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डेली न्यूज़

  • 21 Jan, 2022
  • 39 min read
शासन व्यवस्था

रोगाणुरोधी प्रतिरोध

प्रिलिम्स के लिये:

रोगाणुरोधी प्रतिरोध

मेन्स के लिये:

रोगाणुरोधी प्रतिरोध और संबंधित मुद्दे, इससे निपटने के लिये की गई पहल

चर्चा में क्यों?

ग्लोबल रिसर्च ऑन एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस (GRAM) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में AMR (एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस) के प्रत्यक्ष परिणाम के 1.27 मिलियन लोगों की मौत हुई।

  • AMR के कारण होने वाली मौतें अब दुनिया भर में मौत का एक प्रमुख कारण है, जो एचआईवी/एड्स या मलेरिया से ज़्यादा हैं।
  • AMR से अधिकांश मौतें श्वसन संक्रमण, जैसे निमोनिया, और रक्त प्रवाह संक्रमण के कारण हुईं, जिससे सेप्सिस हो सकता है।
    • MRSA (मेथिसिलिन-रेसिस्टेंट स्टैफिलोकोकस ऑरियस) विशेष रूप से घातक था, जबकि ई. कोलाई और कई अन्य बैक्टीरिया भी दवा प्रतिरोध के उच्च स्तर से जुड़े थे।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • रोगाणुरोधी प्रतिरोध किसी भी सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, कवक, परजीवी, आदि) द्वारा रोगाणुरोधी दवाओं (जैसे- एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटीमाइरियल और एंटीहेल्मिंटिक्स) के खिलाफ प्राप्त प्रतिरोध है जिसे संक्रमण के इलाज के लिये उपयोग किया जाता है।
    • नतीजतन, मानक उपचार अप्रभावी हो जाते हैं, संक्रमण बना रहता है और दूसरों में फैल सकता है।
    • रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित करने वाले सूक्ष्मजीवों को कभी-कभी "सुपरबग" कहा जाता है।
  • AMR के प्रसार का कारण:
    • दवा में रोगाणुरोधी दवाओं का दुरुपयोग और कृषि में अनुपयुक्त उपयोग।
    • फार्मास्यूटिकल निर्माण स्थलों के आसपास संदूषण जहाँ अनुपचारित अपशिष्ट पर्यावरण में बड़ी मात्रा में सक्रिय रोगाणुरोधी छोड़ते हैं।
  • भारत में AMR:
    • भारत में बड़ी आबादी के संयोजन के साथ बढ़ती हुई आय जो कि एंटीबायोटिक दवाओं की खरीद की सुविधा प्रदान करती है, संक्रामक रोगों का उच्च बोझ और एंटीबायोटिक दवाओं के लिये आसान ओवर-द-काउंटर (Over-the-Counter) पहुँच की सुविधा प्रदान करती है, प्रतिरोधी जीन की पीढ़ी को बढ़ावा देती है। 
    • बहु-दवा प्रतिरोध निर्धारक, नई दिल्ली मेटालो-बीटा-लैक्टामेज़-1 (एनडीएम -1), इस क्षेत्र में विश्व स्तर पर तेज़ी से  उभरा है।
      • अफ्रीका, यूरोप और एशिया के अन्य भाग भी दक्षिण एशिया से उत्पन्न होने वाले बहु-दवा प्रतिरोधी टाइफाइड से प्रभावित हुए हैं।
    • भारत में सूक्ष्मजीवों (जीवाणु और विषाणु सहित) के कारण सेप्सिस से प्रत्येक वर्ष 56,000 से अधिक नवजात बच्चों की मौत होती है जो पहली पंक्ति के एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधी हैं।
    • 10 अस्पतालों में ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चलता है कि जब कोविड-19 के मरीज़ अस्पतालों में दवा प्रतिरोधी संक्रमण की चपेट में आते हैं तो मृत्यु दर लगभग 50-60% होती है।
