोत्साहन भी जारी किये हैं।
    • बाल विवाह को रोकने के दृष्टिकोण अलग-अलग ज़िलों में भिन्न होते हैं, जिनमें से कुछ किशोरियों का डेटाबेस तैयार करते हैं और अन्य सभी विवाहों में आधार संख्या को अनिवार्य बनाते हैं।
    • इस समस्या से निपटने हेतु विभिन्न ज़िलों ने अपने तरीके पेश किये हैं, जैसे कि बाल विवाह के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु स्थानीय उत्सव में कत्थक प्रदर्शन को शामिल करना।
  • विशेष रूप से 15 से 18 वर्ष की आयु वर्ग की लड़कियाँ जो ड्रॉपआउट हैं और उन्हें शैक्षणिक संस्थानों में बने रहने के साथ समुदाय से जुड़े रहने पर ज़ोर दिया जाता है।
  • स्कूल छोड़ने वाले बच्चों के माता-पिता सहित बाल विवाह पर चर्चा करने हेतु ओडिशा पुलिस भी पंचायत प्रतिनिधियों के साथ मासिक सामुदायिक बैठकें आयोजित करती रही है।
    • पुलिस थानों को चाइल्ड फ्रेंडली बनाया गया है ताकि लड़कियाँ पुलिस के पास जाने के लिये खुद को सशक्त महसूस कर सकें।
  • बाल विवाह के बारे में जागरूकता के प्रसार हेतु विभिन्न जाति, जनजाति और धार्मिक समूहों के विभिन्न सामुदायिक नेताओं को शामिल किया गया है। 

भारत में न्यूनतम विवाह योग्य आयु के संदर्भ में प्रमुख प्रगति: 

  • स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में न्यूनतम विवाह योग्य आयु महिलाओं हेतु 15 वर्ष और पुरुषों के लिये 18 वर्ष थी।
  • वर्ष 1978 में सरकार ने इसे बढ़ाकर लड़कियों हेतु 18 और पुरुषों के लिये 21 कर दिया।
  • परिवार कानून में सुधार को लेकर वर्ष 2008 में विधि आयोग की रिपोर्ट में शादी के लिये लड़कों और लड़कियों दोनों हेतु 18 वर्ष की एक समान उम्र की सिफारिश की गई।
  • वर्ष 2021 में केंद्र सरकार ने सभी धर्मों में महिलाओं हेतु आयु को 18 से 21 वर्ष तक बढ़ाने के लिये बाल विवाह रोकथाम (संशोधन) विधेयक 2021 पेश किया।
    • प्रस्तावित कानून देश में सभी समुदायों पर लागू होगा और एक बार अधिनियमित हो जाने के बाद यह मौजूदा विवाह तथा व्यक्तिगत कानूनों का स्थान लेगा।

बाल विवाह से जुड़े मुद्दे:  

  • बच्चे के जन्म के दौरान स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएँ: बाल वधू अक्सर बच्चे को जन्म देने एवं उसे सुरक्षित रखने हेतु शारीरिक रूप से पर्याप्त रूप से परिपक्व नहीं होती है, जिससे माँ और बच्चे दोनों के लिये स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है।
  • शिक्षा बाधित: विवाह अक्सर एक लड़की की शिक्षा में बाधक है, जो उसके भविष्य के अवसरों को सीमित कर सकता है और साथ ही निर्धनता के चक्र में उलझाए रख सकता है।
  • सीमित आर्थिक अवसर: बाल वधुओं के पास अक्सर कॅरियर बनाने अथवा जीविकोपार्जन के अवसर सीमित होते हैं, जो उन्हें आर्थिक रूप से पति पर निर्भर बना सकता है और इससे दुर्व्यवहार का जोखिम बना रहता है।
  • घरेलू हिंसा: बाल वधुओं को पतियों द्वारा घरेलू हिंसा का शिकार बनाए जाने की अधिक संभावना होती है, इसका प्रमुख कारण यह है कि सामान्यतः कम उम्र होने के कारण पति द्वारा इन्हें अयोग्य एवं हीन आँका जाता है।
  • बाल विवाह एक लड़की के मानसिक स्वास्थ्य को भी काफी प्रभावित करता है, जिस कारण उसे अवसाद, चिंता और आत्म-सम्मान में कमी जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है