  • AMR (भारत में) को संबोधित करने के लिये किये गए उपाय:
    • AMR नियंत्रण पर राष्ट्रीय कार्यक्रम: इसे वर्ष 2012 में शुरू किया गया। इस कार्यक्रम के तहत राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में प्रयोगशालाओं की स्थापना करके AMR निगरानी नेटवर्क को मज़बूत किया गया है।
    • AMR पर राष्ट्रीय कार्ययोजना: यह स्वास्थ्य दृष्टिकोण पर केंद्रित है और अप्रैल 2017 में विभिन्न हितधारक मंत्रालयों/विभागों को शामिल करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
    • AMR सर्विलांस एंड रिसर्च नेटवर्क (AMRSN): इसे वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया था ताकि देश में दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के सबूत और प्रवृत्तियों तथा पैटर्न का अनुसरण किया जा सके।
    • AMR अनुसंधान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने AMR में चिकित्सा अनुसंधान को मज़बूत करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से नई दवाओं को विकसित करने की पहल की है।
      • वर्ष 2017 में ICMR ने नॉर्वे रिसर्च काउंसिल (RCN) के साथ मिलकर रोगाणुरोधी प्रतिरोध में अनुसंधान के लिये एक संयुक्त आह्वान किया।
      • ICMR ने संघीय शिक्षा और अनुसंधान मंत्रालय (BMBF) जर्मनी के साथ AMR पर शोध हेतु एक संयुक्त भारत-जर्मन पहल को शुरू किया है।
    • एंटीबायोटिक प्रबंधन कार्यक्रम: ICMR ने अस्पताल वार्डों और आईसीयू में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग तथा अति प्रयोग को नियंत्रित करने के लिये भारत में एक पायलट परियोजना पर एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप कार्यक्रम शुरू किया है।
      • DCGI ने अनुपयुक्त पाए गए 40 निश्चित खुराक संयोजन (Fixed Dose Combinations- FDCs) पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • वैश्विक उपाय:
    • विश्व रोगाणुरोधी जागरूकता सप्ताह (WAAW):
      • वर्ष 2015 से सालाना आयोजित किया जाने वाला, WAAW एक वैश्विक अभियान है जिसका उद्देश्य दुनिया भर में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के बारे में जागरूकता को बढ़ाना और दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के विकास और प्रसार को धीमा करने के लिये  आम जनता, स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं और नीति निर्माताओं के बीच सर्वोत्तम उपायों को प्रोत्साहित करना है।.
    • वैश्विक रोगाणुरोधी प्रतिरोध और उपयोग निगरानी प्रणाली (ग्लास):
      • वर्ष 2015 में WHO ने  ज्ञान अंतराल को समाप्त करने और सभी स्तरों पर रणनीतियों को सूचित करने हेतु ग्लास (GLASS) को लॉन्च किया।
      • ग्लास की कल्पना मनुष्यों में AMR की निगरानी, रोगाणुरोधी दवाओं के उपयोग की निगरानी, खाद्य शृंखला और पर्यावरण में AMR डेटा को प्राप्त करने के लिये की गई है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


शासन व्यवस्था

‘अखिल भारतीय सेवा’ अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति

प्रिलिम्स के लिये:

अखिल भारतीय सेवाएँ (AIS), कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT)।

मेन्स के लिये:

भारतीय प्रशासनिक सेवा (कैडर) नियम 1954, अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति, AIS अधिकारियों की संघीय प्रकृति।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने राज्यों को लिखा है कि केंद्र सरकार ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा (कैडर) नियम-1954’ के नियम 6 (कैडर अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति) में संशोधन करने का प्रस्ताव करती है।

  • इसके तहत केंद्र सरकार IAS और IPS अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के माध्यम से स्थानांतरित करने हेतु राज्य सरकारों की मंज़ूरी लेने की आवश्यकता को समाप्त करने हेतु अधिभावी शक्तियों का अधिग्रहण करेगी।

प्रमुख बिंदु

  • अखिल भारतीय सेवाएँ:
    • परिचय: अखिल भारतीय सेवाओं (AIS) में भारत की तीन सिविल सेवाएँ शामिल हैं:
      • भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS)
      • भारतीय पुलिस सेवा (IPS)
      • भारतीय वन सेवा (IFoS)।
    • अखिल भारतीय सेवाओं की संघीय प्रकृति: अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों की भर्ती केंद्र सरकार द्वारा (UPSC के माध्यम से) की जाती है और उनकी सेवाओं को विभिन्न राज्य संवर्गों के तहत आवंटित किया जाता है।
      • इसलिये उनकी राज्य और केंद्र दोनों के अधीन सेवा करने की जवाबदेही होती है।
      • हालाँकि अखिल भारतीय सेवाओं की कैडर नियंत्रण अथॉरिटी केंद्र सरकार के पास है।
        • DoPT भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारियों का कैडर कंट्रोलिंग अथॉरिटी है।
        • भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा अधिकारियों (IFoS) की प्रतिनियुक्ति के लिये कैडर कंट्रोलिंग अथॉरिटी क्रमशः गृह मंत्रालय (MHA) और पर्यावरण मंत्रालय के पास हैं।
    • केंद्रीय प्रतिनियुक्ति रिज़र्व: राज्य सरकार को प्रतिनियुक्ति हेतु उपलब्ध अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति रिज़र्व (Central Deputation Quota) के तहत निर्धारित करना है।
      • प्रत्येक राज्य कैडर/संवर्ग सेवा का एक केंद्रीय प्रतिनियुक्ति कोटा प्रदान करता है जिसके लिये केंद्र सरकार में पदों पर सेवा देने हेतु प्रशिक्षित और अनुभवी सदस्यों को प्रदान करने के लिये सेवा में अतिरिक्त भर्ती की आवश्यकता होती है।
  • एआईएस अधिकारी की प्रतिनियुक्ति और वर्तमान नियम:
    • सामान्य व्यवहार में केंद्र हर साल केंद्रीय प्रतिनियुक्ति (Deputation) पर जाने के इच्छुक अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की "प्रस्ताव सूची" मांगता है जिसके बाद वह उस सूची से अधिकारियों का चयन करता है।
    • अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति हेतु राज्य सरकार से मंज़ूरी लेनी होती है।
    • राज्यों को केंद्र सरकार के कार्यालयों में अखिल भारतीय सेवा (एआईएस) अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति करनी होती है और किसी भी समय यह कुल संवर्ग की संख्या के 40% से अधिक नहीं हो सकती है।
  • प्रस्तावित संशोधन:
    • यदि राज्य सरकार किसी राज्य कैडर अधिकारी को केंद्र में नियुक्ति करने में देरी करती है और निर्दिष्ट समय के भीतर केंद्र सरकार के निर्णय को लागू नहीं करती है, तो अधिकारी को केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट तिथि से कैडर से मुक्त कर दिया जाएगा।
    • केंद्र, राज्य के परामर्श से केंद्र सरकार को प्रतिनियुक्त किये जाने वाले अधिकारियों की वास्तविक संख्या तय करेगा।
    • केंद्र और राज्य के बीच किसी भी असहमति के मामले में केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाएगा और राज्य, केंद्र के फैसले को लागू करेगा।
    • विशिष्ट स्थितियों में जब केंद्र सरकार द्वारा "जनहित" में कैडर अधिकारियों की सेवाओं की आवश्यकता होती है, राज्य अपने निर्णयों को एक निर्दिष्ट समय के भीतर प्रभावी करेगा।
  • DoPT का पक्ष:
    • डीओपीटी ने कहा कि वह केंद्रीय मंत्रालयों में अखिल भारतीय सेवा (एआईएस) अधिकारियों की कमी के मद्देनज़र यह फैसला ले रहा है।
    • डीओपीटी के अनुसार, राज्य केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिये पर्याप्त संख्या में अधिकारियों को प्रायोजित नहीं कर रहे हैं और अधिकारियों की संख्या केंद्र में आवश्यकता को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
  • कुछ राज्यों द्वारा विरोध:
    • यह सहकारी संघवाद की भावना के विरुद्ध है।
    • प्रस्तावित संशोधन नौकरशाही पर राज्य के राजनीतिक नियंत्रण को कमज़ोर करेगा।
    • यह प्रभावी शासन को बाधित करेगा और परिहार्य कानूनी और प्रशासनिक विवाद पैदा करेगा।
    • केंद्र एक चुनी हुई राज्य सरकार के खिलाफ नौकरशाही को हथियार बना सकता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

चुनावी बॉण्ड

प्रिलिम्स के लिये:

चुनावी बॉण्ड

मेन्स के लिये:

चुनावी बॉण्ड, इलेक्शन फंडिंग, राजनीति के अपराधीकरण से जुड़े मुद्दे।

चर्चा में क्यों? 