आगे की राह 

  • प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: बाल विवाह के नुकसान के संबंध में जागरूकता बढ़ाने और बाल विवाह के जोखिम वाली लड़कियों को शिक्षा एवं सहायता प्रदान करने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये विधिक अधिकारों, स्वास्थ्य और शिक्षा के बारे में जानकारी प्रदान करने वाले मोबाइल एप विकसित किये जा सकते हैं जो लड़कियों को सहायता नेटवर्क से जुड़ने में सक्षम बना सकते हैं।
  • धार्मिक और सामुदायिक नेतृत्त्वकर्त्ताओं को सम्मिलित करना: धार्मिक और सामुदायिक नेता बाल विवाह को समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।
    • उन्हें बाल विवाह के खिलाफ बोलने और शिक्षा, लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिये अपने प्रभाव का उपयोग करने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • सफलता की कहानियों पर ध्यान दें: बाल विवाह के खतरों के बारे में जहाँ जागरूकता बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है, वहीं सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान देना भी आवश्यक है।
    • इसका तात्पर्य उन सफल कार्यक्रमों और पहलों पर उत्सव मनाने से है जिन्होंने बाल विवाह की घटनाओं को कम करने में मदद की है, साथ ही उन लड़कियों की सकारात्मक कहानियों को उजागर करना जो शिक्षा और सशक्तीकरण के माध्यम से गरीबी एवं भेदभाव के चक्र से मुक्त होने में सक्षम हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके क्रियान्वयन की प्रस्थिति पर प्रकाश डालिये। (2016). 

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

शेयर बाज़ार विनियमन

प्रिलिम्स के लिये:

यर बाज़ार विनियमन, सर्वोच्च न्यायालय, सेबी, SCRA, फ्री-मार्केट इकॉनमी, BSE, NSE

मेन्स के लिये:

शेयर बाज़ार विनियमन और धोखाधड़ी के खिलाफ सुरक्षा

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि निवेशकों को शेयर बाज़ार की अस्थिरता से बचाने हेतु भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) तथा सरकार मौजूदा नियामक ढाँचे का निर्माण करें।

शेयर बाज़ार:

  • परिचय: 
    • शेयर बाज़ार सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कंपनियों में इक्विटी शेयरों के व्यापार हेतु खरीदारों और विक्रेताओं को एक साथ लाते हैं।
    • शेयर बाज़ार एक मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था के घटक हैं क्योंकि वे निवेशक व्यापार और पूंजी के आदान-प्रदान हेतु लोकतांत्रिक पहुँच को सक्षम करते हैं।
      • मुक्त-बाज़ार अर्थव्यवस्था एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें सरकारी विनियमन के हस्तक्षेप के बिना आपूर्ति तथा मांग द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
    • भारत में दो स्टॉक एक्सचेंज हैं- बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (Bombay Stock Exchange- BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (National Stock Exchange- NSE)।
    • SEBI भारत में प्रतिभूति बाज़ार का नियामक है। वह कानूनी ढाँचा निर्धारित करता है और बाज़ार संचालन में रुचि रखने वाली सभी संस्थाओं को विनियमित करता है।
      • प्रतिभूति संविदा विनियमन अधिनियम (Securities Contracts Regulation Act- SCRA) ने SEBI को भारत में स्टॉक एक्सचेंजों और फिर कमोडिटी एक्सचेंजों को मान्यता देने तथा विनियमित करने का अधिकार प्रदान किया है; यह कार्य पहले केंद्र सरकार द्वारा किया जाता था।
  • नियमन के लिये कानून: 
    • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 (SEBI अधिनियम): 
      • यह अधिनियम SEBI को निवेशकों के हितों की रक्षा करने और इसे विनियमित करने के अलावा पूंजी/प्रतिभूति बाज़ार के विकास को प्रोत्साहित करने का अधिकार देता है।
      • यह SEBI के कार्यों और शक्तियों का निर्धारण करता है और इसकी संरचना तथा प्रबंधन सुनिश्चित करता है।
    • प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 (SCRA)
      • यह कानून भारत में प्रतिभूति अनुबंधों के नियमन के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
      • इसमें प्रतिभूतियों की लिस्टिंग और ट्रेडिंग, स्टॉक ब्रोकर्स एवं सब-ब्रोकर्स का पंजीकरण तथा विनियमन एवं इनसाइडर ट्रेडिंग पर रोक शामिल है।
    • कंपनी अधिनियम, 2013: 
      • यह कानून भारत में कंपनियों के निगमन, प्रबंधन और शासन को नियंत्रित करता है।
      • यह कंपनियों द्वारा जारी किये जाने वाले प्रतिभूतियों और अन्य प्रतिभूतियों के हस्तांतरण के लिये नियम भी निर्धारित करता है।
    • डिपॉज़िटरी अधिनियम, 1996: 
      • यह कानून भारत में डिपॉज़िटरी के नियमन और पर्यवेक्षण का प्रावधान करता है। यह इलेक्ट्रॉनिक रूप में धारित प्रतिभूतियों के अभौतिकीकरण तथा हस्तांतरण के लिये प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है।
    • इनसाइडर ट्रेडिंग विनियमन, 2015: 
      • ये नियम भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध प्रतिभूतियों में इनसाइडर ट्रेडिंग को प्रतिबंधित करते हैं। इस कार्य में शामिल लोगों के लिये आचार संहिता, खुलासे और उल्लंघन के लिये दंड निर्धारित करते हैं।