पांँच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी बॉण्ड (Electoral Bonds) की 19वी किश्त, जिसे नकद विकल्प के रूप में पेश किया किया जाता है, की बिक्री की गई।

  • पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड के जरिये राजनीतिक दलों को मिली धनराशि के दुरुपयोग पर  आशंका जताई है।
  • यह चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने और राजनीति के अपराधीकरण पर रोक लगाने हेतु  भी इन बॉण्डों को पेश करने के मूल विचार को खंडित कर सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • चुनावी बॉण्ड के बारे में:
    • चुनावी बॉण्ड बिना किसी अधिकतम सीमा के 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किये जाते हैं।
    • भारतीय स्टेट बैंक इन बॉण्डों को जारी करने और भुनाने (Encash) के लिये अधिकृत बैंक है, ये बॉण्ड जारी करने की तारीख से पंद्रह दिनों तक वैध रहते हैं।
    • यह बॉण्ड इन्हें एक पंजीकृत राजनीतिक पार्टी के निर्दिष्ट खाते में प्रतिदेय होता है।
    • बॉण्ड किसी भी व्यक्ति (जो भारत का नागरिक है) द्वारा जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि हेतु खरीद के लिये उपलब्ध होते हैं, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया गया है।
    • एक व्यक्ति या तो अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से बॉण्ड खरीद सकता है।
    • बॉण्ड पर दाता के नाम का उल्लेख नहीं किया जाता है।
  • संबंधित मुद्दे:
    • लोकतंत्र के लिये  झटका: वित्त अधिनियम 2017 में संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त चंदे का खुलासा करने से छूट दी है।
      • इसका मतलब है कि मतदाता यह नहीं जान पाएंगे कि किस व्यक्ति, कंपनी या संगठन ने किस पार्टी को और किस हद तक वित्तपोषित किया है।
      • हालांँकि एक प्रतिनिधि लोकतंत्र में नागरिक उन लोगों को वोट देना पसंद करते हैं जो संसद में उनका प्रतिनिधित्व करेंगे।
    • जानने के अधिकार से समझौता: भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात को स्वीकार किया है कि "जानने का अधिकार" (Right To Know) विशेष रूप से चुनावों के संदर्भ में भारतीय संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 19) का एक अभिन्न अंग है।
    • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के खिलाफ: चुनावी बॉण्ड नागरिकों को इस संदर्भ में कोई विवरण नहीं देते हैं।
      • उक्त गुमनामी उस समय की सरकार पर लागू नहीं होती है, जो भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से डेटा की मांग करके हमेशा दाता के विवरण तक पहुँच सकती है।
      • इसका मतलब यह है कि सत्ता में बैठी सरकार इस जानकारी का लाभ उठा सकती है और स्वतंत्र व निष्पक्ष होने वाले चुनाव को बाधित कर सकती है।
    • क्रोनी कैपिटलिज्म: चुनावी बॉण्ड योजना राजनीतिक चंदे पर पहले से मौजूद सभी सीमाओं को हटा देती है और प्रभावी रूप से अछे संसाधन वाले निगमों को चुनावों के लिये धन देने की अनुमति देती है जिससे क्रोनी कैपिटलिज्म का मार्ग प्रशस्त होता है।

आगे की राह:

  • चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता: कई उन्नत देशों में चुनावों को सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित किया जाता है। यह समानता के सिद्धांतों को सुनिश्चित करता है। सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं है।
    • 2nd ARC, दिनेश गोस्वामी समिति और कई अन्य ने भी चुनावों हेतु राज्य के लिये वित्तपोषण की सिफारिश की है।
    • इसके अलावा जब तक चुनावों को सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित नहीं किया जाता है, तब तक राजनीतिक दलों को वित्तीय योगदान पर सीमाएँ लागू हो सकती हैं।
  • न्यायपालिका का रेफरी/अंपायर के रूप में कार्य करना: एक कार्यशील लोकतंत्र में स्वतंत्र  न्यायपालिका के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के मूल सिद्धांतों के लिये रेफरी/अंपायर के रूप में कार्य करना है।
    • चुनावी बॉण्ड ने सरकार की चुनावी वैधता पर सवाल खड़े कर दिये हैं और इस तरह पूरी चुनावी प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न खड़े हो गए हैं।
    • इस संदर्भ में न्यायालयों को एक रेफरी/अंपायर के रूप में कार्य करना चाहिये और लोकतंत्र के ज़मीनी नियमों को लागू करना चाहिये।
  • नागरिक संस्कृति की ओर ट्रांज़ीशन: भारत लगभग 75 वर्षों से लोकतंत्र के रूप में बेहतर तरीके से काम कर रहा है।
    • अब सरकार को और अधिक जवाबदेह बनाने के लिये मतदाताओं को स्वयं जागरूक होकर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाले उम्मीदवारों तथा पार्टियों को खारिज करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