बाज़ार की अस्थिरता पर अंकुश लगाने में SEBI की भूमिका:

  • SEBI बाज़ार की अस्थिरता को रोकने के लिये हस्तक्षेप नहीं करता है, अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिये एक्सचेंजों में दो सर्किट फिल्टर होते हैं- पहला ऊपरी या अपर सर्किट और दूसरा निचला या लोअर सर्किट।
  • लेकिन सेबी उन लोगों को निर्देश जारी कर सकता है जो बाज़ार से जुड़े हैं और स्टॉक एक्सचेंजों पर व्यापार एवं निपटान (Settlement) को विनियमित करने की शक्ति रखते हैं।
  • इन शक्तियों का उपयोग करते हुए SEBI स्टॉक एक्सचेंजों को पूरी तरह से या चुनिंदा रूप से व्यापार रोकने का निर्देश दे सकता है। 
  • यह संस्थाओं या व्यक्तियों को प्रतिभूतियों को खरीदने, बेचने या व्यवहार करने, बाज़ार से धन जुटाने और बिचौलियों या सूचीबद्ध कंपनियों से जुड़ने पर भी रोक लगा सकता है।

धोखाधड़ी के खिलाफ सुरक्षात्मक उपाय: 

  • दो प्रमुख प्रकार की धोखाधड़ी- बाज़ार हेर-फेर तथा इनसाइडर ट्रेडिंग को रोकने के लिये सेबी ने वर्ष 1995 में धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार प्रथाओं का निषेध विनियम एवं वर्ष 1992 में इनसाइडर ट्रेडिंग विनियमों का निषेध जारी किया।
    • ये नियम अंदरूनी सूत्रों से प्राप्त जानकारी को धोखाधड़ी के रूप में  परिभाषित करते हैं और इस तरह की धोखाधड़ी की गतिविधियों को प्रतिबंधित करता है, साथ ही गलत माध्यम से अर्जित लाभों पर दंड जैसे प्रावधान भी हैं।
    • इन नियमों का उल्लंघन विधेय अपराध हैं जिसे धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के उल्लंघन के रूप में माना जा सकता है।
  • SEBI ने शेयरों के पर्याप्त अधिग्रहण और अधिग्रहण विनियमों को अधिसूचित किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अधिग्रहण एवं प्रबंधन में परिवर्तन केवल सार्वजनिक शेयरधारकों को कंपनी से बाहर निकलने का अवसर देने के बाद ही किया जाए, यदि वे चाहते हैं।  

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा उन विदेशी निवेशकों को जारी किया जाता है जो खुद को सीधे पंजीकृत किये बिना भारतीय शेयर बाज़ार का हिस्सा बनना चाहते हैं? (2019) 

(a) जमा प्रमाणपत्र
(b) वाणिज्यिक पत्र
(c) वचन पत्र
(d) पार्टिसिपेटरी नोट

उत्तर: (d)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

वस्तु एवं सेवा कर परिषद की 49वीं बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

GST, वस्तु एवं सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण, उपकर, अप्रत्यक्ष कर, कर चोरी।

मेन्स के लिये:

वस्तु एवं सेवा कर, इसका महत्त्व और संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों? 

वस्तु एवं सेवा कर परिषद ने हाल ही में अपनी 49वीं बैठक में पूर्व अप्रत्यक्ष कर प्रणाली के तहत बढ़ती जा रही शिकायतों की बढ़ती संख्या को प्रबंधित करने के लिये GST अपीलीय न्यायाधिकरण के निर्माण पर सहमति जताई है।