तेज़ी से हरित मंज़ूरी पर राज्यों की रैंकिंग

प्रिलिम्स के लिये:

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, पर्यावरण प्रभाव आकलन।

मेन्स के लिये:

पर्यावरणीय मंज़ूरी (EC) प्रक्रिया और भारत में संबंधित बाधाएँ, भारत में व्यापार करने में आसानी और इससे संबंधित चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राज्यों विशेष रूप से राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरणों (State Environment Impact Assessment Authorities) को उस गति से रैंक करने का निर्णय लिया है जिस गति से वे विकास परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंज़ूरी (Environmental Clearances) प्रदान करते हैं।

  • "ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business)" के लिये विशेष रूप से "मंज़ूरी हेतु समय के आधार पर राज्यों की रैंकिंग" के संदर्भ में की गई कार्रवाई का मुद्दा नवंबर 2021 में उठाया गया था।
  • सभी क्षेत्रों में पर्यावरण मंज़ूरी दिये जाने की औसत अवधि वर्ष 2019 के 150 दिनों से कम की तुलना में वर्ष 2021 में 90 दिनों से कम है।

राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAAs):

  • SEIAAs बुनियादी ढाँचे, विकासात्मक और औद्योगिक परियोजनाओं के एक बड़े हिस्से के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी प्रदान करने हेतु ज़िम्मेदार हैं।
  • इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण और लोगों पर प्रस्तावित परियोजना के प्रभाव का आकलन करने और इस प्रभाव को कम करने का प्रयास करना है।