प्रमुख बिंदु 

  •  GST अपीलीय न्यायाधिकरण: 
    • इस परिषद ने विवादों के निवारण के लिये राज्य बेंचों के साथ एक राष्ट्रीय न्यायाधिकरण तंत्र के निर्माण को मंज़ूरी दी है।
    • विवादों की बढ़ती संख्या उच्च न्यायालयों और अन्य न्यायिक मंचों को प्रभावित कर रही है, अतः न्यायाधिकरण GST शासन के तहत इन विवादों हल करेगा।
    • इस वर्ष के वित्त विधेयक में न्यायाधिकरण के लिये सक्षम विधायी प्रावधानों को शामिल किया जा सकता है।
      • GST न्यायाधिकरण की नई दिल्ली में एक प्रमुख बेंच और राज्यों में कई बेंच अथवा बोर्ड होंगे। प्रधान बेंच और राज्य बोर्डों में समान प्रतिनिधित्त्व वाले दो तकनीकी और दो न्यायिक सदस्य होंगे।
      • लेकिन सभी चार सदस्य प्रत्येक मामले की सुनवाई में शामिल नहीं होंगे, यह शामिल मामले की सीमा या महत्त्व के आधार पर तय किये जाने की संभावना है।
  • लंबित मुआवज़ा देय राशि का भुगतान:
    • इसने 16,982 करोड़ रुपए (जून 2022 के लिये) की शेष राशि के भुगतान को मंज़ूरी दे दी है।
    • इसने दिल्ली, कर्नाटक, ओडिशा, पुद्दुचेरी, तमिलनाडु और तेलंगाना सहित छह राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों के लिये 16,524 करोड़ रुपए के GST मुआवज़े को अंतिम रूप दिया है।
  • कम दंड शुल्क:
    • इसने 20 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर वाले व्यवसायों द्वारा वार्षिक रिटर्न दाखिल करने में देरी के लिये कम दंड शुल्क को मंज़ूरी दी।
    • करदाता, जो तीन वैधानिक रिटर्न दाखिल करने में असमर्थ हैं, के लिये परिषद ने एक एमनेस्टी कार्यक्रम अपनाया है जिसमें सशर्त छूट या देरी से शुल्क जमा करने पर भी छूट शामिल है।
      • रिटर्न दाखिल न करने (Non-Filers) वालों को स्वेच्छा से आगे आने और विलंब शुल्क से राहत प्रदान करके एकमुश्त अपना GST रिटर्न दाखिल करने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु GST एमनेस्टी योजना शुरू की गई थी।
  • दर परिवर्तन: 
    • पेंसिल शार्पनर, राब (तरल गुड़) जैसी कई वस्तुओं पर GST दर में बदलाव किया गया है।
    • इस परिषद ने राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी सहित किसी भी प्राधिकरण के माध्यम से प्रवेश परीक्षा आयोजित करने पर शैक्षिक संस्थानों और केंद्रीय तथा राज्य शैक्षिक बोर्डों को GST छूट देने का भी निर्णय लिया।
  • कर चोरी रोकना:
    • परिषद ने पान मसाला और गुटखा उत्पादों पर लगाए जाने वाले मुआवज़ा उपकर को यथामूल्य आधार से बदलकर एक विशिष्ट आधार पर लगाने का फैसला किया है। 
      • वस्तुओं एवं सेवाओं पर कर उनके मूल्यानुसार लगाया जाता है।
    • इससे पहले चरण के राजस्व संग्रह को बढ़ावा मिलेगा।
    • परिषद ने यह भी अनिवार्य किया है कि निर्यात की अनुमति केवल GST अनुपालन का आश्वासन देने वाले गारंटी पत्रों पर दी जाएगी।

GST परिषद:

  • परिचय: 
    • यह केंद्र और राज्यों का एक संयुक्त मंच है।
    • यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 279A(1) के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा प्रवर्तित किया गया था।
  • सदस्य: 
    • परिषद के सदस्यों में केंद्रीय वित्त मंत्री (अध्यक्ष), केंद्रीय राज्य मंत्री (वित्त) शामिल हैं। 
    • प्रत्येक राज्य, वित्त या कराधान के प्रभारी मंत्री या किसी अन्य मंत्री को सदस्य के रूप में नामित कर सकता है। 
  • कार्य: 
    • संविधान के अनुच्छेद 279 के अनुसार, परिषद GST से संबंधित महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्र और राज्यों को सिफारिशें कर सकती है, जैसे कि GST मॉडल कानून के तहत किन वस्तुओं और सेवाओं को GST के अधीन छूट दी जा सकती है।
      • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 279 के साथ-साथ अनुच्छेद 279A देश के वित्तीय प्रावधानों से संबंधित है।
      • वे विशेष रूप से संघ शुल्कों और वस्तुओं पर करों से "शुद्ध आय" की गणना तथा क्रमशः माल और सेवा कर परिषद के गठन से संबंधित हैं।
    • यह GST के विभिन्न स्लैब दर पर भी निर्णय लेता है।
      • उदाहरण के लिये मंत्रियों के पैनल की एक अंतरिम रिपोर्ट में कैसीनो, ऑनलाइन गेमिंग और घुड़दौड़ पर 28% GST लगाने का सुझाव दिया गया है।

वस्तु एवं सेवा कर की अवधारणा:

  • परिचय: 
    • GST एक मूल्यवर्द्धित कर प्रणाली है, जिसमें अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर कर लगाया जाता है।  
    • यह एक व्यापक अप्रत्यक्ष कर है जिसे 1 जुलाई, 2017 को 101वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2016 के माध्यम से भारत में 'एक राष्ट्र एक कर' के नारे के साथ पेश किया गया था। 
    • GST में उत्पाद शुल्क, मूल्यवर्द्धित कर (VAT), सेवा कर, लक्जरी कर आदि जैसे अप्रत्यक्ष करों को समाहित किया गया है। 
    • यह अनिवार्य रूप से एक उपभोग कर है और अंतिम खपत स्तर पर लगाया जाता है।
  •  GST के तहत कर संरचना:
    • उत्पाद शुल्क, सेवा कर आदि को कवर करने के लिये केंद्रीय GST
    • वैट, विलासिता कर आदि को कवर करने के लिये राज्य GST
    • अंतर्राज्यीय व्यापार को कवर करने के लिये एकीकृत GST (IGST)
      • IGST स्वयं एक कर नहीं है बल्कि राज्य और संघ के करों के समन्वय के लिये एक कर प्रणाली है।
    • इसमें स्लैब के तहत सभी वस्तुओं और सेवाओं के लिये 5%, 12%, 18% और 28% की 4-स्तरीय कर संरचना है।

GST से जुड़े मुद्दे:

  • जटिलता:  
    • भारत में GST प्रणाली कई कर दरों, छूट और अनुपालन आवश्यकताओं के साथ काफी जटिल है।
    • यह देश में सभी वस्तुओं और सेवाओं के लिये एकल अप्रत्यक्ष कर की दर की प्रगति को बाधित करता है।
  • उच्च कर दरें:
    • कुछ उद्योग और वस्तुएँ उच्च GST दरों के अधीन हैं, जो कई उपभोक्ताओं के लिये उन्हें अवहनीय बना सकते हैं।  
      • उदाहरण के लिये विलासिता की वस्तुओं और सेवाओं पर कर की दर 28% है, जो काफी अधिक है। 
    • हालाँकि दरों को युक्तिसंगत बनाया गया है, 50% वस्तुएँ 18% कर के दायरे में हैं।
  • अनुपालन भार:
    • GST व्यवस्था में रिटर्न दाखिल करने, रिकॉर्ड बनाए रखने और नियमित ऑडिट सहित कई अनुपालन आवश्यकताएँ हैं। यह व्यवसायों, विशेष रूप से छोटे और मध्यम उद्यमों पर  एक भार हो सकता है। 
  • तकनीकी मुद्दे:  
    • GST नेटवर्क में तकनीकी गड़बड़ी के कारण रिटर्न दाखिल करने और इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा करने में देरी हुई है।
  • असंगठित क्षेत्र पर प्रभाव:
    • असंगठित क्षेत्र, जो भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, GST से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ है।  
    • कई छोटे व्यवसायों और व्यापारियों के लिये नई कर व्यवस्था का अनुपालन करना चुनौतीपूर्ण है।
  •  स्पष्टता की कमी:
    • GST व्यवस्था के कुछ पहलुओं पर अभी भी स्पष्टता की कमी है, जैसे कि वस्तुओं और सेवाओं का वर्गीकरण तथा कर दरों की प्रयोज्यता। स्पष्टता की यह कमी भ्रम एवं विवाद की स्थिति पैदा कर सकती है। 