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • पर्यावरणीय मंज़ूरी (EC) के अनुदान में दक्षता और समयबद्धता के आधार पर राज्यों को स्टार-रेटिंग प्रणाली के माध्यम से प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया गया है।
    • यह मान्यता और प्रोत्साहन के साथ-साथ जहाँ आवश्यक हो, सुधार के लिये प्रेरित करने के तरीके के रूप में अभिप्रेत है।
    • राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) जो कम से कम समय में परियोजनाओं को मंज़ूरी देता है, मंज़ूरी की उच्च दर तथा कम “आवश्यक विवरण” चाहता है, उसे सर्वोच्च स्थान दिया जाएगा।
  • रेटिंग प्रणाली हेतु पैरामीटर:
    • SEIAAs को पाँच मापदंडों पर 0 और 1 के बीच और EC देने के लिये 0 और 2 के बीच वर्गीकृत किया जाएगा।
    • पैरामीटर हैं:
      • परियोजनाओं के लिये EC या संदर्भ की शर्तों (ToR) की मांग वाले प्रस्तावों को स्वीकार करने हेतु एसईआईएए द्वारा लिये गए दिनों की औसत संख्या।
      • प्राधिकरण द्वारा संबोधित शिकायतों की संख्या।
      • उन मामलों का प्रतिशत जिनके लिये SEIAAs या ‘राज्य विशेषज्ञ मूल्यांकन समितियों’ (SEACs) द्वारा साइट का दौरा किया जाता है।
      • उन मामलों का प्रतिशत जिनमें प्राधिकरण परियोजना प्रस्तावकों से एक से अधिक बार अतिरिक्त जानकारी मांगता है।
      • 30 दिनों से अधिक पुराने नए या संशोधित ToRs चाहने वाले प्रस्तावों के निपटान का प्रतिशत।
      • 120 दिनों से अधिक पुराने, नए या संशोधित EC चाहने वाले प्रस्तावों के निपटान का प्रतिशत।
  • इस कदम की आलोचना
    • SEIAA को 'रबड़ स्टैम्प प्राधिकरण' बनाना:
      • इस तरह की रेटिंग प्रणाली SEIAA को एक 'रबर स्टैम्प अथॉरिटी' बना देगी, जहाँ उसके प्रदर्शन को उस रूप में आँका जाएगा, जहाँ वे पर्यावरणीय गिरावट और सामुदायिक आजीविका को खतरे में डालते हैं।
    • अनुच्छेद-21 के विरुद्ध:
      • यह रेटिंग प्रणाली भी पर्यावरण के कानून के खिलाफ है और संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण) का उल्लंघन करती है तथा पर्यावरण एवं लोगों की कीमत पर केवल व्यापार को लाभ पहुँचाती है।
    • SEIAAs के जनादेश को बाधित करना:
      • यह कदम पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना के तहत SEIAAs के जनादेश को गंभीर रूप से बाधित करेगा।
      • यह रेटिंग प्रणाली पर्यावरण प्रभाव आकलन की गुणवत्ता में और कमी ला सकती है और यह प्रणाली केवल नियामक प्रक्रिया को कमज़ोर करती है, जबकि यह तर्क भी सही नहीं है कि मौजूदा प्रणाली के कारण व्यवसायों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, क्योंकि व्यवसायों की खराब स्थिति अर्थव्यवस्था की समग्र स्थिति के कारण है।
        • SEIAAs के प्रदर्शन का आकलन करने हेतु इससे संबंधित मानदंड पर्यावरण संरक्षण जनादेश से अलग होने चाहिये।
        • यह अधिनियम केंद्र सरकार को अपने सभी रूपों में पर्यावरण प्रदूषण को रोकने और देश के विभिन्न हिस्सों के लिये विशिष्ट पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने हेतु अधिकृत (धारा 3 (3) के तहत) प्राधिकरण स्थापित करने का अधिकार देता है।
  • भारत में पर्यावरणीय मंज़ूरी
    • भारत में किसी परियोजना की पर्यावरणीय मंज़ूरी या तो राज्य सरकार और/या केंद्र सरकार द्वारा दी जानी चाहिये।
    • पर्यावरणीय मंज़ूरी के पीछे मूल उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों का कम-से-कम नुकसान सुनिश्चित करना और परियोजना निर्माण के चरण में उपयुक्त उपचारात्मक उपायों को शामिल करना है।
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जारी पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना हेतु निर्णय लेने के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी और जन सुनवाई की प्रक्रिया का विवरण शामिल है।
    • यह EIA अधिसूचना सरकार के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र/निजी क्षेत्र दोनों के लिये उनके द्वारा शुरू की गई बड़ी परियोजनाओं हेतु मान्य है।
    • पर्यावरण पर भौतिक-रासायनिक, जैविक, सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक घटकों के सापेक्ष प्रस्तावित परियोजनाओं, योजना कार्यक्रमों या विधायी कार्यों की संख्या का संभावित प्रभाव पड़ता है।

आगे की राह:

  • हालांँकि पर्यावरण प्रभाव का आकलन पर्यावरण की रक्षा करने तथा पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था, विकास तथा प्रदूषण के बीच संतुलन बनाए रखने हेतु आवश्यक है, लेकिन इसके दीर्घकालिक चरणों में सुधार करना आवश्यक है क्योंकि यह भारत में व्यापार शुरू करने में एक बड़ी बाधा बन गया है।
  • पिछले कुछ वर्षों में प्रशासनिक और नौकरशाही के मुद्दों ने स्थानीय निवेशकों के लिये भारत में निवेश को कठिन बना दिया है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

मॉरीशस में सामाजिक आवास इकाई परियोजना

प्रिलिम्स के लिये:

मॉरीशस, सागर मिशन, मॉरीशस में भारत-सहायता प्राप्त विकास परियोजनाएँ।

मेन्स के लिये:

भारत के लिये मॉरीशस का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ, भारत-मॉरीशस संबंध।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री और मॉरीशस सरकार ने संयुक्त रूप से भारत के विकास समर्थन के हिस्से के रूप में मॉरीशस में भारतीय-सहायता प्राप्त सामाजिक आवास इकाई परियोजना का उद्घाटन किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • मई 2016 में भारत ने मॉरीशस को विशेष आर्थिक पैकेज (SEP) के रूप में 353 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान दिया ताकि मॉरीशस द्वारा चिंहित पाँच प्राथमिकता वाली परियोजनाओं को निष्पादित किया जा सके।
    • यह परियोजनाएँ है: मेट्रो एक्सप्रेस परियोजना, सर्वोच्च न्यायालय बिल्डिंग, नया ईएनटी अस्पताल (New ENT Hospital), प्राथमिक स्कूली बच्चों को डिजिटल टैबलेट की आपूर्ति और सामाजिक आवास परियोजना।
    • सामाजिक आवास परियोजना के उद्घाटन के साथ ही एसईपी के तहत सभी हाई प्रोफाइल परियोजनाओं को लागू किया गया है।
  • दो अन्य परियोजनाओं की आधारशिला रखी:
    • अत्याधुनिक सिविल सर्विस कॉलेज का निर्माण:
      • मॉरीशस के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान वर्ष 2017 में हस्ताक्षरित एक समझौता ज्ञापन के तहत इसे 4.74 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान समर्थन के माध्यम से वित्तपोषित किया जा रहा है।
      • एक बार निर्माण हो जाने के बाद यह मॉरीशस के सिविल सेवकों को विभिन्न प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रमों को शुरू करने के लिये पूरी तरह से सुसज्जित तथा कार्यात्मक सुविधा प्रदान करेगा।
      • यह भारत के साथ संस्थागत संबंधों को और मज़बूत करेगा।
        • भारत के प्रधानमंत्री ने राष्ट्र निर्माण में सिविल सर्विस कॉलेज परियोजना के महत्त्व को भी स्वीकार किया तथा मिशन कर्मयोगी की सीख साझा करने की पेशकश की।
    • 8 मेगावाट सोलर पीवी फार्म:
      • इसमें मॉरीशस के लगभग 10,000 घरों को विद्युतीकृत करने के लिये सालाना लगभग 14 GWh हरित ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु 25,000 PV सेल की स्थापना शामिल है।
      • यह 13,000 टन CO2 उत्सर्जन से मॉरीशस के सामने आने वाली जलवायु चुनौतियों को कम करने में मदद करेगा।
    • दो प्रमुख द्विपक्षीय समझौतों का आदान-प्रदान:
      • मेट्रो एक्सप्रेस और अन्य बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये भारत द्वारा मॉरीशस को 190 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट के विस्तार हेतु समझौता।
      • लघु विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन पर समझौता ज्ञापन।