आगे की राह 

  • अनुपालन प्रक्रिया को सरल बनाना, जानकारी तक आसान पहुँच प्रदान करना और करदाताओं के लिये समर्थन बढ़ाना इस समस्या को हल करने में मदद कर सकता है।
  • तकनीकी समस्याएँ जैसे- सिस्टम डाउनटाइम, पोर्टल एरर और अन्य गड़बड़ियाँ व्यवसायों के लिये गंभीर व्यवधान पैदा कर सकती हैं। इन तकनीकी मुद्दों को संबोधित करने से व्यवसायों को GST आवश्यकताओं का अधिक प्रभावी ढंग से अनुपालन करने में मदद मिल सकती है। 
  • कई छोटे व्यवसायों और व्यापारियों को GST प्रणाली और इसके प्रभावों के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती है। GST प्रणाली के बारे में जागरूकता बढ़ाने और शिक्षित करने से अनुपालन में सुधार एवं त्रुटियों को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • GST केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच एक सहयोगी प्रयास है तथा इसकी सफलता के लिये उनके बीच समन्वय महत्त्वपूर्ण है। संचार एवं समन्वय में सुधार से GST प्रणाली के सुचारु कार्यान्वयन सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित मदों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. छिलका उतरे हुए अनाज़
  2. मुर्गी के अंडे पकाए हुए
  3. संसाधित और डिब्बाबंद मछली 
  4. विज्ञापन सामग्री युक्त समाचार पत्र

उपर्युक्त मदों में से कौन-सी वस्तु/वस्तुएँ जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के अंतर्गत छूट प्राप्त है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


प्रश्न. 'वस्तु एवं सेवा कर (गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स/GST)'  के क्रियान्वित किये जाने का/के सर्वाधिक संभावित लाभ क्या है/हैं? (2017)

  1. यह भारत में बहु-प्राधिकरणों द्वारा वसूल किये जा रहे बहुल करों का स्थान लेगा और इस प्रकार एकल बाज़ार स्थापित  करेगा।
  2. यह भारत के 'चालू खाता घाटे' को प्रबलता से कम कर विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने हेतु इसे सक्षम बनाएगा।
  3. यह भारत की अर्थव्यवस्था की संवृद्धि और आकार को वृहद् रूप से बढ़ाएगा और उसे निकट भविष्य में चीन से आगे निकलने में सक्षम बनाएगा।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न. वस्तु एवं सेवा कर (राज्यों को क्षतिपूर्ति) अधिनियम, 2017 के तर्काधार की व्याख्या कीजिये। कोविड-19 ने कैसे वस्तु एवं सेवा कर क्षतिपूर्ति निधि को प्रभावित किया है और नए संघीय तनावों को उत्पन्न किया है? (मुख्य परीक्षा, 2020)

प्रश्न. उन अप्रत्यक्ष करों को गिनाइये जो भारत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में सम्मिलित किये गए हैं। भारत में जुलाई 2017 से क्रियान्वित जीएसटी के राजस्व निहितार्थों पर भी टिप्पणी कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2019)

प्रश्न. संविधान (101वाँ संशोधन) अधिनियम, 2016 की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये। क्या आपको लगता है कि यह "करों के प्रपाती प्रभाव को दूर करने और वस्तुओं और सेवाओं के लिये सामान्य राष्ट्रीय बाज़ार प्रदान करने" हेतु पर्याप्त रूप से प्रभावी है? (मुख्य परीक्षा, 2017)

प्रश्न. भारत में माल व सेवा कर (GST) प्रारंभ करने के मूलाधार की विवेचना कीजिये। इस व्यवस्था को लागू करने में विलंब के कारणों का समालोचनात्मक वर्णन कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2013) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

गहरे समुद्र में खनन और इसके खतरे

प्रिलिम्स के लिये:

गहरे समुद्र में खनन, UNCLOS, समुद्री विज्ञान पर फ्रंटियर्स रिपोर्ट, गहरे समुद्री मिशन 

मेन्स के लिये:

गहरे समुद्र में खनन और इसके प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही के एक अध्ययन ने सुझाव दिया है कि वाणिज्यिक पैमाने पर गहरे समुद्र तल पर खनन कार्य महासागरों और लुप्तप्राय प्रजातियों जैसे- ब्लू व्हेल और कई डॉल्फिन प्रजातियों को नुकसान पहुँचा सकता है।

  • यह मूल्यांकन इन प्रजातियों की रक्षा के लिये निरंतर संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता पर बल देता है।

गहरे समुद्र में खनन:

  • परिचय: 
  • गहरे समुद्र में खनन से तात्पर्य 200 मीटर से नीचे गहरे समुद्र तल से खनिज निकालने की प्रक्रिया से है, जो कुल समुद्री तल के दो-तिहाई हिस्से को कवर करता है।
  • गहरे समुद्र में खनिज संसाधनों से संबंधित सभी गतिविधियों की निगरानी के लिये सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS) के तहत एक एजेंसी इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय सीबेड वह क्षेत्र है जो राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र की सीमा से बाहर है और विश्व के महासागरों के कुल क्षेत्र का लगभग 50% प्रतिनिधित्त्व करता है। 
  • ISA ने गहरे समुद्र में खनिज भंडार का पता लगाने के लिये 32 अनुबंध किये हैं। खनिज अन्वेषण का पता लगाने हेतु 1.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल को अलग रखा गया है।