भारत-मॉरीशस संबंध

  • परिचय:
    • भारत और मॉरीशस के बीच संबंध वर्ष 1730 से पहले के हैं और राजनयिक संबंध वर्ष 1948 में मॉरीशस के स्वतंत्र राज्य बनने (1968) से पहले स्थापित किये गए थे।
    • भारत ने मॉरीशस को प्रवासी भारतीयों के नज़रिये से देखा है। यह शायद स्वाभाविक था, क्योंकि भारतीय मूल के समुदाय इस द्वीप में एक महत्त्वपूर्ण बहुमत का गठन करते हैं।
      • भारतीय मूल के लोग मॉरीशस की आबादी के लगभग 70% हैं।
    • यह प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में भारत का एक महत्त्वपूर्ण भागीदार है जो भारतीय डायस्पोरा से संबंधित मुद्दों के लिये एक मंच है।
  • भारत के लिये महत्त्व:
    • भू-रणनीतिक: विगत कुछ वर्षों में भारत ने पश्चिमी हिंद महासागर के इस द्वीपीय देश को सामरिक दृष्टि से महत्त्व देना प्रारंभ किया है।
      • वर्ष 2015 में अपनी मॉरीशस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने महत्त्वाकांक्षी नीति सागर (Security and Growth for All-SAGAR) की शुरुआत की। यह पिछले कई दशकों में भारत द्वारा हिंद महासागर में किया गया एक महत्त्वपूर्ण प्रयास था।
      • 2015 में भारत और मॉरीशस ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये जो भारत को मॉरीशस द्वीपों पर सैन्य ठिकानों की स्थापना के मामले में बुनियादी ढाँचे को विकसित करने की अनुमति देता है।
    • भू-आर्थिक: विशेष भौगोलिक अवस्थिति के कारण हिंद महासागर क्षेत्र में मॉरीशस का वाणिज्यिक एवं कनेक्टिविटी के लिहाज़ से विशेष महत्त्व है।
      • अफ्रीकी संघ, इंडियन ओशियन रिम एसोसिएशन और हिंद महासागर आयोग के सदस्य के तौर पर भी मॉरीशस की भौगोलिक अवस्थिति बहुत महत्त्वपूर्ण है।
      • SIDS (Small Island Developing States) के संस्थापक सदस्य के रूप में यह एक विशेष पड़ोसी राष्ट्र है।
      • भारत मॉरीशस का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार देश है जो वर्ष 2007 से मॉरीशस में वस्तुओं और सेवाओं का सबसे बड़ा निर्यातक बना हुआ है।
    • क्षेत्रीय केंद्र के रूप में: मॉरीशस में नए निवेश अफ्रीका से आते हैं, अतः मॉरीशस भारत की अपनी अफ्रीकी आर्थिक आउटरीच के लिये सबसे बड़ा केंद्र हो सकता है।
      • भारत तकनीकी नवाचार के एक क्षेत्रीय केंद्र के रूप में मॉरीशस के विकास में योगदान दे सकता है। अतः भारत को उच्च शिक्षा सुविधाओं के लिये मॉरीशस की मांगों पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया देनी चाहिये।
      • मॉरीशस क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र साबित हो सकता है।
    • द्वीप नीति का केंद्रबिंदु: अभी तक भारत दक्षिण पश्चिमी हिंद महासागर के वैनिला द्वीप (Vanilla islands) कहे जाने वाले देशों; जिनमें कोमोरोस, मेडागास्कर, मॉरीशस, मैयट, रीयूनियन और सेशेल्स शामिल हैं, का द्विपक्षीय रणनीतिक आधार पर सामना करने का प्रयास कर रहा है।
      • यदि भारत मॉरीशस के विकास में सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाता है तो आने वाले समय में मॉरीशस दिल्ली की द्वीपीय नीति का केंद्र बिंदु बन जाएगा।
      • यह दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर में एक बैंकिंग गेटवे और पर्यटन के केंद्र के रूप में भारत की वाणिज्यिक गतिविधियों को बढ़ावा दे सकता है।
    • चीन के संदर्भ में: चीन ने “स्ट्रिंग्स ऑफ पर्ल्स” की अपनी नीति के तहत ग्वादर (पाकिस्तान) से लेकर हम्बनटोटा (श्रीलंका), यौप्यु (म्यांँमार) तक हिंद महासागर क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण संबंध स्थापित किये हैं।
      • ऐसे में भारत को अपनी समुद्री क्षमताओं को मज़बूत करने में और क्षमता वृद्धि करने के लिये मॉरीशस, मालदीव, श्रीलंका और सेशल्स जैसे हिंद महासागर के तटवर्ती राज्यों की सहायता करनी चाहिये।
  • महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम:
    • वर्ष 2021 में, भारत तथा मॉरीशस के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग और भागीदारी समझौते (CECAP) पर हस्ताक्षर को मंज़ूरी दी गई।
    • भारत ने उन्नत हल्के हेलीकाप्टर एमके III के निर्यात के लिये मॉरीशस के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये हैं। हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल मॉरीशस पुलिस बल द्वारा किया जाएगा।

आगे की राह

  • हालाँकि भारत और मॉरीशस दोनों ही देश औपनिवेशिक काल से एक-दूसरे के साथ सांस्कृतिक रूप से जुड़े हैं तथा हाल के वर्षों में दोनों के बीच एक विशेष साझेदारी है, भारत मॉरीशस के प्रभाव को हल्के में नहीं ले सकता है और इस महत्त्वपूर्ण द्वीपीय देश के साथ भारत को अपने संबंधों को ओर अधिक प्रगाढ़ करने की आवश्यकता है।
  • जैसा कि भारत दक्षिण पश्चिमी हिंद महासागर में सुरक्षा सहयोग के लिये एक एकीकृत दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है जिसमें मॉरीशस का स्वाभाविक रूप से एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है इसलिये, भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी (Neighbourhood First policy) में सुधार करना आवश्यक है।

स्रोत: पी.आई.बी.


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