Potential-Effects

  • शासन: 
    • ISA को UNCLOS द्वारा 2 वर्षों के भीतर गहरे समुद्र में खनन की रूपरेखा को नियंत्रित करने वाले नियमों, विनियमों और प्रक्रियाओं सहित शासन के बुनियादी ढाँचे को स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • विफलता के मामले में ISA को कम-से-कम दो वर्ष के अंत तक खनन प्रस्ताव का मूल्यांकन करना चाहिये।
    • 11वाँ वार्षिक डीप सी माइनिंग समिट 2023 लंदन, यूनाइटेड किंगडम में आयोजित किया जाना है। एजेंडे में "आर्थिक परिदृश्य और गहरे समुद्र में खनन के लिये विकास एवं व्यावसायीकरण से जुड़े तकनीकी विकास" शामिल हैं।

बढ़ती रुचि का कारण:

  • स्थलीय निक्षेपों का क्षरण: तांबा, निकल, एल्युमीनियम, मैंगनीज़, जस्ता, लिथियम और कोबाल्ट जैसी धातुओं के घटते भंडार के कारण गहरे समुद्र के निक्षेपों की ओर ध्यान केंद्रित हुआ।
    • खनिज संसाधन गहरे प्रशांत और हिंद महासागर सहित विभिन्न गहरे महासागरीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स से निकाले जाते हैं। 
    • नोड्यूल लगभग आलू के आकार के होते हैं और क्लैरियन-क्लिपर्टन ज़ोन (CCZ) में वितलीय मैदानों में तलछट की सतह पर पाए जाते हैं, जो मध्य प्रशांत महासागर में 4,000 - 5,500 मीटर की गहराई पर 5,000 किलोमीटर (3,100 मील) तक फैला क्षेत्र है।  
  • बढ़ती मांग: स्मार्टफोन, पवन टर्बाइन, सौर पैनल और बैटरी का उत्पादन करने के लिये इन धातुओं की मांग भी बढ़ रही है। 

सेटेशियन (Cetaceans):

  • सेटेशियन विशेष रूप से जलीय स्तनधारी (व्हेल, डॉल्फिन, पोर्पोइज़ आदि सहित) हैं जो सेटेसिया क्रम का गठन करते हैं। वे दुनिया भर में महासागरों में और कुछ मीठे पानी के वातावरण में पाए जाते हैं।
  • इनका शरीर संकुचित/पतला होता है, कोई बाह्य पश्चपाद नहीं होता है तथा पूँछ दो भागों या क्षैतिज ब्लेड के तिकोना नुकीले भाग के रूप में समाप्त होती है। 
  • अपने सिर के ऊपर स्थित ब्लोहोल्स के माध्यम से साँस लेने के लिये सेटेशियन को जल की सतह पर आना पड़ता है।

खतरा:

  • वाणिज्यिक पैमाने पर खनन दिन में 24 घंटे संचालित रहने की संभावना है, जिससे ध्वनि प्रदूषण होता है।  
    • यह उन आवृत्तियों के साथ ओवरलैप कर सकता है जिन पर सेटेशियन संचार करते हैं, जो समुद्री स्तनधारियों में श्रवण प्रच्छादन और व्यवहार परिवर्तन का कारण बन सकता है। 
  • खनन वाहनों द्वारा उत्पन्न तलछट का निपटान आसपास के क्षेत्र में समुद्र के तल में प्रजातियों (बेथेंटिक प्रजाति) को क्षति पहुँचा सकता है/मार सकता है।
  • प्रसंस्करण वाहिकाओं से निकलने वाले तलछट भी जल के स्तंभ में मैलापन बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा दृष्टि से दूर प्रभाव काफी हद तक अनिश्चित हो सकते हैं।

भारत का डीप ओशन मिशन:

  • डीप ओशन मिशन गहरे समुद्र तल में खनिजों की खोज और निष्कर्षण के लिये आवश्यक प्रौद्योगिकियों को विकसित करना चाहता है। 
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) इस बहु-संस्थागत महत्त्वाकांक्षी मिशन को लागू करने वाला नोडल मंत्रालय होगा। 
  • यह एक मानवयुक्त पनडुब्बी (मत्स्य 6000) विकसित करेगा जो वैज्ञानिक सेंसर और उपकरणों के साथ समुद्र में 6,000 मीटर की गहराई तक तीन लोगों को ले जा सकती है। 
  • यह "गहरे समुद्र की वनस्पतियों और जीवों के जैव-पूर्वेक्षण एवं गहरे समुद्र के जैव-संसाधनों के सतत् उपयोग पर अध्ययन" के माध्यम से गहरे समुद्र की जैवविविधता की खोज तथा संरक्षण हेतु तकनीकी नवाचारों को आगे बढ़ाएगा।
  • मिशन अपतटीय महासागर थर्मल ऊर्जा रूपांतरण (Offshore Ocean Thermal Energy Conversion- OTEC) संचालित अलवणीकरण संयंत्रों के अध्ययन और विस्तृत इंजीनियरिंग डिज़ाइन के माध्यम से समुद्र से ऊर्जा एवं मीठे जल प्राप्त करने की संभावनाओं का पता लगाने का प्रयास करेगा। 

अन्य ब्लू इकॉनमी पहल:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न: 'क्षेत्रीय सहयोग के लिये हिंद महासागर रिम संघ (इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन- IOR-ARC)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. इसकी स्थापना अत्यंत हाल ही में समुद्री डकैती की घटनाओं और तेल अधिप्लाव (आयल स्पिल्स) की दुर्घटनाओं के प्रतिक्रियास्वरूप की गई है। 
  2. यह एक ऐसी मैत्री है जो केवल समुद्री सुरक्षा हेतु है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: D

व्याख्या:

  • क्षेत्रीय सहयोग के लिये हिंद महासागर रिम संघ (IOR-ARC) हिंद महासागर में रिम (Rim) देशों की एक क्षेत्रीय सहयोग पहल, जिसे मार्च 1997 में मॉरीशस में इसके सदस्यों के मध्य आर्थिक और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • IOR-ARC एकमात्र अखिल भारतीय महासागर समूह है। इसमें 23 सदस्य देश और 9 डायलॉग पार्टनर हैं।
  • इसका उद्देश्य हिंद महासागर रिम क्षेत्र में व्यापार, सामाजिक-आर्थिक तथा सांस्कृतिक सहयोग के लिये एक मंच उपलब्ध कराना है, जो लगभग दो अरब लोगों की जनसंख्या का प्रतिनिधित्त्व करता है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • हिंद महासागर रिम सामरिक और कीमती खनिजों, धातुओं एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों, समुद्री संसाधनों तथा ऊर्जा से समृद्ध है, जो सभी विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों (EEZ), महाद्वीपीय समतल और गहरे समुद्री तल से प्राप्त किये जा सकते हैं। 

अतः विकल्प D सही है।


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021) 

  • वैश्विक महासागर आयोग अंतर्राष्ट्रीय जल में समुद्र तल की खोज और खनन के लिये लाइसेंस प्रदान करता है।
  • भारत को अंतर्राष्ट्रीय जल में समुद्र तल खनिज अन्वेषण के लिये लाइसेंस प्राप्त हुआ है।
  • 'दुर्लभ मृदा खनिज' अंतर्राष्ट्रीय समुद्र जल तल पर मौजूद हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) संयुक्त राष्ट्र का एक निकाय है, जो अंतर्राष्ट्रीय जल में महासागरों के समुद्री गैर-जीवित संसाधनों की खोज और दोहन को विनियमित करने के लिये स्थापित किया गया है। यह गहन समुद्री संसाधनों की खोज एवं दोहन पर विचार करता है, जो पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करता है तथा खनन गतिविधियों की निगरानी करता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • भारत वर्ष 1987 में 'पायनियर इन्वेस्टर' का दर्जा प्राप्त करने वाला पहला देश था और नोड्यूल की खोज के लिये भारत को मध्य हिंद महासागर बेसिन (CIOB) में लगभग 5 लाख वर्ग किमी. के क्षेत्र पर अनुमति प्रदान की गई थी। मध्य हिंद महासागर बेसिन में समुद्र तल से पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स की खोज करने के लिये भारत के विशेष अधिकारों को वर्ष 2017 में पाँच वर्षों के लिये बढ़ा दिया गया था। अत: कथन 2 सही है।
  • दुर्लभ मृदा खनिज अंतर्राष्ट्रीय जल में समुद्र तल पर पाए जाते हैं। विभिन्न महासागरों के समुद्र तल में दुर्लभ-पृथ्वी खनिजों का दुनिया का सबसे बड़ा अप्रयुक्त संग्रह है। अत: कथन 3 सही है।

अतः विकल्प (b) सही है।


मेन्स

प्रश्न. विश्व में संसाधन संकट से निपटने के लिये महासागरों के विभिन्न संसाधनों, जिनका उपयोग किया जा सकता,  का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


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